पुस्तक के बारे में
भोले – भाले अभावग्रस्त इंसानों की संवेदनशील कहानियाँ
रांगेय राघवः 39 साल में सौ साल जी गए
बलेसरा काहें बिकाला
हैदराबाद संग्राम काल में आर्य समाज द्वारा किया प्रखर आंदोलन
कोटा के विजय जोशी राज्य स्तरीय ” हिन्दी सेवा पुरस्कार” से सम्मानित
‘वैश्विक स्तर पर हिंदी भाषा का योगदान’
त्रिनिदाद यात्रा से डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा की रिपोर्ट
पोर्ट ऑफ स्पेन, त्रिनिदाद और टोबैगो। “त्रिनिदाद की जनता के लिए हिंदी हृदय की भाषा है। ऐसी हिंदी भाषा को तथा उसकी संस्कृति को सुनिश्चित रखना अनिवार्य है। भले ही यह कार्य कठिन है लेकिन असाध्य नहीं। त्रिनिदाद में बसा हुआ हर भारतीय मूल का परिवार अपनी संस्कृति और सभ्यता, विशेष रूप से अपनी भाषा हिंदी को सुरक्षित रखने के लिए संघर्ष कर रहा है।”
माउंट होप, त्रिनिदाद में स्थित महात्मा गांधी सांस्कृतिक सहयोग संस्था के सभागार में 6 से 8 सितंबर, 2024 तक भारतीय उच्चायोग, पोर्ट ऑफ स्पेन द्वारा आयोजित “त्रि-दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्षेत्रीय हिंदी सम्मेलन” का उद्घाटन करते हुए अटॉर्नी जनरल कार्यालय और कानूनी मामलों के मंत्रालय की मंत्री रेणुका संग्रामसिंह सुखलाल ने उक्त विचार व्यक्त किए। उन्होंने यह भी चिंता व्यक्त की कि कैरेबियन देशों में भारतवंशी पीढ़ी-दर-पीढ़ी अपने बच्चों को भारतीय संस्कृति, सभ्यता और हिंदी भाषा को अंतरित करने में असमर्थ हो रहे हैं।
भारतीय उच्चायोग, पोर्ट ऑफ स्पेन के उच्चायुक्त डॉ. प्रदीप राजपुरोहित ने सबका स्वागत करते हुए कहा कि सबको व्यावहारिक स्तर पर हिंदी को अपना चाहिए। पंडिताऊ भाषा के स्थान पर सामान्य बोलचाल की हिंदी का प्रयोग करना चाहिए। ऐसा करने से हिंदी भाषा में निहित सांस्कृतिक एवं लोक धरोहर को पीढ़ी-दर-पीढ़ी अंतरित किया जा सकता है। उन्होंने यह चिंता व्यक्त की कि त्रिनिदाद में बसे भारतीय मूल के लोग अपनी भाषा को अक्षुण्ण रख पाने में असमर्थ अनुभव करने लगे हैं। हिंदी भाषा, विशेष रूप से बोलचाल की भाषा, पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि दूतावास स्कूली स्तर पर हिंदी कक्षाएँ चलाने का प्रयास कर रहा है।
हिंदी सीखने के लिए प्रोत्साहन के रूप में छात्रवृत्ति देने के लिए भी तैयार है। उन्होंने त्रिनिदाद वासियों से अपील की कि हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी समझकर हिंदी के प्रचार-प्रसार में आगे बढ़े। उन्होंने यह प्रश्न किया कि क्या स्थानीय शिक्षण संस्थाएँ इस कार्य को अंजाम देने में उच्चायोग का सहयोग करने के लिए तैयार हैं?
पोर्ट ऑफ स्पेन स्थित राष्ट्रीय भारतीय संस्कृति परिषद (एनसीआईसी) के अध्यक्ष देवरूप तीमल ने कहा कि भाषा जीवन के साथ एकीकृत है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वैश्विक स्तर पर हिंदी को बढ़ावा देने के लिए नेटवर्किंग आवश्यक है। आगे उन्होंने कहा कि त्रिनिदाद और टोबैगो में स्थित भारतीय मूल के वासियों में भारतीय संस्कृति ‘रामचरित मानस’ के रूप में विद्यमान है। भले ही यहाँ के लोग अर्थ न जानते हों, लेकिन मानस के पद कंठस्थ करते हैं। यह इसलिए क्योंकि भारतीयता उनके डीएनए में विद्यमान है।
भारतीय विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव रवींद्र प्रसाद जायसवाल ने कहा कि भारतीयता को समझने की कुंजी है हिंदी भाषा। यदि हम सांस्कृतिक अस्मिता को अक्षुण्ण रखना चाहते हैं तो क्षेत्रीय रंगों को भी अपनाना होगा। उन्होंने भी यही चिंता व्यक्त की कि इस यात्रा में हिंदी भाषा कहीं पीछे छूट रही है।
राष्ट्रीय पुस्तकालय और सूचना प्रणाली प्राधिकरण (नालिस) के चेयरमैन नील पर्सनलाल ने हिंदी भाषा, भारतीय सभ्यता और संस्कृति के संबंध में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आज की पीढ़ी में हिंदी भाषा के प्रति रुचि जगाने के लिए पुरजोर कोशिश किए जाने की ज़रूरत है।
त्रिनिदाद में स्थित हिंदी निधि के अध्यक्ष चंका सीताराम ने हिंदी भाषा को त्रिनिदाद और टोबैगो के भाषाई समाज में पुनः स्थापित करने के लिए युवा पीढ़ी से अपील की।
कार्यक्रम के आरंभ में वरिष्ठ पत्रकार उमेश उपाध्याय को श्रद्धांजलि दी गई। इस अवसर पर महात्मा गांधी सांस्कृतिक सहयोग संस्था के छात्र और अध्यापकों ने गायन तथा भरतनाट्यम नृत्य प्रस्तुत किया। ‘हिंदी, शिक्षा और संस्कृति’, पोर्ट ऑफ स्पेन के द्वितीय सचिव शिवकुमार निगम ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन आशा महाराज और ऋषा मोहम्मद ने किया।
उद्घाटन के बाद विचार सत्रों में त्रिनिदाद और टोबैगो के साहित्यकारों, समाजशास्त्रियों और अर्थशास्त्रियों के साथ-साथ भारत, सूरीनाम, गयाना, अमेरिका से पधारे विद्वानों ने इस संबंध में अपने-अपने विचार व्यक्त किए। प्रथम विचार सत्र में देवरूप तीमल की अध्यक्षता में कमला रामलखन (त्रिनिदाद), सत्यानंद हेरोल्ड परमसुख (सूरीनाम), विकास रामकिसुन (सांसद, गयाना) ने कैरेबियाई क्षेत्र में बोली जाने वाली हिंदी के विभिन्न रूपों पर प्रकाश डाला। इस विचार सत्र से यह तथ्य सामने आया कि कैरेबियाई क्षेत्रों में हिंदी भाषा को सुरक्षित रखने के प्रयास किए जा रहे हैं। यह भी कि सूरीनाम में आज भी ‘सूरीनामी हिंदी’ बोली जाती है जो भोजपुरी और हिंदी का मिश्रित रूप है।
विद्वानों ने यह कहा कि हिंदी और भारतीय संस्कृति उनकी अस्मिता है। इन कैरेबियाई क्षेत्रों में ‘रामचरित मानस’ ने हिंदू समाज को जोड़कर रखा है। यदि यहाँ के समाज में आज भी हिंदी जीवित है तो उसका श्रेय ‘मानस’ को ही जाता है। यहाँ के लोग ‘रामायण’ और ‘वेद’ को भी अंग्रेजी में ही पढ़ते हैं। गायन और संगीत के कारण यहाँ के लोग अपनी मूल संस्कृति के निकट हैं।
डॉ. हितेन्द्र कुमार मिश्र (शिलांग) की अध्यक्षता में संपन्न द्वितीय विचार सत्र में हिंदी भाषा को सीखने के लिए उपलब्ध संसाधनों के बारे में चर्चा करते हुए हिमांचल प्रसाद (गयाना), डॉ. नवलकिशोर भाबड़ा (अजमेर), डॉ. प्रदीप के. शर्मा (सिक्किम) ने यह बताया कि गीत-संगीत, सिनेमा, लोकसंगीत, लोक नाटक आदि के माध्यम से भाषा सीखी और सिखाई जा सकती है। आज के समय में सोशल मीडिया के कारण तथा तकनीकी विकास के कारण इतने सारे मोबाइल एप्लीकेशन्स हैं कि भाषा सीखने में कोई कठिनाई नहीं होगी।
डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा (चेन्नै) की अध्यक्षता में संपन्न तृतीय विचार सत्र में डॉ. निवेदिता मिश्र (त्रिनिदाद), रफ़ी हुसैन (त्रिनिदाद), इंदिरा (त्रिनिदाद) और डॉ. मिलन रानी जमातिया (त्रिपुरा) ने हिंदी के विकास में विदेशी विद्वानों के योगदान पर प्रकाश डाला और यह सिद्ध किया कि यदि उचित वातावरण उपलब्ध हो तो भाषा सीखने में समस्या नहीं होगी। भाषा सीखने के लिए पहली शर्त है जिज्ञासा और ज़रूरत।
चतुर्थ विचार सत्र में सूरजदेव मंगरू (त्रिनिदाद और टोबैगो), डॉ. शिवानंद महाराज (यूडब्ल्यूआई), राणा मोहिप (त्रिनिदाद और टोबैगो), कृष रामखलावन (सूरीनाम) ने ‘बैठक गाना’, ‘चटनी संगीत’ और ‘शास्त्रीय संगीत’ के बारे में बताते हुए व्यावहारिक तौर पर दर्शाया कि इनके माध्यम से कैरेबियाई क्षेत्रों में हिंदी भाषा आज तक कैसे जीवित है।
हर विचार सत्र के बाद पैनल चर्चा हुई। रामप्रसाद परशुराम (त्रिनिदाद) की अध्यक्षता में संपन्न पैनल चर्चा में आशा मोर (त्रिनिदाद), नितिन जगबंधन (सूरीनाम), डॉ. नवलकिशोर भाबड़ा (अजमेर), सुनैना परीक्षा रागिनीदेवी (सूरीनाम) और स्वामी ब्रह्मस्वरूप नंदा (त्रिनिदाद और टोबैगो) ने यह प्रतिपादित किया कि रामायण, महाभारत जैसे महाकाव्य कैरेबियाई क्षेत्र के लोगों की आत्मा में बसते हैं। आज की पीढ़ी अपनी जड़ों की ओर लौटने के लिए पुरज़ोर कोशिश कर रही हैं। अपनी भाषा हिंदी को सीखने की कोशिश कर रही है। डॉ. विद्याधर शाह की अध्यक्षता में संपन्न चर्चा में डॉ. हितेंद्र मिश्र, ईशा दीक्षित (त्रिनिदाद), कादंबरी आदेश (फ्लोरिडा) ने भाषा के विकास में प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की भूमिका पर प्रकाश डाला। नील पर्सनलाल की अध्यक्षता में संपन्न विचार सत्र में डॉ. प्रदीप के शर्मा, डॉ. शशिधरन (केरल), डॉ. मिलन रानी जमातिया, विकास रामकिसुन ने हिंदी भाषा सीखने में फिल्मों की भूमिका पर प्रकाश डाला।
चर्चा-परिचर्चा के उपरांत उच्चायुक्त और सांसदों ने यह घोषणा की कि कैरेबियाई क्षेत्रों में हिंदी विकास के लिए अनिवार्य कदम उठाए जाएँगे। यह भी निर्णय लिया गया कि हिंदी सीखने के लिए जो छात्र आगे आएँगे उन्हें छात्रवृत्ति देकर प्रोत्साहित किया जाएगा। इतना ही नहीं, प्राथमिक स्तर पर हिंदी भाषा को अनिवार्य रूप से पाठ्यक्रम में शामिल करने का प्रस्ताव भी सरकार के समक्ष रखा जाएगा।
त्रि-दिवसीय सम्मेलन के दौरान चर्चा-परिचर्चाओं के अलावा, कैरेबियाई क्षेत्रों में प्रसिद्ध बैठक गाना, चटनी संगीत, लोक नृत्य, शास्त्रीय नृत्य आदि का प्रदर्शन किया गया जिससे संपूर्ण वातावरण जीवंत हो उठा।
प्रस्तुति- डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा
सह संपादक ‘स्रवंति’
एसोसिएट प्रोफेसर
उच्च शिक्षा और शोध संस्थान
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा
टी नगर
चेन्नई – 600017
जम्मू कश्मीर में चुनाव के मुद्दे क्या हैं
अब्दुल्ला-मुफ्ती परिवारों का दोहरा मापदंड किसी से छिपा नहीं है। यह लोग जब दिल्ली में होते है, तब ‘सेकुलरवाद’, एकता, शांति, भा
जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव 18 सितंबर से लेकर एक अक्टूबर के बीच तीन चरणों में संपन्न होंगे। चुनाव का मुद्दा क्या है? क्या कश्मीर वर्ष 2019 से पहले के उस कालखंड में लौटे, जब क्षेत्र में सभी आर्थिक गतिविधियां बंद थी, विकास कार्यों पर लगभग अघोषित प्रतिबंध था, सेना-पुलिसबलों पर लगातार पत्थरबाजी होती थी, गाए-बगाए अलगाववादियों द्वारा बंद बुला लिया जाता था और वातावरण ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ जैसे भारत विरोधी नारों से दूषित होता रहता था? या फिर इस केंद्र शासित प्रदेश में बीते पांच वर्षों की भांति वैसी विकास की धारा बहती रहे, जिसके कारण कश्मीर तुलमात्मक रूप से शांत है, देश के शेष हिस्सों की तरह संविधान-कानून का इकबाल है और बहुलतावादी संस्कृति के साथ समरसता से युक्त वातावरण है?
यह प्रश्न इसलिए भी प्रासंगिक है, क्योंकि इस चुनाव में जम्मू-कश्मीर के बड़े क्षत्रप दल नेशनल कॉन्फ्रेंस ने राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस के साथ गठबंधन किया है, जिसका घोषणापत्र मतदाताओं से वादा करता है कि सत्ता में लौटने पर उस जहरीली धारा 370-35ए को भारतीय संविधान में बहाल करेंगे, जिसके सक्रिय रहते (अगस्त 2019 से पहले) पूरा सूबा अंधकार में था, पर्यटक आने से कतराते थे, सिनेमाघरों पर ताला लगा हुआ था, मजहब केंद्रित आतंकवाद, पाकिस्तान समर्थित अलगाववाद का वर्चस्व था और शेष देश की भांति दलित-वंचितों के साथ आदिवासियों को मिलने वाले संवैधानिक अधिकारों (आरक्षण सहित) पर डाका था।
धारा 370-35ए के संवैधानिक परिमार्जन के बाद जम्मू-कश्मीर पिछले पांच वर्षों से गुलजार हो रहा है। तिरंगामयी हो चुके श्रीनगर स्थित लालचौक की रौनक देखते ही बनती है। पर्यटकों की संख्या लगातार बढ़ रही है। तीन दशक से अधिक के लंबे फासले के बाद नए-पुराने सिनेमाघर संचालित हो रहे हैं। देर रात तक लोग प्रसिद्ध शिकारा की सवारी का आनंद ले रहे हैं। स्कूल-कॉलेज और विश्वविद्यालय भी सुचारू रूप से चल रहे हैं। दुकानें भी लंबे समय तक खुली रहती हैं। स्थानीय लोगों का जीवनस्तर सुधर रहा है। जिहादी दंश झेलने के बाद वर्षों पहले घाटी छोड़कर गए कश्मीरी पंडित धीरे-धीरे लौटने लगे है।
बदली परिस्थिति में जी-20 सम्मेलन हो चुका है, तो फिल्म निर्माता-निर्देशक घाटी की ओर फिर से आकर्षित होने लगे है। जम्मू-कश्मीर की नई औद्योगिक नीति के अंतर्गत, देश-विदेश से लगभग सवा लाख करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव आ चुके हैं, जिससे प्रदेश में 4।69 लाख रोजगार पैदा होने का अनुमान है। यहां तक, गत वर्ष कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी श्रीनगर में तिरंगे के साथ अपनी महत्वकांशी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का समापन कर चुके है। अगस्त 2019 से पहले क्या स्थिति थी, यह पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार शिंदे के हालिया वक्तव्य से स्पष्ट है।
जम्मू-कश्मीर का एक वर्ग पाकिस्तानी मानसिकता से ग्रस्त है। चूंकि पाकिस्तान किसी देश का नाम न होकर स्वयं में एक विचारधारा है और ‘काफिर-कुफ्र’ अवधारणा से प्रेरणा पाता है, इसलिए घाटी के कुछ नेता इसी चिंतन का प्रतिनिधित्व करते हुए क्षेत्र को पुराने, मजहबी, अराजकवादी और मध्यकालीन दौर में लौटाना चाहते है। नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी भी घाटी में इसी विभाजनकारी मानस के प्रमुख झंडाबरदार है। जातिगत जनगणना की हिमायती कांग्रेस का गठबंधन उसी नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ है, जिसने अपने चुनावी घोषणापत्र में जम्मू-कश्मीर में सभी आरक्षणों की ‘समीक्षा’ करने की भी बात कही है। यह वादा क्षेत्र में वाल्मिकी-आदिवासी समाज के साथ मुस्लिम गुज्जर और बकरवालों के अधिकारों पर कुठाराघात करता है। यही नहीं, नेशनल कॉन्फ्रेंस फिर से अलगाववाद से प्रेरित ‘स्वायत्तता’ की बात कर रहा है। उनके घोषणापत्र में उन कैदियों को रिहा करने का वादा किया गया है, जो आतंकवादी और राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों के शामिल होने के कारण जेल में बंद है। साथ ही उसमें श्रीनगर के प्रसिद्ध शंकराचार्य पर्वत को ‘तख्त-ए-सुलेमान’ और हरि पर्वत किले को ‘कोह-ए-मरान’ के रूप में संदर्भित किया गया है।
जम्मू-कश्मीर में प्रमुख क्षत्रपों के अतिरिक्त सज्जाद लोन की ‘पीपुल्स कॉन्फ्रेंस’ और अल्ताफ बुखारी की ‘जेके अपनी पार्टी’ के साथ जेल में बंद अलगाववादी शेख अब्दुल राशिद (राशिद इंजीनियर) की ‘अवामी इत्तेहाद पार्टी’ भी चुनावी मैदान में है। जब से राशिद इंजीनियर ने इस वर्ष बारामूला की लोकसभा सीट से नेशनल कॉन्फ्रेंस के शीर्ष नेता और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को बुरी तरह परास्त किया है, तब से आशंका जताई जा रही हैं कि राशिद एक प्रभावशाली ताकत बनकर उभर सकते है, जो क्षेत्र के साथ शेष देश के लिए चिंता का विषय हो सकता है।
लोकसभा चुनाव में उमर की करारी हार ने घाटी में अधिकांश सीटें जीतकर वापसी की उम्मीद कर रही नेशनल कॉन्फ्रेंस की स्थिति को धुंधला किया है। इसी हताशा और अवसरवाद की खोज में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने कांग्रेस के साथ हाथ मिलाया है, जो गुलाम नबी आजाद द्वारा अगस्त 2022 में पार्टी छोड़ने के बाद लगभग कमजोर हो चुकी है। बात यदि पीडीपी की करें, तो उसकी शीर्ष नेत्री और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को भी अनंतनाग-राजौरी संसदीय सीट पर हार का मुंह देखना पड़ा था। उमर और महबूबा की हार से स्पष्ट है कि घाटी के लोग परिवारवादियों से मुक्ति चाहते है। राष्ट्रीय दल के रूप में भाजपा एक बड़ी पार्टी है, जिसका 43 विधानसभा सीटों वाले जम्मू क्षेत्र में मजबूत आधार है।
अब्दुल्ला-मुफ्ती परिवारों का दोहरा मापदंड किसी से छिपा नहीं है। यह लोग जब दिल्ली में होते है, तब ‘सेकुलरवाद’, एकता, शांति, भाईचारे की बात करते हुए एकाएक भावुक हो जाते है। किंतु घाटी लौटते ही उनके भाषणों/वक्तव्यों में भारतीय एकता-अखंडता के प्रति घृणा, तो बहुलतावाद-लोकंतत्र विरोधी इस्लामी कट्टरपंथियों के लिए सहानुभूति दिखती है। सच तो यह है कि घाटी में बसे दो प्रकार के वर्ग— भारत-हितैषी और भारत-विरोधी, इन राजनीतिक परिवारों की असलियत जान चुके है और इनसे छुटकारा पाना चाहते है।
यह कहना तो कठिन है कि घाटी की जनता किस ओर जाएगी। इसका खुलासा 8 अक्टूबर को ईवीएम आधारित मतगणना के बाद हो जाएगा। परंतु इतना स्पष्ट कहा जा सकता है कि यदि प्रदेश को इसी तरह विकास के पथ पर चलना है और अलगाववादी-सांप्रदायिक-अराजक तत्वों से छुटाकारा पाना है, तो उन्हें संकीर्ण और मध्यकालीन मजहबी मानसिकता से ऊपर से उठकर सोचना होगा।
( लेखक
(लेखक एक पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं। वे भारतीय जनता पार्टी से राज्यसभा के सदस्य व उपाध्यक्ष भी रहे हैं।)
साभार- https://www.nayaindia.com/ से
वीर सावरकर ने जेल में क्या क्या यातनाएँ सही
नाथद्वारा में साहित्य मंडल का हिंदी दिवस समारोह
हिंदी उपनिषद , साहित्यकारों का सम्मान, पुस्तकों का लोकार्पण के आयोजन हुए
चीन से आगे निकलता भारत
अर्थ के कई क्षेत्रों में आज भी पूरे विश्व में चीन का दबदबा कायम है जैसे चीन विनिर्माण के क्षेत्र में विश्व का केंद्र बना हुआ है। विशेष रूप से तेजी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं (इमर्जिंग देशों) के शेयर बाजार के आकार के मामले में भी चीन का दबदबा लम्बे समय से कायम रहा है। परंतु, अब भारत उक्त दोनों ही क्षेत्रों, (विनिर्माण एवं शेयर बाजार), में चीन को कड़ी टक्कर देता दिखाई दे रहा है तथा हाल ही में तेजी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं के शेयर बाजार सम्बंधी इंडेक्स में भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया है।
दरअसल पूरे विश्व में संस्थागत निवेशक विभिन्न देशों, विशेष रूप से तेजी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं, के शेयर बाजार में पूंजी निवेश करने के पूर्व वैश्विक स्तर पर इस संदर्भ में जारी किए जाने वाले कुछ महत्वपूर्ण इंडेक्स पर बहुत अधिक भरोसा करते हैं। अथवा, यह कहा जाय कि इन इंडेक्स के आधार पर अथवा इन इंडेक्स की बाजार में चाल पर ही वे इन देशों के शेयर बाजार में अपना निवेश करते हैं तो यह कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
पिछले 15 वर्षों से यह प्रचलन चल रहा है कि इमर्जिंग मार्केट इंडेक्स (IMI) में चीन की हिस्सेदारी सबसे अधिक रही है परंतु धीरे धीरे अब चीन की भागीदारी इस इंडेक्स में कम हो रही है एवं इस वर्ष अब भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया है। इस इंडेक्स में प्रतिशत में चीन की हिस्सेदारी लगातार कम हो रही है और भारत की हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है। इस इंडेक्स में भारत की हिस्सेदारी 6 प्रतिशत से बढ़ते हुए चीन से आगे निकल आई है और भारत की हिस्सेदारी अब 22.27 प्रतिशत से अधिक हो गई है एवं चीन की हिस्सेदारी कम होकर 21.58 रह गई है।
एक अन्य MSCI वैश्विक सूचकांक में भी भारत की हिस्सेदारी बढ़कर 2 प्रतिशत हो गई है। परंतु, MSCI इमर्जिंग मार्केट इननवेस्टिबल फड इंडेक्स में भारत की हिस्सेदारी 22 प्रतिशत से अधिक हो गई है। वैश्विक स्तर पर निवेश करने वाले बड़े फंड्ज का निवेश सम्बंधी आबंटन भी इसी हिस्सेदारी के आधार पर होने की सम्भावना है। इन्हीं कारणों के चलते अब आने वाले समय में भारत के शेयर बाजार में विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा अपना निवेश बढ़ाए जाने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है।
वैसे भी चीन की अर्थव्यवस्था में अब विकास दर कम हो रही है क्योंकि पिछले कुछ समय से चीन लगातार कुछ आर्थिक समस्याओं का सामना कर रहा है। चीन की विदेश नीति में भी बहुत समस्याएं उभर रही हैं विशेष रूप से चीन के अपने लगभग समस्त पड़ौसी देशों के साथ राजनैतिक सम्बंध ठीक नहीं हैं। चीन के शेयर बाजार में देशी निवेशक ही अधिक मात्रा में भाग ले रहे थे और वे भी अब अपना पैसा शेयर बाजार से निकाल रहे हैं। इन समस्याओं के पूर्व MSCI इमर्जिंग मार्केट इंडेक्स में चीन ओवर वेट था और भारत अंडर वेट था। परंतु, पिछले दो वर्षों के दौरान स्थिति में तेजी से परिवर्तन हुआ है।
साथ ही, भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी का कम्पन भी स्पष्टत: दिखाई दे रहा हैं और भारत में सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 8 प्रतिशत प्रतिवर्ष की वृद्धि हो रही है। भारत में रोजगार के नए अवसर निर्मित करने के अतिरिक्त प्रयास किए जा रहे हैं इससे भारत में विभिन्न उत्पादों की मांग में और अधिक वृद्धि होगी तथा इससे विभिन्न कम्पनियों की लाभप्रदता में भी अधिक वृद्धि होगी और अंततः इन कंपनियों के शेयरों में निवेश करने वाले विदेशी संस्थागत निवेशकों को भी भारत में निवेश करने में और अधिक लाभ दिखाई देगा।
भारतीय युवाओं को यदि रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध होने लगते हैं तो इससे भारत के सकल घरेलू उत्पाद में और अधिक तेज गति से वृद्धि सम्भव होगी। चीन में आज बेरोजगारी की दर जुलाई 2024 में बढ़कर 5.20 प्रतिशत तक पहुंच गई है, जो जून 2024 में 5 प्रतिशत थी। वर्ष 2002 से वर्ष 2024 तक चीन में बेरोजगारी की औसत दर 4.75 प्रतिशत रही है। हालांकि फरवरी 2020 में यह 6.20 प्रतिशत के उच्चत्तम स्तर पर पहुंच गई थी। अब पुनः धीरे धीरे चीन में बेरोजगारी की दर आगे बढ़ रही है। जबकि भारत में वर्ष 2023 में बेरोज़गारी की दर (15 वर्ष से अधिक आयु के नगरिको की) कम होकर 3.1 हो गई है जो हाल ही के समय में सबसे कम बेरोज़गारी की दर है। वर्ष 2022 में भारत में बेरोजगारी की दर 3.6 प्रतिशत थी एवं वर्ष 2021 में 4.2 प्रतिशत थी। इस प्रकार धीरे धीरे भारत में बेरोजगारी की दर में कमी आने लगी है।
कुल मिलाकर अर्थ के विभिन्न क्षेत्रों में चीन की तुलना में भारत की स्थिति में लगातार सुधार दृष्टिगोचर है जिससे MSCI इंडेक्स में भारत की स्थिति में भी लगातार सुधार दिखाई दे रहा है जो आगे आने वाले समय में भी जारी रहने की सम्भावना है। इस प्रकार, अब भारत, चीन को अर्थ के विभिन्न क्षेत्रों में धीरे धीरे पीछे छोड़ता जा रहा है।
प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
के-8, चेतकपुरी कालोनी,
झांसी रोड, लश्कर,
ग्वालियर – 474 009
मोबाइल क्रमांक – 9987949940
ई-मेल – prahlad.sabnani@gmail.com