Monday, May 20, 2024
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‘आप’ के युवा नेताओँ ने धूल चटाई दिग्गजों को

दिल्ली विधानसभा चुनावों में उतरे धुरंधर नेता जहां युवा उम्मीदवारों को राजनीति में बच्चा समझ रहे थे। वहीं, राजनीति के इन्हीं ‘गुमनाम’ उम्मीदवारों ने ‘नामचीन’ नेताओं को पटखनी दे दी। दिल्ली सरकार के हाई प्रोफाइल मंत्री राजकुमार चौहान आम आदमी पार्टी की सबसे कम उम्र की प्रत्याशी राखी बिरला (26 वर्ष) से हार गए। इसी तरह से दिल्ली में तमाम नए उम्र के लड़ाकों ने धुरंधरों को पछाड़ा। इसमें जीत सबसे बड़ी संख्या आप के उम्मीदवारों की रही। ऐसा इसलिए भी हैं क्योंकि इसी पार्टी ने बड़ी संख्या में युवा चेहरों पर दांव खेला था।

दिल्ली विधानसभा चुनावों में कई युवा चेहरों ने बड़े चेहरों को धूल चटाई है। चाहे वह पटपड़गंज सीट से मनीष सिसौदिया हो या फिर मॉडल टाउन सीट से आप के प्रत्याशी अखिलेशपति त्रिपाठी हो।सीमापुरी सीट पर आप पार्टी के 28 वर्षीय धर्मेंद्र सिंह कोहली ने कांग्रेस के विधायक रहे वीर सिंह धींगन को 11,976 वोटों से हराया है। इसी तरह से मॉडल टाउन सीट पर तीन बार के विधायक रहे कंवर करण सिंह को उनसे काफी कम उम्र के आप पार्टी के उम्मीदवार अखिलेशपति त्रिपाठी (28 वर्षीय) ने 7875 मतों से हरा दिया।

बीजेपी के करोल बाग से विधायक सुरेंद्र पाल रतवाल को आम आदमी पार्टी के महज 30 वर्ष के विशेष रवि से हार का सामना करना पड़ा है। इसी तरह आम आदमी पार्टी के तिलक नगर से प्रत्याशी 32 वर्षीय जनरैल सिंह ने बीजेपी के प्रवक्ता राजीव बब्बर को हरा दिया है। बुराड़ी सीट पर आम आदमी पार्टी के 34 साल के प्रत्याशी संजीव झा ने बीजेपी के श्रीकृष्ण को कड़ी टक्कर देते हुए लगभग 10 हजार मतों से जीत हासिल की है। डीयू से कानून की पढ़ाई कर रहे संजीव झा शुरुआत से ही टक्कर देनी शुरू कर दी थी जो आखिरी राउंड तक जारी रही। बीजेपी के युवा चेहरों में किराड़ी सीट से 38 वर्षीय अनिल झा ने रिकॉर्ड 48,526 मतों से जीत हासिल की है।उन्होंने ‘आप’ के उम्मीदवार राजन प्रकाश को हराया। जबकि कांग्रेस के युवा चेहरे व डूसू से निकले अमित मलिक को तीसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा है। अहम है कि इस बाद कांग्रेस की यूथ बिग्रेड कोई करिश्मा नहीं दिखा पाई।

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मनमोहन सिंह भी डर गए मोदी से

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का कहना है कि वह बीजेपी के पीएम कैंडिडेट नरेंद्र मोदी को गंभीरता से लेते हैं। उन्होंने कहा कि वह अपने विरोधियों को गंभीरता से लेते हैं और उसमें लापरवाही की कोई भी गुंजाइश नहीं रहती। हिंदुस्तान टाइम्स लीडरशिप समिट में आए प्रधानमंत्री ने एक सवाल के जवाब में कहा कि हम कभी भी विपक्ष की ताकत को कम करके नहीं आंकते। उन्होंने कहा, 'राजनीतिक पार्टी होने के नाते हम शासन को अस्थिर करने की विपक्ष की शक्ति को कम करके नहीं आंकते।

प्रधानमंत्री से जब पूछा गया कि उनके कैबिनेट में मोदी को लेकर दो तरह की राय है- कुछ कहते हैं कि मोदी की तरफ से पेश की गई चुनौती को गंभीरता से लेना चाहिए तो कुछ मोदी को पूरी तरह खारिज कर देते हैं, इस पर उन्होंने कहा, 'मैं उन लोगों में से हूं, जो अपने विरोधियों को बहुत गंभीरता से लेते हैं। ढिलाई के लिए तो कोई गुंजाइश ही नहीं है।' प्रधानमंत्री ने कहा कि कांग्रेस पार्टी पूरे आत्मविश्वास के साथ चुनाव लड़ रही है। उन्होंने कहा, 'विधानसभा चुनाव के नतीजे चाहे जो भी हों, उनसे भ्रमित नहीं होना चाहिए।'

'सांप्रदायिक हिंसा विरोधी बिल शिगूफा नहीं'
मनमोहन ने इस सवाल को खारिज कर दिया, जिसमें पूछा गया था कि सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक कहीं वोट हासिल करने के लिए छोड़ा गया शिगूफा तो नहीं है। उन्होंने कहा, 'सरकार यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रही है कि अगर दंगों को रोका नहीं जा सकता है तो पीड़ितों को पर्याप्त मुआवजा दिया जाए।' प्रधानमंत्री ने कहा कि यह वोट बटोरने का शिगूफा हरगिज नहीं। उन्होंने कहा, 'मैं समझता हूं कि पिछले पांच या छह सालों से हम देश के कुछ हिस्सों में सांप्रदायिक दंगों का सामना करना कर रहे हैं। इस विधेयक की बुनियाद यह है कि अगर दंगों को रोका नहीं जा सकता तो पीड़ितों को पर्याप्त मुआवजा दिया जाए।'

प्रधानमंत्री ने मुजफ्फरनगर दंगों का जिक्र करते हुए कहा, 'देश के कुछ हिस्सों में हुई घटनाओं से पता चलता है कि भले ही हमें देश के सभी नागरिकों को सुरक्षा देने का गर्व है, लेकिन फिर भी कुछ मौकों पर चूक हो सकती है। अगर यह विधेयक संसद में पारित हो जाता है तो इस तरह की कमियों को दूर करने में मदद मिलेगी।' प्रधानमंत्री ने आतंकवाद के मुद्दे पर कहा कि आतंकवाद का अंतिम लक्ष्य सांप्रदायिक विभाजन कराना होता है, लेकिन आतंकवादियों को अपने मकसद में कामयाब नहीं होने दिया गया और उन्हें हरा दिया गया।

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विद्या भवन पॉलिटेक्निक खेलकूद प्रतियोगिताओं के परिणाम

उदयपुर। नवम्बर-विद्या भवन पॉलिटेक्निक महाविद्यालय में आयोजित की जा रही खेलकूद प्रतियोगिताओं के दूसरे दिन लम्बीकूद, डिस्क थ्रो, 400 मीटर रिले रेस, रस्साकसी, स्पून रेस, 100 मीटर, 200 मीटर दौड़ का आयोजन किया गया। 100 मीटर दौड़ में चिराग राजपूत, अमृतलाल सुथार व मुकेश माली ने क्रमशः प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान प्राप्त किया। 200 मीटर दौड़ में चिराग राजपूत, अमृतलाल सुथार, मुकेश माली ने क्रमशः प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान प्राप्त किया।

डिस्क थ्रो (लड़कों ) में देवीलाल पंवार, भुवनेश भट्ट व पियूष पंजाबी ने क्रमशः  प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान प्राप्त किया। डिस्क थ्रो (लड़कियों) में वृतिका व्यास, शिल्पी परिहार व दीप्ति सारस्वत ने क्रमशः प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान प्राप्त किया। लड़कियों की स्पून रेस में मोनिका जोशी, डिंपल पिछोलिया तथा शिल्पी परिहार ने क्रमशः प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान प्राप्त किया।

200 मीटर रिले रेस में सिविल विभाग, इलेक्ट्रिकल विभाग तथा इलेक्टोनिक्स विभाग की टीमों ने क्रमशः प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान प्राप्त किया। लम्बीकूद (लड़कों) में भुवनेश भट्ट व रिजवान शेख ने प्रथम व द्वितीय तथा अमृतलाल सुथार व अरूण छीपा ने तृतीय स्थान प्राप्त किया।

लम्बीकूद ( लड़कियों ) में वृतिका व्यास व मोनिका जोशी ने प्रथम व द्वितीय तथा शिल्पी परिहार व ज्योति चैहान ने तृतीय स्थान प्राप्त किया। लड़कियों की थ्री लेग रेस में जयोति चैहान व वैष्णवी प्रथम चारू बाबेल व शिक्षा दशोरा द्वितीय स्थान पर रहे। तृतीय स्थान पर वृतिका व्यास व मोनिका तथा संध्या व रेखा रहे।

रस्साकसी प्रतियोगिता में  इलेक्ट्रोनिक्स विभाग ने प्रथम तथा सिविल विभाग की टीम ने द्वितीय स्थान प्राप्त किया।लड़कियों की स्लो साईकिल रेस में वृतिका व्यास, ज्योति चैहान तथा मोनिका जोशी ने क्रमशः प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान प्राप्त किया।                                           

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नरेंद्र मोदी ने जहाँ-जहाँ सभा की, वहाँ भाजपा जीती

नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश में साढ़े तीन दिन में 14 सभाएं करके भाजपा की जीत में अहम भूमिका अदा की है। मोदी की सभा वाले सभी स्थलों पर भाजपा ने जीत हासिल कर ली है।  मोदी की कई सभाओं में उपस्थिति कम रही, लेकिन उसके पहले कार्यकर्ता महाकुंभ में मोदी जब भोपाल आए थे, तो करीब साढ़े चार लाख लोगों ने मोदी-मोदी के नारे लगाए थे।

मध्य प्रदेश की विजय का ज्यादा श्रेय शिवराज सिंह चौहान और नरेंद्र सिंह तोमर की जोड़ी को दिया जा रहा है, लेकिन नरेंद्र मोदी की सभाओं के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। भाजपा नेतृत्व ने अंतिम समय में नरेंद्र मोदी की सभाएं मध्य प्रदेश में रखी थीं।  कई बार स्थानीय नेता मोदी की सभा में पर्याप्त संख्या में श्रोता भी नहीं जुटा सके थे। सागर की एक सभा में मोदी समय से पहले ही पहुंच गए थे।

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मोदी पर ई-बुक का विमोचन

गाँधीनगर। बुधवार, गुजरात सरकार में कैबिनेट मंत्री व जानेमाने राजनेता सौरभ पटेल के हाथों उज्जैन निवासी व जाने-माने हिन्दी ब्लॉगर सुरेश चिपलुनकर की ई-पुस्तक 'नरेन्द्र मोदी' का विमोचन हुआ. यह पुस्तक भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी पर गत वर्ष लिखे गए उनके लेखों का संकलन है.

ई-पुस्तक अब ऑनलाइन पढ़ने व डाउनलोड करने तथा वितरण के लिए निम्न लिंक पर उपलब्ध है.

https://drive.google.com/file/d/0B0tGE4Sgp8sGS3BrcFZrQjdhVEU/edit?usp=sharing

https://dl.dropboxusercontent.com/u/27743032/Articles%20on%20Narendra%20Modi%20E-Book.pdf

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भांजे की शादी में खूब नाचे अमिताभ बच्चन

अपने साढ़ू राजीव वर्मा के बेटे की शादी में गुरुवार को भोपाल आए अमिताभ बच्चन ने जमकर ठुमके लगाए। उनके लिए खास तौर से 'खई के पान बनारस वाला, छोरा गंगा किनारे वाला..' गाना बजाया गया था।। गाने की धुन पर अमिताभ �ने जब चिरपरिचित अंदाज में नाच कर सबका भरपूर मनोरंजन किया।

अमिताभ बच्चन अपने बेटे अभिषेक बच्चन, बहू ऐश्वर्या और पोती आराध्या के साथ रंगकर्मी राजीव वर्मा के बेटे तथागत की शादी में शामिल होने आए थे।जया बच्चन दो दिन पहले ही यहां पहुंच चुकी थीं। उन्होंने महिला संगीत सहित शादी की अन्य रस्मों में हिस्सा लिया। शादी समारोह बहुत ही सादगीपूर्ण तरीके से आयोजित किया गया था, जिसमें केवल कुछ करीबी रिश्तेदार और दोस्त ही आमंत्रित थे।

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शाबास अरविन्द! बदलेगा युग!!

रोम एक दिन में नहीं बना था। हमें स्वतंत्रता एक दिन या एक साल या एक सदी में प्राप्त नहीं हुई थी। यह संघर्ष भी बहुत लम्बा है और कोई समय सीमा तय नहीं की जा सकती। 125 करोड़ देशवासियों की आत्मा को झकझोरना कोई आसान काम नहीं है। बिना समुचित साधनों के एक आश्चर्यजनक चेतना देश में जगा दी अरविन्द ने। वाह! बहुत खूब!! साधन सम्पन्न भ्रष्टाचरियों के हर चक्रव्यूह को तोड़ कर, इतने कम समय में, साधनो के नितान्त अभाव में, बाहर और अन्दर के विरोध के स्वरों में, "आप" को जिस स्थान पर आज खड़ा कर दिया है, क्या वह एक अचम्भा नहीं है? स्वराज हासिल करना एक अभूतपूर्व चमत्कार है वह अवश्य होगा।

अरविन्द की द्र्ढ़ और समझौता न करनेवाली रणनीति बहुत सफ़ल रही जिसका कारण है उनकी अन्तरात्मा द्वारा निरन्तर प्रेरणा और हर कठिन से कठिन चक्रव्यूह का द्रढ़ता से चुनौती समझ कर सामना करना। बहुत से विरोधियों ने यथा सम्भव बिघ्न डालने, एक से एक गन्दे आरोप लगाने, बदनाम करने के असफ़ल प्रयास किये। कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। आज वे वाध्य हैं स्वय अपनी रणनीति को बदलने के लिये। अरविन्द ने सिद्ध कर दिखाया कि पैसे के अभाव में भी एक आम आदमी चुनाव लड़ सकता है और जीत भी सकता है। कितना बड़ा परिवर्तन है यह आज की कुन्ठित व्यवस्था में!!!! देश में यह परीक्षण बहुत सीमा तक सफ़ल रहा। लोग समझ चुके हैं कि देश में भ्रष्टाचाररूपी कस का बध करने के लिये और सम्पूर्ण व्यवस्था परिवर्तन के लिये कृष्ण ने जन्म ले लिया है। वह अपने राजनीतिक वात्सल्य के कारण यदि आज उनका बध नहीं कर सकता तो कल बिल्कुल निश्चितरूप से करेगा। आज बहुत डरे हुए, सहमे हुए और घबराए हुए है नूरा कुश्ती करने वाले भ्रष्ट सत्तापक्ष और विपक्ष। सत्तापक्ष तो जान गया है कि यह उनका अन्तिम कार्यकाल है और शायद राजकुमार का राज्याभिषेक भी न हो पाए। शायद कोई जनलोकपाल जैसा� चमत्कार ही उनके लिये एक आशा की किरण बन सकता है। शायद इसीलिये सत्तापक्ष ने इसी सत्र में लोकपाल बिल और महिला आरक्षण बिल पास करवाने का नाटक भी शुरू कर दिया है। अगर वह वास्तव में इस मामले में गम्भीर हैं तो हो सकता है कि जनता के क्रोधरूपी गुब्बारे के फ़ूटने से पूर्व उसकी कुछ हवा निकाल कर जनाक्रोश कम करने की कोशिश करें। आशा तो कम ही नज़र आती है।

जहां एक ओर देश के बिके और बिकाऊ� मीडिया ने चन्द पैसों के खातिर इस आन्दोलन को ध्वस्त करने में जयचन्द और मीर ज़ाफ़र की भूमिका निभाई, वहीं प्रसिद्ध पत्रकार रवीश कुमार सच्चाई का साथ देकर आज जनता के चहेते बन गये: “अरविंद का मूल्याँकन सीटों की संख्या से नहीं होना चाहिए । तब भी नहीं जब अरविंद की पार्टी धूल में मिल जाएगी और तब भी नहीं जब अरविंद की पार्टी आँधी बन जाएगी । इस बंदे ने दो दलों से लोहा लिया और राजनीति में कुछ नए सवाल उठा दिये जो कई सालों से उठने बंद हो गए थे । राजनीति में एक साल कम वक्त होता है मगर जब कोई नेता बन जाए तो उसे दूर से परखना चाहिए । अरविंद को हरा कर न कांग्रेस जीतेगी न बीजेपी । तब आप भी दबी ज़ुबान में कहेंगे कि राजनीति में सिर्फ ईमानदार होना काफी नहीं है । यही आपकी हार होगी । जनता के लिए ईमानदारी के कई पैमाने होते हैं ।

इस दिल्ली में जमकर शराब बंट गई मगर सुपर पावर इंडिया की चाहत रखने वाले मिडिल क्लास ने उफ्फ तक नहीं की । न नमो फ़ैन्स ने और न राहुल फ़ैन्स ने । क्या यह संकेत काफी नहीं है कि अरविंद की जीत का इंतज़ार कौन कर रहा है । हार का इंतज़ार करने वाले कौन लोग हैं ? वो जो जश्न मनाना चाहते हैं कि राजनीति तो ऐसे ही रहेगी । औकात है तो ट्राई कर लो । कम से कम अरविंद ने ट्राई तो किया । शाबाश अरविंद । यह शाबाशी परमानेंट नहीं है । अभी तक किए गए प्रयासों के लिए है । अच्छा किया आज मतदान के बाद अरविंद विपासना के लिए चले गए । मन के साथ रहेंगे तो मन का साथ देंगे ।“ —रवीश कुमार (कस्बा ब्लॉग से)

दिल्ली के चुनाव में “आप” के 12,000 समर्थक जिनमें 4,000 छात्र (400 IIT दिल्ली से) डेड़ लाख प्रभारी जो कि अपने निकट के 20 परिवारों से सम्पर्क बनाए रखे, कूद पड़े थे। हज़ारों उच्च शिक्षा प्राप्त युवा, इंजीनियर, डाक्टर, साफ़्टवेयर इंजीनियर, entrepreneurs तथा अन्य व्यवसायों से जुड़े व्यक्ति आम आदमी पार्टी से बिना अपेक्षा निस्वार्थ जुड़े हैं। उनका केवल एक ही बहुत बड़ा स्वार्थ है “सम्पूर्ण व्यवस्था परिवर्तन” ताकि देश में वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना हो सके। इस आन्दोलन को चलाने वाली आम आदमी पार्टी और इससे जुड़े यह सभी लोग बधाई के पात्र हैं। डटे रहे और डट कर ज़ालिमों का मुकाबला किया। यही सबसे महत्व्पूर्ण है।
We shall have to fight many such battles before winning the war.

साभार –नवभारत टाईम्स से

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जहाँ गए राहुल गाँधी, वहाँ कांग्रेस का का बंटाढार

चाहे इसे महंगाई का असर कहें या फिर मोदी की देश में लहर, जिससे राहुल गांधी भी कांग्रेस प्रत्याशियों को हार से नहीं बचा सके। मोदी-राहुल की समान विधानसभा क्षेत्रों में हुई सभाओं में से 23 पर भाजपा और महज तीन सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवारों को जीत मिली। प्रतिद्वंद्वी पार्टियां देश में मोदी की लहर मानने से इंकार करती रही हैं, लेकिन विधानसभा चुनावों में मोदी फैक्टर, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के मुकाबले भाजपा प्रत्याशियों को जीत दिलाने में भारी पड़ा है।

कुछ जगह दिखा मोदी का असर

हर राज्यों में तूफानी प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी ने 11 समान विधानसभा क्षेत्रों में रैलियां कीं। ये सभाएं बीकानेर, बांसवाड़ा, जयपुर, अजमेर, दक्षिणपुरी, इंदौर, मंदसौर, शहडोल, रायपुर, बस्तर और जगदलपुर में हुई थी। इन सभाओं का 27 सीटों पर सीधा प्रभाव था। दोनों पार्टियों के स्टार प्रचारकों की ओर से की गई रैलियों के प्रभाव वाले स्थानों में से जयपुर की नौ सीट, बीकानेर की दो सीट, बांसवाड़ा की एक, अजमेर की दो सीट, रायपुर की तीन सीट, इंदौर की चार सीट, जगदलपुर की एक सीट और मंदसौर की एक सीट पर भाजपा के प्रत्याशियों को जीत मिली।

वहीं, कांग्रेस के प्रत्याशियों को रायपुर, बस्तर और इंदौर की एक-एक सीट पर जीत हासिल हुई है। दोनों की समान स्थानों पर हुई रैलियों में भाजपा 23 पर जीती, तो कांग्रेस को मिलीं महज 3 सीटें। अब बात दिल्ली की, जहां मोदी का जोर ज्यादा नहीं दिखा। नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री के प्रत्याशी डॉ. हर्षवर्धन का जादू भी नहीं चला। जबकि दिल्ली की सत्ता से पंद्रह साल के वनवास को खत्म करने के लिए भाजपा के सभी राष्ट्रीय नेताओं ने एड़ी-चोटी का जोर लगा रखा था।

आधा दर्जन से अधिक जगहों पर नरेंद्र मोदी की धुआंधार रैली हुई। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज ने सौ से अधिक जनसभाओं को संबोधित किया। बड़ी संख्या में स्टार प्रचारक उतारे गए।

भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी को दिल्ली की कमान सौंपी गई। बावजूद इसके भाजपा ऐसी एक दर्जन सीटों पर हार गई, जो उसका गढ़ मानी जाती हैं। पार्टी ने चुनाव के कुछ ही दिन पहले सीएम का चेहरा पेश कर नया प्रयोग भी किया। फिर भी भाजपा सत्ता की कुर्सी से चार सीढ़ी नीचे ही अटक कर रह गई।

पार्टी पर अब यह भी सवाल उठ रहा है कि आक्रामक चुनावी रणनीति के बाद भी पार्टी अपनी परंपरागत सीट हार गई। आम आदमी पार्टी की परफारमेंस को देखते हुए मोदी फैक्टर पर भी सवाल उठ रहे हैं। पार्टी के 24 विधायकों में 11 विधायक जिनमें विधायकों के पुत्र प्रत्याशी भी शामिल हैं, को हार का मुंह देखना पड़ा।

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हिन्दी का ये हाल किसने किया और किसने बचाया है अब तक?

हज़ारों निष्ठावान हिंदी प्रेमी आज़ादी के बाद से इस प्रयास में लगे हुए हैं कि देश में इस भाषा को सच्चे अर्थों में राष्ट्रभाषा का दरजा मिले ,   अखिल भारतीय सरकारी सेवाओं, शीर्ष  प्रबंधन , मेडिकल और इंजीनियरिंग संस्थानों में यह अध्ययन  और परीक्षा का माध्यम बने।  खेद की बात है कि आज़ादी के ६६ वर्ष के बाद भी हिंदी भाषा को यह दरजा सही मायनों में नहीं मिल पाया है. यही नहीं हिंदी भाषी क्षेत्रों में अभिभावक बच्चों के भविष्य को मद्देनज़र रखते हुए केवल महानगरों में ही नहीं वरन छोटे छोटे कस्बों में भी अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा दिलाते हैं।  जमीनी सचाई यह है कि हिंदी सबसे ज्यादा हिंदी भाषियों के कारण ही उपेक्षित है.

साथ ही आज हम एक और सचाई बताना चाहते हैं कि अंग्रेजी के प्रति जबर्दस्त लगाव के वावजूद मनोरंजन में अंग्रेजी हावी नहीं हो पायी है, जबर्दस्त प्रमोशन करने पर भी अंग्रेजी की फ़िल्में मनोरंजन की मुख्य धारा का हिस्सा नहीं बन पा रही हैं।  हिंदी फ़िल्में जिन्हे अब देश में ही नहीं विदेशों में लोग बॉलीवुड  के नाम से जानते हैं निर्विवाद मनोरंजन के सिंहासन पर आरूढ़  बैठी हैं.  पिछले कई सालों से हर साल कई हिंदी फ़िल्में १०० करोड़ रूपये से भी जायदा का व्यवसाय कर लेती हैं.

यह भी सच है कि हिंदी फिल्मों से जुड़े ज्यादातर लोगों जिसमें निर्माता से लेकर सितारे तक शामिल हैं उनका दूर दूर तलाक हिंदी से कोई लेना देना नहीं है न ही वे हिंदी प्रेम की वजह से इस उद्द्योग का हिस्सा हैं. हिमांशु राय , देविका रानी, सोहराब मोदी, वैजयन्ती माला, रागनी, पद्मनी, हेमा मालिनी, जयप्रदा, रेखा, राखी, श्रीदेवी से लेकर दीपिका पादुकोण, जान अब्राहम सूची बहुत लम्बी है ये वो लोग हैं न तो इनके घरों में हिंदी बोली जाती थी न ही उनकी शिक्षा  दीक्षा हिंदी में हुई  थी. हिंदी फिल्मों में काम करना उनके लिए विशुद्ध व्यवसाय है. हिंदी फिल्मों का बजट इस लिए बड़ा होता है क्योंकि उनको देखने वालों का क्षेत्र और संख्या बाकी सभी भाषों पर बहुत भारी है , जहाँ गैर हिंदी फिल्मों को सरकारी अनुकम्पा, सब्सीडी, अनुदान , थियेटर प्रायोरिटी और पुरूस्कार सभी कुछ दिए जाते हैं वहाँ हिंदी फ़िल्में बगैर  किसी बैसाखी के फल फूल रही हैं, इनकी इसी ताकत को समझ कर हॉलीवुड के स्टूडियो भी या तो कूद पड़े हैं या फिर कूदने की तैयारी में हैं. कमोबेश यही हाल हिंदी के मनोरंजन चैनलों का भी है ,  इन पर जितने भी रियल्टी शो आते हैं उन पर ज्यादातर सहभागी अहिन्दी भाषी क्षेत्रों से आते हैं. इन चेनलों पर आने वाले प्रोग्रामों को लिखने, बनाने वालों में भी अहिन्दी भाषी लोगों की तादाद कहीं ज्यादा है.

इस लिए यह बात साफ़ साफ़ समझनी होगी कि भाषा वही फल फूल सकती है  जो कि व्यवसाय से जुडी हो यानी जिसके इस्तेमाल से माल मिल सकता हो. आपको भले ही आश्चर्य हो लेकिन मुझे नहीं हुआ जब दुनिया के सबसे ताकतवर देश के राष्ट्रपति   की मोहतरमा  मिशेल ओबामा ने हाल ही में बालीवुड डांस सीखने की इच्छा व्यक्त की.

जितनी भी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भारत में अपना माल या सेवायें बेच रही हैं उनमें काम करने वाले लोग केवल अंगरेजी में शिक्षित दीक्षित हैं अंगरेजी में ही सोचते हैं पर बड़ी मजबूरी है   माल बेचने के लिए विज्ञापन में 'ठंडा मतलब कोका कोला', 'कुछ मीठा हो जाए' , 'पप्पू पास हो गया', दाग अच्छे हैं' जैसे खांटी जुमले गढ़ते हैं, और जो अंगरेजी में ही विज्ञापन करते हैं उन्हें इतनी सफलता नहीं मिलती है. अंगरेजी को जबर्दस्त पुश मिलने के वावजूद अंगरेजी का समाचारपत्र टाइम्स आफ  इंडिया भारत का सबसे ज्यादा बिकने वाला नहीं है, वस्तुतः यह हिंदी के दैनिक जागरण से कई पायदान नीचे है.

इसलिए मेरा मानना है कि हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने के पाखण्ड को छोड़ कर बेहतर यही होगा कि इसे स्वाभाविक रूप से व्यावसायिक भाषा के रूप में पनपने दिया जाय, फिर तो जिसकी गरज होगी वो इसे सीखेगा ! अगर आप मुलायम सिंह यादव को जानते हैं तो उन्हें कहें कि लोकसभा में केवल राष्ट्र भाषा में भाषण देने की मांग  करने के नाटक की जगह  अपने गृह प्रदेश में इस भाषा को व्यवसाय से जोड़ने का काम कर के दिखाएँ तो शायद इसका कहीं भला हो सकता है.

लेखक ब्रांड कंसल्टेंट हैं इनका ब्लॉग है-www.desireflection.blogspot.com

संपर्क
@Pradeep Gupta
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लोकसभा चुनावों के लिए माफिया को टिकट देने का सिलसिला शुरु

समाजवादी पार्टी ने कुख्यात माफिया सरगना अतीक अहमद को सुल्तानपुर से लोकसभा प्रत्याशी बना दिया है।

मूलत: इलाहाबाद के बाहुबली माफिया अतीक अहमद 2004 से 2009 तक इलाहाबाद की फूलपुर ‌लोकसभा सीट से सांसद भी रहे। इस बीच, सपा ने 2008 में ही अतीक को पार्टी से निकाल दिया। 2009 लोकसभा चुनाव में अतीक ने बसपा का दामन थामा, पर मायावती ने उन्हें टिकट देने से इनकार कर दिया।

इसके बाद, 2009 लोकसभा चुनाव में अतीक ने अपना दल पार्टी के टिकट से प्रतापगढ़ में किस्मत आजमाई। हालांकि, यहां वह चौथे पायदान पर रहे। चुनाव के दौरान दिए एफिडेविट में बताया गया कि अतीक के खिलाफ 44 मामले दर्ज हैं।

इनमें हत्या से लेकर हत्या की कोशिश तक कई संगीन धाराओं में रिपोर्ट दर्ज है। अतीक पर गुंडा एक्ट, गैंगस्टर एक्ट, 7 क्रिमिनल लॉ अमेण्डमेण्ट एक्ट और आयुध अधिनियम के तहत कार्रवाई भी की जा चुकी है।

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