Tuesday, May 7, 2024
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गणेश शंकर विद्यार्थी: एक क्रांतिकारी पत्रकार

अपनी बेबाकी और अलग अंदाज से दूसरों के मुंह पर ताला लगाना एक बेहद मुश्किल काम होता है। कलम की ताकत हमेशा से ही तलवार से अधिक रही है और ऐसे कई पत्रकार हैं, जिन्होंने अपनी कलम से सत्ता तक की राह बदल दी। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जिन पत्रकारों ने अपनी लेखनी को हथियार बनाकर आजादी की जंग लड़ी थी, उनमें गणेश शंकर विद्यार्थी का नाम अग्रणी है। आजादी की क्रांतिकारी धारा के इस पैरोकार ने अपने धारदार लेखन से तत्कालीन ब्रिटिश सत्ता को बेनकाब किया और इस जुर्म के लिए उन्हें जेल तक जाना पड़ा। सांप्रदायिक दंगों की भेंट चढ़ने वाले वह संभवत: पहले पत्रकार थे।

विद्यार्थी जी का जन्म 26 अक्टूबर, 1890 को उनके ननिहाल प्रयाग (इलाहाबाद) में हुआ था। इनके पिता का नाम जयनारायण था। पिता एक स्कूल में अध्यापक थे और उर्दू व फारसी के जानकार थे। विद्यार्थी जी की शिक्षा-दीक्षा मुंगावली (ग्वालियर) में हुई। पिता के समान ही इन्होंने भी उर्दू-फारसी का अध्ययन किया।

आर्थिक कठिनाइयों के कारण वह एंट्रेंस तक ही पढ़ सके, लेकिन उनका स्वतंत्र अध्ययन जारी रहा। विद्यार्थी जी ने शिक्षा ग्रहण करने के बाद नौकरी शुरू की, लेकिन अंग्रेज अधिकारियों से नहीं पटने के कारण उन्होंने नौकरी छोड़ दी। पहली नौकरी छोड़ने के बाद विद्यार्थी जी ने कानपुर में करेंसी ऑफिस में नौकरी की, लेकिन यहां भी अंग्रेज अधिकारियों से उनकी नहीं पटी। इस नौकरी को छोड़ने के बाद वह अध्यापक हो गए।

महावीर प्रसाद द्विवेदी उनकी योग्यता के कायल थे। उन्होंने विद्यार्थी जी को अपने पास 'सरस्वती' में बुला लिया। उनकी रुचि राजनीति की ओर पहले से ही थी। एक ही वर्ष के बाद वह 'अभ्युदय' नामक पत्र में चले गए और फिर कुछ दिनों तक वहीं पर रहे। उन्होंने कुछ दिनों तक 'प्रभा' का भी संपादन किया। अक्टूबर 1913 में वह 'प्रताप' (साप्ताहिक) के संपादक हुए। उन्होंने अपने पत्र में किसानों की आवाज बुलंद की।

पत्रकारिता के क्षेत्र में क्रांतिकारी कार्य करने के कारण उन्हें पांच बार सश्रम कारागार और अर्थदंड अंग्रेजी शासन ने दिया। विद्यार्थी जी के जेल जाने पर 'प्रताप' का संपादन माखनलाल चतुर्वेदी व बालकृष्ण शर्मा नवीन करते थे। उनके समय में श्यामलाल गुप्त पार्षद ने राष्ट्र को एक ऐसा बलिदानी गीत दिया, जो देश के एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक छा गया। यह गीत 'झण्डा ऊंचा रहे हमारा' है। इस गीत की रचना के प्रेरक थे अमर शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी।

सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं पर विद्यार्थी जी के विचार बड़े ही निर्भीक होते थे। विद्यार्थी जी ने देशी रियासतों द्वारा प्रजा पर किए गए अत्याचारों का तीव्र विरोध किया। पत्रकारिता के साथ-साथ गणेश शंकर विद्यार्थी की साहित्य में भी अभिरुचि थी। उनकी रचनाएं 'सरस्वती', 'कर्मयोगी', 'स्वराज्य', 'हितवार्ता' में छपती रहीं। 'शेखचिल्ली की कहानियां' उन्हीं की देन है। उनके संपादन में 'प्रताप' भारत की आजादी की लड़ाई का मुखपत्र साबित हुआ। सरदार भगत सिंह को 'प्रताप' से विद्यार्थी जी ने ही जोड़ा था। विद्यार्थी जी ने राम प्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा 'प्रताप' में छापी, क्रांतिकारियों के विचार व लेख 'प्रताप' में निरंतर छपते रहते थे।

महात्मा गांधी ने उन दिनों अंग्रेजों के खिलाफ अहिंसात्मक आंदोलन की शुरुआत की थी, जिससे विद्यार्थी जी सहमत नहीं थे, क्योंकि वह स्वभाव से उग्रवादी विचारों के समर्थक थे। विद्यार्थी जी के 'प्रताप' में लिखे अग्रलेखों के कारण अंग्रेजों ने उन्हें जेल भेजा, जुर्माना लगाया और 22 अगस्त 1918 में 'प्रताप' में प्रकाशित नानक सिंह की 'सौदा ए वतन' नामक कविता से नाराज अंग्रेजों ने विद्यार्थी जी पर राजद्रोह का आरोप लगाया व 'प्रताप' का प्रकाशन बंद करवा दिया।

आर्थिक संकट से जूझते विद्यार्थी जी ने किसी तरह व्यवस्था जुटाई तो 8 जुलाई 1918 को फिर इसकी की शुरुआत हो गई। 'प्रताप' के इस अंक में विद्यार्थी जी ने सरकार की दमनपूर्ण नीति की ऐसी जोरदार खिलाफत कर दी कि आम जनता 'प्रताप' को आर्थिक सहयोग देने के लिए मुक्त हस्त से दान करने लगी।

जनता के सहयोग से आर्थिक संकट हल हो जाने पर साप्ताहिक 'प्रताप' का प्रकाशन 23 नवंबर 1990 से दैनिक समाचार पत्र के रूप में किया जाने लगा। लगातार अंग्रेजों के विरोध में लिखने से इसकी पहचान सरकार विरोधी बन गई और तत्कालीन दंडाधिकारी स्ट्राइफ ने अपने हुक्मनामे में 'प्रताप' को 'बदनाम पत्र' की संज्ञा देकर जमानत की राशि जप्त कर ली।

कानपुर के हिंदू-मुस्लिम दंगे में निस्सहायों को बचाते हुए 25 मार्च 1931 को विद्यार्थी जी भी शहीद हो गए। उनका पार्थिव शरीर अस्पताल में पड़े शवों के बीच मिला था। गणेश शंकर जी की मृत्यु देश के लिए एक बहुत बड़ा झटका थी। गणेश शंकर विद्यार्थी एक ऐसे साहित्यकार रहे हैं, जिन्होंने देश में अपनी कलम से सुधार की क्रांति उत्पन्न की।

(लेखक पत्रकार हैं और हिन्दुस्तान टाइम्स समूह से जुड़ें हैं।)

संपर्क
Ankur Vijaivargiya
Senior Correspondent
Hindustan Times Media Limited
First Floor, 18-20, Hindustan Times House
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Mobile:- 91-8826399822
Phone:- 011-66561164
Website:- www.hindustantimes.com

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अरविन्द केजरीवाल ने गृह मंत्रालय के प्रस्ताव पर पुलिस सुरक्षा लेने से मना किया

आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल ने पुलिस सुरक्षा लेने से मना कर दिया है. गृह मंत्रालय ने उत्तर प्रदेश को एक पत्र लिखकर सूचना दी है कि अरविन्द केजरीवाल की जान को खतरा हो सकता है और इसलिए उन्हें सुरक्षा दी जानी चाहिए.

 

आज गाजियाबाद के एल. आई. यू. के अधिकारियों ने अरविन्द केजरीवाल से संपर्क कर सुरक्षा लेने का अनुरोध किया था. अधिकारियों के मुताबिक उन्हें गृह मंत्रालय- दिल्ली से इस बाबत आदेश प्राप्त थे. लेकिन अरविन्द केजरीवाल ने यह कहते हुए सुरक्षा लेने से मना कर दिया कि देश के करोड़ों लोगों की सुरक्षा खतरे में है. ऐसे में कोई एक नेता सुरक्षा के धेरे में सुरक्षित रखने की सोच भी कैसे सकता है.
 

आम आदमी पार्टी का संकल्प है कि दिल्ली सरकार बनने के बाद भी सरकार के मुख्यमंत्री अथवा मंत्री न तो लालबत्तियों की गाड़ियों में चलेंगे और न ही सुरक्षा का तामझाम लेकर चलेंगे.

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वे कौन खुफिया अधिकारी हैं जो राहुल को खबरें देते हैं?

इंदौर की चुनावी रैली में राहुल गांधी ने कहा कि उन्हें 'खुफिया विभाग के अधिकारियों' ने बताया है कि पाकिस्तानी एजेंसी आईएसआई मुजफ्फरनगर दंगों के पीड़ित परिवारों से संपर्क में हैं। यह बयान उनके गले की फांस बन सकता है।

कांग्रेस उपाध्यक्ष के इस बयान से रिटायर्ड और सेवा में बने हुए नौकरशाहों का दिमाग चकरा गया है। वे सवाल कर रहे हैं कि खुफिया विभाग के अधिकारी एक सियासी दल के उपाध्यक्ष को ‌कैसे ब्रीफ कर सकते हैं, जिसने गोपनीयता की शपथ भी नहीं उठाई है।

उन्होंने इस जानकारी को सार्वजनिक करने को लेकर भी राहुल गांधी की आलोचना की। उनका मानना है‌ कि इस सिलसिले में गोपनीय और खुफिया अभियान छेड़कर उन नौजवानों को पहचाना जाना चाहिए था। साथ ही आईएसआई के उन एजेंट को पकड़ना चाहिए, ताकि वे ऐसी कोई हरकत न कर सकें।

'राहुल से समझदारी की उम्मीद है'
आईबी के पूर्व प्रमुख अजीत कुमार डोभाल ने कहा, "देश के संभावित पीएम को राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर समझदारी दिखानी चाहिए। आईएसआई एक विदेशी एजेंसी है, जो देश को नुकसान पहुंचाने के लिए ग्रामीण इलाकों में अपनी पैठ बढ़ा रही है।"

उन्होंने कहा, "राहुल की प्रतिक्रिया ज्यादा सधी और निर्णायक होनी चाहिए थी। उन्हें खुफिया विभाग के अधिकारियों को उन नौजवानों के पास जाने के लिए कहना चाहिए था, जिनसे आईएसआई ने संपर्क साधा है। इन पाकिस्तानी एजेंट के‌ लिए जाल बिछाकर इन्हें खत्म किया जना चाहिए।"

पूर्व गृह सचिव ने पहचान जाहिर न करने की शर्त पर इस बात से सहमति जताई कि राहुल का इस बारे में सार्वजनिक बयान देने से राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता हुआ है। यह कुछ और नहीं, उनकी अपरिपक्वता दिखाता है।

क्यों दी राहुल को जानकारी?
खुफिया विभाग में कार्यरत एक अधिकारी ने बताया कि जिस आईबी अधिकारी ने राहुल को यह जानकारी दी, गलती उसकी भी है, क्योंकि वह केवल सरकारी अधिकारियों तक यह जानकारी पहुंचा सकता था।

इस बयान को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने भी राहुल पर हमला बोला है। इस सिलसिले में चुनाव आयोग से शिकायत करने की तैयारी कर रहे पार्टी के वरिष्ठ नेता रविशंकर प्रसाद ने कहा, "यह बेहद गैरजिम्मेदाराना बयान है।"

समाजवादी पार्टी ने इसे लेकर भाजपा और राहुल गांधी, दोनों पर निशाना साधा है। आजम खां ने कहा, "इस बारे में भाजपा ‌शिकायत करने के बारे में क्यों बात कर रही है, क्योंकि वह तो देश के संविधान में यकीन ही नहीं रखती। और जहां तक बात राहुल गांधी की है, तो उनका बयान बेहद बचकाना है।"

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मुंबई के पादरी का व्यभिचारी चेहरा सामने आया

मुंबई में एक पादरी के हाथों यौन शोषण की शिकार हुई चौदह वर्ष की लड़की की दास्तान सुनकर हर कोई हैरान रह जाएगा। बेसहारा लड़कियों को सहारा देने के नाम पर इस लड़की का शोषण महज चार वर्ष की उम्र से ही शुरू हो गया था। यह सब करने वाला और कोई नहीं बल्कि वह शख्स था जिसपर उसके लालन पालन की जिम्मेदारी थी।

शराबी पिता ने उसको चार वर्ष की उम्र में ही एक पादरी को बेच दिया था। इसके बाद उसकी जिंदगी में जो कुछ घटित हुआ उसकी कल्पना करने से भी शरीर में सिहरन पैदा कर देता है। पादरी ने लगातार कई वर्षो तक उसका यौन शोषण किया। जब वह शारीरिक तौर पर भी बड़ी हुई तो पादरी ने उसपर शादी का दवाब तक बनाया। वह इतने पर ही नहीं रुका। शारीरिक संबंध न बनाने पर उसको यातनाएं तक दी जाने लगी। यहां तक की उसको रोज गर्भनिरोधक गोलियां खाने के लिए बाध्य किया गया।

विरोध करने के बाद पादरी ने उसको एक दूसरे शेल्टर होम के मालिक को बेच दिया। लेकिन उसकी जिंदगी में कोई बदलाव नहीं हुआ। वहां पर भी उसके साथ वही सब करने के लिए दवाब बनाया गया। लेकिन वह अड़ गई। नतीजतन उसको वापस नैरोल में ही पुरानी जगह पर भेज दिया गया। तंग आकर एक बार वह अपनी मां के पास जाने के लिए पादरी के पास से भाग खड़ी हुई। लेकिन उसकी मां ने अपने पति की मौत के बाद दोबारा शादी कर ली थी। इसके बाद उसने अपनी बेटी को साथ रखने से साफ मना कर दिया।

कम उम्र में जिंदगी का सबसे बदनुमा चेहरा देखने वाली इस लड़की पर एक मानसिक रोगी से शादी करने तक का दवाब बनाया गया। अंत में इस लड़की ने चाइल्ड वेलफेयर कमेटी का दरवाजा खटखटाया। इसमें पादरी पीटी बाबू पर उसका यौन शोषण करने का आरोप लगाया गया है। शिकायत के साथ उसने एक सीडी भी पेश की है जिसमें उसके दर्द की दास्तां को खुद उसने बयां किया है।

यह लड़की फिलहाल सायन के बाइबल कॉलेज में है। लेकिन शिकायत करने के बाद से ही उसकी मुश्किलें और बढ़ गई हैं। एक ओर जहां पादरी उसपर शिकायत वापस लेने का दवाब बनाए हुए है, वहीं दूसरी और उसकी मां ने भी शिकायत वापस लेने को दवाब बना रखा है। लड़की को शक है कि बाबू पादरी ने उसकी मां को यह मामला रफा-दफा करने के लिए पैसे दिए हैं। हालांकि इस शिकायत के बाद सीडब्ल्यूसी ने आगे आकर उसकी मदद की और एक नर्सिग स्कूल में उसका दाखिला भी करवा दिया है, जिससे वह अपना अतीत भूला सके।

 

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केजरीवाल की शीला दीक्षित को खुली चुनौती

आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को औपचारिक� रूप से सार्वजनिक बहस के लिए आमंत्रित किया है। केजरीवाल ने इस बहस में लोगों को भी हिस्सा लेने को कहा है और सीएम एवं उनसे सीधे प्रश्न पूछने को कहा है। �

केजरीवाल ने कहा, मुख्यमंत्री ने हालांकि पूर्व में सार्वजनिक� बहस की उनकी पेशकश को ठुकरा दिया था, इसलिए कुछ संपादकों की सलाह पर उन्होंने शीला दीक्षित को औपचारिक� रूप से आमंत्रित करने का निर्णय लिया। शीला दीक्षित को लिखे पत्र में केजरीवाल ने कहा, मैं आपको यह पत्र लिख रहा हूं क्‍योंकि कुछ संपादकों ने मुझे सुझाव दिया है कि मैं आपको औपचारिक� रूप से आमंत्रित कर सकूं। मैं आपको औपचारिक� रूप से आमंत्रित कर रहा हूं और अगर आपको सही लगता है कि तब हम भाजपा की ओर से डा. हर्षवर्धन को भी हिस्सा लेने के लिए बुला सकते हैं।

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दो मुख्य मंत्री और एक केंद्रीय मंत्री आएंगे नय पद्मसागरजी के ‘जीओ’ कार्यक्रम में

मुंबई। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण, गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर, केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री प्रदीप जैन एवं फिल्म अभिनेता विवेक ओबरॉय 27 अक्टूबर (रविवार) को मुंबई में जैन इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन (जीओ) द्वारा आयोजित ग्लोबल कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेंगे। इस कॉन्फ्रेंस में विख्यात जैन संत परम पूज्य नयपद्म सागर महाराज के सामाजिक एकता और विकास के सपने को साकार करने के लिए चार विशेष कार्यक्रमों की शुरूआत होगी। इस आयोजन में इंटरनेशनल सेटलमेंट फोरम, पॉलिटिकल फोरम फॉर गुड गवर्नेस सहित मुंबई में एक इंटरनेशनल स्कूल की स्थापना की शुरूआत की जाएगी। ‘जीओ’ की ग्लोबल लॉचिंग इस आयोजन का सबसे प्रमुख कार्यक्रम होगा।

‘जीओ’ का यह मेगा आयोजन वरली स्थित एनएससीआई के सरदार वल्लभभाई पटेल स्टेड़ियम में 27 अक्टूबर (रविवार) को सुबह 9 बजे से शुरू होगा। इस अतर्राष्ट्रीय आयोजन में देश विदेश के विभिन्न स्थानों से विशेष रूप से मुंबई आ रहे हैं। राजनेता, न्यायविद. उद्योगपति, डॉक्टर, सीए, एडवोकेट, इंजीनियर, वैज्ञानिक, पत्रकार, लेखक, साहित्यकार, प्रसासनिक अधिकारी, बैंकर्स, सामाजिक कार्यकर्ता एवं कॉर्पोरेट जगत आदि विभिन्न क्षेत्रों के करीब 6 हजार से भी ज्यादा निष्णात लोग इस ग्लोबल कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेंगे। नयपद्म सागर महाराज के अनुसार परोपकार, विश्वमैत्री एवं प्राणी कल्याण को समर्पित जैन समाज के लिए एक संगठित प्लेटफॉर्म के रूप में आयोजित यह ग्लोबल कॉन्फ्रेंस सामाजिक रूप से एक पॉवर सेंटर साबित होगी। सामाजिक विकास एवं विश्व की बदली हुई परिस्थितियों में ‘जीओ’ के द्वारा एक कार्यक्षम संगठन के रूप में नए इतिहास के निर्माण होगा।

जैन इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन की इस ग्लोबल कॉन्फ्रेंस में शिक्षा, चिकित्सा, उद्योग, व्यवसाय, प्रशासन एवं राजनीतिक क्षेत्र में जैन समाज की सक्षम भूमिका के निर्माण की दिशा भी तय की जाएगी। नयपद्म सागर महाराज ने बताया कि इस ग्लोबल आयोजन की सारी महत्वपूर्ण तैयारियां पूरी कर ली गई हैं।

संपर्कः 9967060060

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अपने भक्तों ही के साथ इतना बड़ा विश्वासघात?

पाखंडी संत आसाराम व उनके परिवार पर नित्य नए आरोप लगते जा रहे हैं। कानून का शिकंजा भी इस परिवार के सदस्यों विशेषकर आसाराम व उसके पुत्र नारायण साईं पर और अधिक कसता जा रहा है। आसाराम जेल की रोटी खा रहा है तो पुत्र नारायण साईं को अपना काला मुंह छुपाकर इधर-उधर पनाह लेनी पड़ रही है। जिस प्रकार आसाराम व उसके पुत्र पर अपने ही भक्तों की बहन-बेटियों के साथ यौन दुराचार करने के मामले दिन-प्रतिदिन खुलते जा रहे हैं उसे देखकर निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि इस परिवार के पाप का घड़ा लबरेज़ हो चुका था। हालांकि हमारे देश में विभिन्न धर्मों के कई धर्मगुरुओं पर इस प्रकार के आरोप पहले भी लग चुके हैं तथा इनमें कई कानून के हत्थे ाी चढ़ चुके हैं। परंतु आसाराम व उनके पूरे परिवार की मिलीभगत से जिस प्रकार दशकों से अध्यात्म के नाम पर अपने ही भक्तजनों के परिवार की कन्याओं का यौन शोषण किया जा रहा था वह अपने-आप में देश का एक पहला उदाहरण है।

                

जिस समय जोधपुर यौन शोषण प्रकरण में आसाराम के विरुद्ध सबसे पहले मामला दर्ज हुआ था उस समय आसाराम, उनके समर्थक व कुछ राजनैतिक दलों ने इस पूरे घटनाक्रम को एक साजि़श यहां तक कि कांग्रेस,सोनिया गांधी व राहुल गांधी के इशारे पर की जाने वाली कार्रवाई बताया था। कुछ हिंदुत्ववादियों ने भी इस मुद्दे पर राजनीति करनी चाही थी। वे यह कहते सुनाई देने लगे थे कि हिंदू धर्म व संत समाज को बदनाम करने की एक सोची-समझी साजि़श के तहत आसाराम को बदनाम किया जा रहा है। परंतु जोधपुर यौन शोषण प्रकरण के बाद अब तो और भी कई मामले सामने आ चुके हैं।

 

इन्हीं में एक मामला गुजरात के सूरत की पुलिस ने दो सगी बहनों की शिकायत के आधार पर दर्ज किया है। इसमें एक बहन ने आसाराम पर 1997 से लेकर 2006 तक उसका शारीरिक शोषण किए जाने का आरोप लगाया है तो दूसरी बहन ने आसाराम के पुत्र नारायण साईं पर यही इल्ज़ाम लगाया है। इन बहनों के अनुसार आसाराम व उनके पुत्र ने उस दौरान उन बहनों के साथ शारीरिक शोषण किया जबकि वे अहमदाबाद के बाहरी क्षेत्र के आश्रम में उनकी शिष्या के रूप में रहा करती थीं। इस मामले की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज होने के बाद ही नारायण साईं को गिर तारी से बचने के लिए भूमिगत होना पड़ा। इन दोनों पिता-पुत्र के दशकों से चले आ रहे इन पापपूर्ण कारनामों से इनका परिवार भी अलग नहीं कहा जा सकता। स्वयं आसाराम की पुत्री ने यह बयान दिया है कि वह दीक्षा के नाम पर कन्याओं को अपने पिता के पास भेजा करती थी।      

आसाराम की व्याभिचार के प्रति दीवानगी का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि 80 की उम्र पार करने के बावजूद यह श स शक्तिवर्धक दवाईयां तथा अफीम जैसे नशीले पदार्थों का सेवन करता था। तो दूसरी ओर अपने पुरुष चेलों को जोकि उसके आसपास रहा करते थे उन्हें नपुंसक बनाने जैसी दवाईयां देता था। और तो और इसके आश्रम में कन्याओं का अवैध रूप से गर्भपात कराए जाने का भी पु ता प्रबंध था। अब आसाराम की काली करतूतों के उजागर होने के बाद उससे अपना मोह भंग कर चुके पूर्व भक्तों की ज़ुबानी सुनें तो ऐसा लगता है कि उसका धर्म व अध्यात्म के नाम पर चलने वाला पूरा का पूरा प्रपंच इन दोनों पिता-पुत्र की वासना की हवस पूरी करने का एक माध्यम मात्र था। और यह पाखंडी परिवार अपने उन भक्तों की बहन-बेटियों पर बुरी नज़र डालकर उन्हें अपनी हवस का शिकार बनाता था जोकि इन पाखंडियों को केवल गुरु ही नहीं बल्कि देवता व भगवान तुल्य समझा करते थे और जो भक्त अपने मंदिरों में,अपने घरों में, अपने आिफस व ड्राईंग रूम की दीवारों पर यहां तक कि अपने गले के लॉकेट व अपनी अंगूठियों तक में इस महापापी के चित्र लगाए रखते थे।

इसके किसी भक्त ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि रंगीला,रसीला,छबीला व सफेदपोश दिखाई देने वाला उनका यह गुरु, गुरु नहीं बल्कि उनके परिवार की इज़्ज़त पर हमला बोलने वाला एक राक्षसरूपी मानव है। आसाराम पर अपनी गहन व अंधश्रद्धा रखने वाले हज़ारों भक्तों ने उसे धन-दौलत के अलावा तमाम जगहों पर ज़मीन-जायदादें भी दान की है। देश में ज़्यादातर स्थानों पर बने उसके आश्रम या तो दान में मिली हुई ज़मीन पर बने हैं या फिर उसके स्थानीय भक्तों द्वारा स्वयं पैसे जुटाकर ज़मीन खरीदकर बनाए गए हैं।

इन भक्तों की श्रद्धा का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज के दौर में जबकि ज़मीनों की कीमतें आसमान छू रही हैं ऐसे में अधिकांशत: मु य मार्गों के किनारे स्थित अपनी मंहगी ज़मीनें इस पाखंडी को दान करने वालों की इसके प्रति कितनी गहन आस्था रही होगी। इन भक्तों ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि जिस सफेदपोश ढोंगी व बनावटी लहजे में बोलने वाले आसाराम को यह भक्तजन परमेश्वर तुल्य समझ रहे हैं वह व्यक्ति गुरु के नाम पर इनकी बहन-बेटियों की इज़्ज़त के साथ खिलवाड़ करेगा तथा गुरु दक्षिणा के नाम पर इनकी ज़मीन-जायदाद हड़पकर उन्हीें दान में प्राप्त की गई ज़मीनों पर अपने ऐशगाह नुमा कमरे व गुफा आदि बनवाकर उनमें इन्हीं भक्तों की ही बेटियों का शारीरिक शोषण करेगा।           

परंतु आसाराम व उसके पुत्र ने अपने भक्तों के साथ इतना बड़ा विश्वासघात व अपराध किया जिसकी पूरे देश में अब तक कोई दूसरी मिसाल नहीं मिलती। ज़ाहिर है इन पिता-पुत्र के पाप का घड़ा फूटने के बाद अब स्वाभाविक रूप से इनके भक्तों में गुस्सा फूटना शुरु हो चुका है। पिछले दिनों इसकी शुरुआत आसाराम के गृहराज्य गुजरात के बलसाड़ में पर्दी तालुका के पारिया गांव में स्थित इसके आश्रम से हुई। इस पर लगातार लग रहे यौन उत्पीडऩ के आरोपों से क्षुब्ध व अपमानित महसूस करने वाले इसके सैकड़ों भक्तों ने उक्त आश्रम में आग लगा दी। इन भक्तों में वे लोग भी शामिल थे जिन्होंने आसाराम के इस आश्रम के लिए ज़मीन दान में दी थी। आसाराम के इन पूर्व भक्तों का साफतौर पर यह कहना था कि वे अब अपने किए पर पछता रहे हैं तथा आसाराम व उनके परिवार के प्रति उनकी आस्था उनके काले कारनामों को सुनने के बाद अब समाप्त हो चुकी है। यह लोग अब आश्रम को दान में दी गई अपनी ज़मीनें भी वापस लेना चाहते हैं।      

आसाराम के पूर्व भक्तों के दिलों में फूटने वाली इस प्रकार की ज्वाला को बेमानी नहीं कहा जा सकता। मनोवैज्ञानिक रूप से यदि सामाजिक स्तर पर इस बात का जायज़ा लिया जाए तो हम यह देखेंगे कि पिता-पुत्र, पति-पत्नी जैसे रिश्तों में कड़वाहट पैदा होने के बाद प्राय: इन रिश्तों के संबंध व इन रिश्तों के बीच के श्रद्धाभाव तो कभी समाप्त भी हो जाते हैं। परंतु गुरु-शिष्य के रिश्तों में कड़वाहट आती बहुत कम सुनाई देती है। बजाए इसके गुरु-शिष्य संबंध नस्ल दर नस्ल चले आ रहे हों, ऐसा ज़रूर देखा जा सकता है। परंतु किसी कथित गुरु के अपराध का यह चरमोत्कर्ष ही है कि आज उसके वही भक्त उस पाखंडी से अपनी ज़मीनें वापस मांग रहे हैं जिन्होंने उसे अपनी ज़मीन दान दी थी। जो भक्त कल तक उसके जिस आश्रम में बैठकर उसकी डीगें सुना करते थे वही आज उसी आश्रम में तोड़-फोड़ करने व उसमें आग लगाने पर उतारू हो गए हैं। और अपनी इसी पोल पट्टी का ढिंढोरा और न पिटने की गरज़ से ही इस व्याभिचारी कथित संत ने अदालत से मीडिया ट्रायल बंद कराए जाने की गुहार लगाई थी जिसे संभवत: अदालत ने भी इसी कारण खारिज कर दिया ताकि इसकी करतूतों का पूरी तरह कदम ब कदम खुलासा होता रहे और अंध आस्था व अंधविश्वास के मारे इसके भोले-भाले भक्तजनों का इससे पूरी तरह से मोह भंग हो सके।             

नि:संदेह आसाराम के भक्तों के साथ बहुत बड़ा छल,धोखा व विश्वासघात इन पिता-पुत्र द्वारा किया गया है। अब भी इसके जो भी अंधभक्त इसके प्रति आस्था रख रहे हों उन्हें भी अपनी आंखें खोल लेनी चाहिए और जिन भक्तों ने इसे अपनी भू संपत्ति दान में दी है उन्हें अपनी संपत्ति वापस ले लेना चाहिए। भविष्य में भी भक्तजनों को अपना कोई गुरु बहुत ही सोच-समझ कर व पूरी सूझ-बूझ के साथ धारण करना चाहिए। अन्यथा सभी धर्मों के धर्मग्रंथ ही अपने अनुयाईयों का मार्गदर्शन करने के लिए पर्याप्त हैं। यदि आसाराम व उसके पुत्र की काली करतूतों से पर्दे हटने के बाद भी सीधे-सादे भक्तों ने अपनी आंखें नहीं खोलीं तो भविष्य में भी ऐसे पापी व पाखंडी कथित संतों को समाज में अपने पैर पसारने के मौके मिलते रहेंगे।

 

 निर्मल रानी

1618, महावीर नगर

अंबाला शहर,हरियाणा।

फोन-0171-2535628

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शाहिद [ हिंदी ड्रामा ]

दो टूक : कहते हैं जरुरी नहीं कि हमारे साथ ना इंसाफी हो तो हम भी दूसरों के साथ वही करें . लेकिन इस बात के लिए भी तैयार रहे कि इसका करना और इसका परिणाम सबको रास नहीं आता. हंसला मेहता के निर्देशंन में बनी राजकुमार यादव  ,प्रब्लीन संधू, मोहम्मद जीशान अयूब, बलजिंदर कौर ,  विनोद रावत , विपिन शर्मा , शालनी वत्स , पारितोष सैंड , मुकेश छाबरा , पवन कुमार और विवेक घामंडे के अभिनय वाली फिल्म शाहिद.

कहानी : फिल्म की कहानी वकालत पढने पड़ने वाले शाहिद [ राजकुमार यादव ] की है . साम्प्रदायिक दंगो से टूटा शाहिद शक के बाद जेल में डाल दिया जाता है . पुलिस को लगता है वो आंतकवादियों से मिला हुआ था . जेल से छूटकर वो ऐसे लोगों के केस लड़ने लगता है जिन्हें संदेह के कारण बिना वजह बरसों जेल में रहना पड़ा है . पर उसका यही कदम उसे कुछ लोगों का दुश्मन बना देता है . फिल्म में प्रब्लीन संधू, मोहम्मद जीशान अयूब , बल्जिन्दर्कौर , विनोद रावत . विपिन शर्मा , शालनी वत्स, पारितोष सैंड , मुकेश छाबरा , पवन कुमार और विवेक घामंडे के पात्र और चरित्र भी आते जाते रहते हैं. 

गीत संगीत : फिल्म में करन कुलकर्णी के गीत और संगीत है लेकिन ऐसी फिल्म में गीतों की गुंजायश नहीं होती फिर भी कुछ गीत हैं जो फिल्म के पाश्र्व में चलते रहते हैं जिनमे मेरी पसंद का गीत है बेपरवा हवा जैसे बोलों वाला गीत . 

अभिनय : फिल्म की मुख्य पात्र शाहिद बने राजकुमार यादव  है और उन्होंने शाहिद की भूमिका को संवेदनशीलता से अभिनीत किया है . उनका पात्र कुछ कुछ आत्मकेंद्रित किस्म का है लेकिन मध्यांतर  के बाद वो उभरकर अपना अर्थ बुन देता है .बधाई उन्हें . प्रभ लीन ठीक है लेकिन उन्हें ज्यादा समय नहीं मिला. जीशान निराश नहीं करते और विपिन शर्मा के साथ शालनी वत्स, बलजिंदर कौर , विनीत रावत ठीक हैंलेकिन कुछ और पात्रों को उन्हें विस्तार देना चाहिए था . 

निर्देशन : हंसल मेहता ने इस बार एक ज्वलंत विषय को छुआ है और उसे संवेदनशीलता से संप्रेषित भी किया है . ये पहली फिल्म है जो इस्लाम से अलग हटकर सिर्फ इंसानियत की बात करती है . फिल्म मुस्लिम सम्प्रदाय के बारे में बात करती है लेकिन उसे हिन्दू वर्ग के नहीं बल्कि सिस्टम के खिलाफ खड़ा करती है . फिल्म के कुछ संवाद मार्मिकता भरे हैं और फिल्म का अंत भी लेकिन वो अपने विषय और उसके विस्तार के साथ हमें उद्वेलित भी करती है और सोचने को मजबूर भी ..फिल्म एक बार जरुर देखिएगा. 

फिल्म क्यों देखें : एक जरुरी फिल्म है.
फिल्म क्यों ना देखें : ऐसा मैं नहीं कहूँगा. 

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अब अश्लील गानों पर भी चलेगी सरकारी कैंची

हाल फ़िलहाल में आए कई गानों में इस्तेमाल हुए कथित आपत्तिजनक शब्दों के बाद मंत्रालय ने इस कमेटी का गठन करके सुझाव मांगे थे.  सूचना-प्रसारण मंत्रालय की बनाई कमेटी ने गानों के अलावा फ़िल्मों के पोस्टर और ट्रेलर पर भी नज़र रखने की सिफ़ारिश की. कमेटी ने अपने विश्लेषण में गानों पर निगरानी रखने की ज़रूरत पर ये कहते हुए बल दिया कि फ़िल्मों को तो सेंसर सर्टिफ़िकेट देकर एक ख़ास उम्र तक के लोगों को फ़िल्म देखने से रोका जा सकता है. लेकिन गाने यूट्यूब पर, टीवी पर और रेडियो में हर उम्र का दर्शक वर्ग और श्रोतावर्ग सुन और देख सकता है. इस वजह से गानों के सर्टिफ़िकेशन की भी ज़रूरत है.

 

इसके अलावा कमेटी ने ये सुझाव भी दिया कि गानों के अलावा फ़िल्म के पोस्टर, प्रोमो, ट्रेलर वगैरह पर भी सेंसर बोर्ड को पैनी नज़र रखनी चाहिए.  हाल ही में रिलीज़ हुई अक्षय कुमार की फ़िल्म 'बॉस' के एक गाने 'पार्टी ऑल नाइट' के कुछ शब्दों पर भी कोर्ट ने आपत्ति जताते हुए उन्हें हटाने के निर्देश दिए थे.  इसके अलावा भी कई फ़िल्मों के प्रोमो और ट्रेलर पर आपत्तियां जताई जा चुकी हैं.

 

इस बीच ख़बरें हैं कि रामगोपाल वर्मा की आगामी फ़िल्म 'सत्या-2' को कई गालियां और आपत्तिजनक शब्द होने के बावजूद सेंसर बोर्ड ने हरी झंडी दे दी. हालांकि फ़िल्म को 'ए' सर्टिफ़िकेट दिया गया है.  इससे पहले 'ग्रैंड मस्ती' और 'क्या सुपर कूल हैं' जैसी फ़िल्मों के निर्माताओं ने अपनी फ़िल्मों के लिए दो तरह के ट्रेलर लॉन्च किए थे.  यूट्यूब पर फ़िल्म के अनसेंसर्ड प्रोमो दिखाए गए थे जबकि टीवी पर सेंसरबोर्ड प्रमाणित ट्रेलर ही दिखाए गए. यूट्यूब पर फ़िल्मों के ट्रेलर या प्रोमो को कैसे नियंत्रित किया जाए इस पर अब भी सवाल बरक़रार है.

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ललित गर्ग को अणुव्रत लेखक पुरस्कार

अणुव्रत महासमिति द्वारा प्रतिवर्ष उत्कृष्ट नैतिक एवं आदर्श लेखन के लिए प्रदत्त किया जाने वाला ‘अणुव्रत लेखक पुरस्कार’ वर्ष-2012 के लिए सूर्यनगर एजूकेशनल सोसायटी द्वारा संचालित विद्या भारती स्कूल के स्कूल विकास एवं मैनेजमेंट कमिटी के चैयरमन श्री ललित गर्ग को देने की घोषणा की गयी है।  

लेखक, पत्राकार एवं समाजसेवी श्री गर्ग को अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण के सान्निध्य में जैन विश्व भारती, लाडनूं (राजस्थान) में आयोजित भव्य समारोह में दिनांक 26 अक्टूबर 2013 को यह पुरस्कार प्रदत्त किया जायेगा। इस आशय की जानकारी अणुव्रत महासमिति के अध्यक्ष श्री बाबूलाल गोलछा ने दी। पुरस्कार का चयन तीन सदस्यीय चयन समिति द्वारा दिये गये सुझावों पर किया गया है। पुरस्कार के रूप में 51,000/- (इक्यावन हजार रुपए) की नकद राशि, प्रशस्ति पत्र एवं शॉल प्रदत्त की जाती है।

श्री गर्ग के चयन की जानकारी देते हुए श्री गोलछा ने बताया कि अणुव्रत पाक्षिक के लगभग डेढ़ दशक तक संपादक रह चुके श्री गर्ग अणुव्रत लेखक मंच की स्थापना के समय से सक्रिय रूप से जुड़े रहे हैं। अणुव्रत आंदोलन की गतिविधियों में उनका विगत तीन दशकों से निरन्तर सहयोग प्राप्त हो रहा है। नई सोच एवं नए चिंतन के साथ उन्होंने अणुव्रत के विचार-दर्शन को एक नया परिवेश दिया है। समस्याओं को देखने और उनके समाधान प्रस्तुत करने में उन्होंने अणुव्रत के दर्शन को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया है। आचार्य श्री तुलसी, आचार्य श्री महाप्रज्ञ एवं वर्तमान में आचार्य श्री महाश्रमण के कार्यक्रमों को जन-जन तक पहुंचाने में उनका विशिष्ट योगदान है।

विदित हो इससे पूर्व श्री गर्ग को पहला आचार्य श्री महाप्रज्ञ प्रतिभा पुरस्कार प्रदत्त किया गया जिसके अंतर्गत एक लाख रुपये की नगद राशि व प्रशस्ति पत्र दिया गया। इसके अलावा भी श्री गर्ग को अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हुए हैं। राजस्थान के प्रख्यात पत्रकार एवं स्वतंत्रता सेनानी स्व॰ श्री रामस्वरूप गर्ग के कनिष्ठ पुत्र श्री गर्ग वर्तमान में ‘समृद्ध सुखी परिवार’ मासिक पत्रिका के संपादक हैं एवं अनेक रचनात्मक एवं सृजनात्मक गतिविधियों के साथ जुड़कर समाजसेवा के क्षेत्रा में उल्लेखनीय योगदान प्रदत्त कर रहे हैं।

 स्वर्गीय ‘शासनभक्त’ हुकुमचंद सेठिया, जलगाँव (महाराष्ट्र) की पुण्य स्मृति में प्रतिवर्ष दिये जाने वाले अणुव्रत लेखक पुरस्कार से अब तक स्व॰ श्री धरमचंद चोपड़ा, डॉ. निजामुद्दीन, श्री राजेन्द्र अवस्थी, श्री राजेन्द्र शंकर भट्ट, डॉ. मूलचंद सेठिया, डॉ. के. के. रत्तू, डॉ. छगनलाल शास्त्री, श्री विश्वनाथ सचदेव, डॉ. नरेन्द्र शर्मा कुसुम, डॉ. आनंद प्रकाश त्रिपाठी, श्रीमती सुषमा जैन एवं प्रो. उदयभानू हंस सम्मानित हो चुके हैं।

प्रेषकः
(कुलदीप रावत)
विद्या भारती स्कूल,
सी- ब्लाक,सूर्यनगर, गाजियाबाद मो. 9968126797

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