उपनिषद रहस्य
चर्च के कारनामें जिनकी चर्चा ही नहीं होती
जम्मू-कश्मीर में चुनाव
जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव की चिर-प्रती-क्षित तारीखों की घोषणा हो गयी है। चुनाव तीन चरणों में होंगे। पहले चरण में 24 सीटों पर 18 सितंबर को, दूसरे चरण में 26 सीटों पर 25 सितंबर को और तीसरे चरण में 40 सीटों पर 1 अक्टूबर को वोट पड़ेंगे। चुनाव के नतीजे 4 अक्टूबर को घोषित किए जाएंगे। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 30 सितंबर 2024 तक यहां विधानसभा चुनाव कराने का आदेश दिया था।जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव होगा। घाटी से 5 अगस्त 2019 को 370 को हटा दिया गया था।
पहले जम्मू-कश्मीर में कुल 111 सीटें हुआ करती थीं। जम्मू में 37, कश्मीर में 46 और लद्दाख में 4 सीटें थीं। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में 24 सीटें होती थीं। कुछ समय पूर्व नई परिसीमन-प्रक्रिया के चलते जम्मू में अब 43 तो कश्मीर में 47 सीटें होंगी। पीओके के लिए पूर्ववत 24 सीटें आरक्षित हैं।
कश्मीरी पंडितों के लिए दो सीटें रिजर्व रखी गई हैं। हालांकि, इन्हें कश्मीरी प्रवासी कहा गया है। अब उपराज्यपाल विधानसभा के लिए तीन सदस्यों को नामित कर सकेंगे, जिनमें से दो कश्मीरी प्रवासी और एक पीओजेके से विस्थापित व्यक्ति होगा। जिन दो कश्मीरी प्रवासियों को नामित किया जाएगा, उनमें से एक महिला होगी।
कश्मीरी प्रवासी उसे माना जाएगा जिसने 1 नवंबर 1989 के बाद घाटी या जम्मू-कश्मीर के किसी भी हिस्से से पलायन किया हो और उसका नाम रिलीफ कमिश्नर की रजिस्टर में दर्ज हो। जो भी व्यक्ति 1947-48, 1965 या 1971 के बाद पीओजेके से आया होगा, उसे विस्थापित माना जाएगा।
इसके साथ ही अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए 16 सीटें रिजर्व की हैं। इनमें से एससी के लिए 7 और एसटी के लिए 9 सीटें रखी गईं है।
DR.S.K.RAINA
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ब्राह्मण कितने प्रकार के होते है ?
पश्चिम रेलवे द्वारा 02 जोड़ी फेस्टिवल स्पेशल ट्रेनों के फेरे विस्तारित
मुंबई। पश्चिम रेलवे द्वारा यात्रियों की सुविधा तथा उनकी यात्रा मांग को पूरा करने के उद्देश्य से विशेष किराये पर दो जोड़ी फेस्टिवल स्पेशल ट्रेनों के फेरे विस्तारित किए गए हैं।
पश्चिम रेलवे के मुख्य जनसम्पर्क अधिकारी श्री विनीत अभिषेक द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार इन ट्रेनों का विवरण निम्नानुसार है:
1. ट्रेन संख्या 05054/05053 बांद्रा टर्मिनस-गोरखपुर सुपरफास्ट फेस्टिवल स्पेशल (साप्ताहिक) (अनारक्षित) [26 फेरे]
ट्रेन संख्या 05054 बांद्रा टर्मिनस-गोरखपुर स्पेशल को 7 सितंबर से 30 नवंबर, 2024 तक विस्तारित किया गया है। इसी तरह, ट्रेन संख्या 05053 गोरखपुर-बांद्रा टर्मिनस स्पेशल को 6 सितंबर से 29 नवंबर, 2024 तक विस्तारित किया गया है।
2. ट्रेन संख्या 05046/05045 राजकोट-लालकुआं फेस्टिवल स्पेशल (साप्ताहिक) [18 फेरे]
ट्रेन संख्या 05046 राजकोट-लालकुआं स्पेशल को 7 अक्टूबर से 2 दिसंबर, 2024 तक विस्तारित किया गया है। इसी तरह, ट्रेन संख्या 05045 लालकुआं-राजकोट स्पेशल को 6 अक्टूबर से 1 दिसंबर, 2024 तक विस्तारित किया गया है।
ट्रेन संख्या 05046 के विस्तारित फेरों की बुकिंग 23 अगस्त, 2024 से सभी पीआरएस काउंटरों और आईआरसीटीसी वेबसाइट पर शुरू होगी। ट्रेनों के समय, ठहराव और संरचना के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए यात्री कृपया www.enquiry.indianrail.gov.in पर जाकर अवलोकन कर सकते हैं।
जब आप सच्चे मन से किसी की सहायता करते हैं तो क्या होता है..
अमेरिका के एक रेस्तरां में वेट्रेस ने एक आदमी और उसकी पत्नी को लंच का मेनू दिया और मेनू देखने से पहले, उन्होंने उसे दो सबसे सस्ता डिशेस देने के लिए कहा क्योंकि उनके पास इतने पैसे नहीं थे। कई महीनों से वेतन नहीं मिला था। जिस वजह से ये मुश्किल दौर से गुजर रहे थे।
वेट्रेस सारा ने ज़्यादा देर तक नहीं सोचा। उसने उन्हें दो डिशेस की सिफारिश की और वो बिना किसी संकोच के सहमत हुए कि वो सबसे सस्ते थे। वह दोनों आर्डर ले आई और उन्होंने भूख से जल्दी खा लिया, और जाने से पहले उन्होंने वेट्रेस से बिल के लिए पूछा। वह अपने बिलिंग वॉलेट में कागज़ का एक टुकड़ा लेकर उनके पास वापस आई जिसमें लिखा था: “मैंने आपके हालात को देखते हुए अपने व्यक्तिगत खाते से आपके बिल का भुगतान किया है। ये मेरी तरफ से गिफ्ट के रूप में सौ डॉलर हैं और कम से कम मैं आपके लिए यही कर सकती हूं। आने के लिए धन्यवाद।
सारा के लिए आश्चर्यजनक बात यह थी कि वह अपनी कठिन वित्तीय परिस्थितियों के बावजूद कपल के लंच के बिल का भुगतान करके बेहद खुश थी। हालांकि वह लगभग एक साल से ऑटोमेटिक वाशिंग मशीन खरीदने के लिए पैसे बचा रही थी क्योंकि उसे पुरानी वाशिंग मशीन से कपड़े धोने में मुश्किल थी।
उसकी दोस्त को इस मामले के बारे में पता चला तो सारा की दोस्त ने उसे बहुत डांटा। क्योंकि उसने खुद को और अपने बच्चे की जरूरतों को पीछे डालकर यह पैसा बचाया था। उसे दूसरों की मदद करने से अधिक अपने लिए एक वाशिंग मशीन खरीदने की जरूरत थी।
इस बीच उसे अपनी माँ का फोन आया जोर से कहा: “साराह तुमने क्या किया? ”
एक असहनीय सदमे के डर से उसने धीमी, कांपती आवाज़ में जवाब दिया: “मैंने कुछ नहीं किया। क्या हो गया ?
उसकी माँ ने जवाब दिया: “सोशल मीडिया आपकी तारीफ़ और आपके व्यवहार की प्रशंसा करने में ज़मीन आसमान एक कर रहा है। उस आदमी और उसकी पत्नी ने फेसबुक पर आपका संदेश पोस्ट किया जब आपने उनकी ओर से बिल का भुगतान किया और कई और लोगों ने इसे शेयर किया। मुझे आप पर फ़ख़्र है। “…
उसने अपनी मां के साथ अपनी बातचीत मुश्किल से ख़त्म की थी कि एक स्कूल के दोस्त ने उसे फोन किया और कहा कि उसका मैसेज सभी डिजिटल सोशल प्लेटफॉर्म पर वायरल हो गया है।
जैसे ही सारा ने अपना फेसबुक अकाउंट खोला, उसे टीवी प्रोडूसर्स और प्रेस रिपोर्टर्स के सैकड़ों मैसेज मिले, जो उसके ख़ास कदम के बारे में बात करने के लिए उनसे मिलने के लिए कह रहे थे।
अगले दिन, सारा सबसे लोकप्रिय और सबसे अधिक देखे जाने वाले अमेरिकी टीवी शो में से एक में दिखाई दी। प्रस्तुतकर्ता ने उसे एक बहुत ही आलीशान वाशिंग मशीन, एक आधुनिक टेलीविजन सेट और दस हजार डॉलर दिए। इस इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी से पांच हजार डॉलर का शॉपिंग वाउचर मिला। यहाँ तक कि उसके महान मानवीय व्यवहार की सराहना में हासिल होनेवाली रक़म $100,000 से ज़्यादा तक पहुंच गई।
सौ डॉलर से कम कीमत वाले दो डिशेस ने उसकी जिंदगी बदल दी।
उदारता ये नहीं है कि जिस चीज़ की आपको ज़रूरत नहीं है वो किसी को दे दें, बल्कि वह उदारता ये है कि जिस चीज़ की आपको ज़रूरत है वो किसी और ज़रूरतमंद को दे दें।
असल ग़रीबी मानवता और दृष्टिकोण की ग़रीबी है।
साभार फेसबुक से
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साहित्यकार किरण खेरुका: सृजन से गूंजते हैं लोक मंगल के स्वर
राजस्थान से दिल का रिश्ता रखने वाली रचनाकार पिलानी की किरण खेरूला मुंबई में रहते हुए भी राजस्थानी लोक गीतों, कथाओं, परिवार, समाज, उपेक्षित वर्ग, परिवेश के आसपास की सामाजिक स्थितियों और भारतीय संस्कृति को केंद्र में रख कर सृजन कर रही हैं। उपेक्षित तबका न केवल इनके लेखन में है वरन समाज सेवा का आधार भी बना है। स्वयं भी बचपन से मारवाड़ी समाज में प्रचलित लोक गीत गाती रही हैं। उद्योग घराने से जुड़ी होने के बावजूद बेहद सहज, सरल और सौम्य हैं। किसी प्रकार का दंभ छू तक नहीं गया है और जीव मात्र के प्रति दया का भाव हमेशा मन में रहता है।
सृजन का मर्म यही है कि उपेक्षित वर्ग को भी आदर और सम्मान दो न की उनकी उपेक्षा करो। एक प्रकार से ये लेखन के माध्यम से जहां संस्कृति को उजागर कर उसका संरक्षण कर रही हैं वहीं सामाजिक संदर्भों में आइना भी दिखा रही है और ज्ञान की खिड़कियां खोलती दिखाई देती हैं।
लोक गीत हर संस्कृति की अपनी सांस्कृतिक और साहित्यिक थाती हैं। ऐसे ही राजस्थान की मारवाड़ी संस्कृति बड़ी रंगबिरंगी और समृद्ध है। लोक गीत इस समाज का अमूल्य वरदान है। ब्याह, उत्सव या कोई भी सामाजिक और धार्मिक अवसर हो गीत गाने की प्रथा सदियों की समृद्ध परंपरा है। इस समाज के गीतों को इन्होंने बचपन से ही सुना , गाया, अपने ह्रदय में बसाया और इसी परिवेश में पली बड़ी हुई।
आज जब ये मुंबई में रहती हैं तो इनको पारम्परिक गीतों से जुड़ी अपनी स्मृतियों की याद आती है। गीतों की मिठास इनके ह्रदय में हिलोरे लेती है और जुबान पर गीत थिरकने लगते हैं। परदेश में भी नहीं भूलती गीतों की कर्ण प्रिय धुनों को और इनकी लेखनी से प्रकाश में आई एक पुस्तक ‘शेखावाटी के गीत’।
देश ही क्या दुनिया में जहां भी मारवाड़ी समाज के लोग रहते हैं ज्यादातर के इनके साहित्य से परिचित हैं। लोक गीतों को और कथाओं की संस्कृति और परंपरा की जीवित रखने और आज की पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए इन्होंने कोलकाता और मुंबई के गायकों के साथ सहयोग से कई महत्वपूर्ण गीतों को यू ट्यूब पर अपलोड करवाया है। यह लोक संस्कृति के प्रति इनका असीम अनुराग है कि इनके दिल में संरक्षण और इनके प्रसार की भावना विद्यमान है।
बचपन में जब ये नाना – नानी से कहानियां सुनती थी तब गांव वाले भी कहानी सुनने आ जाते थे। कहानी कहने और सुनने का ऐसा माहोल बनता था की हंसी, ठिठोली और ठहाके आज भी ये भूल नहीं पाती और इनके दिल और दिमाग पर चलचित्र की भांति छाए हैं। कहानियों से उत्पन्न हुए अनुराग को भी अपने लेखन का हिस्सा बनाया तथा ” शेखावाटी की कहानियां” पुस्तक शेखावाटी की प्रचलित कहानियों के संग्रह के रूप में सामने आई। कुछ कहानियां शेखावाटी से हैं तो कुछ जीवन पर असर डालने वाली सच्ची घटनाओं पर आधारित। संग्रह की सभी 107 कहानियां राजस्थानी भाषा में लिखी गई हैं।
अपनी जड़ों से जुड़ी परंपरागत कहानियों के साथ जीवन के साक्षात अनुभवों को जोड़ते हुए 47 कहानियों का संग्रह है इनकी कृति ” दुनिया रंग रंगीली “। संग्रह की कहानी ” काम की माँ उरेंसी ” का संदेश है , मेहनत और मीठी बोली दो ऐसे अमोध अस्त्र हैं, कि सबको अपना बना लेते हैं। कहानी ” गर्वित चेहरा” एक बोझ उठाने वाले छोटे से ऐसे लड़के की कहानी है जिसका स्वाभिमानी पिता बच्चे मेहनत से कमाना दिखाना चाहता है। ऐसी कहानियां पढ़ कर लगता है रचनाकार ने जीवन और जगत को अपने अलग ढंग से देखा है। घरेलू, पारिवारिक, समाज के उपेक्षित वर्ग की कहानियों से इनको लगाव है इन वर्गों की घटनाएं कहानियों का रूप ले लेती हैं।
संदेश यही निकलता है इस विराट जीवन में उपेक्षणीय कुछ भी नहीं है, उपेक्षित वर्ग को भी महत्व दो। अपने आसपास की दुनिया को ध्यान से देखो , उसे उचित स्नेह, आदर और सम्मान दो। अपने लेखकीय में वे कहती हैं, जीवन में कई साधारण तबके के प्राणियों से मिल कर , बड़े असाधारण चरित्र वाले पात्रों से मुलाकात मन पर एक छाप छोड़ जाती है। इस संग्रह में इनके जीवन के अनेक संस्मरण हैं जो कहीं मन को गुदगुदाते हैं तो कहीं अनुकरणीय सन्देश देते हैं, आखिर दुनिया रंगरंगीली जो है।
कहानियों से लगाव होने की वजह से ही सम्राट अकबर एवं उनके राज्य के एक रत्न बीरबल के बीच वार्तालाप एवं विभिन्न प्रसंगों के विनोद भरे किस्से ले कर सामने आई इनकी ” बृहद अकबर-बीरबल विनोद” पुस्तक। भरपूर मनोरंजन करने वाली एवं ज्ञानोदय करने वाली उनकी यह कृति पाठकों द्वारा बहुत पसंद की जाती है। कृति में मनोविनोद और शिक्षा देने वाले अकबर – बीरबल के 226 कहानी – किस्से संग्रहित किए गए हैं। कहती हैं ये इतने लोक प्रिय थे की घर – घर में बच्चों सुनाए जाते थे। आधुनिक तकनीकी युग में कहानी – किस्सों की धरोहर तिरोहित नहीं हो जाए इसलिए इन्हें एक किताब का रूप दे दिया है।
लेखन से उनका यह लगाव उनकी पुस्तकों जीवन, भारत तब से अब एवं यत्र तत्र से स्पष्ट झलकता है। इनकी ” जीवन ” काव्य संग्रह कृति में जीवन विभिन्न अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों में गुजरने का बेबाकी चित्रण देखने को मिलता है। किस परिस्थिति में मन में क्या भाव प्रस्फुटित होते हैं यह जीवन की कविताओं में बताया गया है। काव्य संग्रह की अतुकांत कविताएं मन को गहराई तक छूती हैं।
लेखिका का अपने देश के इतिहास और संस्कृति प्रेम का दिग्दर्शन है इनकी कृति
” भारत तब से अब “। इस कृति में ईसा के हजारों साल पहले भारतीय ज्ञान और संस्कृति जब अपने चरम शिखर पर थी, तक्षशिला जैसा महाविद्यालय तभी संभव था जब देश में समृद्धि और शांति हो, हमारे यहॉं तो शक, हूण, पारसी, ग्रीक समय- समय पर आते रहे और इसी संस्कृति में समाते रहे और आज बहुत कुछ बदला हुआ है, उस बदलाव पर प्रकाश डालती यह कृति अपने आप में अद्वितीय है। कृति इतिहास को वर्तमान से जोड़ कर संदेश देती हैं कि देश निर्माण के लिए सिर्फ सरकार को नहीं, हर हिंदुस्तानी को अथक मेहनत, ईमानदारी और त्याग करना होगा।
युवाओं को समर्पित है इनकी पुस्तक ” यत्र तत्र ” ज्ञान का अद्भुत संसार है। बड़े युगों के बाद भारत एक सार्वभौम राष्ट्र बना है। अपने क्षुद्र लोभ के कारण कई प्रांत प्रधान देश हित को भूलकर सिर्फ कुर्सी की खातिर अपने देशहित को भूल गये । इधर – उधर बिखरे अनेक प्रेरक प्रसंग जिन्हें छोटी – छोटी कहानियां के रूप में लिखा गया है इस कृति में विषयों का अनूठा वैविध्य है। स्वामी चिन्मानंद जी का पत्र, कण कण में भगवान, सिक्ख भाई, रक्षाबंधन, शिवाजी का ऐतिहासिक पत्र, पद्मनाभ मंदिर, साहस बाहु, भविष्यवक्ता, देवलोक, तरुवर फल नहिं खात, होशियार मनुष्य, गुरु मिले तो बंधन टूटे, बामनिया के बुद्ध, धन का गणतंत्र संग्रह की प्रमुख रचनाओं के सात एक अंग्रेजी रचना ” डोमिनो इफेक्ट ” सहित 37 प्रसंग, कहानी आदि संकलित हैं। यह संग्रह खासकर युवाओं के लिए पठनीय है।
परिचय :
लोक मंगल की कामना से लिखने वाली रचनाकार किरण खेरूका का जन्म राजस्थान के पिलानी में पिता स्व.आत्माराम पाडिया और माता जयदेवी के आंगन में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा पिलानी में ननिहाल लोयलका परिवार में हुई और कोलकाता में लोरेंटो हाउस से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। आज भी इन्हे याद है कि जब स्कूल में पढने के लिए भेजा गया था तो बॉयज स्कूल होने से इनके बाल कटवा दिए गए थे और कुर्ता पायजामा पहनकर स्कूल जाती थी। उसी वक्त बिरला बालिका विद्यापीठ शुरू हुई थी। उन्हें खुशी है कि वे विद्यापीठ की शुरुआती बैच की छात्रा रही। समाज सेवी के रूप में ये कई प्रकल्पों से जुडी हैं। उद्योग संचालन, समझ सेवा के साथ – साथ स्वाध्याय और लेखन में निरंतर लगी हुई हैं।
चलते – चलते…………
आता है तूफां तो आने दे,
कश्ती का खुदा खुद हाफिज है,
मुमकिन है कि बहती मौजों में
खुद बह कर साहिल आ जाये॥
लहलहाती खेती पर कब ओले पड़ जायें,
कब तूफान में पेड़ों की शाखें गिर जायें।।
डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं पत्रकार, कोटा
सामाजिक समरसता से बनेगा सशक्त भारत
समता, ममता और समरसता हमारे भारतीय लोकजीवन का अभिन्न अंग है। हम जिस देश में रहते हैं उसके ऋषि कहते हैं- ‘सर्वभूतहिते रताः।’ प्रकृति से साथ हमारा संवाद बहुत पुराना है। इसलिए हमने अपनी समूची सृष्टि को स्वीकारा। किसी को विरोधी नहीं माना। पेड़,पहाड़, नदियां, समुद्र, वनस्पतियां, जलचर,नभचर, जीव-जंतु, मनुष्य सबमें ईश्वर का वास मानने वाले हम ही हैं। हम ही कह पाए जो जड़ में है वही चेतन में है। कण-कण में ईश्वर का वास मानने वाली संस्कृति ही भारतीय संस्कृति है।
काल के प्रवाह में विचलन स्वाभाविक है। आज हमें समता, समरसता और अधिकारों की बात करनी पड़ रही है। सुधारों की बात करनी पड़ रही है, क्योंकि विचलन ने हमें उन मूल्यों से विरत कर दिया, जहां एक आदमी को ईश्वर बन जाने की स्वतंत्रता थी। आदमी का मनुष्य बनना और फिर देवत्व की तरफ बढ़ना साधारण नहीं है। उसके मूल्यनिष्ठ होते जाते की मुनादी है, घोषणा है। ऋषि कहते हैं- ‘मर्नु भवः’ यानि मनुष्य बनो। यही बाद बाद में गालिब के मुंह से निकलती है-
यूं तो मुश्किल है हर काम का आसां होना
आदमी को मयस्सर नहीं इंसा होना।
यानि जन्म से आप ‘आदमी’ हो सकते हैं किंतु ‘मनुष्य’ या ‘इंसान’ एक प्रक्रिया से गुजरने के बाद ही आप बनते हैं। हमारे समाज में मनुष्य बनाने के स्कूल थे। हमारा परिवार, समाज और विद्यालय तथा धर्मगुरु इस प्रक्रिया को संभव करते थे।
मनुष्य-मनुष्य में भेद को हमने अपराध माना। इसीलिए गुरू घासीदास कहते हैं- मनखे-मनखे एक हैं। इसी बात को गांधी छुआछूत के संदर्भ में कहते हैं- “अस्पृश्यता ईश्वर और मानवता के प्रति अपराध है।” हिंदू समाज में आई जड़ता को तोड़ने के लिए समय-समय पर सुधारवादी आंदोलन चलते रहे हैं। हिंदु स्वयं एक ऐसा समाज है, जिसने अपने आत्मसुधार के लिए निरंतर यत्न किए हैं। हम सब ऋषियों की संतति हैं यह भाव लेकर काम करते रहे हैं। गौतम बुद्ध, भगवान महावीर, कबीर, नानक, गुरू गोरखनाथ, गुरू घासीदास, संत रविदास से लेकर एक पूरी परंपरा जड़ताओं और कुरीतियों पर प्रहार करते हुए आत्मालोचन के लिए प्रेरित करती रही है। समय के सच को समझना और अपने समय के कठिन सवालों से जूझना हिंदुत्व की प्रकृति रही है। गुलामी के कालखंड में आई कुछ नकारात्मक वृत्तियों को समाप्त करने के लिए राजा राममोहन राय, महात्मा गांधी, बाबा साहब डा.भीमराव आंबेडकर, महात्मा ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई फुले, पंडित सुंदरलाल शर्मा जैसे अनेक नायक हमारे समाज में समरसता के मंत्रदृष्टा बनकर आते रहे हैं।
कोई भी समाज कुरीतियों से मुक्त नहीं है। हर समाज में समय के साथ कुछ गिरावट आती है। मूल बात यह है कि क्या समाज अपनी गिरावट के विरूद्ध तनकर खड़ा होता है या नहीं। उसमें आत्मालोचन और आत्मसमीक्षा की प्रवृत्ति है या नहीं। हिंदु समाज इस अर्थ में खास है कि उसने प्रश्नाकुलता को समाज में मान्यता दी है। वह सती प्रथा, बाल विवाह, छूआछूत, जातीय विद्वेष के विरूद्ध खड़ा हुआ और स्त्री शिक्षा, स्त्री को न्याय,मनुष्य की बराबरी के मानकों को स्वीकार करते हुए एक नया भारत बनाने की ओर है। समाज में ‘जातिद्वेष’ मान्यता नहीं है।
हम मानते रहे हैं कि जाति का गौरव होना चाहिए किंतु जाति भेद ठीक नहीं। हमारे अनेक ऋषि व्यास, बाल्मीकि, संत रविदास,संत रसखान हमारे श्रद्धास्थान हैं। क्योंकि हमें बताया गया और हमने माना भी कि “जाति-पात पूछे नहीं कोई, हरि को भजे सो हरि का होई।” हमारी परंपरा के सर्वोच्च नायक भगवान श्री राम के समरसता इन्हीं गुणों से मर्यादा पुरूषोत्तम बने। अपनी उदार भावनाओं से वे ‘शबरी के राम’ हैं तो ‘बाल्मीकि के भी राम’ हैं। वे तुलसी के राम हैं तो कबीर के भी राम हैं। वे हनुमान के ह्दय में हैं तो आहिल्या के भी उद्धारकर्ता हैं। वे निषादराज के परममित्र हैं, तो किंष्किंधानरेश सुग्रीव के भी मित्र हैं। इस परंपरा को समझने वाले ही भारत के मन को समझ सकते हैं।
भारतीय समाज को लांछित करने के लिए उस पर सबसे बड़ा आरोप वर्ण व्यवस्था का है। जबकि वर्ण व्यवस्था एक वृत्ति थी, टेंपरामेंट थी। आपके स्वभाव, मन और इच्छा के अनुसार आप उसमें स्थापित होते थे। व्यावसायिक वृत्ति का व्यक्ति वहां क्षत्रिय बना रहने को मजबूर नहीं था, न ही किसी को अंतिम वर्ण में रहने की मजबूरी थी। अब ये चीजें काल बाह्य हैं। वर्ण व्यवस्था समाप्त है। जाति भी आज रूढ़ि बन गयी किंतु एक समय तक यह हमारे व्यवसाय से संबंधित थी।
हमारे परिवार से हमें जातिगत संस्कार मिलते थे-जिनसे हम विशेषज्ञता प्राप्त कर ‘जाब गारंटी’ भी पाते थे। इसमें सामाजिक सुरक्षा थी और इसका सपोर्ट सिस्टम भी था। बढ़ई, लुहार, सोनार, केवट, माली, निषाद, बुनकर ये जातियां भर नहीं है। इनमें एक व्यावसायिक हुनर और दक्षता जुड़ी थी। गांवों की अर्थव्यवस्था इनके आधार पर चली और मजबूत रही। आज यह सारा कुछ उजड़ चुका है। हुनरमंद जातियां आज रोजगार कार्यालय में रोजगार के लिए पंजीयन करा रही हैं। जाति व्यवस्था और वर्ण व्यवस्था दोनों ही अब अपने मूल स्वरूप में काल बाह्य हो चुके हैं। अप्रासंगिक हो चुके हैं। ऐसे में जाति के गुण के बजाए, जाति की पहचान खास हो गयी है। इसमें भी कुछ गलत नहीं है। हर जाति का अपना इतिहास है, गौरव है और महापुरुष हैं। ऐसे में जाति भी ठीक है, जाति की पहचान भी ठीक है, पर जातिभेद ठीक नहीं है। जाति के आधार भेदभाव यह हमारी संस्कृति नहीं। यह मानवीय भी नहीं और सभ्य समाज के लिए जातिभेद कलंक ही है।
भारत के इतिहास में तमाम ऐसे पृष्ठ हैं, जिसमें हमारी संस्कृति और सभ्यता की रक्षा के लिए समाज के हर वर्ग के लोगों ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया है। विदेशी आक्रामणों से जूझते हुए भी हमारे समाज ने अपनी सभ्यता और संस्कृति को जीवित रखा। बाद के कालखंड में विभेदकारी शासकों ने भारतीय समाज में विभाजन के बीज बोए क्योंकि उन्हें अपने राज को स्थाई बनाना था। लोगों के हाथ से हुनर छीन कर उन्हें दास बनाना उनका मकसद था। यह काम बिना बंटवारे की राजनीति से संभव नहीं था। भारत के सामने अपनी एकता को बचाने का एक ही मंत्र है,‘सबसे पहले भारत’।
इसके साथ ही हमें अपने समाज में जोड़ने के सूत्र खोजने होगें। भारत विरोधी ताकतें तोड़ने के सूत्र खोज रही हैं, हमें जोड़ने के सूत्र खोजने होगें। किन कारणों से हमें साथ रहना है, वे क्या ऐतिहासिक और सामाजिक कारण हैं जिनके कारण भारत का होना जरूरी है। इन सवालों पर सोचना जरूरी है। अगर वे हमारे समाज को तोड़ने, विखंडित करने और जाति, पंथ के नाम पर लड़ाने के लिए सचेतन कोशिशें चला सकते हैं, तो हमें भी इस साजिश को समझकर सामने आना होगा। भारत का भला और बुरा भारत के लोग ही करेगें। इसका भला वे लोग ही करेंगें जिनकी मातृभूमि और पुण्यभूमि भारत है। वैचारिक गुलामी से मुक्त होकर, नई आंखों से दुनिया को देखना। अपने संकटों के हल तलाशना और विश्व मानवता को सुख के सूत्र देना हमारी जिम्मेदारी है ।
भारत अपनी लंबी गुलामी से उपजी इसी पीड़ा को आजतक भोग रहा है। कोई भी राष्ट्र इतने लंबे समय की गुलामी के बाद तमाम राष्ट्रों की तरह समाप्त हो जाता, किंतु भारत खड़ा है क्योंकि उसके पास परंपरा का उत्तराधिकार था। ऋषियों और संतों द्वारा दिया गया आध्यात्मिक उत्तराधिकार था। भक्ति ने भारत को हमेशा बचाया और बदला है। हमारी संत परंपरा हमारी जड़ों में एकता और समरसता के सूत्र पिरोती रही है। उनकी शरण में भारत खुद को तलाशता रहा है और सामने खड़े प्रश्नों से मुक्ति पाता रहा है। कुंभ जैसे आयोजन उसके नवपरिष्कार का अवसर देते रहे हैं, तो समाज में प्रवास कर संत शक्ति उसकी शक्ति को संगठित करती रही है। आज समरसता के मंत्रदृष्ठा अनेक सामाजिक संगठन भी सक्रिय होकर अपनी भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं। भारत जाग रहा, अपना पुर्नअविष्कार कर रहा है। अपनी सांस्कृतिक धारा से जुड़कर अपने संकटों के हल तलाश रहा है। यही यात्रा समरसता की वाहक भी और प्रस्थान बिंदु भी। सामाजिक एकता और सामाजिक समरता के बिना हम ‘एक भारत और श्रेष्ठ भारत’ नहीं बना सकते। इसलिए एकत्व के तत्व खोजना और मनों को जीतना हमारी कोशिश होनी चाहिए। यही बात ‘भारत’ को ‘समर्थ भारत’ बनाएगी।
(लेखक भारतीय जनसंचार संस्थान,नई दिल्ली के पूर्व महानिदेशक हैं।)
कन्या – किसान का हित और मोहन सरकार को यूनिसेफ़ का प्रमाणपत्र
पिछले दिनों में मप्र की मोहन यादव सरकार ने दो निर्णय लिए हैं और दोनों ही से वे अपार लोकप्रियता प्राप्त करने जा रहे हैं। प्रदेश की किशोरी छात्राओं हेतु लिए गए एक निर्णय की तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा व प्रसंशा हो रही है। एक निर्णय की अंतर्राष्ट्रीय एक योजना जहां प्रदेश के किसानों हेतु शुभसमाचार है वहीं दूसरी योजना प्रदेश की स्कूली बालिकाओं के लिए प्रसन्न कर देने वाली है। बालिकाओं को निःशुल्क सैनिटरी पेड देने वाली इस योजना की प्रसंशा संयुक्त राष्ट्र संघ, के संगठन यूनिसेफ़ ने भी मुक्त कंठ से की है। देश के कुछ प्रदेशों में छात्राओं को निःशुल्क सैनिटरी नैपकिन दिये जाते रहे हैं किंतु इस संदर्भ में बालिकाओं को नगद राशि देने वाला प्रथम राज्य मप्र बन गया है।
इस प्रकार नगद राशि से बालिकाएं अपनी पसंद व आवश्यकतानुसार सामग्री स्वयं क्रय सकेंगी। मप्र के मुख्यमंत्री मोहन यादव की सैनिटेशन एवं हाईजीन योजना को यूनिसेफ़ ने एक उत्कृष्ट योजना बताया है। यूनिसेफ़ ने एक्स (ट्विटर) पर अपने एकाउंट में लिखा कि यह एक अनूठा नवाचार है और प्रसंशा करते हुए इस योजना को शुभकामनाएँ दे है।
डॉ. मोहन यादव ने भी अपने X अकाउंट पर UNICEF को इस योजना की प्रसंशा करने हेतु धन्यवाद देते हुए कहा है – “मध्य प्रदेश के किशोरों और बच्चों के लिए काम करने की हमारी प्रतिबद्धता को विश्व स्तर पर मान्यता देने के लिए @UNICEFIndia को हार्दिक धन्यवाद।
यूनिसेफ पूर्व से ही (UNICEF) की भारतीय इकाई भारत सरकार के साथ मिलकर स्कूल हाईजीन और मासिक धर्म संबंधी स्वास्थ्य जागरुकता (Menstrual Health Awareness) की दिशा में अभियान चलाये हुए है।
विगत सप्ताह मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने छात्राओं के सम्मान व उनसे संवाद के एक कार्यक्रम में समग्र शिक्षा अभियान के अंर्तगत प्रदेश की उन्नीस लाख छात्राओं के खाते में सत्तावन करोड़ अट्ठारह लाख रू. की राशि सैनिटरी नैपकिन हेतु ट्रांसफ़र कर दी थी। यह राशि कक्षा सातवीं से बारहवीं तक की छात्राओं को दी जाएगी जिससे वे स्वयं नैपकिन क्रय कर सकेंगी। इस योजना से उन्हें एक वर्ष हेतु तीन सौ रु. मिलेंगे। इस योजना के अंर्तगत समग्र शिक्षा अभियान में विद्यालयों व महाविद्यालयों की छात्राओं को मासिक धर्म के समय स्वच्छता की महत्व और महत्व को भी बताया जाना है। प्रदेश में पूर्व से ही महिला एवं बाल विकास की एक उदिता योजना भी कार्यरत है जिसमें अट्ठारह से उनपचास आयु वर्ग की महिलाओं आंगनवाड़ी के कार्यकर्ताओं द्वारा लाभ दिया जाता है।
चर्चा में आई कृषक व श्रीअन्न आधारित दूसरी योजना भी राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उल्लेखनीय होने जा रही है। मप्र के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने प्रदेश के किसानों हेतु रानी दुर्गावती श्रीअन्न प्रोत्साहन योजना लागू की है। कृषक जगत हेतु महत्वपूर्ण इस योजना में
श्रीअन्न जैसे कोदो, कुटकी, रागी, ज्वार, बाजरा, कंगनी, सांवा आदि को उपजाने वाले कृषक बंधुओं को प्रति किलो 10 रुपये दिए जाएंगे। कृषकों को दस रू. प्रति किलोग्राम दस रुपये देने की योजना जहां देश के लिए बड़ी मात्रा में श्रीअन्न उपजाने हेतु प्रेरणा व आर्थिक संबल देगी वहीं कृषकों, विशेषतः जनजातीय कृषकों हेतु वरदान सिद्ध हो सकती है। हमारे प्रदेश के जनजातीय पूर्व से ही इन मोटे अनाजों को उपजाते व खाते रहें हैं किंतु अब इस योजना से वे श्रीअन्न का उत्पादन बढ़ायेंगे।
संयुक्त राष्ट्र संघ ने भारत की पहल पर वर्ष 2023 को श्रीअन्न वर्ष घोषित किया था। प्रधानमंत्री जी, नरेंद्र मोदी भी श्रीअन्न को अपने भाषणों व कथनों में स्थान देते रहते हैं जिससे देश में मोटा अनाज खाने का एक सुदृढ़ वातावरण बन गया है। इस स्थिति में इन अनाजों हेतु बाज़ार बढ़ना ही है। अब इस योजना से मप्र के कृषक विशेषतः जनजातीय कृषक विषे तौर पर लाभान्वित होंगे। कृषकों को उनकी प्रोत्साहन राशि सीधे उनके खाते में अंतरित की जाएगी। ये अनाज प्रमुख रूप से मंडला, डिंडोरी, बालाघाट, शहडोल, अनूपपुर, बैतूल, छिंदवाड़ा, सीधी और सिंगरौली जैसे जनजातीय बहुल जिलों में उगाए जाते हैं। प्रदेश में मोटे अनाजों के उत्पादन, प्रसंस्करण और विपणन पर केंद्रित एक सम्मेलन का आयोजन भी पूर्व में हो चुका है।
प्रदेश के डिंडोरी ज़िले में श्रीअन्न अनुसंधान संस्थान केंद्र के निर्माण की भी घोषणा हो चुकी है।
यद्यपि वर्तमान में मप्र, देश के मोटे अनाज के उत्पादन में केवल 3.5 प्रतिशत का योगदान देता है वहीं राजस्थान में देश का 33 प्रतिशत व कर्नाटक में 23 प्रतिशत रकबे में इसकी कृषि की जाती है। मोटे अनाज स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यधिक उपयोगी व लाभप्रद होते हैं। इनमें खनिज, मिनरल्स व प्रोटीन्स की मात्रा अत्यधिक होती है। इन सभी गुणों के कारण श्रीअन्न को कई बीमारियों के निदान हेतु भी उपयोग किया जाने लगा है।
वर्तमान समय में मप्र में छः लाख बीस हजार हेक्टेयर भूमि पर मोटा अनाज उत्पादित किया जा रहा है जबकि वर्ष 2021-22 में यह पांच लाख पचपन हजार हेक्टेयर पर ही श्रीअन्न उपजाया जाता था। मप्र देश में मोटे अनाजों के उत्पादन में पाँचवें न. पर है। वर्ष 2023-24 में प्रदेश में 12.68 लाख टन मोटे अनाजों का उत्पादन हुआ, जो 2019-20 में 8.96 लाख टन था। प्रदेश में सबसे अधिक लगभग 60 प्रतिशत बाजरा उगाया जा रहा है।
प्रदेश के कृषकों को दस रुपये प्रति किलोग्राम की प्रोत्साहन राशि व शालेय किशोरियों को सैनिटरी नैपकिन देने की योजना से निश्चित ही मप्र की मोहन सरकार देश भर में अग्रणीं होने जा रही है।
मप्र के महाकोशल के मंडला, डिंडोरी, बालाघाट आदि जिलों में श्रीअन्न का ज्यादा उत्पादन होता है।
उत्पादन क्षेत्र नहीं बढ़ने की बड़ी वजह यह भी है कि प्रदेश में इसकी बड़ी खाद्य प्रसंस्करण इकाई नहीं हैं।
देशभर में कुल खाद्यान्न उत्पादन के 10 प्रतिशत हिस्से में मोटा अनाज उगाया जा रहा है।
राजस्थान में सर्वाधिक 33 और कर्नाटक में कुल खाद्यान्न 23 प्रतिशत क्षेत्र में श्रीअन्न का उत्पादन किया मप्र के महाकोशल के मंडला, डिंडोरी, बालाघाट आदि जिलों में श्रीअन्न का ज्यादा उत्पादन होता है।
उत्पादन क्षेत्र नहीं बढ़ने की बड़ी वजह यह भी है कि प्रदेश में इसकी बड़ी खाद्य प्रसंस्करण इकाई नहीं हैं।
देशभर में कुल खाद्यान्न उत्पादन के 10 प्रतिशत हिस्से में मोटा अनाज उगाया जा रहा है।
राजस्थान में सर्वाधिक 33 और कर्नाटक में कुल खाद्यान्न 23 प्रतिशत क्षेत्र में श्रीअन्न का उत्पादन किया जा रहा है। ऐसी ही प्रोत्साहन योजनाओं व कृषकोंको मिल रही नियोजित मार्केटिंग की योजनाओं व अच्छे मूल्यों के प्राप्त होने के चलते ही मप्र में जहां वर्ष 2019-20 में आठ लाख छ्यानवे हज़ार मेट्रिक टन का उत्पादन होता था वहीं 2023-24 में मोटे अनाज का यह उत्पादन बारह लाख अड़सठ हज़ार टन का हो गया है।
(प्रवीण गुगनानी, विदेश मंत्रालय, भारत सरकार में राजभाषा सलाहकार हैं)
संपर्क 9425002270 – guni.pra@gmail.com
मनी एक्सपो इंडिया 2024 में जस्ट मार्केट को बेस्ट ग्लोबल ब्रोकर का पुरस्कार
मुंबई।
JustMarkets, जो एक अग्रणी वैश्विक ब्रोकरेज कंपनी है, ने मुंबई एक्सपो 2024 में अपनी सफ़ल भागीदारी की घोषणा की है। 17 से 18 अगस्त तक आयोजित इस इवेंट ने बड़ी संख्या में इंडस्ट्री के पेशेवरों, उत्साही लोगों एवं संभावित ग्राहकों को आकर्षित किया। आखिरी दिन JustMarkets को बेस्ट ग्लोबल ब्रोकर 2024 का पुरस्कार मिला
ये JustMarkets बूथ एक्सपो के नवीन समाधानों और पेशकशों के मुख्य स्रोतों में से एक था। कई विज़िटर्स ट्रेडिंग और JustMarkets द्वारा अपने ग्राहकों को प्रदान किए जाने वाले एडवांस्ड सॉल्यूशंस के बारे में और ज़्यादा जानना चाहते थे। उन्हें JustMarkets की एक्सपर्ट टीम के साथ बातचीत करने, कंपनी की सेवाओं के बारे में और ज़्यादा जानने एवं बहुत ज़्यादा प्रतिस्पर्धी ट्रेडिंग इंडस्ट्री के बेजोड़ फ़ीचर्स को एक्स्प्लोर करने का मौका मिला।
JustMarkets की भागीदारी का मुख्य आकर्षण हमारे माननीय वक्ता का भाषण था। उन्होंने मौजूदा मार्केट ट्रेंड्स, भू-राजनीतिक एवं व्यापक आर्थिक अस्थिरता के कारण होने वाली अस्थिरता और ऑनलाइन ट्रेडिंग मार्केट में आगे आने वाले ट्रेंड्स पर ध्यान आकर्षित किया। हमारे वक्ता ने अपने सभी ग्राहकों के लिए पारदर्शी, सुरक्षित व कुशल व्यापारिक वातावरण प्रदान करने के लिए JustMarkets की प्रतिबद्धता पर ज़ोर दिया:
“लेकिन ये सिर्फ़ ट्रेडिंग की बात नहीं है, ये ट्रेडर्स का एक समुदाय बनाने के बारे में है। JustMarkets में, हम शैक्षिक संसाधन उपलब्ध कराने और एक सहायक वातावरण बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं, जहां शुरु करने वालों से लेकर अनुभवी ट्रेडर्स तक हर कोई अपनी पूर्ण निवेश क्षमता तक पहुंच सके। हम आपकी ट्रेडिंग स्किल्स और जानकारी को बेहतर बनाने में मदद करने के लिए व्यापक शैक्षिक सामग्री प्रदान करते हैं।
भारत सबसे अहम मार्केट्स में से एक है और हम ये गर्व से कहते हैं कि ये पहले से ही दुनिया भर में हमारे सभी ग्राहकों के बीच उच्च स्थान पर है। हम आपको जानते हैं और आपकी ज़रूरतों को समझने व पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हमारा हर फ़ैसला, “पहले ग्राहक” के हमारे मौलिक सिद्धांत से प्रेरित है। हम आपकी सफ़लता और संतुष्टि को बाकी सब से ऊपर रखते हैं।
हम आपको JustMarkets में शामिल होने और व्यापारियों के हमारे समुदाय का हिस्सा बनने के लिए आमंत्रित करते हैं। हम साथ मिलकर आपके वित्तीय लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अपने अत्याधुनिक उपकरणों और संसाधनों का इस्तेमाल करके फ़ॉरेक्स ट्रेडिंग की गतिशील दुनिया में नेविगेट कर सकते हैं। आईये JustMarkets के साथ मिलकर बढ़ें, सीखें और सफल हों,” सारांशित करते हैं Alex Pereverzev, JustMarkets के वक्ता।
मनी एक्सपो इंडिया 2024 ग्राहकों और भागीदारों के साथ नेटवर्क बनाने और इंडस्ट्री के भविष्य के लिए JustMarkets के दृष्टिकोण को साझा करने का एक शानदार मौका था। आगे देखते हुए, JustMarkets ट्रेडिंग इंडस्ट्री में अपना नेतृत्व बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है और अपने ग्राहकों के लिए ट्रेडिंग की दक्षता और गुणवत्ता में सुधार करने के लिए अपने उत्पाद की पेशकश का विस्तार करना जारी रखेगा।
JustMarkets के बारे में
JustMarkets एक वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त मल्टी-अस्सेट ब्रोकर है जो 2012 से भरोसेमंद एवं पारदर्शी ट्रेडिंग सेवाएँ प्रदान कर रहा है। कंपनी ने वित्तीय क्षेत्र में अपनी उत्कृष्टता को उजागर करते हुए 50 से भी ज़्यादा उद्योग पुरस्कार अर्जित किए हैं। JustMarkets फ़ॉरेक्स, स्टॉक्स, कमोडिटीज़, सूचकांक, धातु, ऊर्जा और क्रिप्टोकरेंसियों सहित ट्रेडिंग के उपकरणों की एक विविध श्रृंखला प्रदान करता है, जो 160 से भी ज़्यादा देशों में ग्राहकों को सेवा प्रदान करती है।
कंपनी अपने प्रतिस्पर्धी प्राइसिंग, कम स्प्रेड्स और ज़ीरो कमीशन के लिए मशहूर है। JustMarkets नए और अनुभवी दोनों तरह के ट्रेडर्स को उनके ट्रेडिंग के अनुभव को बढ़ाने के लिए डिज़ाइन की गई सेवाओं की एक विस्तृत श्रृंखला द्वारा सेवा प्रदान करता है।
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