Wednesday, April 9, 2025
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स्ट्रीट लाइट में पढ़े, 6 विवाह किए और देश के सबसे बड़े उद्योगपति बने रामकृष्ण डालमिया

रामकृष्ण डालमिया ( ७ अप्रैल १८९३ — २६ सितम्बर १९७८) भारत के उद्योगपति थे जिन्होंने अपने भाई जयदयाल डालमिया के साथ डालमिया समूह की स्थापना की थी। उन्होंने स्वामी करपात्री के साथ मिलकर गौ हत्या एवं हिंदू विवाह अधिनियम के मुद्दे पर जवाहरलाल नेहरू से कड़ी टक्कर ली थी। देश के सभी बड़े नेताओं से उनके मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध थे और वे उनकी खुले हाथ से आर्थिक सहायता किया करते थे।

व्यक्तिगत जीवन में डालमिया बेहद धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे. उन्होंने अच्छे दिनों में करोड़ों रुपये धार्मिक और सामाजिक कार्यों के लिए दान में दिये. इसके अतिरिक्त उन्होंने यह संकल्प भी लिया था कि जबतक इस देश में गोवध पर कानूनन प्रतिबंध नहीं लगेगा वे अन्न ग्रहण नहीं करेंगे. उन्होंने इस संकल्प को अंतिम सांस तक निभाया. गौवंश हत्या विरोध में 1978 में उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।

सेठ रामकृष्ण डालमिया  को नेहरू ने झूठे मुकदमों में फंसाकर जेल भेज दिया तथा कौड़ी-कौड़ी का मोहताज़ बना दिया । दरअसल डालमिया जी ने स्वामी करपात्री जी महाराज के साथ मिलकर गौहत्या एवम हिंदू कोड बिल पर प्रतिबंध लगाने के मुद्दे पर नेहरू से कड़ी टक्कर ले ली थी । लेकिन नेहरू ने हिन्दू भावनाओं का दमन करते हुए गौहत्या पर प्रतिबंध भी नही लगाई तथा हिन्दू कोड बिल भी पास कर दिया और प्रतिशोध स्वरूप हिंदूवादी सेठ डालमिया को जेल में भी डाल दिया तथा उनके उद्योग धंधों को बर्बाद कर दिया ।

डालमिया एक कट्टर सनातनी हिन्दू थे और उनके विख्यात हिन्दू संत स्वामी करपात्री जी महाराज से घनिष्ट संबंध थे.

करपात्री जी महाराज ने 1948 में एक राजनीतिक पार्टी राम राज्य परिषद स्थापित की थी. 1952 के चुनाव में यह पार्टी लोकसभा में मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरी और उसने 18 सीटों पर विजय प्राप्त की.

हिन्दू कोड बिल और गोवध पर प्रतिबंध लगाने के प्रश्न पर डालमिया से नेहरू की ठन गई. पंडित नेहरू हिन्दू कोड बिल पारित करवाना चाहते थे जबकि स्वामी करपात्री जी महाराज और डालमिया सेठ इसके खिलाफ थे.

नेहरू के इशारे पर डालमिया के खिलाफ कंपनियों में घोटाले के आरोपों को लोकसभा में जोरदार ढंग से उछाला गया. इन आरोपों के जांच के लिए एक विविन आयोग बना. बाद में यह मामला स्पेशल पुलिस इस्टैब्लिसमेंट को जांच के लिए सौंप दिया गया.

नेहरू ने अपनी पूरी सरकार को डालमिया के खिलाफ लगा दिया. उन्हें हर सरकारी विभाग में प्रधानमंत्री के इशारे पर परेशान और प्रताड़ित करना शुरू किया. उन्हें अनेक बेबुनियाद मामलों में फंसाया गया.

नेहरू की कोप दृष्टि ने एक लाख करोड़ के मालिक डालमिया को दिवालिया बनाकर रख दिया. उन्हें टाइम्स ऑफ़ इंडिया और अनेक उद्योगों को औने-पौने दामों पर बेचना पड़ा. अदालत में मुकदमा चला और डालमिया को तीन साल कैद की सज़ा सुनाई गई.

1933 में एक चीनी मिल से इनका उदय हुआ था। भाग्य ने डटकर डालमिया का साथ दिया और कुछ ही वर्षों के बाद वे देश के सबसे बड़े उद्योगपति बन गए। उन्होंने सभी तरह के ब्यापार मे हाथ डाला और उसे सफलता के शिखर पर ले गये। उनका औद्योगिक साम्राज्य अविभाजित भारत के सभी भागों में फैला हुआ था जिसमें समाचारपत्र, बैंक, बीमा कम्पनियां, विमानसेवाएं, सीमेंट, वस्त्र उद्योग, खाद्य पदार्थ आदि सैकड़ों उद्योग शामिल थे।

डालमिया नगर में 3,800 एकड़ में फैले परिसर में सीमेंट, चीनी, कागज, रसायन, वनस्पति, एस्बेस्टस शीट बनाने वाली इकाइयाँ थीं। इस समूह का अपना बिजली घर और रेलवे भी था। इसके अलावा इस समूह के पास त्रिची, चरखी दादरी (दिल्ली के पास), डंडोट (लाहौर) और कराची में सीमेंट के कारखाने भी थे। इसके अलावा पटियाला में एक बिस्किट कारखाना और बिहार के झरिया और बंगाल के रानीगंज क्षेत्रों में कोयला खदानें थीं।

राम कृष्ण डालमिया ने 18 साल की उम्र में जब कारोबार की दुनिया में कदम रखा, तो पिता विरासत में उनके लिए कुछ भी छोड़कर नहीं गए थे. इसके बाद अगले कुछ सालों में उन्होंने बड़ा उद्योग खड़ा कर लिया. जबकि उनकी शैक्षणिक योग्यता के बारे में बात करें तो प्राइमरी के बाद उनके स्कूल या कॉलेज जाने के कोई सबूत नहीं मिलते. लेकिन इन्होंने डालमिया ग्रुप की स्‍थापना की।

रामकृष्ण डालमिया का जन्म राजस्थान के चिड़ावा नामक एक कस्बे में एक गरीब अग्रवाल घर में हुआ था। यहीं उन्होंने मामूली शिक्षा प्राप्त की और मूलभूत अंकगणित, अंग्रेजी तथा महाजनी सीखी। जब वे केवल १८ वर्ष के थे तभी उनके पिता का देहान्त हो गया। इसके बाद पूरे परिवार को पालने का भार उनके कन्धों पर आ गया। उनके घर में उनकी पत्नी, उनकी माँ, दादी और छोटा भाई थे।

इस स्थिति में वे अपने मामा मोतीलाल झुनझुनवाला के पास कोलकाता चले गए थे। उनके मामा ने वहां पर बुलियन मार्केट में एक विक्रेता (सेल्समैन) का कार्य दिया। वे लन्दन के बुलियन एजेन्टों द्वारा भेजे गये टेलीग्राम को अपनी मामूली शिक्षा के वावजूद पढ़ लेते थे। इन कूट सन्देशों को पढ़ने का प्रभाव यह हुआ कि रामकृष्ण डालमिया में बुलियन व्यवसाय की बारीकियों से सम्बन्धित अन्तर्दृष्टि पैदा हो गयी। इससे उत्साहित होकर वे चाँदी के सट्टा बाजार में कूद पड़े। दुर्भाग्य से उन्हें इसमें वे सफल नहीं हुए। इसी के चलते उनके मामा से भी सम्बन्ध टूट गये।

डालमिया ने दलाली का काम शुरू कर दिया। उनके पास व्यापार के लिए अंतर्निहित मारवाड़ी कौशल और कुछ संपर्कों के अलावा कुछ नहीं था। हताश और यह जानने के लिए उत्सुक कि भाग्य ने उनके लिए क्या रखा है, वह एक दिन पंडित मोतीलाल बियाला (फतेहपुर, राजस्थान) के पास गए, जो एक संत स्वभाव के व्यक्ति थे, जो एक महान ज्योतिषी भी थे। उनकी कुंडली का अध्ययन करने के बाद, पंडित ने भविष्यवाणी की कि डेढ़ महीने के भीतर वह एक लाख रुपये कमा लेंगे। सच में, किस्मत ने वैसा ही किया जैसा कि भविष्यवाणी की गई थी और भाग्य के अजीब मोड़ से उन्होंने एक सर्राफा सौदे से 1,56,000 रुपये का लाभ कमाया, जो रद्द होने वाला था। ऐसा लग रहा था जैसे कोई दिव्य हाथ खेल रहा था, जिसने उन्हें यह उदारता प्रदान की। इसके बाद वे अन्य वस्तुओं के सट्टे में भी हाथ आजमाने लगे। अपनी ईमानदारी और लगन से इन्होंने बहुत से कारोबारियों का हृदय जीत लिया। इसी समय उन्होंने कलकत्ता शेयर और स्टोक एक्सचेंज के बालदेव दासजी नाथानी के साथ साझेदारी की। नाथानी के आदर्शों ने डालमिया के व्यापार तथा जीवन के प्रति दृष्टिकोण को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।

सट्टा बाजार में सफलता से उत्साहित होकर उन्होंने अपने व्यवसाय का विविधीकरण करने की सोची। इसी तारतम्य में वे एक दिन बिहार के दिनापुर गये और वहाँ ट्रेडिंग का काम शुरू किया। इसी समय उनकी दृष्टि उस क्षेत्र में एक चीनी मिल चालू करने की तरफ गयी जिसमें उनको अपार सम्भावना दिखी। इस विचार को कार्यरूप में बदलने के लिये उन्होंने आरा के प्रसिद्ध जमींदार निर्मल कुमार जैन के साथ हाथ मिला लिया। सन १९३२ में यह मिल बनकर तैयार हो गयी। यह मिल दिनापुर के निकट बिहटा में स्थापित हुई और इसका नाम ‘साउथ बिहार सुगर मिल्स लिमिटेड’ रखा गया। यह उस समय भारत की सबसे बड़ी चीनी मिल थी।

इसी बीच रामकृष्ण अपनी पुत्री रमा के लिये एक योग्य वर की तलाश में थे। अन्त में सन १९३२ में साहू शान्ति प्रसाद जैन से रमा का विवाह तय हुआ जो तत्कालीन संयुक्त प्रान्त (यूपी) के नजीबाबाद के एक प्रसिद्ध जमींदार और वित्तपोषक थे। शान्ति प्रसाद वित्त, अर्थशास्त्र और वाणिज्य के मामलों में पारंगत थे। विवाह के बाद शान्ति प्रसाद ने ही एक साझेदार के रूप में रामकृष्ण डालमिया के बंगाल, बिहार और उड़ीसाके उद्योंगों का प्रबन्धन किया। इनके मध्यप्रान्त, बाम्बे प्रेसिडेन्सी और दक्षीणी भारत में फैले उद्योगों का प्रबन्धन श्रियान्स प्रसाद जैन ने किया जो शान्ति प्रसाद के बहनोई थे।

यह भी जान लें कि साहू शांति प्रसाद जैन, टाइम्स ऑफ़ इंडिया समूह के मालिक साहू जैन परिवार के सदस्य थे। वे रामकृष्ण डालमिया के दामाद थे. उन्होंने डालमिया-जैन समूह को भारत के सबसे बड़े व्यापारिक घरानों में से एक बनाने में मदद की. वे बेनेट कोलमैन कंपनी जिसके अंतर्गत टाईम्स ऑफ इंडिया समूह आता है उसके असली मालिक थे।

रामकृष्ण डालमिया ने अपने विकसित हो रहे व्यवसाय में अपने छोटे भाई जयदयाल डालमिया को भी लगा लिया। जयदयाल ने संसार भर से अद्यतन प्रौद्योगिकी और मशीनरी अपनी कम्पनियों में लगाया।

कुछ ही समय बाद रोहतास जिले के डेहरी-ऑन-सोन में एक दूसरी चीनी मिल आरम्भ की गयी। इसके बाद और कई चीनी मिलें आरम्भ की गयीं, जैसे सारण की ‘एस के जी सुगर लिमिटेड’, रामपुर की ‘राजा सुगर कम्पनी लिमिटेड’ (१९३२ में), रामपुर में ही ‘बुलन्द सुगर कम्पनी लिमिटेड’ , चम्पारन की एस के जी सुगर लिमिटेड आदि।

वे अत्यधिक आध्यात्मिक और दार्शनिक व  साहित्य सृजन से जुड़े रहना चाहते थे। उन्होंने सड़क के साइनबोर्डों को पढ़ने के बाद बंगाली सीखी और कलकत्ता की स्ट्रीट लाइटों के नीचे  अंग्रेजी सीखी, उन्होंने ए गाइड टू ब्लिस, फियरलेसनेस एंड डिवाइन लॉ जैसी कई किताबें लिखीं। उन्होंने सुशिक्षित महिलाओं से 6 विवाह किए।  उनमें से एक सरस्वती थी, जो उनकी छह पत्नियों में से चौथी थी, जिसके साथ उन्होंने अपना अधिकांश जीवन बिताया। उनकी अन्य पत्नियाँ, नर्बदा देवी, दुर्गा देवी, प्रीतम, आशा और दिनेश नंदिनी थीं, जिनमें से नर्बदा देवी और दुर्गा देवी गाँव की महिलाएँ थीं। नर्बदा देवी की मृत्यु तब हुई जब वे मात्र 16 वर्ष के थे।

उनके उद्योग के विस्तार का अगला चरण १९३० के दशक के मध्य में हुआ जब उन्होंने देश के विभिन्न भागों में सीमेन्ट के कारखाने स्थापित किये। भारत के विकास में यह उनकी सबसे बड़ा योगदान है। उनका उद्देश एसीसी लिमिटेड के एकाधिकार को समाप्त करना था जिसका उस समय सीमेन्ट के निर्माण में एकछत्र राज्य था। इनका सबसे बड़ा कारखाना डालमियानगर में था। दूसरा कारखाना कराची के शान्तिनगर में था। डाल्मिया सीमेन्ट के पास कुछ छोटे सीमेन्ट कारखाने भी थे, जिसमें से एक ड्न्डोट (अब पाकिस्तान में) में था और दूसरा मद्रास प्रेसिडेन्सी में डालमियापुरम नामक स्थान पर था। एक और कारखाना डालमिया दादरी (अब हरियाणा में) में था।

1936 में भारत इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के अधिग्रहण से शुरू करते हुए, डालमिया ने 1937 में नेशनल सेफ डिपॉजिट एंड कोल्ड स्टोरेज लिमिटेड (कलकत्ता, लखनऊ और कानपुर में विशाल लोहे की तिजोरियों और भंडारण सुविधाओं के साथ मजबूत कमरों की एक श्रृंखला) और बाद में 1943 में भारत फायर एंड जनरल इंश्योरेंस लिमिटेड की स्थापना की, जो एक अग्रणी सामान्य बीमा कंपनी थी। उसी वर्ष उन्होंने भारत बैंक लिमिटेड की स्थापना की, जो स्थानीय बाजारों और उद्योगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए स्वतंत्रता मिलने तक 292 शाखा कार्यालयों तक पहुंच गया।

1956 में, विवियन बोस जांच आयोग (नेहरू सरकार द्वारा नियुक्त) के निष्कर्षों के आधार पर, रामकृष्ण डालमिया पर धन के दुरुपयोग और शेयर बाजार में हेरफेर का आरोप लगाया गया और उन्हें जेल भेज दिया गया। नतीजतन, उनकी कुछ कंपनियां जो विवादों में उलझी हुई थीं, उन्हें नुकसान हुआ। इससे भी बदतर, उन्होंने अपने स्टार प्रदर्शन करने वाले बेनेट कोलमैन एंड कंपनी लिमिटेड और सवाई माधोपुर में सीमेंट फैक्ट्री खो दी – उन्हें उन्हें शांति प्रसाद जैन को बेचना पड़ा – जिसने एक उद्योगपति के रूप में उनके भविष्य को एक गंभीर झटका दिया।

कहा जाता था कि वो जिस कारोबार में हाथ डालते थे, वहां सफलता उनके कदम चूमती थी. डालमिया के पास अकूत संपत्ति थी और ताकत भी थी. महात्मा गांधी से लेकर मोहम्मद अली जिन्ना तक से उनके अच्छे संबंध थे।

रोज़ाना 350 KM उड़ान भरने वाली ‘सुपर मॉम’ की कहानी हुई वायरल

रेचल कौन मलेशिया में एक एयर एशिया कर्मचारी हैं, जो अपने बच्चों के साथ समय बिताने के लिए रोज फ्लाइट से 600 किलोमीटर दूर ऑफिस जाती हैं। उनका यह कदम समय और पैसे की बचत के लिए है। वह सुबह 4 बजे उठकर फ्लाइट से ऑफिस पहुंचती हैं।. मलेशिया की एक भारतीय मूल की महिला, राशेल कौर (Racheal Kaur) की, जो इन दिनों इंटरनेट पर खूब सुर्खियां बटोर रही हैं. उनकी अनोखी दिनचर्या ने उन्हें ‘सुपर कम्यूटर’ (Super Commuter) का खिताब दिलाया है. राशेल (जो एयरएशिया की फाइनेंस ऑपरेशंस डिपार्टमेंट में असिस्टेंट मैनेजर हैं) रोज़ाना कई किलोमीटर की हवाई यात्रा कर ऑफिस जाती हैं और फिर घर लौटती हैं. दिलचस्प बात यह है कि यह व्यवस्था उनके लिए आर्थिक रूप से भी फायदेमंद साबित हो रही है.

राशेल कौर दो बच्चों की मां हैं. बड़ा बेटा 12 साल का है और बेटी 11 साल की. पहले वह अपने ऑफिस के पास कुआलालंपुर में किराए पर रहती थीं और हफ्ते में केवल एक बार घर लौट पाती थीं, लेकिन 2024 में उन्होंने यह तरीका बदल दिया. अब वह हर दिन उड़ान भरकर ऑफिस जाती हैं और रात में अपने परिवार के साथ समय बिताती हैं. राशेल का कहना है, “मेरे बच्चों के बढ़ते हुए इस समय में मां की उपस्थिति बहुत ज़रूरी होती है. अब मैं रोज़ उनके साथ रह सकती हूं और यह मेरे लिए सबसे बड़ी खुशी है.”

सुबह 4:00 बजे राशेल दिन की शुरुआत करती हैं. 5:00 बजे एयरपोर्ट के लिए रवाना होती हैं. 5:55 बजे फ्लाइट पकड़ती हैं. 7:45 बजे कुआलालंपुर पहुंचकर ऑफिस जाती हैं. पूरा दिन ऑफिस में काम करने के बाद, शाम 8:00 बजे फिर फ्लाइट से घर लौटती हैं और अपने बच्चों के साथ समय बिताती हैं.

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि राशेल के इस अनोखे कम्यूट से उन्हें किराए से भी कम खर्च करना पड़ रहा है. कुआलालंपुर में रहने के दौरान उनके मासिक खर्च 42,000 रुपये ($474) था, जबकि अब 28,000 ($316) में ही उनकी जरूरतें पूरी हो जाती हैं.

रेचल ने जानकारी दी कि मैं पहले परिवार से दूर होकर कुआलालामपुर में ही रह रही थी, लेकिन केवल वीकेंड पर ही बच्चों से मिलना हो पाता था। वहां रहना भी महंगा पड़ रहा था। एक महीने का किराया लगभग 474 यूएस डॉलर था।

रेचल ने बताया कि मैं अब फ्लाइट से आती-जाती हूं, तो केवल 316 यूएस डॉलर ही खर्च हो रहे हैं। एयरपोर्ट से ऑफिस का रास्ता 5 से 7 मिनट की दूरी पर ही है, तो वह भी आसानी कवर हो जाता है। ऐसे में सब अच्छा चल रहा है।

रिचेल एयर एशिया एयरलाइंस की कर्मचारी हैं, तो उनको अच्छा-खासा डिस्काउंट भी मिल जाता है। ऐसे में वह यह काफी आसानी से मैनेज भी कर पाती हैं।राशेल के लिए यह हवाई यात्रा सिर्फ ऑफिस जाने का साधन नहीं, बल्कि मी टाइम भी है. सफर के दौरान वह खुद से बातें करती हैं, संगीत सुनती हैं और खिड़की से खूबसूरत नज़ारे देखती हैं. यह समय उनके लिए शांति और ताजगी का स्रोत बन गया है.  जब राशेल से पूछा गया कि वह घर से काम क्यों नहीं करतीं, तो उन्होंने बताया कि ऑफिस में काम करना उनके लिए ज्यादा प्रभावी है. उन्होंने कहा, “सहकर्मियों के बीच रहकर काम करना आसान होता है. जब आप आमने-सामने संवाद कर सकते हैं, तो काम जल्दी और बेहतर तरीके से होता है.”

सोशल मीडिया पर राशेल की कहानी वायरल होने के बाद लोगों की मिली-जुली प्रतिक्रियाएं आ रही हैं. कुछ लोग उनकी प्रतिबद्धता की सराहना कर रहे हैं, तो कुछ इस पर हैरान हैं. उन्होंने कहा, “जब मैं अपने बच्चों को देखती हूं, सारी थकान गायब हो जाती है. यह सच में अद्भुत एहसास है.” राशेल कौर की यह कहानी दिखाती है कि सही रणनीति और इच्छाशक्ति से कोई भी अपने जीवन और करियर के बीच बेहतरीन संतुलन बना सकता है.

अदानी फाउंडेशन पूरे भारत में शिक्षा मंदिर खोलेगा, शुरुआत में 2000 करोड़ से होगी

अदानी समूह की सीएसआर यूनिट अदानी फाउंडेशन ने देश भर में शिक्षा के मंदिर स्थापित करने के लिए प्राइवेट K-12 एजुकेशन में दुनियाभर में अग्रणी GEMS एजुकेशन के साथ सहयोग किया है। अदानी परिवार की तरफ से 2,000 करोड़ रुपये के शुरुआती दान के साथ, साझेदारी समाज के सभी वर्गों के लोगों के लिए विश्व स्तरीय शिक्षा और सीखने के बुनियादी ढांचे को सस्ती बनाने को प्राथमिकता देगी।

चेयरमैन गौतम अदानी के सामाजिक दर्शन सेवा साधना है, सेवा प्रार्थना है और सेवा ही परमात्मा है के मुताबिक, साझेदारी इनोवेशन और क्षमता विकास द्वारा समर्थित शिक्षण दक्षताओं को विकसित करने पर केंद्रित सर्वश्रेष्ठ श्रेणी के अनुसंधान संस्थानों को भी जन्म देगी। पहला ‘अडानी GEMS स्कूल ऑफ एक्सीलेंस’ शैक्षणिक वर्ष 2025-26 में लखनऊ में आएगा। अगले तीन वर्षों में, K-12 सेगमेंट में कम से कम 20 ऐसे स्कूल भारत के प्राथमिक महानगरीय शहरों में और बाद में टियर II से IV शहरों में भी शुरू किए जाएंगे। इन स्कूलों में, वंचित और योग्य बच्चों के लिए सीबीएसई पाठ्यक्रम में 30% सीटें निःशुल्क होंगी।

अदानी समूह की अखिल भारतीय उपस्थिति और व्यापक अवसंरचना क्षमताओं और जीईएमएस की शैक्षिक विशेषज्ञता का लाभ उठाते हुए, साझेदारी की योजना पूरे भारत में छात्रों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए एक स्केलेबल, किफायती और टिकाऊ मॉडल विकसित करने की है। अडानी समूह के अध्यक्ष गौतम अडानी ने कहा कि यह पहल विश्व स्तरीय शिक्षा को किफायती और व्यापक रूप से सुलभ बनाने की हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाती है। जीईएमएस एजुकेशन के साथ हमारी साझेदारी के माध्यम से वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं और अभिनव डिजिटल शिक्षा को अपनाकर, हमारा लक्ष्य परिवर्तन करने वालों की अगली पीढ़ी को भारत में सामाजिक रूप से जिम्मेदार नेता बनने के लिए तैयार करना है।

जीईएमएस एजुकेशन के संस्थापक और अध्यक्ष सनी वर्की ने कहा कि हमारा दृष्टिकोण हमेशा से हर शिक्षार्थी को उनकी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुलभ कराना रहा है। अदानी फाउंडेशन के साथ सहयोग हमें अपनी पहुंच और प्रभाव का विस्तार करने, भारत के विभिन्न क्षेत्रों में शिक्षार्थियों और शिक्षकों तक अपनी वैश्विक शैक्षिक विशेषज्ञता लाने के लिए मजबूत करेगा। किसी राष्ट्र को बदलने के लिए उसके युवाओं के निर्माण पर मेहनती और प्रतिबद्ध ध्यान देने की आवश्यकता है। यह सहयोग अत्यधिक कुशल और मूल्य-आधारित प्रतिभा पूल बनाने के उद्देश्य को पूरा करने में मदद करेगा। अदानी-जीईएमएस स्कूलों को वैश्विक पाठ्यक्रम और सर्वश्रेष्ठ भारतीय अध्ययन बोर्डों से लाभ मिलेगा।

अदाणी फाउंडेशन के बारे में
1996 से, अदानी समूह की सामाजिक कल्याण और विकास शाखा, अदानी फाउंडेशन, पूरे भारत में स्थायी परिणामों के लिए रणनीतिक सामाजिक निवेश करने के लिए चुस्त और गहराई से प्रतिबद्ध रही है। यह शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण, स्थायी आजीविका, जलवायु कार्रवाई और सामुदायिक विकास के मुख्य क्षेत्रों में बच्चों, महिलाओं, युवाओं और हाशिए के समुदायों के जीवन को सशक्त और समृद्ध बना रहा है। फाउंडेशन की रणनीतियों को राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और वैश्विक सतत विकास लक्ष्यों में एकीकृत किया गया है। अदानी फाउंडेशन वर्तमान में 19 राज्यों के 6,769 गांवों में काम कर रहा है, जो 9.1 मिलियन लोगों के जीवन को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहा है।

GEMS Education के बारे में
60 साल पहले स्थापित, GEMS Education निजी K-12 शिक्षा में एक विश्वसनीय वैश्विक नेता के रूप में उभरा है, जो अपने छात्र-केंद्रित दृष्टिकोण और शैक्षिक उत्कृष्टता के प्रति प्रतिबद्धता के लिए प्रसिद्ध है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को सभी के लिए सुलभ बनाने के मिशन के साथ, GEMS Education छात्रों को आजीवन शिक्षार्थी, महत्वपूर्ण विचारक और वैश्विक नागरिक बनने के लिए सशक्त बनाता है। आठ देशों में K-12 निजी स्कूलों के नेटवर्क के साथ, GEMS Education 176 से अधिक राष्ट्रीयताओं के 1,70,000 से अधिक छात्रों को उच्च-गुणवत्ता वाली समग्र शिक्षा प्रदान करता है। पिछले पाँच वर्षों में, GEMS छात्रों को 53 देशों में 1050 से अधिक विश्वविद्यालयों में स्वीकार किया गया है, जिसमें USA के सभी आठ आइवी लीग विश्वविद्यालय शामिल हैं।

श्री गुरुजी – शक्तिशाली भारत के संकल्प को सिध्दि देने वाले शिल्पकार

जन्मजयंती 19 फरवरी पर विशेष

श्री गुरुजी, माधव सदाशिव राव गोलवलकर, शक्तिशाली भारत की अवधारणा के अद्भुत, उद्भट व अनुपम संवाहक थे। वे भारत की सौम्यता, अनेकता में एकता, समरसता के मर्मज्ञ थे। श्री गुरुजी के संदर्भ में “थे” शब्द कहना सर्वथा अनुचित होगा, वे आज भी हमारे मध्य; पराक्रमी भारत, ओजस्वी  भारत, अजेय भारत, निर्भय भारत, संपन्न-समृद्ध-स्वस्थ भारत व राष्ट्रवाद भाव के झर-झर बहते निर्झर झरने बने हुए हैं। वे शक्तिशाली भारत के अग्रदूत, संवाहक, प्रणेता के रूप में आज भी हमारे मध्य हैं, एक वैचारिक मूर्ति के रूप में।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरुजी के संदर्भ में, शक्तिशाली भारत की अवधारणा के संवाहक, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी पुस्तक “श्रीगुरूजी एक स्वयंसेवक” में लिखते हैं – “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना सन 1925 में डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने की थी, लेकिन इसे वैचारिक आधार द्वितीय सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर ‘श्रीगुरुजी’ ने प्रदान किया था।
द्वितीय विश्वयुद्ध, भारत छोड़ो आंदोलन, आजाद हिंद फौज और नेताजी का देश की आजादी में योगदान, भारत विभाजन, देश की आजादी, कश्मीर विलय, गांधी हत्या, देश का पहला आम चुनाव, चीन से भारत की हार, पाकिस्तान के साथ 1965 व 1971 की लड़ाई; भारत का इतिहास बदलने और बनाने वाली इन घटनाओं के महत्त्वपूर्ण काल में न केवल श्रीगुरुजी संघ के प्रमुख थे, बल्कि अपनी सक्रियता और विचारधारा से उन्होंने इन सबको प्रभावित भी किया था।

” शक्तिशाली भारत की श्री गुरुजी की अवधारणा को अटलबिहारी वाजपेयी व नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी हुई कोई आधा दर्जन केंद्रीय सरकारों ने मात्र ही स्वीकार नहीं किया; अपितु, इस अवधारणा को उन्होंने अपना गीता-रामायण माना हुआ है।   शक्तिशाली राष्ट्र की गुरुजी की अवधारणा को स्वतंत्रता संघर्ष के मध्य ही कांग्रेस ने, व स्वतंत्रता के पश्चात बनी हुई नेहरूजी व शास्त्रीजी की सरकारों ने भी स्वीकार किया है। यद्दपि नेहरू ने तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगाने व श्री गुरुजी को जेल में बंदी बनाने जैसा पाप भी किया था किंतु इसके बाद उन्होंने गोलवलकर गुरुजी का अभिनंदन करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को वर्ष 1963 की गणतंत्र दिवस की परेड में भाग लेने हेतु आमंत्रित भी किया था।

वस्तुतः श्री गुरुजी के नेतृत्व काल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बढ़ती लोकप्रियता, स्वीकार्यता, मान्यता को देखकर नेहरूजी के हृदय में कुटिलता व डाह के भाव आने लगे थे। नेहरू जिस प्रकार की छुद्र, अंग्रेज-मुस्लिम परस्त राजनीति किया करते थे; श्रीगुरुजी उसके विरुद्ध थे। नेहरू जी ने संघ व श्रीगुरुजी को अपनी सत्ता के प्रति आसन्न असुरक्षा के भाव से ग्रसित होकर ही गांधीजी की हत्या के बाद श्रीगुरुजी को गिरफ़्तार कर संघ को प्रतिबंधित किया था। गांधी जी की हत्या व हत्या के आरोप में संघ पर प्रतिबंध लगाना, आज भी एक उनसुलझा रहस्य ही है। इस रहस्य का एक सूत्र गांधीजी की हत्या के ठीक एक दिन पूर्व के नेहरू के एक भाषण में भी है, जिसमें नेहरू ने संघ को कुचलने की बात कही थी। नेहरू जी का संघ को कुचलने वाला भाषण देना, चौबीस घंटे के भीतर गांधी जी की हत्या होना और संघ पर प्रतिबंध लगाकर श्रीगुरूजी को गिरफ़्तार कर लेना; एक अनसुलझी गुत्थी ही है। गांधी जी की हत्या व इस संदर्भ में संघ पर प्रतिबंध, यह पहेली, क़ानूनी दृष्टि से असुलझी लग सकती है किंतु भीतरखाने के सच जानने वाले तत्कालीन राजनीतिज्ञ और सामाजिक कार्यकर्ता इस संदर्भ में दबी जबान बहुत कुछ कहा-सुना करते थे।

विकसित भारत की नेहरू की परिकल्पना पर श्रीगुरूजी का “शक्तिशाली भारत” की योजना; कल्पक, अत्यंत भारी, परिणामकारी व युगांतरकारी है। श्री गुरुजी की यह योजना, नेहरू की अंग्रेज व मुस्लिम परस्त नीतियों पर बहुत भारी पड़ती हुई दिखने लगी थी। सार्वजनिक चौक-चौराहों, सड़क-संसद, मठ-मंदिर, व्यावसायिक परिसरों आदि सर्वत्र स्थानों पर श्री गुरुजी की “शक्तिशाली भारत” की योजना की चर्चा में भारतीय न केवल रुचि लेने लगे थे, अपितु, श्रीगुरूजी के प्रति भारतीयों में श्रद्धा का वातावरण बनता जा रहा था। यह सब तब था जबकि, श्रीगुरूजी का प्रत्यक्ष राजनीति से कोई सीधा संबंध नहीं था। नेहरू जी को भय था कि, देश के आगामी प्रथम लोकसभा चुनाव में उनकी सर्वोच्चता को केवल तीन  लोग चुनौती दे सकते थे; वे तीन व्यक्ति थे – पहले श्री गुरुजी, गांधीजी व बाबासाहेब अंबेडकर जी। इन तीनों के प्रति नेहरूजी ने तरह-तरह की ज्ञात-अज्ञात दुरभिसंधियाँ की थीं।

श्रीगुरूजी के कृतित्व को नेहरू जी व भारत की समूची जनता ने, भारत-कश्मीर विलय में उनकी भूमिका से देख लिया था। प्रसिद्ध लेखक, संदीप बोमजाई, -“डिसइक्यिलीब्रियम : वेन गोलवलकर रेसक्यूड हरि सिंह” में लिखते हैं, “सरदार पटेल की पहल पर श्रीगुरूजी ने 18 अक्तूबर, 1947 को महाराजा हरि सिंह से भेंट की और विलय को संभव बनाया।” महाराजा हरिसिंह ने गोलवलकर से कहा, “मेरा राज्य पूरी तरह से पाकिस्तान पर निर्भर है। कश्मीर से बाहर जाने वाले सभी रास्ते रावलपिंडी और सियालकोट से गुज़रते हैं। मेरा हवाई अड्डा लाहौर है। मैं भारत से किस तरह संबंध रख सकता हूँ।” श्री गुरुजी ने उनसे कहा, “आप हिंदू राजा हैं। पाकिस्तान के साथ विलय के बाद आपकी हिंदू प्रजा पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ेगा। सही है कि आपका भारत के साथ इंफ़्रा विकसित नहीं है किंतु इसे बनाया जा सकता है। आपके कश्मीर के हित में अच्छा यही होगा कि आप भारत के साथ अपने राज्य का विलय कर लें।” आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कश्मीर में जो इंफ़्रास्ट्रक्चर निर्मित कर रहे हैं, वह श्री गुरुजी के इन विचारों का क्रियान्वयन ही है। अरुण भटनागर की पुस्तक, “इंडिया: शेडिंग द पास्ट, एम्ब्रेसिंग द फ्यूचर, 1906-2017” में भी श्रीगुरुजी की कश्मीर विलय में भूमिका, का उल्लेख है।

स्वातंत्र्योत्तर भारत में श्रीगुरुजी की “शक्तिशाली भारत” की अवधाणा से लोग ऐसे प्रभावित होने लगे थे कि उनके प्रति श्रद्धा का ज्वार उमड़ने लगा था। 1965 के “भारत चीन युद्ध” में भी, प्रधानमंत्री शास्त्रीजी ने, श्रीगुरुजी से नीतिगत व सामरिक विषयों पर परामर्श करके निर्णय लिए थे। जनप्रिय प्रधानमंत्री अटलजी तो श्रीगुरूजी के समकक्ष कभी कुर्सी पर नहीं बैठते थे व नीचे ही स्थान ग्रहण करते थे।

गोवा के भारत विलय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका उनकी “शक्तिशाली भारत की अवधारणा” का ही परिणाम था। गोवा मुक्ति आंदोलन में उस समय कांग्रेस सरकार की भूमिका राष्ट्रहित की पीठ में ही छुरा घोंपने वाली थी। गुरुजी ने तब कहा था, “गोवा में पुलिस कार्रवाई करने और गोवा को मुक्त कराने का इससे ज्यादा अच्छा अवसर कोई नहीं आएगा। भारत सरकार ने गोवा मुक्ति आन्दोलन का साथ न देने की घोषणा करके मुक्ति आन्दोलन की पीठ में छुरा मारा है। भारत सरकार को चाहिए कि भारतीय नागरिकों पर हुए इस अमानुषिक गोलीबारी का प्रत्युत्तर दे और मातृभूमि का जो भाग अभी तक विदेशियों की दासता में सड़ रहा है, उसे अविलम्ब मुक्त करने के उपाय करे।”

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व वामपंथियों में मूलतः वैचारिक मतभेद है व कम्युनिस्ट स्वभावतः ही संघ को पानी पी पी कर कोसते रहे हैं। श्रीगुरूजी अपनी “शक्तिशाली भारत” की अवधारणा के प्रति इतने समर्पित थे कि वे कम्युनिस्ट्स के प्रति भी राष्ट्रहित में समन्वय की दृष्टि रखते थे। श्रीगुरूजी कार्ल मार्क्स के प्रति कहा करते थे कि, “भारतीय कम्युनिस्ट्स ने कार्ल मार्क्स के साथ अन्याय किया है। मार्क्स केवल भौतिकतावादी नहीं थे, वे नीतिशास्त्र में भी विश्वास रखते थे। श्रीगुरुजी मानते थे कि, कार्ल मार्क्स को “क्रूड मटेरियलिस्टिक” मानना  भारतीय कम्यूनिस्टों की बड़ी भारी गलती है ।

श्रीगुरूजी “शक्तिशाली भारत” के अपने विचार के क्रियान्वयन हेतु सभी वैचारिक पद्धतियों के सत्व-सार को खोजते व उससे समन्वय बनाते दिखते थे।
 (डॉ. प्रवीण गुगनानी, विदेश मंत्रालय, भारत सरकार मेंराजभाषा राजभाषा सलाहकार हैें)  संपर्क 9425002270 guni.pra@gmail.com

नरेश कुमार ‘शाद’ के यादगार शेर

नरेश कुमार ‘शाद’ उर्दू के प्रसिद्ध शायर थे, जिनका जन्म 11 दिसंबर 1927 को होशियारपुर में हुआ था। वे जोश मलसियानी के शागिर्द थे और ‘ललकार’, ‘दस्तक’, ‘शादनामा’ आदि उनके प्रमुख काव्य संग्रह हैं। उनकी मृत्यु 1969 में दिल्ली में हुई।

डूब कर पार उतर गए हैं हम
लोग समझे कि मर गए हैं हम
ए ग़म-ए-दहर तेरा क्या होगा
ये अगर सच है कि मर गए हैं हम

आँखों में सहर झलक रही है गोया
होंटों से शफ़क़ ढलक रही है गोया
यूँ फबके हुए जिस्म में रक़सा है शबाब
पैमाने से मय छलक रही है गोया

इतना भी ना-उमीद दिल-ए-कम-नज़र न हो
मुमकिन नहीं कि शाम-ए-अलम की सहर न हो

अक़्ल से सिर्फ़ ज़ेहन रौशन था
इश्क़ ने दिल में रौशनी की है

ख़ुदा से क्या मोहब्बत कर सकेगा
जिसे नफ़रत है उस के आदमी से

ज़िंदगी से तो ख़ैर शिकवा था
मुद्दतों मौत ने भी तरसाया

अल्फ़ाज़ की रग रग में रचाता हूँ लहू
ताबिंदा ख़यालों को पिलाता हूँ लहू

हर शेर की मेहराब में मशअ’ल की तरह
मैं अपनी जवानी का जलाता हूँ लहू

बीते हुए लम्हों का इशारा ले कर
रूमान का बहता हुआ धारा ले कर

उतरी है मिरे ज़ेहन में फिर याद तिरी
महताब की किरनों का सहारा ले कर

क्यूँ न प्यार आए उसे अपनी परेशानी पर
सीख ले जो तिरी ज़ुल्फ़ों से परेशाँ होना

मेरे विज्दान ने महसूस किया है अक्सर
तेरी ख़ामोश निगाहों का ग़ज़ल-ख़्वाँ होना

ये तो मुमकिन है किसी रोज़ ख़ुदा बन जाए
ग़ैर मुमकिन है मगर शैख़ का इंसाँ होना

अपनी वहशत की नुमाइश मुझे मंज़ूर न थी
वर्ना दुश्वार न था चाक-गिरेबाँ होना

रहरव-ए-शौक़ को गुमराह भी कर देता है
बाज़ औक़ात किसी राह का आसाँ होना

क्यूँ गुरेज़ाँ हो मिरी जान परेशानी से
दूसरा नाम है जीने का परेशाँ होना

जिन को हमदर्द समझते हो हँसेंगे तुम पर
हाल-ए-दिल कह के न ऐ ‘शाद’ पशीमाँ होना

भारत -अमेरिका मैत्री के नये युग का प्रारम्भ

पूरा विश्व जिन दो नेताओं की परस्पर भेंट की प्रतीक्षा कर रहा था, वह हो चुकी है, यानि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भेंट। इस भेंट के साथ ही विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संबंधों तथा भारत और अमेरिका के मध्य द्विपक्षीय संबंधों  को लेकर जो तरह- तरह के संदेह व्यक्त किये जा रहे थे वे भी दूर हो चुके हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो दिवसीय अमेरिका यात्रा और उनके परम मित्र अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ उनकी बहु प्रतीक्षित वार्ता भी संपन्न हो चुकी है। प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति की मित्रता किसी से छिपी नही है और इन दोनों के मिलने के बाद यदि कहीं सबसे अधिक घबराहट का वातावरण बना है तो वह डीप स्टेट है जो अमेरिका में बैठकर भारत विरोधी गतिविधियों का संचालन करता रहा है। दूसरे नंबर पर पाकिस्तान है जहां भारत विरोधी आतंकवादी गतिविधियां बेधड़क संचालित हो रही हैं। मोदी – ट्रम्प के मिलने से जो व्यक्तिगत रूप से घबरा रहा होगा वो बांग्लादेश का नया तानाशाह मोहम्मद यूनुस है, जिसके शासनकाल में अल्पसंख्यक हिंदुओं तथा राजननैतिक विरोधियों पर घोर अत्याचार हो रहा है। बांग्लादेश का भाग्य अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर छोड़ दिया है।

नरेन्द्र मोदी की इस अमेरिका यात्रा के दौरान भारत और अमेरिका आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के लिए एकजुट हुए हैं जिसका उल्लेख  साझा पत्रकार वार्ता में किया गया तथा पाकिस्तान,जैश- ए- मोहम्मद और लश्कर ए तैयबा जेसे खतरनाक आतंकवादी संगठनों का नाम भी लिया  गया है । यह इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि पूर्ववर्ती बाइडेन प्रशासन ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में बहुत ही ढुलमुल रवैया अपनाया  था।

प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा का एक अप्रत्याशित क्षण वह था जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ अपने गर्मजोशी भरे संबंधों को याद करते हुए अपनी भारत यात्रा पर लिखी एक पुस्तक भेंट की, उस समय भी ट्रंप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक महान नेता बताया।

अमेरिकी राष्ट्रपति से मुलाकात के पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी प्रशासन के कई महत्वपूर्ण लोगों के साथ बैठक करीं जिनमें द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा हुई। प्रधानमंत्री मोदी ने तुलसी गबार्ड तथा एलन मस्क से लेकर अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइकल वाल्ट्ज तक से मुलाकात की।  एलन मस्क के साथ जहाँ व्यापारिक हितों व समझौतों को लेकर वार्ता हुई, वहीं अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइकल वाल्ट्ज के साथ हुई बैठक में रक्षा ,तकनीक हस्तांतरण  और सुरक्षा क्षेत्रों जैसे गंभीर विषयों पर चर्चा हुई है।बैठक के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाल्ट्ज को “भारत का एक महान मित्र“ कहा है जिसके कई मायने निकाले जा रहे हैं। वाल्ट्ज के साथ हुई बैठक में दोनों देशों की वैश्विक रणनीतिक साझेदारी को और गहरा करने के तरीकों पर चर्चा हुई है। इसमें रणनीतिक साझेदारी के साथ साथ आतंकवाद के खिलाफ लडाई, रक्षा औद्योगिक सहयोग और नागरिक परमाणु ऊर्जा पर बल दिया गया। प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिका में भारतीय मूल के विवेक रामास्वामी  के साथ भारत अमेरिका संबंधों इनोवेशन, बायो तकनीक और भविष्य को आकार देने में उद्यमिता की भूमिका पर गहन चर्चा हुई।

प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की वार्ता के बाद आयोजित साझी प्रेसवार्ता ने पूरे विश्व का ध्यान आकृष्ट किया जहाँ दोनों नेताओं की एक और एक ग्यारह वाली मित्रता एक बार फिर देखने को मिली।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति ने वर्ष 2030 तक व्यापार को 500 अरब डालर तक बढ़ाने का लक्ष्य तय किया है। वार्ता के दौरान रक्षा क्षेत्र में सहयोग  बढ़ाने का संकल्प लिया है जिसमें  अमेरिका भारत को एफ- 35 लड़ाकू विमान बहुत जल्द देने पर सहमत हो गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने मुंबई हमले के सरगना तहव्वुर राणा को भारत भेजने के लिए अनुमति प्रदान कर दी है। साथ ही भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और  जापान को मिलाकर 2017 मे बनाए गये क्वाड समूह को फिर मजबूत व सक्रिय करने पर बल दिया गया है। पत्रकार वार्ता में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने कहा कि  भारत और अमेरिका के मध्य मित्रता बहुत मजबूत है इस समय दोनों  देशों के सम्बन्ध  सबसे अच्छे दौर में है। दोनों  नेताओं ने कहा कि हम आतंकवाद के मुद्दे पर एक दूसरे के साथ दृढ़ता से खड़े हैं। दोनो नेताओं ने सीमा पार आतंकवाद के उन्मूलन के लिए ठोस कार्रवाई पर बल दिया। भारत और अमेरिका सबसे बेहतर व्यापार मार्ग के विकास के लिए संकल्पबद्ध दखे ओैर इसकी घोषणा भी कर दी गई है। यह व्यापार मार्ग भारत मध्य पूर्व- यूरोप आर्थिक गलियारा होगा जिसमें अमेरिका भी एक साझेदार होगा ।

स्पष्ट है कि अब भारत और अमेरिका के मध्य दोस्ती का एक नया दौर प्रारम्भ हो रहा है।आगामी समय में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप भी भारत दौरे  पर आने वाले हैं तब तक दोनों देशों के मध्य टैरिफ सहित विभिन्न विवादित मुद्दों का हल भी निकल आयेगा।

प्रेषक -मृत्युंजय दीक्षित

फोन नं.- 9198571540

वसंतोत्सव के उपलक्ष्य में काव्य संध्या का आयोजन

स्थानीय सत्यनगर स्थित उत्कल अनुज हिन्दी पुस्तकालय में गत रविवार की शाम वसंतोत्सव के उपलक्ष्य में काव्यसंध्या का आयोजन हुआ। अध्यक्षता पुस्तकालय के मुख्य संरक्षक सुभाष भुरा ने की। कार्यक्रम की आरंभिक जानकारी अशोक पाण्डेय ने दी। पाण्डेय ने बताया कि डॉ हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार वसंत आता नहीं,ले आया जाता है।पाण्डेय के अनुसार पुस्तकालय के सदस्यों में विचार-विनिमय संस्कृति के विकास की आवश्यकता है।

काव्य संध्या में भाग ले रहे कवियों के विचार भले ही अलग-अलग हों लेकिन वे एक-दूसरे की लेखनी को धैर्य के साथ सुनें और दूसरे कवि-कवयित्रीगण भी पूरी आत्मीयता के साथ सभी को सुनें। गौरतलब है कि यह पुस्तकालय 2015 से ही बड़े-बुजुर्ग कवियों का आदर-सम्मान करते आ रहा है।समारोह की अध्यक्षता कर रहे सुभाष चन्द्र भुरा ने आगत सभी के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि धीरे-धीरे पुस्तकालय में नवोदित कवियों की संख्या में अभिवृद्धि हो रही है,यह एक शुभ संकेत है।
स्वरचित कवितापाठ करनेवालों में सी ए अनुप कुमार अग्रवाल,गुरुशंकर झा,महेश सेठिया,मीना सहगल,ऋतु महिपाल,आशीष विद्यार्थी,गोपाल कृष्ण सिंह,अमिता सिंह,प्रकाश भुरा, अविनाश दाश, शशि मिमानी,डॉ हेनरीता मिश्रा,डॉ.रवीन्द्र दुबे तथा नियाजुद्दीन आदि शामिल थे। उपस्थित श्रोताओं में श्रीमती अंजना भुरा,सुशीला भुरा,सजन लढानिया,डॉ निधि गर्ग,तेजप्रताप शर्मा,गौरीशंकर अग्रवाल,शालिन अग्रवाल,डॉ मानस कुमार बेहरा,दीप्ति दाश, कार्यक्रम का संचालन किशन खण्डेलवाल ने किया।

खड़ीबोली के सशक्त कवि कन्दर्प नारायण शुक्ल “कन्दर्प”

सुकवि कन्दर्प नारायण शुक्ल “कन्दर्प” जी का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा सं०1988 वि०मे सन्त कबीर नगर के धनघटा तहसील के पास मुंडेरा शुक्ल नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता जी का नाम पण्डित उमा शंकर राम शुक्ल था। इनका सम्पूर्ण परिवार का पंक्ति पावन ब्राह्मण होने के कारण संस्कृत साहित्य से विशेष रूप से जुड़ा रहा। इनकी शिक्षा- दीक्षा साहित्य-शास्त्री और साहित्यरत्न तक सम्पन्न हुई थी। ये स्वतंत्र विचारक के रूप मे अध्ययन-अध्यापन में अपना समय बिताए हैं। कन्दर्प जी बस्ती मण्डल के छंदकारो के चतुर्थ चरण के उन उच्च कोटि के छन्दकारों में अपना स्थान रखते हैं जिन पर बस्ती मंडल को गर्व है। इन्होंने व्रज भाषा में लिखित रीति ग्रन्थों के अध्ययन के साथ-साथ मण्डल के वर्चस्वी छन्दकारों के छन्दों का भी अच्छा अध्ययन किया है। सवैया, घनाक्षरी के उत्कृष्ट कवि होने के साथ-साथ इन्होंने खडी बोली के आधुनिक छन्दो पर भी अपनी लेखनी चलाई है। खड़ी बोली के इनके तीन प्रबंध- काव्य बड़े ही उच्चस्तरीय है। भाव-भाषा के दृष्टिकोण से इनके छन्द-विधान को उत्कृष्टम रूप से देखा जा सकता है।

प्रकाशित पुस्तकें :-

1. निर्वाण (खण्डकाव्य)

2. वेणु गीत

अप्रकाशित पुस्तकें:-

1. मृत्युंजया (खण्डकाव्य )

2. दु:शासन (खण्डकाव्य )

3.कैकेई (प्रबंध काव्य )

4.भ्रमर गीत

5. युगल गीत

6.गौपिका गीत

7. अन्य फुटकर छन्द

रचनाओं का संक्षिप्त परिचय:-

1- निर्वाण ( खण्डकाव्य):-

यह गान्धी जी के ऊपर लिखा गया खण्ड काव्य है। इसमें 12 पृष्ठ है।  इसकी चार पंक्तियां प्रस्तुत हैं –

स्व कर्तव्य से नही चूकता

सपने में भी यह इन्सान।

क्योंकि देखता अखिल विश्व में

अपना व्याप्त राम रहमान ।।

2- वेणु गीत:-

वेणु गीत भागवत का पद्यानुवाद है।इसमे कवि भागवत के कृष्णगोपी से सम्वन्धित रासलीला को बहुत मौलिक ढंग से प्रस्तुत किया है। रासलीला की कुछ पक्तियाँ यहाँ प्रस्तुत है-

जल निर्मल कमल जलाशय में,

मुख देख गर्व से थे फूले।

गुन गुन गाते थे गान मधुर,

जिन पर भौरे भ्रम में भूले ।

यों वर्णन करते गृह प्रिय के प्रेम विभोर  ।

गुजरिया सब लेने लग गयी स्नेह हिलोर।

बन गयी भिलानियां फिर श्यामा श्याम ।

उभयस्थिति में लीन तनिक मन में विश्राम।

इस भांति नित नवप्रेम प्रिय के पगी सप्रेम।

करकर मनोहर गान पानी स्व पद निर्वान।।

खड़ी बोली के खण्ड काव्य:-

कन्दर्प जी के प्रौढ खंड काव्य तो विशुद्ध रूप में खड़ी बोली में लिखे गये हैं। उनको पाण्डुलिपिया देखने को मिली। जिनके माध्यम से इस खण्ड काव्य पर प्रकाश डाला जाएगा।

अप्रकाशित मृत्युंजया (खण्ड काव्य):-

इसकी रचना कन्दर्प जी सम्बत 2003 में किया । इस पाण्डुलिपि में 45 पृष्ठ हैं जो बड़े आकार में प्रस्तुत किया गया है। इसमें कुल 6 सर्ग हैं। इसकी भाषा खड़ी बोली है।

संक्षिप्त कथावस्तु:-

मृत्युंजया की कथावस्तु का प्रारम्भ राजा अश्वपति के तपस्या मे किया गया है।पुत्र प्राप्ति हेतु राजा ने कठोर तपस्या किया किन्तु इनको पुत्र की जगह पुत्री प्राप्त हुई। इस पुत्री का नाम सावित्री रखा गया और सावित्री तथा सत्यवान की चिर-परिचित कथा को उपजीव्य बना करके सम्पूर्ण कथावस्तु को विस्तृत आकार दिया गया है।

प्रथम सर्ग –

प्रथम सर्ग का प्रारम्भ भारतीय गरिमा के गुणगान से हुआ है। यथा-

उस काल के जितने पुरुष थे,

शिष्ट थे नव निष्ट थे।

सारी कलाओ में कुशल थे,

अति महान वरिष्ठ थे ।

उस काल का मानव समाज

दयालु हिंसा विरत था।

नात्सये, दम्भ विहीन धर्म

विकास ही में निरत था।।

– (मृत्युंजया प्रथम सर्ग पृष्ठ 1)

तपस्यारत राजा को काम विचलित करता चाहता था। कवि ने उसका चित्रण बड़ा सुन्दर ढंग से किया है। काम की दशा देखिये –

जो वृक्ष पत्रविहीन थे

उनमे सरसता आ गयी।

नवपत्र पुष्पों से मनोहरता

अलौकिक छा गयी।

नदियाँ चली कलनाद करती

उदाधि और उमंग में।

भौरे चले कुछ गुनगुनाते

आ कमल ढींग रंग में।

मधु प्रेम में पागल वना

दक्षिण पवन चलने लगा।।

– (मृत्युंजया प्रथम सर्ग पृष्ठ 3)

द्वितीय सर्ग –

द्वितीय सर्ग का प्रारम्भ उषा कालीनचित्रण से होता है। उसके बाद किशोरावस्था में पहुँचती हुई सावित्री का वीणा वादन के मनोहर प्रसंग का वर्णन किया गया है–

अरे कौन यह छेड़ सप्त स्वर

निज मानस में लीन।

भाव हृदय में उठा रही है

जग के मधुर नवीन ।

अहद केश कैसे काले हैं

सजल पयोध समान ।

कैसी इस कमनीय कान्ति पर

लज्जित स्वर्ण विहान ।

पटतल भी लज्जित हो जाता

अरुण कपोल निहार।

भुज मृणाल पर कैसा पुलकित

सरसि रुह अविकार ।

अंचल देख चला जाता है

मदन केतु झकमार ।

लच जाती कटि वच जाती

पर पीन पयोधर भार।।

– (मृत्युंजया द्वितीय सर्ग पृष्ठ 5)

तृतीय सर्ग –

तृतीय सर्ग में सावित्री पिता के आदेश से तपभूमि में तप हेतु जाती है। प्राकृतिक छटा के बीच रूपवती सावित्री का सौन्दर्य द्रष्टव्य है-

राजकन्या रथ पर लामोद ,

चन्द्र ज्यों नील गगन की गोंद ।

देखती हुई दृश्य कमनीय

जा रही थी भर सुषमा हीय ।

+       +       +       +

कहीं नदियों का कलकल नाद ,

न जीवन में जिनके अवसाद।

कहीं निर्झर की झर झर तान,

दे रही जो मानस सुखदान ।

– (मृत्युंजया तृतीय सर्ग पृष्ठ 8)

यात्रान्त में सत्यवान तपोवन में रूपवती सावित्री से मिल ही जाता है। उसके सौन्दर्य पक्ष को दोनों के राग से जोड़ते हुए कवि ने बड़े उत्तम ढंग से प्रस्तुत किया है-

तप्त हेमाभ गात की कान्ति,

देखकर दिनकर की ही भ्रान्ति।

बड़े दृग थे अरविन्द समान,

अधर के पटल थे उपगान।

शान्त रस से था भरा शरीर,

धरा पर ज्यों सागर गंभीर ।

वीचियो सा प्रलम्ब युग वाह,

भरा था जिसमें अति उत्साह।

लहराती शीश जटाएं लोल,

दिखाती थी सौंदर्य अमोल।

अरुण चन्दन से शोभित भाल,

उदित ज्यों प्राची ने रविवाल।

भरा था अंग-अंग में ओज,

प्रफुल्लित करता मन सरोज ।।

– (मृत्युंजया तृतीय सर्ग पृष्ठ 10 )

सावित्री सत्यवान के इस रूप पर मोहित हो गई। सत्यवान भी उसके रूप पर मोहित हो गया। सत्यवान का परिचय देते ही सावित्री के पूर्वराग का चित्रण कवि ने बड़े उत्तम ढंग से प्रस्तुत किया है-

राज कन्या उस क्षण अनिमेष

सौम्य उस आगन्तुक का वेष ।

देखती थी हो प्रेम विभोर

मयूरी ज्यो सावन घन ओर ।

कर रही थी न्योछावर प्राण

दे रही थी निज मानस दान ।।

– (मृत्युंजया तृतीय सर्ग पृष्ठ 11 )

सावित्री के साथ आमात्य ने उसके पिता अश्वपति का परिचय दिया। सत्यवान ने भी अपने पिता द्युमत्सेन  (भूतपूर्व शाल्व नरेश) का परिचय दिया। दोनों एक दूसरे को देखते रहे। सावित्री केअभिवादन के साथ दिवसावसान हो गया। कवि ने इस प्रसंग का चित्र आश्रम के अंचल से प्रस्तुत किया है-

इस तरह हुआ दिवस अवसान

सुनाये चिडियों ने कल गान ।

मधुर सन्ध्या से पा अनुराग

श्रवण कर सामवेद का राग ।

पद्मिनी का संकोच निहार

स्पर्श कर शीतल मन्द बयार ।

हवन की धूम घटाएँ धूम

रही थी दशो दिशाएँ चूम ।

स्वस्ति स्वाहा ध्वनि का उच्चार

कर रहा था जीवन संचार।।

– (मृत्युंजया तृतीय सर्ग पृष्ठ 13 )

रात्रि में सावित्री और सत्यवान का मिलन प्रणय का उपहार बन करके दोनों के अन्तस्पटन को चन्द्रधनुषी कल्पनाओं से अनुरंजित करने लगा। स्नेह के लालित्य ने माधुर्य भरी उत्कंठा का सृजन  कर प्रणयानुभुति की ओर अभिप्रेरित किया। पर प्रेरणा में रागानुरक्त उभय किशोर और किशोरी में आनन्द की भावभूमि पर प्रणय का सम्वर्द्धनात्मक सृजन हुआ।

चतुर्थ सर्ग-

राजा अश्वपति की सभा में सभा के सम्मुख सावित्री द्वारा प्रणय प्रस्ताव रखने पर नारद ने रहस्य को खोलते हुए कहा सत्यवान तो केवल एक ही वर्ष जीवित रहेगा। किन्तु राजा ने सावित्री के अटल प्रेम को देखते हुए उसे पाणिग्रहण की स्वीकृति प्रदान कर दी।

पांचवां सर्ग –

पाँचवे सर्ग में राजा अश्वपति अपने धर्मपत्नी मालवी के साथ तपोभूमि ये जाकर कन्या दान करते हैं। सावित्री के प्रवेश से वनभूमि मंगलमय हो गई। उसने राजसी परिवेश को त्याग करके आश्रम व्यवस्था में परिवार की सेवा-सुश्रुषा का भार संभाला। उसके गार्हस्थ्य जीवन का चित्रण अत्यन्त ही सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया गया है-

बेला प्रभात बन के जगती जगाती ।

आमोद कन्ज मन मानस में खिलाती।

गार्हस्थ्य जीवन प्रसन्नतया चलाती ।

थी राजती उटज मध्य कोमलांगी।।

– (मृत्युंजया, पचम सर्ग, पृष्ठ 28)

षष्ठ सर्ग-

बसन्ततिका छन्द का प्रयोग बढ़ा उत्तम है। षष्ठ सर्ग सावित्री के स्वप्न से प्रारंभ होता है। वह अनिष्टकर स्वप्न देख करके कॉप- सी उठती है क्योंकि एक वर्ष बीत चुके हैं और उसके पति के मृत्यु के दिन सन्निकट आने वाले हैं। उसे नारद का कथन स्मरण हो आता है। वह अपने बचपन कीस्मृतियों से तन्वंगी लतिका के समान अनिष्ठ के झंझावातों से थरथरा उठती है। बचपन के सुख के दिन स्मरण हो आते हैं। उसका चित्रण कवि ने बड़ा की मार्मिक प्रसँग के संदर्भ में किया है-

मोतियाँ निष्प्रभ दतुलिया जब दिखाती खोल।

बोल मिश्री घोलती या बोलती तूं बोल ।

लटपटी सी चाल अति बिखरा हुआ सा बाल।

देवता किसको फसाने का रचा यह जाल।

धूल से हो धूसरित माँ की मनोरम गोद।

दौड़ना पीछे द्विजों के आमुदित सविनोद।

तितलियों को दौड़ धरना और करना खेल।

कभी आपस में झगड़ना कभी करना मेल।

क्या कभी मैं भी रही शिशु बोल नभ क्यो मूक!

आह! आज पपीहरी क्यो दे रही उर हूक।।

इसी मार्मिक प्रसँग को वर्षा के मार्मिक चित्र के माध्यम से कवि ने और मार्मिक बना दिया है –

आह!सावन मास वह घिरनाघनों का ब्योम

गर्जना के साथ बूंदों की झड़ी सुकुमार ।

देखना दिन में न दिनमणि रात्रि तारकसोम

चंचला की चमक इन्द्र वधूटियों का प्यार ।

कलितनृत्य कलापियोंका ललितपंख पसार

लहरना हरियालियों का ले पवन का प्यार

झूलना अलि संग में अति मंद झूले डाल।

प्रेम से गाना मुदित हो मधुर गीत रसाल ।

हाय!अब ये क्षण कहां सामने कर्म क्षेत्र ।

आलियाँ ससुराल में हैं जलसे भरे हैं नेत्र।

सोचते ही गिरे लोचन सुक्त मौलिक विन्दु।

मनो अम्बर से गिरे दो झलमलाते इन्दु ।।

– (वही, षष्ठ सर्ग, पृष्ठ 31.)

बनाली के रात्रि पर लिखी गई पंक्तिया द्रष्टव्य हैं-

जुगुनुओं के दीप ये कैसे हवा मे अड़े हैं।

उस अनन्ताकाश में नक्षत्रनभ जैसे जड़े हैं।

– (वही, षष्ठ सर्ग, पृष्ठ 33 )

उपमा अलंकार का बड़ा सुन्दर प्रस्तुतीकरण किया गया है। सत्यवान कुल्हाड़ी से लकड़ी काट रहा था। उसके लकड़ी का काटना बन्द होते ही यमराज एक तप:पुंज के रूप में अवतरित हुए। सावित्री ने यमराज को कैसे देखा-

अकस्मात सुधांश सी किरणें चतुर्दिक शुभ्र फ़ैली।

धुल गई हो गई निर्मल पूर्वमा जो थी रात्रि मैली ।

आह यह क्या स्वप्न या सच द्यौतिता क्यो दिशा सारी ।

सामने तब तक वहीं अति सौम्य प्रतिमा वह निहारी ।।

– ( वही , अष्ठ सर्ग, पृष्ठ 35)

तप:पुंज यम को देख करके और उनका परिचय पा करके सावित्री काप उठी। उसने उनके पधारने का कारण पूछा-

यम ने कहा कि पापात्माओं के लिए हमारे दूत जाते हैं, किन्तु पुण्यात्माओं के लिए मैं स्वय आता हूँ। सावित्री का विक्षुब्ध मन डबडवी आखो से भय से प्रश्न कर उठता है –

देव तो बताइये यह पुण्य क्या है पाप क्या है।

जल रहा जिससे जगत एसा भयंकर ताप क्या है।

कर्म वह कैसा कि कर नर स्वर्ग या अपवर्ग पाता।

कौन सा दुष्कर्म कर वह नरक का चक्कर लगाता ।।

यम ने कहा कि शुभ कर्म के कारण ही मैं तुम्हारे पास हूँ। ऐसा कहता हुआ सत्यवान के प्राणों को लेकर ज्यो-ज्यों यम ऊपर बढ़ने लगा त्यो-त्यो तपोधना सावित्री

भी ज्योतिर्मयी हो उसके पीछे-पीछे चलने लगी। यम ने पीछे घूमकर जब सावित्री को देखा तो वे आश्चर्यचकित हो गये।

यम ने कहा कि शुभे, सत्यवान के अत्तिरिक्त तुम्हें जो भी प्रिय हो मांग लो। सावित्री ने अपने सास-ससुर के नेत्र की रोशनी पुन. वापस मांगा। यम ने वरदान देकर जैसे कदम बढ़ाया पुन: पीछे लौट कर देखा-

देखते नारी वही युग हाथ में संसृति संभारे।

है खड़ी उस शून्य पथ पर एक तीव्र प्रकाश डारे।

यम आवेश में बोल उठा-

किस प्रबल बल पर हमारा अनुसरण तू कर रही है।

मानवी होकर अरे जो देव के सँग अड़ रही है।

सावित्री  ने  निर्भीकता से उत्तर दिया-

पति जहाँ को जा रहे पत्नी वहीं की जा रही है।

धर्म क्या इसमें  विलक्षणता तुम्हें दिखला रही है।

व्रत नियम शुभ आपके आशीष का ही है सहारा ।

तब भला क्यो कर कहाँ अवरुद्ध मेरी प्रगति धारा।

यम ने पुन वर मांगने को कहा।

सावित्री ने कहा कि मेरे पुत्रहीन पिता के सौ पुत्र हो जाय।

यम ज्यों आगे बढ़े, अनन्त आकाश की छाती को चीरती हुई सावित्री यम के अन्त:मन को झकझोरने लगी। पुन: यम ने वर मांगने को कहा।

सावित्री ने कहा कि मेरे पिता को उनका सम्पूर्ण राज्य मिल जाय। यम वरदान देकर अदृश्य होना चाहते थे। सावित्री ने उनसे कहा –

धर्मराज अदृश्य हो जाओ न मैं कुछ रोकती हूँ।

किन्तु कुछ बाते थी जिससे आप को अब टोकती हूं।

यम दुविधा में पड़ जाते हैं। यम को द्विचित देख करके पति विहीन सावित्री का मन करुणार्द्र हो जाता है। वह कहती है-

हाय जीवन का हमारे कौन होगा जब सहारा ।

हिचकियों के साथ आंखों से चली वह अश्रुधारा ।।

सावित्री के इस करुणाजन्य मार्मिक प्रसँग को कविवर कन्दर्प जी ने बड़े ही कलात्मकता के साथ प्रस्तुत किया है। भावों की गहराई में उतर करके पूर्व परिचित कथायें रोचकता का सृजन करके उसे नवीनता के कलेवर में बाँधने का सफल प्रयास किया गया है। सावित्री के करुण दृश्य को देख करके यम ने सौहार्द्र भरे स्वर में कहा कि जाओ तुम्हें एक वर्ष के अंदर पुत्र-रत्न प्राप्त हो। यह सुनकर सावित्री का मन आह्लाद से भरने लगा। तब तक बैतरिणी नदी निकट आ जाती है।

सावित्री ने यम से पूछा कि भगवन मुझे आप पुत्रवती का वरदान दे करके मेरे पति के प्राणो को छीनकर करके ले जा रहे हैं। क्या यह न्याय है? यम का अन्तर्मन सावित्री के इच्छाओं से आह्लादित हो करके बोल उठा-

जो तुम्हें स्वीकार मुझको भी वही स्वीकार।

मृत्यु की गति है अकथ यह दूर-दूर विचार।

देवि, तेरे नाथ को अब प्राप्त जीवन दान ।

सुन हमारी ओर से अब और कुछ वरदान।

यम ने कहा –

रिद्धियां तुम्हारा मुख जोहती रहेंगी सदा,

सिद्धियां भरी उमग चंवर डुलाएंगी।

नर नाग किन्नरों की बातें ही चलानी वृथा

जातियाँ सुरो की सब गुणगान गायेगी ।

अलग विभूति जिसकी न अनुभूति जग,

सतत विनीत नत  नम्रता दिखायेंगी।

दुख बिनसायेगी प्रमोद उपजायेगी वे,

तेरे भाल भाग्य चार चाँद चमकायेगी ।।

– ( वही, षष्ठ सर्ग, पृष्ठ 43)

कन्दर्प जी का “मृत्युंजया” खण्ड- काव्य कथावस्तु के दृष्टिकोण से पूर्व परिचित होते हुए भी अपने में मौलिक और नवीन है। सती सावित्री के आदर्श प्रेम को कवि ने भारतीय नारी के बाद परम्परा के लिए मौलिकता के साथ सर्वजनीनता प्रदान किया है। मार्मिक प्रसगों की अभिव्यक्ति ने रसानुभूति का सिलसिला बड़े ही मनोवैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। भाषा में लालित्य के साथ प्रवाह है। कन्दर्प जी की यह कृति खण्ड काव्य को सभी विशेषताओं से पूर्ण है। यदि उसे आधुनिक युग का एक श्रेष्ठ खण्डकाव्य कहा जाय तो कोई अत्युक्ति न होगी। अपने संशोधित रूप में प्रकाशित होते ही “मृत्युंजया” खण्ड-काव्य का काव्य सुधी अवश्य समादर करेगे।

दु:शासन (खंड काव्य) :-

यह कन्दर्प जी का खड़ी बोली का उत्कृष्ट खंड-काव्य है। इनकी पाण्डुलिपि देखने को मिली। इसमें कुल 50 पृष्ठ हैं। एक से 6 पृष्ठ तक प्रस्तावना लिखी गई है। 6 से 50 पृष्ठ तक महाभारत की चिर-परिचित कथा विविध संदर्भों में प्रस्तुत किया गया है। इसमें कुल 5 सर्ग है जिनका नाम कवि ने यथोचित रूप से प्रस्तुत किया है

1.निर्देश पर्व। 2. सुषुप्ति पर्व। 3. अंतर्द्वंद्व पर्व। 4.उद्‌बोधन पर्व और 5.ऐन्द्रजालिक पर्व ।

1.निर्देश पर्व –

इसकी कथा को कवि ने दुर्योधन के क्रोधावेश को चित्रित करते हुए द्रौपदी के चीरहरण के लिए दु:शासन के प्रति आक्रोश व्यक्त किया है। कवि ने इस प्रसंग का वर्णन बड़े ही सशक्त भाषा में किया है-

तर्जनी उठाकर बोल उठा

यों छूता उसका मन क्षेत्र ।

उन बंकिम भृकुटि कमानो पर

थे चढ़े हुए आग्नेय नेत्र।

तड़ तड़ा उठा वर वर्म मर्म,

कड़ कड़ा उठा मन अतुलनीय।

विहवल सा चरणो के आगे

झुक पड़ा हुआ सा उत्तरीय ।।

– (दु:शासन, प्रथम सर्ग, पृष्ठ 11)

निर्देश पर्व नाम यहाँ सार्थक हो जाता है। सम्राट दुर्योधन के क्रोधावेश को देख कर दु:शासन कह उठता है-

कुछ चिन्ता करें न महाराज !

यह समुपस्थित सर्वदा दास ।

अरुणोदय के ही साथ साथ ।

देखेंगे मैरा अटटहास ।।

– (दु:शासन, प्रथम सर्ग, पृष्ठ 11)

कवि ने दु:शासन को अनीति का पक्षधर न दिखा करके उसे नैतिकता का पक्षधर दिखाया है। किन्तु राजाज्ञा का

पालन उसका प्रधान धर्म था। इसलिए इस पर्व की सम्पूर्ण कथा निर्देश पर्व से सबंधित है।

2. सुषुप्ति पर्व –

इसमें कवि ने दु.शासन को सोते हुए स्वप्नावस्था में दिखाया है। वह स्वप्न में ही जिस समय द्रौपदी के पास पहुंचता है, वहाँ का चित्र कवि ने द्रौपदी के सौन्दर्य के माध्यम से बड़ा सुन्दर प्रस्तुत किया है-

छवि पर इन्दीवर का विलास

मुस्कान उषा की ललित भाल।

यह देख खेलने लगा मुग्ध

भौरों सा भूषित चिकुर जाल।

जगमगा उठे कर में कंकन

कानों में चंचल कर्ण फूल।

पद में नूपुर की क्वगन मधुर

तन पर शोभित स्वर्णिम दुकूल ।

पदिटका निवेष्ठित गर्वोन्नत

उभरे अंगों का था निखार।

जिस पर त्रिवली चुम्बन करता

मणि माल लगा करने विहार।

नासा पुट पर था झलक रहा

मानो तारा बन स्वयं इन्दु ।

हस रहा विवुक के कोने में

छोटा सा तिल का एक विन्दु ।

देखा दु:शासन ने सम्मुख

वह पावन पेसल रचिर रूप ।

मन चित्र आप बन जाता था

चित्रित कर जिसकी छवि अनूप ।

स्वप्निन सा जीवन झांक उठा

अन्तर मन से होकर विभोर ।

मानो भावों का वातायन

दे रहा नवल सदेश भोर ।।

– (दु:शासन, पृष्ठ 15)

द्रौपदी के पास दु:शासन पहुंचा ही नहीं थाअपितु उसे स्वप्नावस्था में राजसदन का सम्पूर्ण चित्र चल चित्रवत दिखायी पड़ रहा था। इस छन्द को कवि ने बड़े कलात्मक ढंग से प्रस्तुत किया है-

नूतन रसाल के पत्रों पर,

लिख मंजरियों का मधुर प्यार।

वर वदनवार हस रहा ज्यो

माधव महीप के खड़ा द्वार ।

पोहित मुक्ता कंचुकी मध्य,

उद्‌भावित जैसे वक्ष द्वीप ।

वैसे मंगल घट पर जगमग

मंगल ग्रह में मांगलिक दीप।

नाचती मुदित हो सुमनो पर

फूलों सी फूलों की परिया ।

मधु घोल घोल कर नयन बीच,

मानो आई हो किन्नरिया ।

उसमें था एक विशाल कक्ष,

वह शान्ति सदन कहलाता था।

डरते-डरते सुरभित समीर

जिसमें पद पदम बढ़ाता था।

प्रात:रवि रश्मि उतर जिसमें

मनचाही करती रंग रेली।

रावा की मन्द हँसी जिसमें

भर रजनी करती अठखेली।

डरते करते सुरभित समीर

जिसमें पद पद‌म बढ़ाता था।

प्रात: रवि रश्मि उतर जिसमें

मनचाही करती रंग रेली।

रावा की मन्द हंसी जिसमें

भर रजनी करती अठखेली।।

– (वही, पृष्ठ16)

स्वप्न के इस प्रसग में कवि ने सौन्दर्य पक्ष को उभारा ही नहीं है,अपितु अत्यन्त ही उत्कृष्ट बना दिया है। छन्दों में सौन्दर्य का उल्लास है। रवि रश्मियों का मनचाहे ढंग से रंगरेलिया करना और शान्ति कक्ष में डरते-डरते सुरभित समीर का पद पदम बढ़ाना मानवीयकरण के पक्ष को अत्यन्त उभार देता है। यहाँ कवि की समर्थता बड़ी सशक्त हो जाती है। इसी ही पर्व में कवि ने दु.शासन को स्वप्न में जिस समय द्रौपदी के सम्मुख पहुंचाया है, इसका चित्रण देखिये-

दु:शासन के मुखमंडल पर

चिन्ता की खचित मलिन रेखा ।

यह भावअलक्षित रह न सका,

कृष्णा ने निज आंखों देखा।।

– (वही, पृष्ठ19)

दुःशासन को दुर्योधन का आदेश याद हो जाता है। अन्तत: जब वह अपनी बात प्रस्तुत करता है तो द्रौपदी चौंक पड़ती है-

एसा सह सहसा चौंक पड़ी

वह डोली या धरती डोली।

तत्क्षण सांस भर कर उर में

धीरे-धीरे कृष्णा बोली ।

कृष्णा अनुमोदिता वाणी को

कृष्णा से अनुमोदित माना ।

सच होता द्वेष दोष धरती

अब  हमने जाना पहचाना।।

– (वही, पृष्ठ 22)

यहाँ पर कवि ने द्रौपदी और दु:शासन के कथनोपकथन को बड़ा व्यावहारिक रूप दिया है। दु:शासन अपनी मजबूरी व्यक्त करता है। यह कहता है कि मैं राज- आदेश के कारण यह दुष्कर्म कर रहा है। द्रौपदी दु:शासन को धिक्कारते हुए कहती है-

देखा कुसँग का ही फल था

सागर जैसा जीवनाधार ।

बन्धन में बांधा गया कही

कोई न मिला साथी उदार ।।

निज हित की नहीं सोचती मैं

सोचती नहीं मानापमान ।

यह भी न सोचती जीवन का

कैसे रक्षित हो स्वाभिमान ।।

सौचती नहीं यह जन समक्ष,

जो आज हो रहा नग्न नृत्य ।

सोचती नहीं बस कुरुपति के

कुत्सित शासन का यह कुकृत्य ।।

सोचती नही वैभव सारा,

क्या से क्या अब हो गया हाय ।

रह गया न जीने का चारा

सोचती नहीं हूँ नि:सहाय ।।

सोचती नही पाँचो रक्षक

कौरव नरेश के बने दास ।

सोचती नहीं हो खेल-खेल

सामने नियति का व्यंग्य हास ।।

सोचती नहीं भी सारे जो

हो रहे कर्म हैं अति मलीन ।

सोचती नहीं यह भी न यहां

कोई न सोचता समीचीन।।

सोचती किअब यह आर्य भूमि

बन जायेगी मरघट मसान ।

सोचती कि अब यह सुनने को

हा मिल न सकेंगे साम गान ।।

सोचती कि अब यह भारत में

आयेगा कभी न स्वर्ण काल।

सोचती किअब यह शोषित सी

हो जाएगी बसुमती लाल।।

मैं नहीं चाहती वसुधा में

कटुता का चलित रहे चक्र।

जन अहंमन्यता में समझे

अपने को ही सुरराज शक्र।।

मैं नहीं चाहती धरती पर

घन अंधकार का हो प्रसार ।

मैं नहीं चाहती धरती से

पावन प्रकाश का बहिष्कार ।।

मैं नहीं चाहती जन जन में

छिड़ जाये यह गृह दाह युद्ध ।

मैं नहीं चाहती ईर्ष्या में लुट

जाये निज संस्कृति विशुद्ध ।।

मैं नहीं चाहती धरती का

हो जाये यह स्तमित भानु।

मैं नहीं चाहती बुझ जाये

प्रज्ज्वलित स्वजीवन का कृशानु।।

मैं नहीं चाहती वाणी का

जन – जन पाए न सुधा दान।

मैं नहीं चाहती विग्रह का कुछ

भी न हो सके समाधान ।।

मैं नहीं चाहती भरत खण्ड

कट-कट हो जाये खण्ड- खण्ड ।

मैं नहीं चाहती मिट जाये ये

अगणित नभ के मार्तण्ड ।।

चाहती कि फूले फले विश्व

चिर हरे भरे ये रहें क्षेत्र ।

चाहती कि करुणा वरुणी की

प्रवरों से पूरित रहे नेत्र।।

चाहती कि भावी पीढ़ी का

सर नीचा हो न सके ललाम ।

चाहती कि जन के रोम रोम

रम रहे सुधा सा राम राम ।।

कामना किशोरी के उर का

टूटे न कही बहुमूल्य तार ।

भावना विभोरी के पुर भी

लूटे न कही दस्यु ज्वार ।।

– (वही, पृष्ठ 28)

द्रौपदी साधारण नारी ही नहीं अपितु कवि के संदर्भों में वह चण्डी है, महामाया है। स्वप्न में  द्रौपदी दु:शासन को उसके काल के समान लगी। उसने कहा –

यो तो मेरा वह नग्न रूप

तुम देख नही सकते किशोर ।

कुसुमादप कितनी कोमल हूं

बज्रादप कितनी हूं कठोर ।।

– (दु:शासन, पृष्ठ 29)

और महाभारत की अन्य घटनाएं, कृष्णा का विलाप, साड़ी का ढेर, धनंजन तप के साथ अन्तत: दुर्योधन का वह स्वप्न के अन्तिम क्षणों में जब यह देख रहा था तो उसकी नींद सहसा खुल गयी –

झटका सा सहसा लगा उसे

संछिन्न हुआ मन का सितार।

स्वप्नों के मोती विखर उठे

सुनकर कुल हू की पुकार ।

सुषुप्ति पर्व के अन्त का यह छन्द कवि ने बड़े को मनो वैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत किया है।

3.अंतर्द्वंद्व पर्व-

प्रात: काल होते ही दु:शासन कृष्णा के पास पहुंच जाता है। यह मन ही मन सोचता है-

क्या सपना सचमुच सच होगा

होगा सचमुच क्या अंधकार

क्या देश डूब ही जायेगा

कोई न मिलेगा कर्णधार ।।

दु:शासन के मन का द्वंद उसे विकल किये हुए है किन्तु अंततः राजाज्ञा पालन हेतु कर्तव्यनिष्ठ होना ही था। दु:शासन के रौद्र रूप को देखकर कृष्णा भयभीत हो गई-

देखा कृष्णा ने आगत की

आँखें थीं दोनो लाल लाल।

भौहें मौर्वी ही झुकी हुई

कंधे पर थी गुरु गदा लाल।।

– (वही पृष्ठ 38)

4.उद्‌बोधन पर्व-

इस पर्व में कृष्णा राजसभा पहुँच जाती है। दु:शासन से बार-बार दुर्योधन कहता है कि इसे भरी सभा में नचाओ। आज यह दासी मेरे जंघे पर आकर बैठेगी। कृष्णा दुर्योधन के उस अनाचार से क्रुद्ध हो जाती है। वह अत्याचार को ललकारती हुई भरी सभा को चुनौती देती है-

आक्रोश अमर्ष व्यथा लेकर

युग आंखों में लेकर पानी ।

उद्‌बोधन देती सी कृष्णा

बोली नय नीति भरी वाणी ।

कोमल कठोरता का मिश्रण

देख ना देख बस नारी है।

नारी फूलो की क्यारी है

नारी उड़ती चिनगारी है।

अतएव मान जा अभिमानी

तुमसे यह प्रश्न हमारा है।

वह क्या सचमुच है अधिकारी

तो पूर्व स्वयं ही हारा है।।

नारी के स्वत्व की रक्षा पुरुष के साथ होती है। किन्तु यदि पुरुष स्वय नाकाम हो जाता है जो उसे अपनी रक्षा के लिए रणचंडी बनना पड़ता है। दुर्योधन के अनाचार को चुनौती देती कृष्णा ने भारतीय नारियो को मर्यादा की रक्षा की शंखध्वनि किया, उसको कवि ने बड़े ही आधुनिक संदभाँ मैं प्रस्तुत किया है। पंक्ति पंक्ति नारी जागरण के आयामी को अग्रसारित करने में सबल और सक्षम है।

5.ऐन्द्रजालिक पर्व-

कवि ने दु शासन को ऐन्द्रजालिक के रूप में चित्रित किया है। एक तरफ कृष्णा करुण क्रंदन  कर रही थी, दूसरी तरफ दु:शासन न्याय और अन्याय के चक्कर में पड़ा हुआ अपने को समक्षने में असमर्थ पाता है। वह मन ही मन कह उठता है –

अपने हाथो कब अपनो का

सम्मान उतारा जाता है।

अपने हाथो कब अपनों का

परिधान उतारा जाता है।।

दु:शासन यह जानता था कि नटवर नागर कृष्ण के रहते कृष्णा की लाज कभी नहीं जा सकती। कवि ने इस प्रसग को एक नया मोड़ दिया। यहाँ स्वयं दु:शासन इन्द्रजाल करने में लग गया है । उसके इन्द्रजाल से सारी सभा चकित हो गई। दु:शासन अपनी माया से द्रौपदी का चीर ही  हरण नहीं कर रहा था अपितु अम्बर का अम्वार लगाता चला जा रहा था। लोगो को देखने में वह चीरहरण कर रहा था लेकिन उसने वस्त्रों से द्रौपदी के तन की हो ढक दिया। वह दुर्योधन से कहता है कि-

भैया यह कैसे चीर खिंचे

सामने छा रहा अंधियारा।

अम्बर के है अम्बार लगे

कुछ नहीं सूझता है चारा ।।

दुःशासन के उस वधन पर सारा जन समूह बोल उठा-

कह उठा उपस्थित जनसमूह

यह बड़ी कठिन प्रभु माया है।

देखो कैसे उस अबला का

ईश्वर ने चीर बढ़ाया है।

कवि ने काव्य के अन्त में दु:शासन को एक कर्तव्यरत एक आदर्श सेवक माना है। चीरहरण का कारण दुर्योधन है न कि दु:शासन। अन्त में कवि कहता –

दुर्योधन के संकेतों पर

जब तक दु:शासन नाचेगा।

उत्पीड़न की अन्याय कथा

तब विवश मनुज ही बाँचेगा।

दुर्योधन के आदेशों को

गुरजन जब तक दुहरायेगे ।

हर दु:शासन को विवस विकल

वे भरी सभा में पायेंगे ।।

दु:शासन खण्ड-काव्य अपने में पूर्ण सफल है। भाषा, रस छंद और अलंकार के दृष्टिकॉण से उसमें प्रयुक्त छन्द भावों के अनुकूल है। छन्दों में प्रवाह है, लालित्य है, संस्कृतनिष्ठ शब्दावली से अर्थ गाम्भीर्य के साथ-साथ विषय वस्तु नै निरूपण में सफलता मिली है। कवि ने दु:शासन को एक आज्ञाकारी सैनिक का रूप दिया है। उसके  अनुचित चरित्र को उभारने का प्रयास किया है। साथ ही साथ दुर्योधन के अनाचार को चुनौती देने में कृष्णा का स्वरूप भारतीय नारी की शक्ति सामर्थ्य को उद्‌द्घाटित करता है। अनाचार का विरोध करना और अपने स्वाभिमान की रक्षा करना कृष्ण जैसी भारतीय नारिया जानती हैं।

कैकेयी प्रबंध काव्य :-

कन्दर्प जी का यह तीसरा  प्रबंध काव्य है जो अभी अपूर्ण है। यह आठ सगों तक लिखा गया है। इसमें अभी तक 86  पृष्ठ थे । भाषा खड़ी बोली है। कैकेयी के कथा-शिल्प को साकेत के उर्मिला के आधार पर किया गया है। कैकेयी के चरित्र को कवि ने एक आदर्श क्षत्राणी के रूप में चित्रित किया है। इस खण्ड-काव्य की भाषा सस्कृतनिष्ठ है। कहीं-कहीं तो छन्दों मे अत्यंत लालित्य है, कहीं-कहीं बड़ी भी शिथिलता और अप्रवाह है। दु:शासन और मृत्युंजया की तुलना मे “कैकेयी” प्रबन्ध काव्य शिथिल सा लगता है। सम्पूर्ण कथा की विषय-वस्तु को अव्यवस्थित ढंग से प्रस्तुत किये जाने के कारण रोचकता कम है। इस काव्य छन्दों में सुधार की अपेक्षा है।

भ्रमरगीत, युगल गीत और गोपिका गीत कन्दर्प जी की लघु काव्य कृतियां है। इन सभी पुस्तकों के प्रसँग को राधा-कृष्ण के जीवन से जोड़ा गया है। इसमें भक्ति की भावुकता और आनन्द की रसानुभूति कवि ने अधिक संजोने का प्रयास किया है।

कन्दर्प जी की समस्या-पूर्तिया :-

कन्दर्प नारायण जी सवैया और घनाक्षरी के अच्छे कवि हैं। “रसराज” कानपुर में इनके कई छन्द छप चुके हैं। यहा कुछ प्रस्तुत है-

चार वर्ष से बाढ़ आ रही समस्त प्रजा

अन्न कीतबाही से रही न किसी काम की ।

पूजा के किए भी नहीं अक्षत हुआ है कहीं

मन्द को चली है मुख प्रतिमा तमाम की।

कैसे हो जुताई और खेत की बोवाई जब

वैल की दिखाती मूर्ति मात्र अस्थिचाम की।

मिलती तकाबी जो लुटेरे लूटते हैं बीच

नाजुक समस्या है बड़ी हमारे ग्राम की ।।

– (रसराज, नवम्बर, 1956)

कितने कल कंज हंसे विहरें

झड़के पल में पग धूरि हुए ।

कितने अति मोद प्रमोद बने

बन के घर के घर घूर हुए।

कितने धन धाम निकाम भरे

निज जीवन से मजबूर हुए ।

अनुराग को राग सुना करके

जब से हमसे तुम दूर हुए।।

– (रसराज, नवम्बर, 1959)

इसी क्रम में पूर्ति पटल का एक छन्द द्रष्टव्य है-

पैर सड़ जाते कीच काच से यह मानता हूँ

दुर्दशा भी होती मच्छरों से मृदुगात की।

पंखियों के भय से प्रकाशहीन कमरे मे

जेई नहीं जाती है रसोई बनी रात की।

दुख में अवश्य पर निहित इसी में  दिव्य

भव्य शुभ कामनाएँ मनुज जमात की।

होती न उपज नर मरते क्षुधा से क्षत

जो पे यह आती न बहार बरसात की ।।

पुनः”छवि है” की पूर्ति देखें –

मुस्काती हुई कलियों में छिपी

किसकी क्या टटोलती सी छवि है।

कुहूं तो कुहूं की मधुबोलियों ने

किसकी रस घोलती ती छवि है।

हिय के पट खोलती डोलती सी

जिसकी मन बोलती सी छवि है।

किसके रंग में सराबोर सभी

किसकी अनबोलती सी छवि है।।

– (रसराज, अगस्त , 1958)

“किसान” की पूर्ति द्रष्टव्य है –

कभी ईंधन लाने की चिन्ता चढ़ी

कभी चिन्ता चढ़ी सर धान पिसान की।

कभी चिन्ता चढ़ी कही तेल की तो

कभी चिन्ता चढ़ी गृह के परिधान की।

जिसे देखिए चिन्ता विभूत वही

अधरों पे ना रेखा है मुस्कान की।

सुनता हूँ किसानों का राज्य हुआ

पर आंसू बहाती हैआंखे किसान की ।।

– (रसराज, जून , 1958)

समीक्षा: डा. मुनि लाल उपाध्याय ‘सरस’ जी द्वारा –

कन्दर्प नारायण जी चतुर्थ चरण के वरिष्ठ कवि हैं। इनकी साहित्यिक उपलब्धि इस चरण के लिए गौरव की वस्तु है। इनका दु:शासन और मृत्युंजया खण्ड काव्य उन्हें प्रबन्ध काव्य के रूप में उत्कृट सम्मान दिलाने में सक्षम है। खड़ी बोली के  बहुशांसित कवि, छन्दकार , कन्दर्प जी के छन्दों में संस्कृत के तत्सम शब्दावली का एक और गांभीर्य है तो दूसरी और भावों का सरस प्रवाह । राष्ट्रसेवी व्यक्तित्व होने के कारण कविवर कंदर्प जी के सम्पूर्ण साहित्य में मानवीय संवेदनाएं अधिक उभरी हैं। यह जनपद के आधुनिक काव्य- धारा में वर्चस्वी छःन्दकार और सम्मानित कवि के रूप में प्रसंशित है।

(बस्ती के छंदकार भाग 3 से साभार)

लेखक परिचय:-

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।

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जुगानी भाई का जाना यानी

भोजपुरी में वाचिक परंपरा के प्रबल और अनूठे वाहक , कभी आकाशवाणी गोरखपुर के स्टार रहे डाक्टर रवींद्र श्रीवास्तव जुगानी के विदा होने की ख़बर दुःखदाई है। बहुत दुःखदाई। गोरखपुर में जब आकाशवाणी का प्रारंभ हुआ तो गांव , किसान की पंचायत का चौपाल वाला कार्यक्रम शुरू हुआ। सुपरिचित कवि हरिराम द्विवेदी ने शुरू किया। उन के सहायक बने रवींद्र श्रीवास्तव। हरिराम द्विवेदी को यह नाम जम नहीं रहा था। कुछ लोगों ने उपनाम सुझाए। सभी नाम रद्द कर हरिराम द्विवेदी ने उन का नाम जुगानी रखा। जुगानी भाई ! जुगानी भाई नाम से रवींद्र श्रीवास्तव जम गए। ऐसा जमे कि वह ख़ुद भी भूल गए कि वह रवींद्र श्रीवास्तव भी हैं। बस आकाशवाणी के अपने कमरे के सामने लगे नेम प्लेट पर ही डाक्टर रवींद्र श्रीवास्तव रह गए। छा गए , भोजपुरी के आकाश पर जुगानी भाई। इतना कि हरिराम द्विवेदी भी उन से पीछे हो गए। नौकरी में वरिष्ठ थे हरिराम द्विवेदी पर लोकप्रियता में जुगानी भाई कोसों आगे निकल गए। युवा थे पर आकशवाणी पर किसी अनुभवी वृद्ध की तरह , पुरखे की तरह बतियाते थे। लोग उन्हें देखते थे , उन का पहनावा देखते थे तो चौंक जाते थे। सूटेड – बूटेड जुगानी भाई से लोग और प्यार करने लगते थे।

जुगानी भाई नाम की स्वीकार्यता ने उन्हें मान – सम्मान और भरपूर शोहरत , दौलत दी। नाम – इकराम दिया। फ़िल्म स्टारों जैसा ग्लैमर था उन का। लोग उन्हें देखने और सुनने के लिए तरसते थे। तड़पते थे। गांव में शाम को रेडियो खोल कर लोग जुगानी भाई को सुनने के लिए इकट्ठा हो जाते थे। खांटी भोजपुरी और उस के डिक्शन का खजाना और कि जैसे पैमाना बन गए थे जुगानी भाई। देखते ही देखते क्षेत्रीय कवि सम्मेलनों में भी उन की धाक जम गई। उन की भोजपुरी कविता में कोई ख़ास करंट नहीं था पर आकाशवाणी के जुगानी नाम में करंट बहुत था। 440 वोल्ट वाला। धुर देहात और कस्बों आदि के कवि सम्मेलनों में जुगानी भाई का नाम भीड़ खींच लेने की गारंटी था। विद्यार्थी जीवन में उन के साथ कुछ कवि सम्मेलनों में मैं भी सहभागी रहा हूं।

हालां कि उन दिनों भोजपुरी कविता और कवि सम्मेलन में त्रिलोकीनाथ उपाध्याय , कुबेरनाथ मिश्र विचित्र जैसे भोजपुरी के अनेक धुरंधर उपस्थित थे। त्रिलोकीनाथ उपाध्याय तो लाजवाब थे। कोई उन का शानी नहीं था। नौवो रस उन के पास थे। वह रेडियो भी थे और दूरदर्शन भी। पर भोजपुरी शब्दों का जो खजाना , ठसक और उस का इस्तेमाल जुगानी के पास था उस दौर में किसी भी के पास नहीं था। था भी किसी के पास था तो जुगानी ने छीन लिया था। उन की सहजता , सरलता और भोजपुरी की ठसक उन्हें सौ फ़ीसदी जुगानी भाई बना देता था।

वह सत्तर – अस्सी का दशक का ज़माना था। रेडियो का ज़माना था। वह जुगानी भाई का ज़माना था। भोजपुरिया स्वाभिमान का ज़माना था। जैसे कुछ लोग अंगरेजी में ही उठते -बैठते और सांस लेते हैं , ठीक वैसे ही जुगानी भाई सफारी सूट पहने भोजपुरी में ही उठते – बैठते , सांस लेते थे। अनपढ़ , किसान , मज़दूर जुगानी का दीवाना था। पढ़े – लिखे लोग भी जुगानी के जादू में खो जाते थे। उन के नाती – पोते भी अब सेटिल्ड हैं। उम्र हो गई थी , वाकर ले कर चलने लगे थे। जाना ही था। सब को जाना होता है। पर जाना किसी का भी हो , कैसे भी हो , दुःख देता है। जुगानी भाई का जाना भी दुःख दे गया है।

भोजपुरी में वाचिक परंपरा के लिए भी हम उन्हें याद रखेंगे।

फ़िराक़ गोरखपुरी के पट्टीदार थे जुगानी भाई । इतना ही नहीं , गोरखपुर शहर में भी फ़िराक के घर के पास ही उन का घर था। पर फ़िराक़ की तरह मुंहफट नहीं थे। भोजपुरी भदेसपन बहुत था जुगानी भाई में पर फ़िल्टर भी बहुत था उन के भीतर। कायस्थीय कमनीयता भी। सो सब से बना कर रहते थे। सब को साथ ले कर चलते थे। दहाड़ कर बोलते थे पर जितना बोलना चाहते थे , उतना ही बोलते थे। संयोग यह भी है कि जब उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने उन्हें लोकभूषण से सम्मानित किया तभी मुझे साहित्य भूषण मिला था। वह बहुत मगन थे। कार्यक्रम में हम लोग अगल – बगल ही बैठे थे। बतियाते रहे थे। बीते अगस्त , 2022 में गोरखपुर में यायावरी ने एक कार्यक्रम आयोजित किया था। यायावरी में जुगानी भाई को सम्मानित करने का सुअवसर मिला था। यह फ़ोटो तभी की है।

विनम्र श्रद्धांजलि !

रामनरेश पाण्डेय “पद्‌मेश” एक सशक्त छन्दकार

राम नरेश पाण्डेय पद्मेश जी का जन्म सं० 1979 वि० में वस्ती मंडल के सन्त कबीर नगर जिले के आगापुर नामक ग्राम में हुआ। आगा पुर उर्फ गुलरिहा धनघटा से4 किमी और जिला मुख्यालय खलीलाबाद सन्त कबीर नगर से 36 किमी पर स्थित है। हिन्दी की शिक्षा- दीक्षा प्राप्त करने के बाद राम नरेश पाण्डेय पद्मेश नेशनल इण्टर कालेज, हजरतगंज, लखनऊ के शिक्षक नियुक्त हुये। इनके साहित्य पर कलाधर जी का प्रभाव है। लखनऊ चले जाने से इनका बस्ती से सम्पर्क प्राय: कम ही हो गया। खड़ी बोली के मजे  मजाये कवि के रूप में ही नहीं वरन अपने प्रवन्ध काव्यों और घनाक्षरी सवैया छन्दो के रूप में ये जनपदीय कवियाँ के मुख से बहुचर्चित रहते हैं। इनसे ना तो मिलने का सौभाग्य मिया और न ही इनके ग्रंथों को देखने का अवसर। इनके बारे में जो कुछ लिखा जा रहा है वर “पूर्वांचला तथा उपहार के साथ रामदेव सिह कलाधार और पण्डित मातादीन त्रिपाठी दीन को सूचना के अनुसार  है।

सरिता शीर्षक से एक छंद द्रष्टव्य है –
प्रणयाग्नि की वेदना से हो विलूंठित,
मूक किये निज बानी चली।
घनश्याम की मानस पीड़ा स्वरूपिणी,
हो करुणाद्र कहानी चली ।
घनीभूत हो भूमि के तप्त कणों पर,
होकर देवी हिमानी कली
जिस रूप में रूप मिलाने निमित्त,
बनाकर जीवन प्राणी कली ।।

                          – (उपहार, पृष्ठ 42)

     रामनरेश पाण्डेय “पद्मेश” आगापुर गांव के निवासी “रश्मिरेखा” काव्य संकलन के कवि हैं। जो उत्तर प्रदेश शासन द्वारा पुरस्कृत है। गीतों के साथ खड़ी बोली को धनाक्षरियाँ लिखने में दक्ष है। संप्रति आप लखनऊ में अध्यापक है।”

“आप पुरानी और नई दोनों शैलियों मे सुन्दर रचना करते हैं।  – (पूर्वांचला पृष्ठ 135 )

     पद्‌मेश जी एक उत्कृष्ट छन्दकार के रूप में वस्ती जनपद (अब बस्ती मण्डल) से बाहर रहकर सेवा में लगे हुये हैं।- (उपहार, पृष्ठ 42)