Thursday, January 16, 2025
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हाड़ोती के वन्य जीवों से साक्षात करती प्रदर्शनी

कोटा /  वन्यजीव हमारी अमूल्य धरोहर हैं। देश में अनेक वन्य जीव प्रजातियां लुप्त होने के कगार पर हैं,और कई दुर्लभ हो गई हैं। ऐसे में हर वर्ष वन विभाग  इनके संरक्षण के लिए जागरूकता फैलने हेतु एक अक्टूबर से वन्यजीव सुरक्षा सप्ताह मानता है। इसी ध्येय के लिए कोटा की कला दीर्घा में वन्यजीव प्रदर्शनी का आयोजन किया गया है।
 हाड़ोती के विभिन्न स्थानों पर पाए जाने वाले पैंथर, भालू, भेड़िया, टाईगर, उदबिलाव,मगरमच्छ, घड़ियाल, पक्षी, तितलियां, सर्दियों में आने वाले प्रवासी पक्षियों के प्राकृतिक परिवेश में शौकिया फोटोग्राफर्स द्वारा लिए गए छाया चित्रों से इन दिनों सजी है एक आकर्षक प्रदर्शनी कोटा के क्षत्रविलास उद्यान स्थित कला दीर्घा में। हो व्यक्ति और बच्चें वन्य जीवों से प्रेम करते हैं उनके लिए प्रातः 10.00 बजे से सांय 5. 00 बजे तक एक सप्ताह तक प्रदर्शनी लगी हैं।
प्रदर्शनी के साथ ही  ईश्वरमूल, मरोड़फली, केवड़ा, हड्डजोड़, सौंफ, तुलसी, वरूण, आरारोट आदि 57 प्रकार के औषधीय और 35 वर्ष पुराने बोनसाई पौधों और वन्य जीवों पर समय समय पर जारी डाक टिकट भी प्रदर्शित किए गए हैं। प्रथम दिन मंगलवार को विभिन्न विद्यालयों के करीब 350 विद्यार्थियों ने प्रदर्शनी का कोतूहल के साथ अवलोकन किया।
डीसीएफ अनुराग भटनागर ने  मौजूद दुर्लभ पेड़ जैसे जरूल, समुद्रफल आदि की पहचान कराई । उन्होंने बताया कि कबूतर (रॉकपिजन) विदेशी प्रजाति का पक्षी है जो हमारे यहां पाए जाने वाले देशी पक्षी गौरैया, रोबिन, बुलबुल, नीलकण्ठ, कठफोड़वा आदि पक्षियों का वास, भोजन और स्थल छीन रहा है जिससे ये चिड़ियाएं हमारे गांव और शहरों से विलुप्त होती जा रही हैं।
उप वन संरक्षक मुकुन्दरा हिल्स टाईगर रिर्जव मूथू एस ने बताया कि विदेशी पेड़ जैसे यूकेलिप्टस, लेन्टाना, पारथेनियम आदि इन्वेजिव पेड़-पौधे जंगल के लिए ठीक नहीं है, ये पेड़ जहां भी होते हैं वहां उसके आसपास अन्य देशी प्रजाति के पेड़-पौधों को पनपने नहीं देते। साथ ही, जमीन से पानी भी अधिक मात्रा में सोख लेते हैं। उन्होंने बताया कि हमें सिर्फ हमारे देश के पेड़ों को लगाना चाहिए विदेशी प्रजाति के पेड़-पौधे जो इन्वेजिव है उन्हें नहीं लगाएं। उन्होंने गिद्ध के बारे में बताया कि ये स्केवन्जर है यानी मरे हुए पशुओं को खाकर हमारे पर्यावरण को साफ सुथरा रखते है जिससे मरे हुए जानवर में पाए जाने वाले विषाणु एन्थ्रेंक्स आदि वातावरण में न फैल सकें।
 प्रदर्शनी में ए. एच, जैदी, सुनील सिंघल, विजय माहेश्वरी, बनवारी यदुवंशी, रविंद्र तोमर, कार्तिक वर्मा, हर्षित शर्मा, तुषार, उप वन संरक्षक मुकुन्दरा हिल्स टाईगर रिर्जव मूथू एस,
मनोज शर्मा, बुधराम जाट, डी. के. शर्मा, हरफूल शर्मा, चंद्रशेखर श्रीवास्तव, अंशु शर्मा, कपिल खंडेलवाल, उर्वशी शर्मा, तपेश्वर भाटी, दिलावर कुरेशी, ओम प्रकाश बैरवा आदि वन्य जीव फोटोग्रफर्स के लगभग 250 चित्र प्रदर्शित किए गए हैं। अधिकांश चित्र अभेड़ा, आलनिया, जवाहर सागर सेंकचुरी, भेंसरोड गढ़ सेंकचुरी, सोरसन संरक्षित क्षेत्र, मुकंदरा, चंद्रेसल, मानसगांव, गामछ, सावन भादो, गेपरनाथ, गरडिया महादेव, राजपुरा, जमुनिया, उदपुरिया क्षेत्रों के हैं।
वैद्य सुधींद्र शृंगी, पृथ्वी पाल सिंह द्वारा औषधीय पौधों और फिरोज खान द्वारा बोंसई पोधों की प्रदर्शनी लगाई गई। भुवनेश सिंघल, राकेश सोनी और फिरोज खान द्वारा डाक टिकटों में वन्य जीव प्रदर्शनी लगाई गई।

” महात्मा गांधी ” काव्य प्रतियोगिता परिणाम

योगीराज योगी, अर्चना शर्मा ,अल्पना गर्ग एवम् सन्जू श्रृंगी की कविताएं टॉप चार में
कोटा /  बाल साहित्य मेले के दौरान रचनाकारों को बाल कविताएं लिखने के लिए प्रेरित करने के लिए गांधी जयंती पर  ” महात्मा गांधी ” विषय पर बाल कविता प्रतियोगिता का आयोजन “संस्कृति,साहित्य, मीडिया फोरम, कोटा द्वारा किया गया।  काव्य प्रतियोगिता में रचनाकार योगीराज योगी, अर्चना शर्मा ,अल्पना गर्ग एवम् सन्जू श्रृंगी टॉप
चार घोषित की गई हैं। विजेता साहित्यकारों को आगामी किसी कार्यक्रम में समान रूप से पुरस्कृत किया जाएगा, जिसकी सूचना उन्हें प्रथक से व्यक्तिगत प्रेषित कर दी जाएगी।
प्रतियोगिता का परिणाम देश की विख्यात बाल साहित्यकार डॉ. विमला भंडारी  निवासी सलूंबर जिला द्वारा घोषित किया गया। उनके सुझाव पर प्रथम, द्वतीय और तृतीय घोषित नहीं कर टॉप चार घोषित किया गया है। उन्होंने सभी रचनाकारों की रचनाओं की सराहना की है।
प्रतियोगिता में  डॉ. युगल सिंह, डॉ. अपर्णा पांडेय , श्यामा शर्मा,  रीता गुप्ता ‘ रश्मि ‘, अर्चना शर्मा ,  अक्षयलता शर्मा, राम मोहन कौशिक, डॉ सुशीला जोशी , राम शर्मा ‘काप्रेन’ , महेश पंचोली , रेणु सिंह राधे, योगीराज योगी, मोहन वर्मा, डॉ संगीता देव, रघुनंदन हटीला, दिलीप सिंह हरप्रीत , अल्पना गर्ग, संजू शृंगी, अनुज  कुमार कुच्छल ने  उत्साह पूर्वक भाग लिया ।
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डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
प्रेषक :
डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
संयोजक
संस्कृति,साहित्य,मीडिया फोरम, कोटा

ब्राह्मण भोज कब से शुरू हुआ…?

विष्णु पुराण में एक कथा लेख मिलता है एक समय सभी ऋषियों की एक पंचायत हुई जिसमें यह निर्णय करना था की यज्ञ का भाग तीनों देवों में से किसको दिया जाए।
प्रथम परीक्षा लेने के लिए भृगु मुनि को चुना गया भृगु मुनि ने भगवान शंकर को जाकर प्रणाम किया तो शंकर जी उनसे गले मिलने के लिए खड़े हुए मुनि ने मना कर दिया कि आप अघोरी हो मुर्दे की भस्म लगाते हो हम आपसे गले नहीं मिल सकते।
भगवान शंकर क्रोधित हो गए फिर भृगू मुनि अपने पिता के यहां गए तो अपने पिता ब्रह्मा जी को प्रणाम नहीं किया ब्रह्मा जी भी कुपित हो गए कितना उद्दंड बालक है पिता को प्रणाम नहीं करता।
भृगु मुनि बैकुंठ धाम गए तो भगवान विष्णु सो रहे थे तो सोते हुए विष्णु की छाती में जाकर लात मारी भगवान विष्णु ने ब्राह्मण का चरण पकड़ा और कहा ब्राह्मण देव आपका चरण बड़ा कोमल है मेरी छाती बड़ी कठोर है आपको कहीं लगी तो नहीं।
प्रभु मुनि ने तुरंत भगवान विष्णु के चरण छुए और क्षमा याचना करते हुए कहा प्रभु यह एक परीक्षा का भाग था जिसमें हमें यह चुनना था कि.. यज्ञ का प्रथम भाग किस को दिया जाए तो सर्वसम्मति से आपको चुना जाता है।
तब भगवान विष्णु ने कहा कि जितना में यज्ञ तपस्या से प्रसन्न नहीं होता उतना में ब्राह्मण को भोजन कराए जाने से होता हूं भृगु मुजी जी ने पूछा महाराज ब्राह्मण के भोजन करने से आप तृप्त कैसे होते हैं तो विष्णु भगवान ने कहा ब्राह्मण को जो आप दान देते हैं या जो भोजन कराते हैं एक तो वह सात्विक प्रवृत्ति के होते हैं वेद अध्ययन वेद पाठन करने वाले होते हैं ब्राह्मण ही मुझे ब्रह्मा और महेश तीनों का ज्ञान समाज को कराते हैं।
हर अंग का कोई ना कोई देवता है जैसे आंखों के देवता सूरज जैसे कान के देवता बसु जैसे त्वचा के देवता वायु देव मंन के देवता इंद्र वैसे ही आत्मा के रूप में मैं भी वास करता हूं ब्राह्मण भोजन करके तृप्ति की अनुभूति करें तो वह तृप्ति ब्राह्मण के साथ मुझे और उन देवताओं को भी प्रत्यक्ष भोग लगाने के समान है जो आहुति हम यज्ञ कुंड में देते हैं स्वाहा कहकर.. ठीक उसी प्रकार की आहुति ब्राह्मण के मुख्य में लगती है इसलिए यह परंपरा ऋषियों ने प्रारंभ की की कोई भी धार्मिक कार्य हो तो ब्राह्मण को भोजन कराया जाए जिससे प्रत्यक्ष लाभ मिले।
कहते हैं ना आत्मा सो परमात्मा हमारे पूजा पाठ हवन इत्यादि का फल तभी हमें मिलता है जब परमात्मा प्रसन्न होता है आस्तिक मन से किया हुआ पुण्य दान अवश्य फलता है और सात्विक ब्रत्ती वाले को ही दान पुण्य भोजन कराना चाहिए हर पूजा-पाठ के उपरांत दक्षिणा और भोज अवश्य कराना चाहिए यह आपकी यथाशक्ति पर निर्भर है अगर ब्राह्मण सात्विक वृत्ति का है आप जो भी उसे दोगे जो भी खिलाओगे उसी से प्रशन्न हो जाएगा चाणक्य का एक श्लोक याद आता है –
विप्राणा्म भोजनौ तुष्यंति मयूरं घन गर्जिते।
 *साधवा पर संपत्तौ खल़़ःपर विपत्ति सू ।।
आप चाहे गरीबों को भोजन कराएं चाहे गौ माता को भोजन कराएं या ब्राह्मण को भोजन कराएं मतलब आत्मा की तृप्ति से है सामने वाले की आत्मा तृप्त तो परमात्मा प्रसन्न है आशा करता हूं आप लोगों को मेरी बात समझ में आई होगी जिसको नहीं आनी है तो नहीं आनी है तर्क वितर्क करने के कोई लाभ नहीं आप विष्णु पुराण पढ़िए!
सर्वपितृ अमावस्या” के दिन की गौमाताओं को दिया हुआ भोजन “गौग्रास” सीधा पितरों को प्राप्त होता है जिससे पितृ देव तृप्त होते हैं और आशीर्वाद देते हैं जिसके फलस्वरूप घर मे सुख सम्पत्ति धन धान्य वंश में वृद्धि संतान प्राप्ति होती है। इसलिए आज पितृपक्ष श्राद्धपक्ष की “सर्वपितृ अमावस्या” के अवसर पर अवश्य यथा संभव गौसेवा करके पुण्यलाभ अर्जित करें..और अपने पितरों पुर्वजो को श्रद्धापूर्वक विदाई दें…
साभार https://newstrack.com/ से

छत्तीसगढ़ में 22 परिवारों के 100 लोगों ने सनातन धर्म में की घर वापसी

छत्तीसगढ़ के सरगुजा में 22 परिवारों के करीब 100 लोगों ने 30.09.2024 को एक साथ सनातन वैदिक धर्म में वापसी कर ली।
समय बदल रहा है, महर्षि दयानंद सरस्वती जी और आर्य समाज के शुद्धि आन्दोलन का जिन शंकराचार्यों ने 150 वर्ष पूर्व विरोध किया था, आज वे आर्य समाज के बताए मार्ग पर आ रहे हैं और सभी विधर्मियों की सनातन वैदिक धर्म में वापसी के कार्य में सहयोगी हो रहे हैं । धन्य धन्य महर्षि दयानंद सरस्वती जी महाराज, धन्य  धन्य आर्य समाज, धन्य धन्य भारतीय हिंदू शुद्धि सभा।
छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर में 29 सितंबर को ‘विशाल हिन्दू धर्म सभा’ आयोजित की गई। इस मौके पर ऋग्वैदिक गोवर्धन मठ, पुरी के पीठाधीश्वर स्वामी निश्चलानंद सरस्वती और प्रदेश भाजपा के नेता प्रबल प्रताप जूदेव ने उत्साहित लोगों को माला पहनाकर उनकी घर वापसी कराई। बताया जाता है कि जिन 22 परिवारों के लोगों ने घर वापसी की वो सभी वनवासी समुदाय से आते है जो कुछ वर्ष छल से ईसाई मिशनरियों के द्वारा धर्मांतरित किए गए थे।
अच्छी शिक्षा, अच्छा जीवन और अच्छे स्वास्थ्य के सपने दिखा कर उन्हें मिशनरियों द्वारा ईसाई मत में मतांतरित कर दिया गया था। जबकि इस बात का भी पता चला है कि कन्वर्जन के बाद भी ये लोग आरक्षण के लिए कागजों पर सनातन धर्म का ही पालन कर रहे थे। लोगों ने आरोप लगाया कि अधिकतर कन्वर्जन लालच और प्रलोभन का लालच देकर किया गया था। इसको लेकर भाजपा नेता प्रबल प्रताप जूदेव ने सोशल मीडिया साइट एक्स के माध्यम से कहा, “पूर्वजों के पुण्य और मेरे सौभाग्य से सनातन धर्म के सर्वोच्च एवं सार्वभौम धर्मगुरु, अनंत श्री विभूषित ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्री गोवर्धन मठ पुरी पीठाधीश्वर श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी ने मुझे 22 परिवार के 100 सदस्यों की घर वापसी करने का पावन अवसर दिया। कृतज्ञ हूँ कि राष्ट्र निर्माण के इस पवित्र कार्य को सनातन धर्म के सर्वोच्च एवं सार्वभौम धर्मगुरु के सानिध्य में प्रतिपादित करना मेरे लिए ऐतिहासिक, अभूतपूर्व और अलौकिक अनुभूति है।”
(वर्तमान में शुद्धि ही आपकी आने वाली पुश्तों की रक्षा करने में सक्षम हैं। याद रखें आपके धार्मिक अधिकार तभी तक सुरक्षित हैं, जब तक आप बहुसंख्यक हैं। इसलिए अपने भविष्य की रक्षा के लिए शुद्धि कार्य को तन, मन, धन से सहयोग कीजिए। )
#shuddhi_andolan #bhartiya_hindu_shuddhi_sabha #swami_dayanand #swami_shraddhanand

हेमंत कुमार और नागिन की वो अमर धुन

बंबई में हेमंत कुमार का मन लग ही नहीं रहा था। वो वापस कलकत्ता लौट जाना चाहते थे। लेकिन ये सशधर मुखर्जी थे जिन्होंने हेमंत दा को रोके रखा। 1952 में आई फिल्म आनंद मठ पहली हिंदी फिल्म थी जिसमें हेमंत दा ने संगीत दिया था। इसी फिल्म के चलते वो पहली दफा कलकत्ता से बंबई आए थे। आनंद मठ का काम खत्म करके जब हेमंत कुमार जी ने वापस कलकत्ता जाने की बात कही तो सशधर मुखर्जी साहब ने उनसे कहा कि जब तक तुम कम से कम एक हिट फिल्म नहीं दोगे तब तक मैं तुम्हें कलकत्ता वापस जाने ही नहीं दूंगा। सशधर मुखर्जी के कहने पर हेमंत कुमार बंबई में रुक गए। डाकू की लड़की और फेरी नाम की दो फिल्मों का संगीत कंपोज़ किया। लेकिन वो फिल्में बहुत खास प्रदर्शन नहीं कर सकी।
लेकिन फिर आई नागिन जिसमें प्रदीप कुमार और वैयजयंतीमाला मुख्य भूमिकाओं में थे। नागिन की बीन उस वक्त बहुत ज़्यादा मशहूर हुई। लेकिन बीन को फिल्म के संगीत में इस्तेमाल करना हेमंत दा के लिए आसान नहीं था। उन्होंने कुछ सपेरों से मदद लेने की कोशिश की थी। लेकिन बात बन नहीं पाई। तब हेमंत दा ने कल्याणजी-आनंदजी से मदद मांगी। दरअसल, कल्याणजी-आनंदजी ने भी नागपंचमी नाम की एक फिल्म में बीन की धुन निकाली थी। हेमंत दा ने जब उनसे पूछा कि उन्होंने बीन की धुन कैसे तैयार की तो उन्होंने बताया कि उन्होंने क्लैव्योलाइन पर बीन की धुन छेड़ी थी। इस तरह कल्याणजी-आनंदजी से हेमंत दा को बड़ी मदद मिली। लेकिन चुनौती अभी खत्म नहीं हुई थी। एक नई चुनौती उभरकर खड़ी हो गई थी।
दरअसल, क्लैव्योलाइन पर जब कोई धुन छेड़ी जाती है तो उसके एक नोट और दूसरे नोट के बीच में अच्छा खासा गैप महसूस होता है। जबकी बीन में कोई गैप नहीं होता। इसकी काट हेमंत दा ने ऐसे निकाली की उन्होंने क्लैव्योलाइन के साथ हारमोनियम को मिक्स कर दिया। इस तरह तैयार हुई नागिन फिल्म की वो मशहूर बीन की धुन। हालांकि जब हेमंत कुमार ने धुन कंपोज़ करके डायरेक्टर-प्रोड्यूसर को सुनाई थी तो उन्होंने उस धुन में बदलाव करने की मांग की थी। उनका कहना था कि ये तो बहुत मोनोटोनस साउंड कर रही है। इसमें कुछ नयापन होना चाहिए। मगर हेमंत कुमार जी ने उन्हें समझाया कि गाने में बदलाव चाहे करा लीजिए। लेकिन बीन को ऐसे ही रहने दीजिए। क्योंकि लोगों को ये ऐसे ही पसंद आने वाली है।
 26 सितंबर 1988 को 69 साल की उम्र में हेमंत कुमार जी का निधन हुआ था।
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प्रो. अच्युत सामंत को ‘महात्मा पुरस्कार’

भुवनेश्वर। नई दिल्ली में गांधी जयंती की पूर्व संध्या पर कीट और कीस के संस्थापक प्रो डॉ. अच्युत सामंत को प्रतिष्ठित ‘महात्मा पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। आदित्य बिड़ला समूह द्वारा प्रदान किया जाने वाला यह पुरस्कार उन व्यक्तियों को सम्मानित करता है जिन्होंने शिक्षा और समाज सेवा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया है। प्रो डॉ. सामंत को इन क्षेत्रों में उनके उल्लेखनीय प्रयासों के लिए यह पुरस्कार मिला।

प्रसिद्ध CSR कार्यकर्ता अमित सचदेवा द्वारा शुरू किया गया महात्मा पुरस्कार 2016 से समाज विकास में योगदान देने वाले प्रतिष्ठित व्यक्तियों और संगठनों को दिया जाता है। पिछले प्राप्तकर्ताओं में रतन टाटा, अजीम प्रेमजी, बिंदेश्वर पाठक और शबाना आज़मी जैसे दिग्गज शामिल हुए।

पुरस्कार देने से पहले एक चयन समिति प्रत्येक नामांकित व्यक्ति के योगदान का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करती है। प्रो डॉ. सामंत, जिन्होंने शिक्षा और सामाजिक कार्यों के लिए 33 वर्षों से अधिक समय समर्पित किया है, ने असमानता को मिटाने के महात्मा गांधी के दृष्टिकोण के अनुरूप हाशिए पर पड़े और आदिवासी समुदायों के उत्थान पर ध्यान केंद्रित किया है। कीट के माध्यम से प्रो डॉ. सामंत ने पिछले तीन दशकों में इन प्रयासों को गति दी है।

इस वर्ष के समारोह में विद्वान और लेखिका सुधा मूर्ति, प्रसिद्ध ओडिसी और भरतनाट्यम नृत्यांगना सोनल मानसिंह जैसी प्रमुख हस्तियों को भी सम्मानित किया गया। पुदुचेरी की पूर्व उपराज्यपाल किरण बेदी और सामाजिक कार्यकर्ता राजश्री बिड़ला भी इस कार्यक्रम में मौजूद थीं।

अपने भाषण में प्रो डॉ. सामंत ने आभार व्यक्त किया और पुरस्कार को कीट और कीस परिवार को समर्पित किया। उन्होंने CSR गुड बुक की संपादिका और महात्मा पुरस्कार की निदेशिका मुग्धा अरोड़ा के साथ-साथ आयोजन समिति को भी इस सम्मान के लिए धन्यवाद दिया।

गांधी, शास्त्री जयंती पर निपुण मेले का आयोजन

कोटा  राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, मोरपा सुल्तानपुर में गांधी जयंती और लालबहादुर जयंती पर निपुण मेले का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता  श्रीमती करुणा सेन ने की। विशिष्ठ अथिति के रूप में रामचरन वैष्णव , महेंद्र कुमार मीणा,  मुश्ताक अली और  विनोद कुमार मौजूद रहे। संचालन डॉ. अपर्णा पांडेय ने किया।
संयोजक डॉ.अपर्णा में बताया कि कक्षा 6 से लेकर के 12वीं तक के छात्रों ने मेले में उत्साह पूर्वक भाग लिया। इस अवसर पर स्वच्छता अभियान के अंतर्गत छात्रों ने विद्यालय में सफाई की गई। पोस्टर प्रतियोगिता  में पर्यावरण संरक्षण , नारी शिक्षा ,जल संरक्षण, प्रकृति  संरक्षण और शिक्षाप्रद कहानियों पर छात्रों ने पोस्टर बनाएं । कुछ छात्रों ने सौर ऊर्जा , पवन चक्की , भूकंप रोधी घर, फसलों को पशुओं से कैसे बचाएं आदि  पर मॉडल  बनाए। कुछ छात्रों ने मानव उत्सर्जन तंत्र, श्वसन तंत्र, जीव कोशिका आदि पर भी चित्र प्रदर्शित किए।

इंजीनियर राजकुमार बने बिस्वास,भुवनेश्वर के नये अध्यक्ष

भुवनेश्वर ।  गांधीजयंती  अवसर पर बिस्वास भुवनेश्वर ने अपना एजीएम बुलाया जिसकी अध्यक्षता निवर्तमान अध्यक्ष संजय झा ने की। मंचासीन रहे महासचिव चन्द्रशेखर सिंह,उपाध्यक्ष अजय बहादुर सिंह,सहायक सचिव भूषण चन्द्र सिंह,सहायक सचिव तथा कोषाध्यक्ष किसलय कुमार। कार्यक्रम का संचालन अशोक पाण्डेय ने किया जिसमें उन्होंने राष्ट्रगान की उद्घोषणा के साथ कार्यक्रम का आरंभ किया।

इसके  उपरांत बिस्वास परिवार के गत दो वर्षों में दिवंगत सदस्यों आदि की आत्मा की चिर शांति के लिए सभी ने मौन रखा। स्वागत भाषण दिया निवर्तमान अध्यक्ष संजय झा ने जबकिबिस्वास के गत सत्र के आय-व्यय का विवरण प्रस्तुत किया महासचिव चन्द्रशेखर सिंह ने। उन्होंने अपने संबोधन में यह भी बताया कि बिस्वास भुवनेश्वर आज से लगभग 22 वर्ष पूर्व  सामाजिक कल्याण संस्था के रुप में आरंभ हुआ था जिसका ओड़िशा सरकार से पंजीकरण उन्हीं के कार्यकाल में हुआ था। उन्हीं की टीम की पहल से बिस्वास भुवनेश्वर को अपने स्थाई भवन के लिए ओड़िशा राज्य सरकार से बातचीत चल रही है।
उपाध्यक्ष अजय बहादुर सिंह ने बताया कि उनकी टीम ने अपने कार्याकल के दौरान अनेक सामाजिक तथा जनसेवा का कार्य की है जो काफी उल्लेखनीय कार्य रहे हैं। संजय झा ने यह घोषणा की कि वे नये सत्र 2024-26 के लिए इंजीनियर राजकुमार के नाम का प्रस्ताव करते हैं जिनका समर्थन निवर्तमान महासचिव चन्द्रशेखर सिंह ने किया। बिस्वास भुवनेश्वर के नये अध्यक्ष के रुप में इंजीनियर राजकुमार ने अपने संबोधन में निवर्तमान अध्यक्ष संजय झा और उनकी टीम के 22 वर्षों की की सेवाओं की सराहना की।
 उन्होंने यह भी जानकारी दी कि वे अपनी नई टीम का गठन बहुत जल्द कर लेंगे जिसमें वे पहली बार बिस्वास की आवश्यकतानुसार नया महिला प्रकोष्ठ बनाएंगेयुवा विंग बनाएंगे तथा सदस्य संख्या अभिवृद्धि अभियान को बिस्वास भुवनेश्वर के सभी के सहयोग से तेज करेंगे।आभार प्रदर्शन किया संस्था के निवर्तमान सहायक सचिव चन्द्र भूषण सिंह ने।

उच्च न्यायालय ने जग्गी वासुदेव से पूछा,अपनी बेटियों का विवाह कर दिया तो दूसरों की बेटियों को संन्यासी क्यों बना रहे हो

मद्रास हाईकोर्ट ने ईशा फाउंडेशन के फाउंडर और आध्यात्मिक गुरु सद्गुरु जग्गी वासुदेव से पूछा कि जब आपने अपनी बेटी की शादी कर दी है, तो दूसरों की बेटियों को सिर मुंडवाने और सांसारिक जीवन त्यागकर संन्यासियों की तरह रहने के लिए क्यों प्रोत्साहित कर रहे हैं।

दरअसल, कोयंबटूर में तमिलनाडु एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के रिटायर्ड प्रोफेसर एस कामराज ने ईशा फाउंडेशन के खिलाफ याचिका लगाई है। उनका आरोप है कि उनकी दो बेटियों- गीता कामराज उर्फ मां माथी (42 साल) और लता कामराज उर्फ मां मायू (39 साल) को ईशा योग सेंटर में कैद में रखा गया है।

उन्होंने आरोप लगाया कि ईशा फाउंडेशन ने उनकी बेटियों का ब्रेनवॉश किया, जिसके कारण वे संन्यासी बन गईं। उनकी बेटियों को कुछ खाना और दवा दी जा रही है, जिससे उनकी सोचने-समझने की शक्ति खत्म हो गई है।

जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम और जस्टिस वी शिवगणनम की बेंच ने पुलिस को मामले की जांच करने और ईशा फाउंडेशन से जुड़े सभी मामलों की एक लिस्ट तैयार करने का निर्देश दिया है।

सद्गुरु जग्गी वासुदेव पर कुछ विवाद और मुकदमे समय-समय पर चर्चा में रहे हैं, जिनमें उनकी पत्नी और पर्यावरण से जुड़े मुद्दे प्रमुख हैं।

उनकी पत्नी विजयकुमारी की मृत्यु:

सद्गुरु जग्गी वासुदेव की पत्नी विजयकुमारी (विज्जी के नाम से भी जानी जाती थीं) की मृत्यु 1997 में हुई थी। सद्गुरु के अनुसार, उनकी पत्नी ने अपनी इच्छा से समाधि ली थी, जो योगियों द्वारा आत्म-साक्षात्कार की एक प्रक्रिया मानी जाती है। उन्होंने कहा कि यह एक आध्यात्मिक अनुभव था, जिसमें उन्होंने अपने शरीर को जान-बूझकर त्याग दिया।

हालांकि, कुछ लोगों ने विजयकुमारी की मृत्यु को लेकर संदेह जताया और इस मामले की पुलिस में शिकायत भी की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि उनकी मृत्यु प्राकृतिक नहीं थी। लेकिन पुलिस जांच में कोई ठोस सबूत नहीं मिला, और मामला बंद कर दिया गया। इसके बाद से यह मुद्दा सार्वजनिक रूप से ज्यादा चर्चा में नहीं रहा।

पर्यावरण से जुड़े विवाद:

ईशा फाउंडेशन द्वारा कोयंबटूर में बनाए गए “ध्यानलिंगम” और ईशा योग केंद्र से जुड़े भूमि अधिग्रहण को लेकर भी कुछ विवाद उठे हैं। कुछ आरोपों के अनुसार, फाउंडेशन ने अनधिकृत रूप से वन भूमि पर निर्माण कार्य किया है। हालाँकि, फाउंडेशन ने इन आरोपों को खारिज किया है और कहा है कि उनके सभी प्रोजेक्ट कानूनी रूप से स्वीकृत हैं।

सद्गुरु द्वारा शुरू की गई “रैली फॉर रिवर्स” पहल, जो नदियों को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से की गई थी, को भी समर्थन के साथ-साथ आलोचना का सामना करना पड़ा। कुछ पर्यावरणविदों ने इसे एक शो के रूप में देखा और इसकी वास्तविक प्रभावशीलता पर सवाल उठाए।

सद्गुरु जग्गी वासुदेव से जुड़े ये विवाद और मुकदमे उनके सार्वजनिक जीवन का हिस्सा हैं, लेकिन इनकी जांच और परिणामों में कोई ठोस आरोप सिद्ध नहीं हुए हैं। उनकी पत्नी की मृत्यु और पर्यावरणीय परियोजनाओं को लेकर विवादों के बावजूद, उनके समर्थक उन्हें एक प्रभावशाली आध्यात्मिक नेता और समाज सुधारक मानते हैं, जबकि कुछ आलोचकों ने उनके कार्यों और दावों पर सवाल उठाए हैं।

 

सद्गुरु जग्गी वासुदेव एक प्रसिद्ध भारतीय योगी, आध्यात्मिक गुरु और ईशा फाउंडेशन के संस्थापक हैं। उनका जन्म 3 सितंबर 1957 को कर्नाटक के मैसूर में हुआ था। सद्गुरु ने अपने जीवन को ध्यान और आंतरिक अनुभवों के माध्यम से मानवता के कल्याण के लिए समर्पित किया है।

जीवन और करियर:

सद्गुरु की आध्यात्मिक यात्रा तब शुरू हुई जब 25 साल की उम्र में उन्होंने एक गहन आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त किया। इसके बाद, उन्होंने योग और ध्यान सिखाने का कार्य शुरू किया। 1992 में उन्होंने ईशा फाउंडेशन की स्थापना की, जो एक गैर-लाभकारी संगठन है और दुनिया भर में योग, ध्यान और आध्यात्मिकता से जुड़े कई कार्यक्रम आयोजित करता है।

ईशा फाउंडेशन:

ईशा फाउंडेशन का मुख्य केंद्र तमिलनाडु के कोयंबटूर में स्थित है। यहाँ योग, ध्यान और आत्म-साक्षात्कार के लिए विभिन्न कार्यक्रम और कार्यशालाएँ संचालित होती हैं। ईशा फाउंडेशन पर्यावरण, शिक्षा और सामाजिक उत्थान के लिए भी कई परियोजनाओं पर काम करता है, जिनमें “रैली फॉर रिवर्स” और “प्रोजेक्ट ग्रीनहैंड्स” शामिल हैं, जो पर्यावरण संरक्षण पर केंद्रित हैं।

सद्गुरु की शिक्षाएं:

सद्गुरु का मानना है कि योग और ध्यान जीवन को आनंदपूर्ण और अर्थपूर्ण बना सकते हैं। उनकी शिक्षाओं में आंतरिक शांति, आत्म-जागरूकता और संतुलन को प्रमुखता दी जाती है। वह विज्ञान और आध्यात्मिकता के संगम पर जोर देते हैं और विभिन्न देशों में अपनी शिक्षाएं फैलाने के लिए जाने जाते हैं। वे सामाजिक और वैश्विक मुद्दों पर भी अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं।

किताबें और अन्य योगदान:

सद्गुरु ने कई किताबें भी लिखी हैं, जैसे “इनर इंजीनियरिंग,” “डेथ: एन इनसाइड स्टोरी,” और “मिस्टिक्स मस्कुलरिटी,” जिनमें उन्होंने अपने जीवन के अनुभवों और आध्यात्मिक ज्ञान को साझा किया है। इसके अलावा, सद्गुरु सोशल मीडिया और यूट्यूब पर भी काफी सक्रिय रहते हैं, जहाँ वे लाखों लोगों तक अपनी बातें पहुंचाते हैं।

सद्गुरु की विशेषता यह है कि वे प्राचीन योग और ध्यान को आधुनिक जीवनशैली के साथ जोड़कर एक समृद्ध और शांतिपूर्ण जीवन जीने के तरीके सिखाते हैं।

आराधना, शक्ति, साधना, अध्यात्म और श्रध्दा का प्रतीक है नवरात्र

नवरात्र भारत का एक प्रमुख हिंदू त्योहार है, जिसे देवी दुर्गा की आराधना के रूप में मनाया जाता है। यह त्योहार 9 दिनों तक चलता है, और इसका ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व बहुत गहरा है। नवरात्र का उल्लेख न केवल वैदिक साहित्य में मिलता है, बल्कि इसका प्राचीन भारतीय संस्कृति और परंपराओं में भी महत्वपूर्ण स्थान है।नवरात्र का त्योहार भारतीय संस्कृति, इतिहास और धार्मिक परंपराओं में गहरे से जुड़ा हुआ है। यह न केवल देवी शक्ति की आराधना का समय है, बल्कि समाज में एकता, भक्ति, और अच्छाई की जीत का भी प्रतीक है। वैदिक साहित्य में भी नवरात्र को विशेष महत्व दिया गया है और इसका उल्लेख देवी की शक्ति और सृजनात्मक ऊर्जा के प्रतीक के रूप में किया गया है।

हर वर्ष आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तिथि तक शारदीय नवरात्र मनाया जाता है। इन नौ दिनों में जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा की नौ शक्ति रूपों की पूजा (Shardiya Navratri Puja Vidhi) की जाती है। साथ ही नवदुर्गा के निमित्त नौ दिनों तक व्रत-उपवास रखा जाता है।

हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 03 अक्टूबर को देर रात 12 बजकर 18 मिनट से शुरू होगी। वहीं, इस तिथि का समापन 04 अक्टूबर को देर रात 02 बजकर 58 मिनट पर होगा। सनातन धर्म में सूर्योदय से तिथि की गणना की जाती है। अतः गुरुवार 03 अक्टूबर से शारदीय नवरात्र की शुरुआत होगी। इस विशेष तिथि पर हस्त नक्षत्र और चित्रा नक्षत्र का संयोग बन रहा है। इस वर्ष शारदीय नवरात्र 03 अक्टूबर से लेकर 11 अक्टूबर तक है। वहीं, 12 अक्टूबर को दशहरा यानी विजयादशमी है।शारदीय नवरात्रि के शुभ अवसर पर घटस्थापना मुहूर्त 03 अक्टूबर को सुबह 06 बजकर 15 मिनट से लेकर सुबह 07 बजकर 22 मिनट तक है। वहीं, अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 46 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 33 मिनट तक है। इन दोनों शुभ योग समय में घटस्थापना कर मां दुर्गा की पूजा कर सकते हैं।

नवरात्र का इतिहास:

नवरात्र का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है और इसे देवी शक्ति की पूजा और स्तुति के रूप में देखा जाता है। माना जाता है कि नवरात्र का त्योहार मुख्यतः देवी दुर्गा और उनके नौ रूपों की आराधना से संबंधित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई करने से पहले नवरात्र के नौ दिनों तक देवी दुर्गा की पूजा की थी और दसवें दिन रावण पर विजय प्राप्त की थी, जिसे दशहरा के रूप में मनाया जाता है।

इतिहास के अनुसार, नवरात्र की उत्पत्ति देवी-देवताओं के समय से मानी जाती है, जब देवी दुर्गा ने महिषासुर नामक असुर का वध किया था। यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।

नवरात्र का महत्व:

  1. धार्मिक महत्व: नवरात्र में शक्ति की देवी की पूजा होती है। लोग इस दौरान उपवास रखते हैं, व्रत करते हैं और धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते हैं। इसे बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में देखा जाता है।
  2. आध्यात्मिक महत्व: इस दौरान लोग अपने भीतर की नकारात्मकता और दोषों को दूर करने का प्रयास करते हैं और आत्मा की शुद्धि के लिए ध्यान, योग और पूजा करते हैं।
  3. सांस्कृतिक महत्व: भारत के विभिन्न राज्यों में नवरात्र को अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। बंगाल में दुर्गा पूजा के रूप में, गुजरात में गरबा और डांडिया के रूप में, जबकि उत्तर भारत में रामलीला और देवी की स्तुति के रूप में। यह विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं को जोड़ने वाला त्योहार है।

वैदिक साहित्य में नवरात्र:

वैदिक साहित्य में नवरात्र को शक्ति उपासना और देवी पूजा से जोड़ा गया है। ऋग्वेद और अथर्ववेद जैसे प्राचीन ग्रंथों में देवी की स्तुति और शक्ति की आराधना के अनेक मंत्र और स्तोत्र मिलते हैं। वेदों में शक्ति को सृजन और संहार की देवी के रूप में देखा गया है। इसके अलावा, मार्कंडेय पुराण में दुर्गा सप्तशती के रूप में देवी के महात्म्य और शक्ति की पूजा का विस्तृत वर्णन है।

  1. देवी सूक्त (ऋग्वेद): यह वैदिक स्तोत्र देवी शक्ति की महिमा का गुणगान करता है और इसे नवरात्र के समय पढ़ा जाता है।
  2. दुर्गा सप्तशती: इसे मार्कंडेय पुराण का हिस्सा माना जाता है, और इसमें देवी दुर्गा के महात्म्य और उनके विभिन्न रूपों की आराधना का वर्णन है। नवरात्र के दिनों में यह ग्रंथ विशेष रूप से पढ़ा जाता है।
  शारदीय नवरात्र  नौ दिन की पूजा आराधना
03 अक्टूबर 2024- मां शैलपुत्री की पूजा
04 अक्टूबर 2024- मां ब्रह्मचारिणी की पूजा
05 अक्टूबर 2024- मां चंद्रघंटा की पूज
06 अक्टूबर 2024- मां कूष्मांडा की पूजा
07 अक्टूबर 2024- मां स्कंदमाता की पूजा
08 अक्टूबर 2024- मां कात्यायनी की पूजा
09 अक्टूबर 2024- मां कालरात्रि की पूजा
10 अक्टूबर 2024- मां सिद्धिदात्री की पूजा
11 अक्टूबर 2024- मां महागौरी की पूजा
12 अक्टूबर 2024- विजयदशमी (दशहरा)