जबलपुर में सम्मानित होंगे डॉ. प्रभात सिंघल, कंचना सक्सेना और राम शर्मा
कैसी है अमेरिका की चुनावी प्रक्रिया
एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान पत्रकार मरियम सिद्दीकी ने अमेरिका की चुनावी प्रक्रिया की बारीकियों को समझा।
मरियम सिद्दीकी उर्दू-हिंदी साप्ताहिक जदीद मरकज़ से जुड़ी पत्रकार हैं। उन्होंने इस साल की शुरुआत में अमेरिकी चुनावी प्रक्रिया पर इंटरनेशनल विजिटर लीडरशिप प्रोग्राम (आईवीएलपी) के तहत अमेरिका की यात्रा की और इस दौरान अमेरिकी लोकतंत्र की बारीकियों को समझने का प्रयास किया। आईवीएलपी अमेरिकी विदेश विभाग का एक प्रमुख पेशेवर एक्सचेंज कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम में मौजूदा और उदीयमान विदेशी नेतृत्वकर्ताओं को अमेरिका की अल्पकालिक यात्राओं के माध्यम से अमेरिकी समकक्षों के साथ स्थायी संबंध विकसित करने का अवसर मिलता है।
सिद्दीकी के अनुसार, अमेरिकी चुनावी प्रक्रिया के बारे में गहन जानकारी हासिल करने से लोकतांत्रिक शासन के बारे में उनकी समझ समृद्ध हुई है जिससे उनकी पत्रकारिता को भी एक नया दृष्टिकोण मिला है। उनका कहना है, ‘‘इस यात्रा से मुझे यह देखने में मदद मिली कि लोकतंत्र किस तरह से काम करता है।’’
सिद्दीकी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास और जामिया मिल्लिया इस्लामिया से समाज कार्य विषय में डिग्री ली है और वह 14 वर्षों से लखनऊ से निकलने वाले इस साप्ताहिक अखबार के लिए काम कर रही हैं। वह इंडियन स्कूल ऑफ डवलपमेंट मैनेजमेंट की एकेडमिक टीम में सीनियर एसोसिएट के रूप में भी काम करती हैं।
प्रस्तुत है उनसे साक्षात्कार के प्रमुख अंश :
कृपया आईवीएलपी से मिले अनुभवों और महत्वपूर्ण सीखों के बारे में बताइए।
आईवीएलपी से मिला अनुभव समृद्ध और विचारोत्तेजक था। कार्यक्रम के माध्यम से मैं पेशेवरों,, नेतृत्वकर्ताओं और मतदाताओं से मिली- ऐसे अवसर जो अमेरिका की निजी यात्रा उपलब्ध नहीं करा सकती थी। मल्टीमीडिया और प्रिंट पत्रकारिता की भूमिका पर केंद्रित सत्रों से अनमोल समझ प्राप्त हुई और यह जानने का मौका मिला कि किस तरह से एक देश लोकतंत्र के सबसे आवश्यक स्तंभों में से एक पर निर्भर करता है। इंटरएक्टिव सत्रों ने मेरी समझ को और गहरा बनाया और यह जानने में मदद की कि जनता अपने निर्वाचित नेताओं से क्या अपेक्षा करती है।
अमेरिकी चुनावी प्रक्रिया की कार्यप्रणाली को आप किस हद तक समझ सकीं?
पहले तो इसे लेकर काफी भ्रम वाली स्थिति थी लेकिन स्थानीय, राज्य और संघीय स्तर पर चुनावी प्रक्रिया हर सत्र और बातचीत के साथ स्पष्ट होती चली गई। प्राइमरीज़ की अवधारणा मेरे लिए नई थी और सुपर ट्यूज़डे ने प्रक्रिया को लाइव देखने और स्थानीय उम्मीदवारों और मतदाताओं से मिलने का रोमांचक अवसर प्रदान किया।
अमेरिकी चुनावी परिदृश्य में विविधता और व्यक्तिवाद की भूमिकाओं के बारे में आपके क्या विचार थे?
मुझे यह स्वीकार करना होगा कि इस यात्रा के दौरान अमेरिका को लेकर मेरे आग्रहों को चुनौती मिली। विविधता के बारे में मेरी समझ भी विकसित हुई। लोगों के मुद्दे, जातीय, धार्मिक और सामाजिक समूहों के आधार पर भिन्न-भिन्न थे और वे अपनी राय को जाहिर करने से कतराते नहीं थे। यह देखना अद्भुत था कि किस तरह से दूसरी पीढ़ी के प्रवासियों को प्रतिनिधि के रूप में चुना गया है और वे समस्याओं को सुलझाने के लिए कैसे काम करते हैं।
व्यक्तिवाद को भी बहुत महत्व दिया जाता है- लोगों के पास स्वतंत्र विकल्प होते हैं जो इस बात से जाहिर होता है हर कुछ वर्षों में राज्यों में कभी डेमोक्रेटिक, तो कभी रिपब्लिकन पार्टियां बहुमत हासिल करती रही हैं।
साभार- https://spanmag.com/hi/ से
अफ्रीका की पटरियों पर दौड़ेंगे मढ़ौरा संयंत्र में बने रेल इंजन
· बिहार के मढ़ौरा संयंत्र से पहली बार निर्यात किए जाएंगे अत्याधुनिक लोकोमोटिव।
· मढ़ौरा प्लांट वर्ष 2025 में इवोल्यूशन सीरीज ES43ACmi लोकोमोटिव का निर्यात शुरू करेगा।
· भारतीय रेलवे और वैबटेक का एक संयुक्त उद्यम है वैबटेक लोकोमोटिव प्राइवेट लिमिटेड।
नई दिल्ली। भारतीय रेल और वैबटेक के संयुक्त उद्यम बिहार में स्थित मढ़ौरा संयंत्र में अफ्रीकी देशों को निर्यात करने के लिए अत्याधुनिक लोकोमोटिव का निर्माण किया जाएगा। इसके लिए वैबटेक लोकोमोटिव प्राइवेट लिमिटेड द्वारा अपने संयंत्र की क्षमताओं का विस्तार किया जा रहा है। मढ़ौरा प्लांट द्वारा पहली बार निर्यात के लिए लोकोमोटिक का निर्माण किया जाएगा। मढ़ौरा प्लांट वर्ष 2025 में लोकोमोटिव का निर्यात शुरू करेगा।
मढ़ौरा प्लांट द्वारा वैश्विक ग्राहकों को इवोल्यूशन सीरीज ES43ACmi लोकोमोटिव की आपूर्ति की जाएगी। ES43ACmi लोकोमोटिव में 4,500 HP इवोल्यूशन सीरीज का इंजन है, जो अपनी श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ ईंधन दक्षता और उच्च तापमान वाले वातावरण में बेहतरी प्रदर्शन करता है।
गौरतलब है कि यह परियोजना रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है। यह संयुक्त परियोजना न केवल भारत को वैश्विक लोकोमोटिव विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करती है, बल्कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के “आत्मनिर्भर भारत” दृष्टिकोण के अंतर्गत “मेक इन इंडिया” और “मेक फॉर द वर्ल्ड” पहलों के अनुरूप है।
जाहिर है कि रेल मंत्रालय और वैबटेक के बीच सार्वजनिक-निजी भागीदारी की सफलता ने मढ़ौरा संयंत्र को विश्व स्तरीय वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में स्थापित किया है। अब तक इस प्लांट में लगभग 650 इंजनों का निर्माण किया जा चुका है और इन लोकोमोटिव्स को भारतीय रेल द्वारा उपयोग किया जा रहा है। विदित हो कि मेक इन इंडिया नीति को बढ़ावा देते हुए वर्ष 2018 में बिहार के मढ़ौरा में 70 एकड़ में इस संयंत्र की स्थापना की गई थी। इस संयंत्र की स्थापना भारतीय रेल के लिए 1,000 अत्याधुनिक लोकोमोटिव निर्माण के लिए की गई थी। मढ़ौरा संयंत्र से भारतीय रेल को प्रति वर्ष 100 लोकोमोटिव की आपूर्ति की जा रही है।
Chief Public Relations Officer,
Mumbai,
Western Railway
022-22002590
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प्राचीन भारत के मौसम वैज्ञानिक घाघ और भड्डरी
घाघ भड्डरी प्रसिद्ध लोक कवि और भविष्यवक्ता थे, जिनकी कहावतें भारतीय कृषि और मौसम विज्ञान से जुड़ी हुई हैं। उनकी कहावतें किसानों को मौसम, खेती और प्राकृतिक घटनाओं के बारे में सरल और प्रभावी सलाह देती थीं। आइए, उनके जीवन, कहावतों और उनके वैज्ञानिक महत्व पर चर्चा करते हैं: उनका जीवनकाल 16वीं या 17वीं शताब्दी का माना जाता है। घाघ को कृषि विशेषज्ञ के रूप में देखा जाता था, जिन्होंने प्रकृति और मौसम के आधार पर किसानों को खेती के सुझाव दिए।
राजा भोज 11वीं शताब्दी के एक प्रसिद्ध राजा थे, जिनका शासन मध्य भारत के मालवा के धार क्षेत्र में था। वे विद्या, कला, और वास्तुकला के बड़े संरक्षक माने जाते थे। वहीं, घाघ भड्डरी एक लोक कवि और कृषि विशेषज्ञ थे, जिनका जीवनकाल 16वीं या 17वीं शताब्दी के आसपास माना जाता है। कई लोक कथाओं में कहा जाता है कि राजा भोज और घाघ एक-दूसरे के समकालीन थे और दोनों के बीच एक अद्भुत संवाद होता था। घाघ को अक्सर राजा भोज के दरबार के एक विद्वान या सलाहकार के रूप में चित्रित किया जाता है। कहा जाता है कि घाघ अपनी कहावतों और बुद्धिमत्ता के लिए राजा भोज के दरबार में बहुत सम्मानित थे, और वे राजा भोज को कृषि और मौसम के बारे में सलाह देते थे। हालांकि, यह बातें ऐतिहासिक रूप से प्रमाणित नहीं हैं और अधिकतर दंतकथाओं पर आधारित हैं।
राजा भोज और घाघ दोनों ही अपने-अपने क्षेत्रों में बेहद प्रसिद्ध थे। राजा भोज अपने शासन और विद्वत्ता के लिए, जबकि घाघ अपनी कहावतों और कृषि ज्ञान के लिए। इसलिए, लोक कथाओं में दोनों का नाम साथ लिया जाता है। भारतीय परंपरा में अक्सर समय के अंतराल को अनदेखा करके दो महान व्यक्तियों को एक ही समय में रखा जाता है। यह संभव है कि लोगों ने राजा भोज और घाघ के गुणों को जोड़कर एक साथ उनकी कहानियाँ गढ़ी हों।
घाघ भड्डरी पर शोध करने वाले जर्मन वैज्ञानिक का नाम एंथ्रोपोसोफिस्ट डॉ. ऑस्कर वॉन हिन्यूबर (Dr. Oskar von Hinüber) था। डॉ. हिन्यूबर ने भारतीय कृषि और मौसम संबंधी पारंपरिक ज्ञान में गहरी रुचि दिखाई और विशेष रूप से घाघ की कहावतों पर अध्ययन किया।
डॉ. ऑस्कर वॉन हिन्यूबर ने यह समझने की कोशिश की कि कैसे घाघ की कहावतें पारंपरिक भारतीय कृषि ज्ञान के माध्यम से मौसम और फसल प्रबंधन का पूर्वानुमान लगाती हैं। उन्होंने इस पारंपरिक ज्ञान को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विश्लेषण करने का प्रयास किया, और उनके शोध से यह सिद्ध हुआ कि घाघ की कहावतें स्थानीय जलवायु और मौसम के सूक्ष्म अवलोकन पर आधारित थीं, जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी काफ़ी सटीक हैं।
इस प्रकार, डॉ. हिन्यूबर जैसे वैज्ञानिकों ने पारंपरिक भारतीय ज्ञान को वैश्विक मंच पर एक नया दृष्टिकोण दिया और दिखाया कि कैसे यह ज्ञान आधुनिक विज्ञान के लिए भी मूल्यवान हो सकता है।
घाघ और भड्डरी की कहावतें
घाघ की कहावतें मुख्य रूप से कृषि और मौसम की भविष्यवाणियों पर केंद्रित थीं। ये कहावतें आसान और सरल भाषा में होती थीं, ताकि आम किसान भी उन्हें समझ सके। कुछ प्रसिद्ध कहावतें हैं:
“आषाढ़ महीने खेती जो जोते, सावन में जो बियाए।
भादों मास जो पूरन पावे, लख को धान उपजाए।”
इस कहावत में यह बताया गया है कि अगर किसान सही समय पर खेत जोते और बीज लगाए, तो उन्हें अच्छी फसल मिलेगी।
“पूस मास हर जो हरियाए,
फागुन फसल सरसाए।”
यह मौसम और फसल की स्थिति के अनुसार फसल के सही बढ़ने के संकेत देती है।
तीतरवर्णी बादली विधवा काजल रेख।
वा बरसे वा घर करे इमे मीन न मेख।।
अर्थात् बादलों का रंग तीतर जैसा हो जाये और विधवा स्त्री आँखों में काजल लगाये तो समझो कि बादल जरूर बरसेंगे और वह महिला घर बसायेगी।
ऐसी उक्तियों के सहारे बड़े मनोरंजक तरीके से वर्षा, गर्मी, सर्दी आदि की भविष्यवाणियॉं की जाती हैं। चीन में भी यह विज्ञान काफी विकसित हुआ। वहॉं भी बादलों का रंग, हवा का रुख तथा पशु-पक्षियों की हरकतों को देख कर मौसम की सम्भावना टटोली जाती है।
शुकरवारी बादली रही शनीचर छाय।
घाघ कहे,हे भड्डरी बिन बरस्यां नहीं जाय।।अर्थात शुक्रवार को छाये बादल शनिवार को भी बने रहे तो निश्चित है अच्छी वर्षा होगी।
उत्तर चमके बीजली पूरब बहे जु बाव।
घाघ कहे सुण भड्डरी बरधा भीतर लाव।।
उत्तर दिशा में बिजली चमके और हवा पूर्व की हो तो घाघ कहते हैं कि भड्डरी बैल को घर के अन्दर बॉंध लो, बरसात आने वाली है।
वर्षा और वायु के सिद्धान्त- घाघ और भड्डरी की जोड़ी ने वैसे तो खेती सम्बन्धी प्रत्येक पक्ष के सिद्धान्त बताये हैं, पर वर्षा सम्बन्धी उनकी उक्तियॉं अधिक प्रचलित हैं। अच्छी वर्षा के लिये वे कहते हैं-
सावन केरे प्रथम दिन, उगत न दीखै भान।
चार महीना बरसै पानी, याको है रमान।।
यदि श्रावण के कृृष्ण पक्ष की एकम को आसमान में बादल छाये रहे और प्रातःकाल सूर्य के दर्शन न हों तो यह इस बात का प्रमाण है कि चार महीनों तक जोरदार वर्षा होगी।
अच्छी वर्षा के और लक्षण बताते हुए घाघ कहते हैं-
चैत्र मास दशमी खड़ा, जो कहुँ कोरा जाइ।
चौमासे भर बादला, भली भॉंति बरसाई।।
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को यदि आसमान में बादल नहीं हैं तो यह मान लेना चाहिये कि इस साल चौमासे में बरसात अच्छी होगी।
कम वर्षा के योग भड्डरी ने इस प्रकार बताये हैं-
नवै असाढ़े बादले, जो गरजे घनघोर।
कहै भड्डरी ज्योतिसी, काले पड़े चहुँ ओर।।
आषाढ़ कृष्ण नवमी के दिन यदि आकाश में घनघोर बादल गरजें तो भड्डरी ज्योतिषी कहती है कि चारों ओर अकाल पड़ेगा।
सावन पुरवाई चलै, भादौ में पछियॉंव।
कन्त डगरवा बेच के, लरिका जाइ जियाव।।
श्रावण माह में यदि पुरवा (पूर्व दिशा से हवा) बहे और भाद्रपद में पछुआ (पश्चिम दिशा की हवा) चले तो (भड्डरी घाघ से कहती है कि ) स्वामी पशुओं को बेच दो और बच्चों की चिंता करो, क्योंकि अकाल पड़ने वाला है।
पशु-पक्षियों के व्यवहार से वर्षा का अनुमान लगाने के सम्बन्ध में अनुमान लगाने के सम्बन्ध में कहा गया है-
उलटे गिरगिट ऊँचे चढ़े, बरसा होई भुई चल बढ़े।
जब गिरगिट उलटा हो कर ऊपर की ओर चढ़े तो समझो कि अच्छी वर्षा होगी और पृथ्वी पर जल बढ़ेगा।
ढेले ऊपर चील जो बोले, गली-गली में पानी डोले।
खेत में किसी ढेले पर बैठ कर चील बोले तो तय है कि जोरदार बरसात होगी और गलियों में पानी भर जायेगा।
वायु की दिशा से वर्षा का सम्बन्ध इस प्रकार बताया गया है-
पुरवा में पछियॉंव बहै, हॅंस के नारि पुरुष से कहै।
ऊ बरसे ई करे भतार, घाघ कहें यह सगुन विचार।।
यदि पूर्वी और पश्चिमी वायु एकसाथ मिल कर बहती हों और जब कोई महिला पर पुरुष से हॅंस कर बात करती हो तो जल निश्चित बरसेगा और वह महिला कलंक लगायेगी।
कार्तिक का महीना सर्दियों के शुरू में आता है। वर्षा ऋतु इसके आठ महीने बाद आती है। लेकिन इस महीने का भी वर्षा से सम्बन्ध बताते हुए भड्डरी कहती है-
कातिक सुदी एकादशी बादल बिजली होय।
कहे भड्डरी असाढ़ में, बरखा चोखी होय।।
अर्थात यदि कार्तिक शुक्ल एकादशी (देवउठनी ग्यारस) को आकाश में बादल हों और बिजली चमके तो आषाढ़ में उत्तम वर्षा होगी।
वर्षा का अनुमान लगाने के बारे में भड्डरी संकेत देती है कि,
जो बदरी बादरमॉं खमसे, कहे भड्डरी पानी बरसे।
अर्थात् यदि बादलों के ढेर में बादल समाते हों तो भड्डरी का कहना है कि पानी बरसेगा।
घाघ केवल मौसम के ही विशेषज्ञ नहीं थे बल्कि खेती के सभी पक्षों में निष्णात थे। बीज कब बोने चाहिये, जमीन को कब और कैसे जोतना चाहिये, निराई-गुड़ाई कब हो, खाद कैसे तैयार करनी चाहिये, बैलों की पहिचान आदि सभी पक्षों के सिद्धान्त उन्होंने बताये हैं। इसके अतिरिक्त उनकी नीति सम्बन्धी उक्तियॉं भी हैं। एक उदाहरण देखिये-
अतरे खोतरे डंड करै, ताल नहाय ओसमॉं परै।
कहे भड्डरी ऐसे नर को, देव न मारे आपुई मरै।।
जो कभी-कभी या अनियमिति रूप से कसरत करता है, तालाब में (बिना गइराई जाने) स्नान करता है और ओस में सोता है, उसे ईश्वर नहीं मारते, वह खुद अपनी मौत बुलाता है।
लोकोक्तियॉं बहुत प्रभाव छोड़ने वाली होती है और ग्रामीण अंचल की लोकोक्तियॉं तो किसानों का मार्गदर्शन करने का काम करती हैं। घाघ की उक्तियॉं ऐसी ही प्रभावी लोकोक्तियॉं हैं। वे कहते हैं-
गया पेड़ जब बगुला बैठा, गया गेह जब मुड़िया पैठा।
गया राज जहॅं राजा लोभी, गया खेत जहॅं जामी गोभी।।
जिस पेड़ पर बगुला बैठने लगता है, वह सूख जाता है, जिस घर में कापालिकों-तांत्रिकों का प्रवेश हो जाता है वह घर नष्ट हो जाता है। वह राज्य नष्ट हो जाता है जिसका राजा लोभी हो और वह खेत नष्ट हो जाता है जिसमें गोभी पैदा की जाती है।
अपने यहॉं ऋतुचर्या अर्थात् मौसम के अनुसार खाने-पीने का बड़ा महत्व है। घाघ-भड्डरी ने भी सभी ऋतुओं के पथ्य-कुपथ्य बताये हैं। वर्ष के बारह महीनों में क्या नहीं खाना चाहिये, इस बारे में कहा गया है-
चैते गुड़ बैसाखे तेल, जेठे पन्थ अस़ाढे बेल।
सावन साग न भादो दही, क्वार करेला न कातिक मही।
अगहन जीरा पूसे धना, माघ मिश्री फागुन चना।
ई बारह जो देय बचाय, वाहि घर बैद कबौं न जाय।।
याने चैत्र में गुड़, वैशाख में तेल, ज्येष्ठ माह में धूप में धूमना, आषाढ़ में बील, श्रावण में हरी सब्जी, भादों में दही, क्वार में करेला और कार्तिक में छाछ, मार्गशीर्ष में जीरा, पौष में धनिया, माघ में मिश्री तथा फागुन में चने का प्रयोग नहीं करना चाहिये। जो इसका ध्यान रखते हैं उनके घर वैद्य-डाक्टर कभी नहीं आते। ये तो निषेध हैं, फिर खाना क्या चाहिये?
घाघ कहते हैं-
सावन हर्रे भादों चीत, क्वार मास गुड़ खायउ मीत।
कार्तिक मूली, अगहन तेल, पूस में करें दूध से मेल।
माघ मास घिउ खिचड़ी खाय, फागुन उठि के प्रात नहाय।
चैत मास में नीम बेसहती, वैसाखे में खाय जड़हथी।
जेठ मास जो दिन में सोवै, ओकर ज्वर असाढ़ मे रोवै।।
सावन में हरड़, भादों में चीता (एक झाड़ी जिसके पत्ते बड़े गुणकारी होते हैं), क्वार में गुड़, कार्तिक में मूली, मार्गशीर्ष में तेल, पूस में दूध , माघ महीने में घी-खिचड़ी, फागुन में प्रातः काल स्नान, चैत्र में नीम की पत्तियॉं और वैसाख में भात जो खाता है तथा जेठ के महीने में दोपहर में सोने (विश्राम करने) वाला आषा़ढ़ माह में होने वाली बीमारियों एवं बुखार से दूर रहता है।
मौसम पूर्वानुमान: घाघ की कहावतों में मौसम के बारे में सटीक भविष्यवाणियाँ की गई हैं। उनकी भविष्यवाणियाँ बादलों, हवाओं और अन्य प्राकृतिक संकेतों पर आधारित होती थीं।
फसल प्रबंधन: उनकी कहावतें बताती हैं कि किस समय कौन-सी फसल उगानी चाहिए और किन मौसमों में फसल की सुरक्षा कैसे करनी चाहिए।
स्थानीय ज्ञान: घाघ ने स्थानीय पर्यावरण और भूगोल के आधार पर सलाह दी, जो हर क्षेत्र के लिए अलग-अलग होती थी।
आज भी कई कृषि वैज्ञानिक और शोधकर्ता घाघ की कहावतों का अध्ययन कर रहे हैं। वे देख रहे हैं कि कैसे पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान को एक साथ जोड़ा जा सकता है। कई अध्ययनों में पाया गया है कि घाघ की कहावतें मौसम के व्यवहार और कृषि की समझ को विकसित करने में सहायक हो सकती हैं। खासकर ग्रामीण इलाकों में यह ज्ञान आज भी प्रासंगिक है।
घाघ भड्डरी की कहावतें भारतीय कृषि का एक अमूल्य हिस्सा हैं। उनका वैज्ञानिक महत्व आज भी प्रासंगिक है, और उन पर शोध यह दिखाता है कि किस तरह पारंपरिक ज्ञान आधुनिक विज्ञान के साथ मिलकर किसानों के लिए फायदेमंद हो सकता है। उनकी कहावतें न केवलकृषि ज्ञान का स्रोत हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपरा का हिस्सा भी हैं।
क्या वेदों को लेकर कुप्रचार कि वे जातिवाद का समर्थन करते हैं
वेदों के बारे में फैलाई गई भ्रांतियों में से एक यह भी है कि वे ब्राह्मणवादी ग्रंथ हैं और शूद्रों के साथ अन्याय करते हैं | हिन्दू/सनातन/वैदिक धर्म का मुखौटा बने जातिवाद की जड़ भी वेदों में बताई जा रही है और इन्हीं विषैले विचारों पर दलित आन्दोलन इस देश में चलाया जा रहा है |
परंतु, इस से बड़ा असत्य और कोई नहीं है | इस श्रृंखला में हम इस मिथ्या मान्यता को खंडित करते हुए, वेद तथा संबंधित अन्य ग्रंथों से स्थापित करेंगे कि…
१.चारों वर्णों का और विशेषतया शूद्र का वह अर्थ है ही नहीं, जो मैकाले के मानसपुत्र दुष्प्रचारित करते रहते हैं |
२.वैदिक जीवन पद्धति सब मानवों को समान अवसर प्रदान करती है तथा जन्म- आधारित भेदभाव की कोई गुंजाइश नहीं रखती |
३.वेद ही एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जो सर्वोच्च गुणवत्ता स्थापित करने के साथ ही सभी के लिए समान अवसरों की बात कहता हो | जिसके बारे में आज के मानवतावादी तो सोच भी नहीं सकते |
आइए, सबसे पहले कुछ उपासना मंत्रों से जानें कि वेद शूद्र के बारे में क्या कहते हैं –
यजुर्वेद १८ | ४८
हे भगवन! हमारे ब्राह्मणों में, क्षत्रियों में, वैश्यों में तथा शूद्रों में ज्ञान की ज्योति दीजिये | मुझे भी वही ज्योति प्रदान कीजिये ताकि मैं सत्य के दर्शन कर सकूं |
यजुर्वेद २० | १७
जो अपराध हमने गाँव, जंगल या सभा में किए हों, जो अपराध हमने इन्द्रियों में किए हों, जो अपराध हमने शूद्रों में और वैश्यों में किए हों और जो अपराध हमने धर्म में किए हों, कृपया उसे क्षमा कीजिये और हमें अपराध की प्रवृत्ति से छुड़ाइए |
यजुर्वेद २६ | २
हे मनुष्यों ! जैसे मैं ईश्वर इस वेद ज्ञान को पक्षपात के बिना मनुष्यमात्र के लिए उपदेश करता हूं, इसी प्रकार आप सब भी इस ज्ञान को ब्राह्मण, क्षत्रिय, शूद्र,वैश्य, स्त्रियों के लिए तथा जो अत्यन्त पतित हैं उनके भी कल्याण के लिये दो | विद्वान और धनिक मेरा त्याग न करें |
अथर्ववेद १९ | ३२ | ८
हे ईश्वर ! मुझे ब्राह्मण, क्षत्रिय, शूद्र और वैश्य सभी का प्रिय बनाइए | मैं सभी से प्रसंशित होऊं |
अथर्ववेद १९ | ६२ | १
सभी श्रेष्ठ मनुष्य मुझे पसंद करें | मुझे विद्वान, ब्राह्मणों, क्षत्रियों, शूद्रों, वैश्यों और जो भी मुझे देखे उसका प्रियपात्र बनाओ |
इन वैदिक प्रार्थनाओं से विदित होता है कि –
-वेद में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चारों वर्ण समान माने गए हैं |
-सब के लिए समान प्रार्थना है तथा सबको बराबर सम्मान दिया गया है |
-और सभी अपराधों से छूटने के लिए की गई प्रार्थनाओं में शूद्र के साथ किए गए अपराध भी शामिल हैं |
-वेद के ज्ञान का प्रकाश समभाव रूप से सभी को देने का उपदेश है |
-यहां ध्यान देने योग्य है कि इन मंत्रों में शूद्र शब्द वैश्य से पहले आया है,अतः स्पष्ट है कि न तो शूद्रों का स्थान अंतिम है और ना ही उन्हें कम महत्त्व दिया गया है|
इस से सिद्ध होता है कि वेदों में शूद्रों का स्थान अन्य वर्णों की ही भांति आदरणीय है और उन्हें उच्च सम्मान प्राप्त है |
यह कहना कि वेदों में शूद्र का अर्थ कोई ऐसी जाति या समुदाय है जिससे भेदभाव बरता जाए – पूर्णतया निराधार है |
ॐ!!