अखिल भारतीय महिला साहित्यकार सम्मेलन में कोटा रचनाकारों की भागीदारी
बाल मुकुंद ओझा: सरकारी विद्रूपताओँ पर शब्दों की मार करने वाला लेखक
पुणे में सम्मान के तुलसीबाग गणपति
कोषाध्यक्ष नितिन पंडित ने बताया कि धार्मिक और पौराणिक झांकी की परंपरा को आगे बढ़ानेवाले श्री तुलसीबाग सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल ट्रस्ट इस बार 124वें वर्ष में पदार्पण कर रहा है. पंडाल के माध्यम से हर साल अलग-अलग विषयों पर आधारित झांकियां बनाई जाती हैं. इस बार श्री जगन्नाथ मंदिर की प्रतिकृति बनाई जाएगी, जो 60 फीट लंबाई 20 फीट चौड़ी और 35 फीट ऊंची होगी. श्री जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा, सुदर्शन जगन्नाथ मंदिर के देवता होंगे.
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महिलाओं के सम्मान में एक दिन समर्पित
मंडल के उपाध्यक्ष विनायक कदम ने कहा कि पालकी के दौरान इस वर्ष वारकरियों को मेट्रो का सफर कराया. ये सारे वारकरी गांव से आते हैं इन्हें तकनीक आदि की जानकारी नहीं रहती है तो हमरा उद्देश्य रहता है कि उन्हें विकसित भारत की जानकारी मिले. गणपति के दौरान धार्मिक कार्यक्रम होते हैं. सम्मानित गणपति होने के कारण यहाँ पर दर्शन के लिए काफी लोग आते हैं. इसके साथ ही गणपति के दौरान एक दिन महिलाओं के नाम रहता है . तुलसीबाग और महिला का एक गहरा रिश्ता है. इसलिए उन महिलाओं के सम्मान में एक दिन उनके लिए रहता है, सुबह से लेकर शाम तक वही सब कामकाज संभालती है. वहीं अलग-अलग क्षेत्र की महिलाओं को सम्मानित करते हैं. इस ट्रस्ट के अध्यक्ष विकास पवार, उपाध्यक्ष विनायक कदम और कोषाध्यक्ष नितिन पंडित हैं.
स्वतंत्रता- पूर्व काल में गणेशोत्सव में पोवाडे, मेले, जन-जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किये जाते थे. यहां पर स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करनेवाले लोग भाषण देते थे. यहां बड़े-बड़े शास्त्रीय गायकों के कार्यक्रम भी हुआ करते थे, बदलते समय के साथ अब ऐसे कार्यक्रम करना संभव नहीं है. शुरुआती दौर में पौराणिक और धार्मिक झांकी रहती थी. उसके बाद अब सामाजिक कार्यक्रम होने लगे. मंडल की ओर से हर साल वंचित बच्चों को खुद की पसंद के कपड़े खरीदने का मौका दिया जाता है. इसके साथ ही मंडल के प्रत्येक कार्यकर्ता का जन्मदिन संगठन द्वारा जरूरत की विभिन्न वस्तुएं देकर मनाया जाता है. अभी तक 70 से 80 जन्मदिन इस तरह से मनाए गए हैं. मंडल हमेशा रक्तदान शिविर, स्वास्थ्य शिविर का आयोजन करता रहता है. इसके साथ ही विसर्जन शोभायात्रा के बाद फायर ब्रिगेड के सदस्यों को सम्मानित भी किया जाता है. फायर ब्रिगेड के जवान 48 घंटे ड्यूटी करते हैं. उनके कर्तव्य के प्रति निष्ठा और लगन को सलाम करने के लिए मंडल की ओर से उन्हें सम्मानित किया जाता है.
अच्छा इंसान बनना सिखाता है ‘शिक्षक’
आज शिक्षक दिवस है और हममें से कोई भी ऐसा नहीं, जिसके जीवन में इस शब्द का महत्व न हो। हम आज जो कुछ भी है या हमने जो कुछ भी सिखा या जाना है उसके पीछे किसी न किसी का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सहयोग व उसे सिखाने की भूमिका रही है। इसलिए आज का दिन प्रत्येक उस व्यक्तित्व के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का व उन सीखे हुए मूल्यों के आधार पर खुशहाल समाज निर्माण में अपनी भूमिका तय करने का दिन भी है। शिक्षक यानि गुरु शब्द का तो अर्थ ही अंधकार (अज्ञान) से प्रकाश (ज्ञान) की ओर ले जाने वाला है। भारत में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का श्री गणेश भी हो चुका है। पूरी शिक्षा नीति को देखने पर ध्यान आता है कि उसके क्रियान्वयन व सफ़ल तरीके से उसे मूर्त रुप देने का अगर सीधा-सीधा किसी का नैतिक दायित्व बनता है तो वह शिक्षक का ही है। वर्तमान के आधार को मजबूत करते हुए, भविष्य के आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना को चरितार्थ करने व भारत को आगे बढ़ाने के सपनों को अपनी आँखों में भर कर निरंतर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा व भाव जागरण का आधार भी शिक्षक है।
जीवन का दायित्वबोध है शिक्षक:-
शिक्षक जो जीवन के व्यावहारिक विषयों को बोल कर नहीं बल्कि स्वयं के उदाहरण से वैसा करके सिखाता है। शिक्षक जो बनना नहीं गढ़ना सिखाता है। शिक्षक जो केवल शिक्षा नहीं बल्कि विद्या सिखाता है। शिक्षक केवल सफ़ल होना नहीं, असफ़लता से भी रास्ता निकाल लेना सिखाता है। शिक्षक जो तर्क व कुतर्क के अंतर को समझाता है। शिक्षक जो केवल चलना नहीं, गिरकर उठना भी सिखाता है। शिक्षक जो भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार होना सिखाता है।
शिक्षक जिसे समाज संस्कार, नम्रता, सहानुभूति व सहानुभूति की चलती फिरती पाठशाला मानता है। कहा जाता है कि एक शिक्षक का दिमाग देश में सबसे बेहतर होता है। एक बार सर्वपल्ली राधाकृष्णन के कुछ छात्रों और दोस्तों ने उनका जन्मदिवस मनाने की इच्छा ज़ाहिर कि, इसके जवाब में डॉक्टर राधाकृष्णन ने कहा कि मेरा जन्मदिन अलग से मनाने की बजाय इसे शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए तो मुझे बहुत गर्व होगा। इसके बाद से ही पूरे भारत में 5 सितंबर का दिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन इस महान शिक्षाविद को हम सब याद करते हैं।
एक नज़र डॉ. राधाकृष्णन सर्वपल्ली राधाकृष्णन
डॉ. राधाकृष्णन ने 12 साल की उम्र में ही बाइबिल और स्वामी विवेकानंद के दर्शन का अध्ययन कर लिया था। उन्होंने दर्शन शास्त्र से एम.ए. किया और 1916 में मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में सहायक अध्यापक के तौर पर उनकी नियुक्ति हुई। उन्होंने 40 वर्षों तक शिक्षक के रूप में काम किया। वह 1931 से 1936 तक आंध्र विश्वविद्यालय के कुलपति रहे। इसके बाद 1936 से 1952 तक ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के पद पर रहे और 1939 से 1948 तक वह काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर आसीन रहे।
उन्होंने भारतीय संस्कृति का गहन अध्ययन किया। साल 1952 में उन्हें भारत का प्रथम उपराष्ट्रपति बनाया गया और भारत के द्वितीय राष्ट्रपति बनने से पहले 1953 से 1962 तक वह दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति रहे। इसी बीच 1954 में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें ‘भारत रत्न’ की उपाधि से सम्मानित किया। डॉ. राधाकृष्णन को ब्रिटिश शासनकाल में ‘सर’ की उपाधि भी दी गई थी। इसके अलावा 1961 में इन्हें जर्मनी के पुस्तक प्रकाशन द्वारा ‘विश्व शांति पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया था। अतः: हम कह सकते है कि वे जीवन भर अपने आप को शिक्षक मानते रहे और उन्होंने अपना जन्मदिन भी इसी परिपाटी का पालन करने वाले शिक्षकों के लिए समर्पित कर दिया।
शिक्षा को मिशन का रूप देना होगा:-
डॉ. राधाकृष्णन अक्सर कहा करते थे, शिक्षा का मतलब सिर्फ जानकारी देना ही नहीं है। जानकारी का अपना महत्व है लेकिन बौद्धिक झुकाव और लोकतांत्रिक भावना का भी महत्व है, क्योंकि इन भावनाओं के साथ छात्र उत्तरदायी नागरिक बनते हैं। वे मानते थे कि जब तक शिक्षक शिक्षा के प्रति समर्पित और प्रतिबद्ध नहीं होगा, तब तक शिक्षा को मिशन का रूप नहीं मिल पाएगा। आज शिक्षा को मिशन बनाना होगा।
शिक्षा की पहुँच इस देश के अंतिम घर के अंतिम व्यक्ति तक होनी चाहिए। इसके लिए केवल शिक्षकों को ही नहीं समाज को भी अपनी भूमिका निभानी होगी। प्रत्येक वो व्यक्ति जो अपने आपको शिक्षा देने में सक्षम समझता है उसे आगे आना होगा। अपने यहाँ अधिक से अधिक मोहल्ले एवं ग्रामीण शिक्षा केंद्र संचालित करने की चुनौती को उसे स्वीकार करना होगा। ताकि समाज का कोई भी वर्ग या स्थान शिक्षा से वंचित न रहे। उसे प्रतिदिन या सप्ताह में कुछ समय शिक्षा जैसे पुनीत कार्य के लिए लगाना होगा। इस कार्य के लिए उसे अपने जैसे बहुत से लोगों को खड़ा करना होगा व इस अभियान में सहयोगी बनने के लिए उनका भाव जागृत करना होगा।
शिक्षा स्वरोजगार के लिए:-
शिक्षक के नाते अब हमें शिक्षा को क्लास रूम से बाहर ले जाने की पहल करनी होगी यानि उसकी व्यावहारिकता पर ज्यादा ध्यान देना होगा। विद्यार्थी के सर्वांगीण विकास को अपनी प्राथमिकता में लाना होगा। ताकि विद्यार्थी का कौशल उसके जीवन का हिस्सा बन सके और आगे उसे रोज़गार से जोड़ा जा सके। शिक्षा को फ़ॉर्मल एजुकेशन के साथ – साथ अनौपचारिक यानी इन-फ़ॉर्मल एजुकेशन बनाने की ओर भी अब हमें अपने प्रयासों को अधिक गति से बढ़ाने की आवश्यकता है। कोविड ने हमें आज इस विषय की ओर देखने की दृष्टि भी दी है ताकि भविष्य में किसी विकट परिस्थिति व आर्थिक संकट के समय स्व-रोज़गार के आधार पर हम आत्मनिर्भरता की भावना के साथ उस परिस्थिति का सामना कर सके।
सच्ची अभिव्यक्ति व प्रेरक शक्ति का दिन:- तो आईये, आज शिक्षक दिवस के दिन इन सभी बातों का पुन: स्मरण कर, अपने हौंसलों की उड़ान को ओर बढ़ाते है। शिक्षक के दायित्वबोध को और अधिक संकल्प के साथ निभाते है। डॉ. राधाकृष्णन सर्वपल्ली के जीवन के विभिन्न प्रेरक पहलुओं से सीख ले,प्रत्येक व्यक्ति तक शिक्षा को ले जाने के अपने प्रयास को गति देते है। मैं से प्रारंभ कर इस शिक्षा रुपी अलख को लाखों – लाखों का सपना बनाते हैं। वास्तव में शिक्षक होने के नाते आज शिक्षक दिवस के दिन डॉ. राधाकृष्णन सर्वपल्ली के प्रति व अपने आदर्श प्रेरणादायी शिक्षकों के प्रति यही हमारी सच्ची अभिव्यक्ति व प्रेरक शक्ति होगी।
(लेखक मीडिया विभाग, जे. सी. बोस विश्वविद्यालय, फरीदाबाद में एसोसिएट प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष है)
Dr. Pawan Singh | डॉ. पवन सिंह
Chairperson | अध्यक्ष
Associate Professor | सह-प्राध्यापक
Department of Communication & Media Technology | संचार एवं मीडिया प्रौद्योगिकी विभाग
J.C.Bose University of Science & Technology, YMCA, Faridabad |जे. सी. बोस विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, वाईएमसीए, फरीदाबाद
Haryana |हरियाणा
Mobile |चल दूरभाष +91 8269547207, 8103581648
सेबी प्रमुख माधवी बुच पर सुभाष चंद्रा के गंभीर आरोप
एस्सेल ग्रुप के चेयरमैन डॉ. सुभाष चंद्रा ने सेबी की चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच के खिलाफ कोर्ट में चुनौती देने का निर्णय लिया है। 2 सितंबर को मीडिया से बात करते हुए डॉ. चंद्रा ने कहा, “मैं सहयोग नहीं करूंगा, बल्कि मैं उनके खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाऊंगा और जल्द से जल्द उन्हें पद से हटाने की मांग करूंगा।”
एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में डॉ. चंद्रा ने सेबी की चेयरपर्सन पर मीडिया कंपनी के खिलाफ काम करने वाली “नकारात्मक ताकतों में से एक” होने का आरोप लगाया और प्रस्तावित जी-सोनी विलय की विफलता के पीछे उन्हें एक प्रमुख कारण बताया।
डॉ. चंद्रा ने 25 जनवरी 2019 की घटनाओं का जिक्र किया, जब जी के शेयर 33 प्रतिशत गिर गए थे और मार्जिन कॉल का भुगतान नहीं हो सका था। उन्होंने कहा, ” इसके बाद मैंने एक खुला पत्र जारी किया, जिसमें बताया गया कि समूह की सभी ऑपरेटिंग कंपनियां अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं और किसी प्रकार के तनाव में नहीं हैं।” उन्होंने पत्र में यह भी बताया कि मई/जून 2018 से समूह के खिलाफ नकारात्मक शक्तियां काम कर रही हैं।
डॉ. चंद्रा ने बताया, “हमने सेबी और अन्य संबंधित अधिकारियों से कई शिकायतें कीं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। इस पत्र में मैंने कर्जदाताओं से धैर्य रखने का अनुरोध किया और आश्वासन दिया कि जी के हिस्से की बिक्री प्रक्रिया पूरी होते ही कर्ज का भुगतान कर दूंगा।”
चंद्रा ने यह भी खुलासा किया कि 17 फरवरी, 2024 को एक व्यक्ति मंजीत सिंह ने उन्हें सेबी में मामला सुलझाने के लिए संपर्क किया था। “मैं आमतौर पर ऐसे व्यक्तियों से मिलने से बचता हूं, लेकिन चूंकि वे एक परिचित व्यक्ति के माध्यम से आए थे, मैंने उनसे मुलाकात की। उन्होंने दावा किया कि काम माधबी पुरी बुच और उनके पति के माध्यम से किया जाएगा और इसके लिए एक कीमत चुकानी होगी। मैंने उन पर विश्वास नहीं किया।”
उन्होंने आगे कहा, “हाल ही में हिन्डनबर्ग और आईसीआईसीआई बैंक द्वारा माधबी पुरी बुच और उनसे जुड़े लोगों के खिलाफ किए गए खुलासों को देखते हुए, ऐसा लगता है कि वह व्यक्ति सही हो सकता है।”
गौरतलब है कि पिछले साल अगस्त में एनसीएलटी द्वारा जी-सोनी विलय को मंजूरी मिलने के कुछ दिनों बाद, सेबी ने आदेश जारी कर जी के प्रमोटर्स पुनीत गोयनका और सुभाष चंद्रा को जी कंपनियों या सोनी के साथ विलय होने वाली नई इकाई में महत्वपूर्ण प्रबंधन भूमिकाओं में शामिल होने से रोक दिया था। सेबी की जांच आठ महीने में पूरी होने की उम्मीद है।
दूरदर्शन पर रामलला की आरती का सीधा प्रसारण
अयोध्या के राम मंदिर में रामलला के दर्शन करने के लिए देशभर से श्रद्धालु आते हैं। अब ये श्रद्धालु सिर्फ दर्शन ही नहीं, बल्कि रामलला की आरती में भी सम्मिलित होना चाहते हैं लेकिन कई बार वो ऐसा नहीं कर पाते है।
कइयों को रुकने की जगह नहीं मिल पाती या फिर कइयों को आरती का पास नहीं मिल पाता है लेकिन अब लोगों की यह समस्या भी जल्द दूर होने जा रही है। दरअसल, रामलला की सुबह 6 बजे होने वाली नित्य आरती का सीधा प्रसारण अब दूरदर्शन नेशनल पर किया जाएगा।
दूरदर्शन ने यह जानकारी स्वयं साझा की है, जिससे भक्तगण घर बैठे आसानी से आरती का दर्शन कर सकेंगे। वरिष्ठ पत्रकार अशोक श्रीवास्तव ने अपने एक्स हैंडल से एक पोस्ट की और लिखा, सभी राम भक्तों के लिए एक शुभ सूचना है।
कल से सभी राम भक्त अयोध्या के राम मंदिर में हर सुबह होने वाली राम लला की आरती का सीधा प्रसारण दूरदर्शन पर देख सकते हैं और प्रभु के श्री चरणों में अपने श्रद्धा सुमन अर्पित कर सकते हैं। समय सुबह 6 बजे होगा। इसके अलावा दूरदर्शन ने अपने यूट्यूब चैनल पर भी मंदिर के लाइव दर्शन की सुविधा शुरू की है।
ऐसे में अब भक्तों को अपने आराध्य श्री राम की आरती में शामिल होने का मौका घर बैठे ही मिल जायेगा।
पश्चिम रेलवे द्वारा 6 जोड़ी गणपति स्पेशल
ट्रेनों के 56 फेरों का परिचालन
मुंबई> गणपति महोत्सव के दौरान यात्रियों की सुविधा तथा त्योहारी सीजन में अतिरिक्त भीड़ को समायोजित करने के लिए पश्चिम रेलवे द्वारा वाया वसई रोड, पनवेल और रोहा स्टेशनों से विभिन्न गंतव्यों के लिए विशेष किराये पर 6 जोड़ी स्पेशल ट्रेनों के 56 फेरों का परिचालन किया जा रहा है।
पश्चिम रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी श्री विनीत अभिषेक द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार गणपति स्पेशल ट्रेनों का विवरण निम्नानुसार है:
1. ट्रेन संख्या 09001/09002 मुंबई सेंट्रल – ठोकुर साप्ताहिक स्पेशल (06 फेरे)
2. ट्रेन संख्या 09009/09010 मुंबई सेंट्रल– सावंतवाड़ी रोड स्पेशल (26 फेरे)
(मंगलवार/बुधवार को छोड़कर)
3. ट्रेन संख्या 09015/09016 बांद्रा टर्मिनस – कुडाल साप्ताहिक स्पेशल (06 फेरे)
4. ट्रेन संख्या 09412/09411 अहमदाबाद – कुडाल साप्ताहिक स्पेशल (06 फेरे)
5. ट्रेन संख्या 09150/09149 विश्वामित्री – कुडाल साप्ताहिक स्पेशल (06 फेरे)
6. ट्रेन संख्या 09424/09423 अहमदाबाद – मंगलुरु साप्ताहिक स्पेशल (06 फेरे)
ट्रेनों के समय, ठहराव और संरचना के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए यात्री कृपया www.enquiry.indianrail.gov.in पर जाकर अवलोकन कर सकते हैं।
अलका सिन्हा की डायरी किसी रोमांचक कहानी सी अनुभूति देती है — प्रो. गिरिश्वर मिश्र
नई दिल्ली। सुविख्यात चिंतक, समीक्षक एवं महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर गिरिश्वर मिश्र ने राजधानी स्थित साहित्य अकादेमी सभागार में अलका सिन्हा की डायरी पुस्तक ‘रूहानी रात और उसके बाद’ का लोकार्पण करते हुए अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि अलका सिन्हा की डायरी अनेक विधाओं को साथ लिए चलती है और समग्रता में यह डायरी कहानी का सा आनंद देती है। इसमें लंबी यात्राएं हैं तो कोविड जैसे जीवन के कठिन प्रसंग भी शामिल हैं। प्रो. मिश्र ने रचना और उसके माध्यम से लेखिका के व्यक्तित्व की विशेषताओं का उद्घाटन करते हुए कहा कि पुस्तक में व्यक्त अनुभवों से अलका सिन्हा का वह व्यक्तित्व दृष्टिगोचर होता है जो संवेदनशील है, विचारशील है और सबसे बड़ी बात, मानवीयता से परिपूर्ण है।
प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था ‘कस्तूरी’ द्वारा उनकी महत्वपूर्ण श्रृंखला ‘किताबें बोलती हैं — सौ लेखक, सौ रचना’ के अंतर्गत प्रसिद्ध कवि-कथाकार अलका सिन्हा की, किताबघर से प्रकाशित डायरी पुस्तक ‘रूहानी रात और उसके बाद’ पर आयोजित परिचर्चा कार्यक्रम में प्रो. जितेन्द्र श्रीवास्तव, प्रो. सत्यकेतु सांकृत और सहायक प्रोफेसर श्रीमती चैताली सिन्हा ने अपने विचार व्यक्त किए।
समीक्षक एवं सहायक प्रोफेसर चैताली सिन्हा ने देश-विदेश में डायरी लेखन के आरंभिक सूत्रों का संधान करते हुए परिचर्चा का आरंभ किया और भारत के विभिन्न साहित्यकारों द्वारा लिखी गई डायरी का उल्लेख किया। उन्होंने ‘रूहानी रात और उसके बाद’ को डायरी लेखन की परम्परा की एक महत्वपूर्ण कड़ी बताया।
मुख्य वक्ता के रूप में आलोचक प्रो. सत्यकेतु सांकृत ने डायरी लेखन की विधागत विशेषताओं का उल्लेख करते हुए कहा कि मोबाइल-इंटरनेट के बाद पत्र लेखन समाप्त होता गया है और डायरी केन्द्र में आती गई है। संवाद के मशीनी साधन उपलब्ध हो जाने के बाद से संवाद की दिशा अंतर्मुखी हो गई है। डायरी लेखक का स्वयं से संवाद है। डायरी में निजता की भाषा होती है और यह एक तरह का अंतरालाप है। अलका सिन्हा की विवेच्य पुस्तक में यह अंतरालाप तन्मयता से व्यक्त हुआ है। लेकिन यह सिर्फ निज तक सीमित नहीं रहता, उसमें दुनिया और समाज की चिंताएँ भी जगह पाती हैं। उन्होंने पुस्तक में यात्रा-आधारित संस्मरणों की ओर इंगित करते हुए उसके कुछ विचारोत्तेजक और मार्मिक प्रसंगों का उल्लेख किया।
मुख्य अतिथि के रूप में कवि एवं आलोचक प्रो. जितेन्द्र श्रीवास्तव ने पुस्तक में वर्णित अनुभवों का गंभीरता से विश्लेषण करते हुए इस बात को रेखांकित किया कि इस पुस्तक में संश्लिष्ट जीवन का कोई रोना नहीं रोया गया है, बल्कि संश्लिष्टता के बीच जो सुंदर है उसे बचा लेने की जद्दोजहद है। उनके अनुसार, यह पुस्तक उनके लिए नहीं है जो सिद्धावस्था को प्राप्त कर ज्ञानी बन चुके हैं, बल्कि यह पुस्तक उनके लिए है जिनमें अभी उत्सुकता और जिज्ञासा बची हुई है, जो जीवन और जगत को अभी और जानने-समझने के लिए प्रयत्नशील हैं।
लेखिका का अपनी डायरी से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रसंग साझा करते हुए आर्द्र हो जाना सभागार में उपस्थित श्रोताओं के मन को छू गया।
कार्यक्रम का आरंभ दिव्या जोशी के स्वागत वक्तव्य से हुआ। मनु पाण्डेय ने बड़े ही सुंदर ढंग से पुस्तक से एक अंश का पाठ किया। कार्यक्रम का कुशल और सुंदर संचालन साहित्य एवं कला अध्येता विशाल पाण्डेय एवं धन्यवाद ज्ञापन प्रियंका तिवारी द्वारा किया गया।
इस अवसर पर अनेक गणमान्य विद्वान, कवि, लेखक एवं साहित्य अध्येता उपस्थित थे जिनमें साहित्य अकादेमी के सचिव डॉ. श्रीनिवास राव, लक्ष्मीशंकर वाजपेयी, ममता किरण, अनिल जोशी, सरोज शर्मा, नरेश शांडिल्य, अनिल मीत, शशिकांत, नलिन विकास, डॉ. बरुण कुमार, रूमा शर्मा, विजय कुमार मिश्र, महेंद्र प्रजापति, कल्पना मनोरमा, वंदना बाजपेयी, डॉ. नीलम वर्मा, डॉ. अनिता वर्मा, अर्पणा संत सिंह, सुनीता पाहूजा आदि शामिल थे।
मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति पर करारा प्रहार
लोकसभा चुनावों में कतिपय सीटों का लाभ होने के कारण विपक्ष ने तुष्टिकरण को अपनी प्रमुख रणनीति बना लिया है और पहले की अपेक्षा अधिक विष वमन कर रहा है। स्थिति ऐसी है कि अब ये लोग मुस्लिम अपराधियों का भी खुल कर समर्थन कर रहे हैं फिर चाहे बलात्कार का आरोपी मोइद खान हो या थाने पर हमला करने वाला शहजाद। मजहब का वोट पाने के लिए उसके अपराधों को बढ़ावा देने वाली इस अपराधिक राजनीति के बीच कुछ प्रान्तों के मुख्यमंत्री साहस दिखाते हुए, “कानून के समक्ष प्रत्येक नागरिक एक समान है” की भावना वाले निर्णय लेकर तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले दलों को उचित उत्तर देने का प्रयास कर रहे हैं ।
इसमें सर्वाधिक अग्रणी भूमिका असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्व सरमा निभा रहे हैं। भारत का सीमावर्ती राज्य असम, बांग्लादेश के साथ एक लंबी खुली सीमा से जुड़ा हुआ है और बांग्लादेशी घुसपैठ व रोहिंग्या आदि के कारण विकराल समस्यायों से जूझ रहा है।
असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्व सरमा ने घोषणा की है कि उनकी सरकार द्वारा अगले वर्ष राज्य में जनसाख्यिंकी में बदलाव पर एक श्वेत पत्र लाया जायेगा।
असम में लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को राज्य की 14 लोकसभा सीटों में से कम से कम 12 सीटों पर विजय प्राप्त करने की आशा थी किंतु उसे केवल 9 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था और 5 सीटें इंडी गठबंधन को मिली थीं । भाजपा द्वारा चुनाव परिणाम की समीक्षा में पता चला कि 5 जिलों की जनसांख्यिकी बदल चुकी है जहां पर मुस्लिम अल्पसंख्यक नहीं हैं। असम के मुख्यमंत्री ने बयान दिया कि हमने पांच जिलों को खो दिया है और अब हम अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उसी कड़ी में मुख्यमंत्री एक के बाद एक निर्णय कर रहे हैं। असम विधानसभा के सत्र के दौरान एक विधेयक प्रस्तुत किया गया है जिसके अनुसार अब असम में मुस्लिमों की शादी और तलाक का पंजीकरण अनिवार्य कर दिया गया है।
असम विधानसभा ने मुस्लिम शादी और तलाक बिल- 2024 पारित किया है जिसके साथ ही लगभग 90 साल पुराना अब असम मुस्लिम निकाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम 1935 निष्प्रभावी हो गया है। हालांकि मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि काजियों द्वारा किये गये पहले के विवाह वैध रहेंगे और नये विवाह ही इस कानून के दायरे में आयंगे। मुख्यमंत्री ने कहा कि हम मुस्लिम पर्सनल ला के तहत इस्लामी रिवाजों से होने वाली शादियों में हस्तक्षेप नहीं कर रहे हैं।
इस विषय पर चर्चा के दौरान मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारा उद्देश्य न केवल बाल विवाह को समाप्त करना अपितु समानान्तर व्यवस्था से छुटकारा पाना भी है। हम मुसलमानों के विवाह और तलाक के पंजीकरण को सरकारी प्रणाली के अंतर्गत लाना चाहते हैं। नये कानून से बाल विवाह पर भी रोक लगेगी और वैसे भी बाल विवाह पूरी तरह से गैरकानूनी है। ज्ञातव्य है कि असम में आज भी बाल विवाह की कुप्रथा जारी है। पूर्व के कानून की आड़ में बांग्लादेशी घुसपैठिये व स्थानीय मुसलमान असम की बच्चियों का जबरन व धोखे से निकाह करवा रहे हैं।अब नये कानून से इसकी कुछ रोकथाम अवश्य होगी।
असम की सरकार व विधानसभा ने हर शुक्रवार जुमे की नमाज के लिए राज्य में मुसलमानों को मिलने वाले ब्रेक को पूरी तरह से समाप्त कर दिया है।असम के मुख्यमंत्री ने इस कदम की घोषणा करते हुए कहा कि इस तरह का नियम बनाना मुस्लिम लीग की सोच थी, हमने 90 साल बाद गुलामी की मानसिकता के प्रतीक उपनिवेशवाद के बोझ को अब समाप्त कर दिया ह। मुख्यमंत्री का कहना है कि हमने असम विधानसभा में उत्पादकता को प्राथमिकता दी है। असम विधानसभा में नमाज के लिए अवकाश की प्रथा मुस्लिम लीग के सैयद सादुल्ला ने 1937 में प्रारम्भ की थी। मुख्यमंत्री ने इस ऐतिहासिक निर्णय के लिए विधानसभा अध्यक्ष बिस्वजीत दैमारी और विधायकों के प्रति आभार व्यक्त किया।
असम सरकार के निर्णय पर मुस्लिम संगठन व इंडी गठबंधन के नेता असम सरकार व भाजपा पर हमलावर हैं। उत्तर प्रदेश में समाजवादी हो या फिर बहुजन समाजवादी पार्टी सभी बौखला गए हैं, बिहार के विपक्षी दलों के नेता भी पीछे नहीं है क्योंकि मुस्लिम तुष्टिकरण का कार्ड तो सभी खेलते हैं।
सबसे चर्चित व खतरनाक बयान बिहार के राजद नेता तेजस्वी यादव का रहा। तेजस्वी यादव ने असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्व सरमा को उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का चाइनीज वर्जन करार दिया। तेजस्वी यादव ने इस नस्लवादी टिप्प्पणी से पूर्वोत्तर राज्यों के प्रति अपनी व इंडी गठबंधन के दूसरे नेताओं मानसिकता का ही प्रदर्शन किया है। तेजस्वी का असम के मुख्यमंत्री को लेकर दिया गया बयान राहुल गांधी के तथाकथित गुरु सैम पित्रोदा के बयान को ही आगे बढ़ा रहा है। विपक्ष का कहना है कि भाजपा सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करने के लिए मुसलमानों पर निशाना साध रही है और उन्हें जानबूझकर परेशान किया जा रहा है। विपक्ष यह भी आरोप लगा रहा है कि चूँकि असम के मुख्यमंत्री कांग्रेस से आए हैं इसलिए वो संघ के निकट आने के लिए यह सब नाटक कर रहे हैं।
जबकि वास्तविकता ये है कि सभी पूर्वोत्तर बांग्लादेशी रोहिंग्याओं की घुसपैठ व चर्च द्वारा प्रेरित मतांतरण के प्रयास से बुरी तरह से त्रस्त हैं और रही सही कसर कांग्रेस व मुस्लिम लीग आदि की मुस्लिम तुष्टिकरण की विकृत राजनीति पूरी करती रही है। असम का जनसांख्यिकीय संतुलन तीव्रता से बिगड़ रहा है और राज्य को पहली बार ऐसा मुख्यमंत्री मिला है जो असम की संस्कृति का अस्तित्व बचाने के लिए साहस दिखा रहा है।
विरोधियों को बताना चाहिए कि जुमे की नमाज पर अवकाश रद्द होना संविधान का उल्लंघन कैसे हो गया ? भारत का संविधान तो स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात लागू हुआ है जबकि 1937 में तो भारत पर अंग्रेजों की ही मानसिकता चल रही थी। संविधान का उल्लंघन तो विपक्ष कर रहा है।अब जब भारत को स्वतंत्र हुए 75 वर्ष हो चुके हैं तो देश में गुलामी की मानसिकता वाले कानून आखिर क्यों जीवित रहें? कांग्रेस व इंडी गठबंधन के नेताओं ने जिस प्रकार से असम सरकार के फैसलों का विरोध किया वह उनकी मुस्लिम तुष्टिकरण की मानसिकता ही है इससे यह भी साबित होता है कि हिंदुओं की जनसंख्या में तीव्रता से जो कमी आ रही है उसके पीछे भी कांग्रेस व इंडी गठबंधन की ही नीतियां हैं।
प्रेषक – मृत्युजंय दीक्षित
फोन नं. – 919857154
इंसानियत,पृथ्वी और जलवायु को बचाने के लिए दुनिया को जगाने निकले हैं भारत के कलाकार!
राजनेता हर साल गाहे बगाहे जलवायु परिवर्तन पर सम्मेलन करते रहते हैं,पर कर कुछ नहीं पाते । जलवायु परिवर्तन सम्मेलन पर जितना खर्च होता है उतने खर्च में दुनिया के बच्चों का पोषण हो सकता है। संयुक्त राष्ट्र संघ एक खिलौना बनकर रह जाता है जब एक ध्रुवीय विश्व में उभरती अर्थव्यवस्थाओं का शक्ति प्रदर्शन जलवायु पर कहीं कोई समझौता नहीं होने देते !
विकास ने पृथ्वी की ओज़ोन परत को फाड़ कर दुनिया को तबाही के कगार पर खड़ा कर दिया है। पृथ्वी का तापमान बढ़ गया है। बुखार में धरती तप रही है इसलिए हर ओर अति वृष्टि हो रही है। कहीं बेहिसाब सूखा,कहीं बेहिसाब बारिश , कहीं बाढ़, कहीं भूस्खलन ,कहीं तूफान ! गांव हो , शहर हो ,महानगर हों मरुभूमि हो या पहाड़ सब इसका शिकार हैं । किसान तबाह हैं ! सड़कें नदी बन गई हैं और हवाई जहाज एयरपोर्ट पर नाव की तरह तैर रहे हैं।
दुनिया में जानमाल की हानि हो रही है। प्रकृति मनुष्य की शत्रु बन गई है। या यूं कहें प्रकृति पर कब्ज़ा करने की लालसा और अंधाधुंध विकास में मनुष्य आत्मघाती हो गया है। इस विकास ने प्रकृति को अपना शत्रु बना सब जगह विध्वंस का मंजर खड़ा कर दिया है।
विकास ने सबसे ज्यादा शिक्षित वर्ग की मति भ्रमित की है । सत्ताधीश मां के नाम एक पेड़ लगाने का झांसा देकर जनता को भावुकता में झोंक जंगल काट रहे हैं। जंगलों को तबाह कर रहे हैं। जंगलों को तबाह कर दिया है। मनुष्य बगीचे बना सकता है,पेड़ लगा सकता है,चिड़िया घर बना सकता है पर जंगल नहीं बना सकता । जंगल का निर्माण प्रकृति करती है। जंगल विविधता, निर्सग चक्र के साथ पूरी जैव संस्कृति समाए रहता है जो जलवायु और इकोलॉजी को संतुलित,संवर्धित और संरक्षित रखता है।
भारत का शिक्षित वर्ग जंगल काट बहुमंजला इमारतों में एसी लगाकर खुद के विकसित होने का प्रमाण समझता है जबकि एक पेड़ सौ एसी से ज्यादा सशक्त है। विकास का मति भ्रमित मापदंड हैं जो सबसे ज्यादा,जल,वायु ,ऊर्जा खर्च करते हैं वो अमीर और जो कम से कम संसाधनों में गुजर बसर करते हैं वो अमीर!
जबकि है उल्टा न्यूनतम संसाधनों में जीने वाले ,जंगलों को संरक्षित करने वाले पृथ्वी के ,प्रकृति के मित्र हैं और ज्यादा ऊर्जा का भोग करने वाले शिक्षित और विकसित जलवायु , इकोलॉजी ,प्रकृति और पृथ्वी के शत्रु हैं !
दुनिया के इसी मनोभाव को बदलने के लिए एक अनोखे मिशन पर निकले हैं भारत के पांच बच्चे !
यह बच्चे अपने नाटक ‘ दी .. अदर वर्ल्ड ‘ से दुनिया को जागरूक करने के लिए 74 दिन तक यूरोप की यात्रा करेंगे। इस यात्रा में स्कूल, रंगगृहों और विभिन्न समुदायों में इस नाटक का मंचन करेंगे ।
जर्मनी के किंडर कुल्टूर कारवां द्वारा आयोजित इस बाल संस्कृति महोत्सव में दुनिया के विभिन्न महाद्वीपों के सांस्कृतिक बाल और युवा समूह हिस्सा ले रहे हैं।
अंतर महाद्वीपीय संस्कृतियों का यह अनोखा संगम होगा !
थियेटर ऑफ़ रेलेवंस नाट्य दर्शन ने विगत 32 वर्षों से दुनिया को बेहतर और मानवीय बनाने में अपने रंगकर्म से भारत ही नहीं विश्व में ख्याति प्राप्त की है । उसी कड़ी में यूरोप में मंचन हेतु इकोलॉजी, पर्यावरण ,जलवायु को संरक्षित करने के लिए नया नाटक सृजित किया है ‘दी.. अदर वर्ल्ड ‘ ! इस नाटक का जर्मनी और यूरोप के विभिन्न शहरों में मंचन होगा जैसे कोलोन,हैमबर्ग, रोडेफ्जल, वूफेन, रोदेस्तान, आचेन ,लेवरकुसेन आदि !
रंगचिंतक मंजुल भारद्वाज लिखित – दिग्दर्शित नाटक
दी.. अदर वर्ल्ड ‘ को मंचित करने वाले बाल कलाकार हैं नेत्रा देवाडिगा,प्रांजल गायकवाड, राधिका गाडेकर ,तनिष्का लोंढे और संजर शिंदे !
थियेटर ऑफ़ रेलेवंस नाट्य सिद्धांत की अभ्यासक रंगकर्मी जानीमानी अभिनेत्री अश्विनी नांदेड़कर और सहयोगी सायली पावस्कर ,कोमल खामकर के मार्गदर्शन में इन बाल कलाकारों ने जंगलों में बिना बिजली, टेप वाटर के प्रकृति और आदिवासियों के बीच रहकर खुले आसमान में चांद सितारों को देखते हुए,न्यूनतम ऊर्जा और संसाधनों में जीते हुए नाटक
‘ दी.. अदर वर्ल्ड ‘ तैयार किया है!
12 सितंबर को यूरोप के लिए उड़ान भरेंगे यह बाल कलाकार थियेटर ऑफ़ रेलेवंस के प्रेणता रंगचिंतक मंजुल भारद्वाज के साथ !
नाटक ‘ दी.. अदर वर्ल्ड ‘ पंच तत्वों की उत्पति से जीव और मनुष्य सृजन यात्रा को दर्शाता है। कैसे आइस युग से होते हुए मनुष्य पाषाण युग से खेती और पशु पालन तक पहुंचा। संपत्ति का निर्माण करते हुए दासता के अंधकार सामंतवाद में धँस गया। औधोगिक क्रांति ने मास प्रोडक्शन के जरिए पूंजीवाद और साम्यवाद को जन्म दिया । मानव कल्याण के सारे रास्ते इकोलॉजी ,पर्यावरण और जलवायु को ध्वस्त करते गए और आज आत्मघाती हो गए हैं।
नाटक मनुष्य के विकास की विकृत समझ को सही दिशा देते हुए मानवता,पृथ्वी,इकोलॉजी और जलवायु को सहेजने ,संरक्षित कर संवर्धित करने का अद्भुत कलात्मक सौंदर्य कलाकर्म है!