Friday, November 29, 2024
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कीस डीम्ड विश्वविद्यालय का चौथा वार्षिक दीक्षांत समारोह आयोजित

 

भुवनेश्वर, 23 नवंबर: कलिंगा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (कीस डीम्ड विश्वविद्यालय) का चौथा वार्षिक दीक्षांत समारोह आयोजित किया गया जिसमें समाज के जाने-माने व्यक्तित्वों की शैक्षिक उत्कृष्टता और परिवर्तनकारी योगदानों को मान्यता दी गई।आयोजन का मुख्य आकर्षण तीन दिग्गजों को उनकी उत्कृष्ट उपलब्धियों और योगदानों के लिए मानद डी. लिट की उपाधि प्रदान करना था।

वे हैं पद्मश्री डॉ. मुकेश बत्रा, डॉ. बत्रा ग्रुप ऑफ कंपनीज के संस्थापक, होम्योपैथी और स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में अग्रणी और पद्मश्री श्री सावजी ढोलकिया, हरि कृष्ण एक्सपोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक और अध्यक्ष, जो हीरा उद्योग और परोपकारी पहलों में अपने नेतृत्व के लिए जाने जाते हैं। अन्य मानद डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्राप्तकर्ता एस.एन. मोहंती ग्रुप ऑफ कंपनीज के अध्यक्ष डॉ. प्रदीप मोहंती थे जो ओडिशा के औद्योगिक और शैक्षिक परिदृश्य में एक दिग्गज हैं। इसके अलावा छात्रों को उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए संस्थापक स्वर्ण पदक, 7 चांसलर स्वर्ण पदक और 7 कुलपति रजत पदक दिए गए। अपने दीक्षांत भाषण में, पूर्व स्कूल राज्य मंत्री और पूर्व सांसद, यूके माननीय निक गिब ने KISS की “भारत के शीर्ष शैक्षणिक संस्थानों में से एक” के रूप में प्रशंसा की और भारत के आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “आज, 43 मिलियन छात्र भारतीय उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ रहे हैं,” उन्होंने स्नातकों से सीखने के लिए आजीवन प्रेम विकसित करने का आग्रह किया।

अपने दीक्षांत भाषण में, पूर्व स्कूल राज्य मंत्री और पूर्व सांसद, यूके आरटी. माननीय. निक गिब ने कीस की “भारत के शीर्ष शैक्षणिक संस्थानों में से एक” के रूप में सराहना की और भारत के आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने में शिक्षा की महत्त्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया। “आज, 43 मिलियन छात्र भारतीय उच्च शिक्षण संस्थानों में अध्ययनरत हैं,” उन्होंने स्नातकों से सीखने के लिए आजीवन प्रेम विकसित करने का आग्रह करते हुए मंतव्य दिया। डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्राप्त करते समय श्री ढोलकिया ने छात्रों को सफलता के लिए 5 मंत्र दिए। हमेशा अपने आप को सर्वश्रेष्ठ समझें, सोचें कि आपके लिए सब कुछ संभव है, भगवान हमेशा आपके साथ हैं, आप विजयी हो सकते हैं और आज आपके लिए एक नया दिन है – उन्होंने छात्रों को इन 5 मंत्रों का समर्पण के साथ पालन करने की नेक सलाह दी।

उन्होंने कहा कि इस सम्मान ने मुझे भविष्य में और भी अधिक समाज की सेवा करने के लिए प्रेरित किया है। आमंत्रित विशिष्टअतिथि, आरटी. माननीय. यूके के सांसद एलन गैमेल ने शिक्षा के माध्यम से हांसिए पर रहने वाले समुदायों को सशक्त बनाने के लिए उनके अथक समर्पण के लिए कीट और कीस के संस्थापक डॉ. अच्युता सामंत की सराहना करते हुए उन्हें “एक सच्चा दूरदर्शी और सामाजिक ट्रांसफार्मर” बताया।डॉ. जेफरी बी. लिबमैन, हार्वर्ड केनेडी स्कूल, यूएसए में सार्वजनिक नीति के प्रोफेसर रॉबर्ट डब्ल्यू. स्क्रिवनर ने कीस के अनूठे मिशन को रेखांकित किया। “कीस सभी भारतीयों, विशेष रूप से समाज के वंचित वर्गों के बच्चों को शिक्षित करने के लिए खड़ा है,” उन्होंने सीखने के लिए संस्थान के समावेशी दृष्टिकोण की सराहना करते हुए कहा। कीट और कीट के संस्थापक डॉ. अच्युता सामंत के अलावा, दीक्षांत समारोह में उपराष्ट्रपति ने भी भाग लिया। कीट और कीस के उपाध्यक्ष उमापद बोस, सचिव आर.एन. दाश, कीस डीम्ड विश्वविद्यालय के चांसलर सत्या त्रिपाठी, प्रो-चांसलर प्रोफेसर अमरेश्वर गल्ला, कुलपति प्रोफेसर दीपक कुमार बेहरा और कुलसचिव  डॉ. पी.के. राउतराय आदि उपस्थित थे।

मात्र 5 प्रतिशत हिंदू वोटों ने भाजपा की झोली भर दी

2019 में महाराष्ट्र में 61.44% वोट पड़े और अबकी बार 66.05% यानी करीब 5% जयादा और इसका कारण हिंदू मतदाताओं का खुलकर बाहर निकलना और भाजपा और उसके घटक दलों को वोट देना रहा – अब मुस्लिमों ने भाजपा को वोट दिया या नहीं, कह नहीं सकते लेकिन जिस तरह नोमानी ने फतवे जारी किए उसके अनुसार मुस्लिमों का वोट भाजपा को मिलना संभव नहीं लगता और भाजपा+ की जीत के पीछे हिंदू एकजुट होना ही मुख्य कारण माना जा सकता है।
महाराष्ट्र की कुल आबादी का 78-80% हिस्सा हिंदू समुदाय से है।नमें से मतदान में भाग लेने वाले हिंदुओं का प्रतिशत लगभग 60-65% रहा ।

महाराष्ट्र के चुनावों में आए नतीजों में जो दिग्गज मुस्लिम हारे उनमे कुछ हैं – ओवैसी की पार्टी के वारिस पठान; इम्तियाज़ जलील; हाजी फारूक मक़बूल; फारूख शेख; डॉ गफ्फार कादरी; और नसीर सिद्दीकी (कुल 6)-कांग्रेस के आरिफ नसीम खान; मुज़फ्फर हुसैन;  और आसिफ शेख रशीद-NCP (शरद पवार) का फहाद मलिक (स्वरा भास्कर का पति) और NCP (अजित पवार का) नवाब मलिक –

एक अनुमान के अनुसार मुंबई में मुस्लिम 20% हैं और 10 सीटों पर 25% से ज्यादा हैं लेकिन फिर भी केवल 5 मुस्लिम जीत सके।

महायुति को कुल 50.19% वोट मिला जबकि एमवीए को मात्र 34.79% जो अपने आप में बहुत बड़ा अंतर है ।

अनुमानित आंकड़ों के अनुसार, 55-60% हिंदू वोटरों ने महायुति (BJP-शिवसेना शिंदे गुट) को वोट दिया।
यह समर्थन बीजेपी के हिंदुत्व और विकास के एजेंडे, मराठा आरक्षण के मुद्दे, और शिंदे गुट की शिवसेना के साथ गठबंधन की वजह से बढ़ा।
मराठा समुदाय में महायुति ने लगभग 50% वोट हासिल किए। हालांकि, मराठा आरक्षण को लेकर कुछ असंतोष के कारण एनसीपी और उद्धव गुट को भी अच्छा समर्थन मिला।

ओबीसी समुदाय में बीजेपी का मजबूत प्रभाव रहा। अनुमान है कि 60-65% ओबीसी हिंदू वोट महायुति के खाते में गए।
गुजराती और उत्तर भारतीय हिंदू वोटरों में मुंबई, ठाणे, और पुणे जैसे शहरी इलाकों में इन समुदायों का समर्थन महायुति को बहुत बड़ी संख्या में मिला, जो करीब 70-75% था।
दलित और आदिवासी समुदायों का समर्थन महायुति को सीमित रूप में मिला। इन समूहों का झुकाव अमूमन कांग्रेस और प्रकाश अंबेडकर के वंचित बहुजन अघाड़ी जैसे दलों की ओर होता है।

बीजेपी ने “हिंदू एकता” और राष्ट्रवाद के मुद्दे पर जोर दिया, जिससे परंपरागत हिंदू वोट महायुति के पक्ष में गए।
शिवसेना (शिंदे गुट) ने मराठी हिंदू वोटों में बड़ी हिस्सेदारी दिलाने में मदद की, खासकर ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी की राष्ट्रीय छवि ने शहरी और उच्च-मध्यम वर्ग के हिंदू वोटर्स को प्रभावित किया।

मराठा आरक्षण, विकास योजनाएं, और स्थानीय स्तर पर बीजेपी-शिवसेना शिंदे गुट के काम का प्रचार भी अहम रहा।

महाराष्ट्र में हिंदू वोटर्स के बीच महायुति का प्रभाव मजबूत रहा।
अनुमानित आंकड़ों के अनुसार, 55-60% हिंदू वोटर्स ने महायुति को समर्थन दिया।
मराठा और ओबीसी वोटर्स में हिस्सेदारी थोड़ी विभाजित रही, लेकिन गुजराती और उत्तर भारतीय हिंदू समुदायों ने महायुति को बड़ी संख्या में समर्थन दिया।

मराठा समुदाय महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ा वोट बैंक है। 2024 में, मराठा आरक्षण और उनके अधिकारों को लेकर हुई बहसों का असर वोटिंग पर देखा गया।
वहीं, ओबीसी समुदाय के वोटों को लेकर बीजेपी और कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन में खींचतान रही।

मुंबई और पुणे जैसे शहरी इलाकों में बीजेपी और शिवसेना (शिंदे गुट) ने हिंदू वोटों को आकर्षित करने की कोशिश की।
दूसरी ओर, ग्रामीण इलाकों में एनसीपी और उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने किसानों और मराठा वोटर्स को टारगेट किया।

बीजेपी ने परंपरागत हिंदू वोटर्स को संगठित करने की कोशिश की। ध्रुवीकरण के मुद्दों पर फोकस करते हुए उन्होंने राष्ट्रीयता और हिंदुत्व की बात को केंद्र में रखा।

बीजेपी को हिंदुओं से मिले वोट का प्रतिशत:2024 के चुनावों में बीजेपी ने परंपरागत हिंदू वोट बैंक पर बड़ा फोकस किया।

हिंदू मतदाताओं का समर्थन: अनुमान है कि मुंबई में 50-55% हिंदू वोटर्स ने बीजेपी या उसके गठबंधन (शिंदे गुट शिवसेना) को समर्थन दिया।
मराठी हिंदू वोटर्स: मराठी हिंदुओं का एक बड़ा हिस्सा उद्धव ठाकरे की शिवसेना और एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन के साथ गया। हालांकि, बीजेपी और शिंदे गुट ने भी इस वोट बैंक में सेंध लगाई।
गुजराती और उत्तर भारतीय हिंदू वोटर्स: बीजेपी ने इन समुदायों में सबसे मजबूत प्रदर्शन किया, और लगभग 70-75% गुजराती हिंदू और 60% उत्तर भारतीय हिंदू वोटर्स ने बीजेपी को वोट दिया।

मुस्लिम वोट बैंक का गणित:संख्या और प्रभाव:
महाराष्ट्र में मुस्लिम आबादी लगभग 12-13% है। मुंबई, ठाणे, और औरंगाबाद जैसे क्षेत्रों में मुस्लिम वोट निर्णायक भूमिका निभाते हैं।उधर उत्तर प्रदेश में कुंदरकी उपचुनाव में 62% मुस्लिम मतदाता होते हुए भी भाजपा के रामवीर सिंह  1 लाख 45 हजार वोट से जीत गए – उन्हें  वोट मिले 1,70,371 और सपा के मोहम्मद रिज़वान को मिले मात्र 25,580 – उसे सीट पर कुल मतदाता थे 3,84,673 जिसमे 2,22,588 वोट पड़े यानी 57% और इसका मतलब है 238000 वोट तो मुस्लिमों के ही थे – यह गणित इशारा करता है कि मुसलमानों ने सपा को वोट नहीं दिया।

राह कौन सी जाऊँ मैं सुषमा प्रेम पटेल(रायपुर छ.ग.)

अपनी पीड़ा को हे भगवन, कैसे किसे दिखाऊँ मैं।
पग-पग नारी सोच रही है, राह कौन सी जाऊँ मैं।।

मोहल्ले बाजारों में भी, अस्मत लूटी जाती है।
अत्याचारी के हाथों से, गहरी पीड़ा पाती है।।
काम वासना की नजरों से, कैसे कब बच पाऊँ मैं।
पग-पग नारी सोच रही है, राह कौन सी जाऊँ मैं।।

दुखी बहुत ही मन होता है, नारी जब पीसी जाती।
अंतर्मन तब विचलित होकर, बन आँसू धार बहाती।।
कलुष वासना हृदय मिटे नर, शुभ-शुभ आस लगाऊँ मैं।
पग-पग नारी सोच रही है, राह कौन सी जाऊँ मैं।।

क्रूर कल्पना दहला देता, विचलित मन को कर जाता।
कब तक व्यथा सहेगी भारी, प्रश्न हृदय में उठ आता।।
नारी के शुभ दामन से है, कैसे दाग मिटाऊँ मैं।
पग-पग नारी सोच रही है, राह कौन सी जाऊँ मैं।।

अखबारों के पन्ने पढ़कर, टूट रहा धीरज सारा।
अब तो भगवन! राह दिखा दो, ‘सुषमा’ जीवन हो प्यारा।।
आस लिए वह जगती हर दिन, खबर सुखद बतलाऊँ मैं।
पग-पग नारी सोच रही है, राह कौन सी जाऊँ मैं।।

पग-पग नारी सोच रही है, राह कौन सी जाऊँ मैं।।

संविधान दिवस 26 नवंबर विशेष: अधिकारों के उपयोग से बनी रहे देश की संप्रभुता

भारत देश का संविधान दुनिया के सभी लिखित संविधानों में सबसे लंबा संविधान है। 140 करोड़ लोगों की आत्मा इसमें बस्ती है। किसी देश या संगठन का संविधान कानूनों की वह प्रणाली है जो औपचारिक रूप से लोगों के अधिकारों और कर्तव्यों को बताती है।
यह एक विस्तृत कानूनी दस्तावेज़ है। यह भारत की सर्वोच्च विधि है। इसमें विभिन्न राजनीतिक दर्शन, नागरिकों के मूल अधिकार, नागरिकों के मूल कर्तव्य, विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों का विभाजन, केंद्र सरकार और राज्य सरकार के मध्य विषयों का विभाजन इत्यादि प्रावधान शामिल हैं।
संविधान में एकल नागरिकता का प्रावधान है अर्थात भारत का नागरिक किसी भी अन्य देश का नागरिक नहीं हो सकता है। संविधान में मौलिक अधिकारों का प्रावधान है. जैसे कि, समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, संवैधानिक उपचार का अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार।
संविधान में धर्मनिरपेक्षता का प्रावधान है। संविधान में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार का प्रावधान है। संविधान में आपातकालीन प्रावधान हैं। संविधान में त्रिस्तरीय सरकार का प्रावधान है। भारत दुनिया का सबसे विविध राष्ट्र है। पोशाक, भाषा शैली, देश अलग अलग सांस्कृतिक पहचान का सबसे जटिल मिश्रण में से एक माना जाता है। इस तरह के करीबी और सही तरीके से एक साथ बुनाई गई विभिन्न संस्कृतियों की बड़ी संख्या, भारत की विविधता को दुनिया के चमत्कारों में से एक बनाती है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है।
जब हमारे संविधान की रचना हुई थी तब इसमें 395 अनुच्छेद या धाराएं थीं । मूल अनुच्छेद/धाराओं की संख्या संविधान में आज भी इतनी ही है । हालाँकि समय – समय पर होने वाले संशोधनों के कारण आज कुल अनुच्छेदों की संख्या 448 हो गई है, लेकिन ये मूल अनुच्छेद के ही विस्तार के रूप में स्थापित किये गये हैं । इसमें 12 अनुसूचियां , 105 संशोधन और 1,17,369 शब्द हैं।
डॉ.भीमराव अंबेडकर ने विश्व के महत्वपूर्ण 60 देशों के संविधानों का अध्ययन कर भारत का संविधान आज ही के दिन 26 नवंबर 1949 को तैयार किया था। जिस पर संविधान सभा के 284 सदस्यों ने हस्ताक्षर किए। संविधान की आठवीं अनुसूची में निम्नलिखित 22 भाषाएँ शामिल हैं। मूल संविधान 2 साल, 11 महीने और 18 दिन में लिखा गया था।संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया। संविधान पुस्तक की मूल प्रति भारत की संसद की लाइब्रेरी में एक विशेष हीलियम से भरे केस में रखी गई है।
संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदत मौलिक अधिकारों का उपयोग नागरिकों को इस प्रकार करना होगा कि उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, समानता , साहस्कृतिक, शैक्षणिक और धर्म निरपेक्षता के अधिकार भारत की संप्रभुता तथा एकता और अखंडता को बनाए रखने में सहायक हो।
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डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं पत्रकार, कोटा

कवि की वाणी और यश सृष्टि में अमर होता है — डॉ. चारण

 कोटा / कवि की वाणी और यश सृष्टि में अमर रहता है। रचनाएं लोक जीवन के बीच से आती है अतः वो शाश्वत है। यह विचार ३१ वें गौरीशंकर कमलेश स्मृति राजस्थानी भाषा पुरस्कार 2024में बोलते हुए पुरस्कृत और समादृत साहित्यकार डॉ गजादान चारण शक्तिसुत ने रखे। उन्होंने कहा कि ऋग्वेद बताता है कि राजस्थानी भाषा आदिकाल से चली आ रही है। राजस्थानी भाषा 73 बोलियों से बनी हुई भाषा है जो हमारे लोक जीवन में व्याप्त है। डॉ गजादान चारण शक्तिसुत को ज्ञान भारती संस्था कोटा द्वारा आयोजित समारोह सचिव  सुरेंद्र शर्मा पुरस्कार सचिव जितेंद्र निर्मोही और संस्था द्वारा समादृत कर 11000/ नकद शाल श्रीफल माला, सम्मान पत्र, सम्मान प्रतीक भेंट किया गया। इस आयोजन में जितेन्द्र निर्मोही की की राजस्थानी नवगीत कृति ” कुरजां राणी छंद रचै” का लोकार्पण भी किया गया।
कृति पर बोलते हुए विशिष्ट अतिथि जय सिंह आशावत नैनवां ने कहा इस कृति में वर्तमान समय, श्रंगार काव्य,लोक जीवन , राजस्थानी भाषा के अमर कवियों पर लिखे नवगीत है जो उनके रचनाकर्म को बताते हैं। जितेन्द्र निर्मोही इस समय के बड़े राजस्थानी भाषा के लेखक हैं जिन्होंने नई लेखक पीढ़ी को खड़ा किया । आज़ का राजस्थानी भाषा समारोह समय का दस्तावेज है। समारोह के मुख्य अतिथि हनुमानगढ़ से आये बाल साहित्य पुरोधा दीनदयाल शर्मा ने कहा कि हाड़ौती अंचल का यह समारोह राष्ट्रीय स्वरुप ले चुका है। राजस्थानी भाषा के प्रेमी चाहे इस देश में हो या विदेश में इस आयोजन को बड़ा मान देते हैं। अध्यक्ष विश्वामित्र दाधीच ने लोक में फैली हुई राजस्थानी भाषा की और ध्यान दिलाया इस अवसर उन्होंने अपना गीत भी पढ़कर सुनाया। समारोह में हनुमानगढ़ से आयी कवियित्री मानसी शर्मा को उनकी काव्य कृति ” प्रेम, प्यार और प्रीत”पर तीसरा कमला कमलेश राजस्थानी लेखिका पुरस्कार पुरस्कार राशि 5001/नकद, शाल श्रीफल माला सम्मान पत्र, सम्मान प्रतीक पत्र देकर सम्मानित किया गया।यह सम्मान सुमन शर्मा, श्यामा शर्मा, वीणा शर्मा और स्मिता शर्मा ने किया। डॉ गजादान चारण शक्तिसुत की ” राजस्थानी साहित्य:साख और संवेदना” पर नंदू राजस्थानी टोंक और कृति “प्रेम, प्यार और प्रीत”  पर दिलीप सिंह हाड़ा हरप्रीत ने शानदार पत्रवाचन किया। समारोह का संचालन नहुष व्यास द्वारा किया गया।
समारोह का प्रारंभ सरस्वती वंदना से हुआ। उसके बाद स्वागत भाषण सुरेन्द्र शर्मा एडवोकेट सचिव ज्ञान भारती ने दिया। बीज वक्तव्य देते हुए जितेन्द्र निर्मोही ने कहा कि यह समारोह राष्ट्रीय पहचान बना चुका है। ज्ञान भारती संस्था के पिछले 31 वर्षों के कार्य और पुरस्कृत किये गए साहित्यकारों पर पृथक से शोध कार्य हो सकता है।यह संस्था हाड़ौती अंचल के साहित्य,कला और संस्कृति के क्षेत्र की थाती है। समारोह में पर्यावरण के क्षेत्र में विशिष्ट कार्य के लिए तपेश्वर सिंह भाटी को सम्मानित किया गया। इससे पूर्व संस्था पर्यावरण विद डॉ एल के दाधीच को अपने प्रारंभिक चरण में सम्मानित कर चुकी है। भाटी ने बोलते हुए कहा आज़ पर्यावरण बचाना हम सब की जिम्मेदारी है।
राजस्थानी भाषा को जन जन तक पहुंचाए जाने के लिए वरिष्ठ संवाददाता धनराज टांक को सम्मानित किया गया उन्होंने कहा कि मैंने राजस्थानी भाषा बूढ़ादित में राजस्थानी कवियों के बीच ही सीखी है। यूं ट्यूब के माध्यम से राजस्थानी भाषा को जन जन तक पहुंचाने वाले गोपाल सिंह सोलंकी फूफा को गौरी शंकर कमलेश सम्मान 2024 से नवाजा गया। उन्होंने कहा कि मेरी बात पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं अधिक गंभीरता से सुनती है। मैं अपना सौभाग्य मानता हूं कि मुझे पूरे राजस्थान से पधारे राजस्थानी भाषा के उद्भट विद्वान बंधुओं के सामने सम्मानित किया जा रहा है। सभा में सुकवि मुकुट मणिराज, बाबू बंजारा, मुरली धर गौड़, भगवती प्रसाद गौतम, रामेश्वर शर्मा रामू भैया,रेखा पंचोली, डॉ. युगल सिंह, डॉ ओम प्रकाश , पत्रकार बंधु आदि मौजूद थे। धन्यवाद राजकुमार शर्मा स्वागत अध्यक्ष ने किया।
इस अवसर पर कोटा के साहित्यकार जितेन्द्र निर्मोही कोटा की राजस्थानी नवगीत कृति “कुरजां राणी छंद रचै ” का  लोकार्पण किया गया।  कृति पर बोलते हुए विशिष्ट अतिथि जय सिंह आशावत ने राष्ट्रीय स्तर के मंचों की शोभा रहे वरिष्ठ गीतकार जितेन्द्र निर्मोही अपनी उम्र के इस पड़ाव पर आते आते बहुमुखी हो जाते हैं। उनके नवगीतों में श्रंगार की रवानी भी है, सामाजिक विद्रुपताएं भी,समाजिक वैषम्य भी लेकिन वो इन सबका निदान निकालते नजर आते हैं।उनके गीतों के छंदों से सूक्तियां भी निकाली जा सकती है और उक्तियां भी, उन्होंने नई पीढ़ी का समय पर मार्गदर्शन किया है तो इस कृति में आदिकाल से लेकर आज तक के कुछ विशिष्ट राजस्थानी कवियों को उनके कृतित्व के साथ याद किया है।उनका काव्य कौशल अद्भुत है। कृति में प्रोफेसर राधेश्याम मेहर उनकी लम्बी काव्य यात्रा पर प्रकाश डालते हुए नजर आते हैं तो डा गजे सिंह राजपुरोहित इस कृति को को काव्य का सतरंगी प्रवाह बताते हैं।
  साहित्यकार डॉ गजादान चारण शक्तिसुत डीडवाना ने कहा संसार की सारी सम्पादाएं नश्वर है कवि की वाणी अजर अमर है। मुख्य अतिथि हनुमानगढ़ से आये वरिष्ठ बाल साहित्यकार दीनदयाल शर्मा ने कहा कि निर्मोही जी का समन्वय कौशल अद्भुत है वो पुरानी पीढ़ी को अनूठे ढंग से अनूठे अंदाज से प्रस्तुत करते हैं तो नई पीढ़ी को मार्गदर्शन करते हुए दिखाई देते है।  वो इन दिनों बाल साहित्य पर जो कार्य करवा रहे हैं वो दस्तावेज जैसा है। समारोह की अध्यक्षता कर रहे विश्वामित्र दाधीच ने कहा कवि जब जनमानस और लोक मान्यताओं के साथ जाना जाता है वो कभी भुलाया नहीं जा सकता।

सरकार ने रेडियो ऑपरेटरों के लिए व्यवसाय करने में आसानी सुनिश्चित करने हेतु एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया

नई दिल्ली। केन्द्र सरकार ने एफएम नीति (चरण-III) के अंतर्गत बैच-III ई-नीलामी के सफल बोलीदाताओं के लिए स्वत: अनंतिम पैनल में शामिल होने के लिए एक बार की विशेष छूट को स्वीकृति दे दी है । यह छूट उनके रेडियो चैनलों के संचालन की तिथि से तुरंत प्रभावी होगी, जिससे उन्हें छह महीने की अवधि के लिए केंद्रीय संचार ब्यूरो (सीबीसी) के साथ अनंतिम पैनल में शामिल होने का अवसर मिलेगा, या जब तक कि वे मौजूदा ‘निजी एफएम रेडियो स्टेशनों के पैनल के लिए नीति दिशानिर्देशों ‘ के तहत सीबीसी के साथ पैनल में शामिल होने के लिए आवेदन करने के योग्य नहीं हो जाते।

अनंतिम पैनल अवधि के दौरान, निजी एफएम रेडियो स्टेशनों के लिए आधार दर लागू होगी, जिनके लिए कोई आईआरएस (भारतीय पाठक सर्वेक्षण) डेटा उपलब्ध नहीं है।

इस कदम से नए शहरों में रेडियो ऑपरेटरों को तत्काल राजस्व लाभ मिलेगा, जिससे उन्हें तुरंत संचालन शुरू करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा। इस कदम से इन शहरों में निजी एफएम रेडियो सेवाओं को तेजी से शुरू करने में मदद मिलने की उम्मीद है, जिससे देश भर में रेडियो प्रसारण सेवाओं तक बेहतर पहुंच को बढ़ावा मिलेगा।

यह पहल भारत में व्यवसाय करने की सुगमता में सुधार लाने तथा रेडियो ऑपरेटरों को परिचालन सहायता प्रदान करने के लिए सरकार के निरतंर प्रयासों का हिस्सा है, जिससे व्यवसाय संचालन में सुगमता सुनिश्चित होगी तथा प्रसारण सेवा के विकास के लिए एक और ज्यादा अनुकूल माहौल बनेगा।

गाहिरा गुरू ने बदल दी लाखों आदिवासियों की जिंदगी

-गाहिरा गुरु पुण्य तिथि 21 नवम्बर_
छत्तसीगढ़  के रायगढ़ और सरगुजा जिले में गोंड, कंवर, उरांव, कोरवा, नगेसिया, पंडो आदि वनवासी जातियां वर्षों से रहती हैं। ये स्वयं को घटोत्कच की संतान मानती हैं। मुगल आक्रमण के कारण उन्हें जंगलों में छिपना पड़ा। अतः वे मूल हिन्दू समाज से कट गये। गरीबी तथा अशिक्षा के चलते कई कुरीतियों और बुराइयों ने जड़ जमा ली।
इन्हें दूर करने में जिस महामानव ने अपना जीवन खपा दिया, वे थे रायगढ़ जिले के लैलूंगा विकास खंड के ग्राम गहिरा में जन्मे रामेश्वर कंवर, जो ‘गहिरा गुरु’ के नाम से प्रसिद्ध हुए। गहिरा गुरु का जन्म 1905 में श्रावणी अमावस्या को हुआ था। उस क्षेत्र में कोई बच्चा पढ़ता नहीं था। यही स्थिति रामेश्वर की भी थी। घर में लाल कपड़े में लिपटी एक रामचरितमानस रखी थी। जब कोई साधु-संन्यासी आते, वही उसे पढ़कर सुनाते थे। इससे रामेश्वर के मन में धर्म भावना जाग्रत हुई।
वहां मद्यपान तथा मांसाहार का आम प्रचलन था। ऐसे माहौल में रामेश्वर का मन नहीं लगता था। वे जंगल में दूर एकांत में बैठकर चिंतन-मनन करते थे। उन्होंने लोगों को प्रतिदिन नहाने, घर में तुलसी लगाने, उसे पानी देने, श्वेत वस्त्र पहनने, गांजा, मासांहार एवं शराब छोड़ने, गोसेवा एवं खेती, रात में सामूहिक नृत्य के साथ रामचरितमानस की चौपाई गाने हेतु प्रेरित किया।
प्रारम्भ में अनेक कठिनाई आयीं; पर धीरे-धीरे लोग बात मानकर उन्हें ‘गाहिरा गुरुजी’ कहने लगे। वे प्रायः यह सूत्र वाक्य बोलते थे –
चोरी दारी हत्या मिथ्या त्यागें, सत्य अहिंसा दया क्षमा धारें।
अब उनके अनुयायियों की संख्या क्रमशः बढ़ने लगी। उनके द्वारा गांव में स्थापित ‘धान मेला’ से ग्रामीणों को आवश्यकता पढ़ने पर पैसा, अन्न तथा बीज मिलने लगा। इससे बाहरी सहायता के बिना सबकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ। उन्होंने ‘सनातन संत समाज’ बनाकर लाखों लोगों को जोड़ा।
शिक्षा के प्रसार हेतु उन्होंने कई विद्यालय एवं छात्रावास खोले। इनमें संस्कृत शिक्षा की विशेष व्यवस्था रहती थी। समाज को संगठित करने के लिए दशहरा, रामनवमी और शिवरात्रि के पर्व सामूहिक रूप से मनाये जाने लगे। लोग परस्पर मिलते समय ‘शरण’ कहकर अभिवादन करते थे।
उन दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रेरणा से श्री बालासाहब देशपांडे ने ‘वनवासी कल्याण आश्रम’ नामक संस्था बनाई थी। इसे जशपुर के राजा श्री विजयभूषण सिंह जूदेव का भी समर्थन था। इन सबके प्रति गहिरा गुरु के मन में बहुत प्रेम एवं आदर था। भीमसेन चोपड़ा तथा मोरूभाई केतकर से उनकी अति घनिष्ठता थी। वे प्रायः इनसे परामर्श करते रहते थे। इनके कारण उस क्षेत्र में चल रहे ईसाइयों के धर्मान्तरण के षड्यन्त्र विफल होने लगे।
गहिरा गुरु ने अपने कार्य के कुछ प्रमुख केन्द्र बनाये। इनमें से गहिरा ग्राम, सामरबार, कैलाश गुफा तथा श्रीकोट एक तीर्थ के रूप में विकसित हो गये। विद्वान एवं संन्यासी वहां आने लगे। एक बार स्वास्थ्य बहुत बिगड़ने पर उन्हें शासन के विशेष विमान से दिल्ली लाकर हृदय की शल्य क्रिया की गयी। ठीक होकर वे फिर घूमने लगे; पर अब पहले जैसी बात नहीं रही।
कुछ समय बाद गहिरा गुरु प्रवास बंद कर अपने जन्म स्थान गहिरा ग्राम में ही रहने लगे। 92 वर्ष की आयु में 21 नवम्बर, 1996 (देवोत्थान एकादशी) के पावन दिन उन्होंने इस संसार से विदा ले ली। उनके बड़े पुत्र श्री बभ्रुवाहन सिंह अब अपने पिता के कार्यों की देखरेख कर रहे हैं।

देश के सभी हिस्सों को भारतीय पैनोरमा में उचित प्रतिनिधित्व मिले यह सुनिश्चित करने का प्रयास

गोआ।  55वें भारतीय-अतंर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव 2024 के चल रहे आयोजन के बीच भारतीय पैनोरमा फीचर फिल्म संवर्ग के जूरी सदस्यों ने कहा कि 384 भारतीय फिल्मों में से 25 फिल्में चुनना काफी मुश्किल भरा फैसला था और महोत्सव में जिन फिल्मों का चयन नहीं हो सका, उनकी गुणवत्ता कमतर नहीं मानी जानी चहिए। फीचर फिल्म चयन समिति के सदस्य समारोह से इतर आज संवाददाताओं को संबोधित कर रहे थे।

भारतीय पैनोरमा की चयन प्रक्रिया पर अपना दृष्टिकोण बताते हुए जाने-माने फिल्मकार हिमांशु शेखर खटुआ ने कहा कि इस संवर्ग में फिल्मों का चयन जूरी सदस्यों के लिए काफी कठिन था क्योंकि इसमें देश के विभिन्न हिस्सों की फिल्में शामिल थी। चयन समिति सुनिश्चित करना चाहती थी कि इस संवर्ग में देश के सभी हिस्सों को योग्यतापूर्ण प्रतिनिधित्व मिले। 13 सदस्यीय इस संवर्ग की श्रेष्ठ फिल्में तय करने के लिए बयालीस दिनों तक विचार-विमर्श किया। श्री खटुआ ने कहा कि गोवा अब शूटिंग के लिए पसंदीदा स्थान बन गया है जो दर्शाता है कि  फिल्मकारों को गोवा में फिल्मांकन के लिए सभी आवश्यक सहायता मिल रही है।

 

इस अवसर पर जूरी सदस्य मनोज जोशी ने कहा कि फीचर फिल्म चयन समिति ने देश के सभी क्षेत्रों की प्रतिभा, फिल्मों और रचनात्मकता के साथ न्याय करने की कोशिश की है। उन्होंने कहा कि “हम दुनिया के आदिम कथ्यकार हैं और कहानी सुनाना हमारे खून में है। श्री जोशी ने कहा कि भारत दुनिया में सबसे अच्छी फिल्म कथ्य सामग्री प्रस्तुत करने वाला देश हैं”।

 

जूरी सदस्या रत्नोत्तमा सेनगुप्ता ने कहा कि भारतीय-अतंर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव 2024 में शामिल भारतीय पैनोरमा की फिल्में भारत की बहुविविधता और भारतीय सिनेमा की विविधता  दर्शाती हैं। उन्होंने कहा कि हालांकि यह महोत्सव केवल 10 दिनों का होता है लेकिन इसके अंतर्गत कई खंड और संवर्गों में विविधतापूर्ण फिल्में प्रदर्शित होती हैं।

जूरी सदस्य आशु त्रिखा ने कहा कि सिनेमा अपने आप में एक धर्म है और महोत्सव में फिल्मों का चयन बेहद सावधानी और विचार पूर्वक किया गया है। उन्होंने कहा कि विशेष प्रभावों और डिजिटल प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से भारतीय सिनेमा अब नयी ऊंचाइयों को छू रहा है और विश्व मानक के बराबर पहुंच गया है।

जूरी सदस्या प्रिया कृष्णास्वामी ने भारतीय सिनेमा की मौजूदा विषयगत अंतर्धाराओं की सराहना की। उन्होंने कहा कि नए फिल्मकार कला के नए रूप और नई सिनेमाई भाषा के साथ जो प्रयोग कर रहे हैं उसे देखकर खुशी हो रही है। उन्होंने कहा कि जूरी सदस्यों की कोशिश रही कि फिल्मों का सावधानीपूर्वक चयन किया जाए और फिल्म निर्माण के आगामी रुझानों तथा दुनिया के सामने भारतीय सिनेमा की विविधता को लाया जाए।

जूरी के अन्य सदस्य सुष्मिता मुखर्जी, ओइनम गौतम, एस.एम. पाटिल, नीलाभ कौल, सुशांत मिश्रा, अरुण कुमार बोस और समीर हंचते भी प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद थे। सम्मेलन का संचालन रजिथ चंद्रन ने किया।

इंडियन पैनोरमा 55वें भारतीय-अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई)  का एक प्रमुख खंड है, जिसमें 25 फीचर फिल्में और 20 गैर-फीचर फिल्में दिखाई जाएंगी। मुख्यधारा सिनेमा की 5 फिल्मों सहित 25 फीचर फिल्मों को 384 समकालीन भारतीय फीचर फिल्मों में से चुना गया है। भारतीय पैनोरमा 2024 में दिखाए जाने के लिए निर्णायक मंडल (जूरी) की पहली पसंद श्री रणदीप हुड्डा द्वारा निर्देशित हिंदी फिल्म  स्वतंत्र वीर सावरकर है।

भारतीय पैनोरमा फीचर फिल्म के जूरी सदस्य:

  1. श्री मनोज जोशी, अभिनेता
  2. सुश्री सुष्मिता मुखर्जी, अभिनेत्री
  3. श्री हिमांशु शेखर खटुआ, फिल्म निर्देशक
  4. श्री ओइनम गौतम सिंह, फिल्म निर्देशक
  5. श्री आशु त्रिखा, फिल्म निर्देशक
  6. श्री एस.एम. पाटिल, फिल्म निर्देशक और कहानीकार
  7. श्री नीलाभ कौल, छायाकार और फिल्म निर्देशक
  8. श्री सुसांत मिश्रा, फिल्म निर्देशक
  9. श्री अरुण कुमार बोस, प्रसाद संस्थान के पूर्व विभागाध्यक्ष और ध्वनि इंजीनियर
  10. सुश्री रत्नोत्तमा सेनगुप्ता, लेखर और संपादक
  11. श्री समीर हंचते, फिल्म निर्देशक
  12. सुश्री प्रिया कृष्णस्वामी, फिल्म निर्देशक

भारतीय पैनोरमा

भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के एक खंड के रूप में भारतीय पैनोरमा को सिनेमाई कला द्वारा भारत की समृद्ध संस्कृति और विरासत के संवर्धन के साथ भारतीय फिल्मों को बढ़ावा देने के लिए 1978 में आरंभ किया गया था। स्थापना के बाद से भारतीय पैनोरमा वर्ष की सर्वश्रेष्ठ भारतीय फिल्में प्रदर्शित करने के लिए पूर्णतया से समर्पित रहा है। फिल्म कला को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारतीय पैनोरमा खंड के लिए चयनित फिल्मों को भारत और विदेशों में अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में गैर लाभकारी उद्देश्यों, द्विपक्षीय सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम के तहत आयोजित भारतीय फिल्म सप्ताह तथा सांस्कृतिक आदान-प्रदान प्रोटोकॉल से अलग विशेष भारतीय फिल्म समारोहों और भारतीय पैनोरमा समारोहों में प्रदर्शित किया जाएगा।

अधिक जानकारी के लिए: https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=2067711

“फिल्म निर्माण प्रक्रिया को रहस्य से मुक्त करना आवश्यक है:” प्रसून जोशी

गोआ। कई बार हमारी कहानी के विचार समय से पहले ही मर जाते हैं, क्योंकि व्यावहारिक और रचनात्मक प्रतिबंधों के कारण हम अपने विचारों में विश्वास खो देते हैं। गोवा में आज इफ्फी 2024 के दौरान ‘मास्टरक्लास द जर्नी फ्रॉम स्क्रिप्ट टू स्क्रीन: राइटिंग फॉर फिल्म एंड बियॉन्ड’ को संबोधित करते हुए प्रसिद्ध लेखक और गीतकार प्रसून जोशी ने कहा कि इस तरह भारत वह जगह है जहाँ कहानी सामने आने से पहले ही उसकी भ्रूण हत्या हो जाती है।

श्री जोशी ने कहा कि किसी भी कला का निरंतर अभ्यास करने का कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि जब अवसर हमारे दरवाजे पर दस्तक देता है, तब हम उसका अभ्यास शुरू नहीं कर सकते।

“सच्चा कंटेंट भाषा से बंधा नहीं होता और इस तरह से हम कह सकते हैं कि सबसे अच्छी कविता मौन में होती है, क्योंकि मौन एक ऐसी शाश्वत ध्वनि है जो हमें जोड़ती है। मौन ही सर्वोत्तम भाषा है।” श्री जोशी ने आगे कहा कि हमें फिल्म बनाने की प्रक्रिया को रहस्यमय नहीं बनाना चाहिए। फिल्मों में रहस्य हो सकता है लेकिन फिल्म निर्माण प्रक्रिया में नहीं।

विचारों से फिल्म तक के सफर पर बात करते हुए श्री जोशी ने अपने बचपन की घटनाओं का जिक्र किया, जो तारे ज़मीन पर फिल्म के उनके गीतों की प्रेरणा बनीं। प्रसून जोशी ने कहा, “जब आप कोई बहुत ही निजी बात कहते हैं तो वह सार्वभौमिक हो जाती है।”

“मेरी माँ कविता में कठिन शब्दों के मेरे प्रयोग पर टिप्पणी करती थीं, जिससे मेरी लेखन शैली में बदलाव आया और में ऐसा लिखने में सक्षम हुआ जो पाठकों को पसंद आए और जिससे सिर्फ मुझे ही संतुष्टि न मिले।”

रचनात्मक क्षेत्र पर एआई के प्रभाव के बारे में बोलते हुए, गीतकार ने कहा कि “मैं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को हल्के में नहीं लेता। यह रचनात्मक क्षेत्रों में सबसे पहले प्रभाव डाल रहा है, जबकि इसे इन क्षेत्रों में बाद में आना चाहिए था। हमें यह याद रखना होगा कि गणित पर केंद्रित जो कुछ भी है , उसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस  गणितीय प्रक्रियाओं को तो समझ सकता है, लेकिनअगर किसी की कविता या कहानी किसी सच्चाई से उत्पन्न होती है तो एआई उस अनुभव को नहीं पैदा कर सकता। सीबीएफसी के अध्यक्ष ने कहा कि एआई के हावी होने से रचनाकार प्रभावित हो रहा है, न कि सृजन।

प्रसून जोशी ने यह भी कहा कि हमें कहानी कहने की प्रक्रिया को कुछ बड़े शहरों तक सीमित नहीं रखना चाहिए। उन्होंने क्रिएटिव माइंड्स ऑफ टूमॉरो (सीएमओटी) का उल्लेख किया करते हुए कहा कि अगर हमें भारत की असली कहानियां दिखानी हैं तो फिल्म निर्माण को देश के सबसे दूरदराज हिस्सों तक पहुंचाना होगा ताकि मुफ़स्सिल इलाकों से कहानीकार उभर सकें। श्री जोशी ने कहा कि हम छोटे शहरों और कस्बों की कहानियों को तब तक प्रभावी ढंग से नहीं बता सकते जब तक कि उन जगहों से फ़िल्म निर्माता नहीं निकलेंगे। अगर आप चाहते हैं कि भारत की सच्ची कहानियाँ सामने आएँ, तो आपको फ़िल्म निर्माण को देश के सबसे दूर के कोने में रहने वाले लोगों तक पहुँचाना होगा।

श्री अनंत विजय ने मास्टरक्लास का संचालन किया।

पहली बार एक लद्दाखी फिल्म “घर जैसा कुछ” ने 55वें आईएफएफआई में गैर-फीचर श्रेणी की शुरुआत की

गोआ। 55वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के गैर-फीचर फिल्म श्रेणी का उद्घाटन लद्दाख की फिल्म घर जैसा कुछ के साथ हुआ। गैर-फीचर फिल्म श्रेणी का उदेश्य वैश्विक मंच पर अनकही कहानियों को सबसे आगे लाना है। फिल्म निर्माता ने आईएफएफआई में कलाकारों और क्रू के साथ पीआईबी द्वारा आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में मीडिया के साथ बातचीत की।

घर जैसा कुछ एक लघु फिल्म है जिसका निर्देशन एक स्वतंत्र निर्देशक श्री हर्ष संगानी ने किया है। आईएफएफआई में नॉन-फिक्शन श्रेणी की शुरुआत करने वाली लद्दाख की पहली फिल्म के रूप में सभी का ध्यान आकर्षित करने में कामयाब रही है।

फिल्म एक व्यक्ति की विरासत में मिली परंपराओं का पालन करने और उसकी भविष्य की आकांक्षाओं को आगे बढ़ाने की इच्छा के बीच सतत संघर्ष की पड़ताल करती है। फिल्म में इस संघर्ष को एक अनोखे तरीके से दर्शाया गया है, जहां नायक के माता-पिता की आत्माएं कथा को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। कथानक ने लद्दाख से समुदाय की भाषा, परंपराओं और सार को अपने दर्शकों के लिए एक दृश्य और भावनात्मक रूप से आकर्षक तरीके से कैप्चर किया है।

प्रेस कॉन्फ्रेंस में मीडिया को संबोधित करते हुए, निर्देशक हर्ष संगानी ने कहा कि, “मेरे भीतर हमेशा कहानी थी, लेकिन यह अब तक वास्तविकता में नहीं आ पाई। मैं एक बार अस्तित्व में आने वाले घर को खोजने की कोशिश करने के मुख्य चरित्र के संघर्षों के साथ जुड़ा; जैसा कि मैंने भी अपने जीवन में इसी तरह की स्थितियों का अनुभव किया है।

फिल्म मार्मिक रूप से उन सभी के सार्वभौमिक संघर्षों को पकड़ती है, जो अपने गृहनगर की जानकारी को एक अज्ञात शहर की ओर छोड़ देते हैं, जो नई और उज्जवल संभावनाओं की तलाश में हैं, केवल अपने घर के लिए पुरानी यादों से जूझते हैं।

फिल्म के निर्देशक ने कहा की, “हम दर्शकों को एक ऐसी जगह के लिए तड़प महसूस कराना चाहते थे, जो कभी उनके लिए आराम और गर्मजोशी रखती थी, इसीलिए हमें लगा कि घर जैसा कुछ फिल्म के अनुरूप होगा।

प्रेस कॉन्फ्रेंस में उपस्थित फिल्म के फोटोग्राफी निदेशक श्री कबीर नाइक ने कहा कि, “एक छायाकार के रूप में लद्दाख जैसी जगहों पर शूटिंग करना एक सपना था। हालांकि यह काफी जबरदस्त भी हो जाता है क्योंकि पात्रों को इस तरह के सुंदर स्थान पर खड़ा करने के लिए हमेशा अतिरिक्त प्रयास करना पड़ता है।

लद्दाख के साथ-साथ देश के बाकी हिस्सों में भी दर्शकों की उम्मीद करते हुए निर्देशक ने कहा कि, “जैसा कि हमने आईएफएफआई के चयन में प्रवेश करने से पहले फिल्म बनाने का काम पूरा कर लिया था, हमें दर्शकों को फिल्म दिखाने का मौका नहीं मिला; लेकिन मुझे उम्मीद है कि ऐसे दर्शक मिलेंगे जो फिल्म की पहचान करेंगे और उसके साथ जुड़ेंगे।

55वे आईएफएफआई में गैर-फीचर फिल्म श्रेणी में 262 फिल्मों के लिए प्रविष्टियां थीं और 55 फिल्मों के लिए 20 फिल्मों का चयन किया गया था।

आईएफएफआई में गैर-फीचर फिल्म श्रेणी उभरते हुए और साथ ही स्थापित फिल्म निर्माताओं को समर्पित है जो वृत्तचित्रों और लघु फिल्मों के माध्यम से अपने कार्यों का प्रदर्शन करने की कोशिश कर रहे हैं।

फिल्म का समावेश भारत में क्षेत्रीय सिनेमा की बढ़ती विशिष्ठता को उजागर करता है, विशेष रूप से लद्दाख जैसे कम प्रतिनिधित्व वाले क्षेत्रों से।