Friday, November 29, 2024
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रणदीप हुड्डा ने कहा, “मैंने गुमनाम नायक वीर सावरकर की असली गाथा बताने का बीड़ा उठाया”

इफ्फी 55 में ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ के कलाकारों और क्रू ने मीडिया से बातचीत की

स्वातंत्र्य वीर सावरकर की जीवनी पर आधारित फिल्म बनाने वाली टीम ने 55वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) में मीडिया से बातचीत की । फिल्म को भारतीय पैनोरमा खंड की शुरुआती फीचर के रूप में प्रदर्शित किया गया। इस कार्यक्रम में फिल्म की रचनात्मक यात्रा और इसके ऐतिहासिक महत्व पर विचार करने के लिए एक मंच प्रदान किया गया।

विनायक दामोदर सावरकर की मुख्य भूमिका निभाने वाले और फिल्म के निर्देशक रणदीप हुड्डा ने फिल्म निर्माण की चुनौतियों की तुलना भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान वीर सावरकर द्वारा सामना किए गए संघर्षों से की। मीडिया से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें गुमनाम नायक वीर सावरकर की वास्तविक गाथा को सार्वजनिक चर्चा में लाने का बीड़ा उठाना पड़ा। उन्होंने यह भी कहा, “सावरकर हमेशा भारत को सैन्य रूप से सशक्त देखना चाहते थे। आज, विश्व में हमारे प्रभाव में काफी सुधार हुआ है। यह फिल्म सशस्त्र संघर्ष के एक और पहलू को उजागर करती है, जिसमें दिखाया गया है कि कैसे इसने क्रांतिकारियों को स्वतंत्रता के लिए हथियार उठाने के लिए प्रेरित किया”।

फिल्म में भीकाजी कामा की भूमिका निभा रहीं अभिनेत्री अंजलि हुड्डा ने बताया कि फिल्म में उनकी भूमिका ने सावरकर के निजी जीवन के बारे में उनकी समझ को और बढ़ाया। उन्होंने कहा, “यह फिल्म मेरे लिए आंख खोलने वाली थी। मुझे उम्मीद है कि भविष्य में हमारे भूले-बिसरे नायकों पर ऐसी और फिल्में बनाई जाएंगी।”

प्रेस कॉन्फ्रेंस में जय पटेल, मृणाल दत्त और अमित सियाल भी शामिल हुए। उन्होंने अपने अनुभव साझा किए और भारतीय सिनेमा में ऐसी फिल्मों के महत्व पर प्रकाश डाला।

यह फिल्म भारत की स्वतंत्रता के कई अनकहे नायकों में से एक वीर सावरकर की गुमनाम गाथा को सामने लाती है यह मातृभूमि के प्रति उनके प्रेम और स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उनके द्वारा झेले गए भयानक परिणामों को उजागर करती है।

 

फ़िल्म सारांश: स्वातंत्र्य वीर सावरकर

यह फिल्म क्रांतिकारी विचारक और कवि विनायक दामोदर सावरकर के जीवन को दर्शाती है, जिन्होंने देश के स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई थी। यह सशस्त्र प्रतिरोध के कट्टर समर्थक के रूप में उनके बदलाव, उनके वैचारिक संघर्षों और सेलुलर जेल में उनके कारावास के वर्षों को दर्शाती है। व्यक्तिगत बलिदानों और रणनीतिक नेतृत्व के माध्यम से, सावरकर एक जटिल व्यक्ति के रूप में उभरे हैं, जिनका एक सशक्त और आत्मनिर्भर भारत का सपना आज भी गूंजता रहता है।

कलाकार समूह

निर्देशक: रणदीप हुड्डा

निर्माता : आनंद पंडित, सैम खान, संदीप सिंह, योगेश राहर

पटकथा: रणदीप हुड्डा

कलाकार:

  • रणदीप हुड्डा
  • अंकिता लोखंडे
  • अमित सियाल
  • मृनाल दत्त
  • जय पटेल
  • अंजली हुड्डा

प्रधानमंत्री की एक और ऐतिहासिक विदेश यात्रा तथा एक और सम्मान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी विदेश यात्राओं से नए-नए  कीर्तिमान रच रहे हैं और इसी क्रम में  जुड़ गई है उनकी ताजा गुयाना यात्रा। प्रधानमंत्री ने नवम्बर 2024 में ब्राजील में आयोजित जी -20 शिखर  सम्मलेन में अपना लोहा मनवाने के बाद गुयाना की यात्रा की जो किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री की विगत 56 वर्षो के पश्चात की गई गुयाना यात्रा थी । गुयाना में  प्रधानमंत्री का भव्य  स्वागत किया गया । गुयाना के दौरे में प्रधानमंत्री  ने वहां की संसद को संबोधित किया तथा  साथ ही गुयाना सरकार ने प्रधानमंत्री मोदी को अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान भी प्रदान किया। गुयाना दक्षिण अमेरिका में एक छोटा सा देश है किंतु उसके विकास की सभवनाएं अनंत है  क्योंकि वहां तेल व गैस के बड़े भंडार मिले हैं । प्रधानमंत्री की गुयाना यात्रा के दौरान भारत और गुयाना के मध्य कई महत्वपूर्ण समझौते हुए हैं। आर्थिक विकास के लिए भारत और गुयाना एक -दूसरे के लिए महत्वपूर्ण साझेदार हो सकते हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का  गुयाना पहुँचने पर  भव्य स्वागत हुआ। गुयाना के राष्ट्रपति इरफान अली तथा प्रधानमंत्री  मार्क एंथोनी फिलिप्स सहित उनकी कैबिनेट के 12 से अधिक मंत्रियों ने स्वयं एयरपोर्ट पहुंच कर उनका स्वागत किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वहां  पर बसे प्रवासी भारतीयों  को भी संबोधित किया। यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी की गुयाना के राष्ट्रपति इरफान अली साथ बैठक में दोनों देशों के बीच संबंधों का रणनीतिक दिशा देने पर चर्चा हुई।

वार्ता  के बाद दोनों देशों में बीच कई समझौतों पर हस्ताक्षर भी हुए हैं। इनमें  हाईड्रोकार्बन, डिजिटल पेमेंट सिस्टम, फार्मास्युटिकल, कृषि और रक्षा क्षेत्र शामिल हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि गुयाना भारत की ऊर्जा सुरक्षा  में अहम भूमिका निभाएगा और इस क्षेत्र में दीर्घ साझेदारी के लिए ब्लूप्रिंट तैयार किया जायेगा । प्रधानमंत्री मोदी ने बताया कि भारत गुयाना में जनऔषधि वितरण केंद्र भी खेलने जा रहा है। गुयाना के राष्ट्रपति इरफान अली ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा करते हुए कहा कि वह नेताओ के बीच चैंपिंयन हैं। उनका प्रभावशाली नेतृत्व और विकासशील देशॉन में योगदान उन्हें विशेष बनाता है। अली ने आगे कहा कि मोदी की शासन शैली कमाल की है। गुयाना व अन्य देशों में इसकी प्रासंगिकता है और इसे अपनाया जाता है।

गुयाना मात्र साढ़े आठ लाख की आबादी वाला देश है जिसकी विकास यात्रा में भारतीय मूल के लोगों का  महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जब भारत अंग्रेजों के आधीन था  था तब अंग्रेज भारत के लोगों को काम करवाने के लिए बंधक बनाकर विदेश ले जाते थे आज का गुयाना ऐसे ही लोगों के परिश्रम से निर्मित हुआ। इस कारण भारत ओैर गुयाना के बीच एक सांस्कृतिक समभाव भी है। इसी आधार पर भारत और गुयाना के बीच सांस्कृतिक सम्बंधों को बढ़ावा देने के लिए तथा दोनो देशों की जनता के मध्य पारस्परिक संपर्क बढ़ाने के लिए  भी एक बड़ा समझौता हुआ है।

गुयाना के राष्ट्रपति इरफान अली के साथ साथ वहां के कई कैबिनेट मंत्री भी भारतीय मूल के ही हैं। राष्ट्रपति इरफान अली के पूर्वज उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ से गुयाना जाकर बस गये थे। गुयाना के राष्ट्रपति इरफान अली व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने “एक वृक्ष मां के नाम“ अभियान के अंतर्गत पौधरोपण भी किया। घनिष्ठ संबंधों  के प्रमाण के रूप में प्रधानमंत्री मोदी को जार्जटाउन शहर की चाबी भी सौंपी गयी है।

ज्ञातव्य है कि गुयाना के राष्ट्रपति इरफान अली ने 2023 में  भारत की यात्रा की थी और तब ही उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र  मोदी को गुयाना यात्रा के लिए आमंत्रित  किया था। गुयाना के राष्ट्रपति इरफान अली अपने स्पष्ट विचारों के कारण वैश्विक राजनीति में एक महत्वपूर्ण पहचान रखते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी उपस्थिति ने भारत और गुयाना के बढ़ते संबंधों  को उजागर किया है। इरफ़ान अली का सबसे चर्चित पक्ष यह है कि उन्होंने यूरोपीय प्रभुत्ववादी और वामपंथी एजेंडा के खिलाफ मुखर आवाज उठाई है। इरफान अली का यह रुख न केवल गुयाना  बल्कि अन्य विकासशील देशों के लिए  भी एक प्रेरणा है। उनका यह दृष्टिकोण उन्हें वैश्विक मंच पर एक विशेष स्थान दिलाता है और भारत जैसे देशों के साथ संबंधों को और प्रगाढ़ बनाता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुयाना यात्रा के एक अन्य महत्वपूर्ण चरण में 14 छोटे केरैबियाई देशों के समूह कैरीकाम – 2024 को भी संबोधित किया तथा इस समूह में शामिल देशों के प्रमुखों के साथ भारत की द्विपक्षीय वार्ताए भी हुई हैं। यह सभी कैरेबियाई देश भारत के साथ विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के लिए इच्छुक हैं।इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने सभी नेताओं के साथ आर्थिक सहयोग, कृषि और खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य ओैर दवाओं और विज्ञान नवाचार जैसे क्षेत्रों में संबंधों को मजबूत बनाने पर चर्चा की है।

प्रधानमंत्री मोदी की गुयाना यात्रा कई दृष्टि से महत्वपूर्ण है जिसमें सबसे बड़ा कारण दोनों देशों की सुरक्षा चिंताएं हैं । विगत दिनों गुयाना में गैस व तेल का बड़ा भंडार मिला है और गुयाना की इस संपदा पर चीन और अमेरिका की गिद्ध दृष्टि लगी हुई है, वैसे भी चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों के कारण छोटे देशों को लालच देकर उन पर अपना नियंत्रण  स्थापित करता ओैर उनकी प्राकृतिक संपदा को लूटता है । वहीं भारत के  प्रधानमंत्री मोदी वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना से इन देशों को अपना बनाने का प्रयास करते हैं  यही कारण हैं कि भारत और प्रधानमंत्री मोदी का सम्मान पूरे विश्व में बढ़ रहा है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि गुयाना के एयरपोर्ट पर भारत के प्रधानमंत्री के स्वागत के लिए राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री सहित पूरी कैबिनेट ही आ गयी और इरफान अली बहुत ही भावुक होकर प्रधनमंत्री मोदी से गले मिले। आज उनके स्वागत का वीडिओ चर्चा का विषय बना हुआ  है। भारत की सर्वे भवन्तु सुखिनः की अवधारणा के कारण  ही गुयाना औेर बारबाडोस ने भारतीय प्रधानमन्त्री को अपने -अपने देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया जो क्रमश: “द आर्डर ऑफ  एक्सीलेंस“ और “आनरेरी आर्डर ऑफ फ्रीडम ऑफ बारबाडोस“ कहे जाते हैं ।

प्रेषक – मृत्युंजय दीक्षित

फोन नं. – 9198571540

संस्कृति, साहित्य और अपने परिवेश से जुड़ाव का अभिनव प्रयोग : बाल साहित्य मेला

समकालीन परिवेश में अपने सांस्कृतिक और साहित्यिक सन्दर्भों से नई पीढ़ी को उनके रचनात्मक रुझान के अनुरूप जोड़ते हुए यदि कोई आयोजन उनके कौशल विकास में प्रेरणात्मक पहल करे तो यह बच्चों के सर्वांगीण विकास में एक दिशाबोधक सृजनात्मक पड़ाव के रूप में उभरता है।
सांस्कृतिक, साहित्यिक और शैक्षिक नगरी में यह सन्दर्भ उजागर हुआ जब सितम्बर के अन्तिम सप्ताह में आयोजित साहित्यिक सम्मान संगोष्ठी में यह विचार उभर कर आया कि – “इस बार बाल दिवस को एक नवाचार के क्रम में बाल साहित्य मेले के रूप में आयोजित कर बच्चों को साहित्य एवं संस्कृति के विविध आयाम से जोड़ते हुए उनकी रचनात्मक सहभागिता की जाये।”
 इस विचार के जनक वरिष्ठ पर्यटक लेखक डॉ. प्रभात कुमार सिंघल ने जब अपना मंतव्य स्पष्ट किया तो उपस्थित साहित्यकारों, समाज सेवियों और शिक्षकों ने इसे अच्छी पहल बताया और अपेक्षित सहयोग करने की बात कहकर इस विचार के क्रियान्वयन के लिए सुझाव देकर इसे वैचारिक रूप से आरम्भ किया।
विचार की सकारात्मकता और उसकी क्रियान्विति में समर्पण का भाव जब समन्वित हो जाता है तो उसकी यात्रा सहज हो जाती है और कारवाँ बनता चला जाता है। इस वर्ष से आरम्भ यह बाल साहित्य मेला इन्हीं सन्दर्भों में आपसी सहयोग और समर्पण के साथ सम्पन्न होकर आने वाले वर्षों में और अधिक क्रियात्मक स्वरूप में उभारने की प्रेरणात्मक ऊर्जा का संचार कर गया। इसी ऊर्जा का संचार अनुभूत हुआ आयोजन के आरम्भ और समापन के मध्य साकार हुए रचनात्मक परिवेश से…।
अवसर रहा संस्कृति,साहित्य, मीडिया फोरम और केसर काव्य मंच द्वारा ‘आश्रय भवन ‘ श्री करनी नगर विकास समिति के तत्वावधान में रविवार 17 नवम्बर 2024 को आयोजित बाल साहित्य मेले का समापन समारोह…। विचार का अभियान बनना और उसका सफलता पूर्वक स्थापित होकर व्यवहारिक और सकारात्मक रूप से उभरना उसकी संचित एवं अर्जित ऊर्जा का
प्रमाण होता है जो अभिभूत कर देता है।
 इन्हीं सन्दर्भों को आत्मसात् करते हुए बाल साहित्य मेले के विचारक- आयोजक और संस्कृति,साहित्य, मीडिया फोरम के संयोजक डॉ. प्रभात कुमार सिंघल ने समारोह का संचालन करते हुए बाल साहित्य मेले के विचार उत्पत्ति, उसकी क्रियान्विति और उसके सफलता पूर्वक सम्पन्न होने के सन्दर्भ में कहा कि – “साहित्यकारों और शिक्षकों के सहयोग से विगत 26 सितम्बर 2024 से  कोटा एवं बारां जिलों में विद्यालय से कॉलेज स्तर की अठारह शैक्षणिक संस्थाओं में आयोजित कहानी – पाठ,  काव्य – पाठ, निबंध, बाल कवि सम्मेलन , चित्रकला, संस्कृति, साहित्य और पर्यटन सम्बन्धित प्रश्नोत्तरी इत्यादि प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया जिसमें  प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान पर विजेता रहे पैंसठ बालक – बालिकाओं को आज पुरस्कृत किया जा रहा है। इस आयोजन में पाँच हजार से अधिक बच्चे प्रत्यक्ष रूप से साहित्यिक और रचनात्मक गतिविधियों से जुड़े हैं।
यही नहीं बाल कविता लेखन प्रोत्साहन प्रतियोगिता में सहभागी रहे साहित्यकारों ने इस रचनात्मक पहल को गति प्रदान कर अनुकरणीय कार्य किया है।” उन्होंने आगे कहा कि – “बच्चों में साहित्य के प्रति रुझान जागृत करने के लिए छोटी सी पहल कर एक कदम चलने का प्रयास किया है। बाल दिवस पर साहित्य के क्षेत्र में सम्पूर्ण राजस्थान में कदाचित् यह पहला ऐसा सामूहिक प्रयास हो जिसे कुछ साहित्यकारों ने मिल कर अपनी सकारात्मक सहभागिता से बच्चों में साहित्य के प्रति आशा और विश्वास का एक दीप प्रज्वलित किया।  बाल साहित्य मेले के इस पावन यज्ञ में इन्होंने अपने मार्गदर्शन और सहयोग की आहुति दी है वहीं केसर काव्य मंच और ‘ आश्रय’ श्री करनी नगर विकास समिति की सहभागिता ने इस पहल को आधार प्रदान किया है।”
उन्होंने अपने उद्बोधन में अभिभूत होते हुए बताया कि – विचार को साकार करने में इस कार्यक्रम को आयोजित करने वाले ग्यारह साहित्यकार और शिक्षकों का सम्मान मेरे लिए उत्साह वर्धक है।”
 पश्चात् इस बाल साहित्य मेले के अन्तर्गत आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं में प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान पर विजेता रहे पैंसठ बालक- बालिकाओं में से उपस्थित बच्चों को प्रमाण – पत्र एवं साहित्य भेंट कर पुरस्कृत किया गया तथा शेष बच्चों के आयोजक प्रतिनिधि शिक्षक एवं अभिभावक को प्रमाण – पत्र प्रदान किये। साथ ही बाल कविता लेखन प्रोत्साहन प्रतियोगिता में पहले चार स्थान पर रहने वाले साहित्यकार योगीराज योगी, अर्चना शर्मा, अल्पना गर्ग एवं सन्जू श्रृंगी को सम्मानित किया गया।
बाल साहित्य मेला आयोजन में पहल कर सक्रिय योगदान और कार्यक्रम आयोजित करवाने वाले  सहयोगी साहित्यकार  डॉ. हिमानी भाटिया, डॉ. अपर्णा पाण्डे, डॉ. इंदु बाला शर्मा, डॉ. वैदेही गौतम, डॉ. प्रीति मीणा, विजय शर्मा, स्नेहलता शर्मा, मंजु कुमारी, महेश पंचोली, विजय जोशी एवं रेखा पंचोली को सम्मानित किया गया।
 इसके पश्चात् मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार रामेश्वर शर्मा ‘ रामू भईया ‘ ने कहा कि हाड़ोती में किया गया यह प्रथम प्रयास एक अच्छी पहल है। इसकी विशेष उपलब्धि यह रही कि यह ऐसा आयोजन रहा जिसमें न केवल साहित्यकारों, शिक्षकों, बच्चों की भागीदारी रही वरन् अभिभावक भी जुड़े और सभी को उत्साहित भी किया।  विशिष्ट अतिथि राजकीय सार्वजनिक मंडल पुस्तकालय के संभागीय अधीक्षक डॉ. दीपक श्रीवास्तव ने सभी का स्वागत किया। विशिष्ट अतिथि केसर काव्य मंच की डॉ. प्रीति मीणा ने कहा कि – “बच्चों के विकास में सहायक यह आयोजन बच्चों की प्रतिभा निखारने पथ बना।”
इस अवसर पर पुरस्कृत कक्षा बारहवीं के छात्र कमल मेहता ने माँ पर अपनी स्वरचित कविता –
माँ, ऐसी ही होती है,
जब अकेला रहा तो इसकी याद आई,
अंधेरे में था तो उसकी याद आई,
जब भूख लगी तो उसकी याद माई,
सोचने में कितनी आसान
लगती थी ज़िंदगी
जब खुद से जीना सीखा
तो उसकी याद आई,
ऐसी होती है माँ …
जो हमारा पेट भर कर भी
खुद भूखी सोती है,
माँ…ऐसी होती है …
सुनाकर सभी श्रोताओं को भाव – विभोर कर दिया। इसके पश्चात् विशिष्ट अतिथि विजय जोशी ने आयोजन के प्रेरक पलों को साझा करने के पश्चात् जब अपना चर्चित गीत ” रे बंधु तेरा कहाँ मुकाम, भोर हुई जब सूरज निकला, छूटा तेरा धाम। रे बंधु तेरा…”सुनाया तो श्रोता तालियाँ बजाते हुए झूम उठे।
समारोह के अध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकार जितेन्द्र ‘ निर्मोही ‘ ने कहा कि – “बच्चों को साहित्य से जोड़ने और रुचि उत्पन्न करने के साथ – साथ उनमें  रचनात्मक साहित्य के प्रति रुझान पैदा करने के लिए ऐसे आयोजन निरन्तर होने चाहिए।”
 फोरम के वरिष्ठ सदस्य किशन रत्नानी ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि – “विगत लगभग डेढ़ माह से अलग – अलग दिवसों में आयोजित यह बाल साहित्य मेला अपने अभिनव पहल से हाड़ौती सम्भाग में एक प्रकार से विद्यार्थी, शिक्षक ,अभिभावक की त्रिवेणी का चर्चित समारोह रहा। अगले वर्ष इसे और अधिक सहभागिता के साथ सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध करने और बच्चों के कौशल को विकसित करने का प्रयास होगा।”
समारोह में उपस्थित और सम्मानित रंगीतिका संस्था की संयोजक स्नेहलता शर्मा ने अपने उद्बोधन में बच्चों के रचनात्मक उन्नयन हेतु आयोजित होने वाले ऐसे कार्यक्रमों में फोरम को सभी प्रकार से सहयोग देने और सहभागिता करने का आश्वासन देकर अनुकरणीय कार्य किया।इससे पूर्व श्री करनी नगर विकास समिति के संयोजक प्रवीण भंडारी की उपस्थिति में मंचासीन अतिथियों ने माँ सरस्वती के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्ज्वलित कर समारोह का शुभारम्भ किया।
 अन्ततः यही कि बच्चों में संस्कृति, साहित्य और अपने परिवेश से जुड़ाव के प्रति रुझान को सम्पोषित करने वाला यह बाल साहित्य मेला अपने अलग स्वरूप में उभर कर रचनात्मक वातावरण को निर्मित करने का हेतु तो बना ही वहीं अपने साथ हर वय के जन को जोड़ने का आधार भी बना।

पेंशनर समाज कोटा के वार्षिक अधिवेशन में 135 पेंशनरों को मिलेगा शिरोमणि सम्मान

कोटा । राजस्थान पेंशनर समाज जिला कोटा के दिनांक 29 दिसंबर को वार्षिक अधिवेशन आयोजित किया जाएगा। इसमें 80 साल से अधिक उम्र के 135 पेंशनरों को  शिरोमणि सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। साथ ही अन्य समाजसेवी और और पेंशनर्स हित में काम करने वालों का भी भी सम्मानित किया जाएगा। यह निर्णय बुधवार को जिला अध्यक्ष रमेश गुप्ता की अध्यक्षता में आयोजित जिला कार्यकारिणी की बैठक बैठक में लिया गया। यह भी निर्णय लिया गया कि कार्यक्रम शिव ज्योति कॉन्वेंट स्कूल श्रीनाथपुरम, डी में आयोजित होगा।
उन्होंने बताया कि वार्षिक अधिवेशन के मुख्य अतिथि के रूप में ओम कृष्ण बिरला, लोकसभा अध्यक्ष की स्वीकृति प्राप्त हो गई है। विशिष्ट अतिथियों में मदन दिलावर शिक्षा मंत्री, हीरालाल नागर, ऊर्जा मंत्री एवं कोटा क्षेत्र विधायक होंगे। कार्यक्रम को व्यवस्थित संचालित करने के लिए 15 समितियां का गठन किया गया है।  सम्मान किया जाएगा। अधिवेशन में  करीब 5000 लोगों के आने की संभावना है।  बैठक में आरपी गुप्ता, चंद्र सिंह, नरेंद्र नंदवाना,  विमल जैन,  हंसा त्यागी, गिरीश कांत भटनागर, फरीद कुरैशी,  रामचरण तंवर, आदि ने भी संबोधित किया।

कैट भुवनेश्वर चैप्टर अशोक अग्रवाल संस्थापक अध्यक्ष

भुवनेश्वर। हाल ही में  कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के भुवनेश्वर चैप्टर का गठन किया गया जिसके आधार पर अशोक अग्रवाल संस्थापक अध्यक्ष बने जबकि वीरेंद्र बेताला और किशन बालोदिया बने उपाध्यक्ष बनाए गए।आयोजित कार्यक्रम में आर.के. शुक्ला, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष (पूर्व), हीरालाल लोकचंदानी, राष्ट्रीय सलाहकार, गोविंद अग्रवाल,  ओडिशा प्रदेश के चेयरमैन, जितेंद्र कुमार गुप्ता, ओडिशा प्रदेश अध्यक्ष, सीए अमित दारूका, ओडिशा प्रदेश महासचिव, सीए राजेश अग्रवाल, ओडिशा प्रदेश संयुक्त सचिव, सुशील अग्रवाल, ओडिशा प्रदेश कोषाध्यक्ष आदि ने हिस्सा लिया। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने केंद्र सरकार से टेंडरधारकों के लिए टेंडर की प्रक्रियाओं के अनुसार जीएसटी के प्रावधानों को भी निर्धारित करने की मांग की है।

यह मांग उन परिपेक्ष्य में उठी है, जहां टेंडर की राशि मिलने से पहले टेंडरधारकों को एक मोटी रकम जीएसटी के रूप में जमा करनी पड़ती है।
 समारोह को संबोधित करते हुए गोविंद अग्रवाल ने बताया कि सरकारी नियमों के बावजूद कई बार ऐसी परिस्थितियां बनती है कि टेंडर की शर्तों के पूरा होने में पेमेंट के भुगतान में देरी होती है। चूंकी टेंडर की राशि बड़ी होती है, ऐसी स्थिति में जीएसटी की राशि काफी बड़ी होती है। इसके लिए उन्होंने उदाहरण भी पेश किया कि टेंडर की प्रक्रिया प्रतिस्पर्धी होने के कारण 5-10 फीसदी का लाभ बड़ी मुश्किल से होता है। इसमें अन्य खर्चे भी शामिल होते हैं, लेकिन टेंडर धारक को 18 फीसदी जीएसटी भरनी पड़ती है। यदि तीन महीने के बाद पेमेंट टेंडरधारक को मिलता है, तो जीएसटी 54 फीसदी हो जाती है। ऐसी स्थिति में टेंडरधारकों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।गौरतलब है कि धनतेरस के दिन कोरापुट जिले के जयपुर में पूरे व्यापारी समाज को झकझोर देने वाली घटना को कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने गंभीरता से लिया है और जीएसटी विभाग से पीड़ित परिवार के लिए 100 करोड़ रुपये का मुआवजा मांगा है। मीटिंग में इसपर भी चर्चा हुई। ओडिशा प्रदेश के चेयरमैन, जितेंद्र कुमार गुप्ता के अनुसार मीटिंग की कार्यवाही और नये पदाधिकारियों का चयन सर्वसम्मति से हुआ।

भारत के 43 विश्व धरोहर स्मारक

विश्व धरोहर सप्ताह हर साल 19 नवंबर से 25 नवंबर तक पूरे विश्व में मनाया जाता है। विश्व विरासत स्थल ऐसे विशेष स्थानों (जैसे वन क्षेत्र, पर्वत, झील, मरुस्थल, स्मारक, भवन, या शहर इत्यादि) को कहा जाता है, जो विश्व विरासत स्थल समिति द्वारा चयनित होते हैं; और यही समिति इन स्थलों की देखरेख युनेस्को के तत्वाधान में करती है।इस कार्यक्रम का उद्देश्य विश्व के ऐसे स्थलों को चयनित एवं संरक्षित करना होता है जो विश्व संस्कृति की दृष्टि से मानवता के लिए महत्वपूर्ण हैं। कुछ खास परिस्थितियों में ऐसे स्थलों को इस समिति द्वारा आर्थिक सहायता भी दी जाती है।

 

ये मुख्यतः स्कूल और कॉलेज के छात्रों द्वारा लोगों को सांस्कृतिक विरासत के महत्व और इसके संरक्षण के बारे में जागरुक करने के लिये मनाया जाता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की ओर से ऐतिहासिक भारत के ढांचे, भ्रमण स्थलों से और भारत की सांस्कृतिक और पारंपरिक विरासत से संबंधित विभिन्न कार्यक्रमों का पूरे भारत में विश्व धरोहर सप्ताह मनाने के लिये आयोजित किये जाते हैं।

 

भारत में विश्व धरोहर सप्ताह मनाने के प्रतीक:-

ऐसे कई भारतीय ऐतिहासिक धरोहर और भ्रमण स्थल हैं जो प्राचीन भारतीय लोगों की संस्कृति और परंपरा के प्रतीक है। भारत की ये विरासत और स्मारक प्राचीन सम्पति हैं इस संस्कृति और परंपरा की विरासत को आने वाली पीढ़ीयों को देने के लिये हमें सुरक्षित और संरक्षित करना चाहिये। भारत में लोग विश्व धरोहर सप्ताह के उत्सव के हिस्से के रूप में इन धरोहरों और स्मारकों के प्रतीकों द्वारा मनाते हैं विश्व धरोहर सप्ताह को मनाने के लिये स्कूलों और कॉलेजों के छात्र बड़े उत्साह के साथ भाग लेते हैं। स्कूल से छात्र संस्कार केन्द्र और शहर के संग्रहालय के निर्देशित पर्यटन में भाग लेते हैं।

 

विश्व धरोहर सप्ताह मनाने का प्रयोजन:-

विश्व धरोहर सप्ताह मनाने का मुख्य उद्देश्य देश की सांस्कृतिक धरोहरों और स्मारकों के संरक्षण और सुरक्षा के बारे में लोगों को प्रोत्साहित करनाऔरजागरूकता बढ़ाना है। प्राचीन भारतीय संस्कृति और परंपरा को जानने के लिए ये बहुत आवश्यक है कि अमूल्य विविधसांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक स्मारकों की रक्षा की जाये और उन्हें संरक्षित किया जाये।

 

भारत में 43 यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल

भारत, एक ऐसा देश है जिसमें कई रंग हैं, इसकी पहचान इसकी विविध संस्कृति, धर्म, कला और वास्तुकला से है। इसके अलावा, भारत के विशाल प्रायद्वीप में वनस्पतियों और जीवों की एक विस्तृत श्रृंखला है। इन स्मारकों के मूलतः दो श्रेणी हैं।एक सांस्कृतिक धरोहरों की श्रेणी जिसमें इस समय 35 स्मारक पंजीकृत हैं।दूसरा प्राकृतिक स्मारकों की श्रेणी जिसमें सात स्मारक पंजीकृत हैं। एक स्मारक कंचन जंघा राष्ट्रीय उद्यान को सांस्कृतिक और प्राकृतिक दोनों श्रेणी में रखा जा सकता है।

 

भारत में सांस्कृतिक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल

निम्नलिखित सभी सांस्कृतिक विश्व धरोहर स्थल शामिल किए जाने के वर्ष के अनुसार क्रमबद्ध हैं:

  1. ताज महल (1983)

यह एक सफ़ेद संगमरमर का स्मारक है जिसे मुगल बादशाह शाहजहाँ ने 17वीं शताब्दी में अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में बनवाया था। ताजमहल की बेमिसाल खूबसूरती ने इसे दुनिया के सात अजूबों में से एक बना दिया है।

यह मकबरा मुगल, फारसी, भारतीय और इस्लामी वास्तुकला शैलियों का एक अद्भुत मिश्रण है। इसमें ऊंची मीनारें, बड़े मेहराब के आकार के द्वार, सुंदर उद्यान, रत्न जड़ित दीवारें और देखने लायक कई अन्य अद्भुत चीजें हैं।

स्थान : धर्मपुरी, ताजगंज, आगरा, उत्तर प्रदेश।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 6:00 बजे से शाम 6:30 बजे तक; प्रत्येक शुक्रवार को बंद रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 50/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 1,100/ व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 540/व्यक्ति।

 

 

  1. आगरा किला (1983)

आगरा का किला, जिसे आगरा का लाल किला भी कहा जाता है, वास्तुकला की एक उत्कृष्ट कृति है। मुगल बादशाह अकबर ने 1573 में यमुना नदी के दाहिने किनारे पर इस किले का निर्माण करवाया था। बलुआ पत्थर से बना यह किला 1638 तक शाही निवास स्थान था।

किला परिसर में कई शानदार संरचनात्मक उत्कृष्ट कृतियाँ भी हैं जैसे जहाँगीर महल, खास महल, दीवान-ए-खास, दीवान-ए- आम, शीश महल, नगीना मस्जिद, मोती मस्जिद, आदि।

स्थान: आगरा किला, रकाबगंज, आगरा, उत्तर प्रदेश।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक; सप्ताह में 7 दिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹50/ प्रति व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 650/ प्रति व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 90/व्यक्ति।

 

 

  1. अजंता गुफाएँ (1983)

प्राचीन बौद्ध अजंता गुफाएँ भी भारत में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों में शामिल कुछ पहले स्थानों में से एक है। यह सुंदर नक्काशीदार स्मारकों, मूर्तियों, भित्तिचित्रों और चित्रों द्वारा चिह्नित है। यहाँ 31 गुफाएँ हैं जिनमें कई प्रतिष्ठित चैपल और मठ हैं। आप यहाँ चट्टानों पर बने आश्चर्यजनक डिज़ाइन, मूर्तियाँ और आकृतियाँ भी देख सकते हैं, साथ ही दीवारों पर भगवान बुद्ध के पिछले जन्मों और पुनर्जन्मों को दर्शाने वाली कई पेंटिंग भी हैं।

स्थान : जलगांव, औरंगाबाद जिला, महाराष्ट्र।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : नवंबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 8:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक; सोमवार को बंद रहता है

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 10/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 250/व्यक्ति।

 

 

  1. एलोरा गुफाएँ (1983)

एलोरा की गुफाओं में 600-700 ई. में निर्मित ऐतिहासिक स्मारकों की एक श्रृंखला है। परिसर में 100 से ज़्यादा गुफाएँ हैं, और इनमें से 34 तक पहुँचा जा सकता है।

इन 34 गुफाओं में से 17 हिंदू धर्म, 12 बौद्ध धर्म और शेष 5 जैन धर्म से संबंधित हैं। ये सभी भारत की धार्मिक सहिष्णुता को दर्शाते हैं। आपको इस परिसर के अंदर बड़ी-बड़ी विजय मीनारें, हाथियों की मूर्तियाँ, मंदिर, मूर्तियां, पेंटिंग आदि देखने को मिलेंगी।

स्थान : एलोरा, महाराष्ट्र।

भ्रमण के लिए आदर्श समय:जून से मार्च।

कार्य समय : सुबह 9:00 बजे से शाम । 5:00 बजे तक; प्रत्येक मंगलवार को बंद रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 30/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 500/व्यक्ति।

 

 

  1. सूर्य मंदिर (1984)

सूर्य मंदिर, जिसे ब्लैक पैगोडा के नाम से भी जाना जाता है, एक शानदार कलिंग वास्तुकला और भारत में एक विश्व धरोहर स्थल है, जो पुरी से 35 किमी दूर स्थित है। इसे भगवान सूर्य के पत्थर से बने रथ के रूप में डिज़ाइन किया गया है, जिसे सात घोड़ों द्वारा खींचा जाता है। इसमें भगवान सूर्य की तीन मूर्तियाँ हैं, जिन्हें इस तरह से रखा गया है कि सुबह, दोपहर और शाम को सूर्य की किरणें सबसे पहले उन पर पड़ती हैं।

स्थान : कोणार्क, पुरी, ओडिशा।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 6:00 बजे से शाम 8:00 बजे तक; सप्ताह में 7 दिन।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 40/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 600/व्यक्ति । तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 40/व्यक्ति।

 

 

  1. महाबलीपुरम में स्मारक (1984)

पल्लव शासकों ने 7वीं-8वीं शताब्दी में कोरोमंडल तट के पास इन स्मारकों का निर्माण करवाया था। यहाँ लगभग 40 छोटे से लेकर बड़े स्मारक हैं, जिनमें मंडप, रॉक रिलीफ़, हिंदू मंदिर और रथ शामिल हैं। कई रॉक-कट स्मारकों में से, गंगा का अवतरण प्रमुख आकर्षणों में से एक है। यह एक खुली हवा में बना स्मारक है जो भारत की समृद्ध स्थापत्य शैली को दर्शाता है।

स्थान : मछुआरा कॉलोनी, महाबलीपुरम, तमिलनाडु।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : नवंबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक, सप्ताह के 7 दिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 40/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 600/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 40/व्यक्ति।

 

 

  1. गोवा के चर्च और कॉन्वेंट (1986)

आप इस साइट पर कई स्मारक देख सकते हैं जो भव्य पुर्तगाली मैनरिस्ट और बारोक वास्तुकला शैलियों को प्रदर्शित करते हैं। बेसिलिका डो बॉम जीसस, सेंट फ्रांसिस का चर्च और कॉन्वेंट, इग्रेजा डी साओ फ्रांसिस्को डी असिस, चर्च ऑफ अवर लेडी ऑफ द रोज़री और सेंट ऑगस्टीन का चर्च पुर्तगाली उपनिवेशों की इन भव्य राजसी कृतियों में से कुछ हैं।

स्थान : पुराना गोवा।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : नवंबर से फरवरी।

परिचालन समय : सप्ताह के सातों दिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : कोई शुल्क नहीं।

 

 

  1. हम्पी में स्मारकों का समूह (1986)

यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल में शक्ति- शाली विजयनगर साम्राज्य के अवशेष के रूप में 1,600 से अधिक संरचनाएं शामिल हैं। हम्पी में स्थित मंदिर, किले, हॉल, प्रवेश द्वार, संग्रहालय आदि आपको भारत की भव्य स्थापत्य शैली के बारे में सोचने पर मजबूर कर देंगे।

इन प्रभावशाली स्मारकों में विट्ठल मंदिर, विरुपाक्ष मंदिर, हरिहर महल, हजारा राम मंदिर, रानी का स्नानघर, हम्पी बाज़ार, लोटस महल और संग्रहालय शामिल हैं।

स्थान : विजयनगर जिला, कर्नाटक।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से फरवरी।

परिचालन समय : मंदिर सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक खुले रहते हैं; तथापि, संग्रहालय सुबह 10 बजे से खुलते हैं।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 30/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 500/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 30/व्यक्ति।

 

 

  1. फतेहपुर सीकरी (1986)

सम्राट अकबर द्वारा निर्मित फतेहपुर सीकरी सबसे खूबसूरत इंडो-इस्लामिक कृतियों में से एक है और भारत में सबसे प्रमुख यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों में से एक है। सम्राट ने इस वास्तुकला को शेख सलीम चिश्ती, एक सूफी संत को श्रद्धांजलि के रूप में बनाने का आदेश दिया था। फतेहपुर सीकरी की लंबी दीवारों के भीतर, आपको पंच महल, सलीम चिश्ती का मकबरा, जामा मस्जिद, जोधाबाई का महल और बुलंद दरवाज़ा सहित अन्य उल्लेखनीय संरचनाएँ मिलेंगी।

स्थान : आगरा, उत्तर प्रदेश।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 6:00 बजे से शाम ।6:00 बजे तक; सप्ताह में हर दिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 40/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 550/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 20/व्यक्ति।

 

 

  1. खजुराहो स्मारक समूह (1986)

खजुराहो स्मारक समूह भारत की समृद्ध नागर शैली की वास्तुकला की उत्कृष्ट कृतियों को प्रदर्शित करता है। इसमें चंदेल वंश के शासनकाल के दौरान निर्मित कई प्राचीन

हिंदू और जैन मंदिर हैं। वर्तमान में, आप 85 मंदिरों में से केवल 20 को ही देख सकते हैं, और बाकी समय के साथ जीर्ण-शीर्ण हो गए हैं। इन मंदिरों और स्मारकों की पहचान दीवारों पर उकेरी गई कामुक मूर्तियों और मूर्तियों से भी है।

स्थान : छतरपुर, मध्य प्रदेश।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 8:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक, सप्ताह में हर दिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 40/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 600/व्यक्ति और बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 40/व्यक्ति। संग्रहालयों का भ्रमण करने और शो देखने के लिए आपको अतिरिक्त भुगतान करना होगा।

 

 

  1. पत्तदकल में स्मारकों का समूह (1987)

पट्टाडकल में आप नौ खूबसूरती से डिजाइन किए गए हिंदू मंदिर देख सकते हैं, जिनमें मल्लिकार्जुन मंदिर, विरुपाक्ष मंदिर, संगमेश्वर मंदिर, गलगनाथ मंदिर, काशी विश्वनाथ मंदिर, पापनाथ मंदिर आदि शामिल हैं। इस स्थल पर जैन नारायण मंदिर भी है। लगभग 7-8वीं शताब्दी में चालुक्य शासन के दौरान निर्मित, इन स्मारकों में द्रविड़, प्रसाद, विमान, नागर और रेखा शैलियों का बेहतरीन मिश्रण देखने को मिलता है।

स्थान : बागलकोट जिला, कर्नाटक।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक; सप्ताह में हर दिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 35/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 550/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 35/व्यक्ति।

 

 

  1. एलीफेंटा गुफाएं (1987)

प्राचीन एलीफेंटा गुफाएँ, जिन्हें घारापुरीची लेनी भी कहा जाता है, में गुफाओं की दो श्रृंखलाएँ हैं। इनमें से पाँच गुफाओं में चट्टानों को काटकर बनाई गई हिंदू मूर्तियाँ और मूर्तियाँ हैं, जबकि दो में 5वीं-8वीं शताब्दी में बनी बौद्ध वास्तुकला की झलक मिलती है। ये संरचनाएँ भारत में धार्मिक सहिष्णुता के गौरवशाली इतिहास का प्रतिनिधित्व करती हैं।

स्थान : घारापुरी, महाराष्ट्र।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : नवंबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 9:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक, प्रत्येक सोमवार को बंद रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 40/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 600/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 40/व्यक्ति।

 

 

  1. महान जीवित चोल मंदिर (1987, 2004)

यह दक्षिण भारत के विभिन्न भागों में फैले भगवान शिव को समर्पित तीन मंदिरों का संग्रह है। ये हैं दारासुरम में ऐरावतेश्वर मंदिर, गंगईकोंडा चोलपुरम में बृहदीश्वर मंदिर और तंजावुर में बृहदीश्वर मंदिर।

चोल शासनकाल के दौरान भारत की शानदार वास्तुकला और कलात्मक उपलब्धियों को प्रदर्शित करने के लिए इन मंदिरों को 1987 में भारत में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल किया गया था।

स्थान : तीनों मंदिरों के स्थान इस प्रकार हैं: 1.ऐरावतेश्वर मंदिर : दारासुरम, कुंभकोणम, तमिलनाडु ।

2.गंगईकोंडा चोलपुरम का बृहदीश्वर मंदिर : जयनकोंडाम, तमिलनाडु ।

और 3.तंजावुर का बृहदीश्वर मंदिर : बालागणपति नगर, तमिलनाडु।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : नवंबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 8:30 बजे से रात 9:00 बजे तक; प्रतिदिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : निःशुल्क।

 

 

  1. कुतुब मीनार और उसके स्मारक (1993)

कुतुब मीनार और इसके स्मारक 13वीं शताब्दी में निर्मित इस्लामी वास्तुकला का एक आदर्श उदाहरण हैं। यह लाल बलुआ पत्थर से बना एक टॉवर है, जिसकी ऊँचाई 72.5 मीटर है। इस ऊंचे टॉवर के अलावा, पूरे परिसर में अन्य शानदार ऐतिहासिक संरचनाएँ हैं, जिनमें अलाई-दरवाज़ा, कुव्वत उल-इस्लाम मस्जिद, अलाई मीनार, लौह स्तंभ, अंत्येष्टि भवन आदि शामिल हैं।

स्थान : महरौली, नई दिल्ली।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 7:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक; प्रतिदिन खुला रहता है

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 30/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 500/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 30/व्यक्ति।

 

 

  1. हुमायूं का मकबरा (1993)

मुगल बादशाह हुमायूं की विधवा पत्नी बिगा बेगम ने अपने प्रिय पति की याद में प्रतिष्ठित फ़ारसी शैली का मकबरा बनवाया था। भारत में यह यूनेस्को विरासत स्थल सबसे

अच्छी तरह से संरक्षित मुगल मकबरों में से एक है।

इसके अलावा, मकबरे के परिसर में चार आकर्षक फ़ारसी शैली के बगीचे हैं। परिसर में अन्य शाही वंशजों की कब्रें भी हैं, जिनमें महारानी बीगा बेगम, दारा शिकोह, हमीदा बेगम और अन्य शामिल हैं।

स्थान : मथुरा रोड, नई दिल्ली।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक; प्रतिदिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 30/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 500/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 30/व्यक्ति।

 

 

  1. साँची में बौद्ध स्मारक (1989)

सांची के बौद्ध स्मारक सबसे पुराने पत्थर से बने स्थापत्यों में से एक हैं, जिनका निर्माण 200-100 ईसा पूर्व में हुआ था। वास्तव में, इस स्थल का केंद्र बिंदु, महान सांची स्तूप, तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व की एक संरचना है। इसमें 36 मीटर व्यास और 16 मीटर की ऊँचाई वाला एक बड़ा गुंबद है।इसके अलावा, आप इस परिसर में कई चट्टान-नक्काशीदार महल, मठ, मंदिर और अखंड स्तंभ देख सकते हैं। अपने उच्च धार्मिक महत्व के कारण इसे भारत में यूनेस्को विरासत स्थलों में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।

स्थान : सांची टाउन, रायसेन, मध्य प्रदेश।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : नवंबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 6:30 बजे से शाम 6:30 बजे तक; सप्ताह में 7 दिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 40 /व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 600/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 40/व्यक्ति।

 

 

  1. भारत के पर्वतीय रेलवे (1999, 2005, 2008)

पर्वतीय रेलवे शानदार इंजीनियरिंग समाधान हैं जो भारत के पहाड़ी और ऊबड़-खाबड़ इलाकों में कनेक्टिविटी की समस्याओं को आसान बनाते हैं। इसके लिए, दार्जिलिंग रेलवे 1999 में भारत में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों में से एक के रूप में मान्यता प्राप्त करने वाला पहला पर्वतीय रेलवे बन गया। बाद में, यूनेस्को ने भी क्रमशः 2005 और 2008 में नीलगिरि और कालका-शिमला रेलवे को विरासत पर्वतीय रेलवे की सूची में मान्यता दी।

स्थान : यह दार्जिलिंग, नीलगिरि और कालका-शिमला रेलमार्ग पर उपलब्ध है।

अन्वेषण के लिए आदर्श समय :

परिचालन के घंटे : स्टेशन हर समय खुले रहते हैं।

प्रवेश शुल्क : ट्रेन की सवारी करने के लिए आपको टिकट की बुकिंग कीमत चुकानी होगी और कीमत आपकी यात्रा की दूरी पर निर्भर करती है।

 

 

  1. महाबोधि मंदिर परिसर (2002)

सम्राट अशोक ने बोधगया में इस बौद्ध मंदिर परिसर का निर्माण करवाया था, जहाँ भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। यह बौद्धों के लिए पवित्र मंदिरों में से एक है। मंदिर परिसर में 5 हेक्टेयर क्षेत्र में कई धार्मिक संरचनाएँ हैं, जिनमें 50 मीटर ऊँचा वज्रासन, पूजनीय बोधि वृक्ष, कमल का तालाब और कई स्तूप शामिल हैं।

स्थान : बोधगया, बिहार।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अप्रैल से मई और नवंबर से फरवरी।

कार्य समय : सुबह 5:00 बजे से शाम 9:00 बजे तक; सप्ताह के हर दिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : निःशुल्क।

 

 

  1. भीमबेटका के शैलाश्रय (2003)

भीमबेटका के शैलाश्रय भारत में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं, जो सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं। इस स्थल पर मेसोलिथिक युग के पाँच प्राकृतिक शैलाश्रय हैं। इन शैलाश्रयों की दीवारों पर, आप एशियाई पाषाण युग की कलाकृतियाँ और नक्काशी देख सकते हैं, जो उस काल के लोगों की जीवनशैली और गतिविधियों का एक मोटा चित्र प्रस्तुत करती हैं।

स्थान : रायसेन जिला, मध्य प्रदेश।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से अप्रैल।

कार्य समय : सुबह 7:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक; सप्ताह में हर दिन खुलता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 25/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 500/व्यक्ति।

 

 

  1. चंपानेर-पावागढ़ पुरातत्व पार्क (2004)

भारत में स्थित इस यूनेस्को स्थल में पावागढ़ पहाड़ी से लेकर चंपानेर शहर तक फैले लम्बे क्षेत्र में फैले किलों और अन्य वास्तुकला की एक श्रृंखला मौजूद है।किलों के अलावा, इस स्थल पर किले, बावड़ियाँ, महल, मंदिर, मकबरे, मस्जिद, आवासीय परिसर और कृषि क्षेत्र जैसी वास्तुकला की उत्कृष्ट कृतियाँ हैं। इसके अलावा, पावागढ़ पहाड़ी पर स्थित कालिका माता मंदिर देश के पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है।

स्थान : पंचमहल जिला, गुजरात।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से फरवरी।

कार्य समय : सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक; प्रतिदिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 35/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 550/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 35/व्यक्ति।

 

 

  1. छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (2004)

छत्रपति शिवाजी टर्मिनस एक ऐतिहासिक और व्यस्त रेलवे स्टेशन है जिसे इसकी बेजोड़ वास्तुकला सुंदरता के लिए भारत में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल किया गया है। यह ब्रिटिश वास्तुकार फ्रेडरिक विलियम द्वारा डिजाइन की गई शानदार विक्टोरियन गोथिक वास्तुकला में से एक है। बलुआ पत्थर और चूना पत्थर से निर्मित इस इमारत का बाहरी हिस्सा आकर्षक है। अंदर भी बेहतरीन इतालवी संगमरमर का इस्तेमाल किया गया है, जो इसकी खूबसूरती को कई गुना बढ़ा देता है।

स्थान: फोर्ट, मुंबई, महाराष्ट्र।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : 24×7 खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : निःशुल्क।

 

 

  1. लाल किला परिसर दिल्ली (2007)

लाल किला या लाल किला, जिसे बादशाह शाहजहाँ ने बनवाया था, मुगल शाही परिवार के लिए प्रमुख आवासीय स्थान के रूप में कार्य करता था। यह एक राजसी लाल बलुआ पत्थर का किला महल है जो भारतीय, फ़ारसी और तैमूरिद वास्तुकला शैलियों का एक आदर्श मिश्रण प्रदर्शित करता है। आप इस परिसर के भीतर दीवान-ए-ख़ास, दीवान-ए-आम, लाहौरी गेट, दिल्ली गेट आदि जैसी अन्य ऐतिहासिक संरचनाएँ भी देख सकते हैं।

स्थान : नेताजी सुभाष मार्ग, चांदनी चौक, नई दिल्ली।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 9:30 बजे से शाम 4:30 बजे तक।

प्रवेश शुल्क: भारतीयों के लिए ₹ 35/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 500/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 35/व्यक्ति।

 

 

  1. जंतर मंतर जयपुर (2010)

जंतर-मंतर विश्व की सबसे बड़ी खगोलीय वेधशालाओं में से एक है, जिसमें स्मार्ट उपकरण और संरचनाएं हैं। सवाई जय सिंह द्वितीय द्वारा निर्मित यह वेधशाला इस तरह से बनाई गई है कि आप नंगी आँखों से आकाशीय पिंडों का अवलोकन कर सकते हैं। 19 बड़े खगोलीयउपकरणों के अलावा, इसमें दुनिया की सबसे बड़ी धूपघड़ी भी है। इस वैज्ञानिक और सांस्कृतिक महत्व के कारण इसे भारत में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों में स्थान मिला है।

स्थान : गंगोरी बाज़ार, जयपुर, राजस्थान।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : सितम्बर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 9 बजे से शाम 4:30 बजे तक; प्रतिदिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹50/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 200/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 50/व्यक्ति।

 

 

  1. राजस्थान के पहाड़ी किले (2013)

2013 में, यूनेस्को ने अरावली पर्वतमाला में छह राजसी पहाड़ी किलों को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी। इनमें आमेर किला, चित्तौड़गढ़ किला, गागरोन किला, रणथंभौर किला, जैसलमेर किला और कुंभलगढ़ किला शामिल हैं। विभिन्न राजपूत शासकों ने अपनी सुरक्षा बढ़ाने और अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए 5वीं-18वीं शताब्दी के दौरान इन किलों का निर्माण किया था।

स्थान : इन छह पहाड़ी किलों का स्थान निम्नलिखित है-

1.आमेर किला : देवीसिंहपुरा, आमेर, जयपुर।

2.चित्तौड़गढ़ किला : चित्तौड़गढ़, राजस्थान।

3.गागरोन किला : झालावाड़, राजस्थान।

4.रणथंभौर किला : सवाई माधोपुर, राजस्थान।

5.जैसलमेर किला : गोपा चोक, किला कोठरी पारा रोड, जैसलमेर, राजस्थान।

6.कुम्भलगढ़ किला : राजसमंद जिला, कुम्भलगढ़, राजस्थान।

भ्रमण के लिए आदर्श समय: अक्टूबर से मार्च।

परिचालन समय: इन छह पहाड़ी किलों के खुलने/बंद होने का समय इस प्रकार है-

आमेर किला : सुबह 8 बजे से शाम 7 बजे तक।

चित्तौड़गढ़ किला : सुबह 9:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक।

गागरोन किला : सुबह 9:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक।

रणथंभौर किला : सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक।

जैसलमेर किला : सुबह 6:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक।

कुंभलगढ़ किला : सुबह 9:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक।

प्रवेश शुल्क : इन छह पहाड़ी किलों के लिए प्रवेश शुल्क निम्नलिखित हैं-

आमेर किला : भारतीयों के लिए ₹ 50/ व्यक्ति और विदेशियों के लिए ₹500/ व्यक्ति।

चित्तौड़गढ़ किला : भारतीयों के लिए ₹ 10/व्यक्ति और विदेशियों के लिए ₹100/ व्यक्ति।

गागरोन किला : निःशुल्क।

रणथंभौर किला : वयस्कों के लिए ₹ 15/ व्यक्ति और बच्चों के लिए ₹ 10/व्यक्ति।

जैसलमेर किला : भारतीयों के लिए

₹50/व्यक्ति और विदेशियों के लिए ₹250/व्यक्ति।

कुंभलगढ़ किला : भारतीयों के लिए ₹10/ व्यक्ति और विदेशियों के लिए ₹ 100/ व्यक्ति।

 

 

  1. रानी-की-वाव (2014)

रानी की बावड़ी या रानी की वाव सरस्वती नदी के तट पर बनी एक मनमोहक भूमिगत वास्तुकला है। यह जल भंडारण प्रणाली के रूप में काम करती थी। यह एक बड़ी संरचना है जिसकी लंबाई, चौड़ाई और गहराई क्रमशः 64 मीटर, 20 मीटर और 27 मीटर है। इस उल्टे मंदिर जैसी बावड़ी की दीवारों पर भगवान विष्णु, अप्सराओं और योगिनियों सहित अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां बनी हुई हैं।

स्थान : पाटन, गुजरात।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक; प्रतिदिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 35/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 550/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 35/व्यक्ति।

 

 

  1. नालंदा महाविहार (2016)

नालंदा महाविहार एक विश्व स्तरीय विश्वविद्यालय था जो चीन, कोरिया, तिब्बत, मध्य एशिया आदि से विद्वानों को आकर्षित करता था। नालंदा महावीर के पुरातात्विक अवशेषों से पता चला है कि इसने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से शुरू होकर 800 से अधिक वर्षों तक शैक्षणिक गतिविधियों का संचालन किया। वर्तमान में, आप यहां विहारों, स्तूपों, मंदिरों आदि के खंडहर देख सकते हैं जो इस प्राचीन शिक्षा केंद्र की शोभा बढ़ाते थे।

स्थान : नालंदा जिला, बिहार।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 9:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक; प्रत्येक शुक्रवार को बंद रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 15/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 200/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 15/व्यक्ति।

 

 

  1. कैपिटल कॉम्प्लेक्स (ली कोर्बुसिए का वास्तुशिल्प कार्य) चंडीगढ़ (2016)

ले कोर्बुसिए, एक कुशल वास्तुकार, ने दुनिया भर में कई शानदार आधुनिक भवन परिसरों का निर्माण किया है। यूनेस्को ने इन सभी को सामूहिक रूप से विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल किया है।

100 एकड़ से ज़्यादा ज़मीन पर बना कैपिटल कॉम्प्लेक्स भारत में ऐसी ही एक ऐतिहासिक वास्तुकला रचना है। इस पूरे कॉम्प्लेक्स में 3 बड़ी इमारतें, एक शहीद स्मारक, एक ओपन-हैंड स्मारक, एक ज्यामितीय पहाड़ी, एक छाया का टॉवर और एक रॉक गार्डन है।

स्थान : सेक्टर 1, चंडीगढ़।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक; प्रतिदिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : निःशुल्क।

  1. ऐतिहासिक शहर अहमदाबाद (2017)

गुजरात की राजधानी अहमदाबाद, भारत में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल होने वाला पहला भारतीय शहर है। इसकी सल्तनत वास्तुकला, मस्जिदें, हिंदू/जैन मंदिर, द्वार और दीवारें इसे सांस्कृतिक रूप से संपन्न शहर बनाती हैं। विभिन्न धर्मों की मस्जिदें और मंदिर भी इस शहर में धार्मिक सह-अस्तित्व के इतिहास को दर्शाते हैं।

स्थान : अहमदाबाद, गुजरात

भ्रमण के लिए आदर्श समय : नवंबर से फरवरी।

 

 

  1. मुंबई के गॉथिक-विक्टोरियन और आर्ट-डेको एनसेंबल्स (2018)

इन इमारतों में कई आर्ट-डेको और नव-गॉथिक शैली में डिज़ाइन की गई सार्वजनिक इमारतें शामिल हैं। ये सभी इमारतें मुंबई के फोर्ट एरिया में ओवल मैदान के आसपास स्थित हैं।

इस मैदान के पूर्वी हिस्से में आपको गोथिक वास्तुकला देखने को मिलेगी, जिसमें बॉम्बे हाई कोर्ट, मुंबई विश्वविद्यालय, एलफिंस्टन कॉलेज और डेविड सैसून लाइब्रेरी शामिल हैं। दूसरी तरफ आर्ट-डेको वास्तुकला है, जिसमें विभिन्न आवासीय इमारतें शामिल हैं।

स्थान : मुंबई, महाराष्ट्र।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : नवंबर से मार्च।

 

 

  1. जयपुर सिटी (2019)

जयपुर या गुलाबी शहर, अपने सांस्कृतिक महत्व और शाही विरासत के कारण भारत में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल हो गया है। इस शहर का सार मुख्य रूप से इसकी राजसी वास्तुकला से भरा हुआ है जिसमें उल्लेखनीय हवेलियाँ, शाही स्थान और अम्बर किला, सिटी पैलेस, जंतर मंतर आदि जैसे किले शामिल हैं।

स्थान : राजस्थान।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

 

 

  1. धोलावीरा (2021)

धोलावीरा प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता का 5वां सबसे बड़ा हड़प्पा शहर है। धोलावीरा का विशाल 22 हेक्टेयर क्षेत्र शहरी बस्तियों के खंडहर ढांचों से घिरा हुआ है।

धोलावीरा में मौजूद अवशेषों, जिनमें सड़कें, कुएं, प्रवेशद्वार आदि शामिल हैं, से आपको यह अंदाजा लग सकता है कि सिंधु सभ्यता के लोग किस तरह अपना जीवन व्यतीत करते थे।

स्थान : खादिरबेट, कच्छ जिला, गुजरात।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक; प्रतिदिन खुला रहता है

प्रवेश शुल्क : ₹ 5/व्यक्ति

 

 

  1. काकतीय रुद्रेश्वर मंदिर (2021)

यह एक मनमोहक बलुआ पत्थर का मंदिर है जिसका निर्माण 1273 में काकतीय राजवंश के शासन के दौरान हुआ था। रुद्रेश्वर मंदिर वेसर स्थापत्य शैली में निर्मित एक अनुकरणीय संरचना है। यह भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर के अंदर, आप 6 फीट लंबे आसन पर 9 फीट लंबा शिवलिंग रख सकते हैं।

स्थान : रामप्पा, मुलुगु, तेलंगाना।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : सितम्बर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक; प्रतिदिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : निःशुल्क।

 

 

33.शान्ति निकेतन 2023

शान्तिनिकेतन 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में देवेन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा स्थापित एक आश्रम है। बाद में इसे विश्व-भारती विश्वविद्यालय के लिए विश्वविद्यालय कस्बे के रूप में विकसित किया गया। शांति निकेतन को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है। शांति निकेतन में ही कवि रवींद्रनाथ टैगोर ने विश्वभारती की स्थापना की थी। पश्चिम बंगाल सरकार ने पिछले 12 वर्षों में इसे विकासित किया है और अब यह यूनेस्को की सूची में है।

 

 

34.होयसल मंदिर समूह कर्नाटक 2023

होसयल के पवित्र मंदिर समूह बेलूर, हलेबिड और सोमनाथपुरा में स्थित है। इस राजवंश को कला और साहित्य के संरक्षक माना जाता है। इसका संरक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी ASI करता है। भगवान शिव को समर्पित होयसल मंदिर का निर्माण 1150 ईस्वी में होयसल राजा द्वारा काले शिष्ट पत्थर से बनवाया गया था।ये मंदिर न केवल वास्तुशिल्प के चमत्कार हैं, बल्कि होयसल राजवंश की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहरों के भंडार भी हैं। होयसल पेंटिंग को कभी-कभी हाइब्रिड या वेसर भी कहा जाता है क्योंकि उनकी असाधारण शैली न तो पूरी तरह से द्रविड़ और न ही नागा है, बल्कि कहीं भी बीच की दिखती है। होयसल वास्तुकला मध्य भारत में प्रचलित भूमिजा शैली, उत्तरी एवं पश्चिमी भारत की साझी और कल्याणीचालुक्यों द्वारा चुनी गई कर्नाटक द्रविड़ शैली के विशिष्ट मिश्रण के लिए जानी जाती है। इसमें कई मंदिर हैं जो एक केंद्रीय स्तंभ वाले हॉल के चारों ओर समूह में हैं और एक जटिल डिजाइन वाले तार के आकार में बनाए गए हैं। ये सोपस्टोन से बने हैं जो परम प्राकृतिक पत्थर हैं, कलाकारों को कलाकृतियों से तराशने में निपुण थे। इसे विशेष रूप से देवताओं के आभूषणों में देखा जा सकता है जो मंदिरों की दीवारों को सुशोभित करते हैं।

 

 

35.असम का चराईदेव मोईदाम’ 2024

असम के मोइदम्स को सांस्कृतिक श्रेणी का यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा प्राप्त हुआ है। लगभग सात सौ साल पुराने मोइदाम ईंट, पत्थर के खोखले तहखाना हैं और इनमें राजाओं और राजघरानों के अवशेष हैं। चीन से आकर ताई-अहोम राजवंश ने 12वीं से 18वीं शताब्दी ई. तक ब्रह्मपुत्र नदी घाटी के विभिन्न भागों में अपनी राजधानी स्थापित की। उनमें से सबसे अधिक पवित्र स्थल चराईदेव था, जहाँ ताई-अहोम ने पाटकाई पर्वतमाला की तलहटी में स्थित में चौ-लुंग सिउ-का-फा के अधीन अपनी पहली राजधानी स्थापित की थी। यह पवित्र स्थल, जिसे चे-राय-दोई या चे-ताम-दोई के नाम से जाना जाता है, ऐसे अनुष्ठानों के साथ पवित्र किये गए थे जो ताई-अहोम की गहरी आध्यात्मिक मान्यताओं को दर्शाते थे।

 

सदियों से, चराईदेव ने एक टीला शवागार के रूप में अपना महत्व बनाए रखा है, जहाँ ताई-अहोम राज- घरानों की दिवंगत आत्माएँ परलोक में चली जाती थीं। ताई-अहोम के राजा दिव्य थे, जिसके कारण एक अनूठी अंत्येष्टि परंपरा की स्थापना हुई।राजवंश के सदस्यों के नश्वर अवशेषों को दफनाने के लिए मोईदाम या गुंबददार टीलों का निर्माण की परंपरा 600 वर्षों से चली आ रही है, जिसमें विभिन्न सामग्रियों का उपयोग किया गया और समय के साथ वास्तुकला की तकनीकें विकसित होती रही। शाही दाह संस्कार से जुड़ी रस्में बहुत भव्यता के साथ आयोजित की जाती थीं, जो ताई-अहोम समाज की पदानुक्रमिक संरचना को दर्शाती थीं। प्रत्येक गुंबददार कक्ष के बीचों बीच एक उठा हुआ भाग है, जहाँ शव को रखा जाता था। मृतक द्वारा अपने जीवनकाल में उपयोग की जाने वाली कई वस्तुएं, जैसे शाही प्रतीक चिन्ह, लकड़ी, हाथी दांत या लोहे से बनी वस्तुएं, सोने के पेंडेंट, चीनी मिट्टी के बर्तन, हथियार, वस्त्र (केवल लुक-खा-खुन कबीले से) को उनके राजा के साथ दफनाया दिया जाता था।

 

मोईदाम में विशेष गुंबददार कक्ष होता है, जो प्रायः दो मंजिला होते हैं, जिन तक मेहराबदार मार्गों से पहुंचा जा सकता है। कक्षों में बीच में उभरे स्थान बने हुए थे, जहाँ मृतकों को उनके शाही चिह्नों, हथियारों और निजी सामानों के साथ दफनाया जाता था। इन टीलों के निर्माण में ईंटों, मिट्टी और वनस्पतियों की परतों का इस्तेमाल किया गया, जिससे यहां का परिदृश्य सुन्दर पहाड़ियों में बदल गया।

 

भारत में प्राकृतिक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल

निम्नलिखित स्थल भारत के यूनेस्को विरासत स्थलों में उनकी प्राकृतिक सुंदरता और पर्यावरणीय महत्व के आधार पर सूचीबद्ध हैं, जिन्हें समावेशन के वर्ष के अनुसार क्रमबद्ध किया गया है:-

 

 

  1. काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान (1985)

ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर स्थित काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान एक समृद्ध प्राकृतिक स्थल है जो 430 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। इस राष्ट्रीय उद्यान में विविध वनस्पतियाँ, जीव-जंतु, जंगल, नदियाँ, झीलें आदि हैं।यहाँ का एक सींग वाला गैंडा यहाँ का एक विशेष आकर्षण है जो दुनिया भर से पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है। इसके अलावा, आप यहाँ बाघ, दलदली हिरण, हाथी, भैंस, ऊदबिलाव, गंगा डॉल्फ़िन आदि के साथ-साथ पक्षियों की विभिन्न प्रजातियाँ भी देख सकते हैं।

स्थान : नागांव और गोलाघाट जिले, असम।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : नवंबर से अप्रैल।

कार्य के घंटे : 24 घंटे।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 100/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 650/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 100/व्यक्ति।

 

 

 

 

  1. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (1985)

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान एक पक्षी-दर्शन स्थल है जिसने भारत में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों की सूची में अपना स्थान बनाया है। आप यहाँ 350 से अधिक पक्षी प्रजातियाँ, 380 विभिन्न प्रकार के पौधे और विभिन्न प्रकार की मछलियाँ और स्तनधारी देख सकते हैं। सर्दियों के दौरान, यह क्षेत्र अफ़गानिस्तान, सर्बिया, चीन और अन्य पड़ोसी देशों से प्रवासी पक्षियों का स्वागत करता है।

स्थान : भरतपुर, राजस्थान।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अगस्त से फरवरी।

परिचालन समय : गर्मियों में यह सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक खुला रहता है, और सर्दियों में यह क्रमशः सुबह 6:30 बजे और शाम 5:00 बजे खुलता और बंद होता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 50/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 250/व्यक्ति।

 

 

  1. मानस वन्यजीव अभयारण्य (1985)

यह हिमालय की तलहटी में स्थित भारत का एक प्रतिष्ठित वन्यजीव अभयारण्य और बायोस्फीयर रिजर्व है। हरे-भरे जंगल के बीच, आप एक सींग वाले गैंडे, भौंकने वाले हिरण, छत वाले कछुए, तेंदुए आदि जैसे जानवर पा सकते हैं। यहाँ पिग्मी हॉग, असम छत वाला कछुआ, गोल्डन लंगूर, हिस्पिड हरे और लाल पांडा जैसे कई स्थानिक जानवर भी हैं।

स्थान : बरंगाबारी ग्याति, बक्सा जिला, असम।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : नवंबर से अप्रैल।

कार्य समय : सुबह 6:00 बजे से दोपहर 3:00 बजे तक; प्रतिदिन खुला रहता है

प्रवेश शुल्क : आधे दिन की यात्रा के लिए, भारतीयों और विदेशियों को क्रमशः ₹ 50/व्यक्ति और ₹ 500/व्यक्ति का भुगतान करना होगा; और पूरे दिन की यात्रा के लिए, टिकट की कीमतें क्रमशः ₹ 200/व्यक्ति और ₹ 2000/व्यक्ति हैं।

 

 

  1. सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान (1987)

सुंदरबन में बड़े मैंग्रोव वन और दलदली भूमि शामिल हैं, जहाँ कई जानवर और 170 से ज़्यादा पक्षियों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। भारत में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के प्रमुख आकर्षणों में से एक प्रतिष्ठित रॉयल बंगाल टाइगर है, जो भारत का राष्ट्रीय पशु है। इसके अलावा, आप यहां खारे पानी के मगरमच्छ, चित्तीदार हिरण, जंगली सूअर, मछली पकड़ने वाली बिल्लियां, गंगा डॉल्फिन, राजा केकड़े और उड़ने वाली लोमड़ियों जैसे जानवर देख सकते हैं।

स्थान : दक्षिण 24 परगना जिला, पश्चिम बंगाल।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

परिचालन के घंटे : इस राष्ट्रीय उद्यान में पर्यटकों के लिए परिचालन के घंटे निम्नानुसार हैं:

सोमवार से शुक्रवार : सुबह 8:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक।

शनिवार : सुबह 10:00 बजे से शाम 4:00 बजे तक।

रविवार : बंद रहेगा।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 60/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 200/ व्यक्ति।

 

 

  1. नंदा देवी और फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान (1988, 2005)

630 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान अपने मनमोहक जंगल और समृद्ध जैव विविधता के लिए जाना जाता है। आप यहाँ रंग-बिरंगी तितलियाँ, पेड़-पौधे और फूल सहित कुछ अनोखे वनस्पति और जीव-जंतु देख सकते हैं।

इसके अलावा, 87 वर्ग किलोमीटर चौड़ी फूलों की घाटी आपको डेज़ी, ऑर्किड आदि जैसे खिलते अल्पाइन फूलों के मनोरम दृश्य दिखा सकती है।

स्थान : चमोली जिला, उत्तराखंड।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : मई से अक्टूबर।

कार्य समय : सुबह 8:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक; प्रतिदिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : इन पार्कों के लिए प्रवेश शुल्क इस प्रकार हैं:

नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान : भारतीयों के लिए ₹ 50/व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 150/व्यक्ति।

फूलों की घाटी : भारतीयों के लिए ₹ 150/व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 600/व्यक्ति।

 

 

  1. पश्चिमी घाट (2012)

पश्चिमी घाट पर्वत श्रृंखला में कई आरक्षित वन, राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य हैं। लगभग 1,60,000 वर्ग किलोमीटर के बड़े क्षेत्र में, पश्चिमी घाट एक जैव विविधता हॉटस्पॉट भी है, जिसमें स्तनधारियों, उभयचरों, पक्षियों, कीड़ों, मछलियों, फूल और गैर-फूल वाले पौधों आदि की कई प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इसमें वनस्पतियों और जीवों की 320 से अधिक लुप्तप्राय प्रजातियाँ भी हैं।

स्थान : केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र तक फैला हुआ है।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

 

 

  1. ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क (2014)

लगभग 1171 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैले ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क में विभिन्न प्रकार की वनस्पतियाँ और जीव-जंतु हैं। इस राष्ट्रीय उद्यान के अल्पाइन घास के मैदानों में आपको 30 से ज़्यादा विभिन्न प्रजाति के जानवर, 375 तरह की वनस्पतियाँ और 180 तरह के पक्षी देखने को मिलेंगे।

दुर्लभ जानवरों में कस्तूरी मृग, हिमालयी भूरा भालू, नीली भेड़, हिम तेंदुआ और हिमालयी ताहर आदि कुछ ही हैं।

स्थान : शमशी, हिमाचल प्रदेश,।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : मार्च से नवंबर तक।

कार्य समय : सुबह 10:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक; प्रतिदिन खुला रहता है

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 50/व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 200/व्यक्ति; भारतीय और विदेशी छात्र क्रमशः ₹ 30/व्यक्ति और ₹ 100/व्यक्ति की दर से प्रवेश टिकट ले सकते हैं।

 

 

भारत में मिश्रित यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल

कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान भारत का एकमात्र मिश्रित यूनेस्को विरासत स्थल है। इस जगह के बारे में आपको जो कुछ भी जानना चाहिए, वह यहाँ है:

 

 

  1. 43कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान (2016)

यह भारत का एक उच्च ऊंचाई वाला राष्ट्रीय उद्यान है, जो हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं के ऊबड़-खाबड़ भूभाग में स्थित है। इसके अलावा, कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान दुर्लभ वनस्पतियों और जीवों के निवास स्थान के रूप में लोकप्रिय है। इस पार्क में पाए जाने वाले विभिन्न जानवरों में सुस्त भालू, तेंदुआ, लाल पांडा, कस्तूरी मृग, हिमालयी नीली भेड़, रसेल वाइपर, हरा कबूतर, हिम कबूतर आदि बहुत लोकप्रिय हैं। लगभग 550 पक्षी प्रजातियों के साथ, यह पक्षी-दर्शन के लिए एक स्वर्ग के रूप में भी कार्य करता है।

स्थान : साक्योंग, उत्तरी सिक्किम।

 

भ्रमण के लिए आदर्श समय : सितम्बर से मध्य अक्टूबर; मार्च से मई।

कार्य समय : सुबह 6:00 बजे से शाम । 5:00 बजे तक; रविवार को छोड़कर हर दिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 350/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 560/ व्यक्ति; भारतीय छात्र ₹ 80/व्यक्ति पर टिकट बुक कर सकते हैं।

 

लेखक परिचय:-

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।

मोबाइल नंबर +91 8630778321;

वॉर्ड्सऐप नम्बर+919412300183)

भारत में एकात्म मानववाद के सिद्धांत को अपनाकर हो आर्थिक विकास संभव

भारतीय संस्कृति के अनुसार ही भारतीय आर्थिक दर्शन में भी सृष्टि की समस्त इकाईयों, अर्थात व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र एवं समष्टि को एक माला की कड़ी के रूप में देखा गया है। एकता की इस कड़ी को ही पंडित दीनदयाल जी उपाध्याय ने ‘एकात्म मानववाद’ बताया है। एकात्म मानववाद वैदिक काल से चले आ रहे सनातन प्रवाह का ही युगानुरूप प्रकटीकरण है। सनातन हिंदू दर्शन आत्मवादी है। आत्मा ही परम चेतन का अंश है।  पंडित दीनदयाल जी उपाध्याय ने समाज और राष्ट्र में भी चित्त, आत्मा, मन, बुद्धि एवं शरीर आदि का समुच्चय देखा है। अतः इस एकात्म मानववादी दर्शन के उतने ही आयाम एवं विस्तार है, जितनी मनुष्य की आवश्यकताएं हैं। इन विभिन्न आवश्यकताओं का केंद्र बिंदु अर्थ को ही माना गया है।  कौटिल्य ने अर्थशास्त्र की परिभाषा में लिखा है कि अर्थशास्त्र का मुख्य अभिप्राय, अप्राप्ति की प्राप्ति; प्राप्ति का संरक्षण तथा संरक्षित का उपभोग है। एकात्म मानववाद में भी आर्थिक व्यवहार उक्त आधारों पर ही टिके होते हैं। इस प्रकार, अर्थशास्त्र की दिशा स्वतः ही विकासवादी हो जाती है।

भारत के नागरिक पिछले लम्बे समय से पश्चिमी शिक्षा व्यवस्था में पले बढ़े हैं अतः वे भारत की पौराणिक एवं वैदिक ज्ञान परम्परा से विमुख हो गए हैं। इसी प्रकार, प्राचीन भारतीय अर्थशास्त्र एवं आर्थिक चिंतन से भी हम भारतीय इतने अधिक दूर हो गए हैं कि प्राचीन भारतीय अर्थशास्त्र को सिर्फ उक्ति एवं सिद्धांत मानने के साथ साथ अव्यवहारिक भी मानने लगे हैं। जबकि, वैदिक साहित्य में धन के 22 से अधिक प्रकारों की स्पष्ट व्याख्या की गई है, जिसमें शेयर से लेकर आय एवं मूलधन भी सम्मिलित है। प्राचीन भारत के आर्थिक चिंतन को आज यदि लागू किया जाता है तो केवल भारत ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण मानवता का कल्याण होगा, क्योंकि हिंदू अर्थशास्त्र एकात्म मानववाद पर आधारित है, जिसमें व्यक्ति अपने लिए नहीं, वरन समष्टि के लिए जीता है। इसे निम्नलिखित सूत्र के माध्यम से अधिक स्पष्ट किया जा सकता हैं –

हिंदू अर्थशास्त्र      =   व्यक्ति x परमार्थ (एकात्म मानववाद एवं त्याग)
पश्चिमी अर्थशास्त्र =   व्यक्ति x स्वार्थ   (आत्म केंद्रित एवं लाभ)

एकात्म मानववादी अर्थशास्त्र में व्यक्ति अपने एवं अपनों के स्थान पर समष्टि तथा चराचर और परमार्थ के लिए जीता है। जिसमें स्वयं के लिए मुनाफा एवं लाभ के स्थान पर दूसरों की चिंता मुख्य होती है। परंतु, इसके ठीक विपरीत पश्चिम का अर्थशास्त्र आत्मकेंद्रित व्यवहार एवं स्वार्थ पर खड़ा है।

पश्चिम के विकासवादी दर्शन का केंद्र मुनाफा, स्वार्थ एवं लाभ है। परंतु, हिंदू आर्थिक चिंतन के आधार पर खड़े एकात्म मानववाद का आधार अथवा केंद्र परमार्थ है। इसलिए एकात्म मानववादी आर्थिक विकास में विकास केवल अर्थ के लिए नहीं वरन परमार्थ के लिए है। हिंदू आर्थिक दर्शन परम्परा में विकास की अवधारणा को समग्रता में व्यक्त किया गया है। यह विकास त्रिगुण आधारित है। इस त्रिगुण में – सत, रज एवं तम सम्मिलित है। प्राचीन भारतीय चिंतन में सत्तवादी विकास श्रेष्ठ माना गया है। इस सत्तवादी विकास के तत्व हैं ज्ञान, तपस्या, सदकर्म, प्रेम एवं समत्वभाव तथा इसकी उपस्थिति सतयुग में मानी गई है। विकास का दूसरा स्वरूप रजस को माना गया। इस रजसवादी विकास के तत्व हैं अहंबुद्धि, प्रतिष्ठा, मानबढ़ाई, लौकिक, पारलौकिक सुखा मत्सर, दम्भ एवं लोभ तथा इसकी उपस्थिति त्रेतायुग में मानी गई है। इसे मानवीय और मध्यम माना गया है। इसी प्रकार, विकास का तीसरा स्वरूप तमस को माना गया है। इस तमसवादी विकास के तत्व हैं असत्य, माया, कपट, आलस्य, निंदा, हिंसा, विषाद, शोक, मोह, भय तथा इसकी उपस्थिति कलयुग में मानी गई है। इस प्रकार सत, रज एवं तम गुणों के आधार पर उक्त विकास के तीन रूपों के साथ एक मिश्रित विकास का भी मॉडल माना गया है, जिसमें रजस एवं तमस गुण मिले होते हैं और इस मॉडल की उपस्थिति द्वापर युग में मानी गई है।

इस प्रकार भारतीय चिंतन परम्परा में विकास के उक्त चार प्रारूप माने गए हैं। इन चारों प्रारूपों का उपयोग चार युगों सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग एवं कलियुग में होता पाया गया है। इसमें सबसे उत्तम सतयुगी विकास प्रारूप को माना गया है तथा सबसे अधम कलियुगी विकास प्रारूप को माना गया है। भारत में, वर्तमान खंडकाल में त्रेतायुग के रामराज्य को भी बहुत अच्छा माना गया है एवं इसके स्थापना की कल्पना की जाती रही है। पंडित दीनदयाल जी उपाध्याय ने महात्मा गांधी जी के ट्रस्टी शिप एवं हिंद स्वराज्य के विवेचन को भी अपने विमर्श में स्थान दिया है। इस प्रकार भारतीय चिंतन परम्परा का आदर्श रामराज्य है, इसमें भरत जैसे राजा एवं जनक जैसे राजा तपस्वी के रूप में राज्य करते थे। स्वयं श्रीराम धर्म की मर्यादा को अपने लिए भी लागू करते थे एवं धर्म की मर्यादा का कभी भी उल्लंघन नहीं करते थे। सदैव प्रजा एवं प्रकृति की रक्षा एवं संवर्धन करते रहते हैं। यह एक ऐसा विकास का प्रारूप है जो आज भी आदर्श है। रामराज्य की अवधारणा भी एकात्म मानववाद के आधारों पर खड़ी थी। यह शासन तथा विकास एवं व्यवस्था में सब की भागीदारी तथा सब के लिए व्यवस्था थी, जो प्रकृति आधारित विकास पर बल देती थी।

भारत में सबसे छोटी इकाई व्यक्ति पर बल दिया गया है और उसका संगठन किया गया है। भारत में व्यक्ति के स्वरूप को जिस प्रकार संगठित और एकात्म किया गया वैसा पश्चिम में नहीं हो सका है। पश्चिम में केवल भौतिक प्रगति पर ही बल दिया गया है। पूरे विश्व में आज सर्वाधिक विकसित राष्ट्र अमेरिका को माना जाता है। अमेरिका में नागरिकों की भौतिक प्रगति तो बहुत हो गई है, परंतु अमेरिका के नागरिकों में सुख, संतोष और समाधान का पूर्णतया अभाव है। अमेरिका में व्यक्ति के जीवन में परस्पर विरोध, असमाधान, असंतोष, सर्वाधिक अपराध और आत्महत्याएं बहुत बड़ी मात्रा में व्याप्त हैं। अमेरिकी नागरिकों में तीव्र रक्तचाप, हृदय रोग एवं अपराध की प्रवृत्ति बहुत अधिक मात्रा में पाई जा रही है। पूरे विश्व को प्रभावित करने की क्षमता रखने वाला अमेरिका अपने नागरिकों के लिए भौतिक समाधान से आगे बढ़कर मानसिक समाधान प्राप्त नहीं कर सका है। इस धरा पर जन्म लेने के बाद प्रत्येक व्यक्ति का अंतिम लक्ष्य आखिर है क्या? सम्भवतः सुख जो चिरंतन एवं घनीभूत हो। इतनी भौतिक प्रगति करने के बाद भी अमेरिका एवं यूरोपीय देशों के नागरिकों में समाधान व सुख का अभाव है। ईसा ने कहा था कि ‘सम्पूर्ण संसार का साम्राज्य भी प्राप्त कर लिया और यदि आत्मा का सुख खो दिया तो उससे क्या लाभ?’

भारत में छोटी से छोटी इकाई व्यक्ति संगठित और एकात्म है एवं व्यक्ति को खंडो में विभक्त समझने की बुद्धिमता प्रदर्शित नहीं की गई है। परंतु, अमेरिका के एक मनोवैज्ञानिक ने वर्णन किया है कि ‘सड़कों पर एक ऐसी बड़ी भीड़ हमेशा लगी रहती है जो आत्मविहीन, मानसिक दृष्टि से अस्वस्थ, एक दूसरे से अपरिचित और निःसंग स्थिति में है। उनका अपने ही साथ समन्वय नहीं तो दुनिया के साथ क्या होगा? व्यक्ति का समाज के साथ समन्वय नहीं। व्यक्ति भी संगठित और एकात्म इकाई नहीं। केवल भौतिक स्तर पर विचार करने के कारण वहां व्यक्ति को भौतिक एवं आर्थिक प्राणी माना गया है। यदि भौतिक आर्थिक उत्कर्ष मानव को मिले तो उससे सुख की प्राप्ति होगी, यह माना गया। किंतु भौतिक आर्थिक उत्कर्ष की चरम सीमा होने पर भी सुख का अभाव है और इसका कारण यही है कि वहां खंड खंड में विचार करने की प्रणाली है, जिसमें व्यक्ति को केवल भौतिक आर्थिक प्राणी मान लिया गया है और व्यक्ति के सभी पहलुओं को ध्यान में रखकर संगठित एवं एकात्म रूप में विचार नहीं किया गया है।

भारत के प्राचीन ग्रंथों में यह माना गया है कि मनुष्य एक आर्थिक प्राणी भी है एवं ‘आहार, निद्रा, भय, मैथुन, आर्थिक आवश्यकताओं, आदि’ की तृप्ति की बात भारत में भी कही गई है। इन जरूरतों की पूर्ति होना चाहिए, इस तथ्य को भी स्वीकार किया गया है। किंतु भारत में मनुष्य को आर्थिक प्राणी से कुछ ऊपर भी माना गया है। मनुष्य आर्थिक प्राणी के साथ साथ वह एक शरीरधारी, मनोवौज्ञानिक, राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक प्राणी भी है। भारतीय मनुष्य के व्यक्तित्व के अनेकानेक पहलू है। अतः यदि सम्पूर्ण व्यक्तित्व के सभी पहलुओं का संगठित और एकात्म रूप से विचार नहीं हुआ तो उसको सुख समाधान की अवस्था प्राप्त नहीं हो सकती। इसलिए भारत में इस दृष्टि से संगठित एवं एकात्म स्वरूप का विचार हुआ है। मनुष्य की आर्थिक एवं भौतिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर यह कहा गया है कि इन वासनाओं की तृप्ति होनी चाहिए लेकिन साथ ही यह भी कहा गया है कि इन आवश्यकताओं पर कुछ वांछनीय मर्यादा होना भी आवश्यक है। गीता के तृतीय अध्याय के 42वें श्लोक में कहा गया है कि इंद्रियां (विषयों से) ऊपर स्थित हैं, इंद्रियों से मन उत्कृष्ट है। बुद्धि मन से भी ऊपर अवस्थित है, जो बुद्धि की अपेक्षा भी उत्कृष्ट है और उससे भी अगम्य है – वही आत्मा है। अतः काम को स्वीकार करने के उपरांत भी उसे अनियत्रिंत नहीं रहने दिया गया है। काम की पूर्ति धर्म के विरुद्ध नहीं होनी चाहिए, ऐसा भारतीय शास्त्रों में कहा गया है।

प्राचीन भारत में अर्थ के महत्व को भी स्वीकार किया गया है एवं अर्थशास्त्र की रचना भी हुई है। यह माना जाता रहा है कि राज्य के समस्त नागरिकों की भौतिक आवश्यकताओं की पर्याप्त पूर्ति होनी चाहिए ताकि इसके अभाव में अपना पेट पालने के लिए व्यक्ति को 24 घंटे चिंता करने की आवश्यकता नहीं पड़े। राज्य के नागरिकों को पर्याप्त अवकाश मिल सके, जिससे वह संस्कृति, कला, साहित्य और भगवान आदि के बारे में चिन्तनशील हो सके। इस प्रकार अर्थ और काम को मान्यता देकर साथ ही यह भी कहा गया है कि एक व्यक्ति का अर्थ और काम उसके विनाश का अथवा समाज के विघटन का कारण न बने। इस दृष्टि से भारत के प्राचीन दृष्टाओं ने विशिष्ट दर्शन दिया था। उसमें विश्व की धारणा के लिए शाश्वत नियम और सार्वजनिक नियम देखे थे, उनका दर्शन किया था। व्यक्ति को विनाश से बचाने के लिए, समाज को विघटन से बचाने के लिए एवं व्यक्ति के परम उत्कर्ष को प्राप्त करने के लिए सार्वजनिक एवं सार्वदेशिक नियमों के प्रकाश में जो अवस्था उन्होंने बनायी उसके समुच्चय को धर्म कहा गया। इस धर्म के अंतर्गत अर्थ और काम की पूर्ति का भी विचार हुआ। साथ ही, प्रत्येक व्यक्ति परम सुख यानी मोक्ष प्राप्त कर सके, इसका चिंतन भी हुआ। इस प्रकार धर्म और मोक्ष के मध्य अर्थ और काम को रखते हुए चतुर्विध पुरुषार्थ की कल्पना भारत में ही की गई है। इस समन्वयात्मक, संगठित और एकात्मवादी कल्पना में व्यक्ति का व्यक्तित्व विभक्त्त नहीं हुआ। यह आत्मविहीन एवं मानसिक दृष्टि से अस्वस्थ प्राणी न बन सका। इस चतुर्विध पुरुषार्थ ने प्रत्येक व्यक्ति को अपनी शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक बौद्धिक क्षमताओं के अनुसार अपना जीवनादर्शन चुनने का अवसर दे दिया और साथ ही व्यक्तित्व को अखंड बनाए रखा।

यह स्मरण रखना चाहिए कि जहां व्यक्ति के व्यक्तित्व रूपी विभिन्न पहलू संगठित नहीं है या व्यक्ति संगठित नहीं है, वहां समाज संगठित कैसे हो सकता है? इस संगठित आधार पर ही भारत में व्यक्ति से परिवार, समाज, राष्ट्र, मानवता और चराचर सृष्टि का विचार किया गया। एकात्म मानवदर्शन इसी का नाम है और आज भारत में आर्थिक विकास को एकात्म मानववाद के सिद्धांत का अनुपालन करते हुए ही गति दी जानी चाहिए।

प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
के-8, चेतकपुरी कालोनी,
झांसी रोड, लश्कर,
ग्वालियर – 474 009
मोबाइल क्रमांक – 9987949940

ई-मेल – prahlad.sabnani@gmail.com

तीर्थंकर पार्श्वनाथ के जन्म और निर्वाण कल्याणक पर जारी होंगे स्मारक सिक्के

उदयपुर । जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के 2900वें जन्म कल्याणक एवं 2800वें निर्वाण कल्याणक महोत्सव के उपलक्ष्य में 25 दिसंबर 2024 को भारत सरकार द्वारा क्रमशः 900 और 800 रुपये के स्मारक सिक्के जारी किए जाएंगे। 18 नवंबर 2024 को भारत के राजपत्र में जारी अधिसूचना के अनुसार 44 मिलीमीटर के वृत्ताकार ये सिक्के शुद्ध चांदी के होंगे। सिक्के के अग्रभाग में ‘सत्यमेव जयते’ उद्घोष युक्त राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तंभ एवं सिक्के का मूल्य 900 और 800 रुपये अंकित होंगे। सिक्के के पृष्ठभाग के मध्य में तीर्थंकर पार्श्वनाथ की मूर्ति की छवि एवं परिधि में हिंदी और अंग्रेजी में ‘भगवान पार्श्वनाथ का 2900वाँ जन्म कल्याणक’ एवं ‘भगवान पार्श्वनाथ का 2800वाँ निर्वाण कल्याणक’ अंकित होंगे। हिंदी व अंग्रेजी के नाम के बीच वर्ष ‘2024’ अंकित होगा।

साहित्यकार डॉ. दिलीप धींग ने बताया कि 2900 वर्ष पूर्व वाराणसी में जन्मे ऐतिहासिक तीर्थंकर पार्श्वनाथ का 2800 साल पहले सौ वर्ष की आयु में सम्मेद शिखर पर्वत पर निर्वाण हुआ था। उनकी आयु सौ वर्ष होने से पूर्णांक को इंगित करने वाले उनके दोनों कल्याणक एक ही वर्ष में हैं। डॉ. धींग ने बताया कि 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर का पूरा परिवार तीर्थंकर पार्श्वनाथ का उपासक था। भारतीय चित्रकला, मूर्तिकला और मंदिर शिल्प के विकास में भगवान पार्श्वनाथ के चित्रों, मूर्तियों और मंदिरों का अतुलनीय योगदान है।
श्रमण डॉ. पुष्पेंद्र ने बताया कि भगवान पार्श्वनाथ ने तत्कालीन समाज में व्याप्त हिंसा व आडंबर का प्रतिवाद किया था। उनकी शिक्षाएं अहिंसा, सत्य, अचौर्य, और अपरिग्रह में आध्यात्मिकता और नैतिकता का मार्ग दिखाती हैं। इन सिक्कों के माध्यम से जैन धर्म की अमूल्य धरोहर और भारतीय संस्कृति की विविधता को विश्व स्तर पर प्रसारित करने का अवसर मिल सकेगा। इस ऐतिहासिक अवसर को यादगार बनाने के लिए जैन समाज भारत सरकार एवं वित्त मंत्रालय के प्रति आभार व्यक्त करता है। ऐसे प्रयत्न हमारे धर्म और श्रेष्ठ परंपराओं का सम्मान बढ़ाने में निमित्त एवं भविष्य की पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनते हैं।
श्रमण डॉ. पुष्पेंद्र ने बताया कि 25 दिसम्बर 2024 को भगवान पार्श्वनाथ के सम्मान में डाक टिकट भी जारी किये जाएंगे। 25 दिसम्बर को पौष बदी दशम होने से देश दुनिया में भगवान पार्श्वनाथ का जन्म कल्याणक श्रद्धा-भक्ति के साथ मनाया जाएगा। इसी अवसर पर सरकार सिक्के और डाक टिकट जारी करेगी।

जी एंटरटेनमेंट के बेहतर भविष्य के लिए पुनीत गोयनका ने लिया ये बड़ा फैसला

मुंबई।  जी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज लिमिटेड (ZEEL) के मैनेजिंग डायरेक्टर (Managing Director) पुनीत गोयनका ने अपने इस पद से इस्तीफा दे दिया है। कंपनी में अब उन्हें चीफ एग्जिक्यूटिव ऑफिसर (CEO) के तौर पर नियुक्त किया गया है। दरअसल, यह निर्णय बोर्ड और नामांकन व वेतन समिति की 15 नवंबर 2024 की बैठक में लिया गया। कंपनी ने 18 नवंबर 2024 को कारोबार समाप्त होने के बाद उनके इस्तीफे को मंजूरी दी और उसी दिन सीईओ के तौर पर उनकी नियुक्ति की।

बता दें कि श्री  पुनीत गोयनका ने बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स को अपनी भूमिका छोड़ने और चीफ एग्जिक्यूटिव ऑफिसर (CEO) के रूप में परिचालन संबंधी जिम्मेदारियों पर पूरी तरह ध्यान केंद्रित करने की पेशकश की थी।

कंपनी के अनुसार, पुनीत गोयनका कंपनी के भविष्य को मजबूत बनाने के लिए उसके प्रदर्शन और मुनाफे के स्तर को बेहतर बनाने में अपना पूरा समय समर्पित करना चाहते हैं, लिहाजा उन्होंने कंपनी की भविष्य की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए अपने समय का सर्वोत्तम उपयोग सुनिश्चित करने की इच्छा व्यक्त की है।

इस नई रणनीति के तहत, वह प्रमुख परिचालन बाजारों में अपनी उपस्थिति को और मजबूत करेंगे, ताकि उपभोक्ताओं और विज्ञापनदाताओं की जरूरतों को बेहतर ढंग से समझा जा सके।

इस संदर्भ में पुनीत गोयनका ने कहा, “कंपनी एक मजबूत आधार पर खड़ी है और भविष्य के लिए एक मजबूत नींव तैयार करने के लिए सभी जरूरी कदम उठा रही है। अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए हमें मुख्य व्यवसायों पर केंद्रित समय और ऊर्जा की आवश्यकता है, जो परिचालन क्षमता के माध्यम से ही संभव है। कंपनी और उसके सभी हितधारकों के दीर्घकालिक हितों को ध्यान में रखते हुए, मैंने बोर्ड से CEO के रूप में परिचालन पर ध्यान केंद्रित करने का अनुरोध किया है। मैं बोर्ड का आभारी हूं, जिसने मेरे प्रयासों को सराहा और इस दिशा में मेरा समर्थन किया।”

गोयनका के इस कदम का समर्थन करते हुए जी के चेयरमैन आर. गोपालन ने कहा, “चीफ एग्जिक्यूटिव ऑफिसर (CEO) के रूप में कंपनी के परिचालन पहलुओं को बेहतर बनाने के लिए पुनीत गोयनका का दृष्टिकोण सराहनीय है। उनकी विशेषज्ञता और व्यावसायिक समझ बेजोड़ है और हमें विश्वास है कि वह कंपनी और उसके सभी हितधारकों को उनकी नई भूमिका में अपार मूल्य प्रदान करेंगे। बोर्ड की ओर से, मैं उन्हें भविष्य के लिए शुभकामनाएं देता हूं।”

वहीं, नामांकन और पारिश्रमिक समिति की सिफारिशों के आधार पर, मुकुंद गलगली को डिप्टी चीफ एग्जिक्यूटिव ऑफिस (Deputy CEO) के रूप में प्रमोट किया गया है। गलगली इस नई भूमिका के साथ-साथ चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर (CFO) के रूप में भी काम करेंगे और CEO पुनीत गोयनका को रिपोर्ट करेंगे। यह नियुक्ति तत्काल प्रभाव से लागू कर दी गई है।

बोर्ड ने प्रबंधन को एक डिप्टी चीफ एग्जिक्यूटिव ऑफिस (Deputy CFO) की नियुक्ति करने की भी सलाह दी थी, ताकि प्रबंधन टीम को और मजबूत किया जा सके।

इसके अलावा, बोर्ड कंपनी की मानव संसाधन (HR) नीतियों, प्रक्रियाओं और वेतन संरचनाओं की समीक्षा जारी रखे हुए है, जिन्हें विलय प्रक्रिया के दौरान बदला गया था।

प्रधानमंत्री की वैश्विक लोकप्रियता और सम्मान

लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा की सीटें कम रह जाने पर देश में निराशा का वातावरण था और विरोधी दल गठबंधन सरकार अब गई तब गई का कयास लगाकर इस निराशा को बढ़ाया करते थे किंतु हरियाणा विधान सभा चुनावों ने देश को उस निराशा से उबार लिया। विपक्ष की सरकार को लेकर की जा रही सभी राजनैतिक बयानबाजियों के मध्य प्रधानमंत्री नरेंद्र  मोदी  भारत को विकसित राष्ट्र बनाने की लिए संकल्पवान होकर एक सच्चे कर्मयोगी की तरह अपने काम में लगे हैं और विदेश यात्राएं भी कर रहे हैं । विदेश यात्राओं में प्रधानमंत्री मोदी  भारत की विकास यात्रा का वर्णन करते हुए विभिन्न  राष्ट्रों के साथ द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत बनाने का सफल प्रयास कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री मोदी तीसरी बार शपथ ग्रहण के साथ ही त्वरित गति से अशांत वैश्विक वातावरण को शांत करने के अभियान में लग गये हैं। पूरा विश्व भारत की ओर देख रहा है क्योंकि ऐसा मन जा रहा है कि नरेन्द्र मोदी ही एकमात्र ऐसे नेता हैं जो  रूस- यूक्रेन युद्ध का समापन करवा सकते हैं और इजराइल और अरब देशों के बीच बढ़ रहे तनाव को भी कम करवा सकते हैं।अपने तीसरे कार्यकाल में प्रधानमंत्री  मोदी वैश्विक नेताओं के साथ लगातार संपर्क में हैं।अमेरिका में रिपब्लिकन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की शानदार वापसी से इस बात को और बल मिला है क्योंकि मोदी और ट्रंप के व्यक्तिगत सम्बन्ध बहुत अच्छे हैं।

प्रधानमंत्री मोदी की वैश्विक लोकप्रियता का नुमन इसी से लगाया जा सकता है कि अभी वे नाइजीरिया के दौरे पर हैं और उनको को नाइजीरिया सरकार ने अपने  सर्वोच्च राष्ट्रीय  पुरस्कार  “ग्रैंड कमांडर आफ द आर्डर आफ द नाइजर“ से सम्मानित किया है। इससे पूर्व यह सम्मान केवल ब्रिटिश महारानी एलिजाबेथ को ही मिला था। इसके साथ साथ उन्हें नाइजीरिया की राजधानी अबुजा की चाबी भी सौंपी गई है। प्रधानमंत्री मोदी का ही यह प्रयास था कि अफ्रीकी देशों के विकास की गति को तीव्र बनाने के लिए  उन्हें जी -20 समूह में शामिल कराया गया।नाइजीरिया के समाचार पत्रों में मोदी जी की यात्रा छाई हुई है यही हाल ब्राजील और गुयाना का भी है।

प्रधानमंत्री मोदी को विगत सप्ताह ही कैरेबियाई देश डोमिनिका ने अपना सर्वोच्च सम्मान “डोमिनिका अवार्ड ऑफ आनर“ प्रदान करने की भी घोषणा की है। यह सम्मान कोविड -19 महामारी के दौरान डोमिनिका के लिए मोदी के योगदान और दोनों देशों के बीच साझेदारी को मजबूत करने में उनके योगदान की मान्यता के रूप में  देखा जा रहा है। डोमिनिकन सरकार का कहना है कि फरवरी 2021 में प्रधानमंत्री मोदी ने डोमिनिक को एस्ट्राजेनेका कोविड -19 वैक्सीन की 70 हजार खुराक की आपूर्ति की थी।

प्रधानमंत्री मोदी को 14 देशों से 17 सम्मान मिल चुके हैं। इन सर्वोच्च नागरिक सम्मानों के अलावा उन्हें  प्रसिद्ध वैश्विक संगठनों की ओर से भी कई प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता अरब देशों में  भी है।अप्रैल 2016 में सऊदी अरब ने उन्हें अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान देकर सम्मानित किया था और 2016 में ही अफगानिस्तान सरकार ने अफगानिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान स्टेट आर्डर आफ गाजी अमीर अमानुल्लाह खान से सम्मानित किया गया।

2018 में प्रधानमंत्री मोदी ने फिलिस्तीन यात्रा की और उन्हें ग्रैंड कालर ऑफ़ द स्टेट ऑफ फिलीस्तीन अवार्ड से सम्मानित किया गया जो जो विदेशी गणमान्य व्यक्तियों के लिए फिलिस्तीन का सर्वोच्च सम्मान है।2019 में प्रधानमंत्री मोदी को यूएई के सर्वोच्च सम्मान आर्डर ऑफ़ जायद अवार्ड से सम्मानित किया गया। यह सम्मान भारत और  यूएई के मध्य घनिष्ठ संबंधों का प्रमाण है।रूस ने अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान  आर्डर आफ सेंट एंड्रयू  द एपोस्टल से भी सम्मानित किया। 2019 में मालदीव ने भी मोदी जी को आर्डर आफ द डिस्टिंविश्वड रूल आफ मिशन इज्जुददीन से सम्मानित किया।

संयुक्त राज्य अमेरिका ने  2020 में लीजन आफ मेरिट से सम्मानित किया जो असाधारण सेवा और उपलब्धियों के लिए अमेरिकी सशस्त्र बलों द्वारा दिया जाने वाला सम्मान है। उन्हें मिस्र की सरकार ने भी सम्मानित किया। भूटान ने दिसंबर 2021 में पीएम मोदी को अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान आर्डर ऑफ द डुक ग्यालपो से सम्मानित किया। यह पुरसकार मार्च 2024 में भूटान की यात्रा के दौरान प्रदान किया गया। वहीं 13 जुलाई  2023 को फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रॉ की उपस्थिति में पीएम मोदी को फ्रांस के सर्वोच्च पुरस्कार ग्रैंड  क्रास ऑफ द लीजन ऑफ आनर से सम्मानित किया गया। प्राप्त होने वाले प्रत्येक सम्मान को  प्रधानमंत्री मोदी 140 करोड़ देशवासियों का समर्पित करते हैं और कहते हैं कि यह 140 करोड़ देशवासियों का सम्मान है।

यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व व उनके प्रति सम्मान का ही परिणाम था कि कतर में फांसी की सजा पाए आठ नागरिकों की सकुशल रिहाई हो सकी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व का ही प्रतिफल है कि आज कोई भी देश भारत के प्रति नकारात्मक विचार अधिक दिनों तक नहीं रख पा रहा है। यदि किसी देश की सरकार या कोई नेता भारत अथवा भारत की संस्कृति के विरुद्ध षड्यंत्र रचता है तो वह अंधकार युग में प्रवेश कर जाता है। वर्तमान समय में बांग्लादेश और कनाडा इसका उदाहरण हैं।

अपनी यात्राओ के माध्यम से प्रधानमंत्री मोदी सांस्कृतिक संबंधों को सुदृढ़ बनाने का सफल प्रयास करने के साथ साथ भारत के  पर्यटन उद्योग को सुदृढ़ करने और निवेश बढ़ाने के लिए भी विदेशी नागरिकों को भारत आमंत्रित करते हैं। अपनी ताजा यात्राओें में प्रधानमंत्री मोदी विदेशी अतिथियों को महाकुंभ- 2025 में आने का निमंत्रण दे रहे हैं और बता रहे हैं कि प्रयगराज के पास ही अयोध्या में श्री रामजन्मभूमि का भव्य मंदिर भी है तो उपस्थित समुदाय  सहर्ष ही भारत माता की जय के नारे लगाने लगता है। प्रधानमंत्री मोदी के करिश्माई व्यक्तित्व ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को अलग थलग कर दिया है।अमेरिका ने भारत की 1440 वह कलाकृतियां वापस कर दी हैं जिन्हें कभी चुराकर बाजार में बेचा गया था। भारत सरकार ब्रिटेन में गिरवी रखा गया सोना वापस लाने में सफल रही है। भारत की ताकत ने ही  भारत और चीन के मध्य शांति  वार्ता का रास्ता खोला है। आज प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत की वसुधैव कुटुम्बकम की भावना की धमक पूरे विश्व में सुनाई पड़ रही है। यह देखकर आश्चर्य हो सकता है कि भारत में विरोधी दलों के अनर्गल प्रचार के बाद भी प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों से आज विश्व भर में सनातन का सूर्योदय हो रहा है ।

प्रेषक – मृत्युंजय दीक्षित
फोन नं. -9198571540