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प्रो. अच्युत सामंत को ‘महात्मा पुरस्कार’
भुवनेश्वर। नई दिल्ली में गांधी जयंती की पूर्व संध्या पर कीट और कीस के संस्थापक प्रो डॉ. अच्युत सामंत को प्रतिष्ठित ‘महात्मा पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। आदित्य बिड़ला समूह द्वारा प्रदान किया जाने वाला यह पुरस्कार उन व्यक्तियों को सम्मानित करता है जिन्होंने शिक्षा और समाज सेवा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया है। प्रो डॉ. सामंत को इन क्षेत्रों में उनके उल्लेखनीय प्रयासों के लिए यह पुरस्कार मिला।
प्रसिद्ध CSR कार्यकर्ता अमित सचदेवा द्वारा शुरू किया गया महात्मा पुरस्कार 2016 से समाज विकास में योगदान देने वाले प्रतिष्ठित व्यक्तियों और संगठनों को दिया जाता है। पिछले प्राप्तकर्ताओं में रतन टाटा, अजीम प्रेमजी, बिंदेश्वर पाठक और शबाना आज़मी जैसे दिग्गज शामिल हुए।
पुरस्कार देने से पहले एक चयन समिति प्रत्येक नामांकित व्यक्ति के योगदान का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करती है। प्रो डॉ. सामंत, जिन्होंने शिक्षा और सामाजिक कार्यों के लिए 33 वर्षों से अधिक समय समर्पित किया है, ने असमानता को मिटाने के महात्मा गांधी के दृष्टिकोण के अनुरूप हाशिए पर पड़े और आदिवासी समुदायों के उत्थान पर ध्यान केंद्रित किया है। कीट के माध्यम से प्रो डॉ. सामंत ने पिछले तीन दशकों में इन प्रयासों को गति दी है।
इस वर्ष के समारोह में विद्वान और लेखिका सुधा मूर्ति, प्रसिद्ध ओडिसी और भरतनाट्यम नृत्यांगना सोनल मानसिंह जैसी प्रमुख हस्तियों को भी सम्मानित किया गया। पुदुचेरी की पूर्व उपराज्यपाल किरण बेदी और सामाजिक कार्यकर्ता राजश्री बिड़ला भी इस कार्यक्रम में मौजूद थीं।
अपने भाषण में प्रो डॉ. सामंत ने आभार व्यक्त किया और पुरस्कार को कीट और कीस परिवार को समर्पित किया। उन्होंने CSR गुड बुक की संपादिका और महात्मा पुरस्कार की निदेशिका मुग्धा अरोड़ा के साथ-साथ आयोजन समिति को भी इस सम्मान के लिए धन्यवाद दिया।
गांधी, शास्त्री जयंती पर निपुण मेले का आयोजन
इंजीनियर राजकुमार बने बिस्वास,भुवनेश्वर के नये अध्यक्ष
भुवनेश्वर । गांधीजयंती अवसर पर बिस्वास भुवनेश्वर ने अपना एजीएम बुलाया जिसकी अध्यक्षता निवर्तमान अध्यक्ष संजय झा ने की। मंचासीन रहे महासचिव चन्द्रशेखर सिंह,उपाध्यक्ष अजय बहादुर सिंह,सहायक सचिव भूषण चन्द्र सिंह,सहायक सचिव तथा कोषाध्यक्ष किसलय कुमार। कार्यक्रम का संचालन अशोक पाण्डेय ने किया जिसमें उन्होंने राष्ट्रगान की उद्घोषणा के साथ कार्यक्रम का आरंभ किया।
उच्च न्यायालय ने जग्गी वासुदेव से पूछा,अपनी बेटियों का विवाह कर दिया तो दूसरों की बेटियों को संन्यासी क्यों बना रहे हो
मद्रास हाईकोर्ट ने ईशा फाउंडेशन के फाउंडर और आध्यात्मिक गुरु सद्गुरु जग्गी वासुदेव से पूछा कि जब आपने अपनी बेटी की शादी कर दी है, तो दूसरों की बेटियों को सिर मुंडवाने और सांसारिक जीवन त्यागकर संन्यासियों की तरह रहने के लिए क्यों प्रोत्साहित कर रहे हैं।
दरअसल, कोयंबटूर में तमिलनाडु एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के रिटायर्ड प्रोफेसर एस कामराज ने ईशा फाउंडेशन के खिलाफ याचिका लगाई है। उनका आरोप है कि उनकी दो बेटियों- गीता कामराज उर्फ मां माथी (42 साल) और लता कामराज उर्फ मां मायू (39 साल) को ईशा योग सेंटर में कैद में रखा गया है।
उन्होंने आरोप लगाया कि ईशा फाउंडेशन ने उनकी बेटियों का ब्रेनवॉश किया, जिसके कारण वे संन्यासी बन गईं। उनकी बेटियों को कुछ खाना और दवा दी जा रही है, जिससे उनकी सोचने-समझने की शक्ति खत्म हो गई है।
जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम और जस्टिस वी शिवगणनम की बेंच ने पुलिस को मामले की जांच करने और ईशा फाउंडेशन से जुड़े सभी मामलों की एक लिस्ट तैयार करने का निर्देश दिया है।
सद्गुरु जग्गी वासुदेव पर कुछ विवाद और मुकदमे समय-समय पर चर्चा में रहे हैं, जिनमें उनकी पत्नी और पर्यावरण से जुड़े मुद्दे प्रमुख हैं।
उनकी पत्नी विजयकुमारी की मृत्यु:
सद्गुरु जग्गी वासुदेव की पत्नी विजयकुमारी (विज्जी के नाम से भी जानी जाती थीं) की मृत्यु 1997 में हुई थी। सद्गुरु के अनुसार, उनकी पत्नी ने अपनी इच्छा से समाधि ली थी, जो योगियों द्वारा आत्म-साक्षात्कार की एक प्रक्रिया मानी जाती है। उन्होंने कहा कि यह एक आध्यात्मिक अनुभव था, जिसमें उन्होंने अपने शरीर को जान-बूझकर त्याग दिया।
हालांकि, कुछ लोगों ने विजयकुमारी की मृत्यु को लेकर संदेह जताया और इस मामले की पुलिस में शिकायत भी की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि उनकी मृत्यु प्राकृतिक नहीं थी। लेकिन पुलिस जांच में कोई ठोस सबूत नहीं मिला, और मामला बंद कर दिया गया। इसके बाद से यह मुद्दा सार्वजनिक रूप से ज्यादा चर्चा में नहीं रहा।
पर्यावरण से जुड़े विवाद:
ईशा फाउंडेशन द्वारा कोयंबटूर में बनाए गए “ध्यानलिंगम” और ईशा योग केंद्र से जुड़े भूमि अधिग्रहण को लेकर भी कुछ विवाद उठे हैं। कुछ आरोपों के अनुसार, फाउंडेशन ने अनधिकृत रूप से वन भूमि पर निर्माण कार्य किया है। हालाँकि, फाउंडेशन ने इन आरोपों को खारिज किया है और कहा है कि उनके सभी प्रोजेक्ट कानूनी रूप से स्वीकृत हैं।
सद्गुरु द्वारा शुरू की गई “रैली फॉर रिवर्स” पहल, जो नदियों को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से की गई थी, को भी समर्थन के साथ-साथ आलोचना का सामना करना पड़ा। कुछ पर्यावरणविदों ने इसे एक शो के रूप में देखा और इसकी वास्तविक प्रभावशीलता पर सवाल उठाए।
सद्गुरु जग्गी वासुदेव से जुड़े ये विवाद और मुकदमे उनके सार्वजनिक जीवन का हिस्सा हैं, लेकिन इनकी जांच और परिणामों में कोई ठोस आरोप सिद्ध नहीं हुए हैं। उनकी पत्नी की मृत्यु और पर्यावरणीय परियोजनाओं को लेकर विवादों के बावजूद, उनके समर्थक उन्हें एक प्रभावशाली आध्यात्मिक नेता और समाज सुधारक मानते हैं, जबकि कुछ आलोचकों ने उनके कार्यों और दावों पर सवाल उठाए हैं।
सद्गुरु जग्गी वासुदेव एक प्रसिद्ध भारतीय योगी, आध्यात्मिक गुरु और ईशा फाउंडेशन के संस्थापक हैं। उनका जन्म 3 सितंबर 1957 को कर्नाटक के मैसूर में हुआ था। सद्गुरु ने अपने जीवन को ध्यान और आंतरिक अनुभवों के माध्यम से मानवता के कल्याण के लिए समर्पित किया है।
जीवन और करियर:
सद्गुरु की आध्यात्मिक यात्रा तब शुरू हुई जब 25 साल की उम्र में उन्होंने एक गहन आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त किया। इसके बाद, उन्होंने योग और ध्यान सिखाने का कार्य शुरू किया। 1992 में उन्होंने ईशा फाउंडेशन की स्थापना की, जो एक गैर-लाभकारी संगठन है और दुनिया भर में योग, ध्यान और आध्यात्मिकता से जुड़े कई कार्यक्रम आयोजित करता है।
ईशा फाउंडेशन:
ईशा फाउंडेशन का मुख्य केंद्र तमिलनाडु के कोयंबटूर में स्थित है। यहाँ योग, ध्यान और आत्म-साक्षात्कार के लिए विभिन्न कार्यक्रम और कार्यशालाएँ संचालित होती हैं। ईशा फाउंडेशन पर्यावरण, शिक्षा और सामाजिक उत्थान के लिए भी कई परियोजनाओं पर काम करता है, जिनमें “रैली फॉर रिवर्स” और “प्रोजेक्ट ग्रीनहैंड्स” शामिल हैं, जो पर्यावरण संरक्षण पर केंद्रित हैं।
सद्गुरु की शिक्षाएं:
सद्गुरु का मानना है कि योग और ध्यान जीवन को आनंदपूर्ण और अर्थपूर्ण बना सकते हैं। उनकी शिक्षाओं में आंतरिक शांति, आत्म-जागरूकता और संतुलन को प्रमुखता दी जाती है। वह विज्ञान और आध्यात्मिकता के संगम पर जोर देते हैं और विभिन्न देशों में अपनी शिक्षाएं फैलाने के लिए जाने जाते हैं। वे सामाजिक और वैश्विक मुद्दों पर भी अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं।
किताबें और अन्य योगदान:
सद्गुरु ने कई किताबें भी लिखी हैं, जैसे “इनर इंजीनियरिंग,” “डेथ: एन इनसाइड स्टोरी,” और “मिस्टिक्स मस्कुलरिटी,” जिनमें उन्होंने अपने जीवन के अनुभवों और आध्यात्मिक ज्ञान को साझा किया है। इसके अलावा, सद्गुरु सोशल मीडिया और यूट्यूब पर भी काफी सक्रिय रहते हैं, जहाँ वे लाखों लोगों तक अपनी बातें पहुंचाते हैं।
सद्गुरु की विशेषता यह है कि वे प्राचीन योग और ध्यान को आधुनिक जीवनशैली के साथ जोड़कर एक समृद्ध और शांतिपूर्ण जीवन जीने के तरीके सिखाते हैं।
आराधना, शक्ति, साधना, अध्यात्म और श्रध्दा का प्रतीक है नवरात्र
हर वर्ष आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तिथि तक शारदीय नवरात्र मनाया जाता है। इन नौ दिनों में जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा की नौ शक्ति रूपों की पूजा (Shardiya Navratri Puja Vidhi) की जाती है। साथ ही नवदुर्गा के निमित्त नौ दिनों तक व्रत-उपवास रखा जाता है।
नवरात्र का इतिहास:
नवरात्र का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है और इसे देवी शक्ति की पूजा और स्तुति के रूप में देखा जाता है। माना जाता है कि नवरात्र का त्योहार मुख्यतः देवी दुर्गा और उनके नौ रूपों की आराधना से संबंधित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई करने से पहले नवरात्र के नौ दिनों तक देवी दुर्गा की पूजा की थी और दसवें दिन रावण पर विजय प्राप्त की थी, जिसे दशहरा के रूप में मनाया जाता है।
इतिहास के अनुसार, नवरात्र की उत्पत्ति देवी-देवताओं के समय से मानी जाती है, जब देवी दुर्गा ने महिषासुर नामक असुर का वध किया था। यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
नवरात्र का महत्व:
- धार्मिक महत्व: नवरात्र में शक्ति की देवी की पूजा होती है। लोग इस दौरान उपवास रखते हैं, व्रत करते हैं और धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते हैं। इसे बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में देखा जाता है।
- आध्यात्मिक महत्व: इस दौरान लोग अपने भीतर की नकारात्मकता और दोषों को दूर करने का प्रयास करते हैं और आत्मा की शुद्धि के लिए ध्यान, योग और पूजा करते हैं।
- सांस्कृतिक महत्व: भारत के विभिन्न राज्यों में नवरात्र को अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। बंगाल में दुर्गा पूजा के रूप में, गुजरात में गरबा और डांडिया के रूप में, जबकि उत्तर भारत में रामलीला और देवी की स्तुति के रूप में। यह विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं को जोड़ने वाला त्योहार है।
वैदिक साहित्य में नवरात्र:
वैदिक साहित्य में नवरात्र को शक्ति उपासना और देवी पूजा से जोड़ा गया है। ऋग्वेद और अथर्ववेद जैसे प्राचीन ग्रंथों में देवी की स्तुति और शक्ति की आराधना के अनेक मंत्र और स्तोत्र मिलते हैं। वेदों में शक्ति को सृजन और संहार की देवी के रूप में देखा गया है। इसके अलावा, मार्कंडेय पुराण में दुर्गा सप्तशती के रूप में देवी के महात्म्य और शक्ति की पूजा का विस्तृत वर्णन है।
- देवी सूक्त (ऋग्वेद): यह वैदिक स्तोत्र देवी शक्ति की महिमा का गुणगान करता है और इसे नवरात्र के समय पढ़ा जाता है।
- दुर्गा सप्तशती: इसे मार्कंडेय पुराण का हिस्सा माना जाता है, और इसमें देवी दुर्गा के महात्म्य और उनके विभिन्न रूपों की आराधना का वर्णन है। नवरात्र के दिनों में यह ग्रंथ विशेष रूप से पढ़ा जाता है।
03 अक्टूबर 2024- मां शैलपुत्री की पूजा
04 अक्टूबर 2024- मां ब्रह्मचारिणी की पूजा
05 अक्टूबर 2024- मां चंद्रघंटा की पूज
06 अक्टूबर 2024- मां कूष्मांडा की पूजा
07 अक्टूबर 2024- मां स्कंदमाता की पूजा
08 अक्टूबर 2024- मां कात्यायनी की पूजा
09 अक्टूबर 2024- मां कालरात्रि की पूजा
10 अक्टूबर 2024- मां सिद्धिदात्री की पूजा
11 अक्टूबर 2024- मां महागौरी की पूजा
12 अक्टूबर 2024- विजयदशमी (दशहरा)