Thursday, January 16, 2025
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ताशकंद में हमने खोया लाल बहादुर

भाग्य और कर्म के बीच के संघर्ष में कभी कर्म जीतता है तो कभी भाग्य, किन्तु कभी-कभी दोनों के इतर प्रारब्ध बलवान हो जाता है।आध्यात्म और दर्शन के अध्येता प्रारब्ध को सर्वोपरि मानकर नियति के फ़ैसले को अंतिम निर्णय कहते हैं और प्रारब्ध सबकुछ छीनकर भी कभी-कभी उससे कहीं अधिक लौटा देता है। इसी तरह उत्तरप्रदेश के छोटे से नगर मुग़लसराय में रहने वाले लिपिक मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव के घर 2 अक्टूम्बर 1904 में एक बालक का जन्म हुआ। घर के लोग उस बालक को प्यार से नन्हे कहने लगे, जिसका मूल नाम लाल बहादुर श्रीवास्तव हुआ।

गाँव की गलियों में खेलने वाला नन्हे, जिसने महज़ 18 माह की आयु में ही पिता को हमेशा के लिए खो दिया। पिता के देहांत के बाद माँ रामदुलारी नन्हे को लेकर नाना हज़ारीलाल के घर मिर्ज़ापुर आ गई पर दुर्भाग्य से कुछ ही समय बाद नाना भी चल बसे। फिर मौसा रघुनाथ प्रसाद की सहायता से नन्हे का लालन-पालन हुआ, जैसे-तैसे नन्हे ने ननिहाल में रहते हुए प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की, फिर उसके बाद की शिक्षा हरिश्चन्द्र हाई स्कूल और काशी विद्यापीठ में हुई। लालबहादुर ने संस्कृत में काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि प्राप्त की। और इस शास्त्री की उपाधि ने जातिगत पहचान श्रीवास्तव को गौण कर दिया, फिर लाल बहादुर शास्त्री के रूप में पहचान बनी। संघर्षों की टिक-टिक करती घड़ी ने बचपन तो छीन ही लिया पर हौंसलो ने अंगड़ाई लेना स्वीकार नहीं किया। उसी नियति ने उस अबोध बालक के रूप में भारत को दूसरा प्रधानमंत्री दिया। बात देश के दूसरे प्रधानमंत्री और भारतीय किसानों के आदर्श पुरूष की इतनी-सी है कि कर्म की घड़ी यदि निरंतर चलती रहे तो प्रारब्ध के भाल पर भाग्य विजय तिलक करता है।

1928 में शास्त्री जी का विवाह मिर्ज़ापुर निवासी गणेशप्रसाद की पुत्री ललिता से हुआ। ललिता और शास्त्रीजी की छ: सन्तान हुईं, दो पुत्रियाँ-कुसुम व सुमन और चार पुत्र – हरिकृष्ण, अनिल, सुनील व अशोक। वैसे भी उत्तरप्रदेश की राजनैतिक मिट्टी केंद्रीय क़द तय करती है। उसी मिट्टी में लालबहादुर शास्त्री भी अपने भाग्य से कुश्ती लड़ते हुए जन सेवा के मैदान में थे। संस्कृत भाषा में स्नातक स्तर तक की शिक्षा समाप्त करने के पश्चात् वे भारत सेवक संघ से जुड़ गये और देशसेवा का व्रत लेते हुए यहीं से अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत की। शास्त्रीजी सच्चे गान्धीवादी थे, जिन्होंने अपना सारा जीवन सादगी से बिताया और उसे गरीबों की सेवा में लगाया। भारतीय स्वाधीनता संग्राम के सभी महत्त्वपूर्ण कार्यक्रमों व आन्दोलनों में उनकी सक्रिय भागीदारी रही और उसके परिणामस्वरूप उन्हें कई बार जेलों में भी रहना पड़ा। स्वाधीनता संग्राम के जिन आन्दोलनों में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही, उनमें 1921 का असहयोग आंदोलन, 1930 का दांडी मार्च तथा 1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन उल्लेखनीय हैं।

भारत छोड़ो आंदोलन में शास्त्री जी ने अभूतपूर्व योगदान दिया। 9 अगस्त 1942 के दिन शास्त्रीजी ने इलाहाबाद पहुँचकर अगस्त क्रान्ति की दावानल को पूरे देश में प्रचण्ड रूप दे दिया। पूरे ग्यारह दिन तक भूमिगत रहते हुए यह आन्दोलन चलाने के बाद 19 अगस्त 1942 को शास्त्रीजी गिरफ़्तार हो गये।

भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात् शास्त्रीजी को उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था। गोविंद बल्लभ पंत के मंत्रिमण्डल में उन्हें पुलिस एवं परिवहन मन्त्रालय सौंपा गया। परिवहन मंत्री के कार्यकाल में उन्होंने प्रथम बार महिला संवाहकों (कण्डक्टर्स) की नियुक्ति की थी।

पुलिस मंत्री होने के बाद संवेदनशील शास्त्री जी ने एक अनूठे प्रयोग को किया, जो आज तक नज़ीर बन चुका है। भीड़ को नियन्त्रण में रखने के लिये लाठी की जगह पानी की बौछार का प्रयोग उन्होंने प्रारम्भ कराया। आज भी पुलिस पहले लाठीचार्ज की जगह पानी की बौछार चलाती है।

पण्डित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में 1951 में शास्त्री जी अखिल भारत कांग्रेस कमेटी के महासचिव नियुक्त किए गए। उन्होंने 1952, 1957 व 1962 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को भारी बहुमत से जिताने के लिये बहुत परिश्रम किया।

जवाहरलाल नेहरू का उनके प्रधानमन्त्री के कार्यकाल के दौरान 27 मई, 1964 को देहावसान हो जाने के बाद साफ़-सुथरी छवि के कारण शास्त्रीजी को 1964 में देश का प्रधानमंत्री बनाया गया। उन्होंने 9 जून 1964 को भारत के प्रधानमंत्री का पद भार ग्रहण किया। उनके कार्यकाल में 1965 का भारत-पाक युद्ध शुरू हो गया। इससे तीन वर्ष पूर्व चीन का युद्ध भारत हार चुका था। शास्त्रीजी ने अप्रत्याशित रूप से हुए इस युद्ध में राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी। इसकी कल्पना पाकिस्तान ने कभी सपने में भी नहीं की थी।

सन् 1965 में भारत और पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के बीच शान्ति समझौते का दौर शुरू हुआ, जिसे ताशकंद समझौता नाम दिया गया, जो भारत और पाकिस्तान के बीच 11 जनवरी, 1966 को हुआ था। इस समझौते के अनुसार यह तय हुआ कि भारत और पाकिस्तान दोनों ही देश अपनी शक्ति का प्रयोग नहीं करेंगे और अपने झगड़ों को शान्तिपूर्ण ढंग से निबटाएँगे। यह समझौता भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री तथा पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अयूब ख़ाँ की लम्बी वार्ता के उपरान्त 11 जनवरी, 1966 को ताशकंद, रूस में हुआ। ‘ताशकंद सम्मेलन’ सोवियत रूस के प्रधानमंत्री द्वारा आयोजित किया गया था। इस समझौते का प्रभाव बेहद समयानुकूल और सशक्त था। क्योंकि इस समझौते के क्रियान्वयन के फलस्वरूप दोनों देशों की सेनाएँ उस सीमा रेखा पर वापस लौट गईं, जहाँ पर वे युद्ध के पूर्व में तैनात थीं। परन्तु इस घोषणा से भारत-पाकिस्तान के दीर्घकालीन सम्बन्धों पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ा। फिर भी ताशकंद घोषणा इस कारण से याद रखी जाएगी कि इस पर हस्ताक्षर करने के कुछ ही घंटों बाद रहस्यमयी ढंग से भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की दु:खद मृत्यु हो गई।

ताशकंद में अमरीका ने वार्ता का नाटक रचा, क्योंकि कुछ माह पूर्व से भारत-पाकिस्तान युद्ध चल रहा था और पाकिस्तान चाहता था कि भारत युद्ध में जीता हिस्सा लौटा दे, किंतु शास्त्री जी नहीं चाहते थे कि जो भूभाग भारतीय सेना ने जीत लिया है वह लौटाए। कुछ इतिहासकारों की मानें तो शास्त्रीजी ताशकंद जाना भी नहीं चाहते थे, लेकिन देश के कुछ नेताओं ने देश के अंदर ऐसा माहौल पैदा किया कि शास्त्री जी को मजबूरन ताशकंद जाना पड़ा। जब हमारे देश के वो लाल ताशकंद गए तो उन्हें ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा गया, तब उन्होंने दो टूक शब्दों में कह दिया कि “भारत युद्ध में जीता हुआ हिस्सा वापस नहीं करेगा।” जिसके बाद दबाव भी शास्त्री जी पर डाला गया लेकिन उन्होंने कह दिया कि उनके जीवित रहते जीता हुआ हिस्सा किसी भी कीमत पर वापस नहीं होगा, देश को उनके इस फ़ैसले से बड़ा गर्व हुआ।

भारत के बहादुर ‘लाल’ पर देश घमण्ड कर रहा था, किंतु किसी को क्या पता था कि सियासी चालें ख़ुद शास्त्री जी की गर्दन काटने पर तुली हुई हैं। जिस दिन शास्त्री जी ने हस्ताक्षर किए, उसी रात को शास्त्री जी की रहस्यमयी ढंग से मौत की ख़बर भारत को दे दी गई। पूरा भारत स्तब्ध था किंतु बड़ा झटका तब लगा, जब ख़ुद भारत सरकार के हवाले से कहा गया कि शास्त्री जी को हार्टअटैक पड़ा है। लेकिन शास्त्री जी की पत्नी की मानें तो अंतिम समय जब उन्होंने शास्त्री जी को देखा तो उनका शरीर बिल्कुल नीला पड़ा हुआ था और उनका यह भी कहना था कि उनके पति को ज़हर दिया गया है।

रूस में हुए उनके पोस्टमार्टम की रिपोर्ट का सच तो छुपा दिया गया। शास्त्री जी के अपने ही देश भारत में उनकी मौत की जांच पड़ताल के बजाए उनकी मौत का सच जानने के लिए पोस्टमार्टम तक नहीं कराया गया। जिसके बाद सवाल भी उठे कि भारत आखिर सच क्यों छुपाना चाहता है? ऐसा भी बताया जाता है कि रूस ने भारत को पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी भेजी थी, लेकिन उसे जनता को नहीं दिखाया गया। अपने ही देश में उनकी मौत का सच छिपा दिया गया, जिसके संबंध में दलील दी गई कि ये अंतरराष्ट्रीय संबंध की वजह से किया जा रहा है।

शास्त्री जी की मृत्यु के बाद कार्यवाहक के तौर पर गुलजारीलाल नंदा को प्रधानमंत्री बनाया गया और उसके बाद इंदिरा गांधी सत्ता में आईं। उनके रूस से बहुत अच्छे संबंध थे, इस वजह से भी देश को आजतक शास्त्री जी की मौत का सच सुनने को नहीं मिला और अब शास्त्री जी की मौत का रहस्य सिर्फ़ एक कभी न सुलझने वाली पहेली बनकर ही रह गया।

आखिर नियती को यही मंज़ूर था कि “जय जवान-जय किसान” का मूल मंत्र देने वाला राष्ट्र सपूत ऐसे विदा हो जाएगा। आखिर राजनीति की इस दुर्दशा पर देश मौन हो गया। शास्त्री जी की सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिये मरणोपरान्त उन्हें भारत रत्‍न से सम्मानित किया गया। लाल बहादुर शास्त्री एक महान व्यक्ति थे, हैं और सदा रहेंगे। क्योंकि भारत भारती के भाल पर लगे तिलक की भाँति यह लाल भी अजर-अमर है।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
पत्रकार एवं लेखक
पता: 204, अनु अपार्टमेंट, 21-22 शंकर नगर, इंदौर (म.प्र.)
संपर्क: 9893877455 | 9406653005
अणुडाक: arpan455@gmail.com
अंतरताना:www.arpanjain.com

[ लेखक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तथा देश में हिन्दी भाषा के प्रचार हेतु हस्ताक्षर बदलो अभियान, भाषा समन्वय आदि का संचालन कर रहे हैं]

नवरात्रि का संदेश : नारी सशक्तीकरण

भारतीय पर्व हमारी सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक हैं। इनसे हमें ज्ञात होता है कि हमारी प्राचीन संस्कृति कितनी विशाल, संपन्न एवं समृद्ध है। यदि नवरात्रि की बात करें तो यह पर्व भी भारतीय संस्कृति की महानता को दर्शाता है। विगत कुछ दशकों से देश में महिला सशक्तीकरण की बात हो रही है। कुछ लोग विदेशों के उदाहरण देते हैं कि वहां की महिलाएं सशक्त हैं तथा उन्हें बहुत से अधिकार प्राप्त हैं। किंतु ये लोग अपने देश के इतिहास पर चिंतन एवं मनन नहीं करते हैं। वास्तव में भारत विश्व का एकमात्र ऐसा देश है, जहां महिलाओं को पुरुषों के समान माना गया है। उदाहरण के लिए भारत में देवियों की पूजा-अर्चना की जाती है। यहां पर उन्हें भी देवताओं के समान ही पूजा जाता है, अपितु देवियों का स्थान देवता से पहले आता है जैसे राधा कृष्ण, सीता राम आदि। भगवान शिव के साथ देवी पार्वती की भी पूजा की जाती है। भगवान राम के साथ देवी सीता की पूजा की जाती है ।

हमारी मान्यता के अनुसार शक्ति की देवी दुर्गा है। धन एवं समृद्धि की देवी लक्ष्मी है तथा ज्ञान की देवी सरस्वती है। कहने का अभिप्राय यह है कि मनुष्य को जीवन में जिन वस्तुओं की आवश्यकता होती है, वह सब उन्हें इन देवियों से ही तो प्राप्त होती हैं। मानव जीवन को अनुशासन में रखने एवं आदर्श जीवन को स्थापित करने के लिए भगवान हमारे विश्वास और श्रद्धा के केंद्र है।

नवरात्रि देवी दुर्गा को समर्पित एक महत्वपूर्ण पर्व है। नवरात्रि का पर्व वर्ष में चार बार आता है अर्थात चैत्र, आषाढ़, अश्विन, माघ। इनमें से चैत्र एवं आश्विन माह में आने वाली नवरात्रि अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। माघ एवं आषाढ़ माह में आने वाली नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहा जाता है, क्योंकि इनमें कोई सार्वजनिक उत्सव का आयोजन नहीं किया जाता है। आश्विन माह में आने वाली नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि कहा जाता है। इसका  आरंभ अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि से होता है। इस दिवस पर शुभ मुहूर्त में कलश की स्थापना की जाती है। नवरात्रि में नौ दिन देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है।

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।

तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।

पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।

सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।

उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।

अर्थात देवी पहली शैलपुत्री, दूसरी ब्रह्मचारिणी, तीसरी चंद्रघंटा, चौथी कूष्मांडा, पांचवी स्कंध माता, छठी कात्यायिनी, सातवीं कालरात्रि, आठवीं महागौरी एवं नौवीं देवी सिद्धिदात्री है।

शैलपुत्री

नवरात्रि के प्रथम दिन देवी दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा-अर्चना की जाती है। मां शैलपुत्री को सफेद वस्तुएं अत्यंत प्रिय हैं, इसलिए उन्हें सफेद मिष्ठान का भोग लगाया जाता है। यह प्रसाद गाय के शुद्ध घी से बनाया जाता है। सफेद रंग पवित्रता एवं शांति का प्रतीक माना जाता है। जीवन में सर्वाधिक पवित्रता एवं शांति का ही महत्व है। इनके बिना सब व्यर्थ है। देवी की साधना से सुख एवं समृद्धि में वृद्धि होती है।

ब्रह्मचारिणी

नवरात्रि के दूसरे दिन देवी देवी दुर्गा के द्वितीय स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। मां ब्रह्मचारिणी को शक्कर एवं पंचामृत का भोग लगाया जाता है। शक्कर जीवन में मिठास का प्रतीक है। जिस प्रकार भोजन में मिष्ठान का महत्व है, उसी प्रकार जीवन में मधुर वाणी का महत्व है। मृदु भाषी व्यक्ति सबका मन मोह लेते हैं। देवी की साधना से भाग्य में वृद्धि होती है तथा आयु भी लम्बी होती है।

चंद्रघंटा

नवरात्रि के तीसरे दिन देवी दुर्गा के तृतीय स्वरूप मां चंद्रघंटा की पूजा-अर्चना की जाती है। मां चंद्रघंटा को दुग्ध से बने मिष्ठान एवं खीर का भोग लगाया जाता है। खीर भी दुग्ध से बनाई जाती है। दुग्ध समृद्धि एवं अच्छे स्वास्थ्य का प्रतीक है। देवी की साधना से व्यक्ति बुरी शक्तियों से सुरक्षित रहता है।

कुष्मांडा

नवरात्रि के चौथे दिन देवी दुर्गा के चतुर्थ स्वरूप मां कुष्मांडा की पूजा-अर्चना की जाती है। मां कुष्मांडा को मालपुये का भोग लगाया जाता है। देवी की साधना से मनुष्य की समस्त इच्छाएं पूर्ण होती हैं।

स्कंदमाता

नवरात्रि के पांचवे दिन देवी दुर्गा के पांचवे स्वरूप स्कंदमाता की पूजा-अर्चना की जाती है। स्कंदमाता को फल विशेषकर केला अत्यंत प्रिय है, इसलिए उन्हें केले का भोग लगाया जाता है। देवी की साधना से सुख एवं एश्वर्य में वृद्धि होती है।

कात्यायनी

नवरात्रि के छठे दिन देवी दुर्गा के छठे स्वरूप मां कात्यायनी की पूजा-अर्चना की जाती है। मां कात्यायनी को मीठे पान एवं मधु का भोग लगाया जाता है। देवी की साधना से दुखों का नाश होता है तथा जीवन में सुख का आगमन होता है।

कालरात्रि

नवरात्रि के सातवें दिन देवी दुर्गा के सातवे स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा-अर्चना की जाती है। मां कालरात्रि को गुड़ अत्यंत प्रिय है, इसलिए उन्हें गुड़ से बने व्यंजन का भोग लगाया जाता है। देवी की साधना से समस्त नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है तथा सकारात्मकता में वृद्धि होती है। जीवन सुखी हो जाता है।

महागौरी

नवरात्रि के आठवें दिन देवी दुर्गा के आठवे स्वरूप मां महागौरी की पूजा-अर्चना की जाती है। मां महागौरी को नारियल अत्यंत प्रिय है, इसलिए उन्हें नारियल का भोग लगाया जाता है अर्थात नारियल अर्पित किया जाता है। देवी की साधना से व्यक्ति के रुके हुए कार्य पूर्ण होते हैं।

सिद्धिदात्री

नवरात्रि के अंतिम दिन देवी दुर्गा के नौवें स्वरूप मां सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन कन्या पूजन का विधान है। कन्याओं की पूजा की जाती है। उन्हें भोजन ग्रहण कराया जाता है। इसके पश्चात उनके चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद लिया जाता है। कन्याओं को प्रसाद के साथ उपहार भेंट किए जाते हैं। तदुपरांत देवी को काले चने, हलवा पूड़ी एवं खीर का भोग लगाया जाता है। देवी की साधना से व्यक्ति के समस्त पापों का नाश होता है तथा उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

वास्तव में नवरात्रि का पर्व नारी शक्ति का उत्सव है। प्राचीन काल से ही यह पर्व भारतीय संस्कृति में नारी शक्ति का प्रतीक रहा है। कन्या पूजन इस बात को सिद्ध करता है कि भारतीय समाज में कन्या का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। कन्या भ्रूण हत्या तथा नवजात कन्याओं का वध कर देने जैसी बुराइयां हमारे समाज में कब और कैसे सम्मिलित हो गईं, ज्ञात ही नहीं हो पाया। निरंतर घटता लिंगानुपात अत्यंत चिंता का विषय बना हुआ है। विदेशों में भारत की जिन बुराइयों का उल्लेख कुछ लोग बड़े गर्व के साथ करते हैं, वे बुराइयों तो हमारे समाज में कभी नहीं थीं। जिस समय विश्व के अधिकांश देश अशिक्षित एवं असभ्य थे, उस समय हमारा देश शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी था। पुरुष ही नहीं, अपितु महिलाएं भी शिक्षित थीं। वे शास्त्रार्थ करती थीं, अस्त्र-शस्त्र चलाती थीं। देवियों ने कितने ही राक्षसों का अकेले वध किया है।

 

नारी को ईश्वर ने श्रेष्ठ बनाया है। अनेक मामलों में वह पुरुष से उच्च स्थान पर है। वह जन्मदात्री है। जिस प्रकार एक स्त्री अपने बालकों का पालन-पोषण कर लेती है, उस प्रकार एक पुरुष उनका पालन-पोषण नहीं कर पाता। स्त्री पूरे परिवार का संचालन सुंदर तरीके से करती है। नारी संस्कार की जननी है उसके अंदर ममता, स्नेह, उदारता,आत्मीयता ,प्यार ,दुलार आदि गुण जीवन का हिस्सा है । ईश्वर ने नारी को अत्यंत सबल बनाया है। नारी प्रत्येक क्षेत्र में अपनी योग्यता एवं प्रतिभा का सफल प्रदर्शन कर रही है।

लेखक – सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के अध्येता है ।

मो- 8750820740


Dr.Sourabh Malviya

Associate Professor

Deptt. of Journalism $ Mass Communication

University of Lucknow- UP

मो. 8750820740

अद्भुत भारत : एक बानगी

भारत राष्ट्र अपनी विविधताओं के लिए विश्व में अलग और महती स्थान रखता है। यहाँ के विश्व प्रसिद्ध स्थल और प्रकृति की छटा पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र तो हैं ही साथ ही  देशवासियों के लिए सांस्कृतिक और आध्यात्मिक सन्दर्भों के लिए महत्वपूर्ण स्थल हैं। भारत की दार्शनिक पृष्ठभूमि और पौराणिक समृद्धता से सम्पन्न साहित्य इसकी गौरवशाली परम्परा और विकास को उजागर कर जिज्ञासु एवं अध्ययनार्थियों को संस्कृति और संस्कारों से साक्षात्कार कराता है। भारत के प्रत्येक राज्य की अपनी विशेषता है और वहाँ का अपना सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व है।
इन्हीं सन्दर्भों को उभारती वरिष्ठ पर्यटन लेखक एवं राजस्थान सरकार में जनसम्पर्क विभाग के पूर्व संयुक्त निदेशक डॉ. प्रभात कुमार सिंघल की सद्य प्रकाशित छह पुस्तकों की श्रृंखला “अद्भुत भारत ” क्रमशः पूर्व भारत, पश्चिम भारत, उत्तर भारत, दक्षिण भारत, मध्य भारत एवं पूर्वोत्तर भारत जो साहित्यागार प्रकाशन, धामाणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता, जयपुर द्वारा वर्ष 2024 में प्रकाशित हुई हैं।
“अद्भुत भारत ” श्रृंखला की पहली पुस्तक ‘पूर्व भारत ‘ में क्रमशः बिहार, झारखण्ड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल , द्वितीय पुस्तक ‘ पश्चिम भारत ‘ में क्रमशः राजस्थान, महाराष्ट्र, गोवा, गुजरात दादर – नगर हवेली और दमन – दीव, तीसरी पुस्तक ‘ उत्तर भारत ‘ में क्रमशः जम्मू – कश्मीर, लद्दाख, देवभूमि हिमाचल प्रदेश, चण्डीगढ़, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखण्ड देवताओं की भूमि, उत्तर प्रदेश, चौथी पुस्तक दक्षिणी भारत में कर्नाटक, मैसूर, श्रीरंगपट्टनम, बेंगलूर, केरल, तेलंगाना, तमिलनाडु, चेन्नई, लक्षदीप, अंडमान निकोबार, पडुचेरी, पाँचवीं पुस्तक ‘ पूर्वोत्तर भारत ‘ में क्रमशः अरुणाचल, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा, छठी पुस्तक ‘ मध्य भारत ‘ में क्रमशः मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्यों के प्रमुखतया इतिहास, भूगोल, कृषि, अर्थव्यवस्था, संस्कृति – साहित्य, परिवहन और दर्शनीय स्थलों के बारे में सारगर्भित जानकारी दी गयी है।
 राज्य विशेष के अध्याय प्रारम्भ होने पर वहाँ की सांस्कृतिक आभा बिखेरता रेखांकन उसकी शैलीगत कला का रूप उजागर करता है जो सौन्दर्य भाव को जागृत करता है। प्रत्येक पुस्तक के अन्त में सम्बन्धित विवरण के प्रमुख सन्दर्भ उल्लेखित है जो पुस्तक के शोधात्मक स्वरूप को बनाये रखता है और अधिक जानकारी प्राप्त करने की राह खोलता है।
श्रृंखला की सभी छह पुस्तकों में उल्लेखित राज्यों के ऐतिहासिक परिपेक्ष्य को स्थापना से लेकर विकास के बढ़ते चरण तक तथ्यात्मक रूप से उभारा है। वहीं प्रमुख एवं विख्यात दर्शनीय स्थलों को उनकी विशेषता और स्थापत्य की दृष्टि से विश्लेषित किया है। यही नहीं आरम्भ में प्रत्येक राज्य की विशेषता, सांस्कृतिक परिवेश और प्रसिद्धि को ध्यान में रखकर उनको रेखाचित्रों के माध्यम से दिग्दर्शित किया है। साथ ही पुस्तकों के फ्लैप पर  पूर्व भारत, पश्चिम भारत, उत्तर भारत, दक्षिण भारत, मध्य भारत एवं पूर्वोत्तर भारत के बारे संक्षिप्त जानकारी देकर उन्हें परिचयात्मक रूप से विवेचित करते हुए भारत के राज्यों के बारे में सार्थक और सारगर्भित जानकारी दी गयी है, जो विद्यार्थियों, शोधार्थियों और पर्यटन प्रेमियों के साथ जिज्ञासु पाठकों लिए महत्वपूर्ण और संग्रहणीय है।
इस माने भी कि इन सभी पुस्तकों में लेखक की ‘ अपनी बात ‘ और ‘ भारत का परिचय ‘ एक समान है जो किसी भी एक पुस्तक को पढ़ने पर भी समग्र रूप से पढ़ा जा कर सन्दर्भित किया जा सकता है। ‘अपनी बात ‘ में लेखक ने भारत वर्ष के सांस्कृतिक सौन्दर्य और वैभव के साथ इसकी विविधता, विचित्रता और अनेकता में एकता से उत्कर्ष को विश्लेषित करते हुए भारत के अद्यतन विलक्षण गौरव को उजागर किया है।
अन्ततः यही कि अद्भुत भारत की यह श्रृंखला भारत और भारतीय संस्कृति और इतिहास की जानकारी ही नहीं देती वरन् पर्यटन की दृष्टि से स्थान विशेष की विशिष्टताओं को भी उजागर करती है। इस माने में भी कि यह सभी पुस्तकें  दिशानिर्देशन के लिए सन्दर्भ ग्रन्थ भी हैं।
– विजय जोशी
समीक्षक, कोटा

विश्व के वित्तीय एवं निवेश संस्थान भारत के आर्थिक विकास के अनुमानों को बढ़ा रहे हैं

आज जब विश्व में कई विकसित एवं विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं में विभिन्न प्रकार की आर्थिक  समस्याएं दिखाई दे रही है, वैश्विक स्तर पर कई प्रकार की विपरीत परिस्थितियों के बीच भी भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व में सबसे तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बनी हुई है। कई विदेशी एवं निवेश संस्थान भारत के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि के सम्बंध में पूर्व में दिए गए अपने अनुमानों में संशोधन कर रहे हैं कि आगे आने वाले समय में भारतीय अर्थव्यवस्था में विकास की गति और अधिक तेज होगी।

विशेष रूप से कोरोना महामारी के पश्चात भारत ने आर्थिक विकास के क्षेत्र में तेज रफ्तार पकड़ ली है। भारत में आर्थिक क्षेत्र में सुधार कार्यक्रमों को लागू किया गया है। स्टैंडर्ड एवं पूअर (एसएंडपी) नामक विश्व विख्यात क्रेडिट रेटिंग संस्थान ने हाल ही में अपने एक प्रतिवेदन में बताया है कि भारत, केलेंडर वर्ष 2024 में एवं इसके बाद के वर्षों में 6.7 प्रतिशत की आर्थिक विकास दर के साथ वर्ष 2031 तक विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा तथा भारतीय अर्थव्यवस्था का वैश्विक अर्थव्यवस्था में योगदान वर्तमान के 3.6 प्रतिशत से बढ़कर 4.5 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच जाएगा। साथ ही, भारत में प्रति व्यक्ति आय भी बढ़कर उच्च मध्यम आय समूह की श्रेणी की हो जाएगी। भारत के सकल घरेलू उत्पाद का आकार भी वर्तमान के 3.92 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 7 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो जाएगा। हालांकि एसएंडपी ने भारत में आर्थिक विकास दर के 6.7 प्रतिशत प्रतिवर्ष बढ़ने का अनुमान लगाया है जबकि वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत की आर्थिक विकास दर के 7.3 प्रतिशत के अनुमान के विरुद्द 8.2 प्रतिशत की रही है। भारत में अब सरकारी क्षेत्र के साथ ही निजी क्षेत्र भी पूंजीगत खर्चों को बढ़ाने पर ध्यान देता हुआ दिखाई दे रहा है, इससे आगे आने वाले समय में केंद्र सरकार पर पूंजीगत खर्चों में वृद्धि करने सम्बंधी दबाव कम होगा और केंद्र सरकार का बजटीय घाटा और अधिक तेजी से कम होगा, जिससे अंततः विदेशी निवेशक भारत में अपना निवेश बढ़ाने के लिए आकर्षित होंगे।

इसी प्रकार, विश्व बैंक एवं अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी वर्ष 2024, 2025 एवं 2026 में भारत के आर्थिक विकास सम्बंधी अपने अनुमानों के बढ़ाया है। विश्व बैंक का तो यह भी कहना है कि भारत ने केलेंडर वर्ष 2023 में विश्व के वार्धिक आर्थिक विकास में 16 प्रतिशत का योगदान दिया है और इस प्रकार भारत अब विश्व में आर्थिक विकास के इंजिन के रूप में कार्य करता हुआ दिखाई दे रहा है। भारत ने वर्ष 2023 में 7.2 प्रतिशत की आर्थिक विकास दर हासिल की थी, जो विश्व की अन्य उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं द्वारा इसी अवधि में हासिल की गई विकास दर से दुगुनी थी। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत की आर्थिक विकास दर के वर्ष 2024 के अपने पूर्व अनुमान 6.7 प्रतिशत की विकास दर को बढ़ा कर 7 प्रतिशत कर दिया है।

ओईसीडी देशों के समूह ने भी वर्ष 2024 एवं 2025 में वैश्विक स्तर पर आर्थिक प्रगति के अनुमान जारी किए हैं। इन अनुमानों के अनुसार, वैश्विक स्तर पर वर्ष 2024 एवं 2025 में सकल घरेलू उत्पाद में 3.2 प्रतिशत की वृद्धि हासिल की जा सकेगी। वहीं भारत की आर्थिक विकास दर वर्ष 2024 के 6.7 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2025 में 6.8 प्रतिशत रहने की सम्भावना व्यक्त की गई है। चीन की आर्थिक विकास दर वर्ष 2024 में 4.9 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2025 में 4.5 रहने की सम्भावना है। इसी प्रकार रूस एवं अमेरिका की आर्थिक विकास दर भी वर्ष 2024 में क्रमशः 3.7 प्रतिशत एवं 2.6 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2025 में क्रमशः 1.1 प्रतिशत एवं 1.6 प्रतिशत रहने की सम्भावना व्यक्त की गई है। कुल मिलाकर आज विश्व के लगभग समस्त वित्तीय एवं निवेश संस्थान आगे आने वाले वर्षों में भारत की आर्थिक विकास दर के बढ़ने के अनुमान लगा रहे हैं।

वैश्विक स्तर पर वित्तीय संस्थानों द्वारा भारत के आर्थिक विकास दर के सम्बंध में लगाए जा रहे अनुमानों के अनुसार यदि भारत आगे आने वाले वर्षों में प्रतिवर्ष 6.7 प्रतिशत की आर्थिक विकास दर हासिल करता है तो भारत वर्ष 2031 तक विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। इसके ठीक विपरीत भारत ने वित्तीय वर्ष 2023-24 में 8.2 प्रतिशत की आर्थिक विकास दर हासिल की थी एवं भारतीय रिजर्व बैंक के अनुमान के अनुसार भारत वित्तीय वर्ष 2024-25 में 7 प्रतिशत से अधिक की आर्थिक विकास दर हासिल करेगा, इस प्रकार तो भारत वर्ष 2031 के पूर्व ही विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। दूसरे, विश्व में भारत से आगे जापान एवं जर्मनी की अर्थव्यवस्थाएं हैं, आज इन दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं में कई प्रकार की समस्याएं दिखाई दे रही हैं जिनके चलते इन देशों की आर्थिक विकास दर आगे आने वाले कुछ वर्षों में शून्य रहने की सम्भावना दिखाई दे रही है। इस प्रकार, बहुत सम्भव है कि भारत मार्च 2025 तक जापान की अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़ देगा एवं मार्च 2026 अथवा मार्च 2027 तक जर्मनी की अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़ देगा और भारत को विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिए वर्ष 2031 तक इंतजार ही नहीं करना पड़ेगा।

विश्व बैंक द्वारा जारी वैश्विक आर्थिक सम्भावना रिपोर्ट 2024 ने भी वित्तीय वर्ष 2025 में भारत को विश्व में सबसे तेज गति से आगे बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था बने रहने के संकेत दिए हैं। पिछले तीन वर्षों में पहली बार वैश्विक अर्थव्यवस्था वर्ष 2024 में स्थिर होने के संकेत दे रही है। वैश्विक स्तर पर सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर के वर्ष 2024-25 में 2.6 प्रतिशत एवं वर्ष 2025-26 में 2.7 प्रतिशत रहने की सम्भावना विश्व बैंक द्वारा की गई है। इसी प्रकार, मुद्रा स्फीति में भी धीरे धीरे कमी आने के संकेत मिल रहे हैं एवं यह वैश्विक स्तर पर औसतन 3.5 प्रतिशत रहने की सम्भावना है। मुद्रास्फीति उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति को कम करती है एवं उनके व्यय करने की क्षमता को भी हत्तोत्साहित करती है। कई देशों को मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करने के लिए ब्याज दरों को बढ़ाना पड़ता है। उच्च ब्याज दरें मुद्रास्फीति को नियंत्रित तो करती हैं परंतु आर्थिक प्रगति को धीमा भी कर देती है जिससे रोजगार के अवसरों में कमी भी दृष्टिगोचर होती है।

उक्त वर्णित वैश्विक आर्थिक सम्भावना रिपोर्ट 2024 के अनुसार दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत ने क्षेत्रीय विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। औद्योगिक एवं सेवा क्षेत्रों के योगदान से वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत ने 8.2 प्रतिशत की अतुलनीय आर्थिक विकास दर हासिल की है, यह आर्थिक विकास दर देश में मानसून व्यवधानों के कारण कृषि क्षेत्र के उत्पादन वृद्धि में आई कमी के बावजूद हासिल की गई है।  साथ ही, भारत में व्यापक कर आधार से राजस्व में वृद्धि के चलते सकल घरेलू उत्पाद के सापेक्ष राजकोषीय घाटे में कमी हासिल की जा सकी है। विशेष रूप से भारत में व्यापार घाटा भी कम होता दिखाई दे रहा है, जिससे दक्षिण एशियाई क्षेत्र में समग्र आर्थिक स्थिरता लाने में योगदान मिला है।

जलवायु परिवर्तन के कारण भी विश्व के कई देशों में बाढ़, सूखा एवं तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं की बारंबारता और प्रबलता बढ़ती दिखाई दे रही है। इस तरह की आपदाएं बुनियादी ढांचे, निवास स्थानों एवं व्यवसाओं को व्यापक क्षति पहुंचा रही हैं। साथ ही, यह कृषि उत्पादन को भी बाधित कर रही है, जिससे खाद्यान के उत्पादन में कमी एवं इनकी कीमतों में वृद्धि होती दिखाई दे रही है। इससे सरकारी वित्त व्यवस्था पर भी अतिरिक्त भार पड़ रहा है।

विश्व बैंक की आर्थिक सम्भावना रिपोर्ट 2024 ने वैश्विक अर्थव्यवस्था के बारे में तार्किक आशावादी दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। वर्ष 2024 में वैश्विक अर्थव्यवस्था में स्थिरता के संकेत जरूर दिए हैं परंतु कोविड महामारी से पहले के विकास के स्तरों की तुलना में वैश्विक स्तर पर विकास अभी भी धीमा बना हुआ है। वैश्विक स्तर पर मौजूदा चुनौतियों से निपटने के लिए सभी देशों को मिलकर प्रभावी उपाय करने होंगे। यहां भारत की “वसुधैव क़ुटुम्बकम” एवं “सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय” जैसी भावनाओं के साथ, वैश्विक स्तर पर आर्थिक विकास के लिए, यदि सभी देश मिलकर आगे बढ़ते हैं तो भारत के साथ साथ पूरे विश्व में भी खुशहाली लाई जा सकती है।

प्रहलाद सबनानी

सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,

भारतीय स्टेट बैंक

के-8, चेतकपुरी कालोनी,

झांसी रोड, लश्कर,

ग्वालियर – 474 009

मोबाइल क्रमांक – 9987949940

ई-मेल – prahlad.sabnani@gmail.com

छोटे पंख : बड़ी बातें

कहावतें मानव अनुभवों की वह धरोहर और साक्ष्य हैं, जो सदियों से चली आ रही हैं। यदि मानव जाति के सरल, सीधे और समय की कसौटी पर खरे उतरे ज्ञान को देखना चाहते हैं, तो कहावतों से बेहतर उदाहरण कोई नहीं है।यद्यपि  कहावतें मुख्य रूप से सामूहिक अनुभवों से उत्पन्न होती हैं, पर कभी-कभी वे विशेष घटनाओं या कहानियों से भी जन्म लेती हैं।

यहाँ मैं एक कश्मीरी कहावत साझा कर रहा हूँ: “काव गाव पाव ता कावपूत गाव डोड पाव”। इसका अर्थ है: “कौआ एक चौथाई का लेकिन उसका बच्चा (या पोता) सवा चौथाई का।”

इस कहावत के पीछे एक दिलचस्प कहानी छिपी है:

एक बार, एक बूढ़ा कौआ और उसका पोता सड़क के किनारे एक मरे हुए जानवर पर ठूँगे मार रहे थे। अचानक, वहाँ से एक आदमी गुज़रा। उसे देखकर, छोटा कौआ तुरंत उड़कर पास के पेड़ पर जा बैठा। लेकिन बूढ़ा कौआ बिना किसी चिंता के बैठा रहा और खाने में मग्न रहा। जब आदमी चला गया, तो युवा कौआ वापस सड़क पर आया और अपने दादा से पूछा, “दादा, जब आपने उस आदमी को देखा, तो आप उड़कर क्यों नहीं भागे? अगर उसने आप पर पत्थर फेंक दिया होता, तो ?”

बूढ़ा कौआ अपने पोते की मासूमियत पर हंसा और बोला, “मेरे बच्चे, तुम अभी बहुत भोले हो। हमें तभी उड़ना चाहिए जब हम देखें कि आदमी पत्थर उठाने वाला है या उसने पहले ही एक उठा लिया है। पहले से भागने का कोई मतलब नहीं है।”
पोता तुरंत बोला, “दादा, लेकिन अगर आदमी ने पहले से ही अपने पीछे पत्थर छिपा लिया होता, तो ?”

पोते के इस तीखे उत्तर ने बूढ़े कौए को निरुत्तर कर दिया। उसके पास कोई जवाब नहीं था और वह शर्मिंदा होकर वहां से उड़ गया, यह स्वीकार करते हुए कि उसके पोते की बात में गहरी बुद्धिमत्ता थी। इस कहावत के पीछे संदेश यह है कि कभी-कभी छोटे बच्चे, अपनी कम उम्र के बावजूद, इतनी बुद्धिमानी और समझदारी दिखाते हैं कि बड़े लोग भी उनके सामने निरुत्तर हो जाते हैं।

यह कहानी, जो मेरे दादा ने मुझे मेरे बचपन में सुनाई थी, कई महत्वपूर्ण उपदेशों  की याद दिलाती है। सबसे पहले, यह हमें हर स्थिति में सतर्क और सावधान रहने का महत्व बताती है, क्योंकि चीजें हमेशा वैसी नहीं होतीं, जैसी दिखती हैं। बूढ़ा कौआ अपने अनुभव पर निर्भर था और उसने अनुमान लगाया कि कब रुकना है और कब भागना है। लेकिन उसके पोते की यह समझ कि खतरे अदृश्य भी हो सकते हैं, एक गहरी दृष्टि थी, जो यह दर्शाती है कि ख़तरे कभी भी अप्रत्याशित हो सकते हैं। यह कहानी पीढ़ियों के बीच सोचने और दृष्टिकोण के अंतर को भी दर्शाती है। जहां बड़े लोग अनुभव पर भरोसा करते हैं, वहीं कभी-कभी युवा पीढ़ी, बिना किसी पूर्वाग्रह के, नई दृष्टिकोण और गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकती है। युवा कौए का प्रश्न दूरदर्शिता को दर्शाता है, यह बताता है कि कभी-कभी सावधानी उस समय भी बरतनी चाहिए जब कोई तात्कालिक ख़तरा न दिखे।

कहावत का सार यह है कि बुद्धिमत्ता हमेशा उम्र पर निर्भर नहीं होती। कभी-कभी युवा मन, जो परंपरा के बंधनों से मुक्त होता है, उन जटिलताओं को पकड़ लेता है और उन ख़तरों को भांप लेता है जिन्हें अनुभवी लोग भी नजरअंदाज कर सकते हैं। यह कहानी यह भी संकेत देती है कि बुद्धिमत्ता पीढ़ियों के बीच विकसित होती रहती है, जहां अनुभव और युवाओं की दृष्टि एक-दूसरे का पूरक हो सकते हैं।

सारांशतः “काव गाव पाव ता कावपूत गाव डोड पाव” कहावत यह सिखाती है कि बुद्धिमत्ता हमेशा उम्र के साथ नहीं आती, और कभी-कभी युवा भी बड़ों को एक मूल्यवान सबक सिखा सकते हैं। जीवन की जटिलताओं को से जूझते हुए  हमें सभी स्रोतों से सीखने के लिए तैयार रहना चाहिए, चाहे वह उम्र हो या अनुभव, यह स्वीकार करते हुए कि बुद्धिमत्ता किसी भी अप्रत्याशित जगह से निकल सकती है।

DR.S.K.RAINA
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भारतीय सेना का अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन- हिंद-प्रशांत क्षेत्रीय संवाद 3 से 5 अक्टूबर तक दिल्ली में

भारतीय नौसेना का इस वर्ष का वार्षिक शीर्ष-स्तरीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन- हिंद-प्रशांत क्षेत्रीय संवाद (आईपीआरडी) 03, 04 और 05 अक्टूबर 2024 को नई दिल्ली में आयोजित किया जाएगा। यह हाल ही में संपन्न गोवा समुद्री संगोष्ठी 2024 के बाद हो रहा है, जिसे भारतीय नौसेना ने 24 और 25 सितंबर 2024 को गोवा में नौसेना युद्ध कॉलेज में आयोजित किया था।

वैचारिक स्थिति के संदर्भ में  जहां गोवा समुद्री संगोष्ठी भारतीय महासागर क्षेत्र में नौसेनाओं और समुद्री एजेंसियों के बीच चर्चा के लिए एक मंच प्रदान करके परिचालन स्तर पर भारतीय नौसेना की सहकारी भागीदारी को प्रदर्शित करना चाहती है, वहीं आईपीआरडी रणनीतिक स्तर पर भारतीय नौसेना की अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी की प्रमुख अभिव्यक्ति है और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ‘समग्र’ समुद्री सुरक्षा मुद्दों को संभालती है। राष्ट्रीय समुद्री फाउंडेशन (एनएमएफ) भारतीय नौसेना का ज्ञान भागीदार और आईपीआरडी के प्रत्येक संस्करण का मुख्य आयोजक है।

आईपीआरडी के पहले दो संस्करण क्रमशः 2018 और 2019 में नई दिल्ली में आयोजित किए गए थे। कोविड-19 के चलते आईपीआरडी 2020 आयोजित नहीं किया गया था। इसका तीसरा संस्करण 2021 में वर्चुअल मोड में आयोजित किया गया था। वर्ष 2022 से आईपीआरडी के ये संस्करण भौतिक रूप में आयोजित किए जा रहे हैं और विशेष रूप से हिंद-प्रशांत महासागर पहल (आईपीओआई) के सात स्तंभों से परस्पर जुड़े हुए वेब पर केंद्रित हैं। आईपीआरडी के प्रत्येक संस्करण में आईपीओआई द्वारा पहचाने गए सात घटक- लाइन्स-ऑफ-थ्रस्ट पर क्रमिक रूप से चर्चा करने का प्रयास किया जाता है  ताकि सागर (एसएजीएआर) को “द्वितीय-क्रम-विशिष्टता” प्रदान की जा सके। उसी के अनुरूप आईपीआरडी-2022 का विषय “हिंद-प्रशांत महासागर पहल का संचालन” था जबकि 2023 संस्करण में “हिंद-प्रशांत समुद्री व्यापार और कनेक्टिविटी पर भू-राजनीतिक प्रभाव” पर चर्चा की गई थी।

“हिंद-प्रशांत क्षेत्र में संसाधन-भू-राजनीति और सुरक्षा” पर ध्यान केंद्रित करते हुए आईपीआरडी (आईपीआरडी-2024) का 2024 संस्करण आईपीओआई वेब के दो महत्वपूर्ण स्तंभों अर्थात “समुद्री संसाधन” और “संसाधन साझाकरण” के कई आयामों का पता लगाएगा और उन पर विस्तारपूर्वक चर्चा करेगा। इस वर्ष का सम्मेलन इस बात पर ध्यान केंद्रित करेगा कि किस तरह से पारंपरिक और नए पहचाने गए समुद्री संसाधन समकालीन भू-राजनीति को संचालित कर रहे हैं और निकट भविष्य में इसमें क्या होने की संभावना है। इसमें मछली के घटते भण्डारण शामिल हैं – साथ ही अवैध, अप्रतिबंधित और अनियमित रूप से (आईयूयू) मछली पकड़ने की गतिविधियों में वृद्धि भी है, विशेष रूप से राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे वाले समुद्री क्षेत्रों में। संसाधन-भू-राजनीति की एक और अभिव्यक्ति कोबाल्ट, लिथियम, निकल और अन्य मुश्किल से मिलने वाले खनिजों के लिए भू-राजनीतिक दौड़ है, साथ ही टेल्यूरियम और नियोडिमियम जैसे दुर्लभ पृथ्वी तत्व (आरईई) भी हैं जिनकी आवश्यकता लाखों बैटरी, सौर पैनल, पवन टर्बाइन और अन्य ऐसे नवीकरणीय-ऊर्जा उपकरणों के लिए होती है जो जीवाश्म-ईंधन से ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों में सफलतापूर्वक रूपांतरण के लिए आवश्यक हैं। इसके अलावा, हाइड्रोकार्बन जैसे अपतटीय ऊर्जा संसाधन, अपने भू-राजनीतिक महत्व को बनाए रखने की संभावना रखते हैं, वहीं अधिक अपरंपरागत वाले, जैसे गैस हाइड्रेट्स और समुद्री नवीकरणीय ऊर्जा संसाधन, समुद्र से प्राप्त हाइड्रोजन, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भविष्य की भू-आर्थिक रणनीतियों को संचालित करने की संभावना रखते हैं।

आईपीआरडी-2024, वैश्विक रूप से प्रसिद्ध विषय-वस्तुओं के विशेषज्ञों और विशिष्ट वक्ताओं के माध्यम से  भारत-प्रशांत क्षेत्र में संसाधन-भू-राजनीति के व्यापक रुझानों की पहचान करने और नीति-विकल्पों को प्रस्तुत करने की दिशा में प्रयास करेगा। तीन दिनों तक चलने वाले इस कार्यक्रम में यह भी पता लगाया जाएगा कि किस तरह से सहयोग, सहभागिता और सौहार्द, संसाधन-भू-राजनीति के प्रतिमान के भीतर वैकल्पिक मार्ग प्रदान कर सकते हैं। इस बड़े सम्मेलन का एक विशेष आकर्षण भारत के माननीय रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह का स्मारक संबोधन होगा। आईपीआरडी-2024 में 20 से अधिक देशों से आए दिग्गजों के एक समूह के अलावा विशेष रूप से प्रतिष्ठित वक्ताओं द्वारा “विशेष संबोधनों” की एक श्रृंखला भी शामिल होगी, जिनसे सम्मेलन के विषय पर आकर्षक क्षेत्रीय दृष्टिकोण रखे जाने की उम्मीद है। हमारे छात्र समुदाय, अनुसंधान विद्वानों, प्रतिष्ठित नागरिकों, शिक्षाविदों और चिकित्सकों, राजनयिकों के सदस्यों और भारत और विदेश के थिंक-टैंकों की सक्रिय भागीदारी इस आयोजन को विशेष उत्साह प्रदान करेगी।

पुस्तकालय प्रभारी डॉ. शशि जैन सेवा निवृत

कोटा। राजकीय सार्वजनिक मंडल पुस्तकालय कोटा की प्रभारी  डॉ. शशि जैन को सोमवार 30 सितंबर 2024 को सांय सेवा निवृत होने पर स्टाफ और साहित्यकारों द्वारा भावभीनी विदाई दी गई। उन्हें पुस्तकालय संघ द्वारा लाइफ टाइम अचीवमेंट सम्मान से सम्मानित किया गया। स्टाफ की ओर से भी अभिनंदन पत्र और स्मृति चिन्ह प्रदान कर 21 किलों के पुस्पा हार से सम्मानित किया गया। संभागीय पुस्तकालय अधीक्षक डॉ . दीपक कुमार श्रीवास्तव, साहित्यकार जितेंद्र निर्मोही, रामेश्वर शर्मा ‘ रामू भईया ‘, डॉ.कृष्णा कुमारी, विजय जोशी, डॉ. प्रभात कुमार सिंघल, महेश पंचोली आदि ने अपने विचार व्यक्त कर शशि जैन के कार्यों और सेवाओं की सराहना की गई।
वक्ताओं ने कहां डॉ.शशि जैन अथक परिश्रमी,सबको को साथ ले कर चलने वाली, अपने अधिकारी और सहयोगियों की हितेषी, सब का सहयोग करने वाली रही हैं। उन्होंने
पुस्तकालय की  प्रभारी के रूप में सदैव कर्व्यनिष्ठा से कार्य कर सब का दिल जीता। यहां होने वाले कार्यक्रमों में पूर्ण सक्रियता से अपनी भागीदारी निभाई। संयोजन स्नेह लता शर्मा ने किया।

देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में डाक विभाग की अहम भूमिका-पोस्टमास्टर जनरल कृष्ण कुमार यादव

अहमदाबाद। डाक विभाग देश के सबसे पुराने विभागों में से एक है जो कि देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 1 अक्टूबर, 1854 को स्थापित भारतीय डाक विभाग 170 वर्षों के अपने सफर में तमाम ऐतिहासिक और सामाजिक-आर्थिक घटनाक्रम का साक्षी रहा है। उक्त उद्गार भारतीय डाक विभाग के स्थापना दिवस पर अहमदाबाद जीपीओ में आयोजित समारोह में बतौर मुख्य अतिथि उत्तर गुजरात परिक्षेत्र, अहमदाबाद परिक्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने व्यक्त किये।

इस अवसर पर आयोजित डाक चौपाल के माध्यम से जहाँ लोगों को डाक सेवाओं के बारे में जानकारी दी गई, वहीं पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने विधायक दरियापुर श्री कौशिक भाई जैन, डाक निदेशक सुश्री मीता के शाह, चीफ पोस्टमास्टर श्री गोविन्द शर्मा, एजीएम आईपीपीबी डॉ. राजीव अवस्थी संग  बचत बैंक, सुकन्या समृद्धि योजना, महिला सम्मान बचत पत्र, डाक जीवन बीमा, इण्डिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक की पासबुक, बांड व कार्ड प्रदान किये। जीपीओ में रक्तदान कैंप के माध्यम से ब्लड डोनेशन को भी प्रोत्साहित किया गया। केक काटकर ‘हैप्पी बर्थडे टू इण्डिया पोस्ट’ भी गाया गया।

पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि डाक विभाग अब सिर्फ पत्र, पार्सल और मनीऑर्डर तक सीमित नहीं रहा, बल्कि एक ही छत के नीचे तमाम सेवाओं की उपलब्धता के साथ-साथ वित्तीय समावेशन, डिजिटल इंडिया और अंत्योदय में अहम भूमिका निभा रहा है। बचत बैंक, डाक जीवन बीमा, इण्डिया पोस्ट पेमेन्ट्स बैंक, डाकघर पासपोर्ट सेवा केन्द्र, आधार नामांकन एवं अद्यतनीकरण, कॉमन सर्विस सेंटर, डाकघर निर्यात केंद्र जैसे तमाम जनोन्मुखी कार्य डाकघरों में हो रहे हैं।  ‘डाकिया डाक लाया’ से ‘डाकिया बैंक लाया’ तक के सफर में डाक सेवाओं ने तमाम नए आयाम रचे हैं। डाकघर निर्यात केंद्रों द्वारा ओडीओपी, जीआई, एमएसएमई के उत्पाद विदेशों में पहुँचकर ‘वोकल फॉर लोकल’ एवं ‘आत्मनिर्भर भारत’ की संकल्पना को मजबूत कर रहे हैं।

विधायक दरियापुर श्री कौशिक भाई जैन ने कहा कि, डाकघर हम सभी की यादों से जुड़े हुए हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में डाक सेवाओं में तमाम बदलाव हुए हैं। आज डाकघर सुदूर क्षेत्रों तक में बैंक की भूमिका भी निभा रहे हैं।

निदेशक डाक सेवाएं सुश्री मीता के. शाह ने स्थानीय से लेकर वैश्विक बाजारों तक पहुंचने में डाक नेटवर्क की सुगमता और दक्षता के बारे में बताया। ई-कॉमर्स उत्पादों हेतु कैश ऑन डिलीवरी की सुविधा दी जा रही है।

इस अवसर पर मेनेजर एम.एम.एस श्री धर्म वीर सिंह, एजीएम आईपीपीबी डॉ. राजीव अवस्थी, मुख्य प्रबंधक श्री कपिल मंत्री, डिप्टी चीफ पोस्टमास्टर श्री अल्पेश शाह, सहायक निदेशक सुश्री एम ए पटेल, श्री रितुल गांधी,आईपीपीबी वरिष्ठ प्रबंधक श्री स्नेहल मेशराम सहित तमाम अधिकारी-कर्मचारी उपस्थित रहे।

काउंटरपॉईंट सर्वेः ऑप्प इंडिया 62% ग्राहक ‘अत्यधिक संतुष्ट’ रहे

नई दिल्ली, दिल्ली, भारत

ऑप्प इंडिया  रिपेयर की क्वालिटी, लागत, समस्या के तुरंत समाधान, पारदर्शिता, कई भाषाओं में बातचीत, और स्टाफ की विशेषज्ञता के मामले में अग्रणी रहा।

हर 10 में से 9 ग्राहकों ने फेस-टू-फेस फोन रिपेयर को महत्वपूर्ण बताया; OPPO India इस मामले में अग्रणी है क्योंकि 78 % ग्राहकों के फोन उनके सामने रिपेयर किए गए।

OPPO India के ग्राहक इसे ‘विश्वसनीय’ और ‘पारदर्शी’ मानते हैं।

OPPO India अतुलनीय सेवा प्रदान करने की अपनी प्रतिबद्धता के साथ आफ्टर-सेल्स और कस्टमर सर्विस में पहले स्थान पर आया है। इसके 62% ग्राहकों को उनकी इन-स्टोर आफ्टर-सेल्स सर्विस बहुत ‘संतोषजनक’ महसूस हुई। अगस्त, 2024 में काउंटरपॉईंट रिसर्च में भारत के सर्वोच्च पाँच मोबाईल ब्रांड्स के 2000 से ज्यादा ग्राहकों का सर्वे करके उनके आफ्टर-सेल्स सर्विस अनुभव के बारे में जाना गया। इस सर्वे में अपने नए जनरेशन के सेंटर्स द्वारा सर्विस अनुभव में सुधार लाने के लिए OPPO India का ग्राहक-केंद्रित दृष्टिकोण सामने आया।

यह सर्वे OPPO India , realme, Samsung, vivo, और Xiaomi के ग्राहकों के बीच 13 टियर 1 और टियर 2 शहरों में किया गया था। इस सर्वे में रिपेयर क्वालिटी, लागत, समस्या समाधान की गति, पारदर्शिता, स्टाफ की विशेषज्ञता, और कई भाषाओं में संचार के मामले में OPPO India अपने ‘बहुत संतुष्ट’ ग्राहकों के साथ अग्रणी रहा।

आफ्टर-सेल्स अनुभवः OPPO India के 62% ग्राहक आफ्टर-सेल्स सर्विस अनुभव के मामले में ‘बहुत संतुष्ट’ थे, जिसके बाद क्रमशः 58% और 57% ग्राहकों के साथ वीवो और सैमसंग रहे।

पारदर्शिताः OPPO India पारदर्शिता के मामले में सबसे आगे रहा, जिसके 78% स्मार्टफोन ग्राहकों के सामने रिपेयर किए गए, जिसके बाद 77% के साथ शाओमी का स्थान रहा।

समस्या समाधान की गतिः OPPO India के 35% ग्राहकों के स्मार्टफोन एक घंटे के अंदर ठीक करके दिए गए, जिसके बाद 34% के साथ सैमसंग रहा।

रिपेयर की क्वालिटीः OPPO India के 57% ग्राहक रिपेयर की क्वालिटी से बहुत संतुष्ट थे, जिसके बाद 52% के साथ वीवो का स्थान रहा।

रिपेयरिंग की लागतः OPPO India के 51% ग्राहक अपने स्मार्टफोन को रिपेयर कराने की लागत से संतुष्ट थे, जिसके बाद 45% ग्राहकों के साथ क्रमशः वीवो और शाओमी का स्थान रहा।

कई भाषाओं में सपोर्टः OPPO India के 48% ग्राहकों ने सर्विस रिप्रेज़ेंटेटिव्स के साथ इंग्लिश और हिंदी के मुकाबले दूसरी भाषा में बात की, जो सभी ब्रांड्स में सबसे ज्यादा था।

स्टाफ का ज्ञानः OPPO India के 56 % ग्राहक समस्या को लेकर स्टाफ के ज्ञान से काफी संतुष्ट थे, जिसके बाद 49% ग्राहकों के साथ क्रमशः सैमसंग और वीवो का स्थान रहा।

विश्वसनीयताः OPPO India के ग्राहक इसे ‘विश्वसनीय’ और ‘पारदर्शी’ मानते हैं।

सर्विस सेंटर का स्थानः OPPO India के ग्राहक (51 प्रतिशत) सबसे ज्यादा संख्या में अपने सर्विस सेंटर के स्थान से बहुत संतुष्ट हैं, जिसके बाद 46% के साथ वीवो का स्थान आता है।

OPPO India में Head – Product Communication, Savio D Souza ने कहा, ‘‘OPPO India में हमने सर्विस सेंटर 3.0 और OPPO सेल्फ-हेल्प असिस्टैंट जैसे उपायों द्वारा अपने ग्राहकों को सेवा प्रदान करने के लिए अपने आफ्टर-सेल्स सर्विस मॉडल में परिवर्तन लाया है।’’ उन्होंने आगे कहा, ‘‘आफ्टर-सेल्स सर्विस के लिए ग्राहक संतुष्टि में भारत के नं. 1 ब्रांड बनने के गौरव से अपने ग्राहकों को तुरंत, पारदर्शी, भरोसेमंद और किफायती सेवा प्रदान करने की हमारी प्रतिबद्धता प्रदर्शित होती है।’’

OPPO India के पास देश के 500 से ज्यादा शहरों में 25,000 से ज्यादा पिनकोड्स पर 560 से अधिक एक्सक्लुसिव सर्विस सेंटर्स का आफ्टर-सेल्स सपोर्ट नेटवर्क है। इसके साथ भारत सरकार के ‘राईट टू रिपेयर’ फ्रेमवर्क के अंतर्गत एक डिजिटल सेल्फ हैल्प असिस्टैंट ग्राहकों की सेवा के लिए सदैव तत्पर रहता है।

OPPO India ने OPPO सेल्फ-हैल्प असिस्टैंट का लॉन्च मार्च, 2024 में किया था। इस डिजिटल सेवा की मदद से ग्राहक सर्विस सेंटर जाए बिना ही अपने स्मार्टफोन की समस्या हल कर सकते हैं। यह अपनी तरह का एक अलग अभियान है, जिसके अंतर्गत पिछले पाँच सालों में लॉन्च हुई A, F, K, Reno, और Find सीरीज़ के लिए सेवा मिलती है।

OPPO India ने 2022 में अपने नई जनरेशन 3.0 सर्विस सेंटर पेश किए हैं, जो पारदर्शी आफ्टर-सेल्स सर्विस अनुभव प्रदान करने पर केंद्रित हैं। इन सर्विस सेंटर्स पर आने वाले ग्राहकों को उत्पादों का प्रदर्शन और संपूर्ण पारदर्शिता के लिए फेस-टू-फेस रिपेयर की सुविधा मिलती है।

Neha Bisht

स्वामीनारायण छपिया की कुछ अन्य बाल लीलाएं

स्वामीनारायण संप्रदाय के अनुयायी कृष्णावतार को सर्वोच्च भगवान मानते हैं। ये वैष्णव संप्रदाय के अनुयायी हैं। ये समाज के सभी वर्गों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखते और अपने निजी सेवक के रूप में नियुक्त करते हैं तथा साथ साथ भोजन करते हैं।

घनश्याम स्वामी नारायण अपना घर त्यागकर, पूरे भारत में जंगलों और तीर्थयात्राओं में लगभग 1200 किमी की पैदल यात्रा की और 28 अक्टूबर 1800 ई को कार्तक रामानंद स्वामी से पीपलाना मुकाम प्राप्त किया।श्री स्वामीनारायण ने लड़कियों को दूध देने की प्रथा के खिलाफ लाल बत्ती उठाई और कई लोगों को समाज से इस प्रथा को खत्म करने के लिए एक आंदोलन शुरू करने के लिए राजी किया। उन्होंने सती प्रथा, पशु बलि, तांत्रिक अनुष्ठान, छुआछूत और व्यसनों का भी विरोध किया। धरती पर रहते हुए उन्होंने एकांतिक धर्म की स्थापना की, जो कई साल पहले नष्ट हो चुका था, और उन्होंने अधर्म का नाश किया।

उन्होंने 2000 से ज़्यादा साधुओं को दीक्षा दी, जिनमें से 500 को परमहंस के रूप में दीक्षा दी गई। वे इन साधुओं के माध्यम से पृथ्वी पर रहते हैं। वे भक्तों के लिए मंदिर बनवाए और मूर्तियां स्थापित कीं ताकि वे हमेशा भगवान की मूर्ति के दर्शन कर सकें। धर्म के प्रति श्रद्धाभाव जगाते हुए भगवान स्वामीनारायण ने संप्रदाय के संचालन के लिए अपने दोनो भतीजों को आचार्य बनाया, और अपना आध्यात्मिक ज्ञान गोपालानंद स्वामी तथा गुणतितानंद स्वामी को प्रदान करके उन्होंने 1जून 1830 के दिन अपने भौतिक देह का त्याग किया। आज भी उनके अनुयायी विश्व भर में फैले हैं। उनके कुछ अनुयायी मानते हैं कि वे कृष्ण के अवतार थे ।  उनकी और कृष्ण की छवियाँ और कहानियाँ संप्रदाय की पूजा पद्धति में एक दूसरे से मिलती-जुलती हैं। उनके जन्म की कहानी भागवत पुराण में कृष्ण के जन्म की कहानी के समान है।

उनके अधिकांश अनुयायी मानते हैं कि स्वामीनारायण नारायण या पुरुषोत्तम नारायण की पूर्ण अभिव्यक्ति हैं – सर्वोच्च सत्ता और अन्य अवतारों से श्रेष्ठ हैं। उनके जीवनीकार रेमंड विलियम्स के अनुसार, जब स्वामीनारायण की मृत्यु हुई, तब उनके अनुयायियों की संख्या 1.8 मिलियन थी। 2001 में, स्वामी नारायण केंद्र चार महाद्वीपों पर मौजूद थे, और मण्डली की संख्या पाँच मिलियन दर्ज की गई थी, जिसमें से अधिकांश गुजरात की मातृभूमि में थी। समाचार पत्र इंडियन एक्सप्रेस ने अनुमान लगाया कि 2007 में दुनिया भर में हिंदू धर्म के स्वामीनारायण संप्रदाय के सदस्यों की संख्या 20 मिलियन अर्थात  2 करोड़) से अधिक थी।

49 वर्ष की आयु तक भगवान स्वामी नारायण ने पृथ्वी पर अपना मिशन पूरा कर लिया और अपने दिव्य निवास पर लौट आए। 2 मिलियन से अधिक भक्तों ने उनकी दिव्यता का अनुभव किया और उनकी पवित्रता की प्रशंसा की। छह भव्य मंदिरों में उनकी आध्यात्मिकता स्थापित है और कई शास्त्रों में उनके ज्ञान का सार है।

 बाल प्रभु घनश्याम स्वामी नारायण अपने 49 साल के अल्प जीवन में हजारों से अधिक मानवीय और दैवी लीलाओं का संवरण किया है। हम केवल उनके बचपन के कुछ प्रमुख लीलाओं को,जो उनके जन्म भूमि छपिया और अयोध्या के आस पास घटित हुई हैं, को ही अपने लेखन में समलित करने का प्रयास कर रहे हैं।

1.आलसी पुजारी

धर्मदेव कई बार छप्पैया से अयोध्यापुरी में आकर रहते रहे । बालक घनश्याम ने अनेक अद्भुत लीलाएँ की हैं। अयोध्यापुरी का अर्थ है भगवान राम का जन्म स्थान। यहाँ राम-जन्म-भूमि का मंदिर मुख्य रहा है। बालक घनश्याम जब अयोध्यापुरी में रहते थे, तो प्रतिदिन इस मंदिर में दर्शन के लिए जाते थे। इसके आसपास और भी कई मंदिर थे। वहाँ कनक-भवन नाम का एक मंदिर है। जब कोई इस मंदिर में दर्शन करने जाता था, तो मंदिर का पुजारी उसे भगवान के चरणों का  [जिस मिश्री, दूध, दही, घी और शहद से भगवान को स्नान कराया जाता है] चरणामृत पिलाता था।

 उस मंदिर के पुजारी का नाम शीतलदास था। वे नाम से शीतल (ठंडे) थे, पर स्वभाव से गुस्सैल थे। इसके अलावा, वे बहुत आलसी भी थे। शीतल दास कभी भी ताज़ा पानी का उपयोग नहीं करते थे। एक बार मंदिर के पुजारी ने सभी को चरणामृत पिलाया। अब घन श्याम की चरणामृत लेने की बारी थी। घनश्याम ने भी उसे ग्रहण किया। यह भगवान का प्रसाद था, इसलिए घनश्याम ने उसे अपनी हथेली में लिया, लेकिन दूर जाकर फेंक दिया।

 मंदिर के पुजारी ने यह देखा। वह बहुत क्रोधित हुआ और बोला, “अरे बेटे, तुमने भगवान का चरणामृत क्यों फेंक दिया? क्या तुम्हें कोई समझ है?”

 घनश्याम ने पुजारी से ही पूछ लाया,”मैं तुमसे पूछता हूँ कि क्या तुम्हें कोई समझ है?क्या तुम जानते हो कि भगवान का चरणामृत कितना शुद्ध होना चाहिए? कृपया बर्तन देखो। यह कितना गंदा है! और इसका पानी! अशुद्ध और पिछले चार दिनों का! बर्तन खोलो और जाँच करो।

मंदिर के पुजारी ने बर्तन खोला और उसमें एक मरा हुआ तिलचट्टा देखा। मंदिर का पुजारी, जो थोड़ी देर पहले गुस्से में था,  अब अपनी गलतियों को खुले तौर पर सिद्ध होते देखकर शांत हो गया। “अब तुम सच्चे शीतलदास हो,” घनश्याम ने कहा।

घनश्याम के इस कहानी से सीख मिलती है कि भगवान की पूजा और सेवा में हमें पूरी तरह से साफ-सफाई का ध्यान रखना चाहिए। किसी भी प्रकार की अनियमितता नहीं की जानी चाहिए।

2. सन्यासी द्वारा जुआ खेलना

अयोध्या में हनुमानगढ़ी  एक प्रसिद्ध मंदिर है। युवा घनश्याम अक्सर वहाँ दर्शन के लिए जाते थे। वहाँ वे कथाएँ और भक्ति गीत सुनते थे। एक बार उन्होंने देखा कि एक कोने में चार सुगंधित द्रव्य लगाए शरीर वाले साधु जुआ खेल रहे थे। उनके शरीर पर केवल पतली लंगोटी के अलावा और कोई वस्त्र नहीं था, लेकिन पूरा शरीर कीमती सोने के आभूषणों से ढका हुआ था। उन्होंने इन आभूषणों को जुए में दांव पर लगा दिया था।

युवा घनश्याम ने यह देखा और दुखी हुए। उन्होंने उनसे कहा, “अरे भाई! तुम साधु होकर भी क्या कर रहे हो? जुआ खेलना बहुत बड़ा पाप है।” “हम एक महान गुरु के शिष्य हैं,” चारों साधुओं ने कहा, “आप हमें सलाह देने वाले कौन हैं?”

इसी बीच उन साधुओं के गुरु वहाँ आ पहुँचे। उन्होंने भी घनश्याम को डाँटा,

 “हम तपस्वी हैं। तुम गृहस्थ हो। गृहस्थ को कभी भी तपस्वियों को सलाह नहीं देनी चाहिए। बाहर निकलो।”

घनश्याम ने कहा, “क्या जुआ खेलना तपस्वी का गुण है? क्या यह तपस्वी का लक्षण है कि वह वस्त्र न पहनकर केवल दिखाने के लिए आभूषण पहने? क्या यह तपस्वी का लक्षण है कि वह दूसरों को भगवान की पूजा करने की सलाह दे और स्वयं सोना-चाँदी इकट्ठा करे? क्या काम, क्रोध,धन, लोभ, मोह और अहंकार ही तपस्वी के लक्षण हैं?”

गुरु और साधुओं के सिर झुक गए। कोई भी एक शब्द भी नहीं बोल सका। वहाँ एकत्रित लोगों ने कहा, “बच्चा- घनश्याम सच कहता है। वह उम्र में छोटा है, लेकिन ईश्वरत्व में सबसे बड़ा है।”इस कहानी से सीख मिलती है कि सन्यासी को सादगी जीवन यापन करना चाहिए। व्यसन से दूर ही रहना चाहिए।

3. पहलवानों की हार

वैराम, माधवराम, प्राग, सुखनंदन,बंसीधर, शिवनारायण, केसरीसंग, श्यामलाल, राधे चरण और कई अन्य लोग घनश्याम के मित्रमंडली के सदस्य थे। वे सभी नहाने के लिए तालाब पर जाते थे और पेड़ों पर खेलते थे। वे वहां आम, इमली, जामुन और अमरूद खाते थे। वे खूब मौज-मस्ती करते थे। वे कई अलग- अलग पेड़ों और शाखाओं पर चढ़कर उनके साथ खेलते थे जैसे कि वे घोड़े हों। वे पेड़ों को ऐसे मारते थे जैसे कि वे घोड़े हों।

वे अपने मुंह से घोड़ों की आवाज भी निकालते थे। यह उनके लिए एक शौक की तरह था। घनश्याम और उनके दोस्त माहिर पहलवान थे। वे नियमित रूप से अभ्यास करते थे और कुश्ती के नए-नए दांव-पेंच सीखते थे।

 एक दिन कुछ पहलवानों ने सोचा, ये बच्चे कुश्ती को क्या समझते हैं? प्रतिद्वदी

को हराकर अपना नाम लोकप्रिय बनाने में उन्हें क्या दिखता है? उन्होंने घनश्याम को चुनौती दी।

 उन्होंने कहा, “हम तुम्हारी परीक्षा लेते हैं, आओ यहाँ आओ।” चुनौती देखने के लिए पूरा गाँव इकट्ठा हो गया था। गाँव का राजा भी वहाँ पहुँच गया। एक पहलवान ने उसके पैर में लगभग 240 किलोग्राम (480 पाउंड) की लोहे की जंजीर डाल दी। जंजीर बांधने के बाद उसने कहा अब मुझे खींचो। कई लोगों ने जंजीर खींचकर उसे हिलाने की कोशिश की। सैकड़ों लोगों ने मिलकर कोशिश की, लेकिन वह हिला ही नहीं। तब बड़े गर्व के साथ उसने घनश्याम से कहा कोशिश करो।

यह सबने सोचा और आपस में कहा, “यह क्या है, कहां एक पहलवान और कहां एक छोटा बच्चा?”

इस बीच घनश्याम धीरे से आगे आया और उसने थोड़ा झुककर बाएं हाथ से जंजीर खींची। फिर उसने धीरे से धक्का दिया। लोहे की जंजीर ग्यारह टुकड़ों में टूट गई और पहलवान लोहे की जंजीर के साथ चार फीट दूर जा गिर पड़े।

 इस पहलवान के साथ दो पहलवान और भी थे। उनके पास भी वही लोहे की जंजीर थी। उन्होंने कहा, अब हम यह लोहे की जंजीर घनश्याम के पैर में डालकर उसे गिरा देंगे।

घनश्याम ने खुद जंजीर ली और अपने पैरों में डाल ली। फिर वह उनके बीच खड़ा हो गया और बोला, “अब जंजीर खींचो और मुझे हराने की कोशिश करो।”

दोनों पहलवानों ने अपनी जांघें पटक- पटक कर कहा, “हम इस बच्चे को लोहे की जंजीर समेत नदी में फेंक देंगे।”

दोनों ने लोहे की जंजीर को जोर से पकड़ कर खींचा, लेकिन वे घनश्याम को एक इंच भी हिला नहीं सके। दोनों ने बार-बार कोशिश की, लेकिन लोहे की जंजीर दो टुकड़ों में टूट गई।

जंजीर का एक टुकड़ा पहलवानों के हाथ में रह गया। दोनों पहलवान जंजीर समेत दस फुट दूर जा गिरे। वे एक पेड़ से टकराए और मिट्टी में गिर गए। सभी एकत्रित लोगों ने ताली बजाकर और जयकारे लगाकर अपनी खुशी जाहिर की। राजा ने भी अपनी खुशी जाहिर की।

इस कहानी से सीख मिलती है, ईश्वर से कभी प्रतिस्पर्धा मत करो। ईश्वर की क्षमता पर संदेह मत करो, और हमेशा ईश्वर की इच्छा के अनुसार ही व्यवहार करो।

4. अंधों पर कृपा

एक जगह एक तांत्रिक धन उगाहने के लिए तन्त्र मंत्र और फूक से लोगों को नेत्र ठीक कर रहा था। वह अक्सर कहता,

“एक फूंक मारकर आपको दृष्टि दूंगा।”

इस समूह में कुछ भिक्षुक भी थे।

भिक्षुक ने कहा,”हे भले आदमी, हम आपको पैसे कैसे दे सकते हैं? हमारे पास पैसे नहीं हैं। हम भीख मांगकर अपना गुजारा करते हैं। फिर भी हमें एक दिन में एक बार खाना मिलता है और चार बार भूखे रहते हैं। हम पैसे कहां से लाएँ?” भिक्षुक ने कहा।

तांत्रिक ने कहा,”तो फिर चले जाओ।”

घनश्याम ने यह देखा। उसे यह बहुत बुरा लगा। उसने उन अंधों को रोका जो निराश होकर जा रहे थे। उसने उनसे कहा, “हे भक्तों, निराश मत हो। भगवान दयालु हैं।”

अंधे ने कहा, “जब आप ऐसा कहते हैं, तो हमें लगता है कि भगवान सचमुच दयालु हैं। हम उनकी एक झलक पाने के लिए प्रतीक्षा कर रहे हैं।”

घनश्याम ने उनकी आँखों को अपने कोमल हाथ से सहलाया और कहा, “क्या आप कुछ देख सकते हैं?”

 अंधे ने खुशी से चिल्लाया, “हाँ, हम देख सकते हैं, हाँ, हम इसे टिमटिमाते हुए देख रहे हैं। हम युवा कन्हैया को देखते हैं। वह अपने पैरों को मोड़कर खड़ा है, और वह बांसुरी बजा रहा है। ओह, क्या अद्भुत बांसुरी बजा रहा है!”

“आज से आप हमेशा कन्हैया को देख सकेंगे और उसकी बांसुरी सुन सकेंगे।

मुझे बताओ, क्या आप कुछ और देखना चाहते हैं?” घनश्याम ने कहा।

  “नहीं,” अंधे ने कहा, “सब कुछ इसी में मिल गया है।”

 इस कहानी से सीख मिलती है कि भगवान में दृढ़ विश्वास (भरोसा) सभी परेशानियों का इलाज है।

5. जामुन के पेड़ पर गुलाब के सेव

एक बार घनश्याम अपने मित्रों वेणी और माधव के साथ जामुन के पेड़ पर गुलाब के सेब चखने गया था। ज्येष्ठ (जून) का महीना था। जामुन के पेड़ पर बहुत सारे गुलाब के सेब थे। सभी ने यथाशक्ति खा लिए। वे पेड़ से नीचे उतर आए, पर घनश्याम अभी भी पेड़ पर ही था।

इसी बीच पेड़ का चौकीदार आ गया। उसकी आवाज सुनकर अन्य लोग अपने घर भाग गए, पर घनश्याम अभी भी पेड़ पर ही था। चौकीदार क्रोधित हो गया। बोला, “अरे चोर, मेरे गुलाब के सेब क्यों खाए?”

 “मैं चोर नहीं हूँ,” घनश्याम ने कहा, “क्योंकि जंगल में उगने वाले फल सभी को खाने की स्वतंत्रता है!” यह कहकर वह पेड़ से नीचे कूद गया।

चौकीदार घनश्याम को पीटने के लिए उसके पीछे दौड़ा। घनश्याम ने बहुत ही तत्परता से चौकीदार का हाथ पकड़कर ऐसा झटका दिया कि चौकीदार का हाथ टूट गया और वह मुँह ऊपर करके जमीन पर गिर पड़ा। इससे पहले कि चौकीदार उठकर अपना धूल भरा शरीर साफ कर पाता, घनश्याम गायब हो गया।

घनश्याम की लीला जामुन के पेड़ के गुलाब की तरह मधुर है। यह पाठ बताता है कि सब कुछ भगवान का है और उन्हीं के लिए है। यदि हम विपरीत आचरण करेंगे तो भगवान नाराज होंगे। जामुन के पेड़ का मालिक बनने का प्रयास करने वाले चौकीदार ने घनश्याम को उसके फल खाने से मना कर दिया और उसे पीटा गया।

6. अंगूठी से मिठाई खरीदने की लीला

एक दिन बाल प्रभु की सुवाशिनी भाभी रसोई में खाना बना रही थीं। उन्होंने अपनी अंगूठी उतार कर पास की शेल्फ पर रख दी थी। घनश्याम बहुत भूखा महसूस करते हुए रसोई में गया और अपनी भाभी से कुछ खाने के लिए कहा।

भाभी ने कहा, “कृपया थोड़ी देर प्रतीक्षा करें, भोजन में अधिक समय नहीं लगेगा।”

 घनश्याम इंतजार नहीं कर सका उसने शेल्फ पर अंगूठी देखी और कुछ खाने के लिए इसे बदलने के बारे में सोचा। अपनी भाभी को बताए बिना उसने अंगूठी उठाई और घर से निकट मिठाई बनाने वालों की दुकान पर चला गया।

उसने मिठाई बनाने वाले से ‘मिठाई के बदले अंगूठी’ का सौदा किया। एक चालाक व्यक्ति होने के नाते, मिठाई बनाने वाले ने महंगी अंगूठी को देखा और सोचा, “यह बच्चा कितना खा सकता है”।

मिठाई बनाने वाला सहमत हो गया कि घनश्याम अंगूठी के बदले जितना चाहे खा सकता है।

घनश्याम खाने के लिए बैठ गया और मिठाई बनाने वाला मिठाई लेकर आया। घनश्याम ने पहली प्लेट बहुत जल्दी पूरी खा ली और मिठाई बनाने वाले से दूसरी प्लेट लाने को कहा। घनश्याम ने एक के बाद एक कई प्लेट खा लीं, जिससे मिठाई बनाने वाला दुकान से इधर-उधर भागने लगा।

मिठाई बनाने वाला यह देखकर हैरान था कि यह छोटा लड़का कितना कुछ खा सकता है। जल्द ही दुकान खाली हो गई, लेकिन घनश्याम अभी भी भूखा था और उसने मिठाई बनाने वाले से कुछ और बनाने को कहा।

घनश्याम मिठाई बनाने वाले को लालच का और अपने फायदे के लिए दूसरों का फायदा नहीं उठाने का महत्वपूर्ण सबक सिखाना चाहता था।

घनश्याम को जल्द ही एहसास हो गया कि अब और कोई मिठाई या बनाने की सामग्री नहीं बची है।

जैसे ही वह घर के अंदर गया, अंगूठी की खोज में बहुत व्यस्तता थी। “आप सब क्या ढूँढ रहे हैं?” उसने पूछा।

भाभी ने पूछा, “क्या तुमने वह अंगूठी देखी है जो मैंने इस शेल्फ पर रखी है?”

“नहीं” उसने उत्तर दिया, “मैंने नहीं देखी।” हालाँकि इच्छाराम ने धर्मदेव से कहा कि उसने घनश्याम को अंगूठी लेते हुए देखा था।

घनश्याम पकड़ा गया था। घनश्याम ने फिर यह बताना शुरू किया कि उसने अंगूठी क्यों ली? उसने कहा कि वह मिठाई बनाने वाले के पास थी। वे सब मिठाई बनाने वाले की दुकान पर उससे अंगूठी माँगने गए। मिठाई बनाने वाले ने उत्तर दिया “मैंने अंगूठी नहीं ली है; मैंने बदले में उसे मिठाई दी है।”

सभी ने घनश्याम की ओर देखा और कहा, “मैंने कोई मिठाई नहीं खाई।”मिठाई बनाने वाले ने घनश्याम को झूठा कहा, “देखो! मेरी दुकान खाली है।”

 जब वह मुड़ा तो उसने दुकान की ओर इशारा किया, उसने पाया कि अलमारियाँ स्वादिष्ट मिठाइयों से भरी हुई थीं। वह आश्चर्य से देखता रहा और उसने जो देखा उस पर विश्वास नहीं कर सका।

वह वास्तव में शर्मिंदा महसूस कर रहा था; उसने धर्मदेव और भक्तिमाता से माफ़ी मांगी और अंगूठी लौटा दी। वे मिठाई बनाने वाले को यह सोचते हुए छोड़कर घर लौट आए, ‘वह कोई साधारण बच्चा नहीं था।’

7.चेचक से भगवान भी प्रभावित

एक सामान्य बच्चे की तरह, घनश्याम महाराज को एक दिन तेज बुखार हो गया।  भक्तिमाता चिंतित हो गईं क्योंकि घनश्याम अपना खाना नहीं खा रहे थे।

एक छोटा सा गाँव होने के कारण, घनश्याम महाराज की बीमारी की खबर जल्द ही छप्पैया में फैल गई। यह सुनकर चंदमासी भक्तिमाता के घर दौड़ी और पाया कि घनश्याम महाराज चेचक से पीड़ित हैं। उसने घनश्याम महाराज को बिस्तर पर लिटा दिया और निर्देश दिया कि कोई भी बच्चे उनके पास न आएँ क्योंकि चेचक बच्चों में आसानी से फैलती है। लक्ष्मी मामी भी उनका हाल देखने आईं। उन्हें चेचक होने का पता चलने पर उन्होंने कहा कि घनश्याम महाराज को बीस दिनों तक स्नान नहीं करना चाहिए।

घनश्याम महाराज ऐसा नहीं कर सकते थे क्योंकि एक ब्राह्मण को प्रतिदिन स्नान करना चाहिए।

घनश्याम महाराज ने भक्तिमाता को आश्वासन दिया कि अब ठंडे पानी से नहाने से उनकी चेचक ठीक हो जाएगी उनके वचन सत्य सिद्ध हुए और चेचक ठीक हो गया।

इस प्रकरण से हमें यह शिक्षा मिलती है कि, जब तक बहुत कठिन परिस्थितियां न हों, सत्संगियों को ऐसे धार्मिक कर्तव्यों का परित्याग नहीं करना चाहिए।

8.मौसी की नथनी की खोज

एक बार युवा घनश्याम की मौसी चंदाबाई कुएँ से पानी भरने गईं। जब वे कुएँ से घड़ा निकाल रही थीं, तो उनकी नाक की नथ अचानक कुएँ में गिर गई। उन्होंने घर आकर इसकी सूचना दी। उनके कई रिश्तेदार अच्छे तैराक और गोताखोर थे।
उनमें से एक ने कहा, “मैं कुएँ से नथ ढूँढ़ कर लाता हूँ।” वह कुएँ में कूद पड़ा। उसने गोता लगाया और नथ ढूँढ़ने लगा। लेकिन वह नहीं मिली। उसने बहुत कोशिश की, लेकिन व्यर्थ। उसे नथ नहीं मिली। फिर उसने कहा, “यह कुएँ में नहीं है, आपकी नथ कहीं और गिर गई है।”

 “नहीं, यह इसी कुएँ में गिरी है,” मौसी ने कहा। गोताखोर ने कहा, “नहीं, यह ग़लत है। नाक की नथ कुएँ में नहीं है।”
उसे झूठा करार दिए जाने पर बहुत दुख हुआ। उसकी आँखों में आँसू थे। यह देखकर युवा घनश्याम ने कहा, “मौसी, रोओ मत। मैं आपकी नथ ढूँढ़ कर लाऊँगा।”

 यह कहकर घनश्याम कुएँ में कूद पड़ा और गहरे गोते लगाने लगा। सब उत्सुकता से देख रहे थे। बहुत समय बीत गया, पर घनश्याम ऊपर नहीं आया।

आखिर सबने मौसी को डाँटना शुरू किया, “यह तुमने नथ क्यों बनाई?” मौसी की हालत अजीब हो गई। वह न तो विरोध कर सकी, न ही जवाब दे सकी।

अचानक पानी की सतह पर हलचल हुई और घनश्याम का सिर और हाथ दिखाई देने लगे। उसके ऊपर उठे हाथ में नथ थी। घनश्याम ने वह कर दिखाया, जो गोताखोर नहीं कर सके।

यह देखकर सब हैरान रह गए। निश्चय ही यह कोई चमत्कारी बालक है! इसकी दिव्यता की कोई सीमा नहीं है।

यह युवा घनश्याम के दिव्य प्रदर्शन का एक प्रसंग है। भगवान जब जन्म लेते हैं तो मनुष्य की तरह व्यवहार करते हैं, वे मनुष्य की तरह दिखते हैं, फिर भी उनकी दिव्यता अनजाने में ही सार्वजनिक हो जाती है।

9. भगवान द्वारा इन्सानी लीला

भगवान जब धरती पर जन्म लेते हैं, तो मनुष्य की तरह प्रकट होते हैं। वे किसी विशेष अवसर पर अपनी ईश्वरीयता दिखाते हैं, पर हमेशा नहीं। वे हमेशा एक साधारण मनुष्य की तरह ही प्रकट होते हैं।

बालक घनश्याम अन्य बालकों की तरह ही दिखाई देते थे। वे अपने सभी गाँव के साथियों को इकट्ठा करते और तरह-तरह के खेल खेलते। वे आम के पेड़ से आम तोड़ते, इमली के पेड़ से फल तोड़ते, जामुन के पेड़ से गुलाब-सेब खाते। वे पेड़ पर चढ़ जाते और तरह-तरह के खेल खेलते, जैसे आइस पाईस (लुका- छिपी) और घोड़ों के खेल। वे नदी में तैरने जाते, डुबकी-कूद की दौड़ खेलते। वे गाय- बछड़ों के साथ खेलते, बंदरों के साथ भी खेलते हैं ।

जब उनकी माँ भक्तिमाता मिट्टी से भूमि को लिपतीं, तो घनश्याम मिट्टी लेकर भाग जाते। पूछने पर वे माँ को बताते कि मैं मिट्टी को लिप रहा हूँ और अगर घनश्याम गीली जमीन पर चलता, तो माँ उसे डाँटतीं, पर वे केवल हँसते। वह इस तरह हँसता था कि माँ का प्यार झलकता था और वह अपनी माँ को कीचड़ से सने हाथों से गाता था।

जब घनश्याम क्रोधित होता था, तो उसकी मस्ती देखिए। वह नदी में गोता लगाकर छिप जाता था, या फिर किसी भूतिया कुएँ के अँधेरे कोने में छिप जाता था। घनश्याम में कभी डर नहीं लगता था। बड़ी-बड़ी मूंछों वाले बहादुर भी वहाँ जाने की हिम्मत नहीं करते थे, घनश्याम ऐसी जगह जाकर सो जाता था। ऐसी बाल- लीलाओं के कारण घनश्याम सभी का प्रिय था।

यह पाठ इस रहस्य को दर्शाता है कि लोग क्यों नहीं जानते कि भगवान धरती पर कब जन्म लेते हैं। भगवान अपने भक्तों को छोड़कर लोगों की नज़र में एक साधारण इंसान की तरह लगते हैं।

10. होंठ पर चोट

एक बार सभी बच्चे तालाब के किनारे एक मौरा के पेड़ पर चढ़ गए और उस पर उछल-कूद कर रहे थे। जब वे डाल से दूसरी डाल पर कलाबाजियाँ कर रहे थे, तभी घनश्याम गिर पड़ा। उसका होंठ जख्मी हो गया था। उसके होंठ पर चोट लगी थी और खून बह रहा था।

बच्चे भागकर घर आए और उसके माता-पिता को बताया कि घनश्याम जख्मी हो गया है। रामप्रतापभाई जल्दी ही आ गए। उन्होंने घनश्याम को डांटा, “खेलना-कूदना तो तुम्हें मंजूर है, लेकिन अपना भी ख्याल रखना चाहिए।”

 “मेरे बड़े भाई, मुझे शरीर का ख्याल रखना सिखाओ?”

घनश्याम ने कहा, “यह शरीर है। यह गिर सकता है, घायल हो सकता है या कट सकता है, हाथ-पैर टूट सकते हैं। यह बीमार हो सकता है और मर भी सकता है।”

रामप्रतापभाई मुस्कुराए। वे घनश्याम को कंधे पर उठाकर घर ले आए। भक्तिमाता ने शुद्ध घी से लपसी/हलुवा (गेहूँ के आटे, घी और चीनी से बना एक प्रकार का मीठा पकवान) तैयार किया और घनश्याम को खाने के लिए दिया।

11.शरारती घनश्याम द्वारा खेत से घास के बजाय मक्का खीरा निकलना

एक बार बड़े भाई रामप्रताप अपने खेत में घास काटने गए थे। उनके साथ उनका छोटा भाई घनश्याम भी था। खेत में मक्का और खीरा साथ-साथ उगे थे। और इन दोनों के बीच उगी घास को निकालना था।

बड़े भाई को काम करते देख घनश्याम के मन में भी काम करने का विचार आया। इसलिए वह भी काम करने लगा। लेकिन घास निकालने की बजाय घनश्याम मक्का और खीरा उखाड़ रहा था।

यह देखकर बड़े भाई ने उसे डांटा, लेकिन घनश्याम को इसकी परवाह नहीं थी। बड़े भाई ने उसे फिर से डांटा, लेकिन घनश्याम को इसकी परवाह नहीं थी। बड़े भाई को गुस्सा आ गया। उसने गुस्से में घनश्याम को मारने के लिए हाथ उठाया

घनश्याम को बुरा लगा। वह भागकर घर में गया, छिपकर चरनी में घास के ढेर में छिप गया ताकि कोई उसे न पा सके। जब बड़ा भाई दोपहर को घर लौटा, तो भक्तिमाता ने उसे अकेला देखकर घनश्याम के बारे में पूछा।

 उसने कहा, “घनश्याम पहले ही घर आ चुका है।” “नहीं, अभी तक नहीं आया,” माँ ने कहा। बड़े भाई को अब आश्चर्य हुआ। उसने कहा, “मैंने जब उसे पीटना चाहा तो वह नाराज होकर कहीं भाग गया होगा।”

घनश्याम की खोज शुरू हुई। उसके सभी गाँव के मित्रों से घनश्याम के बारे में पूछा गया। परन्तु किसी ने घनश्याम को नहीं देखा था।  नदी, तालाब, मंदिर, इमली का पेड़ और आम का पेड़ जहाँ- जहाँ घनश्याम जाता था, वहाँ-वहाँ खोजा गया, परन्तु वह कहीं नहीं मिला। आस- पास के गाँवों में दूत भेजे गए। अन्त में वे निराश और असहाय हो गए।

भक्तिमाता की दुर्दशा की कोई सीमा नहीं थी। वह रोने लगी: “अरे प्यारे घनश्याम, मेरे बेटे घनश्याम, तुम कहाँ हो?”   माँ का विलाप घनश्याम सहन नहीं कर सका। उसने घास के ढेर से चिल्लाकर कहा, “मैं आ गया माँ।”

शीघ्र ही मौसी सुन्दरीबाई दौड़कर चरनी के पास गई और घनश्याम का हाथ पकड़कर उसे वापस ले आई। भक्तिमाता घनश्याम से लिपट गई।

घनश्याम ने माँ की गोद में मुँह छिपाते हुए कहा, “माँ, मेरा बड़ा भाई मुझे खोज रहा था, मैं उसे देख रहा था।”

  “कितना शरारती है मेरा बेटा घनश्याम!” माँ ने कहा।

12. सभी के प्रति समान भाव

धर्मदेव के पास गोमती नाम की एक गाय थी। बालक घनश्याम उससे बहुत प्रेम करता था। वह भी घनश्याम से प्रेम करती थी। गोमती प्रतिदिन चार सेर दूध देती थी। घर के सब लोग उसे खाते थे। घनश्याम जी भरकर पीता था। तब उसकी जेठानी सुवाशिनी भाभी ने दूध से भरा कटोरा घनश्याम की थाली में रख दिया।

एक बार सुवाशिनी भाभी ने सोचाः “घनश्याम अभी बहुत छोटा है। मैं एक बच्चे को इतनी मात्रा में दूध क्यों पिलाऊँ?” तब उन्होंने दूसरों को तो बड़े कटोरे में दूध दिया, परन्तु घनश्याम को छोटा कटोरा दिया। घनश्याम ने किसी से कुछ नहीं कहा।

 जब शाम को सुवाशिनी भाभी गाय दुहने गईं, तो गाय ने पहले से आधा ही दूध दिया। भाभी को इसका कारण समझ में नहीं आया।

शाम हो गई और सब लोग भोजन करने बैठे। जेठानी ने सबको सुबह जितना दूध दिया था, उसका आधा दिया। घनश्याम को दूध तो मिला, पर आधा कप! घनश्याम ने कुछ नहीं कहा। उसने चुपचाप भोजन समाप्त कर लिया।

अगली सुबह भाभी ने फिर गाय दुहनी शुरू की। इस बार उसे सामान्य मात्रा का केवल एक चौथाई ही मिला। उसने गाय को बहुत दुलारा, पर गाय ने कभी अधिक दूध नहीं दिया।

वह भक्तिमाता के पास गई और बोली, “माता, ऐसा कैसे? गाय अब उतना दूध क्यों नहीं देती, जितना पहले देती थी?”

भक्तिमाता पहले से ही स्थिति देख रही थी। उसने मुस्कुराकर कहा, “आप तो घर के सदस्यों को दूध देने में पक्षपात करते हैं, गाय भी तो दूध देने में पक्षपात कर सकती है। आप घनश्याम को कम दूध क्यों देते हैं? जितना दूसरों को देते हैं, उतना ही उसे भी दीजिए।” “मैं वैसा ही करूँगी,” भाभी ने कहा। उस शाम गाय ने पूरा चार सेर दूध दिया! इस लीला-प्रसंग से भगवान ने बताया कि घर के प्रत्येक सदस्य, अतिथि, नौकर आदि तथा भोजन पर आमंत्रित अन्य लोगों के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए। किसी को भी अपना करीबी या प्रिय नहीं समझना चाहिए।

13.भगवान को अर्पित कड़वा खीरा मीठा हुआ

वासाराम तरवाड़ी बालक घनश्याम के मामा थे। उन्होंने अपने खेत में खीरा लगाया था। खीरा पकते ही उन्हें उसे चखने की इच्छा हुई। इसलिए उन्होंने एक अच्छा खीरा चुनकर खाया। लेकिन जैसे ही उन्होंने पहला टुकड़ा मुंह में डाला, उन्हें थूकना पड़ा। खीरा बहुत कड़वा था।    वासाराम भक्तिमाता के घर गए और कहा,

“बहन, खीरा कड़वा होता है। अगर मीठा होता, तो मैं घनश्याम को खेत में ले जाकर खिलाता। उसे खीरा बहुत पसंद है न? “घनश्याम के लिए खीरा कभी कड़वा नहीं हो सकता,” भक्तिमाता ने कहा। “लेकिन वे वास्तव में कड़वे हैं,” वासा राम ने कहा। घनश्याम सरपट दौड़ता हुआ आया और बोला, “खीरे का फल कितना मीठा है!”वासाराम ने पूछा, “कौन सा?” “वही जो मैं आपके खेत से लाया हूँ,” घनश्याम ने कहा, “इसे चखो।” वसाराम ने उसे चखा और पाया कि वह बहुत मीठा है। “क्या यह मेरे खेत का है?” वसाराम ने पूछा, “लेकिन मेरे खेत में तो सभी ककड़ी के फल कड़वे होते हैं।”

 “नहीं, वे कड़वे नहीं हैं, वे बहुत मीठे हैं,” घनश्याम ने कहा, “चलो वहाँ चलते हैं और मैं तुम्हें दिखाता हूँ।” वे खेत में गए। वसाराम ने ककड़ी के दो से पाँच फल तोड़े और वे मीठे निकले, शहद की तरह मीठे। वह बहुत हैरान हुआ: “यह कैसे? कुछ ही समय में वे मीठे हो गए?”

 घनश्याम ने कहा, “चाचा, यदि आप पहले भगवान का हिस्सा निकाल देते, तो सभी फल मीठे होते।”

 इसलिए, ध्यान रखें, हर चीज में सबसे पहले भगवान का हिस्सा निकालना चाहिए। जहां भगवान का हिस्सा होगा, वह मीठा होगा और अगर भगवान का हिस्सा नहीं निकाला जाता है, तो वह चीज कड़वी होगी।

लेखक परिचय

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं. वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास   करते हुए सम-सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। मोबाइल नंबर +91 8630778321, वर्डसैप्प नम्बर+ 91 9412300183)