Monday, November 25, 2024
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” कुछ भाव बटोरे हैं ” का लोकार्पण

कोटा। साहित्यकार भगवत सिंह मयंक की माहिया छंद संग्रह ” कुछ भाव बटोरे हैं ” का लोकार्पण रविवार को  हिन्दी साहित्य समिति कोटा द्वारा रेल्वे कर्मचारी संघ कार्यालय के सभागार में समरोहपूर्वक किया गया। समिति अध्यक्ष डा.रघुराज सिंह कर्मयोगी, मुख्य अथिति रेलवे के वित्त अधिकारी राजकुमार प्रजापति, विशिष्ठ अथिति साहित्यकार भगवती प्रसाद गौतम , जनसंपर्क विभाग के पूर्व संयुक्त निदेशक डॉ.प्रभात कुमार सिंघल एवं अशोक वशिष्ठ ने पुस्तक का लोकार्पण किया।
मुख्य वक्ता के रूप में रामावतार सागर एवं रघुनदंन हठीला ने पुस्तक पर प्रकाश डाला।साहित्यकार महेश पंचोली,ज्ञान गंभीर एवम् टी.एस.हाडा ने रचनाऐं प्रस्तुत की। प्रारंभ में डॉ.वीना अग्रवाल ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। संचालन कमलेश कमल ने किया।
साहित्यकार रामेश्वर शर्मा ‘ रामू भैया ‘,विष्णु हरिहर,योगीराज योगी,सुरेन्द्र सिंह गौड़, सलीम,स्वतंत्र,हलीमआईना,बद्रीलाल दिव्य,मनु वशिष्ठ,डा.रौनक रशीद,राममोहन कोशिक,प्रेम शास्त्री,हेमराज सिंह ‘ हेम ‘ हेम,प्रोफेसर आदित्य गुप्ता,रामकरण प्रभाती,ऐ.जमील कुरैशी,देशबन्धु पांडे सहित बड़ी  संख्या में साहित्यकार एवं गणमान्य उपस्थित रहे। पुस्तक लेखक का कई संस्थाओं द्वारा सम्मान किया गया।

साहित्यकार रामस्वरूप मूंदड़ा: सृजन गंगा से बहती इंद्रधनुषी काव्य धारा

जब अंधियारे में अनजाने चेहरे,
मेरे पथ पर क्षण भर का साथ निभाते है ।
धुल जाते है अवसाध युगों के पल भर में,
परिवेश नये पहने सपने ललचाते है ।
ये थके चरण, ले नई लगन,
मंजिल को बढ़ते जाते है ।
सुन पाते हैं दो शब्द मधुर जब जीवन में,
है मोल बहुत, सौ कटु शब्द गल जाते हैं ।
यों दर्द जुड़ा है साथ सभी के अंतर में,
कुछ रोते हैं, कुछ फिर भी जब मुस्काते हैं ।
ये खिले सुमन, बह रही पवन,
जीवन का गीत सुनाते हैं ।
अक्सर आशा का बीज वहीं पर जमता हैं,
जब दो टूटे विश्वास यहां पर मिलते हैं ।
पीड़ा की गोदी सूनी नहीं हुआ करती,
उल्लास उसी के हाथों में ही पलते हैं ।
ये झुका गगन, ये उठे नयन,
दूरी को भरते जाते हैं ।
इस भावपूर्ण और अर्थपूर्ण गीत के रचयिता
रामस्वरूप मूंदड़ा  देश के साहित्यकारों में राजस्थान के बूंदी शहर में निवास करने वाले  एक ऐसे साहित्यकार हैं जो किसी विधा की सीमा में बंध कर नहीं रहे और सभी विधाओं गीत, ग़ज़ल, हाइकु, मुक्तक कविताएं, दोहे, आलेख और समीक्षा को अपने लेखन का आधार बनाया हैं। आपका राष्ट्रभाषा हिंदी के साथ-साथ राजस्थानी हाड़ोती भाषा पर भी समान अधिकार है और अपने साहित्य सृजन और साहित्यिक कार्यों से  अपनी पहचान बनाई है। इनकी रचनाएं 1957 से ही देश के पत्र –पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। आपने देश के नामी कवियों के साथ देश में  आयोजित विभिन्न अखिल भारतीय सम्मेलनों में भाग ले कर राजस्थान का नाम रोशन किया है।
 हाइकु कविता :
अहमदाबाद से प्रकाशित विश्व हाइकु कोष में आपके हाइकु शामिल होना साहित्य जगत के लिए गर्व की बात है।  देश में गिनती के हाइकु लेखन साहित्यकारों में शामिल रामस्वरूप मूंदड़ा बताते हैं कि यह जापानी कविता का सबसे लघु रूप है।  इन्होंने 1970 में हाइकु कविता लिखना शुरू किया और अब तक 1200 से अधिक हाइकु लिख चुके हैं। इनके हाइकु में अध्यात्मिक चेतना, दार्शनिकता, राजनीतिक, पारिवारिक समस्याओं, विडंबनाओं, धात प्रतिघात, प्रकृति चित्रण, जीवन मूल्यों, दरिद्रता, पाश्चात्य संस्कृति आदि विषयों का समावेश साफ देखा जा सकता है। इनकी कुछ हाइकु कविताओं की बानगी देखिए
1- संगीत सुनें
सबसे अच्छी लगी
  माँ की लोरी !
2- सब मेरे हैं
यह पूरा संसार
 सारा ब्रह्माण्ड !
3- शाश्वत स्वर
कुछ स्थायी नहीं हैं
 दुःख न सुख !
दोहा :
आप की दोहा लेखन की शैली भी आपकी अपनी अनूठी कल्पनाशीलता को दर्शाते हैं।
1-
चिड़िया फुरफुर कर उड़ी, पत्ता हिलकर मौन ।
सब अपने मन की करें, किसकी सुनता कौन ॥
2. काली रातें बेबसी, खामोशी तन सर्द ।
मिला वही छलता गया, किससे कहते दर्द ॥
3- कंचन बरनी बेलडी, फूली दिन दो चार ।
रूप, रस और गंध का, समय रहा आधार ॥
4- स्वारथ के संबंध हैं, मतलब के सब यार ।
घर बाहर देखो कही, सार यही संसार ॥
 लघु कविता :
 हिंदी की लघु कविताएं लिखने में भी आपका कोई सानी नहीं है। आपने न जाने कितनी लघु कविताएं रची हैं और जब सुनाई तो खूब दाद पाई है। एक लघु कविता की बानगी देखिए……
दुनिया को जानने वालों की
भीड़ बढ गई है
साधन बढ़ गए हैं
हर व्यक्ति विशेषज्ञ की तरह
हवाई घोड़े पर सवार है
सोचने से पहले
बोलता जा रहा है ।
हम दूसरों को खोजने में लगे ही निरन्तर
अपना पता नहीं ।
यात्रा जारी रहनी चाहिए
बड़ी बात अज्ञात न रह जाए
वह है
आत्मा और परमात्मा
पहले खुद को जानों
फिर परमात्मा को
जो सबका मालिक है
उसको जानने के बाद क्या शेष रहेगा !
 ग़ज़ल :
आप गज़ल लेखन विधा में भी आप उतने ही पारंगत है जितने अन्य विधाओं में। इनकी गज़ल भी कितनी काव्यमय होती है उतनी ही अर्थपूर्ण भी। आपकी गज़ल का एक उम्दा नमूना देखिए……..
सामने आता रहा तो कभी छिपता रहा,
जो नजर में बस गया था उम्र भर दिखता रहा
प्यार पर जिसने लिखा है वो कभी मिटता नहीं
अगणित सदियां गई किस्सा मगर चलता रहा
जिंदगी में यही सच है और बाकी झूठ है,
राह चुन ली, चल पड़ा, मंजिल मिली, हंसता रहा
यह रही रिश्तों की
कीमत आज के इस दौर में,
एक तिनके की तरह रिश्ता उड़ा, उड़ता रहा
मैं नहीं हूँ यह तो सच है पर मुकम्मल कौन है
खामियां मुखड़े में कितनी, आईना गिनता रहा
अपने – अपने दर्द सबके, दर्द के मारे सभी,
दर्द अपना ही बड़ा, सबको यहां लगता रहा
हर समय संभव नहीं है हाथ में कागज – कलम
दिल के लंबे पेज पर अंगुली हिला लिखता रहा
 मुक्तक :
मुक्तक लेखन से भी इन्होंने साहित्य को समृद्ध बनाया। मुक्तक लेखन की भी इनकी अपनी शैली है। एक नमूना देखिए……..
1
रोज पौधे में दिया जल, यह भी सृजन हो गया ;
वृद्ध को दे दिया सहारा,
यही  अर्चन  हो गया ;
आपने जिस दिन किसीकी वेदना को पढ़ लिया
आप ये सच मानिये, ईश्वर का दर्शन हो गया !
2-
चीरना है ये अंधेरा, हाथ में दीपक उठाओं ;
टिक न पायेगी मुसीबत, तुम जरा – सा मुस्कराओं ;
पीर का पर्वत
पिघलकर एक झरनें – सा बहेगा
हाथ थामों, साथ चल दो, जिंदगी का गीत गाओं !
 प्रकाशन :
रचनाकार्णकी अब तक तीन पुस्तकें हाइकु काव्य संग्रह  ” ध्वनि ” , काव्य संग्रह
” कविताओं के इन्द्रधनुष “,  ग़ज़ल संग्रह
” वक्त हाथ में कलम लिए है ”  प्रकाशित हो चुकी हैं। इनका एक गीत संग्रह और एक मुक्तक संग्रह दो पुस्तकें प्रकाशनाधीन हैं।
देश भर के सभी प्रांतों से प्रकाशित 70 साझा काव्य संकलनों में रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। इन्होंने कई पत्रिकाओं का संपादन और सह संपादन भी किया हैं। आप पुस्तक समीक्षा में भी दक्ष हैं और 42 से अधिक पुस्तकों की समीक्षा कर 11 पुस्तकों की भूमिका भी लिख चुके हैं। देश और विदेश की पैट्रिक में आपकी हाइकु और अन्य रचनाएं प्रकाशित और आकाशवाणी केंद्र से रचनाओं का प्रसारण होता है।
सम्मान :
आपको सामाजिक एवं साहित्यिक उपलब्धियों के लिए कई संस्थाओं के द्वारा देश की तीन दर्जन से अधिक उपाधि एवं सम्मान से आपको सम्मानित किया गया है। जिनमें “समाज गौरव” भारतीय राष्ट्रीय सैन समाज एवं पिछड़ा वर्ग महासंघ, दिल्ली, “आचार्य” जैमिनी अकादमी, पानीपत हरियाणा, “कवि कोकिल” आचार्य श्री चन्द्र कविता महाविद्यालय एवं शोध संस्थान हैदराबाद, “डा अम्बेडकर फैलोशिप” डॉ सोहन पाल सुमनाक्षर राष्ट्रीय अध्यक्ष, दिल्ली, ” युग पुरुष” कादम्बिरी साहित्य परिषद् चिरमिरी, सरगुजा, (मध्य प्रदेश), “काव्य किरीट सम्मान” 1998 भाव सृष्टि समाकलन समिति, रामपुरा जालौन, उत्तर प्रदेश प्रमुख सम्मान और पुरस्कार सहित देश की अन्य संस्थाओं द्वारा भी अलंकरणों से सम्मानित किया गया। आपको वर्ष 2024 में
आर्यावर्त साहित्य समिति कोटा द्वारा ” आर्यवर्त साहित्य रत्न 2024″ सम्मान और साहित्यकार व शिक्षा विद दिवंगत शिवप्रसाद शर्मा की जन्म शताब्दी समारोह में ” शिवप्रसाद शर्मा स्मृति काव्य रत्न सम्मान,2024 ” से सम्मानित किया गया।
परिचय :
इंद्रधनुषी काव्य धारा के रचनाकार रामस्वरूप मूंदडा का जन्म बूंदी शहर में 26 नवम्बर 1940 को पिता स्व. हरिशंकर एवं माता जी स्व. पुष्पा देवी के आंगन में हुआ। आपने बी. कॉम. की शिक्षा प्राप्त की और आपको आचार्य की मानद उपाधि पानीपत हरियाणा से प्राप्त हुई है। आप पुलिस विभाग में ओ. एस. के पद से कोटा से सेवानिवृत्त हुए है।
आप द अमेरिकन बायोग्राफीकल इन्स्टीटयूट् कैरोलिना (यूएस ए) के रिसर्च बोर्ड आफ एडवाइजरी के सन् 2000 से सदस्य हैं। साहित्यिक अभिरूचि के साथ – साथ आप अनेक सामाजिक एवं साहित्यिक संगठनों से जुड़े हैं। आप 1960 से बूंदी में गठित हिन्दी साहित्य समिति, बूंदी के आदिनांक अध्यक्ष हैं।
वर्तमान में 83 वर्ष की आयु में साहित्य सृजन में पूर्ण सक्रिय हैं। चलते – चलते…
दुर्घटना को
समय बीत गया है
लाश तो कभी की उठाली गई
बहा हुआ रक्त सूख गया है
कभी नहीं देखे चित्र के आकार में
और मैं उसी पुराने चित्र की
स्थितियां जी रहा हूं
जो कभी था ।
परम्परागत स्थान पर
राख बन चुका होगा अब
शहर का विस्मृत चेहरा ।
गेरुई शाम पाकर
शहर का बचपन
पार्को में कूद रहा होगा,
रेस्त्राओं के कहकहों में
ताका . झांकी करती जवानी
खो रही होगी
और बुढ़ापा नींद की प्रतिक्षा में
खटिया पर खांस रहा होगा
भीड़ तो छंट गई है
किन्तु मैं
अभी तक परछाइयों में घिरा हूँ
और मैं हूँ
जो अभी तक खड़ा हूँ चौराहे पर
उसी दुर्घटना – ग्रस्त अवस्था में ।
संपर्क :
पथ6, द -489,
रजत कॉलोनी,
बूँदी-323001 (राजस्थान )
मो . 9414926428/ 8209859025
—————-
डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
( लेखक राजस्थान के कोटा में रहते हैं और  विगत 45 वर्षों से साहित्य, संस्कृति, पर्यटन और विविध विषयों पर निरंतर लिख रहे हैं )

सितंबर माहः राजभाषा हिन्दी का माह और ओड़िशा में हिन्दी की वास्तविक स्थिति

पहली सितंबर,2024 से पूरे भारत के केन्द्र सरकार के सभी विभागों तथा सभी उपक्रमों में हिन्दी माह के रुप में मनाया जा रहा है। कहीं पर हिन्दी दिवस(14 सितंबर),कहीं पर हिन्दी सप्ताह,कहीं पर हिन्दी पखवाड़ा तथा कहीं-कहीं पर इसे राजभाषा हिन्दी माह के रुप में मनाया जा रहा है।ओड़िशा में हिन्दी की वास्तविक स्थिति संतोषजनक मानी जा सकती है जहां के भुवनेश्वर स्थित राज्य विधानसभा सचिवालय में 1986-87 में हिन्दी दिवस मनाया गया था।

गौरतलब है कि वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत महाकाव्य में कुल लगभग 400 तीर्थस्थलों का वर्णन है । महाभारत के आदिपर्व में इन्द्रद्युम्न तीर्थ का भी वर्णन है जिसका सीधा संबंध ओड़िशा प्रदेश के जगन्नाथ धाम पुरी से है जहां पर आनेवाले अधिकांश भक्तों के विचार-विनिमय की मुख्य भाषा जनसम्पर्क के रुप में हिन्दी ही थी। यहीं नहीं 12वीं शताब्दी से लेकर आजतक अगर ओड़िया भाषा के उद्भव और विकास पर विचार किया जाय तो निश्चित रुप से ओड़िशा में जनसम्पर्क की एक लोकप्रिय भाषा के रुप में हिन्दी का विकास हो चुका था जिसको और अधिक विकसित किए ओड़िशा के प्रमुख व्यापारी केन्द्रों(शहरों) के अप्रावासी हिन्दी व्यापारी,कारोबारी और छोटे-बड़े उद्योगपति आदि।

खुशी की बात यह है कि अर्द्ध मागधी हिन्दी भाषा परिवार के तहत मैथिली,बंगाली और ओड़िया आदि भाषाएं आरंभ से ही शामिल हैं। सच तो यह है कि भारतीय संघ की सभी राजभाषाएं आपस में एक-दूसरे के लिए बहन के समान हैं। प्रतिवर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को पुरी धाम में अनुष्ठित होनेवाली भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा में आनेवाले लाखों श्रद्धालु जगन्नाथ भक्तों में हिन्दीभाषी भक्तों की संख्या लगभग 70 प्रतिशत रहती है।1200 से लेकर 1500 वर्ष पूर्व भी भारतीय आर्यभाषा परिवार के पूर्वी मागधी के अंतर्गत ओड़िया भाषा शामिल है।

यही नहीं, हाल ही में(5सितंबर,2023 को) नई दिल्ली में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन,2023 के भारत मण्डपम के मुख्य आकर्षण का केन्द्र भी कोणार्क के सूर्यमंदिर का पहिया रहा जो विश्व में कालचक्र का प्रतीक है। 18सितंबर,2023 को भारत के माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी सबसे बडी महात्वाकांक्षी योजनाः विश्वकर्मा योजना को लागू कर तथा ओडिशा के विश्वकर्माओं को सम्मानित यह सिद्ध कर दिया कि ओडिशा की कलाएं तो उत्कृष्ट हैं ही साथ ही साथ ओड़िशा में हिन्दी की स्थिति भी अच्छी है।

विगत अगस्त 28,2024 को स्थानीय स्वस्ति प्रीमियम होटल,जयदेव विहार में नेशनल डेली सन्मार्ग,भुवनेश्वर ने अपना हिन्दी पुरस्कार सम्मेलन आयोजित कर यह सिद्ध कर दिया कि ओड़िशा में हिन्दी को जन-जन तक पहुंचाने में हिन्दी समाचारपत्रों की भी अहम् भूमिका है।

गौरतलब है कि खडीबोली हिन्दी के जन्मदाता भारतेन्दु हरिश्चंद्र मात्र 15 साल की उम्र में अपने माता-पिता के साथ जगन्नाथ पुरी आकर भगवान जगन्नाथ जी से खडी बोली हिन्दी में लेखन का दिव्य आशीर्वाद लिए।हिन्दी की अमर रचना श्रीरामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास भी पुरी धाम आकर चतुर्धा देवविग्रहों में अपने धनुषधारी श्रीराम आदि के दिव्य दर्शन किए।कबीरदास भी यहां पर आये। मीराबाई भी यहां पर आईं।गुरुनानकदेव जी यहां पर आये। चैतन्य महाप्रभु भी यहां पर आये।हिन्दी वैयाकरण कामता प्रसाद गुरु ने भी भगवान जगन्नाथ के दिव्य दर्शनकर हिन्दी के महान वैकारण बने।

यही नहीं,ओड़िशा के साथ-साथ सम्पूर्ण भारत तथा विदेशों में आज हिन्दी दिवस,हिन्दी सप्ताह, हिन्दी पखवाडा तथा हिन्दी माह मनाने का औचित्य इसलिए भी है कि भारत में लगभग 850 भाषाएं बोली जातीं हैं जिनमें हिन्दी जनसम्पर्क की सबसे सशक्त तथा सबसे लोकप्रिय भाषा है।गौरतलब है कि 1918 में महात्मागांधी ने हिन्दी साहित्य सम्मेलन में हिन्दी को राजभाषा बनाने की बात कही थी क्योंकि उनके अनुसार हिन्दी भारतीय जनमानस की भाषा है।इसीलिए जब भारत का लिखित संविधान तैयार हुआ तथा उसे जब 26 नवंबर,1949 को स्वीकार किया गया तो संविधान के भाग 17 के अनुच्छेद 343(1) में भारतीय संघ की राजभाषा के रुप में हिन्दी को स्वीकार कर लिया गया जिसकी लिपि देवनागरी रखी गई जबकि अंकों को अंग्रेजी रुप में मान्यता प्रदान की गई।14 सितंबर,1949 को संविधानसभा ने यह भी निर्णय लिया कि हिन्दी एक तरफ जहां भारतीय संघ की राजभाषा होगी वहीं केन्द्र सरकार की आधिकारिक भाषा हिन्दी ही होगी।हिन्दी को प्रत्येक क्षेत्र में प्रसारित करने के लिए इसे 14 सितंबर,1953 को पूरे भारत में हिन्दी दिवस के रुप में सबसे पहले मनाया गया।

हिन्दी साहित्यकारों में काका कालेलकर,हजारीप्रसाद द्विवेदी तथा सेठ गोविंद दास आदि ने इसका पूर्ण समर्थन किया। हिन्दी भाषा प्रेम की भाषा है।इसे भारत के लगभग 77 प्रतिशत लोग समझते और बोलते हैं।यह भारत की अस्मिता,गौरव और गरिमा की पहचान है।इस भाषा में जैसा बोला जाता है वैसा ही लिखा जाता है।यह भारत के अनेक प्रदेशों की मातृभाषा तथा राजभाषा है।पूरे विश्व में बोली जानेवाली तीन प्रमुख भाषाओः अंग्रेजी और चीनी के बाद हिंदी तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। हिन्दी की शब्द-सम्पदा सबसे अधिक समृद्ध है। हिन्दी में चार प्रकार के शब्द हैं-तत्सम,तत्भव,देशज तथा विदेशी शब्द।यह भी सत्य है कि जब तक हिन्दी का प्रयोग पूर्ण रूप से पूरे भारत में नहीं किया जाएगा तबतक हिन्दी भाषा का पूर्ण विकास असंभव नहीं होगा।

भारत सरकार के सभी मंत्रालयों, विभागों, अनुभागों, राष्ट्रीयकृत बैंकों और उपक्रमों में राजभाषा हिन्दी का प्रयोग तो हो ही रहा है फिर भी भारत सरकार के सभी केन्द्रीय विद्यालयों,नवोदय विद्यालयों तथा सैनिक स्कूलों आदि में जबतक हिन्दी को वैकल्पिक विषय की जगह अनिवार्य विषय के रुप में प्रयोग नहीं होगा तबतक हिन्दी का पूर्ण विकास कदापि संभव नहीं है।रही बात ओड़िशा में हिन्दी की स्थिति की तो यहां पर तेजी के साथ ओड़िया से हिन्दी अनुवाद क्रांति विकसित हो चुकी है साथ ही साथ ओड़िया के अनेक लेखक अपनी मूल रचनाएं भी खड़ी बोली हिन्दी में पिछले लगभग दो  दशकों से आरंभ कर दिए हैं जो ओड़िशा में हिन्दी के भविष्य को समुज्ज्वल बना रहे हैं।

बाईबिल में हिंसा का महिमा मंडन

बाइबल में शैतान द्वारा मारे गए या मरवाए गए लोगो की संख्या 10 है. अय्यूब अध्याय 1 में अयूब के 7 बेटों और 3 बेटियों के मारे जाने का विवरण है. अब ईश्वर द्वारा मरे गए लोगों का एक संक्षिप्त विवरण देखते हैं.अब बाइबिल में भगवान यहोवा द्वारा की गई हत्याओं का विवरण देखते हैं. यह संख्या लाखों में है.
महासंहार: नरसंहार के बाद नरसंहार
1
यहोशू 6: 20-21 में , भगवान यहोवा ने इसराएलियों को यरीहो को नष्ट करने में मदद करता है, जिससे “पुरुष और महिलाएं, युवा और बूढ़े, मवेशी, भेड़ और गधे” मारे जाते हैं।
2
व्यवस्थाविवरण 2: 32-35 में , भगवान यहोवा ने हेशबोन नगर के स्त्रियों और बाल-बच्चों समेत सभी को मारा।
3
.गिनती 31: 7-18 में , इस्राएलियों ने 32000 अविवाहित लड़कियों को छोड़कर सभी मिद्यानियों को मार डाला क्योंकि इस्राएली अविवाहित लड़कियों को युद्ध के लूट के रूप में लेते हैं।
4
1 शमूएल 15: 1-9 में, भगवान यहोवा इस्राएलियों से कहता है कि वे सभी अमालेकियों – पुरुषों, महिलाओं, बच्चों, शिशुओं और उनके मवेशियों को मार डालें।
5
उत्पत्ति 7: 21-23 में , भगवान यहोवा पृथ्वी की पूरी आबादी को डुबो देता है: पुरुष, महिलाएं, बच्चे, भ्रूण .केवल एक ही परिवार बचता है। भगवान यहोवा 5 लाख लोगों को मारते हैं।
6
 इतिहास 13: 15-18 में , भगवान यहोवा ने अबिय्याह और यहूदा के साम्हने, यारोबाम और सारे इस्राएलियों को मारा। यहां तक कि इस्राएल में से पांच लाख पुरुष मारे गए।
7
भगवान यहोवा मिस्र के सभी पहले नवजात बच्चों का वध करता है। निर्गमन 12:29 में , सभी मिस्र के निवासियों के पहले नवजात बच्चों को (firstborn} और मवेशियों के नवजात बच्चो (firstborn} को मार डालता है क्योंकि उनका राजा जिद्दी था।
8
भगवान यहोवा 14,700 लोगों को शिकायत के लिए मारता है कि भगवान यहोवा उन्हें मारता रहता है।
9
गिनती 16: 41-49 में , इस्राएलियों की शिकायत है कि भगवान यहोवा उनमें से कई को मार रहा है। तो, भगवान यहोवा एक प्लेग भेजता है जो उनमें से 14,700 को मारता है।
10
भगवान यहोवा ने दो शहरों को जलाकर मार डाला।
उत्पत्ति 1: 9-24 में, भगवान यहोवा ने सदोम और अमोरा दो शहरों में सभी को आकाश से आग से मार दिया।
11
भगवान यहोवा के 2 मादा भालू 42 बच्चों को फाड़ देते हैं. 2 राजा 2: 23-24 में, कुछ बच्चे भविष्यवक्ता अलीशा को चिढ़ाते हैं, और भगवान यहोवा की प्रेरणा से जंगल में से 2 मादा भालू 42 बच्चों को फाड़ डालती हैं।
12
एक जनजाति का वध किया गया और उपस्थिति पर नहीं दिखाने के लिए उनके अविवाहित लड़कियों का शील भंग किया।
न्यायियों 21: 1-23 में, इस्राएलियों की बिन्यामीन जाति को बहिष्कृत कर दिया., इसलिए अन्य इस्राएलियों ने बिन्यामीन जाति की अविवाहित लड़कियों को छोड़कर उन सभी को मार दिया ।
13
3,000 विरोधी कुचल कर मारे गए।
न्यायियों 16: 27-30 में , भगवान यहोवा ने शिमशोन को एक विरोधी जनजाति के 3,000 सदस्यों को कुचलने के लिए एक इमारत को नीचे लाने की शक्ति दी।
14
भगवान यहोवा के लिए निर्दोष अविवाहित बेटी की हत्या
न्यायियों 11: 30-39 में , यिप्तह ने अपनी अविवाहित बेटी को अम्मोनियों को मारने में भगवान यहोवा के अनुग्रह के लिए बलिदान के रूप में जिंदा जला दिया।
—–
यह केवल नमूना है. बाइबिल बेकसूरों की हत्याओं से भरी हुई है.

भारत विश्व में सबसे तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बना रहेगा

वित्तीय वर्ष 2024-25 की प्रथम तिमाही (अप्रेल-जून 2024) में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर के आंकडें जारी कर दिए गए हैं एवं हर्ष का विषय है कि भारत अभी भी विश्व में सबसे तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बनी हुई है।

वित्तीय वर्ष 2024 25 की प्रथम तिमाही में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 6.7 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। जबकि वित्तीय वर्ष 2023-24 की प्रथम तिमाही (अप्रेल-जून 2023) में 8.2 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज हुई थी तथा पिछली तिमाही (जनवरी मार्च 2024) में वृद्धि दर 7.8 प्रतिशत की रही थी। भारतीय रिजर्व बैंक ने अप्रेल-जून 2024 तिमाही में 7.1 प्रतिशत की वृद्धि दर का अनुमान लगाया था। पिछले लगातार 5 तिमाही के दौरान भारत के सकल घरेलू उत्पाद में यह सबसे कम वृद्धि दर है।

हालांकि चीन में 4.7 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज हुई है तथा विश्व की अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में वृद्धि दर भारत की तुलना में अभी भी बहुत कम बनी हुई है

भारत में वित्तीय वर्ष 2024-25 की प्रथम तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद में कम हुई वृद्धि दर के पीछे कुछ महत्वपूर्ण कारण बताए गए है।

प्रथम तो इस तिमाही में लोक सभा चुनाव सम्पन्न हुए हैं जिसके चलते आम जनता ने अपने खर्चे को रोक रखा था।

साथ ही, लोक सभा चुनाव के समय केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों द्वारा कोई भी बड़ा निर्णय नहीं लिया जा सकता है जिसके चलते सरकारों को अपने खर्चों को नियंत्रण में रखना होता, इससे देश की विकास दर पर प्रभाव पड़ता है। दूसरे, इस तिमाही के दौरान देश में अत्यधिक गर्मी के चलते पर्यटन एवं कृषि के क्षेत्र में विकास दर अत्यधिक कम हो गई है।

कृषि के क्षेत्र में वित्तीय वर्ष  2024-25 की प्रथम तिमाही में वृद्धि दर केवल 2 प्रतिशत की रही है जो पिछले वर्ष की इसी तिमाही में 3.7 प्रतिशत की रही थी। परंतु, वित्तीय वर्ष 2024-25 की द्वितीय तिमाही में मानसून ने लगभग पूरे देश में तेज गति पकड़ ली है अतः विभिन्न फसलों के बुआई के क्षेत्र में अच्छी वृद्धि दर्ज हुई है इसलिए वित्तीय वर्ष 2024-25 के द्वितीय एवं तृतीय तिमाही (जुलाई-सितम्बर एवं अक्टोबर-दिसम्बर 2024) में कृषि क्षेत्र में वृद्धि दर के आकर्षक रहने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। खरीफ मौसम की फसल के साथ ही अब रबी मौसम की फसल में भी अच्छी वृद्धि दर रहने की सम्भावना है क्योंकि देश के विभिन्न जलाशयों में पानी के संचयन में भारी वृद्धि दर्ज हुई है, जिसे कृषि क्षेत्र में सिंचाई के लिए उपयोग किया जा सकेगा।

इन्हीं कारणों के चलते वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेन्सी मूडीज ने वित्तीय वर्ष 2024-25 में भारत के आर्थिक विकास दर के अपने अनुमान को बढ़ाकर 7.2 प्रतिशत कर दिया है, मूडीज ने पहिले यह अनुमान 6.8 प्रतिशत का लगाया था।

विनिर्माण इकाईयों द्वारा किए गए उत्पादन में अप्रेल-जून 2024 की तिमाही में 7 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है जबकि पिछले वर्ष की इसी तिमाही में 5.7 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई थी। निर्माण के क्षेत्र में 8.6 प्रतिशत एवं सेवा के क्षेत्र में 7.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। ट्रेड, ट्रान्स्पोर्ट, होटल, टेलिकॉम की ग्रोथ 5.7 प्रतिशत की रही है।

विनिर्माण, निर्माण एवं कोर इंडस्ट्री को मिलाकर बनने वाले सेकेण्डरी सेक्टर में वृद्धि दर बढ़ी है। वित्तीय वर्ष 2023-24 की प्रथम तिमाही में यह 5.9 प्रतिशत की रही थी जो वित्तीय वर्ष 2024-25 की प्रथम तिमाही में बढ़कर 8.4 प्रतिशत की हो गई है। यह वृद्धि दर देश में निजी उपभोग के बढ़ने की ओर इशारा कर रही है

विश्व में बहुत लम्बे समय से चल रहे दो युद्धों के बीच भारत की उक्त आर्थिक विकास दर अच्छी विकास दर ही कही जाएगी। एक युद्ध तो रूस यूक्रेन के बीच चल रहा है एवं दूसरा इजराईल एवं हम्मास के बीच चल रहा । इजराईल के साथ युद्ध में तो लेबनान एवं ईरान भी कूदने को तैयार बैठें हैं।

साथ ही, यूरोपीयन देशों में कुछ देशों की आर्थिक विकास दर में कमी होती दिखाई दे रही है। जापान एवं अमेरिकी अर्थव्यवस्थाओं में भी विकास दर में कमी आंकी गई है।

जर्मनी एवं चीन भी अपनी अपनी अर्थव्यवस्थाओं में वृद्धि दर को बढ़ाने  हेतु संघर्ष करते हुए दिखाई दे रहे हैं।

जापान एवं जर्मनी में यदि विकास की रफ्तार कम होती है एवं भारत की आर्थिक विकास दर यदि इसी रफ्तार से आगे बढ़ती है तो शीघ्र ही भारत, जापान एवं जर्मनी की अर्थव्यवस्थाओं को पीछे छोड़ते हुए विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।

अभी भारत विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और जापान एवं जर्मनी ही भारतीय अर्थव्यवस्था से थोड़ा आगे बने हुए हैं

अर्थ से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भारत सराहनीय प्रगति करता हुआ दिखाई दे रहा है। जैसे –

(1) पिछली तिमाही में भारत के निर्यात में 8.7 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है जबकि वैश्विक स्तर पर यह वृद्धि दर केवल एक प्रतिशत की रही ।

 

(2) बैंकों द्वारा प्रदान किए जा रहे ऋणों में लगातार वृद्धि दर 15 प्रतिशत से ऊपर बनी हुई है, विशेष रूप से कृषि के क्षेत्र में ऋण की मांग (जुलाई 2024 में 18.1 प्रतिशत की वृद्धि दर) एवं विनिर्माण के क्षेत्र में ऋण की मांग (जुलाई 2024 में 10.2 प्रतिशत की वृद्धि दर) बनी हुई है। इससे देश की अर्थव्यवस्था के तेज गति से आगे बढ़ने के स्पष्ट संकेत दिखाई दे रहे हैं।

(3) वित्तीय वर्ष 2024-25 में जुलाई 2024 माह के अंत तक समाप्त अवधि के दौरान केंद्र सरकार की कुल आय 10.23 लाख करोड़ रुपए की रही है। यह वित्तीय वर्ष 2024-25 के आय के कुल बजट का 31.9 प्रतिशत है और इसमें 7.15 लाख करोड़ रुपए की करों की मद से आय तथा 3.01 लाख करोड़ रुपए की अन्य मदों से आय भी शामिल है।

(4) इस दौरान केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा भी नियंत्रण में रहा है एवं यह  2.77 लाख करोड़ रुपए तक सीमित रहा है जो वित्तीय वर्ष 2024-25 के कुल बजटीय घाटे का केवल 17.2 प्रतिशत ही है।

(5) इसी प्रकार विदेशी मुद्रा भंडार भी 23 अगस्त 2024 को समाप्त हुए सप्ताह में 702 करोड़ अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 68,168 करोड़ अमेरिकी डॉलर के नए रिकार्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया है।

पिछले सप्ताह में भी विदेशी मुद्रा भंडार 454 करोड़ अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 67,466 करोड़ अमेरकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गया था।

(6) जुलाई 2024 माह में 8 कोर सेक्टर (कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी प्रोडक्ट, उर्वरक, इस्पात, सिमेंट एवं बिजली उत्पादन के क्षेत्र) में वृद्धि दर 6.1 प्रतिशत की रही है जो जून 2024 माह में 5.1 प्रतिशत की रही ।

 

(7) भारत में प्रत्येक 5 दिनों में एक बिलिनायर (भारतीय नागरिक जिसके पास 100 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक की सम्पत्ति है) बन रहा है। 2014 में भारत में 109 बिलिनायर थे जो आज बढ़कर 334 हो गए हैं। जिनकी कुल सम्पत्ति 1.9 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर की है जो सऊदी अरब के सकल घरेलू उत्पाद से भी अधिक है। इसी प्रकार, भारत के बिलिनायर की सम्पत्ति भारत के कुल सकल घरेलू उत्पाद के आधे से भी अधिक है।

भारत की अर्थव्यवस्था तो प्रत्येक तिमाही में बढ़ रही है परंतु यदि यह सम्पत्ति केवल बिलिनायर की संख्या बढ़ाने के रूप में बढ़ रही है तो यह उचित नहीं कहा जा सकता है क्योंकि इससे तो देश में अमीरों एवं गरीबों के बीच में असमानता की खाई भी बढ़ती जा रही है और इस खाई को शीघ्र ही पाटने के प्रयास किए जाने चाहिए।

वित्तीय वर्ष 2024-25 की प्रथम तिमाही में कम हुई आर्थिक विकास दर को बढ़ाने के उद्देश्य से क्या अब भारतीय रिजर्व बैंक ब्याज दरों में कमी कर सकता है। अब यह प्रश्न अर्थशास्त्रियों के मन में उभर रहा है। इस बीच अमेरिका में भी फेड रिजर्व के अध्यक्ष ने अमेरिका में ब्याज दरों को सितम्बर 2024 माह में कम करने के स्पष्ट संकेत दिए हैं।

प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
के-8, चेतकपुरी कालोनी,
झांसी रोड, लश्कर,
ग्वालियर – 474 009

मोबाइल क्रमांक – 9987949940

ई-मेल – prahlad.sabnani@gmail.com

खेलों में भारत के स्वर्णिम पल

कनिष्क पाण्डेय की पुस्तक ‘खेलों में भारत के स्वर्णिम पल’ से कुछ ऐसे पलों के बारे में जब खेल स्पर्धाओं में हमारे खिलाड़ियों ने देश का गौरव बढ़ाया। 
स्वतंत्र भारत का पहला हॉकी ओलम्पिक स्वर्ण पदक
बलबीर सिंह ने 1948 के ओलम्पिक खेलों के दौरान मेजबान ग्रेट ब्रिटेन के खिलाफ फाइनल में भारत के चार गोल में से दो गोल दागे। उनके इन गोल की बदौलत स्वतंत्र भारत ने अपना पहला ओलम्पिक स्वर्ण पदक जीता।
 
यह स्वर्ण पदक एक ऐसे समय प्राप्त हुआ जबकि भारत के कई खिलाड़ी बँटवारे की वजह से दो मुल्कों (भारत-पाकिस्तान) में जाकर बस गये थे और स्वतंत्र भारत में खिलाड़ी डेब्यू कर रहे थे। भारत की टीम रेलवे के लिए खेलनेवाले किशन लाल की कप्तानी में बनाई गई तथा इस टीम की उपकप्तानी केडी सिंह (बाबू) को दी गई। टीम में इनके अलावा लेसली क्लॉडियस और पंजाब से बलबीर सिंह सीनियर जैसे खिलाड़ी, जिनको कि पूर्व ओलम्पिक खेलने का गौरव प्राप्त था, को टीम में शामिल किया गया। 
 
टीम का मैनेजर ए.सी. चटर्जी को बनाया गया। भारत की इस टीम का स्वर्ण पदक जीतने के सपने को साकार करना किसी चुनौती से कम नहीं था और वह भी तब जब इस टीम में अनुभवी खिलाड़ियों की कमी रही हो। लेकिन कहते हैं, फौलादी हौसले हों तो किसी लक्ष्य को हासिल करना एक आसान काम हो जाता है।
1928 (एमस्टरडैम), 1932 (लॉस एंजल्स) और 1936 (बर्लिन) ओलम्पिक में पहले ही हॉकी में गोल्ड जीत चुके भारत के लिए 1948 में लंदन में हो रहा ओलम्पिक इसलिए भी खास मायने रखता था क्योंकि इस बार भारत आजाद होने के तुरन्त बात अपने देश के झंडे के साथ मैदान में उतर रहा था। लंदन में इंडिया का पहला मैच ऑस्ट्रेलिया के साथ था। पहले ही मैच में इंडिया को 8-0 से सफलता मिली। बलबीर सिंह सीनियर ने अकेले 6 गोल दागे थे। इसी मैच से मिले कॉन्फिडेंस से टीम ने अगले मैच में अर्जेंटीना को 9-1 से पस्त किया। क्वार्टरफाइनल में फिर स्पेन को 2-0 से शिकस्त दी। सेमीफाइनल में हॉलैंड को 2-1 से हराकर टीम फाइनल में पहुँच गई। फाइनल में मुकाबला उसी देश की टीम से था जो हम पर लगभग 200 वर्ष राज कर चुका था और मुकाबला जीतकर भारतीय टीम के लिए एक बदला चुकाने जैसा मौका था।
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि भारत के कई खिलाड़ी नंगे पाँव इस मैदान पर खेले और मैदान पर घास होने की वजह से कई बार भारतीय खिलाड़ी फिसल जाते थे और गिर पड़ते थे। लेकिन अपने मन में लिए लक्ष्य को कभी भी अपने बुलन्द हौसले से डिगने नहीं दिया। पहले दो गोल बलबीर सिंह ने दाग दिए और इस बढ़त को आगे बढ़ाते हुए भारतीय टीम के दूसरे खिलाड़ी जैनसन पैट्रिक और तरलोचन सिंह ने एक-एक गोल दागे और भारत ने अपने अन्तरराष्ट्रीय खेल में स्वर्ण पदक जीतकर अपना परचम लहराया। हालाँकि यह भारत का चौथा ओलम्पिक गोल्ड था, मगर इनमें से 3 गोल्ड मेडल भारत ने आजादी पूर्व जीते थे। यह जीत का क्षण स्वतंत्र भारत के खेल इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है।
इस जीत के लिए इन भारतीय टीम के सदस्यों को फ्रांस चैकोस्लोवाकिया और स्विट्जरलैंड में 15 दिन के टूर पर भेजा गया और लौटने पर उनका भव्य स्वागत किया गया। स्वागत समापन के रूप में नेशनल स्टेडियम में एक प्रदर्शनी मैच का आयोजन किया गया जिसे देखने उस समय के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद तथा प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी पहुँचे थे।
 
‘फ्लाइंग सिख’ का राष्ट्रमंडल खेलों में पहला स्वर्ण पदक
मिल्खा सिंह, (जो कि ‘फ्लाइंग सिख’ नाम से मशहूर हुए) ने कार्डिफ में 1958 के कॉमनवेल्थ गेम्स में ट्रैक प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता। हालाँकि उस समय ज्यादातर लोगों ने उनके बारे में कभी नहीं सुना था लेकिन उनके एथलेटिक खेलों का कारनामा आज तक बच्चों-बच्चों की जुबाँ पर है। इस प्रतियोगिता में उन्होंने एक नया इतिहास रच डाला और अब उन्हें भारत के महानतम एथलीटों में से एक माना जाता है।
 
उन्हें देश के पहले ट्रैक एंड फील्ड सुपरस्टार के रूप में जाना जाता है। मिल्खा सिंह ने 1956 ओलम्पिक में एक नई प्रतिभा के तौर पर भारत का प्रतिनिधित्व किया। इसके बाद उन्होंने 1960 के रोम ओलम्पिक खेलों में 400 मीटर के फाइनल में चौथा स्थान प्राप्त किया। पदक से चूकते हुए भी उन्होंने अपनी प्रतिभा को जनमानस में स्थापित किया। यह क्षण देश के लिए भी एक एथलेटिक प्रदर्शन के हिसाब से एक गौरव का पल था। इन ओलम्पिक खेलों में ज्यादातर कैरेबियाई मूल के एथलेटिक का दबदबा बना हुआ था लेकिन यहाँ से यह विश्वास जगा कि हाँ भारतीय एथलीट भी ओलम्पिक जैसी प्रतिस्पर्धाओं में पदक जीत सकता है। उसके बाद के वर्षों में उन्होंने 200 मीटर और 400 मीटर की स्पर्धाओं में कई नेशनल रिकॉर्ड बनाए। 
एक एथलीट के तौर पर उनकी बड़ी उपलब्धि टोक्यो में होनेवाले 1958 एशियन खेलों में 200 मीटर और 400 मीटर का स्वर्ण पदक जीतना था। यह कारनामा उन्होंने 47 सेकेंड में शानदार गति से 400 मीटर दौड़कर हासिल किया और अपने निकटतम प्रतिद्वन्द्वी पाब्लो सोम्बलिंगों से करीब 2 सेकेंड पहले पूरा किया। उनका दूसरा गोल्ड और भी खास था, क्योंकि उन्होंने एशिया के सर्वश्रेष्ठ धावक पाकिस्तानी मूल के अब्दुल खालिक को 200 मीटर की दौड़ में हराकर स्वर्ण पदक प्राप्त किया। अब्दुल खालिक वही धावक थे जिन्होंने एक नया रिकॉर्ड बनाने के साथ ही 100 मीटर रेस, एशियन गेम्स का स्वर्ण पदक अपने नाम किया था।
 
1958 में आयोजित ब्रिटिश एम्पायर एंड कॉमनवेल्थ गेम्स में उन्होंने दो रेस, 200 मीटर और 400 मीटर, में नया कीर्तिमान स्थापित किया। इस दौड़ प्रतियोगिता में उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के विश्व रिकॉर्ड धारक मैलकम स्पेंस को पीछे छोड़कर प्राप्त किया। यह पल ऐतिहासिक था, क्योंकि इस खेल में उन्हें ट्रैक एंड फील्ड स्पर्धाओं में राष्ट्रमंडल खेलों का स्वर्ण पदक जीतनेवाला पहला भारतीय बना दिया था। यह रिकॉर्ड अगले 52 साल तक बना रहा। उनके स्वर्ण पदक के जीत की खुशी को मनाने के लिए उस समय के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने अगला दिन सार्वजनिक अवकाश घोषित किया।
हॉकी विश्व कप 1975 में भारत की जीत
1975 में भारत ने मलेशिया के क्वालालम्पुर में आयोजित हॉकी विश्व कप का फाइनल मैच पाकिस्तान को 2-1 के स्कोर से हराकर जीता। 15 मार्च 1975 को आयोजित इस मैच में हॉकी टीम के कप्तान अजीत पाल और असलम शेर खान ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह जीत स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है।
 
भारतीय हॉकी टीम ने जब क्वालालम्पुर वर्ल्ड कप अपने नाम किया तो स्टेडियम में तिरंगा लहराया और उस क्षण पूरी टीम भावुक हो गई। भारत को पहली बार वर्ल्ड कप जितवाने में जो खिलाड़ी हीरो रहे, वे थे हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचन्द के पुत्र अशोक कुमार ध्यानचन्द सिंह और पेनल्टी कॉर्नर विशेषज्ञ असलम शेर खान। असलम शेर खान ने सेमीफाइनल में भारत के लिए मलेशिया के खिलाफ बराबरी दिलानेवाला अहम गोल दागा था। अशोक कुमार ने भारत के लिए वर्ल्ड कप में पाकिस्तान के खिलाफ फाइनल में निर्णायक गोल कर वर्ल्ड कप भारत की झोली में डाला।
पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ इस फाइनल मुकाबले में बढ़त बनाते हुए शुरुआती गोल किया और यह गोल उनके खिलाड़ी जाहिद द्वारा किया गया। चूंकि हॉकी खेल में पाकिस्तानी टीम भी एक सशक्त टीम मानी जाती थी, अतः इस प्रथम गोल के बाद भारतीय टीम में कुछ निराशा छा गई। लेकिन एकजुट होते हुए टीम के खिलाड़ी अशोक कुमार, गोविन्दा और सुरजीत सिंह के साथ हाफ लाइन के खिलाड़ी वरींदर सिंह ने कप्तान को भरोसा दिलाया कि अगर हम हौसले से खेले तो हम निश्चित ही अभी भी जीत सकते है। अपना जज्बा दिखाते हुए फुर्तीले खिलाड़ी सुरजीत ने 25वें मिनट में पाकिस्तान के खिलाफ एक रोमांचकारी गोल दाग दिया और टीम को बराबरी पर ला दिया। अपने लक्ष्य की ओर केन्द्रित रहते हुए अशोक कुमार ने फिर एक गोल दाग कर खिताब भारत के नाम किया। यह रोमांचकारी मैच भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है।
भारत ने 1983 में जीता क्रिकेट विश्व कप
भारतीय क्रिकेट इतिहास में दो ऐसे खुशी के पल आये हैं जो हमारे इतिहास के स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हैं और इससे हर भारतीय और क्रिकेट प्रेमियों का सिर फख्र से ऊँचा हुआ है। यह अवसर पहली बार 1983 में खेले गये क्रिकेट विश्व कप में आया जब भारतीय टीम ने कपिल देव की कप्तानी में वेस्ट इंडीज के खिलाफ खेलते हुए यह कारनामा कर दिखाया। 25 जून, 1983 को लॉर्ड्स के मैदान में खेला गया यह मैच आज भी लोगों को सोचने पर रोमांचित कर देता है।
 
 हालाँकि इस मैच में वेस्ट इंडीज टीम के सामने भारत को प्रबल दावेदार नहीं माना गया था लेकिन भारतीय क्रिकेट टीम के हौसले इतने बुलन्द थे कि उस वक्त यह टीम किसी को भी धूल चटा सकती थी। हालाँकि यह मैच आशाओं के विपरीत लो स्कोर मैच रहा और टॉस जीतने के बाद वेस्ट इंडीज टीम ने भारत को बल्लेबाजी करने का मौका दिया। गावस्कर सरीखे खिलाड़ी मात्र 2 रन पर पैवेलियन लौट गये। इससे लोगों के बीच कुछ निराशा छाई लेकिन इस निराशा को छाँटते हुए महेन्द्र अमरनाथ ने एक छोर सम्भाल लिया और दूसरे छोर पर श्रीकांत तूफानी मूड में बल्लेबाजी करते रहे। इस लो स्कोरिंग गेम में भारत ने 183 रन बनाकर आउट हुई। 
उस समय ऐसा लगा रहा था कि भारतीय टीम का जीतना और वो भी वेस्ट इंडीज जैसी सशक्त टीम के सामने, शायद मुश्किल होगा। लेकिन भारतीय गेंदबाजों ने अपनी फिरकी का जादू इस तरह चलाया कि वेस्ट इंडीज के खिलाड़ियों को ताश के पत्तों की तरह ढेर कर दिया। विलियन रिचर्ड्स जैसे खिलाड़ी जिन्होंने आनन-फानन 33 का स्कोर कर लिया था और जिस लय में वो खेल रहे थे लोगों को इस मैच के एकतरफा जल्दी समाप्त होने की उम्मीद थी। लेकिन मदनलाल ने जब 4 चौके खा लेने के बाद फिर से अपने कप्तान से गेंद माँगी तो सभी लोग हतप्रभ रह गये कि कपिल देव ऐसा कैसे कर सकते हैं। लेकिन मदनलाल ने अपने इरादे का पक्का परिचय देते हुए विव रिचर्ड्स को दूसरी गेंद में कपिल के हाथों कैच करवाकर पैवेलियन के लिए चलता कर दिया। यहाँ से फिर यह मैच इस तरह मुड़ा कि भारत ने आखिरकार इस मैच को जीत कर इतिहास रच ही दिया। इस जीती टीम को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने हैदराबाद हाउस में बुलाकर स्वागत किया और सभी को बधाई दी।
 
102 साल की उम्र में मान कौर ने जीता मास्टर्स एथलेटिक्स में स्वर्ण
पटियाला की रहनेवाली मान कौर ने 102 वर्ष की उम्र में विश्व मास्टर्स एथलेटिक्स की 200 मीटर दौड़ प्रतियोगिता में स्वर्ण जीतकर देश के एथलेटिक इतिहास में अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज कराया और देश का नाम ऊँचा किया। 
1916 में जन्मीं मान कौर 102 साल की उम्र में स्पेन की मलागा में आयोजित मास्टर्स एथलेटिक्स चैम्पियनशिप की 200 मीटर रेस में 100 से 104 साल के आयुवर्ग में स्वर्ण पदक हासिल कर चुकी हैं। उनके इस हैरतंगेज कारनामे को विश्व के एथलेटिक समुदाय ने सलाम किया है। यह भारत के लिए सचमुच एक गौरवशाली क्षण था। 102 साल की उम्र में अपने हौसले को इस तरह कायम रखना सभी के लिए मिसाल है। यह भी कम हैरतंगेज नहीं है कि मान कौर ने 93 साल की उम्र में दौड़ना शुरू किया और उन्हें दौड़ने के लिए उत्साहित करनेवाला कोई और नहीं उनका 79 वर्षीय बेटा गुरदेव सिंह था।
इस उम्र में दौड़ना शुरू करने के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। और एथलेटिक प्रतियोगिता में एक से एक कारनामा करती चली गईं। उन्होंने न्यूजीलैंड के ऑकलैंड स्काई टॉवर पर ‘स्काई वॉक’ कर रिकॉर्ड बनाया।https://rajkamalprakashan.com/blog/ पाँच मीटर की दूरी तक भाला फेंका और स्वर्ण पदक जीता। इस प्रकार इन्होंने कुल 4 स्वर्ण पदक हासिल किये हैं। न्यूजीलैंड में जीता गया गोल्ड मेडल मान कौर के करियर का 17वाँ गोल्ड मेडल था। जब वह 94 साल की थीं, उन्होंने चंडीगढ़ में हुए नेशनल टूर्नामेंट में सौ-दो सौ मीटर दौड़ में गोल्ड मेडल जीता था। उन्होंने अमेरिका में सौ-दो सौ मीटर रेस में गोल्ड मेडल जीता था। इतना ही नहीं, उन्होंने इस दोनों रेस में वर्ल्ड रिकॉर्ड भी बना डाला। वर्ष 2001 में उन्हें एथलीट ऑफ द ईयर चुना गया था।
 
8 मार्च, 2020 को अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन इन्हें नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
 
साभार  से

पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय के डॉ. सी. जय शंकर बाबू को राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार

पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. सी. जय शंकर बाबु को राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार (एनएटी) 2024 के लिए चुना गया है। वे भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के उच्च शिक्षा विभाग द्वारा  पुरस्कार चयनित भारत के उच्च शिक्षा संस्थानों के 16 शिक्षकों में से एक हैं। उच्च शिक्षा संस्थानों के शिक्षकों के लिए यह पहला ऐसा पुरस्कार है, जो अब तक केवल स्कूली शिक्षकों तक ही सीमित था। 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के अवसर पर नई दिल्ली में आयोजित समारोह में भारत के राष्ट्रपति माननीय श्रीमती द्रौपदी मुर्मू चयनित शिक्षकों को पुरस्कृत करेंगी।

डॉ. सी. जय शंकर बाबु ने शिक्षा और पत्रकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान दिया है। उनकी सेवाओं में 21 वर्षों के अध्यापन के अनुभव के अलावा 15 वर्षों की पत्रकारिता (समकालिक), 10 वर्षों का प्रशासनिक सेवा (यूपीएससी द्वारा चयनित ग्रुप ‘ए’ स्तर की सेवा भी शामिल है) और सामाजिक सेवा भी शामिल है । डॉ. बाबु भारतीय भाषाओं में कंप्यूटिंग के क्षेत्र में ई-साक्षरता के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

उन्होंने वर्ष 1999 में अपने स्तर पर डिजिटल साक्षरता मिशन की शुरुआत की और पिछले ढाई दशकों में 1700 से अधिक कार्यशालाओं का आयोजन कर अनेक लोगों को मातृभाषा कंप्यूटिंग के अलावा भारतीय भाषा कंप्यूटिंग कौशल प्रदान किया। वे भारतीय भाषाओं के माध्यम से शिक्षा प्रदान करने की वकालत करते रहे हैं। उन्होंने पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा स्तर पर हिंदी में 33 बहु-विषयक तकनीकी और रोजगारोन्मुखी पाठ्यक्रम तैयार किए हैं, जैसे भाषा प्रौद्योगिकी, नव माध्यम (न्यू मीडिया) अध्ययन, प्रयोजनमूलक हिंदी, बहुभाषाई कंप्यूटिंग, साइबर आलोचना आदि और हिंदी माध्यम में पाठ्य पुस्तकें भी लिखी हैं।

यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के विज़न और मिशन के अनुरूप है। वे ‘युग मानस’ साहित्यिक पत्रिका के संस्थापक संपादक, ‘अंतर भारती’ मासिक के प्रधान संपादक और केंद्रीय हिंदी संस्थान की पत्रिका ‘समन्वय दक्षिण’ सहित 10 सह-समीक्षित पत्रिकाओं के संपादकीय बोर्ड के सदस्य हैं।

मीडिया अध्ययन के क्षेत्र में उन्होंने काफ़ी योगदान दिया है और केंद्रीय हिंदी निदेशालय, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा प्रकाशित भारतीय साहित्य और मीडिया के वार्षिक सर्वेक्षण की वार्षिकी में एक दशक तक लगातार हिंदी पत्रकारिता और नई प्रौद्योगिकी पर नियमित योगदान है ।  मीडिया विमर्श पत्रिका के अब तक पाँच भारतीय भाषाओं के मीडिया पर केंद्रित विशेषांकों का उन्होंने संपादन किया है जिनमें तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम और ओड़िया मिडिया विशेषांक शामिल हैं ।

डॉ. सी. जय शंकर बाबू ने दक्षिण भारत में पत्रकारिता के इतिहास पर शोधपरक लेखन किया है और पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय में 1.04 करोड़ रुपये के परियोजना परिव्यय के साथ शोध में समृद्ध रूप से योगदान दे रहे हैं, ‘हिंदी के विकास के लिए आईसीटी’ पर यूजीसी बृहद शोध परियोजना सुसंपन्न किया है ।  शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार की स्पर्क परियोजना के तहत अपभ्रंश का ऐतिहासिक और भाषावैज्ञानिक अध्ययन पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग की शोध परियोजना पूरी की है । तेलुगु लोक साहित्य पर केंद्रीय हिंदी संस्थान, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार की एक और परियोजना जारी है।

उन्होंने 8 शोधार्थियों को पीएचडी (पुरस्कृत) के लिए मार्गदर्शन किया है, इनमें से 3 के वे सह-मार्गदर्शक  थे ।  4 शोधार्थियों को एम.फिल. और 40 से अधिक पीजी शोध परियोजनाओं के लिए मार्गदर्शन किया  है ।  शोध के विषय राष्ट्रीय हित के हैं जिनमें लुप्तप्राय भाषाएं, दिव्यांगों के लिए ई-सामग्री विकास, शिक्षण और सीखने के लिए आईसीटी, आदिवासी, दलित और लोक साहित्य, पर्यावरण विमर्श आदि शामिल हैं।

डॉ. बाबू ने यूजीसी – शैक्षिक संचार संकाय द्वारा प्रदत्त परियोजना के तहत भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के स्वयं (SWAYAM) ऑनलाइन शैक्षिक पोर्टल के लिए बृहद् ऑनलाइन मुक्त पाठ्यक्रमों (MOOCs) का विकास किया है ।  स्वयं (SWAYAM पोर्टल) पर जनवरी, 2023 सत्र में हिंदी माध्यम में भाषा प्रौद्योगिकी के परिचय पर संचालित MOOC पाठ्यक्रण में 722 शिक्षार्थियों ने नामांकन किया था और जनवरी 2024 सत्र में 942 शिक्षार्थि ने प्रवेश लेकर अध्ययन किया था ।  हिंदी भाषा में उनके समृद्ध योगदान को देखते हुए, माननीय केंद्रीय गृह मंत्री ने उन्हें भारत सरकार के गृह मंत्रालय की हिंदी सलाहकार समिति के सदस्य के रूप में नामित किया है। बेल्जियम के गेंट विश्वविद्यालय के बोर्ड ऑफ़ गवर्नर्स ने उन्हें 2012 में विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर के रूप में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया था।

डॉ. बाबू 2018 में मॉरीशस में आयोजित 11वें विश्व हिंदी सम्मेलन के आधिकारिक प्रतिनिधिमंडल में थे। विश्व भारती (राष्ट्रीय महत्व का संस्थान), शांतिनिकेतन की कार्यकारिणी समिति ने अक्टूबर, 2023 में डॉ. बाबु को भाषा भवन में प्रोफ़ेसर के रूप में नियुक्त करने की मंजूरी दी। डॉ. बाबु भारत सरकार के श्रम मंत्रालय के कर्मचारी भविष्य निधि संगठन में सहायक निदेशक (यूपीएससी द्वारा चयनित) का पद छोड़ने के बाद वर्ष 2010 में पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय में शामिल हुए । शिक्षा जगत को उनके सतत योगदान और नवाचार के प्रति उनके अटूट समर्पण के लिए उन्हें राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार 2024 से सम्मानित किया गया है।

पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलपति प्रो. के. तरनिक्करसु ने इस उपलब्धि के लिए प्रोफ़ेसर बाबु की सराहना की। पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय के अधिकारियों, कर्मचारियों, प्रोफ़ेसरों और छात्रों ने भी उनकी सराहना की।

डॉ. सी. जय शंकर बाबू
संपादक, ‘युग मानस’
ई-मेल –  yugmanas@gmail.com
दूरभाष – 09843508506

प्रकृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए अघरिया समाज की अनुकरणीय पहल

रायपुर/ प्रदेश का अघरिया (पटेल) समाज प्रकृति संरक्षण के लिए कई अनूठी पहल कर रहा है। समाज पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य के साथ इस पुनीत कार्य में जोर शोर से जुटा हुआ है।

इसी कड़ी में आज समाज से जुड़े प्रबुद्धजनों ने वृक्षारोपण कार्यक्रम का आयोजन किया। राजधानी रायपुर के माना थाना परिसर में आज श्री भुवनेश्वर नायक व उनकी धर्मपत्नी श्रीमती अनीता नायक ने अपने बच्चों का जन्मदिन प्रकृति के सानिध्य में मनाया और इस विशेष दिन को प्रकृति को समर्पित किया।

अघरिया समाज के साथ साथ नायक परिवार का भी मानना है कि इससे पर्यावरण स्वच्छ व स्वस्थ रहता है।

कार्यक्रम का क्रियान्वयन उप पुलिस अधीक्षक श्री लंबोदर पटेल जी व उनकी  धर्मपत्नी रेणुका पटेल द्वारा किया गया। पटेल दंपत्ति का प्रकृति के साथ निःस्वार्थ प्रेम है और भावी पीढ़ी को बेहतर कल देने के उद्देश्य से अक्सर वे अपनी टीम के साथ वृक्षारोपण का आयोजन करते रहते है। उनका मानना है कि वृक्षारोपण केवल महज एक कार्यक्रम नहीं है अपितु इसके अनगिनत फायदे है, जो मानव समाज को पोषित करते है। स्वच्छ हवा के साथ ही यह जल संरक्षण में भी आवश्यक भूमिका निभाता है, जो हमारे जीवन का मूल तत्व है।

इस अवसर पर श्रीमती सुषमा प्रेम पटेल ने  लोगों को उत्साहित करते हुए काव्य पाठ भी किया। इस पुनीत अवसर पर  श्रीमती मंजू, क्षीर सिंधु पटेल, अजित पटेल, मीनाक्षी पटेल, सुनील पटेल, क्षीरसागर  विनीता पटेल, राम नारायण, मोनिका पटेल, श्रीमती किरण अजित पटेल, वर्णिका शर्मा, दुर्गा पटेल, देवाशीष पटेल, रमेश पटेल और सभी सम्मानित जनों ने उत्साह से भाग लिया। सभी ने संकल्प लिया कि टीम वर्क से हम हमेशा रचनात्मक कार्यों में अग्रणी रहेंगे, जिससे स्वस्थ समाज के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान दे पाएंगे। इस खास मौके पर स्वल्पाहार की व्यवस्था श्रीमती मीनाक्षी पटेल द्वारा किया गया।

चक्रधर समारोह के मंच को पद्मश्री से सम्मानित 7 विभूतियां करेंगी सुशोभित

रायपुर/ चक्रधर समारोह फिर से अपने पुराने वैभव और गरिमा के साथ आयोजित होने जा रहा है। 10 दिवसीय कला महोत्सव की रूप रेखा तैयार की जा चुकी है। नामचीन कलाकार अपने हुनर के प्रदर्शन के लिए रायगढ़ पहुंचने वाले हैं। चक्रधर समारोह का मंच कला जगह में अपनी विशिष्ट ख्याति रखता है।
पिछले कुछ वर्षाे के दौरान कोविड महामारी के चलते समारोह वृहत स्तर पर आयोजित नहीं किया जा सका था। इस बार के आयोजन में एक खास बात और शामिल है।
इस वर्ष भारत सरकार के चौथे सर्वाेच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित 7 विभूतियां रायगढ़ चक्रधर समारोह के मंच को सुशोभित करेंगी।

पद्मश्री हेमा मालिनी, जो भारतीय सिनेमा की एक प्रमुख और बहु-प्रतिभाशाली अभिनेत्री हैं, अपने भरतनाट्यम नृत्य के लिए भी जानी जाती हैं। उन्हें भारतीय कला और संस्कृति को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाना जाता है।
भरतनाट्यम, जो एक प्राचीन और शास्त्रीय नृत्य शैली है, में हेमा मालिनी की निपुणता और दक्षता अद्वितीय है। उनके नृत्य की विशेषताएँ उनकी उत्कृष्ट तकनीक, भाव-प्रकटीकरण और मंच पर उनकी उपस्थिति में स्पष्ट रूप से देखी जा सकती हैं। उन्होंने न केवल अपनी कला को फिल्मों के माध्यम से प्रस्तुत किया, बल्कि शास्त्रीय नृत्य की कला को भी पूरे देश और विदेश में लोकप्रिय बनाया। उन्होंने कई महत्वपूर्ण नृत्य प्रस्तुतियाँ की हैं, जिनमें भारतीय पौराणिक कथाओं और धार्मिक कथाओं का सुंदर चित्रण होता है। उनके प्रदर्शन में नृत्य की विभिन्न मुद्राओं और भावनाओं का अभिव्यक्ति, दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देती है। उनकी नृत्य साधना और कला के प्रति समर्पण ने उन्हें न केवल सिनेमा की दुनिया में, बल्कि शास्त्रीय नृत्य की दुनिया में भी एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया है। उन्हें वर्ष 2000 में चौथे सर्वाेच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया गया है।

पद्मश्री रामलाल बरेठ- इन्होंने रायगढ़ कत्थक शैली को विकसित करने और कत्थक को घराने के रूप में स्थापित करने के लिए अपना जीवन समर्पित किया है। रायगढ़ कत्थक शैली को लोकप्रिय बनाने में पंडित रामलाल बरेठ का बहुत बड़ा योगदान है। उनके अथक प्रयास से रायगढ़ कत्थक शैली को रायगढ़ घराना के नाम से जाना जाता है। रायगढ़ घराना पूरी दुनिया में चौथे कत्थक घराने के रूप में प्रसिद्ध है।
पंडित रामलाल को 1996 में भारत के माननीय राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने भारत के राष्ट्रीय सम्मान संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया है। उन्हें वर्ष 2024 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया है।

पद्मश्री कुमारी देवयानी- अनिक शेमोटी, जिन्हें मंच नाम कुमारी देवयानी के रूप में जाना जाता है, एक भारतीय नृत्यांगना हैं, जो भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैली भरतनाट्यम में प्रदर्शन करती हैं। उन्होंने भारत के साथ-साथ ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, स्पेन, इटली, ग्रीस, पुर्तगाल, स्कैंडिनेवियाई देशों, एस्टोनिया और दक्षिण कोरिया के त्योहारों और संगीत हॉल में प्रदर्शन किया है। देवयानी भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) की सूचीबद्ध कलाकार हैं। 2009 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।
पद्मश्री डॉ.भारती बंधु- एक भारतीय संगीतकार और गायक हैं, जिनके कबीर भजन बहुत प्रसिद्ध हैं। वे छत्तीसगढ़ के रायपुर में पैदा हुए थे। भारती बंधु ने देश दुनिया भर में हजारों प्रस्तुतियां दी हैं। उन्हें संगीत के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए राज्य अलंकरण से सम्मानित किया गया था। उन्हें राजा चक्रधर सम्मान से भी सम्मानित किया गया है। वे भारत में सूफी और कबीर संगीत के प्रतीक हैं। उन्हें वर्ष 2013 में पद्मश्री से नवाजा गया है।

पद्मश्री अनुज शर्मा- छत्तीसगढ़ी सिनेमा और कला क्षेत्र में ख्यात्तिलब्ध व्यक्तित्व श्री अनुज शर्मा को उनके निर्देशनए अभिनय और गायन में उनकी प्रतिभा के लिए जाना जाता है। कला के क्षेत्र में उनकी सेवाओं के लिए उन्हें भारत सरकार द्वारा 2014 में चौथे सर्वाेच्च नागरिक पुरस्कार पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।
पद्मश्री डॉ.सुरेंद्र दुबे- डॉ.सुरेंद्र दुबे अपनी हास्य कविताओं के लिए पूरे देश दुनिया में प्रसिद्ध हैं। वे वह पेशे से एक आयुर्वेदिक चिकित्सक भी हैं। प्रदेश की बोली और संस्कृति को उन्होंने विभिन्न राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय मंचों से बढ़ावा दिया है। उन्हें भारत सरकार द्वारा 2010 में देश के चौथे उच्चतम भारतीय नागरिक पुरस्कार  पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।

पद्मश्री रंजना गौहर- प्रसिद्ध ओडिसी नृत्यांगना, कोरियोग्राफर तथा फिल्म निर्मात्री हैं। उन्हे पद्मश्री व संगीत नाटक अकादमी के पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है। वह ओडिसी नृत्य के संदर्भ में एक किताब (ओडिसी द डांस डिवाइन) भी लिख चुकी हैं। श्रीमती रंजना गौहर को 2003 में भारत के राष्ट्रपति द्वारा प्रतिष्ठित पद्मश्री और 2007 में राष्ट्रीय संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित  किया गया है।

श्री कमलेश पारीक “कमल”बने भारत गोसेवक समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष

भारत गोसेवक समाज की वार्षिक बैठक आज दिनांक 1सितम्बर को समाज के मुख्यालय 3,सदर थाना रोड दिल्ली स्थित कार्यालय में हुई
महामंत्री श्री राजकुमार अग्रवाल जी की अनुशंसा का सभी सदस्यों ने अनुमोदन किया और पुनः कमलेश पारीक “कमल “, मुंबई को अध्यक्ष और राजकुमार अग्रवाल जी को महामंत्री बनाया गया, संयोजक श्री श्रवण चौहान जी,प्रचार प्रमुख श्री मोहमद फैज खान,मीडिया प्रभारी श्री मनीष सक्सेना, श्री उत्तम अग्रवाल को सदस्यता अभियान प्रमुख तथा श्री मदन चंद्र कर्नाटक को विधि सलाहकार का प्रभार दिया गया।कार्यकारिणी सदस्य के रूप में श्री आशीष सिंघल,श्री मनोज चड्ढा,श्री अश्विन कुमार को नामित किया गया।

वार्षिक बैठक में पिछले वर्ष संस्था की कार्यविधि का प्रतिवेदन श्रवण चौहान ने प्रस्तुत किया।

आगामी वर्ष के कार्य हेतु सभी सदस्यों ने अपने सुझाव प्रस्तुत किए।

अध्यक्ष कमलेश पारीक जी ने गौसेवा हेतु हम क्या कर सकते है और भारत गोसेवक समाज क्या कर सकता है इस पर विचार व्यक्त किए।

विदित हो कि भारत गोसेवक समाज की स्थापना महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी गोभक्त लाला हरदेव सहाय जी ने गुरु गोलवलकर जी के सानिध्य में सन 1949 में की थी
बैठक में गोभक्त सर्वश्री
रतन जाखड़,प्रवीण गर्ग,आशीष सिंघल,अश्विन कुमार, योगाचार्य डॉ राकेश त्रिपाठी, दिल्ली ,सुश्री मेई कारगा अरुणाचल प्रदेश उपस्थित थे।

उपरोक्त जानकारी प्रचार प्रमुख मोहम्मद फैज़ खान ने एक विज्ञप्ति में दी।

संपर्क
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