Thursday, May 9, 2024
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तहलका की पत्रकार ने इस्तीफा दिया

तहलका के पूर्व संपादक तरुण तेजपाल पर यौन शोषण का आरोप लगाने वाली पत्रकार ने मैगजीन से इस्तीफा दे दिया है। विभिन्न सूत्रों से आ रही खबरों के मुताबिक आरोप लगाने वाली पत्रकार ने कहा है कि संगठन ने उनका साथ नहीं दिया।

तहलका पत्रिका के संस्थापक-संपादक तरुण तेजपाल ने इस मामले में अग्रिम जमानत के लिए दिल्ली हाई कोर्ट में अर्जी दी है। जस्टिस जीएस सिस्तानी की अदालत में यह अर्जी पेश की गई है। जानेमाने वकील केटीएस तुलसी और गीता लूथरा ने तरुण तेजपाल की तरफ से यह अर्जी पेश की है। मंगलवार को मामले की सुनवाई होगी।

तरुण तेजपाल पर उनकी पत्रिका में प्रधान संवाददाता के पद पर काम करने वाली एक महिला ने यौन शोषण के आरोप लगाए हैं। पत्रिका की मैनेजिंग एडिटर शोमा चौधरी को लिखे एक ईमेल में आरोप लगाया था कि तरुण तेजपाल ने गोवा में आयोजित पत्रिका के एक कार्यक्रम के दौरान होटल में दो बार उनसे आपत्तिजनक हरकतें कीं। इस मामले पर स्वतः संज्ञान लेते हुए गोवा पुलिस ने तरुण तेजपाल पर यौन शोषण और रेप की कोशिश का मामला दर्ज किया है।

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तरुण तेजपाल को प्रसार भारती से हटाया

अपनी सहयोगी पत्रकार के यौन उत्पीड़न के मामले में घिरे, 'तहलका' के तरुण तेजपाल को प्रसार भारती बोर्ड से हटा दिया गया है। तेजपाल को इसी सप्ताह प्रसार भारती बोर्ड में लिया गया था। यौन उत्पीड़न के बारे में जानकारी सामने आने के बाद बोर्ड मेंबर का नॉमिनेशन करने वाली कमिटी के प्रमुख और वाइस प्रेजिडेंट हामिद अंसारी ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से तेजपाल का नॉमिनेशन रद्द करने को कहा। गुरुवार को इस बारे में फैसला हो गया।

इसी बीच तेजपाल की परेशानी बढ़ सकती है। गोवा पुलिस से मिली जानकारी के मुताबिक जिस होटल में पत्रकार युवती के साथ उत्पीड़न की घटना हुई है, वहां से शुरुआती जानकारी मिल गई है। सीसीटीवी फुटेज की जांच की जा रही है। मोबाइल फोन की लोकेशन के बारे में रिकॉर्ड मांगा गया है। होटल और अन्य जगहों पर आगे पूछताछ की तैयारी है। इधर, दिल्ली में प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने घटना की कड़ी निंदा करते हुए तेजपाल के खिलाफ एक्शन की मांग अथॉरिटीज से की है।

 

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सिंह साहब द ग्रेट

दो टूक : कहते हैं दुनिया में बुरे लोग इस लिए नहीं जीतते कि उनके हाथ में ताकत और दौलत होती है बल्कि इसलिए जीतते हैं कि दुनिया में अच्छे लोग एक साथ मिलकर उनका मुकबला नहीं करते . लेकिन अगर वो एक जुट हो जाएँ तो दुनिया से बुरे लोग और बुराई जड़ से ख़तम हो जायेगी . बस इतना सा सन्देश देती है निर्देशक अनिल शर्मा की सनी देओल, अमृता राव, प्रकाश राज, उर्वशी रॉतेला, जॉनी लीवर, संजय मिश्रा, अंजली एब्रॉल, शाबाज खान, रजित कपूर के अभिनय वाली फ़िल्म सिंह साहब द ग्रेट.

कहानी : सिंह साहब द ग्रेट कहानी है भ्रष्टचार के खिलाफ लड़ने वाले  सिंह साहेब उर्फ़ सरन जीत तलवार  [सनी देओल ] की है। लेकिन जब उसकी   भिड़ंत स्थानीय सामंत भूदेव [प्रकाश राज ] से हो जाती  है तो उसकी जिंदगी में भूचाल आ जाता है . इस जंग में उसकी पत्नी मिन्नी [उर्वशी रौतेला ] मारी जाती है और उसे जेल हो जाती है . लेकिन समय से पहले ही बाहर आकर सिंह बदला लेने की ठान लेता है। उसका एक ही मिशन है भूदेव को ख़त्म करना लेकिन बदले से नहीं बदलाव से . हालात  कुछ ऐसे बदलते हैं कि उसे बदलाव की जगह खुद को उसी तरह सामने लाना पड़ता  है जैसे भूदेव उसके सामने आता है . इसमें उसकी मदद करती है न्यूज़ चैनल की रिपोर्टर [अमृता राव] उसका दो दोस्त [संजय मिश्रा और जॉनी लीवर ] . जिनके साथ  अंजलि अब्रोल , यशपाल शर्मा , मनोज पाहवा और शाहबाज खान के पात्र और चरित्र भी आते जाते रहते हैं.

गीत संगीत : फ़िल्म में सोनू निगम और आनंद राज आनंद राज का संगीत है और गीत कुमार एक साथ समीर और आनंद राज आनंद के हैं . फ़िल्म का शीर्षक गीत सिंह साहेब द ग्रेट लोगों की जुबान पर पहले ही है और बाकी के गीत भी बुरे नहीं हैं . फ़िल्म का संगीत बढ़िया बन पड़ा है। गानों में पंजाबी तड़का और आइटम सॉन्ग खइके पलंग तोड़ पान, तूने ले ली मेरी जान दर्शकों को ज़रूर पसंद आएंगे।एक गाने में सनी के  पापा धर्मेंद्र और भाई बॉबी देओल भी नाचते दिख गए लेकिन उनकी जरुरत नहीं थी ।

अभिनय :  फ़िल्म के केंद्र में सनी हैं और वो पूरी तरह फ़िल्म में छाये रहे हैं . ये भी गौरतलब है कि जब जब वो किसी  फ़िल्म में सिख पात्र की भूमिका में दिखे हैं जमे हैं . फ़िल्म में कई ऐसे दृश्य हैं जो उनके और अंजलि अब्रोल के साथ आँखे गीली करते हैं . उर्वशी रौतेला उनके साथ वैसे कम उम्र दिखी हैं और ये एक खतरा था कि अपने से आधी उम्र की नायिका के साथ वो कैसे लगते हैं पर उन्होंने ही नहीं बल्कि उर्वशी ने भी काम सम्भाल लिया . वो सुंदर दिखी हैं और चंचल भी .. प्रकाश राज कुछ नया नहीं करते सिवाय अपनी खलनायकी में हास्य उत्पन करने के .उनमे अब दोहराव दीखता है . जॉनी लीवर और संजय मिश्रा के पास कुछ भी करने को नहीं था और मनोज पाहवा, यशपाल शर्मा के साथ अमृता राव भी ठीक हैं लेकिन सबसे अलग दिखी हैं अंजलि अब्रोल . रजित कपूर और शाहबाज के चरित्रों को कुछ और विस्तार  दिया जाना चाहिए था.

निर्देशन : गौर से देख जाए तो फ़िल्म में कहानी के तौर पर लेखक शक्तिमान ने कुछ नया नहीं लिखा है लेकिन फ़िल्म में बदला नहीं बदलाव के विचार को उन्होंने  अनिल शर्मा के साथ नए ढंग से बुना है . फ़िल्म में  प्रसंग और घटनाएं रोचक हैं और   एक्शन के साथ कुछ भावनातमक प्रसंग अच्छे हैं . फिल्म में पात्रों की भरमार हैं लेकिन उन्हें ठीक से जगह नहीं मिली है पर संवाद प्रभावित करते हैं . फ़िल्म में अशफाक मकरानी का कैमरावर्क ठीक है और टीनू वर्मा के एक्शन भी लुभाता है लेकिन ये एक रूटीन फ़िल्म है हाँ . सनी पाजी ने कोई कमी नहीं की अपनी तरफ से.

फ़िल्म क्यों देखें : सनी देओल के लिए .

फ़िल्म क्यों न देखें :  ऐसा मैं नहीं कहूंगा .

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ऐश्वर्या राय बच्चन परिवार से अलग रहेगी

अमिताभ-जया की �बहू ऐश्वर्या अपनी सास जया बच्चन से खटपट की वजह से बच्चन परिवार से अलग रहने का मन बना रही है। �ऐश्वर्या के करीबी लोगों का कहनाहै कि जया बच्चन ऐश्वर्याके हर काम में दखल देती है।

हाल ही में एक कार्यक्रम में दौरान जया ने फटॉग्राफर्स को डांट तक लगा दी थी। वजह थी कि वे ऐश्वर्या को उनके नाम से बुला रहे थे। यह बात जया को पसंद नहीं आई और उन्होंने पत्रकारों को यह कहते हुए डांट लगा दी, 'क्या ऐश्वर्या, ऐश्वर्या कर रहे हो? तुम्हारी क्लास में पढ़ती थी क्या?' दरअसल, पत्रकारों द्वारा ऐश्वर्या का नाम लिया जाना उन्हें पसंद नहीं आया। सूत्र बताते हैं कि इस घटना के बाद ऐश्वर्या भी �भी काफी अपसेट हुई थीं। उन्हें मीडिया के बीच अपनी सास का यह रवैया बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। हालांकि, उन्होंने इस बारे में जया से कोई शिकायत नहीं की। ऐश्वर्या को अपने पति अभिषेक बच्चन और ससुर अमिताभ बच्चन से कोई शिकायत नहीं है।

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गोरी तेरे प्यार में [हिंदी रोमांस कथा ]

दो टूक : किसी ने सच कहा है प्यार� न कोई भाषा देखता है और ना प्रान्त लेकिन उसे समझना और उसकी कद्र करना आना चाहिए और उसे पहचानना भी . ऐसे ही एक प्यार की कहानी� कहती है पुनीत मल्होत्रा निर्देशित इमरान खान, करीना कपूर और श्रद्धा कपूर के अभिनय वाली फ़िल्म गोरी तेरे प्यार में.

कहानी : गोरी� तेरे प्यार में की कहानी है श्रीराम (इमरान खान) और दिया (करीना कपूर) के प्यार की है । बैंगलोर में जन्मा श्रीराम एक आर्किटेक्ट है जिसके लिए रिश्तों की कोई अहमियत नहीं है। जबकि उसकी� गर्लफ्रेंड दिया रिश्तों� और समाज को अहमियत देती है. शुरुआत में उनका यह अनौपचारिक रिश्ता समय के साथ भावनात्मक रूप ले लेता है। लेकिन आखिरकार जटिल परिस्थितियां, अलग अलग आदर्श और मनोवृत्तियां दोनों को अलग कर देती हैं। कुछ समय बाद श्रीराम को एहसास होता है कि दिया के लिए उसका प्यार एक जिस्मानी रिश्ते से कहीं ज़्यादा है और वो उसके बिना नहीं रह सकता। पर तब तक दिया उसे छोड़कर जा चुकी है . श्रीराम दिया का दिल जीतने उसे ढूँढ़ते हुए गुजरात के एक गांव झुमली पहुंचता है। इस बार उसे मनाने के लिए श्रीराम किसी भी हद तक जाने को तैयार है। पर अब दिया के लिए उसका कोई अर्थ नहीं . इसके बाद शुरू होती है श्रीराम की दिया का दिल जीतने कि नयी शुरुआत और इसी की कहानी है गोरी तेरे गाँव में।

�गीत संगीत . फ़िल्म में विशाल शेखर का संगीत और अन्विता दत्त के साथ कौसर मुनीर और कुमार के गीत हैं पर फ़िल्म में कोई ऐसा गीत नहीं जिसे याद रखा जा सके.

अभिनय :� इमरान की आप चाहें आधा दर्जन फिल्मे देखें वो एक जैसे लगते हैं . मुझे नहीं समझ आया कि करीना उनके साथ कैसे फिट हो सकती थी . फिर भी करीना के सहारे इमरान ने मेहनत करने की कोशिश की है . करीना रूटीन अभिनेत्री कि तरह अपनी भूमिका निभा देती हैं . वो भी अपने देसी अंदाज में . अनुपम खेर ठीक है .� सुजाता कुमार के साथ नीलू कोहली , विनीत कुमार सिंह , निझलगल रवि , परजिल पर्दीवाला, ओम रविन्द्र सिंह , श्रीकांत कृष्णमूर्ति, आर बलासुब्रह्मनियम, आनंदी निराश भी नहीं करते और इशिता गुप्ता का आइटम लुभा देता है.

निर्देशन�� : फ़िल्म की कहानी पर ध्यान देंगे तो लगेगा इस फ़िल्म की कहानी पहले भी� खूब सुनी है बस उसे नए अंदाज में पिरोकर सामने रख दिया गया है . फ़िल्म की गति भी बहुत धीमी है और वो सिर्फ एक बिखरे रिश्ते को समेटने कि लिए बे तरतीब बुनी गयी है . फिल्म में तो रोमांस है ना ही कॉमेडी पर दोहराव भरी कहानी के बावजूद इसे देख लेंगे तो कोई खास बुरी नहीं है.

फ़िल्म क्यों देखें : अगर पैचअप और ब्रेकउप वाली कहानियां पसंद करते हैं .

फ़िल्म क्यों न देखें : एक पुरानी कहानी पर नयी फ़िल्म है .

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तरुण तेजपाल कि शिकार पत्रकार ने अपनी शिकायत में क्या कहा

तहलका की महिला पत्रकार ने प्रधान संपादक तरुण तेजपाल द्वारा यौन उत्पीड़न के बाद प्रबंध संपादक शोमा चौधरी को भेजी ई-मेल में गोवा के एक होटल में घटी घटना का कुछ ब्योरा दिया है। मेल की पहली ही पंक्ति में पीड़िता ने लिखा है कि यह मेल लिखना उनके लिए बेहद तकलीफदेह है। पीड़ित महिला पत्रकार की शोमा चौधरी को भेजी ई-मेल कुछ इस तरह है।

''मेरे लिए आपको यह ई-मेल लिखना बेहद तकलीफदेह है। जो बात मैं कहने जा रही हूं उसे कैसे सरल ढंग से कहा जाए, यह सोचने में लगी हुई थी, लेकिन अब मुझे यही एक रास्ता समझ आ रहा है। पिछले सप्ताह तहलका के मुख्य संपादक तरुण तेजपाल ने 'थिंक फेस्ट' के दौरान दो बार मेरा यौन उत्पीड़न  किया। जब उन्होंने पहली बार यह हरकत की तो मैं आपको फौरन फोन कर बताना चाहती थी, लेकिन आप बुरी तरह व्यस्त थीं। मुझे पता था कि उस वक्त एक मिनट के लिए भी यह मुमकिन नहीं था कि मैं अकेले में आपको इस हरकत के बारे में बता पाती। इसके अलावा मैं इस बात को लेकर हैरान भी थी कि तरुण ने ऐसी घिनौनी हरकत की, जो मेरे पिता के साथ काम कर चुके हैं और उनके दोस्त हैं। तरुण की बेटी भी मेरी दोस्त है।

 

मैं काम की वजह से तरुण की बहुत इज्जत करती रही हूं। तरुण ने दो बार मेरा यौन शोषण किया। हर बार मैं बुरी तरह हताश और पस्त होकर अपने कमरे में लौटी और कांपते हुए रोती रही। इसके बाद मैं अपने सहकर्मियों के कमरे में गई और एक वरिष्ठ सहकर्मी को फोन कर सारी बात बताई। जब दूसरी बार तरुण ने मेरा यौन उत्पीड़न किया तो मैंने उनकी बेटी को इस बारे में शिकायत की। जब उनकी बेटी ने तरुण से इस बाबत सवाल किया तो वह मुझ पर चीखते हुए गुस्साने लगे। पूरे फेस्टिवल के दौरान मैं तरुण से बचती रही। सिर्फ तभी उनके सामने आई, जब आसपास कई लोग मौजूद रहे। यह सिलसिला तब तक चला, जब तक यह फेस्ट खत्म नहीं हो गया।

 

शनिवार शाम उन्होंने मुझे एक एसएमएस किया, जिसमें लिखा कि मैंने एक नशेबाज की दिल्लगी का उलटा ही अर्थ निकाल लिया, लेकिन यह सच नहीं है। दिल्लगी के दौरान कोई किसी पर यौन हमला नहीं करता। मैं उनकी हरकत का हर ब्योरा आपको भेज रही हूं ताकि आपको समझ आए कि मेरे लिए यह कितना तकलीफदेह रहा होगा। मैं चाहती हूं कि विशाखा मामले में सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए गए निर्देशों के मुताबिक, एक एंटी सेक्सुअल हैरेसमेंट सेल बनाया जाए और वही इस मसले की जांच करे। आखिर में मैं तरुण तेजपाल से लिखित माफी चाहती हूं। यह माफीनामा तहलका में काम करने वाले हर कर्मचारी से साझा किया जाना चाहिए। उन्होंने जिस तरह एक महिला कर्मचारी के साथ बर्ताव किया उसे कतई बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।''

विशाखा केस में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने 13 अगस्त, 1997 में कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न रोकने के संबंध में एक निर्णय दिया था। राजस्थान के चर्चित भंवरी देवी केस (1992) की पृष्ठभूमि में सुप्रीम कोर्ट ने विशाखा बनाम राजस्थान सरकार मामले में फैसला दिया था। विशाखा निर्णय नाम से प्रसिद्ध इस केस में यौन उत्पीड़न को परिभाषित करते हुए कई दिशा-निर्देशों और मानकों का निर्धारण किया गया था।

ट्विटर पर हैरानी और गुस्सा

''भारत में एक बड़े संपादक ने अपनी ही महिला पत्रकार के साथ यौन दु‌र्व्यवहार किया। वह जेल जाने के बजाय छह माह की छुंट्टी पर चला गया। क्या बेवकूफी है?'' -तारिक फतेह

''तरुण तेजपाल को यह अधिकार कहां से मिला कि वह अपने लिए सजा खुद तय करें? इस सवाल का जवाब सारी महिलाएं चाहती हैं।'' -असमा खान पठान

''यह शर्मनाक है कि अच्छे मूल्यों वाले शख्स ने ऐसा काम किया, लेकिन उन्होंने औरों की तरह अपना गुनाह कबूल करने का साहस दिखाया।'' -जावेद अख्तर

''महिलाओं के खिलाफ हिंसा के विरोध में फरहान अख्तर ने मर्द अभियान शुरू किया और उनके पिता जावेद अख्तर तरुण तेजपाल को सही ठहराने की कोशिश कर रहे हैं।'' -एस रोड्रिग्स

''जब कोई दोस्त जुर्म करता है तो पहले तो यकीन नहीं होता, फिर हैरानी होती है और फिर गुस्सा आता है। तरुण ने अपने परिवार और दोस्तों से विश्वासघात किया है।'' -सागरिका घोष

''तरुण ने तहलका को बनाया। उन्हें ही उसे नष्ट करने का अधिकार था और वह उन्होंने कर दिया। धन्यवाद तरुण।'' -आकाश

''तरुण ने महिला पत्रकार के साथ जो कुछ किया उसे जानकर हैरान हूं। यह घटना ताकत के अहंकार को बयान करती है।'' -मधु किश्वर

''नरेंद्र मोदी के बारे में राष्ट्रीय महिला आयोग का कहना है कि लड़की मामला दर्ज करे या नहीं, हम मामला जरूर दर्ज कराएंगे। तेजपाल के बारे में इसी आयोग का कहना है कि यह उनके और लड़की के बीच का मामला है।'' -नीलेश देसाई

''कांग्रेस ने अपने बहादुर सिपाही को खो दिया है। आइए आत्मा की शांति के लिए दो मिनट का मौन धारण करें। उनका छह महीने के लिए पत्ता कट गया। अब नरेंद्र मोदी के खिलाफ कौन चुनाव लड़ेगा?'' -पीयूष खंडेलवाल

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डॉक्टर साहब दवाई तो तीन महीने की दे दी, मगर खाना तो दो दिन में एक बार भी नहीं मिलता है!

मुंबई में ऐसे तो रोज़ ही ऐसे कई आयोजन होते रहते हैं जहाँ फिल्मी दुनिया से लेकर कॉर्पोरेट जगत के चर्चित चेहरे शिकरत करते हैं, लेकिन 17 नवंबर को विश्व एपिलेप्सी दिवसर पर मुंबई के यशवंत राव चव्हाण सभागृह में एपिलेप्सी फाउंडेशन द्वारा आयोजित कार्यक्रम हर दृष्टि से अलग था।

इस कार्यक्रम के सूत्रधार थे डॉ. निर्मल सूर्या, जो विगत दो-तीन वर्षों से महाराष्ट्र के जिला मुख्यालयों में हर महीने जाकर एपिलेप्सी (मिर्गी) के मरीजों को निःशुल्क परीक्षण इलाज और चेक अप की सुविधा उपलब्ध करा रहे हैं।

इस कार्यक्रम की खास बात ये थी कि� इसके माध्यम से� एपिलेप्सी के मरीजों ने अपनी प्रतिभा का शानदार प्रदर्शन किया। मंच पर एपिलेप्सी के मरीज जिस तरहसे अपनी चित्रकारी, नृत्य दि की प्रतिभा को प्रस्तुत कर रहे थे उसे देख कहीं से नहीं लगता था कि एपिलेप्सी के मरीजों में किसी तरह के आत्मविश्वास की कमी है। इस कार्यक्रम का मकसद भी यही था कि एपिलेप्सी के शिकार मरीजों को और उनके परिवार के लोगों के साथ ही आम लोगों को भी ये संदेश दिया जाए कि एपिलेप्सी कोई भूत-प्रेत या ऊपरी हवा की बीमारी नहीं है बल्क एक साधारण सी मस्तिष्क की बीमारी है और जब मस्तिष्क के कुछ स्नायुओं में थोड़ा सा अंसतुलन� होता है तो मरीज को मिर्गी का दौरा पड़ता है।

जब मरीज को मिर्गी का दौरा पड़ता है तो उसे न तो जूता सुँघाने की ज़रुरत होती है न प्याज सुँघाने की। ऐसे मरीज को तत्काल शुध्द हवा की ज़रुरत होती है और अगर उसकेआसपास से भीड़ हटा दी जाए तो कुछ ही देर में वह सामान्य स्थिति में आ जाता है।

इस कार्यक्रम में एपिलेप्सी के शिकार मरीजों ने रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत कर ज़बर्दस्त वाहवाही लूटी।

इस अवसर पर डॉ. निर्मल सूर्या ने अपने भावुक शब्दों से वहाँ मौजूद सभी अतिथियों और श्रोताओं को झकझोर सा दिया।� डॉ. सूर्या ने कहा, मैं विगत दो वर्षों से एपिलेप्स के मरीजोंके लिए निःशुल्क शिविर क आयोजन कर रहा हूँ और हर महीने महाराष्ट्र के अलग-अलग जिला मुख्यालयो पर ये शिविर आयोजित किए जाते हैं। यहाँ मरीज़ों का चैक-अप करने से लेकर ईईजी और दवाईयाँ भी निःशुल्क दी जाती है। ये शिविर महाराष्ट्र सरकार और एनआरएचएम के सहयोग से किए जाते हैं। लेकिन कई बार ऐसे मरीज़ों से सामना होता है कि ह्रजॉदय काँप जाता है। डॉ. सूर्या ने अपनी बात पूरी करते हुए कहा, जब मैं मरीजों को तीन महीने की दवाई देने के साथ ये कहता हूँ कि ये दवाई खाने खाने के पहले या खाना खाने क बाद लेना है तो कई बार ऐसे मरीज भी आते हैं जो कहते हैं डॉक्टर साहब, हमारे घर में तो कई बार दो दो दिन तक खाना ही नहीं बनता है तो फिर ये दवाई कैसे लें। इन शब्दों के साथ जब डॉ. सूर्या ने अपनी बात खत्म की तो कार्यक्रम में मौजूद, संगीतकार अनु मलिक, फिल्म निर्देशक अनिल शर्मा, महाराष्ट्र के लोकनिर्माण एवँ पर्यटन मंत्री श्री छगन भुजबल, महाराष्ट्र के आवास राज्य मंत्री श्री सचिन अहीर, भाजपा नेता श्री राज के पुरोहित, सब टीवी के लोकप्रिय धारावाहिक तारक मेहता का उल्टा चश्मा के श्री शैलेष लोढ़ा और अन्य कलाकार स्तब्ध रह गए।

इस अवसर पर श्री छगन भुजबल ने कहा किमिर्गी के मरीजों के लिए डॉ. निर्मल सूर्या जो कर रहे हैं वह अपने आप में बेमिसाल है। उन्होंने कहा कि हम तो डॉ. सूर्या को बस थोड़ा बहुत सहयोग कर देते हैं मगर वो पूरी निष्ठा से अपने काम में लगे हुए हैं। श्री भुजबल ने तारक मेहता का उल्टा चश्मा की टीम की ओर इशारा करते हुए कहा कि आप लोगों को अपने कार्यक्रम के माध्यम से एपिलेप्सी को लेकर समाज में जो भ्रांतियाँ हैं वो दूर करने के लिए आगे आना चाहिए।

इस मौके पर संगीतकार अनु मलिक और निर्देशक श्री अनिल शर्मा ने डॉ. सूर्या के योगदान की चर्चा करते हुए आज के दौर में किसी मरीज को कोई डॉक्टर मुफ्त इलाज, दवाई आदि की सुविधा दे ये अपने आप में� सुकून देने वाली बात है।

इस मंच पर एपिलेप्सी के कई मरीजों ने भी अपने कार्यक्रम प्रस्तुत कर दर्शकों को रोमांचित किया। एपिलेप्सी के मरीजों का उत्साह बढ़ाने सा रे गा मा प कि विजेता रह चुकी और फिल्म दबंग व पुलिसगिरी में गीत गा चुकी पावनी भी मंच पर मौजूद थी और उन्होंने भी यादगार गीत पेश किए।

इस अवसर पर ज़ टीवी के डांस इंडिया डांस के नीरव और उनके सहयोगी कलाकारों ने भी शानदार डांस प्रस्तुत किया।

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नेपाल में प्रचंड की प्रचंड हार

यूनीफाइड सीपीएन-माओवादी के अध्यक्ष पुष्प कमल दहल को संविधान सभा के लिए हुए चुनावों में नेपाली कांग्रेस के उम्मीदवार राजन के. सी. के हाथों शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा। �काठमांडो निर्वाचन क्षेत्र 10 से उम्मीदवार राजन को 20,392 मत मिले जबकि प्रचंड के नाम से जाने जाने वाले पुष्प कमल दहल को 12,852 मत ही मिले। इस सीट से चुनाव लड़ रहे तीसरे उम्मीदवार सीपीएल-यूएमएल के सुरेंद्र मानंधर को 13,615 मत मिले।�

प्रचंड 2008 में इसी सीट से बड़े अंतर से जीते थे। उस समय राजन उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी थे। प्रचंड सिराहा निर्वाचन क्षेत्र 5 से भी उम्मीदवार है जहां वह मतगणना में अब तक सबसे आगे चल रहे हैं।�

इससे पहले प्रचंड की पार्टी ने संविधान सभा के चुनावों के शुरुआती परिणामों में तीसरे स्थान पर पिछड़ने के बाद चुनाव में साजिश का आरोप लगाते हुए मतगणना निलंबित किए जाने की मांग की थी।�

इस बीच मुख्य निर्वाचन आयुक्त नील कांत उप्रेती ने बताया कि मतों की गिनती का काम ''पारदर्शी तरीके से हो रहा है और यह जारी रहेगा।''

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स्टिंग ऑप्रेशन के फर्जीवाड़े को लेकर आम आदमी पार्टी ने जाँच की माँग की

आम आदमी पार्टी चुनाव आयोग से अनुरोध करती है कि वह जल्द से जल्द कल “मीडिया सरकार” नामक संस्था द्वारा जारी सीडी में लगाये गए आरोपों की जाँच करे. अगर चुनाव आयोग की जाँच में पार्टी का कोई भी उम्मीदवार दोषी पाया जाता है तो वह उम्मीदवार चुनावी दौड़ से हट जायेगा और आम आदमी पार्टी उससे अपना समर्थन वापिस ले लेगी !

कल मीडिया सरकार द्वारा  जारी सीडी के बारे में आम आदमी पार्टी ने घोषणा की थी कि हम 24 घंटे के भीतर जांच कर के अपना निर्णय सुनायेंगे, हमने यह समय दो तरह की जाँच के लिए माँगा था | एक तो हम इस सीडी में नामित सभी साथियों का पक्ष सुनना चाहते थे, दूसरा हम इस सीडी की विश्वसनीयता की जाँच करने के लिए पूरी असंपादित रिकॉर्डिंग देखना चाहते थे |

कल रात प्रेस कांफ्रेंस के तुरंत बाद श्री संजय सिंह ने मीडिया सरकार के मुख्य कार्यकारी श्री अनुरंजन झा को फ़ोन कर के पूरी रिकॉर्डिंग भेजने का आग्रह किया ! उन्होने फ़ोन पर हामी भरी और एक औपचारिक अनुरोध भेजने को कहा ! रात को ही पार्टी के राष्ट्रीय सचिव श्री पंकज गुप्ता ने ईमेल के जरिये श्री झा से मूल असंपादित रिकॉर्डिंग पार्टी को आज सुबह 11 बजे तक उपलब्ध करवाने का अनुरोध किया ! बाद में इस समय सीमा को बढ़ा कर आज दोपहर तीन बजे तक किया गया | हमने टीवी चैनलों से अनुरोध किया कि यदि उन्हें पूरे टेप उपलब्ध हैं तो वे पूरा सच जनता के सामने रखें | इस समय सीमा के समाप्त होने के बाद भी श्री झा ने न तो टेप पहुंचाए हैं और न ही हमारी ईमेल का जवाब दिया है ! टीवी चैनल पर उन्होंने कहा है कि वे पार्टी को यह टेप नहीं देंगे | हमारी जानकारी में यह टेप किसी चैनल के पास भी नहीं पहुंचे हैं |

‘मीडिया सरकार’ का इंकार करना इसका सबूत है कि वह बहुत कुछ छुपाना चाहते हैं | अगर वे यह स्टिंग देश हित में जारी कर रहे थे तो अब देश के सामने पूरी रिकॉर्डिंग रखने में आनाकानी क्यों ? अगर यह सीडी दिल्ली चुनाव से ठीक पहले दिखाने की जल्दी थी तो उसकी जाँच के लिए पूरी सामग्री उपलब्ध कराने में इतनी देरी क्यों ? अगर सीडी किसी संवैधानिक संस्था को सौंपने के बजे सार्वजानिक की गयी थी तो अब पूरी फुटेज को सार्वजनिक करने से परहेज क्यों ? इस सीडी प्रकरण का समय और इसे करने वालों का व्यवहार उनकी नियत पर सवालिया निशान खड़ा करता है | आम आदमी पार्टी शुरू से ही इस देश के  भ्रष्टाचारी राजनैतिक तंत्र के निशाने पर रही है | जबसे दिल्ली चुनाव नजदीक आयें हैं तबसे आम आदमी पार्टी की अभूतपूर्व लहर से दोनों बड़ी पार्टियों और तमाम किस्म के निहित स्वार्थों में बौखलाहट फ़ैल गयी है | यह स्टिंग ऑपरेशन इसी बौखलाहट से उपजी साजिश का हिस्सा प्रतीत होता है |

पूरी रिकॉर्डिंग के बिना भी आम आदमी पार्टी की राजनैतिक सलाहकार समिति (PAC) ने कल उपलब्ध की गयी सीडी की ध्यान से जाँच की | हमारी समझ में इस सीडी में लगाये गए बड़े बड़े आरोप इसी सीडी में दिए गए प्रमाण से मेल नहीं खाते हैं |

पहली नज़र में ही इसमें कई खामियां दिखाई देती हैं;

  • 1)    इस पूरी सीडी में यह स्पष्ट है कि रिपोर्टर उम्मीदवारों के पीछे पड़ा है और उनसे कुछ भी कहलवाने की कोशिश कर रहा है | उम्मीदवार अक्सर हाँ – हूँ करके पिंड छुड़ाने की कोशिश कर रहे हैं और उसी छोटे से हिस्से को काट कर बड़े बड़े आरोप मढ़े जा रहे हैं !  
  • 2)    लगभग हर बातचीत को उसके महत्वपूर्ण सन्दर्भ से काट कर दिखाया गया है, ताकि बात का बतंगड़ बन सके | जब तक दिखाए गए हिस्सों के पहले और बाद के अंश न देखे जाएँ तब तक कोई आरोप सिद्ध नहीं होता |
  • 3)    एक से ज्यादा जगह बातचीत को बीच में काटा गया है, कुछ अंश छिपाए गए हैं |
  • 4)    एक जगह, ट्रांसक्रिप्ट में से एक महत्वपूर्ण वाक्य को गायब कर दिया गया है जो टेप पर साफ़ सुना जा सकता है |

इन सब कारणों से आम आदमी पार्टी इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि केवल इस सीडी पर भरोसा कर के अपने किसी उम्मीदवार के खिलाफ कोई फैसला लेना प्राकृतिक न्याय के बुनियादी सिद्धांत के खिलाफ होगा | यह सीडी देश में इमानदारी की राजनीती के खिलाफ एक प्रायोजित मुहीम का हिस्सा है | आने वाले दिनों में इसी मुहीम के तहत और भी बहुत कुछ हो सकता है | आम आदमी पार्टी जनता को ऐसी साजिशों से आगाह करती है |

चुनाव प्रचार के बीचों बीच इस तरह की सीडी को जारी करना देश के कानून, चुनावी आचार संहिता और पत्रकारिता की मर्यादा का उल्लंघन है | इसलिए आम आदमी पार्टी निम्नलिखित कदम उठाएगी;

 

  • 1)      ‘मीडिया सरकार’ के विरुद्ध अपराधिक मानहानि (criminal defamation) का केस तुरंत दर्ज करवाया जायेगा |
  • 2)      पार्टी चुनाव आयोग से अपील करेगी कि वे चुनाव आचरण संहिता के हनन के इस मामले में दखल दे कर इस सीडी के प्रचार प्रसार को रुकवाएं और दोषियों पर सख्त कार्यवाही करें |
  • 3)      पार्टी न्यूज़ चैनलों द्वारा सीडी की विश्वसनीयता की जाँच किये बिना उसे अपने चैनल पर प्रसारित किये जाने के खिलाफ न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन और प्रेस काउंसल के पास अपील करेगी |

आम आदमी पार्टी इमानदारी की राजनीती करने उतरी है | इसलिए एक आम नागरिक को इस पार्टी से काफी आशाएं हैं और इसकी ईमानदारी के दावों की कड़ी परीक्षा होना स्वाभाविक है | हमने यह वादा किया है कि हमारे एक भी उम्मीदवार के खिलाफ भ्रष्टाचार, अपराधिक गतिविधियों या चरित्रहीनता का कोई भी सबूत मिलता है तो पार्टी उस उमीदवार को चुनावी दौड़ से वापस ले लेगी |

आम आदमी पार्टी इस अहम मामले में अन्य पार्टियों की तरह सिर्फ कानूनी दावपेच का सहारा ले कर बात ख़त्म नहीं करना चाहती | हम चाहते हैं कि इन आरोपों की स्वतंत्र और निष्पक्ष जाँच हो ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके |

आज देश के आम नागरिक की आस्था चुनाव आयोग में है ! आम आदमी पार्टी चुनाव आयोग से अनुरोध करती है की वे इन सीडी में लगाये आरोपों की जल्द से जल्द (हो सके तो अगले 48 घंटे में) जाँच करवाएं और देश को बताएं कि क्या हमारे किसी भी उम्मीदवार ने देश के किसी कानून या मर्यादा का उल्लंघन किया है | अगर चुनाव आयोग हमारे किसी भी उम्मीदवार को इस सीडी में लगाये गए आरोपों का दोषी ठहराता है तो आम आदमी पार्टी का उमीदवार को चुनावी दौड़ से तत्काल हट जायेगा और आम आदमी पार्टी उससे अपना समर्थन वापस ले लेगी | इस अग्निपरीक्षा में सच की ही विजय होगी |

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पीर पराई नेताओं का जीवनसूत्र क्यों नहीं बनता?

हमारी राजनीति एक त्रासदी बनती जा रही है। राजनेता सत्ता के लिये सब कुछ करने लगा और इसी होड़ में राजनीति के आदर्श ही भूल गया, यही कारण है देश की फिजाओं में विषमताओं और विसंगतियों का जहर घुला हुआ है और कहीं से रोशनी की उम्मीद दिखाई नहीं देती। ऐसा लगता है कि आदमी केवल मृत्यु से ही नहीं, जीवन से भी डरने लगा है, भयभीत होने लगा है। ठीक उसी प्रकार भय केवल गरीबी में ही नहीं, अमीरी में भी है। यह भय है राजनीतिक भ्रष्टाचारियों से, अपराध को मंडित करने वालों से, सत्ता का दुरुपयोग करने वालों से।

देश दुख, दर्द और संवेदनहीनता के जटिल दौर से रूबरू है, समस्याएं नये-नये मुखौटे ओढ़कर डराती है, भयभीत करती है। समाज में बहुत कुछ बदला है, मूल्य, विचार, जीवन-शैली, वास्तुशिल्प सब में परिवर्तन है। ये बदलाव ऐसे हैं, जिनके भीतर से नई तरह की जिन्दगी की चकाचैंध तो है, पर धड़कन सुनाई नहीं दे रही है, मुश्किलें, अड़चने, तनाव-ठहराव की स्थितियों के बीच हर व्यक्ति अपनी जड़ों से दूर होता जा रहा है। चुनाव प्रक्रिया बहुत खर्चीली होती जा रही है।

 ईमानदार होना आज अवगुण है। अपराध के खिलाफ कदम उठाना पाप हो गया है। धर्म और अध्यात्म में रुचि लेना साम्प्रदायिक माना जाने लगा है। किसी अनियमितता का पर्दाफाश करना पूर्वाग्रह माना जाता है। सत्य बोलना अहम् पालने की श्रेणी में आता है। साफगोही अव्यावहारिक है। भ्रष्टाचार को प्रश्रय नहीं देना समय को नहीं पहचानना है। चुनाव के परिप्रेक्ष्य में इन और ऐसे बुनियादी सवालों पर चर्चा होना जरूरी है। आखिर कब तक राजनीतिक स्वार्थों के नाम पर नयी गढ़ी जा रही ये परिभाषाएं समाज और राष्ट्र को वीभत्स दिशाओं में धकेलती रहेगी? विकासवाद की तेज आंधी के नाम पर हमारा देश, हमारा समाज कब तक भुलावे में रहेगा? चुनाव के इस महायज्ञ में सुधार की, नैतिकता की बात कहीं सुनाई नहीं दे रही है? दूर-दूर तक कहीं रोशनी नहीं दिख रही है। बड़ी अंधेरी और घनेरी रात है। न आत्मबल है, न नैतिक बल।

महान भारत के निर्माण के लिए आयोज्य यह चुनावरूपी महायज्ञ आज ‘महाभारत’ बनता जा रहा है, मूल्यों और मानकों की स्थापना का यह उपक्रम किस तरह लोकतंत्र को खोखला करने का माध्यम बनता जा रहा है, यह गहन चिन्ता और चिन्तन का विषय है। विशेषतः आर्थिक विसंगतियों एवं विषमताओं को प्रश्रय देने का चुनावों में नंगा नाच होने लगा है और हर दल इसमें अपनी शक्ति का बढ़-चढ़कर प्रदर्शन कर रहे है।

जरा याद कीजिए जब संसद में यह मांग उठी थी कि गैर सरकारी संगठनों को मिली 50 हजार करोड़ रुपए से अधिक की रकम का लेखा-जोखा कराया जाना चाहिए तो इसके क्या मायने हो सकते थे? यह मांग लोकसभा में किसी और ने नहीं बल्कि विपक्ष के दिग्गज नेता श्री लालकृष्ण अडवानी ने उठाई थी मगर यह बात आई-गई हो गई।

बात केवल गैर सरकारी संगठनों को मिली इस राशि की ही नहीं बल्कि विदेशों से मिलने वाले चंदों की भी है। आज सवाल बहुत बड़ा है और वह है भारत की राजनीति को प्रत्यक्ष विदेशी प्रभाव से बचाना। आम आदमी पार्टी ने जिन कथित अनिवासी भारतीयों से चंदा इकट्ठा करके भारत की राजनीतिक व्यवस्था में ‘हवाला कारोबार’ का दरवाजा खोला है वह हमारी समूची चुनाव प्रणाली के लिए आने वाले समय में चुनौती बन सकता है।

जिस तरह वर्तमान सरकार ने विदेशी कंपनियों के लिये दरवाजे खोले हैं उसका भारत की अर्थव्यवस्था पर तो असर पड़ ही रहा है साथ ही साथ इसका असर राजनीति पर पड़े बिना किसी सूरत में नहीं रह सकता है और ये सब उसी के प्रारंभिक लक्षण हैं। बात वेदांता समूह की कंपनी स्टरलाइट इंडिया की हो या डाऊ कैमिकल्स के स्वामित्व वाली यूनियन कार्बाइड कंपनी की -विदेशी कंपनियां भारत में अपनी सहायक कंपनियां स्थापित करती हैं और अपने उत्पादों से भारत के बाजारों को लाद कर भारी मुनाफा कमाती हैं। निश्चित रूप से ये कंपनियां भारत की व्यापार प्रणाली को अपने पक्ष में रखने के लिए राजनीति को प्रभावित करने की कोशिश करेंगी और चुनाव का समय उनके लिये सबसे उपयुक्त हैं।

क्या कभी सत्तापक्ष या विपक्ष से जुडे़ लोगों ने या नये उभरने वाले राजनीतिक दावेदारों ने, और आदर्श की बातें करने वाले लोगों ने, अपनी करनी से ऐसा कोई अहसास दिया है कि उन्हें सीमित निहित स्वार्थों से ऊपर उठा हुआ राजनेता समझा जाए? यहां नेताओं के नाम उतने महत्वपूर्ण नहीं हैं न ही राजनीतिक दल महत्वपूर्ण है, महत्वपूर्ण है यह तथ्य कि इस तरह का कूपमण्डूकी नेतृत्व कुल मिलाकर देश की राजनीति को छिछला ही बना रहा है। सकारात्मक राजनीति के लिए जिस तरह की नैतिक निष्ठा की आवश्यकता होती है, और इसके लिए राजनेताओं में जिस तरह की परिपक्वता की अपेक्षा होती है, उसका अभाव एक पीड़ादायक स्थिति का ही निर्माण कर रहा है। और हम हैं कि ऐसे नेताओं के निर्माण में लगे हैं!

चुनावों से लोकतांत्रिक प्रक्रिया की शुरूआत मानी जाती है, पर आज चुनाव लोकतंत्र का मखौल बन चुके हैं। चुनावों में वे तरीके अपनाएं जाते हैं जो लोकतंत्र के मूलभूत आदर्शों के प्रतिकूल पड़ते हैं। इन स्थितियों से गुरजते हुए, विश्व का अव्वल दर्जे का कहलाने वाला भारतीय लोकतंत्र आज अराजकता के चैराहे पर है। जहां से जाने वाला कोई भी रास्ता निष्कंटक नहीं दिखाई देता। इसे चैराहे पर खडे़ करने का दोष जितना जनता का है उससे कई गुना अधिक राजनैतिक दलों व नेताओं का है जिन्होंने निजी व दलों के स्वार्थों की पूर्ति को माध्यम बनाकर इसे बहुत कमजोर कर दिया है। आज ये दल, ये लोग इसे दलदल से निकालने की क्षमता खो बैठे हैं।

महाभारत की लड़ाई में सिर्फ कौरव-पांडव ही प्रभावित नहीं हुए थे। उस युद्ध की चिंगारियां दूर-दूर तक पहुंची थीं। साफ दिख रहा है कि इस महाभारत में भी कथित अराजक राजनीतिक एवं आर्थिक ताकतें अपना असर दिखाने की कोशिश कर रही है,जिसके दूरगामी परिणाम होंगे। इन स्थितियों में अब ऐसी कोशिश जरूरी है जिसमें ‘महान भारत’ के नाम पर ‘महाभारत’ की नई कथा लिखने वालों के मंतव्यों और मनसूबों को पहचाना जाए। अर्जुन की एकाग्रता वाले नेता चाहिए भारत को, जरूरी होने पर गलत आचरण के लिए सर्वोच्च नेतृत्व पर वार करना भी गलत नहीं है।

बात चाहे फिर सोनियाजी की हो या आडवाणीजी की, यहां बात चाहे मुलायम-माया की हो या केजरीवाल की। यह सही है कि आज देश में ऐसे दलों की भी कमी नहीं है, जो नीति नहीं, व्यक्ति की महत्वाकांक्षा के आधार पर बने हैं, लेकिन नीतियों की बात ऐसे दल भी करते हैं। जनतांत्रिक व्यवस्था के लिए  कथनी और करनी की असमानता चिंता का विषय होना चाहिए। हालांकि पिछली आधी सदी में हमारे राजनीतिक दलों ने नीतियों-आदर्शों के ऐसे उदाहरण प्रस्तुत नहीं किए हैं, जो जनतांत्रिक व्यवस्था के मजबूत और स्वस्थ होने का संकेत देते हों, फिर भी यह अपेक्षा तो हमेशा रही है कि नीतियां और नैतिकता कहीं-न-कहीं हमारी राजनीति की दिशा तय करने में कोई भूमिका निभाएंगी। भले ही यह खुशफहमी थी, पर थी। अब तो ऐसी खुशफहमी पालने का मौका भी नहीं दिख रहा। लेकिन यह सवाल पूछने का मौका आज है कि नीतियां हमारी राजनीति का आधार कब बनेंगी? सवाल यह भी पूछा जाना जरूरी है कि अवसरवादिता को राजनीति में अपराध कब माना जाएगा?

यह अपने आप में एक विडम्बना ही है कि सिद्धांतों और नीतियों पर आधारित राजनीति की बात करना आज एक अजूबा लगता है। हमारी राजनीति के पिछले कुछ दशकों का इतिहास लगातार होते पतन की कथा है। यह सही है कि व्यक्ति के विचार कभी बदल भी सकते हैं, पर रोज कपड़ों की तरह विचार बदलने को किस आधार पर सही कहा जा सकता है? सच तो यह है कि आज हमारी राजनीति में सही और गलत की परिभाषा ही बदल गई है- वह सब सही हो जाता है जिससे राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति होती हो और वह सब गलत हो जाता है जो आम आदमी के हितों से जुड़ा होता है, यह कैसा लोकतंत्र बन रहा है, जिसमें ‘लोक’ ही लुप्त होता जा रहा है?

जब एक अकेले व्यक्ति का जीवन भी मूल्यों के बिना नहीं बन सकता, तब एक राष्ट्र मूल्यहीनता में कैसे शक्तिशाली बन सकता है? अनुशासन के बिना एक परिवार एक दिन भी व्यवस्थित और संगठित नहीं रह सकता तब संगठित देश की कल्पना अनुशासन के बिना कैसे की जा सकती है? इन चुनावों का संदेश सरकार और कर्णधारों के लिये होना चाहिए कि शासन संचालन में एक रात में ‘ओवर नाईट’ ही बहुत कुछ किया जा सकता है। अन्यथा ‘जैसा चलता है–चलने दो’ की नेताओं की मानसिकता और कमजोर नीति ने जनता की तकलीफें ही बढ़ाई हैं। ऐसे सोच वाले सत्तालोलुपों को पीडि़त व्यक्ति का दर्द नहीं दिखता, भला उन्हें खोखला होता राष्ट्र कैसे दिखेगा?

नरसी मेहता रचित भजन ‘‘वैष्णव जन तो तेने कहिए, जे पीर पराई जाने रे’’ गांधीजी के जीवन का सूत्र बन गया था, लेकिन यह आज के नेताओं का जीवनसूत्र क्यों नहीं बनता? क्यों नहीं आज के राजनेता पराये दर्द को, पराये दुःख को अपना मानते? क्यों नहीं जन-जन की वेदना और संवेदनाओं से अपने तार जोड़ते? बर्फ की शिला खुद तो पिघल जाती है पर नदी के प्रवाह को रोक देती है, बाढ़ और विनाश का कारण बन जाती है। देश की प्रगति में आज ऐसे ही तथाकथित  राजनीतिक बाधक तत्व उपस्थित हैं, जो जनजीवन में आतंक एवं संशय पैदा कर उसे अंधेरी राहों में, निराशा और भय की लम्बी काली रात के साये में धकेल रहे हैं। कोई भी व्यक्ति, प्रसंग, अवसर अगर राष्ट्र को एक दिन के लिए ही आशावान बना देते हैं तो वह महत्वपूर्ण होते हैं। पर यहां एक दिन की अजागरूकता पांच साल यानी अठारह सौ पचीस दिनों को अंधेरों के हवाले करने की तैयारी होती है।

यह कैसी जिम्मेदारी निभा रहे हैं हम वोटर होकर और कैसा राजनीतिक नेतृत्व निर्मित हो रहा है? चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा व्याप्त है। हमारा राष्ट्र नैतिक, आर्थिक, धार्मिक, राजनैतिक और सामाजिक सभी क्षेत्रों में मनोबल के दिवालिएपन के कगार पर खड़ा है। और हमारा नेतृत्व गौरवशाली परम्परा, विकास और हर खतरों से मुकाबला करने के लिए तैयार है, का नारा देकर अपनी नेकनीयत का बखान करते रहते हैं। पर उनकी नेकनीयती की वास्तविकता किसी से भी छिपी नहीं है।

प्रेषक:
(ललित गर्ग)
ई-253, सरस्वती कुंज अपार्टमेंट
25, आई0पी0 एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दिल्ली-92 फोन: 22727486, मो. 09811051133

 

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