Friday, January 17, 2025
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अमरीका ने भारत को 297 पुरावशेष वस्तुएं वापस कीं

भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्यरत भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और अमरीकी विदेश विभाग के शैक्षिक एवं सांस्कृतिक मामलों के ब्यूरो ने दोनों देशों के बीच घनिष्ठ द्विपक्षीय संबंधों को बनाए रखने तथा बेहतर सांस्कृतिक समझ को बढ़ावा देने के उद्देश्य से जुलाई, 2024 में एक सांस्कृतिक संपदा समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इसका लक्ष्य सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के लिए सहयोग बढ़ाने के उद्देश्य से राष्ट्रपति बाइडेन और प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा व्यक्त की गई प्रतिबद्धताओं को पूरा करना है, जैसा कि जून 2023 में उनकी बैठक के बाद जारी संयुक्त वक्तव्य में परिलक्षित होता है।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अमरीका की यात्रा के अवसर पर अमरीकी पक्ष ने भारत से चोरी की गयी अथवा तस्करी के माध्यम से ले जायी गयी 297 प्राचीन वस्तुओं की वापसी में सहायता की है। इन्हें शीघ्र ही भारत को वापस लौटा दिया जाएगा। डेलावेयर के विलमिंगटन में द्विपक्षीय बैठक के दौरान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति बाइडेन को प्रतीकात्मक रूप से कुछ चुनिंदा वस्तुएं सौंपी गईं। प्रधानमंत्री ने इन कलाकृतियों की वापसी में सहयोग के लिए राष्ट्रपति बाइडेन को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि ये पुरावशेष न केवल भारत की ऐतिहासिक भौतिक संस्कृति का हिस्सा थे, बल्कि भारतीय सभ्यता एवं चेतना का आंतरिक आधार भी थे।

ये पुरावशेष वस्तुएं लगभग 4000 वर्ष पुरानी समयावधि अर्थात 2000 ईसा पूर्व से लेकर 1900 ईसवी तक की हैं और इनका उद्गम भारत के विभिन्न हिस्सों से हुआ है। इनमें से अधिकांश पुरावशेष पूर्वी भारत की टेराकोटा कलाकृतियां हैं, जबकि अन्य वस्तुएं पत्थर, धातु, लकड़ी तथा हाथी दांत से बनी हैं और देश के विभिन्न भागों से संबंधित हैं। सौंपी गई कुछ उल्लेखनीय पुरावशेष वस्तुएं इस प्रकार हैं:

मध्य भारत से प्राप्त बलुआ पत्थर की 10-11वीं शताब्दी ई. की अप्सरा की मूर्ति;
मध्य भारत से मिली कांस्य की बनी जैन तीर्थंकर की 15-16वीं शताब्दी की प्रतिमा;
पूर्वी भारत से प्राप्त तीसरी-चौथी शताब्दी का बना टेराकोटा फूलदान;
दक्षिण भारत की पत्थर की मूर्ति पहली शताब्दी ईसा पूर्व से पहली शताब्दी ईसवी तक की है;
दक्षिण भारत से प्राप्त कांस्य के बने भगवान गणेश, 17-18वीं शताब्दी ई. के;
उत्तर भारत से प्राप्त बलुआ पत्थर से बनी भगवान बुद्ध की खड़ी प्रतिमा, जो 15-16वीं शताब्दी की है;
पूर्वी भारत से प्राप्त भगवान विष्णु की कांस्य प्रतिमा 17-18वीं शताब्दी ई. की है;
2000-1800 ईसा पूर्व से संबंधित उत्तर भारत से तांबे में तैयार मानवरूपी आकृति;
दक्षिण भारत से प्राप्त भगवान कृष्ण की कांस्य मूर्ति
17-18वीं शताब्दी की प्रतिमा है; और
दक्षिण भारत से प्राप्त ग्रेनाइट में निर्मित भगवान कार्तिकेय की 13-14वीं शताब्दी की मूर्ति।

हाल के समय में, सांस्कृतिक संपदा की वापसी भारत और अमरीका की सांस्कृतिक समझ व आदान-प्रदान का एक महत्वपूर्ण पहलू बन गई है। वर्ष 2016 से, अमरीका की सरकार ने बड़ी संख्या में तस्करी या चोरी की गई प्राचीन वस्तुओं की भारत वापसी की सुविधा प्रदान की है। जून, 2016 में प्रधानमंत्री की अमरीका यात्रा के दौरान 10 पुरावशेष लौटाए गए; वहीं सितंबर, 2021 में उनकी यात्रा के दौरान 157 वस्तुएं और पिछले वर्ष जून में उनकी यात्रा के दौरान 105 पुरावशेष लौटाए गए। इस प्रकार साल 2016 के बाद अमरीका से भारत को लौटाई गई सांस्कृतिक कलाकृतियों की कुल संख्या 578 हो चुकी है। यह किसी भी देश द्वारा भारत को लौटाई गई सांस्कृतिक पुरावशेष की सर्वाधिक संख्या है।

क्वांटम इनर्फिरन्सेंज परमाण्विक माध्यम में उच्च सटीकता वाले क्वांटम सेंसर के लिए प्रकाश को संग्रहीत कर सकता है

प्रयोगकर्ताओं ने एक परमाण्विक माध्यम में उपयुक्त प्रकाशीय प्रतिक्रिया प्राप्त की है, जिसका उपयोग प्रकाश को काफी समय तक संग्रहीत करने के लिए किया जा सकता है, जिससे उच्च सटिकता वाले क्वांटम सेंसरों के लिए कई क्वांटम प्रोटोकॉल के अनुप्रयोगों को डिजाइन करना और आसान हो जाएगा।

पिछले कई सालों से वैज्ञानिक रुबिडियम और सीजियम जैसे क्षारीय परमाणुओं पर काम कर रहे हैं, लेकिन पोटेशियम के प्रयोग के लिए बहुत कम प्रयास किए गए हैं, क्योंकि इस तत्व के साथ काम करना बहुत कठिन है।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के स्वायत्त संस्थान रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट में क्वांटम मिक्सचर (क्यूमिक्स) लैब के गौरव पाल और डॉ. सप्तऋषि चौधरी ने अपने सहयोगी प्रोफेसर सुभाशीष दत्ता गुप्ता, टीआईएफआर हैदराबाद के साथ मिलकर थर्मल पोटेशियम का इस्तेमाल किया और परमाणविक माध्यम में क्वांटम इंटरफेरेंस पैदा करने के लिए परमाणुओं को दो लेजर लाइट के अधीन किया। इस परमाणविक माध्यम के अंदर क्वांटम कोहिरंस नियंत्रित प्रकाश का उपयोग करके पैदा किया गया, जो एक लेजर भी है। पोटेशियम परमाणुओं का उपयोग करके प्रयोग करने के लिए ये जांच और नियंत्रित प्रकाश अत्यधिक स्थिर लेजर स्रोतों से प्राप्त किया गया था।

“इस कार्य की नवीन प्रकृति कोहिरंट माध्यम द्वारा विद्युत चुम्बकीय रूप से प्रेरित ट्रांस्‍परेंसी (ईआईटी) अध्ययन करने के लिए पोटेशियम परमाणुओं के उपयोग में निहित है। हमने जांच प्रकाश प्रतिक्रिया को समझने की कोशिश की, जब यह एक परमाणविक कोहिरंट माध्यम से गुजरा,” गौरव पाल, पीएचडी छात्र और ‘पोटेशियम वाष्प में वेग चयनात्मक कई दो-फोटोन डार्क और ब्राइट रेजोनेंस’ शीर्षक वाले पेपर के प्रमुख लेखक ने कहा।

ईआईटी एक क्वांटम इंटरफेरेंस घटना है, जो परमाणविक माध्यम में ऑप्टिकल प्रतिक्रिया को नाटकीय रूप से संशोधित करती है। ऑप्टिकल नॉनलीनियारिटी में, प्रकाश के उपयोग से प्रकाश को नियंत्रित करने के कई अनूठे अवसर होते हैं। और इसका एक बहुत अच्‍छा उदाहरण ईआईटी है। यह घटना तब होती है, जब एक सघन माध्यम से गुजरते समय एक जांच किरण के संचरण को नियंत्रित किरण के माध्यम से नियंत्रित किया जाता है।  ईआईटी प्रयोग प्रकाश के एक या अधिक कणों के साथ क्वांटम डोमेन में स्केलेबल होने के कारण, संबंधित पदार्थ वांछित रूप से परमाणुओं और फोटॉनों के साथ क्वांटम प्रोटोकॉल के कार्यान्वयन की अनुमति देता है।

प्रयोगों के बाद किए गए अवलोकनों ने आश्चर्यजनक परिणाम दिए। सिर्फ़ एक अनुनाद रेखा आकार को देखने के बजाय, जैसा कि अन्य क्षारीय परमाणुओं के मामले में होता रहा है, क्यूमिक्स प्रयोगकर्ताओं ने इस बार एक ही अवशोषण स्पेक्ट्रम में तीन-रेखा आकार देखे।

क्यूमिक्स लैब के सह-लेखक और प्रमुख डॉ. चौधरी ने कहा, “पोटेशियम वाष्प का उपयोग करके तीन पारदर्शिता खिड़कियों की यह नई विशेषता पहली बार देखी गई। आमतौर पर, पिछले अध्ययनों में केवल एक रेखा आकार को रिपोर्ट किया गया है, जिसमें रुबिडियम या सीज़ियम परमाणुओं का उपयोग किया गया था।”

फिजिका स्क्रिप्ट में प्रकाशित नवीनतम शोधपत्र ने कोहिरंट परमाणविक माध्‍यम में विभिन्न प्रकार के क्वांटम अनुनादों पर समग्र वर्तमान समझ को और बेहतर किया है।

“अतिरिक्त टू-लाइन आकार विशेष रूप से पोटेशियम परमाणुओं में निकट-अंतर वाली, अति सूक्ष्म ग्राउंड स्‍टेट्स के कारण उभरे। दो लेजर लाइटों को गतिशील परमाणुओं का उपयोग करके अपने उत्तेजना पथों का आदान-प्रदान करते हुए पाया गया, जिससे दो अतिरिक्त अनुनाद रेखाएँ उत्‍पन्‍न हुईं। हमने इनका प्रयोगात्मक रूप से उचित सैद्धांतिक मॉडलिंग के साथ अध्ययन किया है,” पाल ने समझाया।

प्रकाश किरणों के फोटॉन परमाणविक माध्यम के अंदर संग्रहीत होते हैं। जब परमाणविक माध्यम में कोहिरंस स्थापित हो जाता है, तो प्रकाश की जानकारी फोटॉन से परमाणुओं में चली जाती जाती है। कुछ समय बाद, यह प्रक्रिया पूर्व दशा में लौट आती है।

क्वांटम प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में भारत द्वारा अपने अनुसंधान और विकास प्रयासों को तेजी से आगे बढ़ाने के साथ, आरआरआई शोधकर्ताओं ने कहा कि प्रकाश को काफी समय तक संग्रहीत करने की यह क्षमता क्वांटम मेमोरी और क्वांटम संचार सहित कई, भविष्य के क्वांटम प्रोटोकॉल में काम आएगी। पोटेशियम का उपयोग करके कोहिरंट परमाणविक मीडिया की इस समझ का सीधा अनुप्रयोग लेज़र के अति-सटीक आवृत्ति स्थिरीकरण के क्षेत्र में होगा।

चूँकि लाइन शेप्‍स आवृत्ति डोमेन में स्थिति के संदर्भ में ट्यून करने योग्य हैं, इसलिए यह लेजर आवृत्ति को स्थिर करने के लिए एक आदर्श उपकरण है, खास तौर पर जहाँ स्पेक्ट्रोस्कोपिक रेफरेंसेज उपलब्ध नहीं हैं। शोधकर्ताओं ने कहा कि इससे महंगे वेब-लेंग्‍थ मीटर का उपयोग करने की आवश्यकता नहीं होगी।

आरआरआई की जोड़ी ने दावा किया कि निष्कर्ष अद्वितीय है, क्योंकि यह पुष्टि करता है कि क्वांटम मास्टर समीकरण (क्यूएमई) विवरण उन मामलों में भी मान्य है, जहां ग्राउंड एनर्जी लेवल सेपरेशन छोटा है। क्यूएमई क्वांटम मैकेनिकल सिस्टम (यहां पोटेशियम परमाणविक वाष्प) का अनुरूपण करने के लिए एक सैद्धांतिक उपकरण है, जहां प्रकाश-पदार्थ इंटरैक्शन का अध्ययन किया जाता है। यह तरीका विभिन्न संभावित डिके टर्म्स को शामिल करने के लिए फ्लेक्‍सेबुल है, जो वास्तविक दुनिया के क्वांटम सिस्टम की नकल करते हैं। हम लोगों ने अपने सैद्धांतिक मॉडलिंग में प्रासंगिक डिके टर्म्स के साथ क्यूएमई का इस्‍तेमाल किया है।

शोध पत्र लिंक: https://iopscience.iop.org/article/10.1088/1402-4896/ad5b2c

मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के 100 दिन: महिलाओं के नेतृत्व में विकास

भारत जैसे-जैसे 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विजन को साकार करने की ओर आगे बढ़ रहा है, सरकार यह सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है कि   महिलाएं विकास की इस दौड़ में पीछे न छूटे। केंद्र सरकार ने विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब महिलाओं के सामने आने वाली चुनौतियों को ध्यान में रखते राष्ट्र के विकास में महिलाओं की क्षमता का उपयोग करके उन्हें सशक्त बनाने के लिए कई परिवर्तनकारी पहल शुरू की है।

दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन

ग्रामीण विकास मंत्रालय की दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (डीएवाई-एनआरएलएम) सबसे उल्लेखनीय प्रयासों में से एक है। डीएवाई-एनआरएलएम, भारत सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है जो गरीबों, विशेष रूप से महिलाओं की मज़बूत संस्थाएं  बना कर गरीबी कम करने को बढ़ावा देता है । साथ ही इन संस्थानों को विभिन्न वित्तीय सेवाओं एवं आजीविका सेवाओं तक पहुंचने में सक्षम बनाता है। डीएवाई-एनआरएलएम को अत्यधिक गहन कार्यक्रम के रूप में डिज़ाइन किया गया है और यह गरीबों को कार्यात्मक रूप से प्रभावी समुदाय के स्वामित्व वाले संस्थानों में संगठित करने, उनके वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने और उनकी आजीविका को मजबूत करने के लिए मानव और भौतिक संसाधनों के गहन अनुप्रयोग पर केंद्रित है।

आपसी आधार पर महिला स्व-सहायता समूह (एसएचजी) का एक साथ आना डीएवाई-एनआरएलएम समुदाय संस्थागत डिजाइन का प्राथमिक आधार है। डीएवाई-एनआरएलएम गांव और उच्च स्तर पर  स्वयं सहायता समूहों एवं उनके संघों सहित गरीब महिलाओं की संस्थाओं के निर्माण, पोषण और मजबूती पर ध्यान केंद्रित करता है। इसके अलावा, डीएवाई-एनआरएलएम ग्रामीण क्षेत्र के गरीबों के आजीविका  से जुड़े संस्थानों को बढ़ावा देता है।

इस मिशन ने 92.06 लाख से अधिक स्व-सहायता समूहों (एसएचजी) में 10.03 करोड़ से अधिक महिलाओं को सफलतापूर्वक एकजुट किया है। ये एसएचजी पूरे भारत में महिलाओं के लिए वित्तीय समावेशन, डिजिटल साक्षरता, स्थायी आजीविका और सामाजिक विकास के इंजन के रूप में काम करते हैं। आजीविका विकास के लिए समग्र दृष्टिकोण को एकीकृत करके, डीएवाई-एनआरएलएम ने महिलाओं को गरीबी के चक्र से मुक्त होने और देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए सशक्त बनाया है।

लखपति दीदी योजना: महिला उद्यमियों को सशक्त बनाना

लखपति दीदी स्व-सहायता समूह की सदस्य है जो एक लाख रुपये (1,00,000 रुपये) या उससे अधिक की वार्षिक घरेलू आय अर्जित करती हैं। इस आय की गणना कम से कम चार कृषि मौसमों और/या व्यावसायिक चक्रों के लिए की जाती है, जिनकी औसत मासिक आय दस हजार रुपये (10,000 रुपये) से अधिक है, ताकि यह आय निरंतर बनी रहे।

महाराष्ट्र के जलगांव में लखपति दीदी सम्मेलन में प्रधानमंत्री की भागीदारी ने महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता पर प्रकाश डाला। इस कार्यक्रम के दौरान, पीएम मोदी ने सरकार के तीसरे कार्यकाल के दौरान “लखपति दीदी” बनी 11 लाख महिलाओं को प्रमाण पत्र सौंपे। लखपति दीदी योजना के तहत महिलाएं आर्थिक रुप से आत्म निर्भर हुई हैं । आने वाले वर्षों में तीन करोड़ महिलाओं को लखपति दीदी बनाने का लक्ष्य रखा गया है।

इस अभियान को आगे बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री ने 2,500 करोड़ रुपये का रिवॉल्विंग फंड जारी किया, जिससे 4.3 लाख स्व-सहायता समूहों के लगभग 48 लाख सदस्यों को लाभ हुआ और 5,000 करोड़ रुपये के बैंक ऋण वितरित किए गए, जिससे 2.35 लाख एसएचजी के 25.8 लाख सदस्यों को लाभ होगा।

लखपति दीदी योजना की शुरुआत के बाद से अब तक एक करोड़ महिलाओं को लखपति दीदी बनाया गया है और सरकार ने तीन करोड़ लखपति दीदी बनाने का लक्ष्य रखा है।

वित्तीय संसाधनों का यह निवेश महिलाओं के नेतृत्व वाले एसएचजी को अपने संचालन का विस्तार

करने, आजीविका में सुधार करने और ग्रामीण क्षेत्रों में स्थायी आर्थिक विकास करने के लिए आवश्यक सहायता प्रदान करेगा ।

केंद्रीय बजट 2024-25: नारी शक्ति पर फोकस

वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन ने 2024-25 के केंद्रीय बजट में भारत के विकास में नारी शक्ति की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया। महिलाओं के कल्याण एवं सशक्तिकरण के लिए विभिन्न मंत्रालयों में 3.3 लाख करोड़ रुपये का उल्लेखनीय आवंटन किया गया है, जो कार्यबल में भागीदारी को बढ़ावा देगा।  सुरक्षा बढ़ाएगा और कामकाजी महिलाओं के  लिए छात्रावासों व क्रेचों जैसी अधिकाधिक सुविधाएँ मुहैया करवाई जाएँगी ।

विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए कई अन्य प्रमुख पहल शुरू की गई हैं:

1. कामकाजी महिला छात्रावास और क्रेच: श्रमशक्ति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ावा देने के लिए, सरकार, उद्योगों के  सहयोग से कामकाजी महिलाओं के  लिए छात्रावास और उनके बच्चों की देखभाल के लिए क्रेच स्थापित करेगी। सरकार के इन प्रयासों से महिलाओं को काम करने के लिए सुरक्षित और अनुकूल वातावरण मिलेगा ।

2. कौशल और रोजगार: राज्य सरकारों और उद्योगों के सहयोग से महिलाओं को कुशल बनाने के लिए केंद्र प्रायोजित योजना शुरू की जाएगी। यह पहल पांच वर्षों में 20 लाख युवाओं को कौशल प्रदान करेगी, जिसमें महिलाओं के लिए उनकी रोजगार क्षमता और वित्तीय स्वतंत्रता बढ़ाने के अवसर शामिल हैं।

3. मुद्रा ऋण: उन महिला उद्यमियों के लिए मुद्रा ऋण की सीमा 10 लाख रुपये से बढ़ाकर 20 लाख रुपये कर दी जाएगी जिन्होंने सफलतापूर्वक पिछला ऋण चुका दिया है। यह महिलाओं को अपने व्यवसायों को बढ़ाने और आर्थिक भागीदारी बढ़ाने में मदद करेगा।

4. समावेशी आर्थिक अवसर: महिला उद्यमियों, कारीगरों और स्व-सहायता समूहों (एसएचजी) का समर्थन करने के लिए स्टैंड-अप इंडिया, राष्ट्रीय आजीविका मिशन और पीएम विश्वकर्मा जैसी योजनाओं  का विस्तार किया जाएगा ।   इनके माध्यम से  महिलाओं के नेतृत्व वाले व्यवसाय के लिए वित्तीय संसाधनों और अवसरों तक व्यापक पहुंच सुनिश्चित होगी।

5. स्टांप शुल्क: केंद्रीय बजट 2024 के अनुसार केंद्र सरकार राज्यों को उच्च स्टांप शुल्क दरों को कम करने के लिए प्रोत्साहित करेगी । महिलाओं द्वारा खरीदी गई संपत्तियों के लिए शुल्क को और कम करने पर विचार करेगी, जिससे यह सुधार शहरी विकास योजनाओं का अनिवार्य घटक बन जाएगा।

बी.टेक, एम.टेक और पीएचडी स्कॉलर्स के लिए इंडिया एआई फेलोशिप कार्यक्रम

विद्यार्थी और शोध छात्र-छात्रा निर्धारित दिशा-निर्देशों के अनुसार 30 सितंबर, 2024 तक अपना नामांकन प्रस्तुत कर सकते हैं

इंडिया एआई- इंडिपेंडेंट बिजनेस डिवीजन (आईबीडी) इंडियाएआई फेलोशिप के लिए बी.टेक और एम.टेक विद्यार्थियों के नामांकन आमंत्रित किये जा रहे हैं। इसके अलावा, इंडियाएआई आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में शोध करने वाले नए पीएचडी प्रवेश लेने वालों के लिए इंडियाएआई फेलोशिप में भाग लेने के उद्देश्य से अपनी स्वीकृति साझा करने के लिए शीर्ष 50 नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) रैंक वाले अनुसंधान संस्थानों को भी आमंत्रित कर रहा है।

इंडियाएआई फेलोशिप के लिए इंडियाएआई द्वारा उन सभी बी.टेक और एम.टेक विद्यार्थियों से नामांकन आमंत्रित किए जाते हैं, जो एआई के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। यह फेलोशिप एक तरह से किसी भी मौजूदा फेलोशिप की पूरक होगी और इस फेलोशिप कार्यक्रम की अवधि बी.टेक विद्यार्थियों के लिए एक वर्ष तथा एम.टेक विद्यार्थियों के लिए दो वर्ष होगी।

विद्यार्थी इस वेब लिंक पर जाकर 30 सितंबर, 2024 तक निर्धारित दिशानिर्देशों के अनुसार अपना नामांकन प्रस्तुत कर सकते हैं –

https://indiaai.gov.in/article/proforma-for-submission-of-nominations-for-indiaai-fellowship-under-the-indiaai-mission

इंडियाएआई शीर्ष 50 नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क रैंक वाले अनुसंधान संस्थानों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में शोध करने वाले पूर्णकालिक पीएचडी छात्र-छात्राओं को फेलोशिप की पेशकश कर रहा है। इंडियाएआई – आईबीडी शीर्ष 50 रैंक वाले अनुसंधान संस्थानों को इंडियाएआई फेलोशिप में भाग लेने और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में नए पीएचडी छात्र-छात्राओं को शामिल करने के उद्देश्य से अपनी स्वीकृति साझा करने के लिए भी आमंत्रित कर रहा है। इन पीएचडी स्कॉलर्स को इंडियाएआई पीएचडी फेलोशिप में नामांकन के समय किसी भी अन्य संगठन से कोई छात्रवृत्ति / वेतन प्राप्त नहीं हो रहा होना चाहिए।

शीर्ष 50 नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क रैंक वाले शोध संस्थानों से अनुरोध किया जाता है कि वे अपनी सहमति देते हुए इंडियाएआई पीएचडी फेलोशिप दिशानिर्देशों के अनुसार नए पीएचडी छात्र-छात्राओं को शामिल करने के लिए संस्थान के प्रमुख द्वारा हस्ताक्षरित और मुहर लगे आधिकारिक लेटरहेड पर अपना अनुमोदन श्रीमती कविता भाटिया, विज्ञान ‘जी’ और जीसी (एआई और ईटी) को kbhatia@meity.gov.in पर 30 सितंबर, 2024 तक प्रस्तुत कर दें।

इंडियाएआई फेलोशिप के लिए उपयुक्त उम्मीदवारों का वास्तविक चयन इंडियाएआई द्वारा पात्रता, अनुसंधान प्रस्ताव की प्रासंगिकता, विद्यार्थियों के प्रोफाइल और राष्ट्रीय स्तर पर फेलोशिप की उपलब्धता के आधार पर किया जाएगा।

इंडियाएआई के बारे में 

इंडियाएआई, इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (एमईआईटीवाई) के डिजिटल इंडिया कॉरपोरेशन (डीआईसी) के तहत एक आईबीडी, इंडियाएआई मिशन की कार्यान्वयन एजेंसी है, जिसका उद्देश्य समाज के सभी वर्गों में एआई के लाभों का लोकतंत्रीकरण करना, एआई में भारत के वैश्विक नेतृत्व को सशक्त बनाना, तकनीकी आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना और एआई का नैतिक तथा जिम्मेदारी से भरा उपयोग सुनिश्चित करना है।

भारतीय रेल सेवा की प्रारंभ से लेकर आज तक की गौरवशाली यात्रा

भारतीय रेल का इतिहास बहुत ही समृद्ध और लंबा है, और इसका विकास भारत की सामाजिक, आर्थिक और औद्योगिक प्रगति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारतीय रेल की यात्रा का प्रारंभ 19वीं शताब्दी में हुआ, और तब से लेकर आज तक यह दुनिया के सबसे बड़े रेल नेटवर्क्स में से एक बन गई है। आइए इस पूरे इतिहास को विस्तार से समझते हैं:

प्रारंभिक दौर (1830-1853):

भारतीय रेल की शुरुआत ब्रिटिश शासन के दौरान हुई थी। 1830 के दशक में ही अंग्रेजों ने भारत में रेल सेवा शुरू करने की योजना बनाई थी, ताकि औपनिवेशिक शासन के दौरान व्यापार और प्रशासन में सुधार किया जा सके। हालांकि, पहली बार रेल पटरियां बिछाने का काम 1840 के दशक में शुरू हुआ।

16 अप्रैल 1853 को भारतीय रेल की औपचारिक शुरुआत हुई। यह पहली रेलगाड़ी मुंबई (तब बंबई) के बोरी बंदर स्टेशन से ठाणे तक चली, जो करीब 34 किलोमीटर की दूरी थी। इस ट्रेन में 14 डिब्बे थे और इसमें 400 लोग सवार थे। यह भारतीय रेल के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण मील का पत्थर था।

विस्तार और विकास (1854-1900):

पहली रेलगाड़ी की सफलता के बाद भारत में रेल नेटवर्क का तेजी से विस्तार होने लगा। 1854 में, हावड़ा और हुगली के बीच एक और रेल मार्ग शुरू हुआ। इस दौरान अंग्रेजी शासन ने रेलवे के विस्तार में भारी निवेश किया। 1870 तक, देश के विभिन्न हिस्सों को रेल मार्गों के द्वारा जोड़ा जा चुका था।

अंग्रेजों ने मुख्य रूप से कोलकाता, मुंबई और मद्रास को जोड़ने वाले मुख्य मार्ग बनाए, जिनका उपयोग मुख्यतः माल ढुलाई के लिए किया जाता था, विशेष रूप से कपास, जूट, और अन्य कच्चे माल को बंदरगाहों तक पहुँचाने के लिए। धीरे-धीरे, यह नेटवर्क पूरे देश में फैलता गया।

स्वदेशी आंदोलन और भारतीय रेल (1900-1947):

बीसवीं सदी की शुरुआत में, भारतीय रेल का और विस्तार हुआ। हालांकि, इसका नियंत्रण और प्रबंधन ब्रिटिश सरकार के हाथों में था। लेकिन स्वदेशी आंदोलन के दौरान भारतीय नेताओं ने महसूस किया कि भारतीय रेल को स्वतंत्रता आंदोलन में भी उपयोग किया जा सकता है। रेलवे का उपयोग करके लोग एक राज्य से दूसरे राज्य में यात्रा कर सकते थे और विचारों का आदान-प्रदान कर सकते थे।

1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने तक भारतीय रेल का नेटवर्क विशाल हो चुका था, और यह देश के लगभग हर प्रमुख हिस्से तक पहुँच चुका था। हालांकि, विभाजन के समय भारतीय रेल को बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा, क्योंकि बहुत से मार्ग और संसाधन पाकिस्तान को सौंप दिए गए।

स्वतंत्रता के बाद (1947-2000):

स्वतंत्रता के बाद भारतीय रेल को पुनर्गठित किया गया। भारत सरकार ने 1951 में सभी प्रमुख रेलमार्गों का राष्ट्रीयकरण कर दिया और इसे भारतीय रेल के नाम से एकल इकाई के रूप में संगठित किया गया। 1950 और 1960 के दशक में रेलवे का तेजी से विस्तार हुआ। नई तकनीकों का उपयोग शुरू हुआ और डीजल और इलेक्ट्रिक इंजन का प्रचलन बढ़ा।

1986 में भारतीय रेल ने कंप्यूटरीकृत आरक्षण प्रणाली की शुरुआत की, जिससे यात्रियों के लिए टिकट बुकिंग की प्रक्रिया आसान हो गई। इसके बाद से भारतीय रेल ने अपनी सेवाओं को लगातार बेहतर किया।

माधव राव सिंधिया भारतीय राजनीति के प्रमुख नेताओं में से एक थे और उन्होंने 1986 से 1989 तक भारत के रेल मंत्री के रूप में कार्य किया। इस दौरान उन्होंने भारतीय रेल में कई महत्वपूर्ण सुधार और नवाचार किए, जिनका उद्देश्य रेलवे की कार्यकुशलता, यात्री सुविधाएं और सेवा की गुणवत्ता में सुधार करना था। उनके कार्यकाल को भारतीय रेल के विकास और आधुनिकीकरण के लिए एक महत्वपूर्ण दौर माना जाता है।

माधव राव सिंधिया का कार्यकाल भारतीय रेल के इतिहास में एक स्वर्णिम युग के रूप में जाना जाता है। उन्होंने भारतीय रेल को आधुनिक और यात्रियों के लिए अधिक सुविधाजनक बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण सुधार किए। उनकी दूरदर्शी नीतियों और प्रगतिशील सुधारों ने भारतीय रेल को न केवल यात्री परिवहन में बल्कि देश की आर्थिक धारा में भी एक मजबूत आधार प्रदान किया।

1. नई रेलगाड़ियों का शुभारंभ:

  • सिंधिया ने भारतीय रेल में कई नई ट्रेनों की शुरुआत की, विशेषकर लंबी दूरी और प्रमुख शहरों के बीच बेहतर कनेक्टिविटी के लिए। उन्होंने प्रीमियम ट्रेनों जैसे शताब्दी एक्सप्रेस की शुरुआत की, जो भारतीय रेल के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था।
  • शताब्दी एक्सप्रेस की शुरुआत 1988 में हुई थी, जो कि तेज़ और आरामदायक यात्रा के लिए जानी जाती है। यह ट्रेन नई दिल्ली और झांसी के बीच चलाई गई थी और इसे विशेष रूप से उन यात्रियों के लिए डिजाइन किया गया था जो व्यवसाय या काम के सिलसिले में कम समय में यात्रा करना चाहते थे।

2. इन्फ्रास्ट्रक्चर में सुधार:

  • सिंधिया ने रेलवे के इन्फ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने के लिए व्यापक प्रयास किए। उन्होंने पटरियों के आधुनिकीकरण, रेलवे स्टेशनों के पुनर्विकास और डीजल तथा इलेक्ट्रिक इंजन के उपयोग को बढ़ावा दिया।
  • उनके कार्यकाल में रेलगाड़ियों की स्पीड और सुरक्षा में सुधार के लिए पटरियों और सिग्नल सिस्टम को अपडेट किया गया। इससे रेल सेवाओं की दक्षता और समयबद्धता में सुधार हुआ।

3. आरक्षण प्रणाली में सुधार:

  • सिंधिया के समय में कंप्यूटराइज्ड रिजर्वेशन सिस्टम की शुरुआत की गई, जिससे यात्रियों को टिकट बुकिंग और रिजर्वेशन की प्रक्रिया में सुविधाएं मिलने लगीं। पहले जहाँ टिकट बुकिंग की प्रक्रिया लंबी और जटिल थी, वहीं कंप्यूटरीकृत व्यवस्था से यह प्रक्रिया बहुत तेज और पारदर्शी हो गई।
  • इस प्रणाली का आरंभ विशेष रूप से नई दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, और कोलकाता जैसे बड़े शहरों में किया गया था, जिसे बाद में पूरे देश में विस्तारित किया गया।

4. रेलवे स्टेशनों का सुधार:

  • रेलवे स्टेशनों पर यात्री सुविधाओं में सुधार लाने के लिए सिंधिया ने कई नए उपाय किए। स्टेशनों की साफ-सफाई, प्रतीक्षालयों में सुधार, पेयजल की सुविधाएं और अन्य बुनियादी सुविधाओं पर जोर दिया गया।
  • उन्होंने प्रमुख रेलवे स्टेशनों पर सुरक्षा और आराम के स्तर को बढ़ाने के लिए ध्यान दिया।

5. वित्तीय सुधार:

  • भारतीय रेल की वित्तीय स्थिति को सुधारने के लिए उन्होंने कई आर्थिक नीतियाँ अपनाई। किरायों में वृद्धि किए बिना रेलगाड़ियों के संचालन की दक्षता को बढ़ाने पर जोर दिया गया। सिंधिया ने भारतीय रेल को एक स्वावलंबी और लाभदायक संगठन बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

6. तकनीकी उन्नति:

  • उनके कार्यकाल में रेलवे के तकनीकी उन्नयन पर भी जोर दिया गया। इलेक्ट्रिक इंजन और डीजल इंजन के उपयोग को बढ़ावा मिला, जिससे रेलगाड़ियों की गति और दक्षता में सुधार हुआ।
  • साथ ही, माल ढुलाई सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए नए उपाय किए गए, जिससे भारतीय रेल के माल ढुलाई नेटवर्क का विकास हुआ।

7. रेलवे कर्मचारियों के हित में सुधार:

  • सिंधिया ने रेलवे कर्मचारियों की स्थितियों में भी सुधार लाने की कोशिश की। उन्होंने कर्मचारियों के लिए बेहतर कार्य वातावरण और सुविधाएं प्रदान करने के उपाय किए, ताकि उनकी कार्यक्षमता में सुधार हो सके।
  • साथ ही, रेलवे यूनियनों के साथ संवाद बनाए रखा और उनके साथ मिलकर रेलवे कर्मचारियों के हितों की रक्षा के लिए प्रयास किए।

श्री  सुरेश प्रभु ने 2014 से 2017 तक भारत के रेल मंत्री के रूप में कार्य किया, और इस दौरान उन्होंने भारतीय रेल के विकास और आधुनिकीकरण के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। उनका कार्यकाल व्यापक सुधारों और नई पहलों से भरा रहा, जिनका उद्देश्य रेलवे की क्षमता, सुरक्षा, वित्तीय स्थिति, और यात्री सेवाओं को बेहतर बनाना था। उन्होंने रेलवे को अधिक तकनीकी, पर्यावरण के अनुकूल और आधुनिक बनाने की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। आइए उनके योगदान पर विस्तार से चर्चा करते हैं

1. रेल बजट में सुधार

  • सुरेश प्रभु ने रेल बजट को पूरी तरह से बदल दिया। इससे पहले रेल बजट में आमतौर पर नई रेलगाड़ियों की घोषणा पर जोर दिया जाता था, लेकिन प्रभु ने इस परंपरा को तोड़ा और बजट को रेलवे के बुनियादी ढांचे, सुरक्षा और आधुनिकीकरण पर केंद्रित किया।
  • उन्होंने दीर्घकालिक योजना पर ध्यान दिया, ताकि रेलवे का समग्र विकास हो सके और अल्पकालिक लाभों से हटकर दीर्घकालिक लाभ प्राप्त किया जा सके।He focused on

2. रेलवे में निवेश और वित्तीय सुधार

  • प्रभु ने रेलवे में बड़े पैमाने पर निजी और सार्वजनिक निवेश आकर्षित किया। रेलवे के विकास के लिए 8.5 लाख करोड़ रुपये की पाँच वर्षीय योजना का अनावरण किया गया। इस धनराशि का उपयोग रेलवे के बुनियादी ढांचे, नई रेल लाइनों और आधुनिकीकरण में किया गया।
  • उन्होंने भारतीय रेल को आर्थिक रूप से सुदृढ़ बनाने के लिए पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल को बढ़ावा दिया और विश्व बैंक जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं से वित्तीय सहायता प्राप्त की।

3. सुरक्षा में सुधार:

  • सुरक्षा के क्षेत्र में सुधार सुरेश प्रभु के प्रमुख एजेंडे में से एक था। उन्होंने रेलवे सुरक्षा फंड (1 लाख करोड़ रुपये) की स्थापना की, जिसका उद्देश्य रेलवे के बुनियादी ढांचे, सिग्नलिंग सिस्टम, ट्रैक्स, और पुलों के रखरखाव में सुधार करना था।
  • ट्रैक के नवीनीकरण और सिग्नल सिस्टम के उन्नयन पर विशेष ध्यान दिया गया ताकि दुर्घटनाओं की संख्या को कम किया जा सके। उन्होंने फायर अलार्म सिस्टम और ट्रेनों में सीसीटीवी कैमरों की स्थापना जैसे सुरक्षा उपायों को भी बढ़ावा दिया।

4. डिजिटलीकरण और तकनीकी सुधार:

  • सुरेश प्रभु ने भारतीय रेल के डिजिटलीकरण की दिशा में बड़े कदम उठाए। ई-टिकटिंग प्रणाली को और बेहतर बनाया गया, जिससे यात्रियों को टिकट बुकिंग और यात्रा की जानकारी प्राप्त करने में आसानी हुई। जैसे मोबाइल एप्लिकेशन की शुरुआत की, जिसके माध्यम से यात्री शिकायत दर्ज करा सकते थे और अपनी समस्याओं का शीघ्र समाधान पा सकते थे।
  • रेलवे में जीआईएस (Geographic Information System) और GIS (Geographic Information System) in Railways ड्रोन सर्वे जैसी अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग शुरू किया गया ताकि ट्रैक की स्थिति और अन्य रेलवे संपत्तियों की निगरानी की जा सके।

5. पर्यावरण के अनुकूल पहल:

  • सुरेश प्रभु ने रेलवे को पर्यावरण के अनुकूल बनाने पर भी जोर दिया। उन्होंने सौर ऊर्जा औरविंड एनर्जी का उपयोग रेलवे स्टेशनों और ट्रेनों के लिए बढ़ावा दिया।
  • उनके कार्यकाल में कई स्टेशनों पर सोलर पैनल लगाए गए और ट्रेनों में बायो-टॉयलेट की शुरुआत की गई, ताकि रेलवे का पर्यावरण पर प्रभाव कम हो सके।
  • रेलवे को ग्रीन रेलवे बनाने के लिए कई उपाय किए गए, जिसमें T*कार्बन फुटप्रिंट को कम करने पर जोर दिया गया।

6. यात्री सेवाओं में सुधार:

  • यात्रियों की सुविधा के लिए सुरेश प्रभु ने कई नई योजनाएँ शुरू कीं। स्टेशनों की सफाई, वॉटर वेंडिंग मशीनों की स्थापना, बेहतर कैटरिंग सेवाएं, और रेलगाड़ियों में ऑनबोर्ड मनोरंजन जैसी सुविधाएं प्रदान की गईं।
  • उन्होंने रेलवे स्टेशन विकास योजना भी शुरू की, जिसमें प्रमुख रेलवे स्टेशनों को आधुनिक बनाने और वहाँ हवाई अड्डा जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराने पर जोर दिया गया।
  • रेलगाड़ियों में वाई-फाई की सुविधा और अनारक्षित टिकटों की ऑनलाइन बुकिंग की शुरुआत की गई, ताकि यात्रियों को अधिक सुविधाएं मिल सकें।

7. नई ट्रेनों और परियोजनाओं की शुरुआत

  • सुरेश प्रभु ने कई महत्वपूर्ण नई ट्रेनों की शुरुआत की, जैसे हमसफर एक्सप्रेस,अंत्योदय एक्सप्रेस, और तेजस एक्सप्रेस, जो तेज़, आरामदायक और आधुनिक सुविधाओं से लैस थीं। उन्होंने बुलेट ट्रेन परियोजना की नींव रखी, जो भारत में हाई-स्पीड ट्रेन नेटवर्क को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़ा कदम था। अहमदाबाद और मुंबई के बीच बुलेट ट्रेन परियोजना की शुरुआत इसी अवधि में हुई।

8. रेलवे कर्मचारियों के हित में सुधार

  • सुरेश प्रभु ने रेलवे कर्मचारियों की सुरक्षा और कल्याण के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। उन्होंने कर्मचारियों के लिए बेहतर कार्य वातावरण, हेल्थकेयर सुविधाएं, और ट्रेनिंग प्रोग्राम्स पर ध्यान दिया।
  • साथ ही, कर्मचारियों के डिजिटल रिकॉर्ड्स को बेहतर तरीके से प्रबंधित करने के लिए ई-ऑफिस प्रणाली की शुरुआत की।

आधुनिक युग (2000-वर्तमान

सन् 2000 के बाद भारतीय रेल में कई बड़े बदलाव और सुधार हुए। हाई-स्पीड ट्रेन सेवाएं, जैसे कि शताब्दी और राजधानी एक्सप्रेस, पहले से ही शुरू हो चुकी थीं। इसके साथ ही भारतीय रेल ने कई बड़े प्रोजेक्ट्स शुरू किए, जैसे:

  • कूलर और एसी कोचों का प्रचलन बढ़ाना।
  • बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट का प्रस्ताव, जिसकी शुरुआत 2023 में हो चुकी है।
  • मेट्रो और मोनोरेल जैसी परियोजनाओं का विकास, जो बड़े शहरों में यातायात को सुगम बनाने के लिए है।
  • स्वच्छता, सुरक्षा, और डिजिटलीकरण पर विशेष ध्यान दिया गया है। यात्रियों की सुविधा के लिए मोबाइल एप्स और ऑनलाइन टिकट बुकिंग में सुधार किया गया।

2021 में वंदे भारत एक्सप्रेस जैसी आधुनिक सेमी-हाई-स्पीड ट्रेन की शुरुआत की गई, जो भारत के रेलवे के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।

भविष्य की योजनाएं:

भारतीय रेल भविष्य में और भी आधुनिक तकनीकों और सेवाओं को अपनाने की दिशा में काम कर रही है। बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट्स, हाइड्रोजन ट्रेन, और हरित ऊर्जा (Green Energy) का उपयोग भारतीय रेल के विकास का महत्वपूर्ण हिस्सा होंगे।


भारतीय रेल न केवल भारत के आर्थिक और सामाजिक ताने-बाने का अभिन्न हिस्सा रही है, बल्कि यह देश की विविधता और सांस्कृतिक धरोहर को भी एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। समय के साथ भारतीय रेल ने अपने आप को लगातार उन्नत और आधुनिक बनाया है, और आने वाले समय में यह और भी तेज़, सुरक्षित और सुविधाजनक बनने की ओर अग्रसर है।

इन जिहादियों से बच्चों को बचाकर रखें वर्ना आपके बच्चे बचेंगे नहीं

खतना, नमाज, इस्लाम… कहानी 10 साल की उम्र में गायब हुए ‘सत्यम’ को कबाड़ी ‘समीर खान’ बनाने की, ब्रेनवॉश ऐसा कि अब अपने परिवार के साथ भी रहना नहीं चाहता

पीड़ित माँ के अनुसार राशिद भले गिरफ्तार हो गया है, लेकिन उन्हें उनका बेटा सत्यम वापस नहीं मिला। उसका ऐसा ब्रेनवॉश किया गया है कि उसने उनको माँ मानने से ही इनकार कर दिया। खुद को मुस्लिम बताते हुए कहा कि उसकी हिन्दू धर्म में आस्था नहीं है।

उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले में शनिवार (14 सितंबर 2024) को धर्मान्तरण केस में नामजद राशिद नाम के आरोपित की पुलिस से मुठभेड़ हुई थी। इस मुठभेड़ में राशिद घायल हो गया था, जिसे पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। वह पिछले 19 वर्षों से फरार चल रहा था। राशिद 2005 में घर से लापता हुए हिन्दू बच्चे को इस्लाम कबूल करवाने का आरोपित है। उसके पास से अवैध हथियार और गोला-बारूद भी बरामद हुआ है। अब 30 साल के हो चुके सत्यम नाम के बच्चे को फिलहाल समीर खान बना दिया गया है। ऑपइंडिया से बात करते हुए सत्यम की माँ ने बताया कि उनके बेटे का ब्रेनवॉश इस हद कर तक कर दिया गया है कि वो अब अपने परिजनों के संग रहने को तैयार ही नहीं है।

यह मामला रामपुर जिले के थानाक्षेत्र शाहाबाद का है। यहाँ 13 सितंबर को मंजू देवी नाम की महिला ने पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई थी। शिकायत में मंजू ने बताया है कि साल 2005 में उनका 10 वर्षीय बेटा सत्यम अचानक कहीं लापता हो गया था। तब पीड़िता ने इसकी शिकायत हापुड़ के पिलखुआ थाने में दर्ज करवाई थी। बच्चे के लापता होने की खबर अख़बार में भी प्रकाशित करवाई गई थी। काफी खोजबीन कर के मंजू ने पता लगाया कि उनका बेटा रामपुर जिले में राशिद के घर रहता है।

बच्चे को खोजते हुए मंजू देवी रामपुर पहुँची। यहाँ उनकी मुलाकात अपने बेटे से हुई। मंजू के बेटे ने यहाँ बताया कि 2005 में उसको पहले उनको दिल्ली ले जाया गया। वहाँ से बच्चे को कबाड़ी राशिद अपने साथ रामपुर ले आया। राशिद ने बच्चे को अपने साथ रखा और रुपए पैसे का लालच दे कर इस्लाम कबूल करवा दिया। कुछ दिनों बाद सत्यम का नाम बदल कर समीर खान रख दिया गया। एक नया आधार कार्ड भी बनवा दिया गया जिसमें समीर के अब्बा का नाम वाज़िद खान छाप दिया गया।

सत्यम की माँ का आरोप है कि उनके बेटे का खतना करवा दिया गया था और नमाज़ पढ़वाई जा रही थी। पीड़िता मंजू राय ने राशिद के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की माँग की थी। इस तहरीर पर पुलिस ने राशिद के खिलाफ नामजद FIR दर्ज कर लिया। उस पर उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म सम्परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम के तहत कार्रवाई की गई। ऑपइंडिया के पास FIR कॉपी मौजूद है। केस दर्ज होने की जानकारी मिलते ही राशिद फरार हो गया। पुलिस ने उसकी तलाश में दबिश देनी शुरू कर दी।

13 सितंबर को राशिद के खिलाफ FIR दर्ज कर के पुलिस ने दबिश देनी शुरू कर दी थी। इस बीच अगले दिन 14 सितंबर को शाहाबाद थाने के SHO इंस्पेक्टर पंकज पंत अपने साथी पुलिसकर्मियों के साथ गश्त कर रहे थे। इसी दौरान उनको मुखबिर ने राशिद के एक खंडहर के पास छिपे होने की सूचना दी। पुलिस टीम इस सूचना पर बताए गए खंडहर की तरफ निकल पड़ी। सूचना सही पाई गई। राशिद खंडहर के पास मौजूद था।

पुलिस के मुताबिक पुलिस बल को अपनी तरफ बढ़ता देख राशिद भड़क गया। वह चीख कर बोला, “सालों पुलिस वालों, तुम भी आ गए। आज तुम्हारा भी काम तमाम करता हूँ।” इतना कह कर राशिद ने पुलिस पर गोलियाँ बरसानी शुरू कर दी। राशिद की फायरिंग से पुलिस ने खुद को बचाते हुए सरेंडर करने की चेतावनी दी। हालाँकि जब इस चेतावनी का उस पर कोई फर्क नहीं पड़ा तो पुलिस ने जवाबी फायरिंग की। पुलिस की गोली चलने पर राशिद भागने लगा जिसे दौड़ा कर दबोच लिया गया।

राशिद की तलाशी में उसके पास से एक तमंचा और कारतूस बरामद हुए। पुलिस पर हमले के आरोप पर उस पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 109 के साथ आयुध अधिनियम के तहत एक और FIR दर्ज हुई है। पूछताछ में राशिद ने बताया कि वो फ़िलहाल दिल्ली के ओखला फेज 1 में रहता है। वह कीपैड फोन ले कर चलता था। पुलिस की पूछताछ में उसने सत्यम के धर्मान्तरण मामले में अपने ऊपर लगे आरोपों को कबूल किया है। फिलहाल राशिद को जेल भेज दिया गया है। ऑपइंडिया के पास पुलिस की FIR मौजूद है।

ऑपइंडिया ने इस मामले में मंजू देवी से सम्पर्क किया। मंजू देवी ने बताया कि उनको आशंका है कि 2005 में उनका बेटा खुद लापता नहीं हुआ था बल्कि उसे साजिशन गायब किया गया था। बचपन में ही सत्यम की संगति गलत हो जाने का दावा करते हुए मंजू ने बताया कि सबसे पहले उसे दिल्ली में लगभग 4 महीने रखा गया। यहाँ मुस्लिम समुदाय के लोगों ने उसे अपने रंग में ढाला और कबाड़ आदि बीनने के काम पर लगाया। बाद में सत्यम को रामपुर शाहाबाद में भेज दिया गया। रामपुर में सत्यम को राशिद के पास रखा गया।

मंजू देवी आगे बताती हैं कि राशिद ने सत्यम को नौकरों की तरह रख कर काम करवाए। यहीं पर उसे मुस्लिम बना दिया गया और खतना भी करवाया गया। थोड़े समय बाद सत्यम को शाहाबाद के ही रहने वाले वाज़िद खान के सुपुर्द कर दिया गया। वाज़िद ने सत्यम का समीर खान नाम से आधार कार्ड बनवाया और खुद को उसका अब्बा दिखा दिया। वाज़िद ने भी अपने पूरे परिवार को कमा कर खिलाने की जिम्मेदार सत्यम पर डाल दी। सत्यम कभी कबाड़ बीन कर तो कभी फेरी लगा कर वाज़िद के परिवार का पेट भरता रहा।

मंजू देवी आते बताती हैं कि साल 2017 में ही उन्होंने अपने बेटे को खोज निकाला था। तब वो जैसे-तैसे रामपुर से मिन्नत कर के अपने बेटे को वापस हापुड़ ले आईं थीं। यहाँ सत्यम महज 2 से ढाई महीने के बीच रहा। सत्यम का नाम भी आधार कार्ड में बदलवा दिया गया। इस बीच कोई विक्की खान उसको लगातार कॉल कर के वापस लौटने के लिए ब्रेनवॉश करता रहा। इस ब्रेनवॉश का असर ये रहा कि सत्यम मंदिर जाने और पूजापाठ आदि से चिढ़ने लगा था। आखिरकार लगभग ढाई महीने बाद सत्यम फिर से अपना घर छोड़ कर रामपुर चला गया।

मंजू देवी बताती हैं कि इसके बाद उन्होंने अपने बेटे को वापस पाने की बहुत कोशिश की लेकिन वो नाकाम रहीं। पीड़िता के एक और बेटा है जो सत्यम से छोटा है। मंजू देवी के पति मेहनत मजदूरी कर के परिवार पालते हैं। खुद मंजू भी एक प्राइवेट स्कूल में काम कर के अपने परिवार के लिए चार पैसे जुटाती हैं। इसी पैसे से वो अपने दूसरे बेटे की पढ़ाई आदि करवा रहीं हैं। मंजू चाहती हैं कि उनके बेटे के धर्मान्तरण में शामिल सिर्फ राशिद ही नहीं बल्कि दिल्ली से रामपुर तक प्रकाश में आए सभी आरोपितों पर एक्शन हो।

मंजू देवी ने हमको आगे बताया कि भले ही राशिद जेल चला गया है लेकिन उनको सत्यम वापस नहीं मिल पाया। पुलिस के आगे सत्यम ने उनको माँ मानने से ही इंकार कर दिया। सत्यम ने खुद को मुस्लिम बताते हुए कहा कि उसको हिन्दू धर्म में आस्था नहीं बची है। पुलिस के आगे कोई भी मुस्लिम सत्यम पर अपना दावा करने नहीं आया। मंजू देवी के मुताबिक उनके बेटे को मुस्लिमों द्वारा वर्तमान समय में साजिशन उत्तराखंड एक रुद्रपुर कहीं शिफ्ट कर दिया गया है।

मंजू ने हमको आगे बताया कि भले ही उनका बेटा उन्हें दोबारा वापस न मिले पर वो मुस्लिम मत छोड़ कर अपने मूल धर्म में वापस लौट आए। उन्होंने कहा कि अगर वो कहीं गौशाला में गायों की सेवा करे, किसी मठ या मंदिर का पुजारी बन जाए या किसी हिन्दू अधिकारी/व्यापारी के घर नौकरी करने लगे तो उन्हें बहुत सुकून मिलेगा। मंजू ने प्रशासन के साथ हिन्दू संगठनों से भी उम्मीद जताई है कि वो उनके बेटे को मुस्लिम मत से बाहर निकालने में मदद करें।

पीड़िता ने अपने परिवार की सुरक्षा भी खतरे में होने की बात कहते हुए भविष्य में चरमपंथियों द्वारा किसी अनहोनी की भी आशंका जाता है। अंत में वो फूट-फूट कर रोने लगीं और कहा कि कुछ साजिशकर्ताओं ने उनके परिवार को बर्बाद कर दिया। मंजू को यह भी चिंता है कि इस विवाद से उनके छोटे बेटे की शादी-ब्याह में दिक्कत पेश आ सकती है। फ़िलहाल पुलिस पूरे मामले की जाँच व अन्य जरूरी कानूनी कार्रवाई कर रही है।

(चित्र में 19 साल पहले लापता सत्यम को समीर खान बनाने वाला राशिद रामपुर में एनकाउंटर के बाद गिरफ्तार (चित्र साभार- आज तक)


साभार-https://hindi.opindia.com/ से

श्राध्द में श्रध्दा और आस्था दोनों है

पितृ पक्ष अथवा श्राद्ध पक्ष चल रहा है। इस पक्ष का हिंदू धर्म में बड़ा महत्व है।इस पक्ष के दौरान आस्थावान अपने प्रियजनों का श्राद्ध और तर्पण करते हैं। श्राद्ध का मतलब है श्रद्धा। पितृ पक्ष में लोग अपने पितरों के प्रति श्रद्धा को व्यक्त करते हैं।श्राद्ध हिन्दू एवं अन्य भारतीय धर्मों में किया जाने वाला एक कर्म है जो पितरों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता अभिव्यक्त करने तथा उन्हें याद करने का एक तरीका है। इसके पीछे मान्यता यह है कि जिन पूर्वजों विशेषकर माता-पिता के कारण आज हम अस्तित्व में हैं, जिनसे गुण व कौशल आदि हमें विरासत में मिलें हैं, उनका  हम पर ऋण है जिसे चुकाया जाना चाहिए।
हिन्दू धर्म में माता-पिता की सेवा को सबसे बड़ी पूजा माना गया है। जन्मदाता माता-पिता को मृत्यु-उपरांत लोग विस्मृत न कर दें, इसलिए उनका श्राद्ध करने का विशेष विधान बताया गया है। भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक के सोलह दिनों को पितृपक्ष कहते हैं जिसमें हम अपने पूर्वजों की सेवा करते हैं।हमारे हिंदू धर्म-दर्शन के अनुसार जिस प्रकार जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु भी निश्चित है,उसी प्रकार जिसकी मृत्यु हुई है, उसका जन्म भी निश्चित है।
ऐसे कुछ विरले ही होते हैं जिन्हें मोक्ष प्राप्ति हो जाती है। पितृपक्ष में तीन पीढ़ियों तक के पिता पक्ष के तथा तीन पीढ़ियों तक के माता पक्ष के पूर्वजों के लिए तर्पण किया जाता हैं। इन्हीं को ‘पितर’ कहते हैं। जिस तिथि को माता-पिता का देहांत होता है, उसी तिथि को पितृपक्ष में उनका श्राद्ध किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष में अपने पितरों के निमित्त जो अपनी शक्ति सामर्थ्य के अनुरूप शास्त्र विधि से श्रद्धापूर्वक दान करता है, उसके सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं और घर-परिवार, व्यवसाय तथा आजीविका में हमेशा उन्नति होती है।
एक प्रसंग याद आ रहा है।भारतीय संस्कृति के अग्रदूत और गीताप्रेस गोरखपुर के संस्थापक स्वर्गीय हनुमानप्रसाद पोद्दार से एक जिज्ञासु ने प्रश्न किया: ‘क्या सचमुच श्राद्धपक्ष के दौरान पितरों को दिया गया पिंडदान या फल-फूल आदि की तर्पण-अंजलि पितरों तक पहुँचती है?’पोद्दारजी ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया:’राजस्थान के किसी दूरदराज गाँव से केरल के किसी दूरदराज़ गाँव में रह रहे किसी व्यक्ति को अगर हम सौ रुपये का मनीऑर्डर भेजते हैं तो वह केरल में रह रहे उस व्यक्ति तक पहुंचता है कि नहीं?
’पहुंचता है।‘उस व्यक्ति ने तुरंत उत्तर दिया।‘ ‘बस वैसे ही किसी पूर्व-नियोजित विधि से पितर-दान भी संबंधित पितर तक पहुंचता है।‘
आज मेरे पिताजी का श्राद्ध है और त्रयोदशी को माताजी का। पूरा विश्वास है  कि दोनों स्वर्ग में वास कर अपने प्रियजनों पर आशीर्वाद की वर्षा कर रहे होंगे। कहना न होगा कि सीमित साधनों के बावजूद दोनों ने हम को वह दिया जिसकी वजह से हम वह बन पाए जो आज हम हैं।
डॉ. शिबन कृष्णा रैणा
8209074186

पं. दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानववाद – एक दिव्य सिद्धांत

(25 सितंबर, दीनदयाल जी की जयंती पर विशेष )
महान दार्शनिक प्लेटो के शिष्य व सिकंदर के गुरु अरस्तु ने कहा था – “विषमता का सबसे बुरा रूप है विषम चीजों को एक समान बनाने का प्रयत्न करना।” The worst form of inequality is to try to make unequal things equal. एकात्म मानववाद, विषमता को इससे बहुत आगे के स्तर पर जाकर हमें समझाता है।
भारत को एक स्टेट या कंट्री से बढ़कर एक राष्ट्र के रूप में और इसके निवासियों को नागरिक नहीं अपितु परिवार सदस्य के रूप में माननें के विस्तृत दृष्टिकोण का ही अर्थ है एकात्म मानववाद। मानवीयता के उत्कर्ष की स्थापना यदि किसी राजनैतिक सिद्धांत में हो पाई है तो वह है पंडित दीनदयाल जी उपाध्याय का एकात्म मानववाद का सिद्धांत! एकात्म मानववाद को दीनदयालजी सैद्धांतिक स्वरूप में नहीं बल्कि आस्था के स्वरूप में लेते थे, यह  कोई राजनैतिक सिद्धांत नहीं अपितु एक आत्मिक भाव है।
अपनें एकात्म मानववाद के अर्थों को विस्तारित करते हुए ही उन्होंने कहा था कि – “हमारी आत्मा ने अंग्रेजी राज्य के प्रति विद्रोह केवल इसलिए नहीं किया कि दिल्ली में बैठकर राज करने वाले विदेशी थे, अपितु इसलिए भी कि हमारे दिन-प्रतिदिन के जीवन में, हमारे जीवन की गति में विदेशी पद्धतियां और रीति-रिवाज, विदेशी दृष्टिकोण और आदर्श अड़ंगा लगा रहे थे, हमारे संपूर्ण वातावरण को दूषित कर रहे थे, हमारे लिए सांस लेना भी दूभर हो गया था।
आज यदि दिल्ली का शासनकर्ता अंग्रेज के स्थान पर हममें से ही एक, हमारे ही रक्त और डीएनए वाला हो गया है तो हमको इसका हर्ष है, संतोष है, किन्तु हम चाहते हैं कि उसकी भावनाएं और कामनाएं भी हमारी ही भावनाएं और कामनाएं हों। जिस राष्ट्र की मिट्टी से उसका शरीर बना है, उसके प्रत्येक रजकण का इतिहास उस राष्ट्र के प्रमुख के प्रत्येक शब्द से प्रतिध्वनित होना चाहिए।
ॐ के पश्चात ब्रह्माण्ड के सर्वाधिक सूक्ष्म बोधवाक्य “जियो और जीनें दो” को “जीने दो और जियो” के क्रम में रखनें के देवत्व धारी आचरण का आग्रह लिए वे भारतीय राजनीति विज्ञान के उत्कर्ष का एक नया क्रम स्थापित कर गए। व्यक्ति की आत्मा को सर्वोपरि स्थान पर रखनें वाले उनकें सिद्धांत में आत्मबोध करनें वाले व्यक्ति को समाज का शीर्ष माना गया। आत्म बोध के भाव से उत्कर्ष करता हुआ व्यक्ति, सर्वे भवन्तु सुखिनः के भाव से जब अपनी रचना धर्मिता और उत्पादन क्षमता का पूर्ण उपयोग करे, तब एकात्म मानववाद का उदय होता है, ऐसा वे मानतें थे।
देश और नागरिकता या नेशन और नेशनलिटी जैसे शब्दों के सन्दर्भ में यहाँ यह तथ्य पुनः मुखरित होता है कि उपरोक्त वर्णित व्यक्ति देश का नागरिक नहीं बल्कि राष्ट्रपुत्र होता है। पाश्चात्य के भौतिकता वादी विचार जब अपनें चरम की ओर बढ़नें की दिशा में था तब पंडित जी नें इस प्रकार के विचार को सामनें रखकर वस्तुतः पश्चिम से वैचारिक युद्ध का शंखनाद किया था। उस दौर में द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद वैश्विक स्तर पर विचारों और अभिव्यंजनाओं की स्थापना, मंडन-खंडन और भंजन की परस्पर होड़ चल रही थी। विश्व मार्क्सवाद, फासीवाद, अति उत्पादकता का दौर देख चुका था और मंदी के ग्रहण को भी भोग चूका था।
वैश्विक सिद्धांतों और विचारों में अभिजात्य और नव अभिजात्य की सीमा रेखा आकार ले चुकी थी तब सम्पूर्ण विश्व में भारत की ओर से किसी राजनैतिक सिद्धांत के जन्म की बात को भी किंचित असंभव और इससे भी बढ़कर हास्यास्पद ही माना जाता था। अंग्रेज शासन काल और अंग्रेजोत्तर काल में भी हम वैश्विक मंचों पर हेय दृष्टि से और विचारहीन दृष्टि से देखे और मानें जाते थे। निश्चित तौर पर हमारा स्वातंत्र्योत्तर शासक वर्ग या राजनैतिक नेतृत्व जिस प्रकार पाश्चात्य शैलियों, पद्धतियों, नीतियों में जिस प्रकार डूबा-फंसा-मोहित रहा उससे यह हास्य और हेय भाव बड़ा आकार लेता चला गया था। तब उस दौर में दीनदयाल उपाध्याय ने एकात्म मानव वाद के सिद्धांत की गौरवपूर्ण रचना और उद्घोषणा की थी।
1940 और 1950 के दशकों में विश्व में मार्क्सवाद से प्रभावित और लेनिन के साम्राज्यवाद से जनित “निर्भरता का सिद्धांत” एक राजनैतिक शैली हो चला था। निर्भरता का सिद्धांत Dependency Theory यह है कि संसाधन, निर्धन या अविकसित देशों से विकसित देशों की ओर प्रवाहित होतें हैं और यह प्रवाह निर्धन देशों को और अधिक निर्धन करते हुए धनवान देशों को और अधिक धनवान बनाता है। इस सिद्धांत से यह तथ्य जन्म ले चुका था कि राजनीति में अर्थनीति का व्यापक समावेश होना ही चाहिए।
 संभवतः पंडित दीनदयाल जी नें इस सिद्धांत के उस मर्म को समझा जिसे पश्चिमी जगत कभी समझ नहीं पाया। पंडित जी ने निर्भरता के इस कोरे शब्दों वाले सिद्धांत में मानववाद नामक आत्मा की स्थापना की और इसमें से भौतिकतावाद के जिन्न को बाहर ला फेंका !! राजनीति को अर्थनीति के साथ वैदिकता का पुट देकर गूंथ देना और इसके समन्वय से एक नवसमाज के नवांकुर को रोपना और सींचना यही उनका एकात्म मानववाद था। भौतिकता से दूर किन्तु मानव के श्रेष्ठतम का उपयोग और उससे सर्वाधिक उत्पादन, फिर उत्पादन का राष्ट्रहित में उपयोग और राष्ट्रहित से अन्त्योदय का ईश्वरीय कार्य यही एकात्म मानववाद का चरम हितकारी रूप है।
इस परिप्रेक्ष्य का अग्रिम रूप देखें तो स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है कि “अर्थ का अभाव और अर्थ का प्रभाव” के माध्यम से वे विश्व की राजनीति में वैदिकता के तत्व का प्रवेश करा देना चाहते थे। यद्यपि उनकें असमय निधन से हमारे देश की व विश्व की राजनीति उस समय उनकें इस प्रयोग के कार्यरूप को देखनें से वंचित रह गई तथापि सिद्धांत रूप में तो वे उसे स्थापित कर ही गए थे। उस दौर में विश्व की सभी सभ्यताएं और राजनैतिक प्रतिष्ठान धन की अधिकता और धन की कमी से उत्पन्न होनें वाली समस्याओं से संघर्ष करती जूझ रही थी।
 तब उन्होंने भारतीय दर्शन आधारित व्यवस्थाओं के आधार पर धन के अर्जन और उसके वितरण की व्यवस्थाओं का परिचय शेष विश्व के सम्मुख रखा। उस दौर में पूर्वाग्रही और दुराग्रही राजनीति के कारण उनकी इस आर्थिक स्वातंत्र्य की अवधारणा को देखा पढ़ा नहीं गया किन्तु (विवश होकर ही सही) आर्थिक विवेक के उनकें सिद्धांत को भारतीय अर्थतंत्र में यदा कदा पढ़नें सुननें और व्यवहार में लानें के प्रयास भी होते रहे। यह अलग बात है कि इन प्रयासों में पंडितजी के नाम से परहेज करनें का पूर्वाग्रह यथावत चलता रहा।
नागरिकता से परे होकर “राष्ट्र एक परिवार” के भाव को आत्मासात करना और तब परमात्मा की ओर आशा से देखना यह उनकी एकात्मता का शब्दार्थ है। इस रूप में हम राष्ट्र का निर्माण ही नहीं करें अपितु उसे परम वैभव की ओर ले जाएँ यह भाव उनके सिद्धांत के एक शब्द “एकात्मता” में प्राण स्थापित करता है। हम इस चराचर पृथ्वी पर आधारित रहें, इसका शोषण नहीं बल्कि पुत्रभाव से उपयोग करें। इससे प्राप्त संसाधनों को मानवीय आधार पर वितरण की व्यवस्थाओं को समर्पित करते चलें यह अन्त्योदय का प्रारम्भ है। अन्त्योदय का चरम वह है जिसमें व्यक्ति व्यक्ति से परस्पर जुड़ा हो, निर्भर भी हो तो उसमें निर्भरता का भाव न तो कभी हेय दृष्टि से देखा जाए, और न ही कभी देव दृष्टि से!! इस प्रकार के अन्त्योदय का भाव प. दीन दयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद के सह उत्पाद के रूप में जन्मा जिसे सह उत्पाद के स्थान पर पुण्य प्रसाद कहना अधिक उपयुक्त होगा।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय संस्कृति के समग्र रूप को मानव और राज्य में स्थापित देखना चाहते थे। उन्होंने भारतीय संस्कृति की समग्रता और सार्वभौमिकता के तत्वों को पहचान कर आधुनिक सन्दर्भों में इसके नूतन रूपकों, प्रतीकों, शिल्पों की कल्पना की थी। उनकें विषय में पढ़ते अध्ययन करते समय मेरी अंतर्दृष्टि में वंचित भाव जागृत होता है और ऐसा लगता है कि कुछ था जो हमें पंडित दीनदयाल जी से और मिलना था किंतु मिल न पाया। मेरे मानस में आता है कि उनकें तत्व ज्ञान में कुछ ऐसा अभिनव प्रयोग आ चुका था जिसे वे शब्द रूप में या कृति रूप में प्रस्तुत नहीं कर पाए और काल के शिकार हो गए। उनकें मष्तिष्क में या वैचारिक गर्भ में कोई अभिनव और नूतन सिद्धांत रुपी शिशु था जो उनकें असमय निधन से अजन्मा और अव्यक्त ही रह गया है। पुण्य स्मरण !!!
(लेखक प्रवीण गुगनानी, विदेश मंत्रालय, भारत सरकार में राजभाषा सलाहकार हैं)
संपर्क  9425002270

अब्दुल नाम बदलकर आपकी बेटियों की जिंदगी बर्बाद कर रहा है

गुजरात के अहमदाबाद में वंदे भारत ट्रैन में एक लैपटॉप चोरी होता है। जब रेलवे पुलिस जांच करती है तब CCTV में उन्हें एक व्यक्ति लैपटॉप का बैग ले जाता हुआ दिखता है। पुलिस ने जिस मोबाइल नंबर से सीट बुक हुई थी उस नंबर को सर्विलेंस पर डाल दिया। इसके बाद चोर की लोकेशन दिल्ली की आती है, फौरन पुलिस की एक टीम दिल्ली के लिए निकलती है और जब ये टीम वहां की लोकल पुलिस के साथ उस होटल में पहुंचती है तब हर्षित चौधरी बना हुआ ये व्यक्ति शराब पी रहा था पुलिस जैसे ही इसे पकड़ती है तो यह कहता है कि मैं सेना में मेजर हूँ और यह बैग गलती से मेरे पास आ गया था।सेना का नाम सुनकर पुलिस थोड़ा झिझकती है पर CCTV में यह व्यक्ति साफ साफ चोरी करता दिख रहा था तो पुलिस इसकी पूछताछ करना शुरू करती है तब यह सेना का एक फर्जी ID कार्ड पुलिस को देता है और बार बार अपना नाम हर्षित चौधरी बताता है इसके बाद पुलिस इसकी ड्यूटी की जगह पूछती है और इसके बताये पोस्टिंग की जगह पर जब सेना से पता करती है तब असली खुलासा होता है।वास्तव मे इस व्यक्ति का असली नाम मोहम्मद शाहबाज खान था जो फर्जी तौर पर सेना का मेजर हर्षित चौधरी बना हुआ था, इसकी पहचान नकली होने के साथ साथ काफी डॉक्युमेंट भी नकली थे मोहम्मद शाहबाज खान अलीगढ़ का रहने वाला एक शादी शुदा व्यक्ति है जिसके 2 बच्चे भी थे, यह 2015 में सेना का सिपाही था मगर अनुशासन हीनता के चलते इसे फौज से निकाल दिया गया था और फिर ये चोरी चकारी करने लगा। अभी यह सब जांच चल ही रही थी कि पुलिस के पास इसके जब्त मोबाइल में एक महिला का फ़ोन आता है और उसके बाद एक हैरान करने वाला कांड और सामने आता है इस आदमी ने अपनी इस हिन्दू पहचान और मेजर की फर्जी पहचान के सहारे 100 से अधिक हिन्दू महिलाओं के साथ शादी डॉट कॉम के जरिये संपर्क किया जिसमें से 40 से 50 को ये आमने सामने मिल चुका था इसी नकली पहचान के साथ और उनमें से कई के लाखो रुपये लूट चुका था। पुलिस ने खुलासा किया है कि बड़े घरों की नौकरीपेशा अब तक कम से कम 24 लड़कियों के साथ यह शारीरिक संबंध बना चुका है जबकि एक लड़की के साथ लव जिहाद करके इसने मंदिर में शादी कर ली और उसे अलीगढ़ के ही एक मकान में किराए पर रखा हुआ था। ये उसी लड़कीं का फ़ोन था जो खुद को इसकी पत्नी बता रही थी। अब ये अहमदाबाद जेल में है और इससे कड़ी पूछताछ की जा रही है साथ मे यह भी जांच की जा रही है कि इसने और क्या क्या किया है इसने जिस लड़की से पहचान छुपा कर शादी की उसने भी इसके खिलाफ अलीगढ़ के ही एक थाने में FIR करवा दी है, उसने अपनी FIR में मारपीट और लव जिहाद सहित धर्मांतरण के दबाव का मामला दर्ज करवाया है इसके अलावा जो नकली पहचान इसने बनाई थी वह भरतपुर, राजस्थान के किसी हर्षित जादौन नाम के व्यक्ति की थी जिससे पुलिस ने संपर्क किया जिसके बाद अब उसने भी मोहम्मद शाहबाज खान पर FIR दर्ज करवा दी है इसके द्वारा कितनी महिलाओं का शोषण और किया गया है इसकी जांच अभी जारी है और यह संख्या बढ़ भी सकती है। न जाने कितनी लड़कियों की जिंदगी इसने बर्बाद कर दी।
साभार- https://x.com/parigupta1606/status/ से

अजरबेजान में भी फली फूली है सनातन संस्कृति

हम प्राचीन और मध्य काल में भारत के विस्तार के बारे में चर्चा तो करते हैं लेकिन शायद हम उतनी गहराई से उस विस्तार के बारे में सोच नही पाते। हमारी भौगालिक सीमाएं चाहे जो भी रही हों लेकिन वाणिज्यिक और सांस्कृतिक विस्तार बहुत व्यापक था इसके प्रमाण हमें निरंतर मिलते रहते हैं। दक्षिण एशिया तथा दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में तो ऐसे अनेकों प्रमाण हमें देखने को मिलते हैं जो उन देशों में भारतीय प्रभाव को दर्शाते हैं। लेकिन पश्चिम एशिया के देश जो यूरोप के प्रभाव में ज्यादा हैं वहां ऐसा कुछ देखने को मिले तो वो विशेष कौतूहल जगाता है।
अज़रबैजान की राजधानी बाकू के निकट सुराखानी कस्बा है जहां स्थित है आतेशगाह फायर टेंपल। यहां जाने पर आपको भारतीय वाणिज्य और संस्कृति के विस्तार का प्रत्यक्ष अनुभव होता है। एक बहुत सुंदर पंच कोणीय किले नुमा परिसर में प्रवेश करते ही आप एक अलग अनुभूति करते हैं। कहा जाता है कि 1745 ईस्वी में यहां भारतीय व्यापारियों द्वारा इसकी स्थापना की गई थी। यह मंदिर हमारे पारंपरिक मंदिरों जैसा नहीं है। इसके मध्य में अग्नि प्रज्वलित रहती है और उसी की उपासना यहां की जाती है।
अज़रबैजान अपने तेल के कुओं के कारण प्रसिद्ध है। कहा जाता हैं कि भूमि से निकलने वाली ज्वलनशील गैस के कारण यहां स्वतः ही अग्नि प्रज्वलित रहती है। यह पूरा परिसर सौ वर्ष पहले तक नियमित उपासना का केंद्र था । बाद में ये एक पर्यटक केंद्र के रूप में विकसित हुआ।
यहां मुख्य मंदिर के ऊपर ही आपको ” श्री गणेशाय नमः” और उसके साथ ज्वाला देवी और शंकर भगवान की स्तुति देवनागरी में उत्कीर्ण दिख जाएगी। साथ ही स्वास्तिक और त्रिशूल जैसे चिन्ह भी। माना जाता है कि सिल्क रूट के माध्यम से अपना व्यापार करने जाने वाले भारतीय व्यापारियों ने इसकी स्थापना की थी। उस काल में कहा जाता है कि एक बड़ी संख्या में भारतीय यहां रहते भी थे। आज भी अज़रबैजान में लगभग डेढ़ हजार भारतीय है। यहां इंडियन एसोसिएशन तो है ही साथ ही मलयाली एसोसिएशन भी है। इसी परिसर में अलग अलग कक्षों में आपको नटराज, गणेश की प्रतिमाएं भी दिख जाएंगी। साथ ही ध्यान और उपचार के भी कक्ष हैं। हम जानते हैं कि ऋग्वेद की पहली ऋचा अग्नि का ही स्तवन है।
लेकिन यह सिर्फ सनातन संस्कृति की ही उपासना का केंद्र नही रहा। पारसी संस्कृति के भी चिन्ह यहां प्रमुखता से हैं। ये जोरास्ट्रियन आराधना स्थल भी हैं। पारसी संस्कृति में अग्नि की ही उपासना होती है । अज़रबैजान में पारसी आबादी भी काफी रही है। आज भी दो हजार पारसी समुदाय के लोग वहां हैं। यहां देवनागरी के साथ कुछ शिलालेख पर्शियन में भी देखने को मिलते हैं। उनमें भी ईश्वर से प्रार्थना का ही भाव है। जोरास्ट्रियन आस्था का प्रमुख केंद्र होने के कारण यहां पहले पारसी लोग बड़ी संख्या में अपनी धार्मिक आस्था के कारण आते थे।
एक और रोचक बात ये है कि इसका संबंध गुरु नानक देव जी और उदासीन साधुओं से भी है। आप यहां गुरुमुखी में लिखा शिलालेख भी पढ़ सकते हैं। प्रसिद्ध इतिहासकार के टी एस सराव ने दो वर्ष पहले इस पर एक पुस्तक भी लिखी है जिसमे गुरु नानक देव जी और उदासीन साधुओं के इस स्थान के साथ संबंधों का शोध परक विवरण है।
कालांतर में इसे यहां की सरकार द्वारा अधिगृहीत कर लिया गया और इसे एक ऐतिहासिक पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया गया। यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज होने के कारण यहां बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। आज यहां प्राकृतिक रूप से अग्नि नहीं प्रज्वलित रहती। गैस के प्रवाह से अग्नि जलाए रख कर आपको उस काल का आभास दिया जाता है। साथ ही परिसर में कुछ चबूतरों पर भी आपको अग्नि प्रज्वलित दिख जाएगी जो आपको उस समय का आभास देने के लिए कृत्रिम रूप से जलाई गई है।
बाकू के चारों ओर आपको तेल के कुएं देखने को मिल जाएंगे। शहर के दूसरी ओर कुछ दूरी पर ही एक टीला है जहां भूमिगत हाइड्रो कार्बन के निरंतर रिसने के कारण अग्नि प्रज्वलित रहती है। यानार दाग नामक इस जगह पर जगह जगह से आग निकलते देखना एक अनोखा अनुभव है। वहां तेज हवा चलती है इसलिए आग की भी दिशा और जगह बदलती है। उस टीले को एक बहुत अच्छे पर्यटक स्थान के रूप में विकसित किया गया है। आपको ये टीला देखने के भी टिकट के रूप में अच्छी खासी राशि देनी पड़ती है। यहां शाम के समय कुछ मनोरंजन के कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।
आतेशगाह का अवलोकन करते हुए हम आश्चर्य में थे कि हमारे पूर्वजों ने कहां कहां तक और कैसे कैसे अपनी संस्कृति और सभ्यता का विस्तार किया। सुबह सुबह जब हम वहां पहुंचे तो अकेले ही थे , इसलिए बहुत सुकून से एक एक चीज देख भी पा रहे थे और समझ भी पा रहे थे। मालविका जी ने तो वहां अपना ” जरा सोचिए” भी रिकॉर्ड किया। लेकिन उसके कुछ समय बाद लगा एक आंधी सी आ गई और एक के बाद एक कई सारे पर्यटक आ गए और परिसर में इधर से उधर धमा चौकड़ी मचाने लगे। कुछ तो उस स्थान पर पहुंच गए जहां मुख्य अग्नि प्रज्वलित हो रही थी और उससे छेड़ खानी करने लगे। कुछ लोगों की इच्छा उस चबूतरे के ऊपर चढ़ कर फोटो खिंचवाने की थी जहां अग्नि प्रज्वलित थी और जिस पर चढ़ना मना था। कुछ परिसर में निर्मित गुफाओं के अंदर बने पुतलों को स्पर्श कर इस बात की पड़ताल करने में लग गए कि कहीं ये सचमुच उसी काल से खड़े मनुष्य तो नही हैं। उनके उत्साह का अतिरेक उस परिसर की शांति और अनुशासन दोनो को भंग करने के लिए पर्याप्त था। परिसर के प्रबंधक बार बार सीटियां बजा कर उन अति उत्साही पर्यटकों को वहां निर्धारित अनुशासन का पालन करने के लिए कह रहे थे।
हमारा काम हो गया था इसलिए हम बाहर निकल आए। आपको शायद अलग से बताने की जरूरत नहीं है कि पर्यटकों की ये आंधी भारत से आई थी। पूर्वजों ने जैसे भी निशान छोड़े थे , आज हम कैसे निशां छोड़ रहे हैं इस पर भी हमें सोचना चाहिए।