Thursday, January 16, 2025
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मौलिक और श्रेष्ठ लेखन को मिलते हैं पाठक

पुराने समय से ही साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता रहा है। यह सत्य भी है , समाज जैसा होगा उसका प्रतिबिंब भी वैसा ही होगा। एक समय था जब लिपि का प्रचलन नहीं था तब भावों और अंतरात्मा की आवाज़ को मौखिक गा कर या सुना कर बताया जाता था। लिपि का चलन हुआ तो मुद्रण का आविष्कार नहीं होने से रचनाएं कलम दवात से कागज, ताड़ पत्र, भोज पत्र,कपड़े आदि पर लिखी जाती थी। आज भी उस समय के हज़ारों हस्तलिखित ग्रंथ हमारी अमूल्य धरोहर हैं। अनेक प्राचीन कालजई साहित्यकारों की रचनाएं उनके कई सालों बाद प्रकाशित हुई, जब मुद्रण प्रेस का आविष्कार हुआ।
कालजई अनेक साहित्यकारों का सृजन सदियों से रचनाकारों के लिए प्रेरणा श्रोत बना हुआ है। इसी प्रमुख वजह उनका मौलिक और श्रेष्ठ लेखन ही है। उस समय के साहित्यकारों ने लेखन को ही प्रधानता दी। उन्हें कोई सराहेगा या कोई पुरस्कार मिलेगा ऐसी कोई कल्पना भी उनके दिमाग में नहीं होती थी। समय रहते जब उनका साहित्य पढ़ा गया तो उसकी महत्ता प्रतिपादित हुई। अनेक कहानियां और उपन्यास फिल्मों का विषय बने और उन पर फिल्में बनाई गई। उनके साहित्य पर हज़ारों लोगों ने शोध कर अपने प्रबंध लिखे।
जिन स्थितियों में उनका साहित्य लिखा गया वे आज से सर्वथा भिन्न थी। आज की तरह लिखने की सुविधाएं नहीं थी, प्रचार – प्रसार के साधन नहीं थे, न्यूंतन सुविधाओं में सब कुछ हाथ से लिखना कितना कठिन रहा होगा, इसकी केवल कल्पना ही की जा सकती है। फिर भी वे पीछे नहीं हटे, डटे रहे और अंतरात्मा की आवाज़ से लिखते रहे। उस समय जब की दरबारी साहित्य ज्यादा लिखा गया तो भी सामान्य जन के लिए भी लिखा जाता था। समय के साथ  – साथ लेखन का स्वरूप और दिशा बदलती रही। मध्यकाल का अधिकांश साहित्य भक्ति धारा से प्रभावित रहा। अष्ठछाप कवियों का साहित्य आज तक प्रसिद्ध है। देश की आज़ादी की लड़ाई में देश भक्ति को जगाने वाले साहित्य का सृजन हुआ।देशभक्ति और शोर्यपूर्ण रचनाओं ने आजादी के आंदोलन में चिंगारी का काम किया। लोगों को उद्वेलित कर आजादी के आंदोलन से जोड़ा।
 एक अर्थ यह भी सामने आता है कि  सृजन अगर अर्थपूर्ण न हो ऐसे लिखने का कोई मतलब नहीं रह जाता। जो भी लिखा जाए उसका उद्देश्य अवश्य होना चाहिए और वह पाठकों  को मनोरंजन के साथ शिक्षित और जागरूक करने की क्षमता रखता हो। ऐसा वही सृजन कर सकता है जो मौलिक , श्रेष्ठ और उद्देश्य परक होगा।
 साहित्य आज भी खूब लिखा जा रहा है, पुस्तकें प्रकाशित हो रही हैं , साहित्यकारों की कृतियों को पुरस्कृत भी किया जा रहा है। बावजूद इसके साहित्य का क्षेत्र अनेक चुनौतियों से जूझ रहा है। सबसे बड़ी चुनौती तो लिखे गए साहित्य के लिए पाठकों की कमी होना है। इंटरनेट के युग में  पुस्तक को पढ़ने वाले पाठक बहुत कम रह गए हैं। आज तकनीक के युग में कंप्यूटर या मोबाइल पर ई – पुस्तकें और कई ऐप्स पर पुस्तकों के सार संक्षेप की ऑडियो उपलब्ध हैं। पुस्तक पढ़ने में काफी समय लगने के झंझट से मुक्ति और बहुत कम समय में पढ़ने की सुविधा। अपनी रुचि के अनुसार किसी भी पुस्तक का सार ओडियो से 15 – 20 मिनिट में सुना और समझा जा सकता है। विद्वान भी आज इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि स्मार्ट राइडिंग बेहतर विकल्प है। यह कहना पूरी तरह उचित नहीं की पुस्तकें पढ़ी नहीं जाती हैं, उनको पढ़ने का माध्यम बदल गया है। हां, इसका असर पुस्तकों की बिक्री पर जरूर हुआ है।
एक समस्या मौलिक लेखन को लेकर है। रातों रात प्रसिद्धि पाने की चाह में मौलिक लेखन पर नकल की परत चढ़ती जा रही है। एक रचना के भावों पर दूसरी रचना बना ली जाती है। लिखने का उद्देश्य तिरोहित हो कर प्रसिद्धि पाना हो गया है। ऐसा लोग भूल जाते हैं कि  जो कालजई लेखक हुए हैं वे अपने लेखन के बूते पर ही हुए हैं। बुलंदियों पर वही पहुंचेगा जिसका लेखन मौलिक होगा। ऐसा नहीं करने वाले स्वयं अपने आप में संतुष्टि महसूस कर सकते हैं, अपनी कोई पहचान नहीं बना सकते हैं।
पुरस्कार और सम्मान की बढ़ती चाह भी साहित्य के लिए किसी खतरे से कम नहीं है। आज कुछ रचना लिखने वाला भी अपने को साहित्यकार कहलाने का दंभ भरता नजर आता है और मन में पुरस्कार और सम्मान पाने की लालसा बलवती हो जाती है। जेबी संस्थाओं की भरमार है। आकर्षक  पुरस्कार देने वाली संस्थाएं कुकुर मुक्ता की तरह सोशल मीडिया पर जोरदार कारोबार कर रही हैं। साहित्यकारों की पुरस्कार पाने की लालसा से उनका आर्थिक हित खूब रहा है। मर्म को टटोल ने लिए एक बार ऐसी एक संस्था के कार्यकर्ता से फोन पर बात बात की तो कहने लगा आपको हमारी संस्था को कुछ डोनेशन देना होगा जिसे हम समाज सेवा में लगाते हैं। पूछा कितना डोनेशन होगा तो उत्तर मिला यही कोई 40 हजार। ऐसे पुरस्कार किस तरह के लेखन को बढ़ावा देंगे सोच सकते हैं। इस पुरस्कार की होड़ में मौलिक लेखन कहीं  पीछे छूट जाता है। ऐसे  साहित्यकार अपनी पहचान भी खड़ी नहीं कर पाते हैं। साहित्य के क्षेत्र में कई जगह लॉबिंग एक अलग समस्या है। असली साहित्यकार तो पंक्ति में पीछे खड़ा नजर आता है, जब की चापलूस किस्म के लोग येन केन प्रकार जुगाड कर कुछ ही समय में उनसे कहीं आगे निकलते नज़र आते हैं।
लेखक और प्रकाशक की अलग समस्या है।  असमर्थवान लेखक तो अपनी पुस्तक का प्रकाशन ही नहीं करवा सकता। हालांकि कुछ अकादमियों की सहायता योजना में चयनित हो कर अपनी कृति का प्रकाशन करने में सफता प्राप्त कर लेते हैं । इनकी संख्या भी सीमित होती हैं। प्रकाशक का दृष्टिकोण पूर्ण व्यवसायिक होने से आज स्वतंत्र रूप से पुस्तक प्रकाशित कराना भी टेडी खीर है। प्रकाशक  अपनी मजबूर बताता है, किताब छाप भी दें तो खरीददार नहीं मिलते। पुस्तक मेलों के आयोजन से कुछ पुस्तकें बिका जाए तो भी गनीमत है।
 ऐसे माहौल में राजस्थान सरकार ने प्रदेश में मौलिक लेखन को बढ़ावा देने के लिए इस वर्ष हिंदी दिवस से दस क्षेत्रों में हिंदी लेखन के किए 50 – 50 हजार रुपए के 10 पुरस्कार शुरू कर स्वागत योग्य पहल की है। इस कदम से निश्चित ही साहित्यकार मौलिक लेखन के लिए प्रेरित होंगे। इस निर्णय की विशेता यह भी है की हिंदी साहित्य के साथ – साथ हिंदी भाषा में लिखे गए अन्य साहित्य की धराओं को भी जोड़ा गया है। सरकार की ओर से अन्य क्षेत्रों के लेखकों को पहली बार मौका मिला है। यह विचार अन्य साहित्यिक संस्थाओं तक भी पहुंचे तो नए रास्ते खुलेंगे।
राजस्थान सहित सभी प्रांतीय सरकारों को पुस्तक क्रय नीति में भी संशोधन करने पर विचार करना होगा और पुस्तक क्रय करने के लिए संभाग और जिला स्तर के पुस्तकालयों को बजट आवंटित किया जा कर, केंद्रीय क्रय नीति को बदलना होगा। कई उदहारण हैं जब केंद्रीय स्तर पर किसी को उपकृत करने के लिए उसकी एक ही पुस्तक को बड़े पैमाने पर क्रय कर लिया जाता है, और सारा बजट इसी में खपा दिया जाता है। इन पुस्तकों को रखने की न तो पुस्तकालयों में जगह होती है और न ही इनके पाठक। पुस्तकालय प्रभारी भी अपना माथा पकड़ कर रह जाता है यह क्या हो रहा है। किसको जाहिर करे अपनी विवशता, मन मसोस कर रह जाता है।  इस नीति से स्तरीय लेखकों की पुस्तकें पाठकों को पढ़ने को उपलब्ध नहीं हो पाती तो वे भी कोसते नज़र आते हैं कैसा पुस्तकालय है, पुरानी पुस्तकों की भरमार है, नई पुस्तक उपलब्ध ही नहीं होती कभी भी।
आज साहित्य का क्षेत्र केवल हिंदी तक ही सीमित नहीं है वरन खगोल, अंतरिक्ष,  विज्ञान, मीडिया, पर्यटन, कला – संस्कृति, पर्यावरण, चिकित्सा – शिक्षा आदि कई क्षेत्रों में साहित्य लिखा जा रहा है। जो उन पाठकों की पहुंच से बाहर है जो पुस्तकें पढ़ते हैं। सरकारों को इस दिशा में भी गंभीरता से विचार करना होगा। साहित्य को बढ़ावा देने में कुछ समाचार पत्र अपनी भूमिका का निर्वाह बखूबी कर रहे हैं जब की कई समाचार पत्रों से साहित्य एक दम नदारद आता है। आवश्यकता है फिल्म,खेल , स्वास्थ्य आदि विषयों की तर्ज पर साहित्य के लिए भी सप्ताह में एक पेज सुरक्षित रखा जाए, जिस से ज्यादा से ज्यादा साहित्यकारों को अपनी रचनाओं के प्रकाशन का अवसर प्राप्त हो सकें। स्व रचित रचना होने का प्रमाण पत्र प्राप्त किया जा सकता है।
साहित्य के क्षेत्र में चुनौतियां होने के बावजूद भी मौलिक और श्रेष्ठ लेखन को पाठक भी नज़र अंदाज नहीं करते हैं। देखा गया है कि गंभीर पाठकों का एक नया वर्ग सेवा निवृत कार्मिकों का पैदा हो गया है, जो अपने समय को पुस्तकालयों से अच्छा साहित्य ला कर पढ़ने में  बिताते हैं। वे अच्छा साहित्य पढ़ना चाहते हैं जो उन्हें उपलब्ध नहीं होता।ईमानदारी से किए गए लेखन की प्रतिष्ठा आज भी जिंदा है। इस दिशा में काम होगा तो पाठक भी मिलेंगे और लेखक की पहचान भी अपने आप खड़ी होगी।
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( लेखक पिछले 44 वर्षों से विभिन्न विषयों के  लेखक और पत्रकार हैं । )

मृत्युञ्जय वीर भगतसिंह के जीवन के कुछ यादगार किस्से

भारतवर्ष के राष्ट्रीय इतिहास में वीरवर भगतसिंह का जीवन और बलिदान युग – युगान्तरों तक तथा कोटि – कोटि पुरुषों को सत्प्रेरणा देता रहेगा ।
आप किशोर अवस्था से ही क्रांतिकारी आन्दोलन के अत्यन्त सम्पर्क में थे । इसका कारण आपके परिवार की क्रांतिकारी परम्परायें थी । आपके पितामह सरदार अर्जुनसिंह जी जन्म से सिख होते हुए भी आर्यसमाज के सक्रिय कार्यकर्ता और प्रचारक थे । यह उस युग के लिए एक असाधारण बात थी । क्योंकि उस समय आर्यसमाज और सिक्खों में बड़ा विरोध था । अत : ऐसे समय जबकि प्रतिपक्षी के प्रति तीव्र घृणा और द्वेष की लहर बह रही हो , केवल इसलिए कि प्रतिपक्षी के समाज में राष्ट्रोद्धार की भावनायें दिखाई दे रही हैं । अपने ग्राम परिवार और प्रात्मीयों का विरोध सहन करते हुए भी उसका समर्थक बन जाना कैसे उत्कट साहस का कार्य था । इसका अनुमान सरलता से लगाया जा सकता है ।
  श्री अर्जुनसिंह जी कोई भी इस प्रकार का अवसर खाली न जाने देते थे जबकि सिख जनता पर आर्यसमाज के वैदिक सिद्धान्तों की सच्चाई का प्रभाव डाला जा सकता हो । इस विषय में आपका उत्साह किस प्रकार का था और आप में कहां तक वैदिक धर्म में श्रद्धा थी , उसका अनुमान निम्न घटना से लगाया जा सकता है ।
 एक बार विवाहोत्सव में सम्मिलित होने के लिए आपको अपने ग्राम से लगभग ६० मील दूरी पर जाना पड़ा । संयोगवश जब आप उत्सव में पहुंचे , ठीक उसी समय कोई पुरोहित सिख – आर्य समाज के सिद्धान्तों की , विशेषत : अमर ग्रंथ सत्यार्थप्रकाश की कटुलोचना कर रहा था । आपने तुरन्त ही उस पुरोहित को चुनोती दी कि वह जो सत्यार्थप्रकाश के उदाहरण उपस्थित कर रहा है , वे सत्यार्थप्रकाश में नहीं हैं और पुरोहित सत्यार्थप्रकाश को बदनाम करने के लिए कल्पित उदाहरण उपस्थित कर रहा है ।
उस पंजाबी ग्राम में और जाट सिख के मध्य में इस प्रकार की चुनौती देना साधारण काम नहीं था । पुरोहित ने अपनी पूरी शक्ति के साथ आपके कथन का विरोध किया और यह घोषणा की कि यदि सत्यार्थप्रकाश सामने लाया जाये तो सिद्ध कर दूंगा कि जो मैंने उदाहरण दिये हैं वे सत्यार्थ के हैं या नहीं ।
  इसमें कुछ सन्देह नहीं कि पुरोहित ने बहुत ही सुरक्षित मार्ग अपनाया था । क्योंकि उस पिछड़े हुए युग में पंजाब के इन ग्रामों में सत्यार्थप्रकाश तो दूर ही रहा , कोई भी पुस्तक नहीं मिलती थी । इस कारण सत्यार्थप्रकाश उपलब्ध नहीं हो सका और पुरोहित उसी भावना से विवाह कार्य सम्पन्न कराता रहा । अकस्मात् कुछ अन्य व्यक्तियों ने अनुभव किया कि अर्जुनसिंह जी दिखाई नहीं दे रहे । परन्तु इस बात पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया । क्योंकि यदि कोई व्यक्ति विवाद में हार जाता है तो उसका लोगों की आंखों से छिपना उसके लिए एक स्वाभाविक सी बात है । अत : उन लोगों ने कल्पना की कि यहीं किसी कोठरी में विश्राम कर रहे होंगे ।
 परन्तु दूसरे दिन प्रातः ही पुरोहित जी विपत्ति में पड़ गये । क्योंकि अर्जुनसिह जी रातों – रात साठ मील जाकर साठ मील वापिस लौटकर अपनी सत्यार्थप्रकाश की प्रति ले आये । साथ ही यह भी स्मरण रहे कि आप पहले दिन साठ मील यात्रा कर चुके थे । इतना होते हुए भी आप यह सहन न कर सके कि कोई आर्यसमाज के विरुद्ध मिथ्या प्रचार आपके सामने करे और फिर बच निकले । अन्त में पुरोहित ने क्षमा मांगी और अपना पिण्ड छुड़ाना चाहा । आप नित्य हवन किया करते थे । जहां जाते वहां पोटली में हवनकुण्ड और हवन सामग्री बांध ले जाते थे।
आपके तीन पुत्र हुए उनके नाम इस प्रकार हैं श्री किशनसिंह , श्री अजीतसिंह और श्री स्वर्ण सिंह । इन तीनों में ही अपने पिता जी की भांति क्रांति की भावनायें देदीप्यमान थीं । बीसवीं सदी के आरम्भ में इन तीनों भाइयों ने गर्म राजनीतिक दल का बीज वपन किया था । हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि अन्य प्रान्तों की अपेक्षा पञ्जाब में यह कार्य अत्यन्त दुष्कर था । क्योंकि एक तो पञ्जाब भारतीय फौजों में वीर भेजने का मुख्य केन्द्र था । अतः अंग्रेज सरकार यह किञ्चित् मात्र भी नहीं सहन कर सकती थी इतना होते हुए भी श्री किशनसिंह जी ने अपने दोनों भाइयों के साथ इस कठिन कार्य का बीड़ा उठाया और अन्य प्रान्तों की भांति इस प्रान्त में भी स्वराज्य की ज्वालाये उठने लगीं । ये ज्वालायें किसान वर्ग तक जा पहुंची । सारे पंजाब में यह स्थिति पैदा कर दी कि श्री अर्जुनसिंह जी के तीनों वीर पुत्रों को पंजाब सरकार ने पकड़ना आवश्यक समझा , इसके पश्चात् इन वीरों का जीवन कभी कारावास में , कभी गुप्तावस्था में व्यतीत होने लगा ।
 इन तीनों भाइयों में से श्री स्वर्णसिंह जी जेल की यातनामों के पश्चात् पूर्ण युवावस्था में ही इस संसार से चल बसे । उसके पश्चात् श्री अजीत सिंह जी सन् १९०८ में भारत से अचानक विदेश चले गये और वहां ३८ वर्ष तक घोर कठिनाइयों का सामना कर भारत माता की मुक्ति का काय करते रहे । अन्त में १९४६ में जबकि ब्रिटिस सरकार अपना बिस्तर गोल कर रही थी उसी समय बड़ी कठिनाइयों से आप भारत आ गये । किन्तु कुछ दिन पश्चात् १४ अगस्त १९४७ को जबकि अगले दिन भारत अपना स्वतन्त्रता दिवस मनाने का उपक्रम कर रहा था उस समय आप दूसरे लोक में चल दिए । इस प्रकार अब श्री किशनसिंह ही रह गये । आपका भी स्वर्गवास अभी कुछ दिन पूर्व ही हुआ है । आप में स्वदेश भक्ति कूट – कूटकर भरी हुई थी । आप मरते समय तक अपनी मातृभूमि के लिए चिन्तित थे ।
वीरवर भगतसिंह जी का जन्म आश्विन शुक्ला त्रयोदशी शनिवार सम्वत् १९०७ में लायलपुर जिले के बंगा नामक ग्राम में हुआ था जो पंजाब राज्य में स्थित है । आपके जन्म से पूर्व आपके पिता जी तथा चाचा दोनों माण्डले जेल के द्वीपान्तर वास में थे । जिस दिन आपका जन्म हुआ उसी दिन आपके पिता जी तथा चाचा भी बन्धन से मुक्त होकर आये । इसी कारण आपको ” भाग्य वाला ” कहते थे । आगे चलके आपका भगतसिंह नाम पड़ा । आपकी बाल्यावस्था दादी तथा माता जी की देखरेख में व्यतीत हुई । ये दोनों महिलायें धार्मिक थीं । अतः आप पर धर्म का पर्याप्त प्रभाव पड़ा । आपकी मेधा शक्ति बहुत अच्छी थी ।
आपने तीन वर्ष की अवस्था में गायत्री मन्त्र याद किया था । ५ वर्ष की अवस्था में आप स्कूल में पढ़ने चले गये । आपका यज्ञोपवीत संस्कार शास्त्रार्थ महारथी पं० लोकनाथ जी तर्कवाचस्पति द्वारा हुआ था । एक बार आपको अपने घर वालों के साथ लाहौर जाने का अवसर मिला । लाहौर में आपके पिता जी के परम मित्र लाला आनन्द किशोर जी यहां आये थे । लाला जी ने आपको बड़े प्रम से उठाकर अपने कन्धे पर रखा और थपकियां देते हुए पूछा- ” क्या करते हो ? ‘ आपने अपनी तोतली जबान में उत्तर दिया- ” मैं खेती करता हूं । ” लाला ने पूछा- “ तुम बेचते क्या हो ? ” आपने उत्तर दिया- “ मैं बन्दूक बेचता हूं । ” यह बातचीत इतनी प्यारी थी कि इनका स्मरण बड़े होने पर भी हुआ करता था । बचपन में आप बड़े खिलाड़ी थे । बचपन में ही आप क्रांति दल बनाकर अपने साथियों के साथ युद्ध करते थे ।
आपको वीरतापूर्ण खेलों में अधिक रुचि थी , बालकपन से आपको तलवार बन्दूकादि से बड़ा प्रेम था । एक बार अपने पिता के साथ खेत में चले गये । बालक भगतसिंह ने पिता से पूछा कि “ पिता जी ये लोग क्या कर रहे हैं ? ” पिता ने उत्तर दिया कि अन्न बो रहे हैं । इस पर आपने कहा कि अनाज तो बहुत उत्पन्न होता है , परन्तु तलवार , बन्दूकादि सब जगह नहीं होतीं । अतः ये तलवार आदि क्यों नहीं बोते ?
आगे शिक्षा पाने के लिए आपको पिता जी ने दयानन्द एंग्लो वैदिक विद्यालय ( डी० ए० वी० स्कूल ) में प्रवेश कराया । वैसे तो सिख परिवार के बालक प्रायः खालसा स्कूल में शिक्षा प्राप्त करते हैं क्योंकि उनका यह शिक्षणालय जातीय था । परन्तु सिख होते हुए भी आपका परिवार आर्यसमाज की ओर था अतः आपने अपने पुत्र को डी० ए० वी० स्कूल में ही भर्ती कराया । दयानन्द एंग्लो वैदिक विद्यालय में आपने नवीं कक्षा पास की ।
 इसी समय १९२१ में महात्मा गांधी ने असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ किया । सारे देश में सरकारी तथा सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों का बहिष्कार प्रारम्भ हुआ । इसलिए आप भी डी० ए० वी० कालेज छोड़ भारतीय विद्यालय में चले गए । उस समय उसके प्रबन्धकर्ता स्व० भाई परमानन्द जी थे । आपने भगतसिंह की परीक्षा लेकर एफ० ए० में प्रवेश कराया । सन् १९२२ में एफ० ए० की परीक्षा पास की , उसी समय आपका श्री सुखदेव तथा अन्यान्य क्रांतिकारियों से परिचय हुआ । उधर घरवालों ने आपके विवाह का आडम्बर रचा । जब इसकी सूचना आपको मिली तब आप अपना बिस्तर – बोरिया उठाकर लाहौर से अन्यत्र चले गये और पर्याप्त दिन के पश्चात् अपने आप पिता को पत्र लिखा जिसमें लिखा था कि ” मैं विवाह करना नहीं चाहता , इसी कारण मैंने घर छोड़ दिया है आप मेरी कोई चिन्ता न करें । मैं बहुत अच्छी अवस्था में हूं । “
लाहौर से श्री जयचन्द्र विद्यालंकार से पत्र लेकर आप गणेशङ्कर विद्यार्थी के पास कानपुर गये । वहां प्रताप प्रेस में कार्य करने लगे । वहां अपना नाम बलवान् रखा था । इसी नाम से आप लेखादि लिखा करते थे । उधर आपके घरवालों ने घर में हाहाकार मचा रखा था । आपकी दादी जी को बेहोशी के दौरे आने लगे थे । उधर आपका क्रांतिकारियों से पर्याप्त परिचय हो गया था । आप पंजाबी प्रान्त में पैदा होने पर भी हिन्दी से बहुत प्रेम करते थे । आप किशोर अवस्था से ही हिन्दी की पुस्तक पढ़ लिख लेते थे । इस प्रकार धीरे – धीरे अभ्यास करके साहित्यकार भी बन गये थे।
 एक बार हिन्दी – साहित्य सम्मेलन ने किसी एक विषय पर सर्वोत्तम निबन्ध लिखने के लिए ५० रु ० पुरस्कार की घोषणा की । उसमें तीन व्यक्तियों का नम्बर पहला आया , क्योंकि तीनों के निबन्ध एक ही कोटि के माने गये । उस में श्री भगतसिंह और यशःपाल एवं अन्य कोई था । इससे आपको हिन्दी साहित्य पर कितना अधिकार था , यह मालूम होता है ।
  इसी साल गङ्गा और यमुना में भयङ्कर बाढ़ आई थी । संयुक्त प्रान्त के कई स्थानों में गांव के गांव इस भयङ्कर बाढ़ में नष्ट – भ्रष्ट हो गये । श्री बटुकेश्वरदत्त उन दिनों कानपुर में ही रहते थे । बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए श्री दत्त जी ने एक समिति स्थापित की , जिसके सरदार भगसिंह भी सदस्य थे । बड़े उत्साह और लगन से उनकी सेवा की । भगतसिंह और दत्त जी के एक साथ अधिक दिन काम करने से आपका घनिष्ठ सम्बन्ध हो गया । दोनों के कार्य का कानपुर जिले पर अमिट प्रभाव पड़ा और आपको बड़ी श्रद्धाभवित से देखने लगे । भगतसिंह को एक स्कूल का प्राध्यापक नियुक्त किया । इस समय आपका पता आपके पिता जी को मिला । आपके मित्र को तार देकर कहा कि भगतसिंह को कह दो कि माता जी अत्यन्त बीमार हैं । माता जी का समाचार सुनते ही आप पंजाब की ओर चल दिये और चलते समय तार कर दिया कि मैं आ रहा हूं ।
लायलपुर में आपने एक भाषण दिया । जिसमें अंग्रेज को मारने वाले गोपीनाथ की सराहना की । इस पर पुलिस ने आप पर अभियोग चलाया । आपके पिता को भी यही इच्छा थी कि भगतसिह जेल का कुछ अनुभव करे । वह भी इच्छा पूर्ण न हो सकी । फिर आप लाहौर चले गये और लाहौर से अमृतसर । आपने लाहौर में ‘ अकाली ” नामक समाचार पत्र के कार्यालय में कार्य प्रारम्भ किया । वहां पर पर्याप्त समय तक सम्पादक का काम करते रहे । परन्तु किसी कारणवश लाहौर जाना पड़ा । वहां पर पुलिस आपकी ताक में थी ही अतः वहां प्रापको पकड़ लिया और छः हजार की जमानत पर छोड़ दिया गया ।
सन् १९२७ में आपने अपने पिता की आज्ञा से लाहौर में विशुद्ध दूध पहुंचाने के लिए एक कारखाना खोला । यह कारखाना कुछ दिन तो अच्छा चला परन्तु आपके जीवन का उद्देश्य दूध बेचना न था । अतः आप लापता हो गये । जब आप घर आये तो पिता जी ने दो सोटी मार दी । इसका फल यह हुआ कि वह दूध का कारखाना समाप्त हो गया ।
  लाहौर षड्यन्त्र वाले मुकद्दमे में एक दिन सरकारी वकील के किसी कथन पर भगतसिंह को हंसी आगई । इस सरकारी वकील ने अदालत से शिकायत की कि भगतसिंह हंसकर अदालत की तौहीन कर रहा है । वीरवर ने हंसकर उत्तर दिया- ” मुझे तो ईश्वर ने हंसने के लिए ही पदा किया है । मैं तमाम जिन्दगी हंसता रहूंगा , हंसता रहूंगा । आज अदालत में हंस रहा हूं और कल ईश्वर ने चाहा तो फांसी के तख्ते पर भी हंसूगा । वकील साहब ! इस समय तो मेरे हंसने की शिकायत कर रहे हैं , परन्तु जब मैं फांसी के तख्ते पर हंसूगा तब किस अदालत से शिकायत करेंगे ?
३० अक्टूबर १९२८ को लाहौर में साईमन कमीशन आने वाला था । भारत के अपमान का जीवन्त प्रतीक साईमन कमीशन आज सरदार कर्तारसिंह को लाश पर पांव रखकर पंजाब के निवासियों से यह पूछने आया था कि क्या सचमुच स्वराज्य चाहते हैं ? और क्या स्वराज्य के योग्य भी हैं । इस पर लाहौर की जनता ने यह निश्चय किया था कि जिस प्रकार देश के अन्य भागों ने बहिष्कार किया है उसी प्रकार यहां किया जायेगा ।
इस पर अत्याचारी सरकार ने इसको कुचलने के लिए धारा १४४ की घोषणा कर दी । यह समाचार प्रत्येक मनुष्य में फैल गया कि वह भी ” जलियांवाला बाग बन जावेगा । बड़े बच्चों को धमका रहे थे कि आज बाहर न निकलना । परन्तु युवकों का हृदय उछल रहा था कि कब जलूस निकले और हम उसमें सम्मिलित होवें । शहर के चारों ओर पुलिस ही पुलिस दिखाई दे रही थी । कायर देखते है तो कहते हैं कि यह पुलिस हमारे शरीर को मार देगी , मनुष्य परन्तु क्या वह हृदय के भावों को भी मार देगी ? ठीक समय पर जलूस निकला । चारों ओर ही मनुष्य दिखाई देने लगे । साथ ही पंजाब के सबसे अधिक सम्माननीय लाला लाजपतराय जी इस जलूस का नेतृत्व कर रहे थे और सबसे अगलो पंक्ति में थे ।
इस वयोवृद्ध मूर्ति को देखकर सभी श्रद्धा से सिर झुका लेते थे ।आपको ‘ स्वाधीनता ” शब्द पर जेल जाना पड़ा था तभी आपने सरकार से वीरतापूर्वक लोहा लिया था । जलूस स्टेशन पर पहुंचा । पंजाब की राजधानी उनके आगमन को किस दृष्टि से देखती है ? ” साईमन गो बैक ” और ” वन्दे मातरम् ‘ की ध्वनि से आकाश गूंज उठा । सामने पुलिस का मोर्चा था , परन्तु पुलिस को कोई परवाह न करते हुए आगे चलते ही रहे ।
अकस्मात् पुलिस ने आगे बढ़कर लाठी चार्ज कर दिया । उस में एक गोरी कौम वाले अधिकारी ने आकर लाला लाजपत राय जी पर डण्डे बरसाने प्रारम्भ कर दिए । अन्य दर्शक चकित हुए । लाठी पड़ता रही परन्तु पीछे नहीं हटे , छाती तानकर वहीं खड़े । इस पर नवयुवकों ने आगे बढ़कर यह वार अपने ऊपर लिया । कुछ देर पश्चात् यह अधिकारी वहां से चल दिया । चलते समय लाला जी ने पूछा – आपका क्या नाम है ? उसने मुंह को पिचकाया और घृणा पैदा कर कुछ न कहा । उसी समय एक नवयुवक ने मन ही मन में यह सोचा कि ‘ मत बता तू नाम अपना ? लेकिन एक दिन तेरा नाम गली गली में मारा मारा फिरेगा । उस नवयुवक की आंखें अङ्गारे जैसी लाल हो रही थीं । उसका सारा शरीर भावावेश में कांप रहा था । उसी दिन सायंकाल एक विराट् सभा में भाषण देते हुए लाला जी ने कहा था कि ‘ मेरे ऊपर की गई चोट ब्रिटिश साम्राज्य के कफन के लिए कील सिद्ध होगी ।
” वह युवक भी उसी सभा में विद्यमान था और यह विचार रहा था कि क्या सचमुच ही इस देवता का शाप अवश्य ही सफल होगा ? इस काण्ड के केवल १० दिन बाद ही १७ नवम्बर १९२८ को लाला जी उन घातक चोटों के कारण चल बसे ।
इधर लाला जी की मृत्यु पर शोकसभायें होने लगीं । एक सभा में चितरञ्जनदास जी की धर्म पत्नी माता वसन्ती देवी ने कहा ‘ मैं जब यह सोचती हूं कि किसके हिंसक हाथों ने स्पर्श करने का साहस किया था एक ऐसे व्यक्ति के शरीर को , जो इतना वृद्ध , इतना आदरणीय , भारत माता के तीस कोटि नर – नारियों को इतना प्यारा था तब मैं आत्मापमान के भावों से उत्तेजित होकर कांपने लगती हूं । क्या देश का यौवन और मनुष्यत्व आज जीवित है ? क्या वह यौवन और मनुष्यत्व का भाव इस कुत्सा को उसकी लज्जा और ग्लानि अनुभव नहीं करता है ? मैं भारतभूमि की एक अबला हूं । इस प्रश्न का उत्तर चाहती हूं । अतः युवक समाज आगे आकर उत्तर दे । “
भारत युवक – समाज ने सचमुच ही इसका उत्तर दिया । इस भीषण काण्ड के ठीक तीन मास पश्चात् १७ दिसम्बर , सन् १९२८ को उक्त अंग्रेज अधिकारी मि० साण्डर्स संध्या के लगभग ४ बजे ज्यों ही अपने दफ्तर से मोटर साइकल पर चला त्यों ही सामने से किसी के रिवाल्वर की गोली उसके सीने में आकर लगी । वह नीच घायल होकर गिर पड़ा । पड़ते ही दो गोली और आकर लगीं । काम समाप्त हो गया । ये तीनों वीर मारकर वापिस आ गए । इन तीनों वीरों के नाम यह थे श्री वीरवर भगतसिंह जी , श्री राजगुरु जी , श्री चन्द्रशेखर आजाद । तीनों साण्डर्स को यमलोक पहुंचाकर वहां से डी० ए० वी० कालेज के भोजनालय में गये । वहां पर्याप्त समय रहकर वहां से चल दि
दूसरे दिन लाहौर में सभी प्रमुख स्थानों पर लाल रङ्ग के छपे हुए इस्तिहार लगे हुए जिनमें लिखा हुआ था ” साण्डर्स मारा गया । लाला जी की मृत्यु का बदला ले लिया गया । “
राष्ट्रीय अपमान के इस बदले से राष्ट्र के हृदय में एक गौरव उत्पन्न हुआ । साण्डर्स के मारे जाने पर सरकारी अधिकारियों में बड़ी हल – चल मच गई । अपराधियों की शीघ्रातिशीघ्र खोज करने का कठिन आदेश दिया । पुलिस ने तत्काल ही लाहौर से बाहर जाने वाली सभी सड़कों पर अपना राज्य जमा लिया और स्टेशन पर भी विशेष गुप्तचर नियुक्त कर दिये ।
लाहौर के बड़े स्टेशन पर एक नौजवान सरकारी अधिकारी एक युवती के साथ दीख पड़ा । उसके साथ में टिफिन कैरियर लिए एक खानसामा भी था । उसकी चपरास पर उक्त अफसर का नाम लिखा हुआ था । थोड़ी देर में ट्रेन आई और वह अफसर कुलियों को इनाम देता हुआ प्रथम श्रेणी के डिब्बे में उस युवती के साथ जा बैठा । खानसामा भी सर्वेष्ट क्लास में बैठ गया । ट्रेन देहली की ओर चल पड़ी । वहां पचासों खुफिया आदमी विद्यमान थे और अनेक तो ऐसे थे जो भगतसिंह जी के कार्यों पर दृष्टि रखते आपके साथ रहे थे । फिर भी वे यह न जान सके कि यह अफसर और कोई नहीं वही वीरवर भगतसिंह है जिसकी खोज में हम मारे – मारे फिरते हैं और यह युवती वही क्रांतिकारिणी समिति की सदस्या थी जिसका शुभ नाम दुर्गावती था और जो खानसामा था वह राजगुरु था ।
इस प्रकार ये बचकर निकल आये । इधर आकर आपने पर्याप्त क्रांति के कार्य किये । कई जगह अपनी विचारधारा के केन्द्र बनाये । आपने कलकत्ता के कार्नवालिस स्ट्रीट आर्यसमाज में कुछ समय निवास किया । वहां क्रांति का कार्य करते थे । जब आप वहां से आये तब तुलसीराम चपड़ासी को अपनी थाली , कटोरी देकर आये और कहा कि कोई देशभक्त आवे तो उसको इनमें भोजन करा देना । इस प्रकार कार्य चल रहा था । इधर केन्द्रीय विधान सभा में ” ट्रेड डिस्ट्रिव्यूट ” का बिल पास हो रहा था । यह जनता के लिए अच्छा न था । इससे जनता अत्यधिक असन्तुष्ट थी । अतः आपने इसका विरोध करने की ठानी , विरोध इस प्रकार का कि जब यह बिल पास हो तब सभा भवन में बम्ब फेंका जाये । इस कार्य के लिए आप और अपने अनन्य मित्र बटुकेश्वरदत्त को चुना ।
९ अप्रैल १९२९ को इस बिल पर मत पड़ने वाले थे । उसी दिन ये दोनों वहां जा धमके । ठीक ग्यारह बजे अध्यक्ष ने घण्टी बजाकर दो विभागों में बांटने को कहा , यह स्मरण रहे कि यह बिल अध्यक्ष महोदय ने पूर्व भी ठुकराया था । परन्तु कौंसिल आफ स्टेट ने इसे फिर विचारार्थ भेजा था । श्रीयुत पटेल ने बड़ी मर्म वेदना के साथ यह देखकर कि विरोधियों की संख्या अधिक है अत: अपने सधे हुए कण्ठ से कहा “ यह बिल पास ” इतने में एक बम का धमाका हुआ । सभास्थ जनता घबरा उठी । इतने में दूसरा बम भी आ गया , सभा भवन धुएं से भर गया । इस आवाज के होते ही सदस्य वर्ग में भगदड़ मच गई । अध्यक्ष के पास बैठे हुए सर जान साईमन पल भर में छिप गये । होम मेम्बर सर जेम्स केसर कुर्सियों के नीचे छिपे । केवल दो सदस्य अपने स्थान पर स्थित थे । पं० मोतीलाल नेहरू और पं० मदन मोहन मालवीय ।
 जब धुआं कुछ साफ हुआ तो लोगों ने देखा कि महिलाओं की गैलरी के पास यूरोपियन वेशभूषा से सुसज्जित दो युवक खड़े हुए मुस्करा रहे थे । जब सभा में कुछ शान्ति हुई तब दोनों ही युवकों ने लाल पर्चे वितरित करने प्रारम्भ कर दिए । जिसका प्रथम वाक्य था ” बहरों को सुनाने के लिए जोर से बोलना पड़ता है ” और इसके नीचे “ हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ” के अध्यक्ष के हस्ता क्षर थे । पर्चे वितरण के पश्चात् यदि आप भागना चाहते तो अवश्य भाग सकते थे । परन्तु इन दोनों का कार्यक्रम और ही था । अतः वहीं खड़े रहे । कुछ देर बाद विधान सभा को घेर लिया गया परन्तु इन दो युवकों के पास कौन जावे । देखा कि ये हम से डरते हैं , इन दोनों ने भरे हुये रिवाल्वर अपने पास में से निकाल कर फैंक दिए । फिर क्या था ? पुलिस वाले इन वीर युवकों को वश में कर ले गये । इन युवकों ने चलते समय ‘ इन्कलाब जिन्दाबाद ” ” साईमन का नाश हो ” इन नारों से आकाश को गुञ्जा दिया । इस समय इन युवकों के मुख पर कोई भय न था । एक स्वाभाविक मुस्कराहट के साथ अपने कार्य को सुचारु रूप से कर सकने पर सन्तोष प्रकट कर रहे थे ।
 इसके पश्चात् आप दोनों को देहली पुलिस चौकी में ले जाया गया । वहां आप दोनों को अलग अलग ही रखा गया । कुछ देर बाद सी० आई० डी० विभाग का एक अधिकारी आया और कहा ” तुम्हारे जैसे लड़कों को तो मैं मिनटों में ठीक कर देता है । अपने आपको तुम क्या समझते हो ? तुम्हारे साथियों ने सब कुछ स्वीकार कर लिया । यदि भला चाहते हो तो तुम भी बतायो नहीं तो इतना कहकर आपको वश में करना चाहा , परन्तु दाल न गली ।
नौकरशाही इन वीरों को अपने मार्ग से विचलित न कर सकी । इन पर मुकदमा चलाया गया । ७ मई से मुकदमा चला , जो १२ जून सन् १९२९ को सेशन में जाकर समाप्त होगया । वीरवर भगत सिंह और बटुकेश्वरदत्त ने एक संयुक्त वक्तव्य दिया — ” कांतिकारी दल का उद्देश्य देश में मजदूरों तथा किसानों का समाजवादी राज्य स्थापित करना है । क्रांतिकारी समिति जनता की भलाई के लिए लड़ रही है । ” वीरवर भगतसिंह और बटुकेश्वरदत्त ने जो वक्तव्य अदालत में दिया वह बहुत ही विद्वत्ता पूर्ण था । इससे पूर्व किसी भी क्रांतिकारी ने अदालत में खड़े होकर ऐसा वक्तव्य नहीं दिया ।
२३ अक्तुबर सन् १९२८ को जो बम दशहरे के मेले पर फटा था , उससे दस तो यमलोक पहुंच गये और ३० घायल हो गये । नौकरशाही ने इस मामले की छानबीन करनी शुरू की । जिसके फल स्वरूप पता लगा कि मि० साण्डर्स की हत्या करने में वीरवर भगतसिंह का भी हाथ था । इस सम्बन्ध में १६ व्यक्तियों पर केस चला । बाकी ने अनशन किया । अनशन में यतीन्द्रनाथ शहीद हो गये । इससे मुकदमे में काफी समय लग गया । इधर जनता में प्रचार हो गया । और भी जागृति हो गई । सरकार ने एक अडिनेन्स गजट में प्रकाशित किया । मुकदमा मैजिस्ट्रेट से हटकर तीन जजों के एक ट्रिब्यूनल के सामने आया । इन तीन जजों की अदालत को यह अधिकार दिया गया कि अभियुक्तों की अनुपस्थिति में भी उन पर मुकदमा चलाया जाये ।
ट्रिब्यूनल ने इस मुकदमे का फैसला ७ अक्तू बर सन् १९३० को इस प्रकार सुनाया- “ वीरवर भगतसिंह , शिवराम राजगुरु और सुखदेव को फांसी । विजयकुमारसिंह , किशोरीलाल , शिव वर्मा , गयाप्रसाद , जयदेव और और कमलनाथ त्रिवेदी को आजन्म कालापानी की सजा । कुन्दनलाल को ७ साल और प्रेमदत्त को ३ साल की कैद । “
वीरवर भगतसिंह की फांसी के समाचारों पर देश के कोने – कोने से रोष प्रकट किया गया । हड़तालें हुई । बम्बई में तो ट्रामें तक रुक गईं । ११ फरवरी सन् १९३१ को प्रीवी कौंसिल में इस मुकदमे की अपील की , किन्तु वह रद कर दी गई । वीरवर भगतसिंह , शिवराम राजगुरु तथा सुखदेव फांसी घर में बन्द थे । नौकरशाही सरकार के जज महोदयों ने इन लोगों को फांसी की सजा देना ही ठीक समझा , लेकिन सारा देश इस सजा के विपरीत था । यहां तक कि कांग्रेस वाले भी जनता की सद्भावनाओं को साथ लेकर देश के इन पुजारियों को फन्दे से छुड़ाने का प्रयत्न करने लगे । महात्मा गांधी को वायसराय ने कहा कि मैं सरकार को इस सम्बन्ध में लिखुंगा और कराची कांग्रेस अधिवेशन हो लेने तक फांसी रुकवा दूंगा । इस पर महात्मा गांधी ने कहा- यदि नौजवानों को फांसी पर लटकाना ही है तो कांग्रेस अधिवेशन के बाद ऐसा करने की बजाय पहले ऐसा करना ठीक होगा । इससे लोगों को पता चल जायेगा कि वस्तुतः उनको स्थिति क्या है और लोगों के दिलों में झूठी आशाएं न बन्धेगी । पं . नेहरू ने अपनी आत्म – कथा में लिखा है
 ” तारीख २३ मार्च सन् १९३१ को सायंकाल इन तीनों को फांसी दे दी गई । यों तो कायदा है सवेरे फांसी देने का किन्तु इनके लिए इस नियम को भङ्ग किया गया । उनकी लाशें सम्बन्धियों को नहीं दी गई तथा उनको बड़ी बेपरवाही से मिट्टी का तेल डालकर जला दिया गया । उनके फूल अनाथों के फूल की भांति सतलुज में डलवा दिए गये । सारा देश आंखों की पंखुड़ियां बिछाकर जिनका स्वागत करने को तैयार था तथा जिनके ” जिन्दाबाद ‘ के नारे लगाते – लगाते मुल्क का गला बैठ गया था , उन पुरुषसिंहों को साम्राज्यवाद ने इस प्रकार हत्या कर डाली । कितनी बड़ी गुस्ताखी और कितना बड़ा अपराध था ? सरकार जनमत की कितनी परवाह करती है ? यह इसी बात से कांग्रेस के नेताओं पर जाहिर हो जानी चाहिए थी , किन्तु …. ? ?
पाठकों को आश्चर्य होगा कि महीनों फांसीधर में रहने के बाद भी वीरवर भगतसिंह का दिमाग और हृदय कितना स्वच्छ और साफ था । उन्होंने अपने छोटे भाई कुलतारसिंह के नाम अन्तिम पत्र लिखा था
” अजीज कुलतार !
आज तुम्हारी आंखों में आंसू देखकर बहुत रंज हुआ । आज तुम्हारी बातों में बहुत दर्द था । तुम्हारे आंसू तो बर्दास्त नहीं होते ।
 खबरदार ! परिश्रम से काम लेना , शिक्षा प्राप्त करना और सेहत का ध्यान रखना । हौसला रखना । और क्या कहूं —-
      उसे फिक्र है हरदम नया तजें जफर क्या हैं
      हमें यह शौक देखें सितम की इन्तहा क्या है
      घर से क्यों खपा रहे , खर्च का क्यों गिला करें ।
      सारा जहां अदू साथी आओ मुकाबला करें ।
      कोई दम का महमां हूँ , ऐ अटले महफिल ,
      चिरागे सेहर हूं , बुझा चाहता हूं ।
      मेरी हवा में रहेगी ख्याल की बिजली ,
      यह मुश्ते खाक है , फानी रहे या न रहे ।
अच्छा आज्ञा ? खुश रहो अहले वतन ! हम तो सफर करते हैं । ” हौंसले से रहना । नमस्ते ।
                                         तुम्हारा भाई ।
आपके फांसी के समय जवाहरलाल नेहरू ने  कहा था———-
मैं भगतसिंह तथा उनके साथियों के बारे में अन्तिम दिनों में मौन धारण किये रहा , क्योंकि मैं डरता था कि कहीं मेरे किसी शब्द से फांसी की सजा रद्द होने की सम्भावना जाती न रहे । मैं चुप रहा , यद्यपि मेरी इच्छा होती थी कि मैं उबल पडूं । हम सब मिलकर उन्हें बचा न सके । वे हमारे बहुत प्रिय थे , उनका महान् त्याग और साहस भारत के नौजवानों के लिए एक प्रेरणा की चीज थी और है । हमारी इस असहायता पर देश में दुःख प्रकट किया जायेगा । किन्तु साथ ही हमारे देश को स्वर्गीय आत्मा पर गर्व है और “ जब इङ्गलैंड हमसे समझौते की बात करे तो हम भगतसिह की लाश को भूल न जायेंगे ।
   अन्य कुछ विशेष घटनाएं 
 पंजाब में घी अधिक मात्रा में खाने का प्रचलन है । भगतसिंह को पंजाब निवासी होने के कारण घी , दूध का शौक किसी से कम नहीं था । लाहौर के अनारकली बाजार में काल्लू दूध , दही वाले के यहां किशनसिंह का उधार हिसाब चलता था । इस कारण भगतसिंह जी वहां जाकर दूध , घी खाते थे और साथियों को भी खिलाते थे । इसी प्रकार आप भोजन में भी किसी से कम न थे । यदि राजाराम शास्त्री होटल में दिखाई दे तो आप अत्यावश्यक कार्य को छोड़कर भी भूख न होने पर भी उनके कटोरे में से समस्त घी निकालकर पी जाते थे । शास्त्री जी हाथ फैलाये ” देखो रे ! देखो रे ! क्या कर रहा है , अरे ! देखो इस जाट को । ” सहायता के लिए दुहाई देते रह जाते ।
आपके पिता जी आपका विवाह करना चाहते थे । आपका विचार विवाह न करने के कारण एक दिन आपने कहा कि मुझे पढ़ने लिखने का शौक है । इसलिए लड़की भी पढ़ी लिखी होनी चाहिए । इस पर आपके पिता जी उबल पड़े – पढ़ी लिखी लड़की में कुछ और बढ़ जाता है क्या ? पढ़ी लिखी औरत से पैदा बच्चे को क्या पढ़ाना नहीं पड़ता ? भगतसिंह और बटुकेश्वरदत्त के आत्मसमर्पण कर देने पर सशस्त्र पुलिस ने आपको बड़े साज वाज से पकड़कर और बहुत सावधानी से उन्हें मोटर में बिठाकर नई दिल्ली के थाने की ओर ले गई ।
आपकी मोटर सड़क पर एक तांगे के पास गई । इस तांगे में क्रांतिकारी भगवतीचरण , भाभी दुर्गा देवी और सुशीलादेवी जी विद्यमान थीं और सुखदेव जी तांगे का सहारा लिए साईकल पर चल रहे थे । तांगे के पास से भरी मोटरें गुजरने पर इन लोगों ने एक दूसरे को पहचाना परन्तु व्यवहार न पहचानने का किया । यह मन का कितना बड़ा संयम था । भगतसिंह को उस समय मृत्यु के हाथों से लौटा लेने के लिए अपने प्राण दे देना अधिक सरल था । संयम और अनुशासन का ऐसा उदाहरण मिलना कठिन । परन्तु श्रीमती दुर्गादेवी की गोद में बैठा हुआ “ सची ” भगतसिंह को देखकर उस तरफ हाथ करके चिल्ला उठा- ” लम्बे चाचा जी । ” इस पर दुर्गादेवी ने तुरन्त उसका मुंह गोद में दबाकर शान्त कर दिया । इस प्रकार से उन्होंने अपने प्राण बचाये ।
लेखक :-  ब्र० महादेव
पुस्तक :- देश भक्तों के बलिदान
प्रस्तुति :- अमित सिवाहा

बाल सुलभ ज्ञान कृति का लोकार्पण

कोटा 28 सितंबर/अखिल भारतीय साहित्य परिषद कोटा शाखा द्वारा साहित्यकार राम मोहन कौशिक की पुस्तक ” बाल सुलभ ज्ञान ” (बाल विकास एवं शिक्षा आघारित)  पुस्तक का लोकार्पण शनिवार को एक होटल में समारोह पूर्वक किया गया। समारोह अध्यक्ष  विष्णु शर्मा ” हरिहर ” मुख्य अतिथि  भगवती प्रसाद गौतम, विशिष्ट अतिथि महेश विजय , रामेश्वर शर्मा रामू भैया, तथा डॉ. प्रभात कुमार सिंघल ने अपने विचार व्यक्त किए। लेखक राम मोहन कौशिक ने बताया कि पुस्तक बालकों को भारत , भारतीय संस्कृति ,भारतीय धर्म , विज्ञान , गणित , भाषा, आजादी का ज्ञान प्रदान करने में सहायक होगी। इस अवसर पर डा. रमेश चन्द्र शर्मा एवं श्री अर्जुन दास छाबड़ा जी का विशिष्ट नागरिक के रूप में सम्मान किया गया ।
समारोह में वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार रहे । संचालन  दीपक शर्मा ने किया । डी. के. शर्मा, खुशी राम चौधरी , श्री मती रेखा पंचोली , श्री मती अपणी पाण्डेय का वरिष्ठ साहित्यकार होने हेतु सम्मान किया गया।

वन नेशन वन इलेक्शन आज के भारत की आवश्यकता

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत में लोकसभा एवं विभिन्न प्रदेशों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ ही होते रहे हैं। परंतु केंद्र सरकार द्वारा कुछ विधानसभाओं को 1950 एवं 1960 के दशक में इनकी अवधि समाप्त होने के पूर्व ही भंग करने के चलते कुछ विधानसभाओं के चुनाव लोकसभा से अलग कराने की आवश्यकता पड़ी थी, उसके बाद से लोकसभा, विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं एवं स्थानीय स्तर पर नगर निगमों, निकायों एवं पंचायतों के चुनाव अलग अलग समय पर कराए जाने लगे। आज स्थिति यह निर्मित हो गई है कि लगभग प्रत्येक सप्ताह अथवा प्रत्येक माह भारत के किसी न किसी भाग में चुनाव हो रहे होते हैं। ऐसा कहा जा रहा है कि पिछले पांच वर्षों के दौरान प्रत्येक वर्ष केवल 65 दिन ऐसे रहे हैं जब भारत के किसी स्थान पर चुनाव नहीं हुए हैं।

किसी भी देश में चुनाव कराए जाने पर न केवल धन खर्च होता है बल्कि जनबल का उपयोग भी करना पड़ता है। जनबल का यह उपयोग एक तरह से अनुत्पादक श्रम की श्रेणी में गिना जाना चाहिए क्योंकि इस प्रकार के श्रम से किसी प्रकार का उत्पादन तो होता नहीं है परंतु एक तरह से श्रमदान जरूर करना होता है। यह श्रम यदि बचाकर किसी उत्पादक कार्य में लगाया जाय तो केवल कल्पना ही की जा सकती है कि इस श्रम से देश के सकल घरेलू उत्पाद में अतुलनीय वृद्धि दर्ज की जा सकती है। अमेरिकी थिंक टैंक के एक अर्थशास्त्री के अनुसार, देश में बार बार चुनाव कराए जाने के चलते उस देश का सकल घरेलू उत्पाद लगभग एक प्रतिशत से कम हो जाता है।

चुनाव कराने के लिए होने वाले खर्च पर भी यदि विचार किया जाय तो भारत में केवल लोकसभा चुनाव कराने के लिए ही 60,000 करोड़ रुपए का खर्च किया जाता है।

आप कल्पना कर सकते हैं इस राशि में यदि विभिन्न प्रदेशों की विधानसभाओं, नगर निगमों, निकायों एवं ग्राम पंचायतों के चुनाव पर किए जाने वाले खर्च को भी जोड़ा जाय तो खर्च का यह आंकड़ा निश्चित ही एक लाख करोड़ रुपए के आंकडें को पार कर जाएगा।

उक्त बातों के ध्यान में आने के पश्चात केंद्र सरकार ने विचार किया है कि भारत में “वन नेशन वन इलेक्शन” के नियम को लागू किया जाना चाहिए। इस विचार को आगे बढ़ाने एवं इस संदर्भ में नियम आदि बनाने के उद्देश्य से भारत के पूर्व राष्ट्रपति माननीय श्री रामनाथ कोविंद जी की अध्यक्षता में एक विशेष समिति का गठन किया गया था। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट हाल ही में राष्ट्रपति/केंद्र सरकार को सौंप दी है। इसके बाद, केंद्र सरकार के मंत्रिमंडल की समिति ने इस रिपोर्ट को स्वीकृत कर लिया है एवं इसे अब लोकसभा एवं राज्यसभा के सामने विचार के लिए प्रस्तुत किया जाएगा।

किसी भी देश की लोकतंत्रीय प्रणाली में समय पर चुनाव कराना एक महत्वपूर्ण कार्य होता है। चुनाव किस प्रकार हों, समय पर हों एवं सही तरीके से हों, इसका बहुत महत्व होता है। परंतु देश में चुनाव बार बार होना भी अपने आप में ठीक स्थिति नहीं कही जा सकती है। विश्व के कई देशों, यथा स्वीडन, ब्राजील, बेलजियम, दक्षिण अफ्रीका, आदि में समस्त प्रकार के चुनाव एक साथ ही कराए जाने के नियम का पालन सफलतापूर्वक किया जा रहा है।

चुनाव एक साथ कराने के कई फायदे हैं जैसे इन देशों में चुनाव कराने सम्बंधी खर्चों पर नियंत्रण रहता है। दूसरे, सुरक्षा हेतु पुलिसकर्मियों एवं चुनाव करवाने के लिए स्थानीय कर्मचारियों की बड़ी मात्रा में आवश्यकता को कम किया जा सकता है। तीसरे, देश में चुनाव एक साथ कराने से अभिशासन पर अधिक ध्यान दिया जा सकता है एवं चौथे विभिन्न स्तर के चुनाव एक साथ कराने से चुनाव में वोट डालने वाले नागरिकों की संख्या में निश्चित ही वृद्धि होती है क्योंकि नागरिकों को मालूम होता है कि पांच साल में केवल एक बार ही वोट डालना है अतः वह अन्य कार्यों को दरकिनार करते हुए अपने वोट डालने के अधिकार का उपयोग करना पसंद करता है।

इसी प्रकार यदि कोई नागरिक किसी अन्य नगर यथा दिल्ली में कार्य कर रहा है और उसके मुंबई का निवासी होने चलते उसे वोट डालने के लिए मुंबई जाना होता है तो पांच वर्ष में एक बार तो इस महान कार्य के लिए वह दिल्ली से मुंबई आ सकता है परंतु पांच वर्षों में पांच बार तो वह दिल्ली से मुंबई नहीं जा पाएगा।

इसके अलावा लोकसभा, विधानसभाओं, स्थानीय निकायों एवं पंचायतों के चुनाव अलग अलग होने से विभिन्न पार्टियों के पदाधिकारी, इनमें केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों के मंत्री आदि भी शामिल रहते हैं, अपना सरकारी कार्य छोड़कर चुनाव प्रचार के लिए अपना समय देते हैं। जबकि, यह समय तो उन्हें देश एवं प्रदेश की सेवा में लगाना चाहिए। इससे देश में अभिशासन की गुणवत्ता पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है।

वन नेशन वन इलेक्शन के लिए गठित उक्त विशेष समिति ने यह सलाह दी है कि शुरुआत में लोकसभा एवं समस्त प्रदेशों की विधान सभाओं के चुनाव एक साथ कराए जा सकते है।

यदि ऐसा होता है तो यह भी सही है कि देश में लोकसभा एवं विधान सभा चुनाव एक साथ कराने के लिए संसाधनों की भारी मात्रा में आवश्यकता पड़ेगी, इसका हल किस प्रकार निकाला जाएगा इस पर भारतीय संसद में विचार किया जा सकता है। साथ ही, भारत में 6 राष्ट्रीय दल, 54 राज्य स्तरीय दल एवं 2000 से अधिक गैर मान्यता प्राप्त दल हैं जिनके बीच में सामंजस्य स्थापित करने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। साथ ही, भारत में अंतिम बार लोकसभा एवं विधानसभाओं के चुनाव एक साथ 1960 के दशक में कराए गए थे। आज भारतीय नागरिकों को भी शिक्षित करने की आवश्यकता होगी कि लोकसभा, विधान सभाओं एवं स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ किस प्रकार कराए जा सकते हैं ताकि उन्हें वोट डालने में किसी प्रकार की परेशानी नहीं हो।

इन समस्याओं का हल भारतीय संसद में चर्चा के दौरान निकाला जा सकता है। यदि किसी कारण से केंद्र में लोकसभा अथवा किसी प्रदेश में विधानसभा पांच वर्ष की समय सीमा के पूर्व ही गिर जाती है तो लोकसभा अथवा उस प्रदेश की विधान सभा के चुनाव शेष बचे हुए समय के लिए पुनः कराए जा सकते हैं, ऐसे प्रावधान को कानूनी रूप प्रदान दिया जा सकता है। इससे विभिन्न राजनैतिक दलों के सांसदों एवं विधायकों पर भी यह दबाव रहेगा कि वे लोकसभा अथवा विधानसभा को समय पूर्व भंग कराने अथवा गिराने का प्रयास नहीं करें।वन नेशन वन इलेक्शन के सम्बंध में कुछ संशोधन तो देश के वर्तमान कानून में करने ही होंगे और फिर पूर्व में भी विभिन्न विषयों पर अलग अलग खंडकाल में (समय समय पर) 100 बार से अधिक संशोधन कानून में किए ही जा चुके हैं।

यह तर्क भी सही नहीं है कि देश में एक साथ चुनाव कराने से भारत के नागरिक केंद्र एवं राज्यों में एक ही राजनैतिक दल की सरकार चुनने को प्रोत्साहित होंगे। परंतु, भारत का नागरिक अब पूर्ण रूप से परिपक्व एवं सक्षम हो चुका है कि वह लोकसभा एवं विधान सभा चुनाव एक साथ कराए जाने पर केवल एक ही दल की सरकार को नहीं चुनेगा। देश में ऐसा कई बार हुआ है कि लोकसभा एवं विधान सभा के एक साथ हुए चुनवा में लोकसभा में एक दल के सांसद को चुना गया है एवं विधान सभा में किसी अन्य दल के विधायक को चुना गया है।

भारत आज एक विकसित राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर है, ऐसे समय में भारत को अपने संसाधनों का उत्पादक कार्यों के लिए उपयोग करना आवश्यक होगा न कि रक्षा एवं सरकारी कर्मचारी देश में बार बार हो रहे चुनाव के कार्यों में व्यस्त रहें। कुल मिलाकर वन नेशन वन इलेक्शन, देश के हित में उठाया जा रहा एक मजबूत कदम है। इस विषय पर, भारत के हित में, देश के समस्त राजनैतिक दलों को गम्भीरता से विचार कर इस नियम को भारत में लागू किया जाना चाहिए।

प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
के-8, चेतकपुरी कालोनी,
झांसी रोड, लश्कर,
ग्वालियर – 474 009
मोबाइल क्रमांक – 9987949940
ई-मेल – prahlad.sabnani@gmail.com

पाली में ‘मीडिया गुरु सम्मान’ से हुए प्रो.द्विवेदी का सम्मान

पाली। अखिल भारतीय साहित्य परिषद राजस्थान ,कल्पवृक्ष साहित्य सेवा संस्थान एवं वंदेमातरम् शिक्षण समूह पाली के संयुक्त तत्वावधान में पं. विष्णुप्रसाद चतुर्वेदी समृति द्वितीय राष्ट्रीय व्याख्यानमाला एवं साहित्यकार सम्मान समारोह का आयोजन पाली में संपन्न हुआ। इस मौके पर भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) के पूर्व महानिदेशक प्रोफेसर संजय द्विवेदी को ‘राष्ट्रीय मीडिया गुरु सम्मान’ से अलंकृत किया गया। साथ ही उन्होंने कार्यक्रम को मुख्य वक्ता की आसंदी से संबोधित भी किया।

कार्यक्रम में अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय सचिव जगतगुरु विजयराम रावलद्वारा पीठाधीश्वर जगद्गुरु वेदेही वल्लभ देवाचार्य, साहित्यकार डा.जितेंद्र कुमार सिंह संजय , कवयित्री डा. चारुशीला सिंह, राजेन्द्र सिंह भाटी, प्रो. डा.मंजू शर्मा, नूतनबाला कपिला, सहायक कलेक्टर ऋषि सुधांसु पाण्डेय कोषाधिकारी हंसा राजपुरोहित उपस्थित रहे।

मुख्य वक्ता प्रो. संजय द्विवेदी ने अपने संबोधन में कहा कि साहित्य का मूल उद्देश्य ही लोक मंगल है। पिछले कुछ वर्षो में भारत अपनी जड़ों की तरफ वापसी कर रहा है। यह ‘विचारों की घर वापसी का समय’ है।

सालों साल तक चले समाजतोड़क साहित्यिक अभियानों के बजाए समाज को जोड़ने वाले तथा भारतबोध कराने वाले साहित्य सृजन की आवश्यकता है । इससे भारत विकसित भारत बनेगा और अपने सपनों में रंग भरेगा। कार्यक्रम के संयोजक साहित्य परिषद के प्रांत अध्यक्ष डा.अखिलानंद और पवन पाण्डेय ने अतिथियों के प्रति स्वागत और आभार ज्ञापन किया।

दुर्गा पूजा, दिवाली और छठ के त्योहारी सीजन के दौरान, फेस्टिवल स्पेशल ट्रेनों के 6,000 से अधिक फेरे चलाए जाएंगे

पश्चिम रेलवे द्वारा 86 फेस्टिवल स्पेशल ट्रेनों के साथ

1,380 से अधिक फेरे विभिन्न गंतव्यों के लिए चलाए जा रहे हैं।

दुर्गा पूजा, दिवाली और छठ पूजा के दौरान यात्रियों की सुगम आवाजाही के लिए भारतीय रेल द्वारा इस वर्ष 519 स्पेशल ट्रेनों का संचालन किया जाएगा। इन स्पेशल ट्रेनों का संचालन 1 अक्टूबर से 30 नवंबर के बीच किया जाएगा। रेलवे अधिकारी के मुताबिक़ हर साल त्योहारों के अवसर पर रेलवे द्वारा स्पेशल ट्रेनों का संचालन किया जाता है। इस वर्ष इन स्पेशल ट्रेनों की संख्या में भारी बढ़ोतरी की गई है। इनमें से, पश्चिम रेलवे 86 फेस्टिवल स्पेशल ट्रेनों के साथ 1,382 फेरे चला रहा है, जो पूरे भारतीय रेलवे में सबसे अधिक हैं।

गौरतलब है कि दुर्गा पूजा, दिवाली और छठ पर्वों के दौरान लाखों की संख्या में यात्री सफर करते हैं। यात्रियों की भारी भीड़ को सुगम एवं आरामदायक यात्रा प्रदान करने के लिए रेलवे द्वारा इस वर्ष भी विशेष ट्रेनों का संचालन करने की तैयारी की गई है। दो महीने की अवधि के दौरान ये स्पेशल ट्रेनें लगभग 6000 फेरे लगाएंगी और बड़ी तादाद में यात्रियों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने का काम करेंगी। पिछले वर्ष भी भारतीय रेल द्वारा बड़ी संख्या में त्योहार स्पेशल ट्रेनों का संचालन किया गया था और इन ट्रेनों ने कुल 4,429 फेरे लगाए थे, जिनके माध्यम से लाखों की संख्या में यात्रियों को आरामदायक यात्रा की सुविधा प्राप्त हुई थी।

जाहिर है कि हर साल दुर्गा पूजा, दीपावली और छठ पूजा के अवसर पर देश भर से बड़ी संख्या में लोग उत्तर प्रदेश और बिहार की ओर प्रस्थान करते हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों के लिए ये त्योहार न केवल धार्मिक महत्व रखते हैं, बल्कि परिवारों से मिलने का भी एक अहम अवसर होते हैं। हर साल त्योहारों के दौरान यात्रियों की भीड़ की वजह से अधिकांश ट्रेनों में दो-तीन महीने पहले से ही टिकट वेटिंग लिस्ट में चली जाती हैं। इसी को देखते हुए रेलवे द्वारा इस वर्ष भी त्योहारों के अवसर पर स्पेशल ट्रेनों का संचालन किया जा रहा है।

इस वर्ष, पश्चिम रेलवे ने 86 स्पेशल ट्रेनों की अधिसूचना जारी की है, जो 1,380 से अधिक फेरे लगाएंगी। पिछले वर्ष की तुलना में, पश्चिम रेलवे ने 21 और ट्रेनें जोड़ी हैं और लगभग 270 अतिरिक्त फेरे बढ़ाए हैं, ताकि त्योहारी सीजन के दौरान बढ़ती यात्रा मांग को पूरा किया जा सके। ये ट्रेनें उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर भारत, उत्तर पूर्व आदि के गंतव्यों के लिए चलाई जा रही हैं। पश्चिम रेलवे द्वारा मुंबई से देश के विभिन्न गंतव्यों के लिए 14 जोड़ी स्पेशल ट्रेनें चलाई जा रही हैं। इसी प्रकार, सूरत/उधना से यात्रियों की भारी मांग को पूरा करने के लिए 8 जोड़ी स्पेशल ट्रेनें चलाई जा रही हैं, जबकि 20 जोड़ी स्पेशल ट्रेनें सूरत/उधना या भेस्तान से होकर गुजर रही हैं। इसी तरह, गुजरात के अन्य स्टेशनों जैसे वापी, वलसाड, वडोदरा, अहमदाबाद, साबरमती, हापा, ओखा, राजकोट, भावनगर टर्मिनस आदि से स्पेशल ट्रेनें चलाई जा रही हैं, साथ ही मध्य प्रदेश के इंदौर, डॉ. अंबेडकर नगर और उज्जैन से भी स्पेशल ट्रेनें चलाई जा रही हैं।

पर्यटन मंत्रालय ने अतुल्य भारत कंटेंट हब और डिजिटल पोर्टल शुरू किया

भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय ने 27 सितंबर 2024 को विश्व पर्यटन दिवस के अवसर पर नए सिरे से तैयार किए गए अतुल्य भारत डिजिटल पोर्टल (www.incredibleindia.gov.inपर अतुल्य भारत कंटेंट हब शुरू किया। अतुल्य भारत कंटेंट हब एक व्यापक डिजिटल संग्रह है। इसमें भारत में पर्यटन से संबंधित उच्च गुणवत्ता वाली छवियोंफिल्मोंब्रोशर और समाचार पत्रों का समृद्ध संग्रह है। 

यह संग्रह विभिन्न हितधारकों के उपयोग के लिए है। इसमें टूर ऑपरेटरपत्रकारछात्रशोधकर्ताफिल्म निर्मातालेखकप्रभावशाली व्यक्तिसामग्री निर्मातासरकारी अधिकारी और राजदूत शामिल हैं।

कंटेंट हब नए अतुल्य भारत डिजिटल पोर्टल का हिस्सा है। इसका उद्देश्य दुनिया भर में यात्रा व्यापार (यात्रा मीडियाटूर ऑपरेटरट्रैवल एजेंटके लिए अतुल्य भारत पर अपनी ज़रूरत की हर चीज़ को एक ही स्थान पर एक्सेस करना आसान और सुविधाजनक बनाना है। इससे वे अपने सभी मार्केटिंग और प्रचार प्रयासों में अतुल्य भारत को बढ़ावा दे सकें। 

कंटेंट हब में वर्तमान में लगभग 5,000 कंटेंट एसेट हैं। रिपॉजिटरी पर उपलब्ध कंटेंट कई संगठनों के सहयोगात्मक प्रयास का परिणाम है। इसमें पर्यटन मंत्रालयभारतीय पुरातत्व सर्वेक्षणसंस्कृति मंत्रालय और अन्य शामिल हैं।

अतुल्य भारत डिजिटल पोर्टल एक पर्यटककेंद्रितवनस्टॉप डिजिटल समाधान है जिसे भारत आने वाले आगंतुकों के लिए यात्रा के अनुभव को बढ़ाने के लिए डिज़ाइन किया गया है। नया पोर्टल यात्रियों को उनकी यात्रा के हर चरण मेंखोज और शोध से लेकर योजनाबुकिंगयात्रा और वापसी तक आवश्यक जानकारी और सेवाएँ प्रदान करता है।

नया पोर्टल वीडियोछवियों और डिजिटल मानचित्रों जैसी मल्टीमीडिया सामग्री का उपयोग करके आकर्षणोंशिल्पत्योहारोंयात्रा डायरीयात्रा कार्यक्रम और बहुत कुछ के बारे में जानकारी प्रदान करता है। प्लेटफ़ॉर्म की बुक योर ट्रैवल‘ सुविधा उड़ानोंहोटलोंकैबबसों और स्मारकों के लिए बुकिंग सुविधा प्रदान करती है। इससे यात्रियों सुविधा होती है। इसके अतिरिक्तएआईसंचालित चैटबॉट प्रश्नों का उत्तर देने और यात्रियों को रियल टाइम जानकारी प्रदान करने के लिए एक वर्चुअल सहायक के रूप में कार्य करता है। अन्य सुविधाओं में मौसम की जानकारीटूर ऑपरेटर विवरणमुद्रा परिवर्तकहवाई अड्डे की जानकारीवीज़ागाइड और बहुत कुछ शामिल हैं।

पर्यटन मंत्रालय डिजिटल पोर्टल को अतुल्य भारत की खोज करने वाले सभी लोगों के लिए प्रेरणा का एक निरंतर स्रोत बनाने के लिए कई कदम उठाए है। इनमे नई सुविधाओं को शामिल करनाक्राउडसोर्सिंग के माध्यम से अतिरिक्त सामग्री जोड़ने के लिए संगठनों और संस्थानों के साथ साझेदारी कर पोर्टल में सुधार और विकास कार्य शामिल है।

पश्चिम रेलवे: अतुल्य भारत की अतुल्य रेल

विश्व पर्यटन दिवस 2024

भारत के विविध और चिरस्‍थायी खजानों का प्रवेश द्वार

 मुंबई  पश्चिम रेलवे सिर्फ़ परिवहन की जीवनरेखा ही नहीं हैबल्कि यह भारत के कुछ सबसे प्रतिष्ठित और विविधतापूर्ण पर्यटन स्थलों का प्रवेश द्वार भी है। कच्छ के रण में मौजूद शुष्क नमक के मैदानों से लेकर राजसी मंदिरों और शांत नदी किनारे तक पश्चिम रेलवे यात्रियों को कई तरह के परिदृश्योंसंस्कृतियों और इतिहास से जोड़ती है। पश्चिम रेलवे प्राकृतिक सुंदरताऐतिहासिक भव्यता और आध्यात्मिक गहराई का एक अनूठा मिश्रण प्रदान करता हैजो इसे भारत के पर्यटन उद्योग में एक प्रमुख योगदानकर्ता बनाता है। 

इस विश्व पर्यटन दिवस पर रेलवे देशभर में फैले अपने व्यापक रेल नेटवर्क के माध्यम से इस अविश्वसनीय भूमि के चमत्कारों को देखने के लिए यात्रियों का स्वागत करती है।

हम अपनी यात्रा की शुरुआत पश्चिम रेलवे के मुंबई सेंट्रल मंडल के सुंदर बिलिमोरा-वघई रेल खंड से करते हैंजो गुजरात राज्य के डांग क्षेत्र के हरे-भरे जंगलों और आदिवासी गांवों से होकर गुजरने वाली एक नैरो-गेज लाइन के माध्यम से यात्रियों को एक आकर्षक यात्रा पर ले जाता है। यह आकर्षक और कम ज्ञात मार्ग भारत के समृद्ध रेलवे इतिहास की याद दिलाता है और धीमी गति से चलते हुए प्रकृति से जुड़ने और ग्रामीण भारत की शांति का अनुभव की तलाश करने वालों के लिए एकदम सही है। 

रेलवे ने इस लाइन को एक विरासत अनुभव के रूप में संरक्षित किया हैजो पर्यटकों को समय में पीछे जाने और एक शांतिपूर्णअविस्‍मरणीय ट्रेन यात्रा का आनंद लेने का अवसर प्रदान करता है। वडोदरा मंडल में जाने पर कोई भी व्यक्ति स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के साथ भारत की वास्तुकला की चमक देख सकता हैजो दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा है। 

नर्मदा नदी के तट पर स्थित सरदार वल्लभभाई पटेल को यह भव्‍य श्रद्धांजलि न केवल एक इंजीनियरिंग चमत्कार हैबल्कि राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक भी है। पश्चिम रेलवे इस प्रतिष्ठित स्थल को सीधी रेल कनेक्टिविटी प्रदान करता हैजिससे देश के सभी कोनों से यहाँ आसानी से पहुँचा जा सकता है। ट्रेन से आने वाले पर्यटक स्मारक की विशालता को देखकर आश्चर्यचकित हो सकते हैंसाथ ही सरदार सरोवर बांध और उसके आसपास की प्राकृतिक सुंदरता की शानदार पृष्ठभूमि की सराहना भी कर सकते हैं।

जैसे ही ट्रेन अहमदाबाद मंडल से गुज़रती हैयह विरासत और आश्चर्य से भरी जगहों के दरवाज़े खोलती है। यात्रियों का स्वागत गुजरात के प्राचीन चमत्कारों द्वारा किया जाता हैजहाँ पर्यटक पाटन शहर में सरस्वती नदी के तट पर स्थित रानी की वावजटिल नक्काशीदार बावड़ी को देखने का आनंद ले सकते हैं। यह यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल हैजो अपनी शानदार वास्तुकला और समृद्ध इतिहास के लिए जाना जाता है। इसके अलावापाटन स्टेशन से सिर्फ़ 30 किमी दूर स्थित विस्मयकारी मोढेरा सूर्य मंदिर भारत की प्राचीन शिल्पकला और स्थापत्य कला का प्रमाण है। 

पश्चिम रेलवे द्वारा प्रदान की गई निर्बाध कनेक्टिविटी यह सुनिश्चित करती है कि गुजरात के ये रत्न देश भर के यात्रियों की पहुँच में हों। सर्दियों के मौसम की शुरुआत के साथकच्छ के रण का विशाल और सफ़ेद विस्तार रोमांच चाहने वालों को आकर्षित करता है।

रतलाम मंडल के दर्शनीय स्थल इतिहास, आध्यात्मिकता और प्राकृतिक सुंदरता को एक साथ जोड़ते हैं। जैसे ही ट्रेन इस क्षेत्र से गुज़रती है, पर्यटकों को क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित महाकालेश्‍वर मंदिर एवं नर्मदा नदी के तट पर स्थित ओंकारेश्वर मंदिर के दर्शन होते हैं, जो आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है। सुंदर पातालपानी – कालाकुंड रेल मार्ग, झरनों और घाटियों के लुभावने दृश्यों के साथ, विशेष रूप से मानसून के दौरान जीवंत हो जाता है। पश्चिम रेलवे एक हेरिटेज मीटर गेज ट्रेन चलाता है, जो इस सुंदर वैभव को देखने के लिए बड़ी संख्या में भीड़ खींचती है। अन्य स्थलों में से एक चित्तौड़गढ़ है, जहाँ प्रतिष्ठित चित्तौड़गढ़ किला इस क्षेत्र की पहचान है। अपनी भव्य वास्तुकला के लिए जाना जाने वाला यह सदियों पुराना किला और इसके अवशेष हमें राजपूतों की वीरता और बहादुरी की याद दिलाते हैं।

भावनगर मंडल भारत के कुछ सबसे प्रतिष्ठित आध्यात्मिक स्थलों का घर हैजिसमें सोमनाथ मंदिरपालीताना के जैन मंदिर और महात्मा गांधीजी का जन्मस्थान पोरबंदर शामिल हैं। प्रकृति प्रेमी गिर राष्ट्रीय उद्यान की यात्रा कर सकते हैंजो राजसी एशियाई शेरों का घर हैजहाँ जूनागढ़ स्टेशन से पहुँचा जा सकता हैजो गिरनार हिलउपरकोट किला और जटाशंकर महादेव झरने जैसे ऐतिहासिक स्थलों के लिए रेलवे स्टेशन के रूप में भी काम करता है। राजकोट मंडल में द्वारका का आध्यात्मिक शहर तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को अपने मंदिरोंशांत समुद्र तट और समृद्ध संस्कृति की ओर आकर्षित करता है।

हर साल 27 सितंबर को विश्व पर्यटन दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय समुदाय में पर्यटन की भूमिका के बारे में जागरूकता बढ़ाना और यह प्रदर्शित करना है कि यह दुनियाभर में सामाजिकसांस्कृतिकराजनीतिक और आर्थिक मूल्यों को कैसे प्रभावित करता है। इस वर्ष “पर्यटन और शांति” को थीम के रूप में चुना गया है। यह थीम इस बात पर प्रकाश डालती है कि अंतरराष्ट्रीय सद्भावसांस्कृतिक समझ और शांति को बढ़ावा देने में पर्यटन कितना महत्वपूर्ण है। पर्यटन आपसी सम्मान को बढ़ावा देता है और विभिन्न मूल के व्यक्तियों को एकजुट करके संघर्ष को कम करता है। पश्चिम रेलवे का विशाल नेटवर्क यात्रियों को भारत के सबसे कीमती स्थलों से जोड़ने में एक अपरिहार्य भूमिका निभाता हैचाहे वह गुजरात का प्राचीन इतिहास होमध्य प्रदेश के आध्यात्मिक अभयारण्य हों या समकालीन भारत के आधुनिक चमत्कार हों। इन विविध क्षेत्रों को आसानी से सुलभ बनाकरपश्चिम रेलवे न केवल पर्यटन को बढ़ावा देता हैबल्कि यात्रा के अनुभव को भी समृद्ध करता हैजिससे आगंतुकों को अपने अच्छी तरह से जुड़े रेलवे के माध्यम से भारत के दिल की खोज करने में मदद मिलती है।

विश्व पर्यटन दिवस मनाते हुए आइए हम भारतीय रेल की उस महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करेंजो हमारे देश के अद्भुत पर्यटन लों को हम सभी के करीब लाने में निभाती है।

शक्तिशाली देशों की सूची में भारत पहुंचा तीसरे स्थान पर

आस्ट्रेलिया के एक संस्थान, लोवी इन्स्टिटयूट थिंक टैंक, ने हाल ही में एशिया में शक्तिशाली देशों की एक
सूची जारी की है। “एशिया पावर इंडेक्स 2024” नामक इस सूची में भारत को एशिया में तीसरा सबसे
बड़ा शक्तिशाली देश बताया गया है। वर्ष 2024 के इस इंडेक्स में भारत ने जापान को पीछे छोड़ा है। इस
इंडेक्स में अब केवल अमेरिका एवं चीन ही भारत से आगे है। रूस तो पहिले से ही इस इंडेक्स में भारत से
पीछे हो चुका है। इस प्रकार अब भारत की शक्ति का आभास वैश्विक स्तर पर भी महसूस किया जाने लगा
है। एशिया पावर इंडेक्स 2024 के प्रतिवेदन में बताया गया है कि वर्ष 2023 के इंडेक्स में भारत को 36.3
अंक प्राप्त हुए थे जो वर्ष 2024 के इंडेक्स में 2.8 अंक से बढ़कर 39.1 अंकों पर पहुंच गए हैं एवं भारत इस
इंडेक्स में चौथे स्थान से तीसरे स्थान पर आ गया है।

एशिया पावर इंडेक्स 2024 को विकसित करने के लिए कुल 27 देशों और क्षेत्रों से प्राप्त आंकड़ों का
आंकलन एवं सूक्षम विश्लेषण किया गया है। एशिया में जो नए शक्ति समीकरण बन रहे हैं उनका ध्यान भी
इस इंडेक्स में रखा गया है तथा विभिन्न मापदंडों पर आधारित पिछले 6 वर्षों के आकड़ों का विश्लेषण कर
यह इंडेक्स बनाया गया है। आर्थिक क्षमता, सैन्य (मिलिटरी) क्षमता, अर्थव्यवस्था में लचीलापन, भविष्य में
संसाधनों की उपलब्धता, कूटनीतिक, राजनयिक एवं आर्थिक सम्बंध एवं सांस्कृतिक प्रभाव जैसे मापदंडो
पर उक्त 27 देशों एवं क्षेत्रों का आंकलन कर विभिन्न देशों को इस इंडेक्स में स्थान प्रदान किया गया है।
उक्त इंडेक्स में अमेरिका, 81.7 अंकों के साथ प्रथम स्थान पर है।

चीन 72.7 अंकों के साथ द्वितीय स्थान पर
है। भारत ने इस इंडेक्स में 39.1 अंक प्राप्त कर तृतीय स्थान प्राप्त किया है। जापान को 38.9 अंक,
आस्ट्रेलिया को 31.9 अंक एवं रूस को 31.1 अंक प्राप्त हुए हैं एवं इन देशों का क्रमशः चतुर्थ, पांचवा एवं
छठवां स्थान रहा है। इस इंडेक्स में प्रथम 5 स्थानों में से 4 स्थानों पर “क्वाड” के सदस्य देश हैं – अमेरिका,
भारत, जापान एवं आस्ट्रेलिया। एशिया में अमेरिका की लगातार बढ़ती मजबूत ताकत के चलते उसे इस
इंडेक्स में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ है। जबकि, चीन की मजबूत मिलिटरी ताकत के चलते उसे इस इंडेक्स में
द्वितीय स्थान प्राप्त हुआ है। जापान के इस इंडेक्स में तीसरे से चौथे स्थान पर आने के कारणों में मुख्य कारण
उसकी आर्थिक स्थिति में लगातार आ रही गिरावट है। भारत ने चौथे स्थान से तीसरे स्थान पर छलांग
लगाई है। आर्थिक क्षमता एवं भविष्य में संसाधनो की उपलब्धता के क्षेत्र में भारत को तीसरा स्थान प्राप्त
हुआ है। साथ ही, सैन्य क्षमता, कूटनीतिक, राजनयिक एवं आर्थिक सम्बंध के क्षेत्र एवं सांस्कृतिक प्रभाव के
क्षेत्र में भारत को चौथा स्थान प्राप्त हुआ है। अब केवल अमेरिका और चीन ही भारत से आगे हैं एवं जापान,
आस्ट्रेलिया एवं रूस भारत से पीछे हो गए हैं। जबकि, कुछ वर्ष पूर्व तक विश्व की महान शक्तियों में भारत
का कहीं भी स्थान नजर नहीं आता था। केवल अमेरिका, रूस, चीन, जापान, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रान्स आदि
देशों को ही विश्व में महाशक्ति के रूप में गिना जाता था। अब इस सूची में भारत तीसरे स्थान पर पहुंच
गया है।

उक्त इंडेक्स तैयार करते समय आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड आदि अन्य शक्तिशाली देशों का भी आंकलन किया
गया है। साथ ही, विश्व में तेजी से बदल रहे शक्ति के नए समीकरणों का भी व्यापक आंकलन किया गया है।
इस आंकलन के अनुसार अमेरिका अभी भी एशिया में सबसे बड़ी आर्थिक ताकत बना हुआ है। चीन तेजी से
आगे बढ़कर दूसरे स्थान पर आया है। तेजी से बढ़ती सेना एवं आर्थिक तरक्की चीन की मुख्य ताकत है। उक्त
प्रतिवेदन में यह तथ्य भी बताया गया है कि उभरते हुए भारत से अपेक्षाओं एवं वास्तविकताओं में अंतर
दिखाई दे रहा है। इस प्रतिवेदन के अनुसार, भारत के पास अपने पूर्वी देशों को प्रभावित करने की सीमित
क्षमता है। परंतु, वास्तविकता इसके ठीक विपरीत है। भारत अपने पड़ौसी देशों नेपाल, भूटान, श्रीलंका,
बंगलादेश, म्यांमार एवं अफगानिस्तान, आदि की विपरीत परिस्थितियों के बीच भारी मदद करता रहा है।

आसियान के सदस्य देशों की भी भारत समय समय पर मदद करता रहा है, एवं इन देशों का भारत पर
अपार विश्वास रहा है। कोरोना के खंडकाल में एवं श्रीलंका, म्यांमार तथा अफगानिस्तान में आए सामाजिक
संघर्ष के बीच भारत ने इन देशों की मानवीय आधार पर भरपूर आर्थिक सहायता की थी एवं इन्हें अमेरिकी
डॉलर में लाइन आफ क्रेडिट की सुविधा भी प्रदान की थी ताकि इनके विदेशी व्यापार को विपरीत रूप से
प्रभावित होने से बचाया जा सके। उक्त प्रतिवेदन के अनुसार भारत के पास भारी मात्रा में संसाधन मौजूद हैं
एवं जिसके बलबूते पर आगे आने वाले समय में भारत के आर्थिक विकास को और अधिक गति मिलने की
अपार सम्भावनाएं मौजूद हैं। साथ ही, भारत अपने पड़ौसी देशों की आर्थिक स्थिति सुधारने की भी क्षमता
रखता है। भारत ने हाल ही के वर्षों में उल्लेखनीय आर्थिक सुधार कार्यक्रम लागू किए हैं।
जिसके चलते लगातार तेज हो रहे आर्थिक विकास के बीच सकल घरेलू उत्पाद की स्थिति
और बेहतर हो रही है तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की मान्यता बढ़ रही है। साथ ही,
बहुपक्षीय मंचों पर भी भारत की सक्रिय भागीदारी बढ़ती जा रही है।

भारत ने पिछले कुछ वर्षों में एशिया के कई देशों के साथ अपने सम्बंधों को मजबूत किया है। अब तो
अफ्रीकी देशों का भी भारत पर विश्वास बढ़ता जा रहा है एवं भारत में ग्लोबल साउथ का नेतृत्व करने की
अपार सम्भावनाएं मौजूद हैं। भारत में हाल ही में अपनी कूटनीतिक एवं राजनयिक क्षमता में भी भरपूर
सुधार किया है एवं इसके बल पर वैश्विक स्तर पर न केवल विकसित देशों बल्कि विकासशील देशों को भी
प्रभावित करने में सफल रहा है। यूक्रेन एवं रूस युद्ध के समय केवल भारत ही दोनों देशों के साथ चर्चा कर
पाता है एवं युद्ध को समाप्त करने का आग्रह दोनों देशों को कर पाता है। इसी प्रकार, इजराईल एवं हमास
युद्ध के समय भी भारत दोनों देशों के साथ युद्ध समाप्त करने की चर्चा करने में अपने आप को सहज एवं
सक्षम पाता है। आपस में युद्ध करने वाले दोनों देश भारत की सलाह को गम्भीरता से सुनते नजर आते हैं।
भारत ने कभी भी विभिन्न देशों के आंतरिक स्थितियों पर अपनी विपरीत राय व्यक्त नहीं की है और न ही
कभी उनके आंतरिक मामलों में कभी हस्तक्षेप किया है। इस दृष्टि से वैश्विक पटल पर भारत की यह विशिष्ट
पहचान एवं स्थिति है।

दक्षिण एशिया के देशों में चीन अपना प्रभाव बढ़ाने का प्रयास कर रहा है इसलिए भारत का पूरा ध्यान इस
क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को कम कर अपने प्रभाव को बढ़ाना है। इसी मुख्य कारण से शायद भारत
दक्षिण एशिया के देशों पर अधिक ध्यान देता दिखाई दे रहा है। जिसका आशय उक्त प्रतिवेदन में यह लिया
गया है कि विश्व के अन्य देशों को सहायता करने की भारत की क्षमता तो अधिक है परंतु अभी उसका
उपयोग भारत नहीं कर पा रहा है। हिंद महासागर पर भारत का ध्यान अधिक है और क्वाड के सदस्य देश
मिलकर भारत की इस दृष्टि से सहायता भी कर रहे हैं। दक्षिण एशियाई देशों के अलावा विश्व के अन्य देशों
की मदद करने के संदर्भ में भारत ने हालांकि अभी हाल ही के समय में बढ़त तो बनाई है परंतु अभी और
अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। भारत में आगे बढ़ने की अपार सम्भावनाएं मौजूद हैं।
उक्त प्रतिवेदन में भारत को एशिया को तीसरा सबसे बड़ा ताकतवर देश बताया गया है परंतु वस्तुतः भारत
अब एशिया का ही नहीं बल्कि विश्व का तीसरा सबसे बड़ा ताकतवर देश बन गया है क्योंकि इस सूची में
एशिया के बाहर से अमेरिका को भी एशिया में पहिले स्थान पर बताया गया है। एक अन्य अमेरिकी थिंक
टैंक का आंकलन है कि भारत यदि इसी रफ्तार से आगे बढ़ता रहा तो इस शताब्दी के अंत तक भारत, चीन
एवं अमेरिका को भी पीछे छोड़कर विश्व का सबसे अधिक शक्तिशाली देश बन जाएगा।

प्रहलाद सबनानी

सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
के-8, चेतकपुरी कालोनी,
झांसी रोड, लश्कर,
ग्वालियर – 474 009
मोबाइल क्रमांक – 9987949940
ई-मेल – prahlad.sabnani@gmail.com

सकारात्मक खबरों को बढ़ावा देने से ही समाज स्वस्थ और सुखी होगा: केंद्रीय मंत्री डॉ. मुरुगन

आबू रोड। ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान के आबू रोड स्थित मुख्यालय शांतिवन के आनंद सरोवर परिसर में आयोजित राष्ट्रीय मीडिया सम्मेलन का उद्घाटन केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री डॉ. एल. मुरुगन और मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी रतन मोहिनी ने किया। मीडिया विंग द्वारा स्वस्थ एवं सुखी समाज के लिए आध्यात्मिक सशक्तिकरण- मीडिया की भूमिका विषय पर आयोजित इस राष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लेने के लिए देशभर से एक हजार से अधिक प्रिंट, इलेक्ट्रानिक, रेडियाे और बेव जर्नलिज्म से जुड़े पत्रकार, संपादक, ब्यूरो चीफ, रेडियो जॉकी, फ्रीलांसर पत्रकार और मीडिया प्रोफेसर पहुंचे हैं।

शुभारंभ पर केंद्रीय मंत्री डॉ. मुरुगन ने कहा कि विकसित भारत के निर्माण में मीडिया का महत्वपूर्ण योगदान है। आज एक अच्छी न्यूज उतनी तेजी से वायरल नहीं होती है जितनी की एक गलत, फेंक न्यूज़ वायरल हो जाती है। पत्रकार पहले खबरों की सत्यता की जांच कर लें उसके बाद ही प्रकाशित करें। अच्छी खबरों को बढ़ावा देने से ही स्वस्थ और सुखी समाज का निर्माण होगा। आज समाज में यदि नकारात्मक माहौल बन रहा है तो हमें चिंतन करने की जरूरत है कि हम समाज में क्या भेज रहे हैं। मूल्यनिष्ठ समाज के निर्माण के लिए हमें जीवन में मूल्यों का समावेश करना होगा।

पत्रकार निजी जीवन में अध्यात्म को अपनाएं –
उन्होंने कहा कि एक पत्रकार का मौलिक अधिकार है कि वह आध्यात्मिकता से जुड़े। मीडियाकर्मी अपने निजी जीवन में अध्यात्म को अपनाएं। एक पत्रकार गलत न्यूज़ से देश का माहौल बिगाड़ सकता है इसलिए पत्रकार को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। सूचना देने के लिए मीडिया सबसे शक्तिशाली साधन है, जो दुनिया को खेल और संस्कृति आदि की जानकारी देता है। यह लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। मीडिया हिमालय से लेकर रेगिस्तान में जाकर सूचनाएं जुटाता है।

ब्रह्माकुमारीज़ विश्व शांति के लिए कार्य कर रही है –
केंद्रीय मंत्री डॉ. मुरुगन ने कहा कि विश्व शांति के लिए ब्रह्माकुमारीज़ संस्था कार्य कर रही है। मैं पहली बार ब्रह्माकुमारीज़ के मुख्यालय आया हूं। यहां आकर बहुत अच्छा महसूस कर रहा हूं और बहुत खुशी हो रही है। मैंने दादी रतन मोहिनी से मुलाकात कर उनका आशीर्वाद लिया। यहां की दिव्यता और पवित्र माहौल बहुत सुखदायी है।

मीडिया अपने उद्देश्य से भटक गया है-
डॉ. कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवम जनसंचार विश्विद्यालय रायपुर के पूर्व कुलपति डॉ. मान सिंह परमार ने कहा कि जब देश आजाद नहीं हुआ था तो मीडिया के सामने एक लक्ष्य, एक ध्येय, एक उद्देश्य था। लेकिन जब देश आजाद हो गया तो मीडिया के सामने एक चुनौती थी कि अब किस दिशा में आगे बढ़ा जाए। लेकिन आज व्यापारवाद के दौर में मीडिया अपने उद्देश्य से भटक गया है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में खबरों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है जो किसी भी रीति से समाज के लिए ठीक नहीं है। सोशल मीडिया ने हमें आजादी जरूर दी है लेकिन ऐसा लगता है कि कहीं सोशल मीडिया भस्मासुर न बन जाए। प्रेस काउंसिल बने वर्षों हो गए लेकिन आज तक हम एक आदर्श आचार संहिता लागू नहीं कर पाए हैं।

नई दिल्ली दैनिक जागरण के एक्जीक्यूटिव एडिटर विष्णु प्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि हम राष्ट्र और राष्ट्रीयता के स्तंभ हैं। हम सत्यनिष्ठ लोग हैं। लोकतंत्र में संरक्षण की जरूरत है लेकिन यदि मीडिया को नियंत्रीकरण किया जाएगा तो वह अपना अस्तित्व खो देगा। भारत का पत्रकार आध्यात्मिक ही होगा। दिल्ली के पीआईबी के पूर्व प्रिंसिपल डीजी कुलदीप सिंह ने कहा कि कई बार हम पत्रकारों को अपने सिद्धांतों के साथ समझौता करना पड़ता है। लेकिन हमें अपने मूल्यों को कायम रखना होगा।

अश्लील सामग्री मुक्त मीडिया बनाना होगा –
आईआईएमसी के पूर्व महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि हम सभी पत्रकारों को अभियान चलाना चाहिए कि अश्लील सामग्री मुक्त समाज बने। हमें अश्लील कंटेंट को प्रचारित और प्रसारित करना बंद करना होगा। एक-एक व्यक्ति सूचना का राजदूत है। ब्रह्माकुमारीज़ समाज के प्रत्येक वर्ग के लिए कार्य कर रही है। ये ब्रह्माकुमार भाई-बहनें त्याग की मूर्ति हैं। दुनिया के बेहतर अखबारों को टक्कर देने वाले अखबार आज हमारे देश में निकल रहे हैं। आज मीडिया का भारतीयकरण करने की जरूरत है। आज हम जिस मीडिया की तर्ज पर कार्य कर रहें हैं, वह पाश्चात्य मीडिया की शैली है। हमारे यहां तो लोक मंगल की भावना को लेकर कार्य करने की परंपरा रही है। हमें संवाद की परंपरा की ओर फिर से बढ़ने की जरूरत है। हम जगतगुरु की बात कर रहे हैं लेकिन कोई शिष्य बनने के लिए तैयार है।

– अतिरिक्त महासचिव राजयोगी बृजमोहन भाई ने कहा कि तीनों कालों की न्यूज़ परमात्मा के पास है। सबसे बड़ा सत्य है कि हम सभी एक आत्मा हैं। जब हम खुद को आत्मा मानेंगे, तभी काम विकार पर विजय पा सकेंगे।

– मीडिया निदेशक राजयोगी बीके करुणा भाई ने कहा कि मीडिया विंग पत्रकारों के जीवन को खुशहाल बनाने के लिए कार्य कर रहा है। हमारा मकसद है पत्रकारों के जीवन में आध्यात्मिक समावेश से समाज को सुखी संपन्न बनाने की ओर ले जाना।

– जयपुर सबजोन की निदेशिका राजयोगिनी बीके सुषमा दीदी ने कहा कि राजयोग को जीवन में शामिल करने से सारे रोग खत्म हो जाते हैं। आपने राजयोग मेडिटेशन से सभी को गहन शांति की अनुभूति कराई।

– शिक्षा प्रभाग की उपाध्यक्ष राजयोगिनी बीके शीलू दीदी ने कहा कि आंतरिक सशक्तिकरण से ही स्वस्थ और सुखी होगा। समाज समृद्ध शाली होगा।

– विंग की राष्ट्रीय संयोजिका बीके सरला आनंद बहन ने कहा कि बिना अध्यात्म के स्वस्थ समाज की परिकल्पना नही की जा सकती है। इस कार्य में मीडिया का सबसे महत्वपूर्ण योगदान है।

– स्वागत भाषण मीडिया विंग के राष्ट्रीय संयोजक बीके शांतानु भाई ने दिया। स्वागत नृत्य बेंगलुरु से आए सुप्रीम शिव शक्ति सांस्कृतिक अकादमी के बच्चों ने पेश किया। संचालन जयपुर की जोनल संयोजिका चंद्रकला दीदी ने किया।