Tuesday, November 26, 2024
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हमारी सरकार को उपद्रवी तत्वो को कड़ी चेतावनी जारी करना चाहिए: ख़्वाजा इफ्तिखार अहमद

नई दिल्ली। निर्दोष हिंदू अल्पसंख्यक सदस्यों की बिना किसी गलती के हत्या करना दोषियों की नैतिकता की निम्नतम भावना को दर्शाता है। यह वास्तव में उनके और उनके आकाओं के अंत में संयम और परिष्कार के गुणों के पतन को दर्शाता है जो कानून को अपने हाथ में ले रहे हैं। किसी भी बहाने या आधार पर निर्दोष हत्या को उचित नहीं ठहराया जा सकता!

डॉ. ख्वाजा इफ्तिखार अहमद, अध्यक्ष , इंटर फेथ हार्मोनी फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने अपने बयान में कहा है कि बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमलों की हालिया खबरें न केवल कड़े शब्दों में निंदनीय हैं, बल्कि नग्न बर्बरता के इन सबसे बदसूरत और शर्मनाक कृत्यों में गुमराह बांग्ला युवाओं द्वारा किए गए इस जघन्य अपराध का समर्थन करने के लिए कोई तर्क उपलब्ध नहीं है।

हमारी सरकार को उन लोगों को कड़ी चेतावनी जारी करनी चाहिए जो ढाका में शीर्ष पर हैं कि इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। हमारा उनकी घरेलू राजनीतिक उथल-पुथल में हस्तक्षेप करने का कोई इरादा नहीं है, लेकिन भारत और वहां के हिंदू अल्पसंख्यकों के खिलाफ किए गए किसी भी चूक और कृत्य पर हमारे प्रतिष्ठान से उचित प्रतिक्रिया मिल सकती है।

हम बांग्लादेश को अपना मित्र और रणनीतिक सहयोगी मानते हैं। हाल के घटनाक्रमों से ऐसा प्रतीत होता है कि इसका एक बड़ा एजेंडा है जिसे भारत विरोधी ताकतें बढ़ावा देना चाहती हैं। हमें उभरते राजनीतिक परिदृश्य पर कड़ी नजर रखनी होगी।

मुझे यकीन है कि हमारे राष्ट्रीय नेतृत्व, सरकार और विदेश मंत्रालय को मामले की जानकारी है और उन्हें वहां स्थिति को सामान्य बनाने में गहराई से लगे रहना चाहिए। हमारा सीमा बल यह सुनिश्चित करेगा कि वहां अत्यधिक अस्थिर जमीनी स्थिति से कोई सुरक्षा या घुसपैठ का खतरा न हो।

सभी देशों, विशेषकर पड़ोसियों के साथ मित्रता और शांति की हमारी नीति के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में हमारा राजनयिक समुदाय जल्द ही उस पारंपरिक सद्भावना को बहाल करने में सफल होगा जो पड़ोसी बांग्लादेश के साथ हमारे संबंधों की पहचान रही है। एनएसए अजीत डोभाल की हसीना वाजेद से मुलाकात हमारी कूटनीति की योग्यता और कद को बयां करती है। मैं उनके साथ उनकी बातचीत का स्वागत करता हूं।’

भाषा, संस्कृति, इतिहास और सभ्यता में बांग्लादेशी लोगों के साथ हमारी बहुत समानता है। मैं फिर से वहां हमारी हिंदू बहनों और भाइयों के खिलाफ गुंडागर्दी और निर्दोष हत्या के कृत्यों की निंदा करता हूं।

डॉ. ख्वाजा इफ्तिखार अहमद
अध्यक्ष
इंटर फेथ हार्मोनी फाउंडेशन ऑफ इंडिया- नई दिल्ली

1500 डमरु के नाद से गूँज उठी महाकाल की नगरी

एक साथ लाखों दीपक प्रज्जवलन, मिट्टी की गणेश मूर्तियों का के निर्माण को विश्व रिकॉर्ड में दर्ज कराने वाले शहर में एक और विश्व रिकॉर्ड बन गया है। सावन महीने का तीसरा सोमवार उज्जैन में नई आभा लेकर आया। श्रावण मास के तीसरे सोमवार भगवान महाकाल की सवारी के पहले  भस्मारती में  और सवारी के दौरान 1500  वादकों ने डमरू वादन कर विश्व कीर्तिमान रच दिया।
एस्सेल समूह के अध्यक्ष डॉ. सुभाष  चन्द्रा ने इस अभिनव अध्यात्मिक प्रयोग पर अपनी शुभकामना देते हुए कहा कि यह अलौकिक और अद्भुत तस्वीर रही। महाकाल की नगरी ने एक नया कीर्तिमान स्थापित किया।

श्री महाकालेश्वर मंदिर के महाकाल लोक स्थित शक्ति पथ पर 1,500 डमरू वादकों ने मनमोहक लयबद्ध प्रस्तुति देकर विश्व रिकॉर्ड बनाया। उज्जैन में 1,500 वादकों ने डमरू वादन कर फेडरेशन ऑफ इंडियन एसोसिएशन न्यूयॉर्क के 488 डमरू वादन का रिकार्ड तोड़ा।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की पहल पर उज्जैन ने डमरू वादन का विश्व कीर्तिमान रचा। गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड के एडिटर ऋषिनाथ ने डमरू वादन के वर्ल्ड रिकॉर्ड का सर्टिफिकेट प्रदान किया गया। सीएम यादव ने डमरू वादन के विश्व रिकॉर्ड के लिए उज्जैन को बधाई और शुभकामनाएं दीं।

25 दलों के 1,500 डमरू वादकों ने भस्म आरती की धुन पर डमरू वादन कर भगवान महाकाल की स्तुति की। गिनीज बुक विश्व रिकॉर्ड बनाने के लिए एक साथ 1,500 कलाकार भगवान शिव के प्रिय वाद्य डमरू, झांझ मंजीरे की सुरमयी मंगल ध्वनि आकर्षण का केंद्र बन गई।

सवारी में उत्साह और आकर्षण को और अधिक बढ़ाने के क्रम में जनजातीय कलाकारों की प्रस्तुति, 350 जवानों के पुलिस बैंड की प्रस्तुति के बाद अब सवारी में डमरू वादन की प्रस्तुति ने एक अलग रोमांच पैदा किया।
समूची उज्जैन नगरी डमरू की गूंज से गुंजायमान हो गई। महाकाल महालोक के सामने शक्ति पथ पर अद्भुत अनूठे आयोजन में भगवा वस्त्रों में डमरू वादक कलाकारों की मनमोहक प्रस्तुति ने सभी को भाव विभोर किया।

डमरू बजाने का यह विश्व कीर्तिमान उज्जैन में ऐसे ही हासिल नहीं कर लिया। इसके लिए पूरे प्रदेश भर से डमरू वादक पिछले तीन दिनों से शक्ति पद पर जमकर मेहनत कर रहे थे।

महाकालेश्वर मंदिर की जनसंपर्क प्रभारी गोरी जोशी ने बताया कि भोपाल के डमरू वादक संस्कृति विभाग और भस्म मैया भक्त मंडली के साथ ही भोपाल, सागर, खंडवा, खजुराहो और जबलपुर डमरू वादकों ने अपनी प्रस्तुति दी, जिसके कारण ही यह वर्ल्ड रिकॉर्ड बन सका।

मौन, शब्द से व्यापक अभिव्यक्ति है , मनुष्य का प्रकृति से रिश्ता मौन का है!

मौन का विस्तार अनन्त है या यह भी कहा जा सकता हैं कि मौन की व्यापकता सीमा से परे होकर मौन पूर्णत:असीम हैं। मौन ध्वनि विहीन होते हुए भी सार्थक होकर, एक तरह से शब्दों की निराकार अभिव्यक्ति है। जैसे प्रकाश निशब्द होकर सतत कम ज्यादा तीव्रता से कालक्रमानुसार अभिव्यक्त होता ही रहता है वैसे ही मौन भी निरन्तर निःशब्द स्वरूप में सदैव अस्तित्व में बना ही रहता है। मौन असीम हैं तो शब्द ससीम हैं ऐसा माना जा सकता है। मौन धरती और आकाश में हर कहीं व्याप्त है तो शब्द का विस्तार हमारी मौन मुद्रा भंग से ही प्रारंभ होता है। मौन का अस्तित्व, समापन या भंग होते ही हमें शब्दों को अभिव्यक्त करने का अवसर मिलता है। मौन में शब्द सुप्तावस्था या शून्य में समाधिस्थ हो जाते हैं,मौन में असंख्य शब्द सुप्तावस्था में समाये रहते हैं। शब्दों की अभिव्यक्ति मौन को शब्दों के स्वरूप अर्थात ध्वनि और अर्थ में प्रगट कर निराकार ब्रह्म यानी शब्दों को साकार स्वरूप में अस्तित्व प्रदान करते प्रतीत होते हैं। जड़ तत्व ध्वनि को उत्पन्न कर सकता है पर शब्दों की उत्पत्ति मानवीय चेतना का एकाधिकार है।जीवन और जीव दोनों ही मौन और शब्दों के स्वरूप को अपने जीवन में ऐसे एकाकार कर लेते हैं जिसे सामान्य रूप से पृथक-पृथक करना संभव नहीं है।न तो कोई आजीवन मौन हो सकता है और न ही कोई आजीवन बिना रुके या निरंतर शब्दों को ध्वनि या अभिव्यक्ति दे सकता है। शब्दों का उच्चारण नहीं करना मौन नहीं होता है। बिना बोले गुमसुम हो जाना या एकदम चुप और मौन हो जाना दोनों ही भिन्न भिन्न स्थिति है।

मौन हमेशा चुप रहना ही नहीं है मौन की मुखरता मारक,तारक और उद्धारक भी हो सकती है।मौन होना याने महज़ ध्वनि का शुद्ध अभाव मात्र ही नहीं होता वरन् शब्दों के जन्म से पहले की मनःस्थिति जैसा नैसर्गिक शांत स्वरूप भी माना जा सकता है। जैसे नकारात्मक विचारों की उथल-पुथल के थम जाने को कुछ हद तक मानसिक शांति का अहसास हम मानते या समझते हैं वैसी अवधारणा मौन को लेकर नहीं बनायी जा सकती है। मौन एक प्राकृतिक अवस्था है जिसमें शून्य से लेकर आकाश तक में समायी निस्तब्ध शांति या निसर्ग में समायी नीरवता से यदि प्रत्यक्ष साक्षात्कार हुआ हो तो ही मौन की मौलिकता को समझा जा सकता है। मौन को ध्वनि के अभाव या गूंगेपन या अबोलेपन या जानबूझकर ओढ़ी चुप्पी से नहीं समझा जा सकता है। मौन को गहराई से भी नहीं समझा जा सकता क्योंकि मौन का कोई आकार प्रकार या रूप स्वरूप नहीं है फिर भी मौन से सहमति असहमति दोनों की अभिव्यक्ति हो सकती है। यदि प्रकाश के अभाव,जीव जिसमें वनस्पति भी समाहित है की जीवन्त हलचल का अभाव और व्यापक निरवता का धनधोर सन्नाटा पसरा हुआ है तो मौन या निस्तब्ध शांति भयग्रस्त मानसिक तनाव और अकारण अशांति को उत्पन्न कर सकती हैं।इसके उलट पूर्णिमा के चन्द्रमा की शीतल चांदनी और शांति पूर्ण मनःस्थितिवाला मौन मनुष्य को आनन्द की अनुभूति का अनुभव सहजता से कराती हैं।

मौन मनुष्य जीवन का अनोखा अनुभव है, जिसमें कभी भी अभिव्यक्ति में अपूर्णता नहीं है। जैसे कहा गया है कि शून्य में से शून्य को यदि दे निकाल तो भी शेष तब भी शून्य ही रहता सदा। याने शून्य या मौन एक प्राकृतिक अवस्था है जो हमारे अंदर बाहर सदा सर्वदा मौजूद हैं। शब्द और ध्वनि मनुष्य या जीव की कृति है पर मौन और शून्यता जीवन और जीव की प्रकृति है। शब्द कृति है मौन प्रकृति है। जगत में प्रकृति का अस्तित्व सदा सर्वदा से है वैसे ही जीवन में या जीव में मौन की मौजूदगी जीवन की सनातन अभिव्यक्ति है। जीवन महज़ निरन्तर हलचल मात्र ही नहीं है। अनन्त शांति या मौन की मौजूदगी प्रकृति और जीवन की व्यापकता और मौलिकता को निशब्द समझाती प्रतीत होती है। यही मौन की मौजूदगी और मौलिकता की अभिव्यक्ति है जो अनुभूत तो होती है पर शब्दों में व्यक्त नहीं की जा सकती है। मौन में शब्दों को शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्त करने के बजाय निःशब्दता को शब्दों से परे रहकर व्यापक रूप से व्यक्त किया जाता है। मौन की अभिव्यक्ति और अनुभूति सहजता से अनन्त को समझने की सबसे अच्छी प्राकृतिक अवस्था है। मौन प्रकृति है या प्रकृति ही मौन है। जगत में मनुष्यों को जीवन के अंतहीन प्रवाह में हर क्षण सोचने, समझने और अनुभूत करने का अवसर मिलता है। पर मनुष्य शब्दों से परे रहकर निशब्द मौन की व्यापकता को जानते हुए भी शब्दों के सानिध्य से दूर नहीं हो पाता इसलिए मौन प्राकृतिक अवस्था के बजाय मनुष्यों की साधना के रूप में विकसित हुआ प्रतीत होता है। मौन आकाश, प्रकाश और समय की तरह ही जीवन और प्रकृति का अभिन्न अंग है और इस तरह से हमारे जीवन, चिंतन और मनन में रचा बसा है जिसे शब्दों से परे रहकर निशब्द होकर ही जाना समझा और मानसिक रूप से अभिव्यक्त, अनुभूत और आत्मसात भी किया जा सकता है।

अनिल त्रिवेदी अभिभाषक, स्वतंत्र लेखक
त्रिवेदी परिसर 304/2भोलाराम उस्ताद मार्ग ग्राम पिपल्या राव, आगरा मुम्बई राजमार्ग इन्दौर मध्यप्रदेश। Email number aniltrivedi.advocate@gmail.com mobile number 9329847486.
१५.६.२०२४..

बांग्लादेश की कहानीः शेख मुजीब, इन्दिरा गांधी से लेकर शेख हसीना के भारत भागकर आने तक की

इंदिरा गांधी, भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री, का बांग्लादेश के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका रही। 1971 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता के लिए हुए युद्ध के दौरान इंदिरा गांधी की नेतृत्व क्षमता और राजनीतिक निर्णयों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यहां इस प्रक्रिया का संक्षिप्त विवरण दिया जा रहा है:

पृष्ठभूमि

  • पूर्वी पाकिस्तान की स्थिति: 1947 में भारत के विभाजन के बाद, पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) और पश्चिमी पाकिस्तान (वर्तमान पाकिस्तान) एक ही देश के हिस्से थे। पूर्वी पाकिस्तान में भाषा, संस्कृति और राजनीतिक उपेक्षा के कारण असंतोष बढ़ रहा था।
  • भाषा आंदोलन: 1950 के दशक में बांग्ला भाषा को राष्ट्रीय भाषा के रूप में मान्यता न देने के कारण पूर्वी पाकिस्तान में भाषा आंदोलन शुरू हुआ, जिसने स्वतंत्रता की भावना को और बढ़ावा दिया।

मुक्ति वाहिनी

मुक्ति वाहिनी, जिसे स्वतंत्रता सेना भी कहा जाता है, 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला एक गुरिल्ला संगठन था। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) को पश्चिमी पाकिस्तान (अब पाकिस्तान) से स्वतंत्र कराना था।

  • स्थापना और उद्देश्यः मुक्ति वाहिनी की स्थापना 1971 में हुई थी। इसका मुख्य उद्देश्य बांग्लादेश की स्वतंत्रता प्राप्त करना था । इसमें पूर्वी पाकिस्तान के स्थानीय नागरिक, छात्र, और पूर्व सैनिक शामिल थे। भारतीय सेना ने भी इसे सहायता प्रदान की। मुक्ति वाहिनी ने पश्चिमी पाकिस्तानी सेना के खिलाफ अनेक गुरिल्ला हमलों का संचालन किया।इस संघर्ष ने अंततः दिसंबर 1971 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

शेख मुजीबुर्रहमान बांग्लादेश के संस्थापक और प्रथम राष्ट्रपति थे।  शेख हसीना उनकी ही बेटी है। उन्हें बांग्लादेश की स्वतंत्रता का मुख्य नेता माना जाता है। शेख मुजीब का जन्म 17 मार्च 1920 को हुआ था।वे अवामी लीग के नेता थे, जो बांग्लादेश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रही प्रमुख राजनीतिक पार्टी थी।1970 के आम चुनाव में अवामी लीग ने भारी जीत हासिल की।पाकिस्तान सरकार ने सत्ता हस्तांतरण में देरी की, जिसके कारण बांग्लादेश के स्वतंत्रता आंदोलन को बल मिला। मुजीबुर्रहमान ने स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया और 26 मार्च 1971 को बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा की।उन्हें “बंगबंधु” (बंगाल का मित्र) के नाम से भी जाना जाता है।

मुक्ति वाहिनी और शेख मुजीबुर्रहमान दोनों ने मिलकर बांग्लादेश की स्वतंत्रता की नींव रखी। मुक्ति वाहिनी के संघर्ष और मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व ने एक नए राष्ट्र के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

1971 का संघर्ष

  • सैनिक कार्रवाई: मार्च 1971 में पाकिस्तान की सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में बर्बर कार्रवाई शुरू की, जिसे ऑपरेशन सर्चलाइट कहा गया। इस कार्रवाई में हजारों लोग मारे गए और लाखों लोग भारत में शरण लेने के लिए भागे।
  • शरणार्थी संकट: भारत में करीब 10 मिलियन (1 करोड़) बांग्लादेशी शरणार्थी आ गए, जिससे भारत पर भारी दबाव पड़ा।

इंदिरा गांधी की भूमिका

  • अंतरराष्ट्रीय समर्थन: इंदिरा गांधी ने विश्व के प्रमुख देशों का दौरा किया और बांग्लादेश की स्थिति पर उनका समर्थन जुटाया। उन्होंने अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और अन्य देशों से सहायता और समर्थन मांगा।
  • भारत का सैन्य हस्तक्षेप: 3 दिसंबर 1971 को, पाकिस्तान ने भारतीय हवाई अड्डों पर हमला किया। इसके जवाब में, भारत ने औपचारिक रूप से पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध की घोषणा की और भारतीय सेना ने मुक्ति बाहिनी (बांग्लादेश की स्वतंत्रता सेनानी सेना) के साथ मिलकर संघर्ष किया।
  • निर्णायक युद्ध: 16 दिसंबर 1971 को भारतीय सेना और मुक्ति बाहिनी ने ढाका पर कब्जा कर लिया और पाकिस्तान की सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया। इस प्रकार बांग्लादेश का निर्माण हुआ।
  • स्वतंत्र बांग्लादेश: 26 मार्च 1971 को स्वतंत्रता की घोषणा के बाद, 16 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र बन गया।
  • भारत की भूमिका: इंदिरा गांधी और भारत की सेना की निर्णायक भूमिका ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसे भारत के सबसे बड़े सैन्य और राजनीतिक विजय के रूप में देखा जाता है। इंदिरा गांधी की रणनीतिक और राजनयिक क्षमता, साथ ही भारत के सैन्य बल का प्रभावी उपयोग, बांग्लादेश की स्वतंत्रता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कारक था। उनके नेतृत्व ने न केवल एक नया देश बनाने में मदद की बल्कि दक्षिण एशिया की राजनीति को भी नया रूप दिया।

बांग्लादेश में तख्ता पलट की कहानी
बांग्लादेश में तख्ता पलटकी कहानियाँ अक्सर राजनीति, सैन्य हस्तक्षेप और सत्ता संघर्ष के संदर्भ में देखी जाती हैं। बांग्लादेश के इतिहास में कई तख्ता पलट हुए हैं। यहाँ उनमें से कुछ महत्वपूर्ण घटनाएँ दी जा रही हैं:

  1. 1975 का तख्ता पलट:
    • 15 अगस्त 1975 को, बांग्लादेश के संस्थापक राष्ट्रपति शेख मुजीबुर रहमान को उनके परिवार के साथ हत्या कर दी गई। यह तख्ता पलट सेना के एक समूह द्वारा किया गया था। शेख मुजीब की हत्या के बाद, खंदकर मुश्ताक अहमद ने राष्ट्रपति का पद संभाला।
  2. 1975 का दूसरा तख्ता पलट:
    • नवंबर 1975 में, एक और तख्ता पलट हुआ जिसमें सेना के चीफ मेजर जनरल खालिद मुशर्रफ ने सत्ता अपने हाथ में ले ली। हालांकि, कुछ दिनों बाद ही एक और तख्ता पलट में जनरल ज़िया उर रहमान ने सत्ता अपने हाथ में ले ली।
  3. 1982 का तख्ता पलट: 24 मार्च 1982 को सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल हुसैन मोहम्मद एर्शाद ने राष्ट्रपति अब्दुस सत्तार को हटाकर सत्ता अपने हाथ में ले ली। एर्शाद ने मार्शल लॉ घोषित कर दिया और राष्ट्रपति का पद संभाला।शेख हसीना

शेख हसीना वाजिद, जो अब तक बांग्लादेश की प्रधान मंत्री थी भागकर भारत आ गई है।   शेख हसीना का जन्म 28 सितंबर 1947 को हुआ था।वे शेख मुजीबुर रहमान और बेगम फजीलतुन निसा की सबसे बड़ी संतान हैं। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बांग्लादेश में प्राप्त की और बाद में विश्वविद्यालय की पढ़ाई ढाका विश्वविद्यालय से पूरी की शेख हसीना ने 1981 में बांग्लादेश की अवामी लीग (AL) पार्टी की अध्यक्षता संभाली।

1975 बांग्लादेश नरसंहार में शेख हसीना के परिवार और रिश्तेदारों को मिलाकर कुल 18 लोगों की हत्‍या की गई थी. जिसमें उनका 10 साल का एक भाई भी शामिल था।   जिस समय पिता की हत्‍या हुई थी, वह अपने पति से मिलने के लिए जर्मनी गई हुई थी, जो कि एक परमाणु वैज्ञानिक थे.  फिर तत्‍कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्‍हें जानकारी दी कि वह उन्‍हें सुरक्षा और शरण देना चाहती हैं. इसके बाद युगोस्‍लाविया के मार्शल टिटो और इंदिरा गांधी ने उन्‍हें रिसीव किया और वह दिल्‍ली आ गई थी. उस वक्त शेख हसीना और उनके परिवार को पंडारा रोड पर टॉप लेवल सिक्‍योरिटी के साथ एक सीक्रेट घर में रखा गया था. इसके अलावा उनके पति को एक नौकरी भी दी गई थी. हसीना के पति  को  नई दिल्ली में स्थित परमाणु ऊर्जा आयोग में नौकरी मिल गई. वहां उन्होंने सात वर्ष काम किया.

दिल्ली में, हसीना पहले 56 रिंग रोड, लाजपत नगर-3 में रहीं. फिर लुटियंस दिल्ली के पंडारा रोड में एक घर में शिफ्ट हो गईं. परिवार की असली पहचान छिपाने के लिए उन्हें मिस्टर और मिसेज मजूमदार की नई पहचान दी गई. पंडारा रोड का उनका घर तीन कमरों था. घर के आसपास सुरक्षा कर्मियों का पहरा रहता था.

शेख हसीना को किसी को अपनी असली पहचान बताने की मनाही थी. साथ ही दिल्ली में किसी से संपर्क रखने को भी मना किया गया था. भारत में उनके रहने से न केवल उनकी सुरक्षा सुनिश्चित हुई बल्कि उन्हें राजनीतिक संबंध बनाने का मौका भी मिला।

शेख हसीना तीन बार बांग्लादेश की प्रधान मंत्री रह चुकी हैं: इस बार ये उनका चौथा कार्यकाल था और उनको बांग्लादेश छोड़कर भागना पड़ा।  शेख हसीना ने पहली बार 23 जून 1996 को बांग्लादेश की प्रधान मंत्री पद की शपथ ली। यह उनका पहला कार्यकाल था, जो 2001 तक चला । उन्होंने दोबारा 6 जनवरी 2009 को प्रधान मंत्री पद की शपथ ली। इस कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई महत्वपूर्ण नीतिगत बदलाव और विकास कार्य किए।शेख हसीना ने 12 जनवरी 2014 को तीसरी बार प्रधान मंत्री पद संभाला। यह कार्यकाल 2018 में संपन्न हुआ।उन्होंने चौथी बार 7 जनवरी 2019 को पदभार संभाला।

जो आज बांग्लादेश में हो रहा है वही विजय नगर साम्राज्य के साथ हुआ था

जो आज बांगालादेश में हो रहा है वो मुगलों के राज में भारत में कई जगहों पर हुआ लेकिन हिंदुओं की आस्था, संस्कृति और राष्ट्र प्रेम की वजह से मुगल 300 सालों में बी अपने कुत्सित इरादों में कामयाब नहीं हो सके।
विजयनगर साम्राज्य भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। इस साम्राज्य ने कला, संस्कृति, और वास्तुकला के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान दिया। इसके शासकों ने न केवल दक्षिण भारत को एकजुट किया, बल्कि एक समृद्ध और शक्तिशाली साम्राज्य का निर्माण भी किया। हालाँकि तालीकोटा की लड़ाई के बाद यह साम्राज्य कमजोर हो गया, लेकिन इसका सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व आज भी बना हुआ है। हम्पी के खंडहर विजयनगर साम्राज्य की समृद्धि और वैभव के गवाह हैं।

विजयनगर साम्राज्य दक्षिण भारत का एक महत्वपूर्ण और शक्तिशाली साम्राज्य था, जिसका शासन 14वीं से 17वीं सदी तक फैला हुआ था। इस साम्राज्य का इतिहास सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यहाँ विजयनगर साम्राज्य के इतिहास का विस्तार से विवरण दिया जा रहा है:

पृथ्वीराज चौहान की पराजय के बाद भी भारत के  राजाओं ने कोई सबक नहीं सीखा और पृथ्वीराज के बाद ,कन्नौज ,गुजरात और फी दक्षिण भारत के राजा १-१ कर के अलाउद्दीन खिलजी के हाथों पराजित होते रहे /उन मूर्खों ने कभी नहीं सोचा की आपस में लड़ने के बजाय अगर वो १ होकर मुकाबला करें तो अपने सबसे बड़े दुश्मन को बहार कर सकते है /दक्षिण भारत के वारंगल के पतन के बाद वहां के बहुत सारे सेनापति और अन्य सेना भी बलात मुस्लिम बना ली गयी

इनमें से दो सेनापति हरिहर और बुक्का राय  मुस्लिम बन चुके थे। माधवाचार्य विद्यारान्य ने हरिहर और बुक्का राय को वापस हिन्दू धर्म में दीक्षित करके उनको एक नए साम्राज्य के स्थापना की प्रेरणा दी १३१३ इसवी में विजयनगर साम्राज्य की स्थापना हुई। विजयनगर साम्राज्य महाराजा कृष्णदेव  राय के समय अपनी सर्वाधिक उचाईयों पर पहुँच गया १३१३ से लेकर १५६५ ईसवी तक दक्षिण भारत के तमाम मुस्लिम सुल्तानों ने कई बार विजयनगर पर हमला किया परन्तु हर बार उन्हें हार कर भागना पढ़ा हालत ये हो गए दक्षिण में इस्लामिक राज्य के पैर उखाड़ने लगे थे।

तालीकोटा का युद्ध १५६५ में विजयनगर और ५ सुल्तानों की संयुक्त सेना का युद्ध था विजयनगर की ताकत से दक्षिण का इस्लामी राज्य को उखड़ते देख जिहाद का नारा देकर एक बड़ी सेना को युद्ध के लिए तैयार किया गया ।  विजयनगर की सेना  70 वर्षीय  रामराया के हाथ में थी रामराया ने  दो मुसलमान बच्चों को गोद लिया था जिनको उन्होंने  ने केवल अपने पुत्र की तरह पाला अपितु उन्हें सेना की बड़ी टुकड़ी का सेनापति भी बनाया जिसमे अधिकांश सैनिक परिवर्तित मुसलमान थे .

तालीकोटा के युद्ध की शुरुवात में विजयनगर की सेनाओं के भीषण प्रहार से जब आदिलशाही और संयुक्त सुल्तानों की सेना बिखर कर भागने लगी तभी रामराया के गोद लिए मुस्लिम सेनापति पुत्रों ने पीछे से से अपने उस बाप पर हमला किया जिसने उन्हें  पाला पोसा था।  ,हमले में रामराया की मृत्यु होते ही विजय के कगार पर कड़ी विजयनगर साम्रज्य की सेना में भगदड़ मच गयी और संयुक्त सुल्तानों की सेना को जीत हासिल हुई। इसके बाद इस्लामिक सेना ने विजयनगर की राजधानी हम्पी को आग लगा दी और आम नागरिकों की हत्या की औरतों को लूट लिया गया . इस युद्ध के बाद भी बच खुचे विजयनगर के सीनों और इस्लामिक आर्मी के बीच युद्ध चलता रहा जो की तिरुमाला मंदिर पर हमले में वेंकट २ के द्वारा 50 हजार इस्लामिक आर्मी और उनके उजबेक कमान्डर की मौत पर जा कर बंद हुआ ।

स्थापना और प्रारंभिक इतिहास

1. स्थापना (1336 ईस्वी)

  • संस्थापक: हरिहर और बुक्का (हरिहर I और बुक्का राय I), जो संगम वंश से थे।
  • पृष्ठभूमि: हरिहर और बुक्का पूर्व में काकतीय वंश और होयसल साम्राज्य के सेनापति थे। मुस्लिम आक्रमणों से परेशान होकर, उन्होंने दक्षिण भारत में एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की।
  • स्थान: विजयनगर (वर्तमान में हम्पी, कर्नाटक) को राजधानी बनाया।

साम्राज्य का विस्तार

2. प्रमुख शासक

  • हरिहर I (1336-1356)
    • कार्य: साम्राज्य की नींव को मजबूत किया और आसपास के क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की।
  • बुक्का राय I (1356-1377)
    • कार्य: मदुरै के सुल्तानate को हराया और तमिलनाडु के क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की।
  • कृष्णदेव राय (1509-1529)
    • कार्य: विजयनगर साम्राज्य के सबसे महान शासक माने जाते हैं। उनके शासनकाल में साम्राज्य अपने शिखर पर पहुँचा।
    • विजय: ओडिशा, कोंकण, और महाराष्ट्र के कई क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की। बंगाल, बीजापुर और गोलकुंडा के सुल्तानों को पराजित किया।
    • संस्कृति और कला: कृष्णदेव राय के शासनकाल में साहित्य, कला, और वास्तुकला का अभूतपूर्व विकास हुआ।

सांस्कृतिक और आर्थिक विकास

3. संस्कृति और कला

  • वास्तुकला: विजयनगर साम्राज्य की वास्तुकला में द्रविड़ शैली का प्रमुख स्थान था। हम्पी के मंदिर, विशेषकर विट्ठल मंदिर और हज़ारा राम मंदिर, इसकी उत्कृष्टता के उदाहरण हैं।
  • साहित्य: तेलुगु, कन्नड़, तमिल, और संस्कृत साहित्य का विकास हुआ। कृष्णदेव राय स्वयं एक महान कवि और साहित्यकार थे।

4. आर्थिक विकास

  • व्यापार: विजयनगर साम्राज्य का आर्थिक आधार व्यापार और कृषि पर आधारित था। विदेशी व्यापार के माध्यम से इसने अपने खजाने को समृद्ध किया।
  • मुद्रा प्रणाली: सुव्यवस्थित मुद्रा प्रणाली थी, जिसमें सोने, चाँदी और तांबे के सिक्कों का प्रचलन था।

5. पतन के कारण

  • तालीकोटा की लड़ाई (1565)
    • घटना: विजयनगर साम्राज्य और दक्कन के सुल्तानों के बीच तालीकोटा की लड़ाई लड़ी गई। इसमें विजयनगर की हार हुई।
    • परिणाम: साम्राज्य की राजधानी विजयनगर को विध्वंस कर दिया गया, जिससे साम्राज्य कमजोर हो गया।

6. अंतिम शासक और साम्राज्य का पतन

  • तिरुमल राय (1565-1572)
    • कार्य: तालीकोटा की लड़ाई के बाद उन्होंने तिरुपति में शरण ली और आंध्र प्रदेश के पेनुकोन्डा को नई राजधानी बनाया।
  • आखिरी शासक: अंतिम दिनों में विजयनगर साम्राज्य कई छोटे-छोटे हिस्सों में बंट गया और धीरे-धीरे इसका प्रभाव समाप्त हो गया।

तस्लीमा नसरीन ने शेख हसीना की पोल खोली

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के तख्तापलट पर बांगालादेश की जानी-मानी लेखिका तसलीमा नसरीन ने खूब खरी खरी सुनाई है।  तस्लीमा नसरीन 1994 से निर्वासन झेल रहीं नसरीन ने कटाक्ष करते हुए कहा कि 1999 में जिन कट्टरपंथियों को खुश करने के लिए हसीना ने उन्हें देश से निकाल फेंका था, आज वह उन्हीं की शिकार हो गईं. उन्होंने माइक्रो ब्लॉगिंग साइट एक्स पर लिखा कि 1999 में मैं आखिरी सांसें ले रही अपनी मां को देखने के लिए बांग्लादेश आई थीं, लेकिन इसके बाद इस्लामी कट्टरपंथियों को खुश करने के लिए मुझे कभी भी देश में दाखिल नहीं होने दिया गया.

तसलीमा नसरीन ने कहा कि शेख हसीना को इस्तीफा देकर देश छोड़ना पड़ा. अपनी स्थिति के लिए वे खुद जिम्मेदार हैं. उन्होंने कट्टरपंथियों को पनपने दिया. उन्होंने अपने लोगों को भ्रष्टाचार में शामिल होने दिया. अब बांग्लादेश को पाकिस्तान जैसा नहीं बनना चाहिए. सेना को शासन नहीं करना चाहिए. राजनीतिक दलों को लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता लानी चाहिए.”

तसलीमा नसरीन ने पोस्ट में कहा, इस्लामी कट्टरपंथियों को खुश करने के लिए हसीना ने मुझे 1999 में मेरे देश से बाहर निकाल दिया, जब मैं अपनी मां को उनके आखिरी वक्त पर देखने के लिए बांग्लादेश गई थी और मुझे फिर कभी देश में नहीं आने दिया. वही कट्टरपंथी आंदोलन में शामिल थे, जिन्होंने आज हसीना को देश छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया.” शेख हसीना कल एक सैन्य विमान से भारत आ गई और जहां से वो संभवतः शरण लेने के लिए लंदन जाएंगी. लेखिका ने उन पर इस्लामी कट्टरपंथियों और भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों को पनपने देने का आरोप लगाया.

तसलीमा नसरीन को 1994 में अपनी पुस्तक “लज्जा” को लेकर कट्टरपंथी संगठनों द्वारा मौत की धमकियों के चलते बांग्लादेश छोड़ना पड़ा था. 1993 में लिखी गई इस पुस्तक पर बांग्लादेश में प्रतिबंध लगा दिया गया था, लेकिन यह अन्य जगहों पर बेस्टसेलर बन गई. हसीना की कट्टर प्रतिद्वंद्वी खालिदा जिया उस समय प्रधानमंत्री थीं, लेखिका तब से निर्वासन की जिंदगी बिता रही हैं.

जिस मंदिर से भूखे बांगालादेशियों को खाना मिलता था उसे ही जला दिया

यह कौम आपके एहसानों का बदला किस तरह से चुकाती है वह देखिए…
जब नया-नया बांग्लादेश बना था तब वहां भयंकर भूखमरी थी लोग भूख से मर रहे थे उस वक्त इस्कॉन संस्था के संस्थापक स्वामी प्रभुपाद ने अपने अनुयाई बंगाली मूल के पंडित रविशंकर और मशहूर बैंड बीटल्स के संस्थापक जॉर्ज हैरिसन से अपील किया  कि हमें बांग्लादेश के भूखे लोगों को मदद करनी चाहिए उसके बाद न्यूयॉर्क के  मैडिसन स्क्वायर पर जॉर्ज हैरिसन और रविशंकर ने सेव बांग्लादेश लाइव शो लाइव कंसर्ट का आयोजन किया पहले शो में ढाई लाख डालर इकट्ठा हुए जो इस्कॉन संस्था ने बांग्लादेश के भूखे लोगों को अनाज उपलब्ध कराएं

उसके बाद 3 महीने के अंदर इस्कॉन संस्था ने जॉर्ज हैरिसन और पंडित रविशंकर के सहयोग से पूरी दुनिया से 25 लाख डॉलर  बांग्लादेश के भूखे नँगे लोगों के लिए इकट्ठा किए

1971 में यह रकम बहुत बड़ी होती थी

उसके बाद ढाका के इस्कॉन मंदिर में ही कई महीनो तक एक लाख से ज्यादा लोगों को खाना खिलाया गया इतना ही नहीं  इस्कॉन के लोग गाड़ियों में खाना रखकर पूरे बांग्लादेश में भूखे लोगों को खाना देते थे

और आज यह एहसान फरामोश कौम  इस्कॉन के उस एहसान को भूल गई जिसने इन्हें भूखे नंगे को खाना और कपड़ा दिया

विशाल इस्कॉन मंदिर की एक-एक ईंट इन्होंने जला डाली

जबकि इसी मंदिर से बांग्लादेश के भूखे नंगे लोगों का पेट 2 साल तक भरा गया था

कैसे हुआ शेख हसीना का तख्तापलट?

बांग्लादेश में तख्तापलट को लेकर भारत में भी दो पक्ष आमने सामने है। जो हुआ वह सही है या गलत इसका निर्णय करने से पहले हाल के वर्षो में हुए कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं को जानना जरूरी है।
पिछले दो दशकों में तरक्की की मार्ग पर बढ़ रहा बांग्लादेश पाकिस्तान के मुकाबले ग्रोथ और हैप्पीनेस दोनों हीं पैमाने पर बेहतर था। लेकिन शेख हसीना के  तख्तापलट के बाद अब रेडिकलिज्म, अस्थिरता और अनिश्चितता के गर्त में ठीक वैसे हीं समा गया है जैसे 1975 में फॉदर ऑफ नेशन मुजीबुर्रहमान की हत्या के बाद 1991 तक रहा था। आज बांग्लादेश का भविष्य वैसे हीं दिखाई दे रहा है जैसे पाकिस्तान का कई बरसों से है।
सवाल है की क्या यह हिसंक विरोध शेख हसीना की तानाशाही के कारण हुआ?
आरक्षण विवाद के कारण हुआ?
या फिर घरेलू राजनीति में BNP और जमात के गठजोड़ से पैदा हुए रेडिकल इस्लामिक मूवमेंट के कारण हुआ?
इन सवालों से इतर चीन , पाकिस्तान और अमेरिका की भूमिका पर भी तमाम सवाल हैं जिसपर चर्चा जरूरी है।
BNP, ISI, जमात, चीन और अमेरिका की भूमिका जानना जरूरी है।
तो सबसे पहले आरक्षण से उठे विवाद को समझते है। शेख हसीना ने बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में हिस्सा लेने वाले परिवार जनो को 30 फीसदी आरक्षण का प्रस्ताव किया था जिसे लेकर विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ। बढ़ते विरोध प्रदर्शन और हिंसा को देखते हुए आरक्षण के प्रस्ताव पर रोक लगा दी गई फिर भी हिंसा की आग नहीं थमी। यानी हिंसा की आग भड़काने वाले तत्वों के लिए यह सिर्फ एक मुद्दा भर था। तख्ता पलट और बांग्लादेश को गृह युद्ध की आग में झोंकने वालों ने आरक्षण के मुद्दे का भरपूर इस्तेमाल किया लेकिन  फैसले से सरकार के कदम खींचने के बाद भी हिंसा और षडयंत्र की आग में घी डालने का काम जारी रहा। मकसद था हसीना के खिलाफ जन विद्रोह को आगे बढ़ाना।
अगर आप बांग्लादेश से जुड़े रिपोर्ट्स को खंगाले तो आपको खालिदा जिया की पार्टी BNP और उससे जुड़े जमात ए इस्लामी के यूथ विंग का चेहरा विभिन्न रिपोर्ट्स में साफ साफ दिखाई देगा जो शेख हसीना को उखाड़ फेंकने के लिए रेडिकलिज़म का भरपूर इस्तेमाल कर रहे थे। खालिदा जिया का बेटा तारीख रहमान जो मनी लॉन्ड्रिंग में दोषी पाए जाने के बाद यूके में रह रहा है उसने कई बैठके सऊदी में ISI के साथ की और इस पूरे घटनाक्रम के दौरान आप रहमान के हैंडल और पाकिस्तान आर्मी से संचालित होने वाले हैंडल से परोसे जा रहे सोशल मीडिया कंटेंट को देखे तो इसमें भरपूर समानता दिखाई देती है, मकसद ISI और BNP का एक ही था, हसीना का तख्ता पलटों भले हीं देश में आग लग जाए।
अब BNP, जमात और ISI से निकलकर सिक्के के दूसरे पहलू की तरफ आते हैं जिसमे बड़ी भूमिका सुपर पावर अमेरिका की दिखाई देती है। अमेरिका ने बांग्लादेश में एयरबेस के लिए जमीन मांगी लेकिन शेख हसीना ने इनकार कर दिया क्योंकि यह फैसला चीन को नाराज करता और अमेरिका की एंट्री से बांग्लादेश की हालत पाकिस्तान की तरह हो जाती । इससे नाराज अमेरिका में शेख हसीना को चुनाव के दौरान सबक सिखाने की ठानी। इसपर बिना नाम लिए हसीना ने चुनाव के दौरान व्हाइट मैन को लेकर जिक्र किया और बात पब्लिक डोमेन में आई। अमेरिकी और पाकिस्तानी प्रयासों के बावजूद हसीना चुनाव निकाल ले गईं और उनपर अलोकतांत्रिक तरीके से चुनाव कराने के आरोप भी लगे क्योंकि विपक्ष के एक बड़े धड़े को सलाखों के पीछे कर दिया गया था।
लेकिन मसला चुनाव पश्चात् भी नहीं थमा।अमेरिका बांग्लादेश के खिलाफ मुखर बना रहा। यह वहीं अमेरिका है जिसने पाकिस्तान में इमरान खान की चुनी हुई सरकार को गिराया, आर्मी की मदद से शाहबाज शरीफ की सरकार बनवाई और घोर अलोकतांत्रिक तरीके से जन समर्थन के बावजूद इमारन को सलाखों के पीछे रखकर पाकिस्तान में चुनाव कराया गया और फिर से प्रो अमेरिका शाहबाज शरीफ की सरकार बनाकर अपना उल्लू सीधा कर रहा है। चुनाव और लोकतंत्र के सारे पैमाने पाकिस्तान में अमेरिका ने सेना की मदद से खंड खंड कर दिया लेकिन उसे पाकिस्तान में लोकतंत्र दिखाई देता है और बांग्लादेश में अपनी दाल नहीं गली तो बांग्लादेश को अलोकतांत्रिक करार देते हुए शेख हसीना को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
अब बात चीन की…
शेख हसीना ने अपने दो दशक के कार्यकाल में भारत और चीन के बीच बेहतर बैलेंस बनाकर रखा। लेकिन चीन को बांग्लादेश की जमीन पर BRI चाहिए, भारत के खिलाफ सैन्य जमावड़े में लिए बड़ा बसे चाहिए, नेवल एसेट के लिए और बड़े करार चाहिए। हसीना इसके लिए राजी नहीं थी, परिणाम ये हुआ की पिछले महीने दिल्ली दौरे के बाद जब वह बीजिंग गई तो जिनपिंग से तल्खियों के बीच उन्हें अपना दौरा कट शॉर्ट कर वापस लौटना पड़ा। यानी चीन को भी नाराज कर बैठी ।
इस तरह हसीना एक तरफ घेरलू मोर्चे पर, दूसरी तरफ इस्लामिक रेडिकलिज़म के मोर्चे पर तो तीसरी तरफ विदेशी सुपर पावर के हितों को न साधने के क्रम में राजनीतिक रूप से शहीद हो चुकी है।
वह हसीना जो पिछले दो दशक में बांग्लादेश में अपनी नीतियों के जरिए तरक्की लेकर आई। पाकिस्तान की तुलना में रिसोर्स के घोर अभाव के बावजूद अपने आवाम के लिए ह्यूमन index के स्केल पर लगातार बढ़त बना रहीं थी। यूएन के रिपोर्ट के मुताबिक एक बड़ी आबादी को गरीबी और भुखमरी से आजाद कर चुकी थी, उसी मुल्क से जान बचाकर भागने को मजबूर हुई।
शेख हसीना ने दूसरी बार भारत में शरण लिया है। इससे पहले पिता मुजीबुर्रहमान की हत्या के बाद 24 Aug 1975 को एयर इंडिया की फ्लाइट से  परिवार सहित दिल्ली के पालम हवाई अड्डे उतरी थी. उन्हें तब एक JS कैबिनेट ने रिसीव किया था और पहले उन्हें रॉ के 56, रिंग रोड स्थित सेफ हाउज ले जाया गया था. आज वह दिल्ली के समीप हिंडन हवाई अड्डे पर उतरी हैं और जीवन के शेष लम्हों को बिताने के लिए सकुशल स्थान की तलाश में जुटी है…
साभार- https://twitter.com/madhurendra13 से 

भारत की आर्थिक प्रगति को रोकने हेतु अशांति फैलाने के हो रहे हैं प्रयास

भारत की लगातार तेज हो रही आर्थिक प्रगति पर विश्व के कुछ देश अब ईर्ष्या करने लगे हैं एवं उन्हें यह आभास हो रहा है कि आगे आने वाले समय में इससे उनके अपने आर्थिक हितों पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। इस सूची में सबसे ऊपर चीन का नाम उभर कर सामने आ रहा है। और फिर, चीन की अपनी आर्थिक प्रगति धीमी भी होती जा रही है। दूसरे, विश्व को भी आज यह आभास होने लगा है कि विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन के मामले में केवल चीन पर निर्भर रहना बहुत जोखिम भरा कार्य है। इसका अनुभव विशेष रूप से विकसित देशों ने कोरोना महामारी के बाद से वितरण चैन में आई भारी परेशानी से किया है, जिसके चलते इन देशों में मुद्रा स्फीति की समस्या आज भी पूरे तौर पर नियंत्रण में नहीं आ पाई है। साथ ही, चीन की विस्तारवादी नीतियों के चलते उसके अपने किसी भी पड़ौसी देश से (पाकिस्तान को छोड़कर) अच्छे सम्बंध नहीं हैं।

अतः कई देश अब यह सोचने पर मजबूर हुए हैं कि चीन+1 की नीति का अनुपालन ही उनके हित में होगा। अर्थात, यदि किसी उद्योगपति ने चीन में अपनी एक विनिर्माण इकाई स्थापित की है तो आवश्यकता पड़ने पर उसके द्वारा अब दूसरी विनिर्माण इकाई चीन में स्थापित न करते हुए इसे अब किसी अन्य देश में स्थापित किया जाना चाहिए। यह दूसरा देश भारत भी हो सकता क्योंकि भारत अब न केवल “ईज आफ डूइंग बिजनेस” के क्षेत्र में अतुलनीय सुधार करता हुआ दिखाई दे रहा है बल्कि भारत में बुनियादी ढांचा के विस्तार में भी अतुलनीय प्रगति दृष्टिगोचर है।

केंद्र सरकार द्वारा आर्थिक क्षेत्र में लागू की गई कई नीतियों के चलते भारत आज विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था तो बन ही गया है और अब यह तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर तेजी से आगे बढ़ रहा है। अर्थ के कई क्षेत्रों में तो भारत विश्व में प्रथम पायदान पर आ भी चुका है। इससे अब चीन के साथ अमेरिका को भी आने वाले समय में वैश्विक स्तर पर अपने प्रभाव में कमी आने की चिंता सताने लगी है। अतः विश्व के कई देशों में अब भारत की आर्थिक प्रगति को लेकर ईर्ष्या की भावना विकसित होती दिखाई दे रही है। इस ईर्ष्या की भावना के कारण वे भारत के लिए कई प्रकार की समस्याएं खड़ी करने का प्रयास करते दिखाई देने लगे हैं। यह समस्याएं केवल आर्थिक क्षेत्र में खड़ी नहीं की जा रही हैं बल्कि सामाजिक, राजनैतिक एवं आध्यात्मिक आदि क्षेत्रों में भी खड़ी करने के प्रयास हो रहे हैं।

सबसे पहिले तो कुछ देश प्रयास कर रहे हैं कि भारत में किस प्रकार सामाजिक अशांति फैलायी जाए। इसके लिए भारत की कुटुंब प्रणाली को तोड़ने के प्रयास किए जा रहे हैं। देश में विभिन्न टी वी चैनल पर इस प्रकार के सीरियल दिखाए जा रहे हैं जिससे परिवार के विभिन्न सदस्यों के बीच आपस में छोटी छोटी बातों में लड़ने को बढ़ावा मिल रहा है। इन सीरियल में सास को बहू से, ननद को देवरानी से, छोटी बहिन को बड़ी बहिन से, एक पड़ौसी को दूसरे पड़ौसी से, संघर्ष करते हुए दिखाया जा रहा है।

इन सीरियल के माध्यम से भारत में भी पूंजीवाद की तर्ज पर व्यक्तिवाद को हावी होते हुए दिखाया जा रहा है। जबकि भारतीय हिंदू सनातन संस्कृति हमें संयुक्त परिवार में आपस में मिलजुल कर रहना सिखाती है, त्याग एवं तपस्या की भावना जागृत करती है एवं परिवार के छोटे सदस्यों द्वारा अपने बड़े सदस्यों का आदर करना सिखाती है। इसके ठीक विपरीत पश्चिमी सभ्यता के अंतर्गत संयुक्त परिवार दिखाई ही नहीं देते हैं वे तो व्यक्तिगत स्तर पर केवल अपने आर्थिक हित साधते हुए नजर आते है। पश्चिमी देशों के इन प्रयासों से आज कुछ हद्द तक भारतीय समाज भी पश्चिमी सभ्यता की ओर आकर्षित होता हुआ दिखाई देने लगा है।

आज विकसित देशों के परिवारों में बेटे के 18 वर्ष की आयु प्राप्त करने के पश्चात वह परिवार से अलग होकर अपना परिवार बसा लेता है। अपने बूढ़े माता पिता की देखभाल भी नहीं कर पाता है। इसके चलते इन देशों में सरकारों को अपने प्रौढ़ वर्ग के नागरिकों के देखरेख करनी होती है और इनके लिए सरकार के स्तर पर कई योजनाएं चलानी पड़ती है। आज इन देशों में प्रौढ़ नागरिकों की संख्या के लगातार बढ़ते जाने से सरकार के बजट पर अत्यधिक विपरीत प्रभाव पड़ता हुआ दिखाई दे रहा है। जबकि भारत में संयुक्त परिवार की प्रथा के कारण ही इस प्रकार की कोई समस्या दिखाई नहीं दे रही है। अतः पश्चिमी देशों द्वारा भारत की कुटुंब प्रणाली को अपनाए जाने के स्थान पर इसे भारत में भी नष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है।

दूसरे, कई देश अब भारत में सामाजिक समरसता के तानेबाने को भी विपरीत रूप से प्रभावित करने के प्रयास करते हुए दिखाई दे रहे हैं। विशेष रूप से हिंदू समाज में विभिन्न मत, पंथ मानने वाले नागरिकों को आपस में लड़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं ताकि इन्हें आपस में बांटा जा सके और भारत में अशांति फैलायी जा सके तथा जिससे देश की आर्थिक प्रगति विपरीत रूप से प्रभावित हो सके। भारत के इतिहास पर नजर डालने पर ध्यान में आता है कि भारत में जब जब सामाजिक समरसता का अभाव दिखाई दिया है तब तब विदेशी आक्रांताओं एवं अंग्रेजों को भारत में अपना शासन स्थापित करने में आसानी हुई है। उन्होंने “बांटो एवं राज करो” की नीति के अनुपालन से ही भारत के कुछ भू भाग पर अपनी सत्ता स्थापित की थी। अब एक बार पुनः इसी आजमाए हुए नुस्खे को पुनः आजमाने का प्रयास किया जा रहा है। चाहे वह जातिगत जनगणना करने के नाम पर हो अथवा समाज के विभिन्न वर्गों को दी जाने वाली सुविधाओं को लेकर किये जाने वाले आंदोलनों की बात हो।

तीसरे, कई देशों द्वारा भारतीय उपमहाद्वीप के अन्य देशों में भी अस्थिरता फैलाने के प्रयास किए जा रहे हैं। सबसे ताजा उदाहरण बांग्लादेश का लिया जा सकता है जहां हाल ही में सत्ता परिवर्तन हुआ है। अब बांग्लादेश में अतिवादी दलों के हाथों में सत्ता की कमान जाती हुई दिखाई दे रही है इससे अब बांग्लादेश में भी  आर्थिक प्रगति विपरीत रूप से प्रभावित होगी। मालदीव में पूर्व में ही भारत विरोध के नाम पर अतिवादी दलों ने सत्ता हथिया ली है, जो वहां भारत “गो बैक” के नारे लगाते हुए दिखाई दे रहे हैं एवं चीन के साथ अपने राजनैतिक रिश्ते स्थापित कर रहे हैं। नेपाल में भी हाल ही में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद वे चीन के करीब जाते हुए दिखाई दे रहे हैं। श्रीलंका पूर्व में ही राजनैतिक अस्थिरता के दौर से गुजर चुका है। पाकिस्तान तो घोषित रूप से अपने आप को भारत का दुश्मन देश कहलाता है। अफगानिस्तान में भी तालिबान की सत्ता स्थापित हो चुकी है, हालांकि अफगानिस्तान ने भारत की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया है।

कुल मिलाकर भारत की आर्थिक प्रगति को रोकने हेतु कुछ देशों द्वारा भरपूर प्रयास किए जा रहे हैं। भारत में अशांति फैलाकर ये देश प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को भारत में आने से रोकने के प्रयास कर रहे हैं ताकि विदेशी कम्पनियां भारत में विनिर्माण इकाईयों को स्थापित करने के प्रति हत्तोत्साहित हों और देश में बेरोजगारी की समस्या विकराल रूप धारण कर ले। इस प्रकार के माहौल में आज भारत के आम नागरिकों में देश प्रेम का भाव जगाने की सबसे अधिक आवश्यकता है एवं विभिन्न समाजों एवं मत पंथ को मानने वाले नागरिकों के बीच आपस में भाई चारा स्थापित करने की भी महती आवश्यकता है। अन्यथा, एक बार पुनः विदेशी ताकतें भारत की आम जनता को आपस में लड़ा कर इस देश पर अपना शासन स्थापित करने में सफल हो सकती हैं। परंतु, हर्ष का विषय है कि भारत में कई सांस्कृतिक संगठन अब कुछ देशों की इन कुटिल चालों से भारत की आम जनता को अवगत कराने के प्रयास करने लगे हैं एवं समाज की सज्जन शक्ति भी अब इन बातों को जनता के बीच ले जाकर उन्हें इस प्रकार के कुत्सित प्रयासों के परिणामों से अवगत कराने लगी हैं और कुछ हद्द तक इसका आभास अब आम जनता को होने भी लगा है।

प्रहलाद सबनानी

सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,

भारतीय स्टेट बैंक

के-8, चेतकपुरी कालोनी,

झांसी रोड, लश्कर,

ग्वालियर – 474 009

मोबाइल क्रमांक – 9987949940

ई-मेल – prahlad.sabnani@gmail.com

बाल मन को छूने वाली कविताएँ

हाथ से हाथ मिलता चल
आगे कदम बढ़ाता चल
सूरज चलता चंदा चलाता
तू भी आगे बढ़ता चल
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई
सब भारतवासी हैं भाई भाई
” आगे कदम बढ़ाता चल ” शीर्षक  कविता है  ” कोई गीत सुनाओ ना ” बाल काव्य संग्रह कृति से जिसे कोटा की बाल रचनाकार श्यामा शर्मा ने रचा है। कविता बच्चों को जीवन में सदा आगे बढ़ने और  सामाजिक सद्भाव का प्रभावी संदेश देती नजर आती है और नैतिक ज्ञान का पाठ पढ़ाती है। आगे कविता में वे बताती है बच्चों मिल कर चलोगे तो सारा आकाश तुम्हारा है……………..
सब भारतवासी हैं भाई भाई
अब आकाश हमारा होगा
सारा नीर हमारा होगा
संकट में हम हाथ मिलाते
आगे हम सब बढ़ते जाते
अब विकास की गंगा लाना
जन जन को है ये बतलाना।।
कविताओं से बच्चों का मनोरंजन करते हुए उन्हें खेल – खेल में शिक्षप्रद ज्ञान प्रदान करना ही उनके लेखन का लक्ष्य भी प्रतीत होता है।  संग्रह की चालीस बाल कविता बच्चों को कई जीवनोपयोगी संदेशों से जोड़ती हैं वहीं “भारत देश” कविता में वे देश की संस्कृति की बात भी समझती नजर आती हैं………….
भारत देश हमारा देश
सब देशों से न्यारा देश
तरह तरह के रंग यहाँ हैं
तरह तरह के ढंग यहाँ हैं
विविध रंग हैं विविध बोलियाँ
पोशाकों में दिखे टोलियां
अलग अलग है नृत्य यहाँ के
देश समर्पित भक्त यहीं के
गंगा यमुना नदी यहां हैं
पर्वत हिमगिरि विंध्य यहां है
इस माटी को नमन करे सब
भेद भाव को कम कर दें सब।।
” रंगला राजस्थान ” रचना बच्चों को राजस्थान से परिचय कराती नजर आती पर  है………
माही डेम बांसवाड़ा में
कोटा में चंबल का पानी
आबू में हैं पर्वत ऊंचे
जयपुर में सजती है राजधानी
जैसलमेर सोने सा किला
बीकानेर का है रसगुल्ला
रणत भंवर के श्री गणेशा हैं
उदयपुर की झील पिछौला।
देश के महापुरुष राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से बच्चों को यूं  परिचय कराती हैं ……..
गांधी जी के नेक विचार
सत्य अहिंसा का व्यवहार
कभी न बोले कड़वे बोल
मीठी मीठी मिश्री घोल
गांधी जी सबको भाये
भारत में आजादी लाये।
देशभक्ति की भावना जगती ” मैं सीमा पर जाऊंगी ” जोशीली रचना देखिए……..
मां मुझको बंदूक तो ला दो
मैं सीमा पर जाऊंगी
सीमा पर जा कर के माता
दुश्मन मार गिराऊंगी
हंसते हंसते देश पर मरना
मैया बड़ा काम होता है
लौट तिरंगे में जो आता
उसका बड़ा नाम होता है
जो सीमा पर बलिदान हुए हैं
माता उनको नमन मेरा
उनके त्याह बलिदान भाव से
देश देखता नया सवेरा।।
कविता संग्रह की इन कुछ बांगियों के साथ बच्चो को जैव विविधता का महत्व बताती ” जैव विविधता दिवस”, बढ़ते पर्यावरण संतुलन के लिए पेड़ लगाने को प्रेरित करती ” पृथ्वी दिवस “, बूंद बूंद से करों सिंचाई  जल बचत का महत्व समझती ” जल संरक्षण”, गुरु और शिष्य का संबंध स्थापित करती ” शिक्षक दिवस”, ऐसा सुंदर देश बनाए स्वच्छता का पाठ दिखाती ” स्वच्छता अभियान “, बच्ची लड़की हो या महिला, मांग रही अपना हक पहला से नारी का महत्व समझती ” नारी दिवस” शिक्षा का महत्व बताती ” अक्षरज्ञान”, विज्ञान से जोड़ती ” कंप्यूटर दादा “, स्वास्थ्य का महत्व बताती ” योगासन” जैसी शिक्षाप्रद कविताएं संग्रह के मोती हैं। बाल काव्य के अन्य मोतियों में रंगीला राजस्थान, बंदर, बारिश,ओजोन परत, काले बादल, बस्ता,रेल, खरगोश, सूरज, नानी का घर, मोर,तितली आदि कविताएं हैं।
चालीस बाल कविताओं के मोतियों को गूंथ कर बनी मणिमाला की यह कृति बच्चों के लिए किसी सुंदर उपहार से कम नहीं है। नोएडा के दिविक रमेश, अल्मोड़ा के उदय किरोला और कोटा के भगवती प्रसाद गौतम ने कृति और कृतिकार पर अपने अभिमत में इसे बच्चों के लिए अभिन्दनीय पहल बताते हुए मनोरंजन के साथ उपयोगी बताया है। भूमिका में झालावाड़ के पूर्व प्राचार्य प्रो.कृष्ण बिहारी भारतीय ने लिखा  ” विषय वैविध्य की दृष्टि से इतनी सुंदर बुक अब तक देखने को नहीं मिली। काव्य की सुंदर रचनाओं को बार – बार पढ़ने को मन करेगा।” अपनी बात में लेखिका अपने सृजन की कथा बताते हुए बाल साहित्य में आगे आने का श्रेय अपने पति जितेंद्र निर्मोही को देती है और कृति  की विषय वस्तु पर रोशनी डालती हैं। रंगबिरंगा कवर पेज अत्यंत आकर्षक है।  हर रचना के साथ उससे संबंधित सुंदर रेखाचित्र और छायाचित्र कृति को मोहक बनाते हैं।
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कोई गीत सुनाओ ना ( बालकव्य संग्रह)
लेखक : श्यामा शर्मा
समीक्षक :
डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
( लेखक , पत्रकार और समीक्षक )