· कवि कुमार विश्वास ने राजकमल प्रकाशन के स्टाल पर अपनी आने वाली पुस्तक ‘फिर मेरी याद’ घोषणा की साथ ही उन्होंने साहिर समग्र से नज्में भी सुनाई
‘मैक्लुस्कीगंज’ के लेखक विकास कुमार झा से वीरेन्द्र यादव की बातचीत
· अकबर जैसे शख्सियत को प्रासंगिक बनाने के लिए किसी घटना की जरूरत नही: शाज़ी जमाँ
. छात्र राजनीति की बहुत सारी चीजें बाहर नही आती हैं,जनता स्टोर उन्हीं चीजों को सामने लाती है : नलीन चौधरी
· लेखक प्रमोद कुमार अग्रवाल की बहुआयामी पुस्तक ‘भारत का विकास और राजनीति’ का लोकार्पण
नई दिल्ली : दिल्ली के प्रगति मैदान में चल रहे विश्व पुस्तक मेले में गुरुवार के दिन राजकमल प्रकाशन के स्टॉल ‘जलसाघर’ में लेखकों और पाठकों का आना जाना बना रहा।लेखक से मिलिए कार्यक्रम के पहले सत्र में ‘मैक्लुस्कीगंज’ के लेखक विकास कुमार झा से प्रसिद्ध आलोचक वीरेन्द्र यादव ने बातचीत की। ‘मैक्लुस्कीगंज’ रांची के पास बसा एक एंग्लो –इंडियन गावँ है तथा विकास कुमार झा का उपन्यास इसी गाँव को केंद्र में रखकर लिखा गया है। उपन्यास के संदर्भ में बातचीत करते हुए विकास कुमार झा ने कहा, “कई दशकों से इस गावँ की पीड़ा इस सवाल के साथ अपनी जगह कायम है कि – क्या एक दिन पृथ्वी के नक्शे से मैक्लुस्कीगंज का नामोनिशान मिट जाएगा !” लेखक ने काह कि यह सवाल जितना सरकार के लिये है उतना ही पाठकों के लिये भी।
छठे दिन के कार्यक्रम के दूसरे सत्र में लगभग दो दशक के शोध के बाद लिखा गया उपन्यास ‘अकबर’ के लेखक शाज़ी ज़माँ ने पाठकों से मिलकर उनके सवालों के जवाब दिए तथा मुग़ल बादशाह अकबर के किस्सों से पाठकों को रूबरू करवाया। राजकमल प्रकाशन के स्टॉल में दास्तानगो हिमांशु बाजपेयी से बातचीत में उन्होंने कहा, ‘ अकबर जैसे शख्सियत पर उपन्यास लिखें और इतिहास का सहारा न लें यह संभव नहीं हो सकता है।” अकबर और बीरबल के रोचक किस्सों पर भी लेखक ने कहा ‘बीरबल प्रतिभा के धनी थे, अकबर के दरबार में जितनी छुट उनको थी शायद ही किसी और को थी। आज के समय में दोनों के बहुत किस्से आते हैं इनमें ज्यादातर काल्पनिक हैं।”
लेखक से मिलिए कार्यक्रम के तीसरे सत्र में लोकभारती प्रकाशन से प्रकाशित, लेखक प्रमोद कुमार अग्रवाल की बहुआयामी पुस्तक ‘भारत का विकास और राजनीति’ का लोकार्पण वर्धा विश्वविद्यालय के पूर्व कूलपति विभूति नारायण राय, एवं कवि दिनेश कुमार शुक्ल द्वारा किया गया। किताब की प्रासंगिकता पर बात करते हुए प्रमोद कुमार अग्रवाल ने कहा ‘भारत का विकास ओर राजनीति पुस्तक में भारत की धड़कन समाहित है तथा भारत के विकास की प्रमुख समस्याओं का सरल एव व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत है।’
लेखक से मिलिए कार्यक्रम के चौथे सत्र में विश्व पुस्तक मेले की चर्चित पुस्तक ‘जनता स्टोर’ के लेखक नवीन चौधरी से पत्रकार आशुतोष उज्जवल ने बातचीत की। आशुतोष से बातचीत में, उपन्यास लिखने की प्रेरणा कहाँ से मिली – इस सवाल का जवाब देते हुए नवीन चौधरी ने कहा, ” स्कूल और कॉलेज के समय से ही मैं छात्र राजनीति में सक्रिय रहा, और मैंने यह महसूस किया कि छात्र राजनीति की बहुत चीजें विश्वविद्यालय के बाहर नहीं आ पाती है। उन्हीं अनसुनी किस्सों-कहानियों को इस पुस्तक के माध्यम से बाहर लाने की कोशिश है – जनता स्टोर।”
पाठकों के सवाल के जवाब में छात्र राजनीति जैसे विषय पर उपन्यास लिखने के बारे उन्होंने कहा “राजनीति को जानना और समझना जरूरी है। मैंने सोचा कि जितना मैं जनता हूँ कम से कम इस किताब के माध्यम से उसे बताने की कोशिश करूँ।”
बातचीत के दौरान नवीन चौधरी ने कॉलेज की दुनिया तथा छात्र राजनीति के अपने खट्टे-मीठे अनुभव साझा किए। उन्होंने कहा ‘छात्र राजनीति के दौरान हम जेल भी गए और जेल के अन्दर की दुनिया भी देखी जो अलग और बहुत ही दुखदाई होती है। जो वहाँ पैसा फेंक सकता है वह वहाँ की सुविधाएँ ले सकता है। जेल में ग़रीब, चाहे वह छोटे से अपराध के कारण अन्दर गया हो उसे पता नहीं होता कि बाहर निकलने के क्या क़ानूनी दाव पेंच हैं।”
इस पुस्तक को लिखने में कितना समय लगा इस सवाल का जवाब देते हुए लेखक ने कहा कि “मैंने निश्चय किया था कि हर दिन 2 पेज जरूर लिखूँगा।”
नवीन चौधरी की पुस्तक ‘जनता स्टोर’ 90 के दशक की छात्र-राजनीति के दांव-पेंच के साथ -साथ मोहब्बत के गलियारों में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाती है। इसमें जातिगत समीकरण, पैसे और सत्ता के लोभ के चलते धोखेबाज़ी के किस्से हैं, और बातों के साथ –साथ गुलाबी नगरी जयपुर के रोचक किस्से हैं।
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संतोष कुमार
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