Friday, April 18, 2025
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फिल्म कुर्बानी की वो खनकदार आवाज नाजिया हसनः जब ईश्वर ने अपनी बनाई हुई खूबसूरत पेंटिंग फाड़ दी

1979-80 का एक वाक़िया। मशहूर फ़िल्म अभिनेत्री ज़ीनत अमान लन्दन में एक सोशल एक्टिविस्ट मुनीज़ा बसीर के घर पर थीं। वहाँ उन्होंने एक गिटार देख कर पूछा कि इसे कौन बजाता है? मुनीज़ा ने अपनी 14 साल की बेटी की तरफ इशारा किया। ज़ीनत ने उस बच्ची से कुछ सुनाने को कहा। बच्ची की आवाज़ में एक नया पैना पन था। एक नई कशिश। ज़ीनत पर उसका जादू सा असर हुआ। उन्हीं दिनों अभिनेता और निर्देशक फ़िरोज़ ख़ान जी ज़ीनत को लेकर एक फ़िल्म बना रहे थे जिसके साउंडट्रैक के लिए उन्हें बिलकुल एक नई तरह की आवाज़ की ज़रूरत थी। इसलिए अगले ही दिन ज़ीनत ने मुनीज़ा को कॉल की और कहा कि मुझे आपकी बेटी की आवाज़ बहुत पसंद आई है और मैं उससे अपनी आने वाली फ़िल्म के साउंडट्रैक के लिए फ़ाइनल करना चाहती हूँ।
थोड़ी बहुत जद्दोजहद के बाद बात तय हो गई, लेकिन उस बच्ची की स्कूल टाइमिंग के कारण रिकॉर्डिंग नहीं हो पा रही थी। लिहाज़ा यह तय हुआ कि स्कूल इंटरवल के बाद कभी हाफ़-डे लेकर रिकॉर्डिंग रख ली जाए। इसलिए एक दिन वह बच्ची स्कूल की यूनिफॉर्म में ही रिकॉर्डिंग स्टूडियो गई। वहाँ पर उसने क़ुर्बानी फ़िल्म के लिए एक गाना रिकॉर्ड किया, जिसके लिरिक्स थे, “आप जैसा कोई मेरी ज़िंदगी में आए, तो बात बन जाए”
उसके बाद जो हुआ वह इतिहास है।
आप समझ गए होंगे कि यहाँ पर बात हो रही है 15 साल की बच्ची “नाज़िया हसन” की। जिसके इस गाने ने आगे चलकर धूम मचा दिया। इस गाने के लिए उसने मात्र 15 साल की उम्र में ही फ़िल्मफ़ेयर जीता जो कि आज तक एक रिकॉर्ड है।
फ़िल्म ‘क़ुर्बानी’ के इस गीत के म्युज़िक कम्पोज़र थे बिड्डू अपैय्या। उन्होंने इस गीत का आइडिया अमेरिकी गायक लू रॉल्स के लोकप्रिय गीत ‘You’ll Never Find Another Love Like Mine’ से लिया था।
इसके बाद तो जैसे नाज़िया के लिए पूरा आस्मां कम पड़ गया। अपने भाई ज़ोहैब के साथ नाज़िया फ़िल्मों और अल्बम के लिए गाने रिकॉर्ड करने लगी। 1981 में रिलीज़ हुआ उनका अल्बम “डिस्को दीवाने” दुनिया के 14 देशों में टॉप में स्थान बनाया और उसे ‘बेस्ट-सेलिंग एशियन पॉप रिकॉर्ड’ का दर्ज़ा भी मिला। इस अल्बम के रिलीज़ होने के पहले ही दिन अकेले बॉम्बे में ही इसकी एक लाख कॉपियां बिकी थीं। यह पाकिस्तान, भारत, ब्राज़ील, रूस, दक्षिण अफ़्रीका, फिलीपींस, मलेशिया, इंडोनेशिया, लैटिन अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, वेस्टइंडीज और अमेरिका सहित 14 देशों में टॉप टेन चार्ट में पहले नंबर पर रहा। दुनिया भर में इसकी एक करोड़ 40 लाख कॉपियां बिकी थीं, जो उस समय एक रिकॉर्ड था।
कुल मिलाकर नाज़िया और ज़ोहैब की जोड़ी ने साउथ एशिया में आधुनिक संगीत में क्रांति ला दी। इन दोनों को इस क्षेत्र में पॉप संगीत के संस्थापकों में से एक माना जाता है। नाज़िया-ज़ोहैब ने साउथ एशिया में 50 सालों से प्रचलित संगीत परंपरा को बदल डाला। साल 1931 में पहली बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ से लेकर साल 1980 तक जितने भी प्रयोग हुए थे, नाज़िया हसन की आवाज़ और उसके साथ वाद्य यंत्र बजाने का अनुभव एक ख़ूबसूरत और अनोखा संगीत साबित हुआ।
लेकिन….लेकिन !
दुनिया की तमाम खुबसूरत दास्ताँ के आगे ‘लेकिन’ का पूर्णविराम लग जाता है।
नाज़िया के जादुई गले में साँस भरने वाले फेफड़ों ने बग़ावत कर दिया। सिर्फ़ 35 साल की उमर में नाज़िया फेफड़ों के कैंसर से लड़ती हुई इस दुनिया को अलविदा कह गईं।
“रौशनी ख़त्म हुई उस निगाह के साथ,
मोहब्बत रुख़सत हुई इक आह के साथ”
मशहूर पेंटर वैन गॉग के बारे में सुना था कि जब उन्हें अपनी कोई पेंटिंग बहुत ज़्यादा अच्छी लगने लगती तो वो उसे फाड़ दिया करते थे।
13 अगस्त 2000 को भी यही हुआ। पेंटिंग बनाने वाले को अपनी पेंटिंग शायद ज़्यादा ही भा गई।

वक्फ कानून की आड़ में देश को दंगों की आग में झौंकने के बाज आए सेक्युलर-जिहादी गठजोड़: विहिप

नई दिल्ली।  बंगाल का मुर्शिदाबाद लगातार चौथे दिन दंगों की आग में झुलस रहा है। वक्फ कानून के विरोध में अब संपूर्ण देश को दंगों की आग में जलाने की तैयारी चल रही है। यह आशंका व्यक्त करते हुए विहिप के केन्द्रीय संयुक्त महामंत्री डॉ सुरेंद्र जैन ने स्मरण कराया कि यह कानून वही है जिसको बनाने से पहले लगभग एक करोड़ भारतीयों ने अपनी राय दी थी तथा संसद के दोनों सदनों में 25 घंटे से अधिक की ऐतिहासिक चर्चा हुई थी। इसके बावजूद देश का सेक्यूलर जिहादी गठजोड़ देश को दंगों की आग में झौंकने का कुत्सित प्रयास कर रहा है जिससे उसे बाज आना चाहिए।
उन्होंने कहा कि कानून बनने के बाद इसके विरोध में 18 से अधिक याचिकाएं माननीय सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल की जा चुकी है। संविधान की दुहाई देने वालों को माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा करनी चाहिए थी। ऐसा लगता है देश के संविधान की दुहाई देने वालों को न देश के संविधान की चिंता है ना न्यायपालिका के सम्मान की।
वक्फबोर्ड के नाम पर चल रहे लैंड माफिया और मुस्लिम वोटों पर अपना एकाधिकार मानने वाले सेक्युलर माफिया को चिंता केवल अपने स्वार्थ की है। लैंड माफिया को चिंता है उनके द्वारा हड़पी गई जमीन छिन जाने की, तो सेकुलर माफिया को चिंता है मुस्लिम वोटों पर उनके कथित एकाधिकार के समाप्त होने की।
डॉ जैन ने कहा कि इन दोनों के अपवित्र गठबंधन का वीभत्स स्वरूप 2013 में गुरुग्राम में सामने आया था जब वहाँ के पालम विहार के पार्क की जमीन को वक्फ की संपत्ति घोषित किया था और नमाज के नाम पर जमावड़ा इकट्ठा किया जा रहा था। तत्कालीन कांग्रेस की राज्य सरकार ने उनकी हां में हां मिलाई थी जबकि किसी के पास कोई सबूत नहीं था। दिल्ली में अरबों खरबों रुपये मूल्य की 123 सरकारी संपत्तियों पर भी इन्होंने दावा ठोका था जिन्हें तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने बिना सबूत के 2014 में आम चुनाव घोषित होने के दिन ही उन्हे थाली में परोस कर फ्री में दे दिया था।
जागरुक हिंदू समाज, सजग न्यायपालिका और हिंदू संगठनों के अथक प्रयास के कारण ये दोनों षडयंत्र विफल हुए। लेकिन वक्फ कानून में 2013 के संशोधनों के आधार पर संपूर्ण देश में वक्फ के दावों की झड़ी सी लग गई और ऐसा लग रहा था मानो ये पूरे देश को ही वक्फ की संपत्ति घोषित करके कुछ मौलवियों की निजी मलकीयत बना दी जाएगी।
उन्होंने याह भी कहा कि कानून पास होने के बाद उन्हें विरोध करने का तो अधिकार है किन्तु, इसके नाम पर दंगे करने का नहीं। इस अपवित्र गठबंधन ने इसी तरह  देश को बंधक बनाकर भारत का विभाजन करवाया था और शाहबानो मामले में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के विरुद्ध कानून बनवा लिया था। किन्तु, स्मरण रहे कि अब देश को बंधक बनाना संभव नहीं है। मुस्लिम समाज का एक बड़ा वर्ग ओवैसी जैसे नेताओं की असलियत को समझता है और देश की जनता राहुल व अखिलेश जैसे सेकुलर माफियाओं को बखूबी जान चुका है। इन लोगों को मालूम है कि कानून की असलियत क्या है और इन लोगों की क्या है। यह पूरे देश को मालूम चल गया है। अब इस गठजोड़ को विरोध के नाम पर दंगों व दंगाइयों से दूर रह कर अपनी इन हरकतों से बाज आना चाहिए।
विनोद बंसल
राष्ट्रीय प्रवक्ता
विश्व हिन्दू परिषद

वैश्विक समरस संस्थान भीलवाड़ा अधिवेशन में कोटा के 8 साहित्य सेवी सम्मानित होंगे

कोटा/  वैश्विक समरस संस्थान साहित्य सृजन भारत गांधीनगर, गुजरात के 12 अप्रैल को होने वाले राष्ट्रीय अधिवेशन एवं दशाब्दी समारोह में कोटा के आठ साहित्यकारों को उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए सम्मानित किया जाएगा।
संस्थान संस्थापक एवं संचालक डॉ. मुकेश कुमार व्यास ‘स्नेहिल’ ने बताया कि कोटा के डॉ. शशि जैन, डॉ. वैदेही गौतम, डॉ. अपर्णा पाण्डेय, राजेंद्र कुमार जैन, विजय जोशी, महेश पंचोली एवं डॉ. प्रभात कुमार सिंघल को सम्मानित किया जाएगा।
उन्होंने बताया कि अन्य सम्मानित होने वाले साहित्यकारों में सन्ध्या रानी चतरा झारखंड,  सुरेन्द्र शर्मा  ‘बशर’ अहमदाबाद,  संतोष शर्मा जी अहमदाबाद ,डॉ.श्यामसिंह जी राजपुरोहित जयपुर , गोविन्द गुरु जी पटवारी धौलपुर, मीना शर्मा जी धौलपुर, सविता धर जी धनबाद झारखण्ड,दसरथ सिंह दबंग भीलवाड़ा , राकेश आनन्दकर अजमेर डॉ.विजयप्रताप सिंह अहमदाबाद , राजेश मित्तल भीलवाड़ा , गौरव भारद्वाज धौलपुर,  ओम उज्ज्वल भीलवाड़ा ,बाल कवि रुद्र प्रताप धौलपुर ,.डॉ.उमासिंह किसलय अहमदाबाद , आनंद जैन अकेला कटनी मध्यप्रदेश, अरुण ठाकर जिंदगी जयपुर , मनोहर लाल कुमावत भीलवाड़ा  डॉ. विभा प्रकाश जी लखनऊ , बृजसुन्दर सोनी भीलवाड़ा ,श्रीमती प्रेम सोनी भीलवाड़ा ,श्याम सुन्दर तिवारी मधुप भीलवाड़ा, कवयित्री मधुसिंह महक भीलवाड़ा, श्रीमती शशि ओझा भीलवाड़ा ,श्रीमती कृष्णा माहेश्वरी भीलवाड़ा ,नरेंद्र कुमार वर्मा ‘नरेन’ भीलवाड़ा ,श्रीमती रजनी शर्मा मृदुल धौलपुर .प्रिया शुक्ला धौलपुर , नन्दिनी शर्मा केशरी धौलपुर,  राजेन्द्र पुरोहित जोधपुर , गायत्री सरगम भीलवाड़ा एवं सुनील व्यास पुर, भीलवाड़ा  को सम्मानित किया जाएगा।
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डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
संस्थान मीडिया प्रभारी, कोटा

तीर्थंकर बनने की प्रक्रिया और 24 तीर्थंकर

जैन धर्म में 24 तीर्थंकर माने गए हैं, जिन्हें विशेष आत्मज्ञान (केवलज्ञान) प्राप्त हुआ और जिन्होंने मोक्ष का मार्ग बताया। तीर्थंकर का अर्थ है “तीर्थ बनाने वाला”, यानी वह आत्मा जिसने संसार सागर से पार होने का मार्ग बनाया और दूसरों को भी मार्ग दिखाया।

तीर्थंकर कैसे बनते हैं?

जैन दर्शन के अनुसार, तीर्थंकर बनने के लिए आत्मा को:

  • अत्यंत पुण्य,
  • महान तपस्या,
  • सात्विक जीवन,
  • और तीर्थंकर नामकर्म का बंध होना आवश्यक होता है।

ये आत्माएँ करोड़ों जन्मों तक तप, संयम, और धर्म का पालन कर तीर्थंकर बनने योग्य बनती हैं।

किसी को तीर्थंकर कैसे घोषित किया जाता है

 जैन धर्म में तीर्थंकर कोई साधारण गुरु या संत नहीं होते — ये ऐसे महापुरुष होते हैं जिन्होंने केवलज्ञान (संपूर्ण ज्ञान) प्राप्त किया होता है और जो “तीर्थ” अर्थात मोक्षमार्ग की स्थापना करते हैं। तीर्थंकर बनने की प्रक्रिया बहुत विशिष्ट और आध्यात्मिक रूप से गहन होती है।


कोई तीर्थंकर कैसे घोषित होता है?

जैन दर्शन के अनुसार, तीर्थंकर की पहचान और घोषणा का कोई मानवीय या संस्थागत निर्णय नहीं होता, बल्कि यह कर्म सिद्धांत और आत्मिक योग्यता पर आधारित होती है। इसमें मुख्य बातें होती हैं:


1. तीर्थंकर नामकर्म बंध

  • किसी जीव (आत्मा) के पिछले जन्मों के उत्तम पुण्य और तप से उसका तीर्थंकर नामकर्म बंधता है।
  • यह बंध जीवन के अत्यंत पुण्यशील और त्यागमय अवस्था में होता है।
  • यह कर्म तय करता है कि वह आत्मा आगे चलकर तीर्थंकर बनेगी।

2. देवों की पूर्व-घोषणा (पूर्वचिन्ह)

  • जब वह आत्मा मनुष्य योनि में तीर्थंकर बनने के लिए जन्म लेती है, तो इंद्रदेव (सुरेन्द्र) और अन्य देवता उसे पहचानते हैं।
  • जन्म से पहले कल्पवृक्ष, सिंहासन, चक्र, देवदुन्दुभि, और सपनों के रूप में माता को संकेत मिलते हैं (उदाहरण: त्रिशला माता को 16 स्वप्न)।

3. जन्म के समय शुभ लक्षण

  • तीर्थंकरों के जन्म के समय दिव्य घटनाएँ होती हैं:
    • पृथ्वी पर शांति छा जाती है
    • इंद्रदेव जन्माभिषेक कराते हैं
    • आकाशवाणी होती है
    • माता-पिता को दिव्य आनंद की अनुभूति होती है

4. केवलज्ञान की प्राप्ति

  • तीर्थंकर कठिन तपस्या और ध्यान के बाद केवलज्ञान प्राप्त करते हैं — यानी उन्होंने संसार के समस्त पदार्थों और आत्मा को पूरी तरह जान लिया होता है।
  • इसके बाद वे धर्मचक्र प्रवर्तन करते हैं, यानी चार तीर्थ (साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका) की स्थापना करते हैं।

5. तीर्थंकर की भूमिका

  • वे केवल उपदेशक नहीं, मोक्षमार्ग के मार्गदर्शक होते हैं।
  • उनके उपदेशों को श्रुतज्ञान के रूप में अगली पीढ़ियों तक पहुँचाया जाता है।
क्रम तीर्थंकर का नाम प्रतीक चिन्ह
1 ऋषभनाथ (आदिनाथ) बैल (बृषभ)
2 अजितनाथ हाथी
3 संभवनाथ घोड़ा
4 अभिनन्दननाथ वानर (बंदर)
5 सुमतिनाथ क्रौंच (पक्षी)
6 पद्मप्रभ कमल
7 सुपार्श्वनाथ स्वस्तिक
8 चन्द्रप्रभ चन्द्रमा
9 पुष्पदन्त (सुविधिनाथ) मगरमच्छ
10 शीतलनाथ कल्पवृक्ष
11 श्रेयांसनाथ गैंडा
12 वासुपूज्य भैंसा
13 विमलनाथ शूक
14 अनंतनाथ बाज (गरुड़)
15 धर्मनाथ वज्र (गदा)
16 शांतिनाथ हिरण
17 कुंथुनाथ बकरी
18 अरहनाथ मछली
19 मल्लिनाथ कलश
20 मुनिसुव्रतनाथ कछुआ
21 नमिनाथ नीला कमल
22 नेमिनाथ शंख
23 पार्श्वनाथ सर्प
24 महावीर स्वामी सिंह (शेर)

गुजरात के मुख्यमंत्री श्री भूपेन्द्रभाई पटेल ने ‘विश्व नवकार महामंत्र दिवस’ पर जारी किया विशेष डाक आवरण

भारतीय डाक विभाग द्वारा जैन इंटरनेशनल ट्रेड ऑर्गनाइजेशन (जीतो) की ओर से 9 अप्रैल,  2025 को अहमदाबाद के जीएमडीसी मैदान पर आयोजित ‘’विश्व नवकार महामंत्र दिवस” पर एक विशेष आवरण और विरूपण गुजरात के मुख्यमंत्री श्री भूपेन्द्रभाई पटेल द्वारा जारी किया गया। उत्तर गुजरात परिक्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने मुख्यमंत्री को विशेष आवरण की प्रथम प्रति भेंट किया। इस विशेष आवरण पर ‘भगवान पार्श्वनाथ का 2800 वां निर्वाण कल्याणक’ पर जारी डाक टिकट लगाकर इसका विशिष्ट विरूपण किया गया। यह आयोजन जैन समुदाय की ओर से विश्व शांति और अहिंसा के संदेश को फैलाने के उद्देश्य से किया गया। इस दौरान सुबह 8:01 बजे से लेकर 9:36 बजे तक एक साथ 25 हजार से अधिक लोगों ने नवकार मंत्र का सामूहिक जाप किया।

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित कार्यक्रम से पूरे भारत को वर्चुअली संबोधित किया। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने नवकार मंत्र के गहन आध्यात्मिक अनुभव साझा करते हुए मन में शांति एवं स्थिरता लाने की इसकी क्षमता पर चर्चा की। उन्होंने कहा, “नवकार महामंत्र सिर्फ मंत्र नहीं है। ये हमारी आस्था का केंद्र है। हमारे जीवन का मूल स्वर, और इसका महत्व सिर्फ आध्यात्मिक नहीं है। ये स्वयं से लेकर समाज तक सबको राह दिखाता है, जन से जग तक की यात्रा है। इस मंत्र का प्रत्येक पद ही नहीं, बल्कि प्रत्येक अक्षर अपने आप में मंत्र है।” प्रधानमंत्री ने सामूहिक नवकार मंत्र के जाप के बाद सभी से नौ संकल्प लेने का भी आग्रह किया। गुजरात के गृह मंत्री श्री हर्ष संघवी भी अहमदाबाद में आयोजित कार्यक्रम से  वर्चुअली जुड़े।

पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि ‘’विश्व नवकार महामंत्र दिवस’ पर विशेष आवरण को एक विशिष्ट प्रतीक के रूप में तैयार किया गया है। इसमें नवकार मंत्र “नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं, नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सव्वसाहूणं, एसो पंच नमुक्कारो, सव्व पावप्पणासणो, मंगलाणं च सव्वेसिँ, पढमं हवइ मंगलं” को प्रदर्शित किया गया है। ऐसे में एक प्रतिष्ठित सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में जारी इस विशेष आवरण के माध्यम से युवा पीढ़ी अपनी संस्कृति और विरासत से अवगत हो सकेगी। ये विशेष आवरण फिलेटली का एक अद्भुत हिस्सा बनकर और डाक टिकट लगकर देश-विदेश में भी जायेंगे, जहाँ नवकार महामंत्र की गाथा को लोगों तक फैलाएँगे और इसका देश-विदेश में व्यापक प्रचार-प्रसार हो सकेगा।

गौरतलब है कि नवकार महामंत्र दिवस आध्यात्मिक सद्भाव और नैतिक चेतना का एक महत्वपूर्ण उत्सव है और यह जैन धर्म में सबसे अधिक पूजनीय और सार्वभौमिक मंत्र नवकार महामंत्र के सामूहिक जाप के माध्यम से लोगों को एकजुट करने का प्रयास करता है। अहिंसा, विनम्रता और आध्यात्मिक उत्थान के सिद्धांतों पर आधारित यह मंत्र प्रबुद्ध व्यक्तियों के गुणों को श्रद्धांजलि देता है और आंतरिक परिवर्तन को प्रेरित करता है। यह दिवस सभी व्यक्तियों को आत्म-शुद्धि, सहिष्णुता और सामूहिक कल्याण के मूल्यों पर चिंतन करने के लिए प्रोत्साहित करता है। शांति और एकजुटता के लिए इस वैश्विक मंत्रोच्चार में देश-विदेश से तमाम लोग शामिल हुए। उन्होंने पवित्र जैन मंत्र के माध्यम से शांति, आध्यात्मिक जागृति और सार्वभौमिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए भाग लिया।

इस अवसर पर टोरेंट ग्रुप के चेयरमैन श्री सुधीर मेहता, जीतो की अहमदाबाद इकाई अध्यक्ष श्री ऋषभ पटेल, जीतो के चीफ सेक्रेटरी श्री मनीष शाह, कन्वीनर श्री आसित शाह, वाइस चेयरमैन श्री वैभव शाह, श्री प्रकाश भाई संघवी, श्री गणपतराज चौधरी, अहमदाबाद जीपीओ डिप्टी चीफ पोस्टमास्टर श्री अल्पेश शाह और जैन समुदाय के विभिन्न पंथों जैसे श्वेतांबर, दिगंबर, तेरापंथी, स्थानकवासी आदि के साधु-साध्वी, आचार्य, गच्छाधिपति आयोजन में शामिल हुए।

भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति ने जगाई आशा और उम्मीदें

दिनांक 9 अप्रेल 2025 को भारतीय रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति की द्विमासिक बैठक में एकमत से निर्णय लेते हुए रेपो दर में 25 आधार बिंदुओं की कमी करते हुए इसे 6.25 प्रतिशत से घटाकर 6 प्रतिशत कर दिया है एवं इस मौद्रिक नीति में स्टैन्स को स्थिर (स्टेबल) से उदार (अकोमोडेटिव) कर दिया है। इसका आश्य यह है कि आगे आने वाले समय में भारतीय रिजर्व बैंक रेपो दर में वृद्धि नहीं करते हुए इसे या तो स्थिर रखेगा अथवा इसमें कमी की घोषणा करेगा। भारत में मुद्रा स्फीति की दर को नियंत्रित करने में मिली सफलता के चलते भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा यह निर्णय लिया जा सका है।

हाल ही के समय में अमेरिका द्वारा अन्य देशों से आयातित वस्तुओं पर भारी भरकम टैरिफ लगाने की घोषणा की गई है जिससे पूरे विश्व भर के लगभग समस्त देशों के शेयर बाजार में हाहाकार मच गया है एवं शेयर बाजार लगातार नीचे की ओर जा रहे हैं। ऐसे माहौल में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा रेपो दर में कमी करने की घोषणा एक उचित कदम ही कहा जाना चाहिए। वैसे भारत में मुद्रा स्फीति अब नियंत्रण में भी आ चुकी है एवं आगे आने वाले मानसून के दौरान भारत में सामान्य (103 प्रतिशत) बारिश होने का अनुमान लगाया गया है। इस वर्ष रबी के मौसम में गेहूं की बम्पर पैदावार होने का अनुमान लगाया गया है, सब्जियों एवं फलों की कीमत भारतीय बाजारों में कम हुई है, अतः कुल मिलाकर खुदरा महंगाई की दर 4 प्रतिशत से भी नीचे आ गई है।
 भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा भी वर्ष 2025-26 में भारत में मुद्रा स्फीति की दर के 4 प्रतिशत के नीचे रहने का अनुमान लगाया गया है। साथ ही, वैश्विक स्तर पर लगातार बदल रहे घटनाक्रम के चलते कच्चे तेल के दाम भी तेजी से घटे हैं और यह 75 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल से घटकर 60 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल पर आ गए हैं। भारत के लिए यह बहुत अच्छी खबर है, क्योंकि, इससे विनिर्माण इकाईयों की लाभप्रदता में वृद्धि होगी तथा देश में ईंधन की कीमतें कम होंगी और अंततः मुद्रा स्फीति की दर में और अधिक कमी होगी। भारतीय रिजर्व बैंक के लिए इससे आगामी मौद्रिक नीति के माध्यम से रेपो दर में और अधिक कटौती करना सम्भव एवं आसान होगा।

वैश्विक स्तर पर अमेरिका द्वारा छेड़े गए व्यापार युद्ध का भारतीय अर्थव्यवस्था पर बहुत अधिक विपरीत प्रभाव पड़ने की सम्भावना नहीं है और भारतीय रिजर्व बैंक के आंकलन के अनुसार वित्तीय वर्ष 2025-26 में भारत की आर्थिक विकास दर 6.5 प्रतिशत रह सकती है और पूर्व में इसके 6.7 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था, अर्थात, अमेरिका द्वारा अपने देश में होने वाले आयात पर लगाए गए टैरिफ से भारतीय अर्थव्यवस्था पर केवल 0.2 प्रतिशत का असर होने की सम्भावना व्यक्त की गई है। भारतीय अर्थव्यवस्था दरअसल निर्यात पर बहुत अधिक निर्भर भी नहीं है। भारत के सकल घरेलू उत्पाद का केवल लगभग 16-17 प्रतिशत भाग ही अन्य देशों को निर्यात किया जाता है। इसमें से भी अमेरिका को तो भारत के सकल घरेलू उत्पाद का केवल लगभग 2 प्रतिशत भाग ही निर्यात होता है। अतः ट्रम्प प्रशासन द्वारा विभिन्न देशों पर अलग अलग दर से लगाए गए टैरिफ का भारतीय अर्थव्यवस्था पर नगण्य सा प्रभाव पड़ने की सम्भावना है।

वैश्विक स्तर पर उक्त वर्णित समस्याओं के बीच भी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई एम एफ) ने अनुमान लगाया है कि वर्ष 2028 तक भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा एवं वर्ष 2025 एवं 2026 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 6.5 प्रतिशत की वृद्धि दर बनी रहेगी। पिछले 10 वर्षों के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था में 100 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। इस वर्ष के अंत तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद का स्तर 4.27 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच जाएगा, जो भारतीय रुपए में लगभग 360 लाख करोड़ रुपए बनता है। वर्ष 2015 से लेकर वर्ष 2024 तक के पिछले 10 वर्षों के समय में भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार दुगना हो गया है। वर्ष 2015 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद का आकार 2.10 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर (रुपए 180 लाख करोड़) का था और भारत विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में 10वें क्रम पर था। वर्ष 2025 में भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार दुगना होकर 4.27 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर रहने का अनुमान लगाया गया है।

पिछले 10 वर्षों के दौरान केंद्र सरकार ने आर्थिक एवं वित्तीय क्षेत्र में कई सुधार कार्यक्रम लागू किए हैं जिससे विशेष रूप से कृषि के क्षेत्र में सुधार दृष्टिगोचर हुआ है। साथ ही, भारत में आधारभूत संरचना खड़ी करने के लिए केंद्र सरकार के पूंजीगत खर्च में भारी भरकम वृद्धि दर्ज हुई है। देश में विदेशी निवेश का लगातार विस्तार हो रहा है और रोजगार के अवसरों में भी अतुलनीय वृद्धि दर्ज हुई है। भारत में विनिर्माण के क्षेत्र में नई इकाईयों की स्थापना को प्रोत्साहन देने के लिए उत्पादन प्रोत्साहन योजना (पी एल आई) लागू की गई है। मुद्रा योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार की गारंटी पर भारतीय बैकों (निजी एवं सरकारी क्षेत्र के बैकों सहित) ने 33 लाख करोड़ रुपए के ऋणों का वितरण किया है।

भारत में अनियमित जलवायु परिस्थितियों के बीच भी  पिछले 10 वर्षों के दौरान कृषि के क्षेत्र में विस्तार हुआ है जिससे किसानों की आय को स्थिर रखने में सफलता मिली है। साथ ही, गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे नागरिकों की केंद्र सरकार ने विशेष सरकारी योजनाओं एवं सब्सिडी के माध्यम से बहुत अच्छे स्तर पर सहायता की है। इससे इस श्रेणी के कई परिवार अब मध्यम श्रेणी में आ गए हैं एवं भारत में विभिन्न उत्पादों की मांग की वृद्धि में सहायक बन रहे हैं। देश में लागू किए गए डिजीटलाईजेशन से भी भारत में किए जाने वाले लेनदेन के व्यवहारों में पारदर्शिता आई है और इससे भारत में वस्तु एवं सेवा कर एक उपलब्धि सिद्ध हुआ है। आज भारत में वस्तु एवं सेवा कर के माध्यम से लगभग 2 लाख करोड़ रुपए का अप्रत्यक्ष कर संग्रहित हो रहा है तथा इससे देश में बुनियादी ढांचे को विकसित करने में भरपूर सहायता मिली है।

भारत आज अमेरिका, चीन, जर्मनी एवं जापान के पश्चात विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। पिछले 10 वर्षों के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था ने लम्बी छलांग लगाते हुए, विश्व में 10वें से आज 5वें स्थान पर आ गई है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के आंकलन के अनुसार पिछले 10 वर्षों में भारत का सकल घरेलू उत्पाद 100 प्रतिशत बढ़ा है तो अमेरिका का 65.8 प्रतिशत, चीन का 75.8 प्रतिशत, जर्मनी का 43.7 प्रतिशत और जापान का केवल 1.3 प्रतिशत बढ़ा है।  अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2025 एवं 2026 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत प्रतिवर्ष की बनी रहेगी, इस प्रकार भारत वर्ष 2026 में जापान को पीछे छोड़ते हुए विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा एवं वर्ष 2028 में जर्मनी को पीछे छोड़कर भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। जर्मनी, जापान एवं भारत के सकल घरेलू उत्पाद में बहुत ही थोड़ा अंतर है। जापान का सकल घरेलू उत्पाद 4.4 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर है, जर्मनी का सकल घरेलू उत्पाद 4.9 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर है, वहीं भारत का सकल घरेलू उत्पाद 4.3 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर है।

यदि भारत में आगे आने वाले वर्षों में मुद्रा स्फीति पर अंकुश कायम रहता है एवं भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा  आगे आने वाले समय में ब्याज दरों में लगातार कमी की जाती है तो भारत अपनी आर्थिक विकास दर को 6.5 प्रतिशत से भी आगे ले जा सकने में सफल हो सकता है। अतः भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा मुद्रा नीति में स्टैन्स को स्थिर से उदार करने के निहितार्थ हैं।
प्रहलाद सबनानी
सेवानिवृत्त उपमहाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
के-8, चेतकपुरी कालोनी,
झांसी रोड, लश्कर,
ग्वालियर – 474 009
मोबाइल क्रमांक – 9987949940
ई-मेल – prahlad.sabnani@gmail.com

औरंगजेब के अत्याचारों के आगे नहीं झुके कानाहा रावत

औरंगजेब ने 9 अप्रेल 1669 को फरमान जारी किया- “काफ़िरों के मदरसे और मन्दिर गिरा दिए जाएं”. फलत: ब्रज क्षेत्र के कई अति प्राचीन मंदिरों और मठों का विनाश कर दिया गया. कुषाण और गुप्त कालीन निधि, इतिहास की अमूल्य धरोहर, तोड़-फोड़, मुंड विहीन, अंग विहीन कर हजारों की संख्या में सर्वत्र छितरा दी गयी. सम्पूर्ण ब्रजमंडल में मुगलिया घुड़सवार और गिद्ध चील उड़ते दिखाई देते थे . और दिखाई देते थे धुंए के बादल और लपलपाती ज्वालायें- उनमें से निकलते हुए साही घुडसवार.

वीर गौकुल सिंह ने अथक साहस का परिचय देकर पंचों व मुखियों को रावत पाल के बडे गांव बहीन में एक विशाल पंचायत बुलाई. इस में औरंगजेब से निपटने की योजना तैयार की गई. इस पंचायत में बलबीर सिंह ने गोकला को आश्वासन दिया कि वे अपनी आन बान और शान के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर देंगे, लेकिन विदेशी आक्रांताओं के समक्ष कभी नहीं झुकेंगे. युद्ध करने की समय सीमा तय हो गई.

खबर औरंगजेब तक पंहुच गई. उसने अपना सेनापति शेरखान को बहीन भेजा. माघ माह शीत लहर में गांव के चुनिंदा लोग वर्णित पंचायत में लिए गए फैसले की तैयारी कर रहे थे, कि अचानक गांव के चौकीदार चंदू बारिया ने औरंगजेब के सेनापति दूत शेरखान के आने की सूचना दी. बंगले पर विराजमान वृद्धों ने भारतीय संस्कृति की रीतिरिवाज के अनुसार शेरखान को आदर सहित बंगले पर बुलवाया तथा उससे आने का कारण पूछा. शेरखान शाह मिजाज से वृद्धों का अपमान करता हुआ बोला – हम बादशाह औरंगजेब का फरमान लेकर आए है. यहां के लोग सीधे-सीधे ढंग से इस्लाम धर्म स्वीकार करते हैं, तो तुम्हारे मुखिया को नवाब की उपाधि से सम्मानित करेंगे. खास चेतावनी यह है कि यदि तुम लोगों ने गोकला जाट का साथ दिया तो अंजाम बुरा होगा।

इतनी बात सुनकर कान्हा रावत वहां से उठे और अपनी निजी बैठक में गया और भाला लेकर वापिस शेरखान पर टूट पडा. गांव के वृद्धों ने उसे रोकने का प्रयास किया, लेकिन वे असफल रहे. इधर शेरखान ने भी अपने साथियों को आदेश दिया कि वे इस छोकरे को शीघ्र काबू करके बंदी बनाएं. कान्हा रावत का उत्साह देखकर उसके युवा साथी भी लाठी, बल्लम आदि शस्त्र लेकर टूट पडे. युवाओं ने उन सैनिको को वहां से भगा कर ही दम लिया.

रावतों के पांच गावों (बहीन, नागल जाट, अल्घोप, पहाड़ी, और मानपुर) की एक महापंचायत हुई थी जिसमे कान्हा रावत के अध्यक्षता में निर्णय लिए गए थे

हम अपना सनातन धर्म नहीं बदलेंगे.

मुसलमानों के साथ खाना नहीं खायेंगे.

कृषि कर अदा नहीं करेंगे.

रावत पंचायत के निर्णयों की खबर जब औरंगजेब को लगी तो वह क्रोध से आग बबूला हो उठा. उसने अब्दुल नवी सेनापति के अधीन एक बहुत बड़ी सेना बहीन पर आक्रमण के लिए भेजी. सन 1684 में बहिन गाँव को चारों तरफ से घेर लिया. रावतों और मुग़ल सेना में युद्ध छिड़ गया. लेकिन मुगलों की बहुसंख्यक, हथियारों से सुसज्जित सेना के आगे शास्त्र-विहीन आखिर कब तक मुकाबला करते. अनुमानतः 2000 से अधिक वीरगति को प्राप्त हुए थे. कान्हा रावत को गिरफ्तार कर लिया गया.

सात फ़ुट लम्बे तगड़े बलशाली युवा कान्हा रावत को गिरफ्तार करके मोटी जंजीरों से जकड़ दिया गया. उसके पैरों में बेडी, हाथों में हथकड़ी तथा गले में चक्की के पाट डालकर कैद करके दिल्ली लाया गया. वहां उसको अजमेरी गेट की जेल में बंद कर दिया गया. उसी जेल के आगे गढा खोदा गया. कान्हा को प्रतिदिन उस गढे में गाडा जाता था तथा अमानवीय यातनाएं दी जाती थी लेकिन वह इन अत्याचारों से भी टस से मस नहीं हुआ.

एक दिन बड़ी मुश्किल से मिलने की इजाज़त लेकर कान्हा का छोटा भाई दलशाह उसे मिलने के लिए आया. उस समय कान्हा के पैर जांघों तक जमीन में दबाये हुए थे तथा हाथ जंजीरों से जकडे हुए थे. कोड़ों की मार से उसका शरीर सूखकर कांटा हो गया था.

दलशाह से यह दृश्य देखा नहीं गया तो उसने कान्हा से कहा भाई अब यह छोड़ दे. तब कान्हा तिलमिला उठा और बोला:

“अरे दलशाह यह तू कह रहा है. क्या तू मेरा भाई है. मैंने तो सोचा था कि मेरा भाई अब्दुन नबी की मौत की सूचना देने आया है. ताकि मैं शांति से मर सकूं. मैंने तो सोचा था कि मेरे भाई ने मेरा प्रतोशोध ले लिया है.

कान्हा का छोटा भाई दलशाह कान्हा को प्रणाम कर माफ़ी मांग कर वापिस गया. कान्हा रावत के छोटे भाई दलशाह ने रावतों के अतिरिक्त उस क्षेत्र के अनेक गावों को इकठ्ठा कर अब्दुल नवी पर हमला बोल दिया. यह खबर कान्हा को उसकी मृत्यु से एक दिन पहले मिली. इस खबर से कान्हा को बड़ी आत्मिक शांति मिली. इस घटना के बाद औरंगजेब ने कान्हा रावत पर जुल्म बढा दिए. अंत में चैत्र अमावस विक्रम संवत 1738 (1684 इस्वी} को वीरवर कान्हा रावत को जिन्दा ही जमीन में गाड दिया. वह देशभक्त धर्म की खातिर बलिदान हो गया.

जिस स्थान पर कान्हा रावत को जिन्दा गाडा गया था वह स्थान अजमेरी गेट के आगे मौहल्ला जाटान की गली में आज भी एक टीले के रूप में विद्यमान है.

तीर्थंकर महावीर के विचार आज भी प्रासंगिक

श्रमण डॉ पुष्पेन्द्र ने जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी के जन्म कल्याणक (जयंती) के अवसर पर देशवासियों को शुभकामनाएँ देते हुए कहा कि भगवान महावीर ने जो शिक्षाएं और संदेश दिया वह आज भी प्रासंगिक हैं। अहिंसा, अपरिग्रह, करुणा और क्षमा के विचार जनमानस की जीवन पद्धति बन गए हैं। महावीर स्वामी ने मानवता को शांति, प्रेम, सौहार्द और बंधुत्व की भावना के साथ जीवन जीने का मार्ग बताया। संपूर्ण विश्व एक है और सभी प्राणी एक ही परिवार के सदस्य हैं। एक का सुख सबका सुख है। एक की पीड़ा सभी की पीड़ा है, उनका यह संदेश आज भी पूरी दुनिया के लिए आदर्श है।

उन्होंने कहा कि आज पूरे विश्व में अशांति फैली हुई है। अनिश्चितता का दौर है, भय का माहौल है। एक दूसरे के प्रति अविश्वास की भावना है। अहिंसा, अपरिग्रह, जियो और जीने दो आदि सभी महत्वपूर्ण तीर्थंकर महावीर के सिद्धांत अनेकांतवाद की नींव पर ही टिके हैं। अनेकांतवाद का अर्थ है कि किसी भी एक पक्ष को सही मानकर नहीं चलना वरन सभी के मतों को, सभी के पक्षों को समाहित करते हुए तथ्यों तक पहुंचना। आज सभी समस्याओं की यही जड़ है कि सभी केवल अपनी बात को ही सही मानते हैं, दूसरों के सापेक्ष से उसे नहीं समझते यही दुख का कारण है, अशांति का कारण है। महावीर ने भारत के विचारों को उदारता दी, आचार को पवित्रता दी जिसने इंसान का गौरव बढ़ाया। उसके आदर्श को परमात्मा पद की बुलंदी तक पहुंचाया, जिसने सभी को धर्म और स्वतंत्रता का अधिकारी बनाया और जिसने भारत के आध्यात्मिक संदेश को अन्य देशों तक पहुंचाने की शक्ति दी। यही कारण है कि आज विश्व में तीर्थंकर महावीर के सिद्धांतों की ओर लोगों का ध्यान गया है। जहां अनेकांतवाद के सिद्धांतों का पालन नहीं हो रहा है वहां आतंकवाद की जड़ें मजबूत हो रही हैं। भगवान महावीर ने कहा था कि मूल बात दृष्टि की होती है। हम किस दृष्टि से अपने आसपास समाज में हो रही व्यवस्थाओं व घटनाओं को देखते हैं। उन्होंने बताया कि हम भीतर से अपने को देखें एवं उसकी सापेक्षता में इस जगत को समझें। आज महावीर के सिद्धांतों को आगे बढ़ाने के लिए महावीरों की आवश्यकता है, प्रयोग वीरों की आवश्यकता है।

औरंगजेब को धूल चटाने वाले राजाराम जाट

ये वो नाम है जिससे आज की तारीख में सबसे ज्यादा नफरत की जा रही है…!
आज के समय में औरंगजेब को महान बोलने वालों के खिलाफ एफआईआर कराई जा रही है साथ ही, औरंगजेब की मौत के 300 साल बाद कब्र पर बुलडोजर चलवाने की बातें हो रही हैं!
औरंगजेब की हिन्दू विरोधी नीतियों और धार्मिक कट्टरता को लेकर भारत में विरोध कोई नई बात नहीं है…!
उल्लेखनीय है कि, जाटों ने औरंगजेब के जीवनकाल में ही उसके खिलाफ विद्रोह कर दिया था और उसके दादा (अकबर) की क़ब्र को खोद कर हड्डियों को जला दिया था…!
पूरी घटना इस तरह है कि, राजस्थान के भरतपुर जिले में जाटों ने सन 1668 में औरंगजेब की जजिया कर, धार्मिक कट्टरता और मुगल सेना के अत्याचार के विरोध में विद्रोह कर दिया था! इस विद्रोह का नेतृत्व गांव तिलपत के वीर गोकुला जाट ने किया था। औरंगजेब ने कुछ गद्दार हिन्दुओं की मदद से वीर गोकुला जाट को कैद कर लिया था…! सन 1669 में उसने गोकुला जाट से इस्लाम कबूल करने की शर्त पर उन्हें छोड़ने की बात कही…! मगर, वीर गोकुला जाट ने इस्लाम को झूठ का पुलिंदा और मोहम्मद की मनगढंत बातें कह कर आलमगीर को भी इस्लाम त्याग कर इंसान बनने की सलाह दे दी…!
इसके बाद आगरा की मुगल कोतवाली के पास औरंगेजब ने वीर गोकुला जाट को सरेआम मौत की सजा दे दी…! वीर गोकुला जाट का सिर उनके धड़ से कायरता पूर्वक अलग कर दिया गया…!
वीर गोकुला जाट के अमर बलिदान से जाटों का संगठन विचलित नहीं हुआ बल्कि और मजबूत हो गया…! इस अत्याचार का बदला लेने के लिए सिनसिनी रियासत के राजाराम जाट सबसे आगे आये…! गांव आऊ की मुगल छावनी में आग लगाकर “राजाराम जाट” और “रामकी चाहर” ने छावनी के अधिकारी लालबेग की हत्या करके औरंगजेब के खिलाफ मोर्चा खोल दिया…!
राजाराम जाट और रामकी चाहर की एक छोटी सी फ़ौज ने आगरा, मथुरा और भरतपुर समेत आसपास के क्षेत्र पर कब्जा कर लिया…! उस समय औरंगजेब दक्खन में था…! जब औरंगजेब को आगरा, मथुरा और भरतपुर के आस पास के क्षेत्रों से टैक्स मिलना बंद हुआ तो उसने जाटों को कुचलने के लिए अपने शहजादे आजम को भेजा…! आजम को राजाराम जाट और रामकी चाहर ने युद्ध के दौरान पीठ दिखा कर भागते हुए पकड़ लिया। और बर्बरता पूर्वक उसकी हत्या कर दी। इस घटना से आहत होकर औरंगजेब ने अपने दूसरे बेटे बीदर बख्त को भेजा।
बीदर बख्त भी राजाराम के शौर्य के आगे टिक नहीं पाया और उसके रक्त से राजाराम जाट की तलवार की प्यास बुझी। राजाराम जाट और रामकी चाहर की सेना ने भारतीय इतिहास में बदला लेने का सबसे अनोखा उदाहरण प्रस्तुत किया। 27 फरवरी 1688 को राजाराम जाट और रामकी चाहर ने अपने लड़ाकों की टुकड़ी के साथ आगरा के सिंकदरा पर धावा बोल दिया…! जाट लड़ाकों ने सिकंदरा में स्थित अकबर के मकबरे पर हमला किया… राजाराम और उनकी सेना ने अकबर के मकबरे में केवल तोड़फोड़ ही नहीं की बल्की, अकबर की कब्र खोदकर उसकी हड्डियां भी निकालीं और हड्डियां में आग लगा दी…! ये सब राजाराम जाट और उनकी सेना ने वीर गोकुला जाट की निर्मम हत्या का बदला लेने के लिए किया था…!
अपने दो शहजादों की दर्दनाक मौत और अपने दादा ज़िल्ले शुभानी अकबर की क़ब्र खोद कर उनकी हड्डियों को जाटों द्वारा जलाए जाने से आलमगीर को गहरा सदमा पहुंचा। इस वज़ह से औरंगजेब ने जाटों पर हमले तेज कर दिए और एक युद्ध में चार जुलाई 1688 को राजाराम जाट वीरगति को प्राप्त हुए…! किन्तु जाटों की एकता बनी रही जिसके कारण आलमगीर औरंगजेब को पूरी जिंदगी जाटों से संघर्ष करना पड़ा। 3 मार्च 1707 ईस्वी को औरंगजेब की प्रकृतिक मृत्यु हुई उसके बाद उसकी नीतियों का विरोध उसके पूरे साम्राज्य में शुरू हो गया और इस तरह उसके साम्राज्य का भी अंत हो गया। उसने जिस अल्लाह की इबादत के नाम पर हिन्दुओं पर अनगिनत जुल्म किये थे वो अल्लाह भी उसकी सल्तनत की रक्षा नहीं कर सका…!
साभार- https://www.facebook.com/mediamafia420 से

जयगढ़ दुर्ग : विश्व की सबसे बड़ी जयबाण तोप है आकर्षण का केंद्र

जयपुर-दिल्ली राजमार्ग पर जयपुर से 10 किमी. दूरी पर पहाड़ियों के ऊपर एक पतली पट्टी सी दिखाई देती है। उस पट्टी के बीचों-बीच खड़ी एक मीनार और एक कोने के दो बुर्जे  जयगढ़ के प्रसिद्ध दुर्ग का अहसास कराते हैं। पहाड़ी की जिस चोटी पर यह दुर्ग बना है उसे चिल्ह का टोला कहा जाता है। सड़क से एक चढ़ाई वाला मार्ग दुर्ग के प्रवेश द्वार तक ले जाता है। इस दुर्ग की अनेक विशेषताएं और संरचनाएं बड़ों के साथ – साथ बच्चों को न केवल आश्चर्यचकित करती है बल्कि किले के महत्व को भी बताती हैं। इस दुर्ग को जयपुर के राजा सवाई जयसिंह (1699-1743) ने बनवाया था। दुर्ग की विशेषताओं को देखें तो यह राजस्थान का पहला ऐसा दुर्ग है जहां तोपें बनाने का कारखाना था। आज भी पुरानी लेथ मशीन अपने मूल रूप में सुरक्षित है और तोपों के सांचे और ढलाई की भट्टी भी है। इसे देख कर मध्यकालीन भारत के प्रख्यात विद्वान स्व. प्रो, नुरूल हसन ने इस कारखाने को देखकर कहा था कि सम्पूर्ण एशिया में कोई भी पुराना कारखाना इतनी अच्छी हालत में सुरक्षित नहीं बचा है।  दुर्ग उस समय विश्व स्तरीय तोपों के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध था।
 जयबाण  विश्व की सबसे बड़ी तोप आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। किले पर पानी के व्यवस्था के लिए बनाए गए तीन विशाल टांके ( जिनमें पानी लंबे समय के लिए इकठ्ठा किया जा सकता है ), शस्त्रागार , संग्रहालय, महलों में विलास, ललित मंदिर, विलास मंदिर  सुभट निवास एवं आराम मंदिर सहित बारूदखाना, मधुसूदन और शीतला माता के मन्दिर बच्चों को खूब रोमांचित करते हैं।
 दुर्ग में प्रवेश करते ही  दाईं तरफ एक रास्ता उस बुर्ज की ओर जाता है जहां एक टीन शेड के नीचे जयबाण तोप सुरक्षित रखी गई है। इस तोप के बारे में प्रमुख जानकारियां एक सूचनापट्ट पर पढ़ी जा सकती हैं। इस तोप का निर्माण महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय के समय में सन् 1720 में जयगढ़ किले में ही स्थित तोप निर्माण कारखाने में किया गया था। इस विशाल तोप की नाल की लम्बाई 20 फीट, गोलाई 8 फीट 7.5 इंच तथा वजन 50 टन है। इस तोप से 11 इंच व्यास के गोले दागे जाते थे। इस ताेप को भरने के लिए एक बार में 100 किलोग्राम बारूद की आवश्यकता होती थी। इस तोप की मारक क्षमता 22 मील अर्थात 35.405 किलोमीटर  थी।  तोप के पहियों की ऊँचाई 9 फीट तथा धुरे की मोटाई 1 फीट है। पीछे के पहियों और उनके पास लगी रोलिंग पिन की सहायता से इसे आवश्यकतानुसार किसी भी दिशा में घुमाया जा सकता है। तोप निर्माण के बाद परीक्षण के तौर पर एक बार ही चलायी गई और इसके बाद इसे दुबारा चलाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी। तोप की नाल पर कारीगरों द्वारा कलाकृतियां उकेरी गयी हैं जो दर्शनीय हैं।
जयबाण तोप के पास ही जयगढ़ किले के एक कोने पर किले की दो दीवारें मिलती हैं और इस कोने पर खड़े होकर नीचे देखने पर पहाड़ी के नीचे की घाटी और दूर झील में बना जलमहल  का मनभावन सुंदर दृश्य दिखाई देता है।
 दुर्ग के जलेब चौक गेट से पहले बाईं तरफ  पुराने जमाने के जल संग्रह करने वाले टांके बने हैं जिनमें किले में निवास करने लोगों की आवश्यकता पूर्ति हेतु जल का इकठ्ठा किया जाता था। पानी को एकत्रित करने वाले ये टांके बहुत ही रोमांच पैदा करते हैं । यहाँ तीन टांकों  में सबसे बड़ा टांका ढका हुआ है। इस टांके का पानी किले में पीने के लिए काम में लिया  जाता था। इस टांके की लम्बाई 158 फीट, चौड़ाई 138 फीट तथा गहराई 40 फीट है।  इसकी दीवारों में हवा आने के लिए खिड़कियां बनी हुई हैं। टांके की जल भराव क्षमता 60 लाख गैलन है। टांके में 81 खम्भे बने हुए हैं जिन पर इसकी छत टिकी हुई है।
इस टांके के पीछे दायीं ओर एक छोटा टांका है जो 69 फीट लम्बा ,52 फीट चौड़ा तथा 52 फीट गहरा है। इसकी छत में नौ सूराख हैं और प्रत्येक सूराख के नीचे एक कमरा है। इन्हीं कमरों में सवाई जयसिंह के शासन के पूर्व तक शाही खजाना रखा जाता था। सवाई जयसिंह द्वारा 1728 में इस खजाने से धन निकालकर जयपुर शहर बसाया गया। इसी टांके के बराबर में तीसरा टांका है जो 61 फीट लम्बा,52 फीट चौड़ा तथा 27 फीट गहरा है। इस टांके का पानी नहाने व कपड़ा धोने के काम आता था। ये टांके  संभवतः इस किले के सर्वाधिक रहस्यमय स्थल रहे होंगे। माना जाता है इनके कमरों में खजाना रखा जाता था।
 जलेब चौंक से आगे बायीं तरफ जयगढ़ का शस्त्रागार है। शस्त्रागार में जयपुर के कुछ लोकप्रिय महाराजाओं की तस्वीरों के साथ कई प्रकार की बंदूकें, तलवारें, कवच और कलात्मक और विभिन्न आकृतियों के छोटी –  छोटी तोपों के नमूने तथा 50 किलो की तोप का गोला देखना बहुत ही दिलचस्प लगता है। इसी के सामने चौंक के दूसरी ओर एक संग्रहालय में राजघरानों की कई तस्वीरें और पेंटिंग, प्राचीन कलाकृतियाँ, ताश के पत्तों का एक गोलाकार पैक और महलों और किले की हाथ से बनाई गई योजना आदि वस्तुएं भी खूब लुभाती हैं।
दुर्ग में सुभट निवास वह जगह थी जहाँ योद्धा मिल–बैठ कर आपसी चर्चाएं करते थे। कुछ गलियां और मोड़ पार करने के बाद लक्ष्‍मी विलास  राजाओं का निवास हुआ करता था। इसे अच्छे तरीके से सजा कर रखा गया है। इसके बाद कई कमरों और गलियों से गुजरना पड़ता है।  एक हॉल में कठपुतलियों का प्रदर्शन मोहक होता है। राजघराने की भोजनशाला दर्शनीय है। भोजनशाला में कई बड़े कमरों में तत्कालीन समय की भोजन सम्बन्धी तैयारियों और रीति–रिवाजों को मॉडलों के द्वारा प्रस्तुत किया गया है जो काफी सुंदर व रोचक लगते हैं।  एक गैलरी में मिर्जा राजा जयसिंह को उनके सरदारों के साथ भोजन करते दिखाया गया है जो पारम्परिक वेशभूषा में हैं। दुर्ग के पीछे के भाग में  दो कोनों पर दाे बुर्जियां बनी हुई हैं जिन्हें आपसमें और साथ ही किले से जोड़ने के लिए,बिना छत की गैलरियां बनी हुई हैं। इन बुर्जियों पर नीचे की घाटी और आमेर महल का नजारा बड़ा ही सुंदर नजर आता है। दुर्ग में कई उद्यान भी बनाए गए हैं। किले में कई फिल्मों की शूटिंग भी की जा चुकी हैं। किले में अल्पाहार की कुछ दुकानें भी हैं।
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डॉ. प्रभात कुमार सिंघल,
लेखक एवं पत्रकार