Monday, November 25, 2024
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छत्तीसगढ़ के बचेली वन क्षेत्र में प्राचीन वनस्पतियों का जीवंत संग्रह

रायपुर। छत्तीसगढ़ वन विभाग ने हाल ही में पारिस्थितिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण वन क्षेत्र की पहचान की है, जो दंतेवाड़ा वन मंडल के बचेली वन परिक्षेत्र में स्थित है और बीजापुर के गंगालूर वन परिक्षेत्र तक फैला हुआ है। इस विशेष वन क्षेत्र में कई प्राचीन वनस्पतियों की प्रजातियां पाई गयीं है, जो छत्तीसगढ़ राज्य की असाधारण जैव विविधता को प्रदर्शित करता है। इस क्षेत्र को वैज्ञानिकों और वन अधिकारियों ने जैव विविधता के लिए अत्यधिक समृद्ध और महत्वपूर्ण माना है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह खोज न केवल इस क्षेत्र के पर्यावरणीय महत्व को दर्शाती है, बल्कि भविष्य में वन अनुसंधान और संरक्षण के प्रयासों को भी नई दिशा देगी।

मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय ने इस क्षेत्र की जैव विविधता को संरक्षित करने और वन अनुसंधान को बढ़ावा देने पर जोर दिया है। उन्होंने कहा कि इस खोज से राज्य को पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में एक नई पहचान मिलेगी। सरकार इस क्षेत्र में शोध और अध्ययन के लिए विशेष प्रोत्साहन देगी, ताकि इन दुर्लभ प्रजातियों को संरक्षित रखा जा सके। वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, यह दुर्लभ वन क्षेत्र विशेष रूप से उन पौधों की प्रजातियों का घर है, जो करोड़ों साल पहले के समय में अस्तित्व में थीं। अब यह क्षेत्र न केवल वैज्ञानिक अध्ययन के लिए बल्कि पर्यटन के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन सकता है।

समुद्र तल से 1,240 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर स्थित यह वन क्षेत्र सबट्रॉपिकल ब्रॉड-लीव्ड हिल फॉरेस्ट (फॉरेस्ट टाइप 8) के रूप में वर्गीकृत किया गया है। खास बात ये है की यह छत्तीसगढ़ का सबसे ऊंचाई वाला वन क्षेत्र हो सकता है। जबकि राज्य में मुख्य रूप से मॉइस्ट एंड ड्राय डेसिड्युअस फॉरेस्ट्स (फॉरेस्ट टाइप 3 एंड 5) के लिए जाना जाता है, यह विशेष वन पैच ब्रॉड-लीव्ड हिल फॉरेस्ट एक नया पारिस्थितिक आयाम प्रस्तुत करता है।

यहां की वनस्पति पश्चिमी घाट की वनस्पतियों से काफी हद तक मेल खाती है। कांगेर घाटी के जंगलों की तरह, यह क्षेत्र भी विभिन्न प्रकार की प्रजातियों से समृद्ध है। इसके अलावा, मानवजनित दबाव की कमी होने कारण इन प्रजातियों को बिना किसी बाधा के पनपने में मदद मिली है। इस क्षेत्र को एक ’जीवित संग्रहालय’ माना जा रहा है, क्योंकि यहां कई प्राचीन पौधों की प्रजातियां संरक्षित हैं, जो संभवतः प्रागैतिहासिक काल, यहां तक कि डायनासोर युग से संबंधित हो सकती हैं। यहां पाई गई कुछ वनस्पतियों की प्रजातियों को छत्तीसगढ़ में पहली बार दर्ज किया गया माना जा रहा है।

इस विशेष वन का तीन दिवसीय सर्वे अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (विकास एवं योजना) श्री अरुण कुमार पांडे, आईएफएस के नेतृत्व में किया गया। इस सर्वे दल में पर्यावरणविदों और वन अधिकारियों के साथ-साथ आईएफएस परिवीक्षाधीन अधिकारी श्री एस. नवीन कुमार और श्री वेंकटेशा एम.जी. भी शामिल थे। इसके अलावा, वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के उप निदेशक डॉ. राजेंद्र प्रसाद मिश्रा और पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर के स्कूल ऑफ लाइफ साइंसेज के पूर्व विभागाध्यक्ष श्री एम.एल. नायक भी सर्वे टीम का हिस्सा थे।
सर्वे के दौरान, टीम ने दुर्लभ और प्राचीन वनस्पतियों की कई प्रजातियों का दस्तावेजीकरण किया है, जिनमें ऐल्सोफिला स्पिनुलोसा (ट्री फर्न), ग्नेटम स्कैंडन्स, ज़िज़िफस रूगोसस, एंटाडा रहीडी, विभिन्न रुबस प्रजातियाँ, कैंथियम डाइकोकूम, ओक्ना ऑब्टुसाटा, विटेक्स ल्यूकोजाइलन, डिलेनिया पेंटागाइना, माचरेन्जा साइनेंसिस, और फिकस कॉर्डिफोलिया शामिल हैं। इनमें से माचरेन्जा साइनेंसिस प्रजाति संभवतः छत्तीसगढ़ के केवल इसी वनीय पहाड़ी क्षेत्र में पाई गई है।

प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं वन बल प्रमुख श्री व्ही. श्रीनिवास राव, आईएफएस ने इस विशेष वन क्षेत्र के बारे में कहा कि राज्य के मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय एवं वन मंत्री श्री केदार कश्यप के मार्गदर्शन में छत्तीसगढ़ वन विभाग राज्य की समृद्ध जैव विविधता के संरक्षण के लिए लगातार प्रयासरत रहा है। बचेली का ये बेहद विशेष वन क्षेत्र राज्य वन विभाग की जैव विविधता के संरक्षण के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

बचेली का ये विशेष वन भविष्य के अनुसंधान एवं इको-टूरिज्म के विकास के लिए महत्वपूर्ण संभावनाएं प्रस्तुत करता है। वन विभाग इस क्षेत्र की छिपी हुई जैव विविधता को और गहराई से समझने के लिए अधिक विस्तृत सर्वेक्षण करने की योजना बना रहा है।

(लेखक जनसंपर्क विभाग छत्तीसगढ़ में उप संचालक हैं) 

बोरदा विद्यालय में साहित्य और पर्यटन प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता

 कोटा /  राजकीय राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय बोरदा ( इटावा ) की प्राचार्य स्नेह लता ने बताया कि विद्यालय में साहित्य और पर्यटन विषय पर एक अक्टूबर को आयोजित प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार सुनिल सुमन,कक्षा 12 के सुनील सुमन प्रथम, साक्षी मीणा द्वितीय और निखिल नागर तृतीय स्थान पर रहे। विजेताओं को बाल साहित्य मेले के समापन समारोह में पुरस्कृत किया जाएगा। कार्यक्रम संस्कृति -साहित्य व पर्यटन फोरम, कोटा के संयुक्त तवावधान में किया गया।
कार्यक्रम प्रभारी राम सिंह मीना ने बताया कि प्रतियोगिता में कक्षा 9 से 12 वीं तक के 86 छात्र – छात्राओं ने रुचि पूर्वक भाग लिया। विद्यार्थियों को साहित्य और पर्यटन के बारे में जानकारी भी दी गई।

ओड़िशा के बहुआयामी व्यक्तित्व स्व.प्राणनाथ पटनायक की स्मृति में आयोजन

भुवनेश्स्थावर। नीय जयदेवभवन सभागार में ओड़िशा के बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी स्व.प्राणनाथ पटनायक का राज्य स्तरीय 54वां श्राद्ध दिवस मनाया गया।समारोह के मुख्य अतिथि के रुप में ओड़िशा के राज्यपाल मान्यवर रघुवर दास,सम्मानित अतिथि के रुप में मान्यवर न्यायाधीश विश्वनाथ रथ, कटक उच्च न्यायालय तथा श्रीमंदिर रत्नभण्डार अनुसंधान कमेटी,श्री जगन्नाथ मंदिर पुरी,दीपक मालवीय,राष्ट्रीय उपाध्यक्ष लोकसेवक मण्डल,संबाद ओड़िया के सम्पादक सौम्यरंजन पटनायक,प्राणनाथ मेमोरियल कमेटी की कार्याकारी अध्यक्षा डॉ. अर्चना नायक तथा मेमोरियल कमेटी के सचिव दिलीप हाली।

मंचस्थ सभी मेहमानों ने सबसे पहले स्व.प्राणनाथ पटनायक की तस्वीर पर पुष्प अर्पण किया तथा दीप प्रज्ज्वलन किया। श्री रघुवर दास, मान्यवर,राज्यपाल,ओड़िशा के अपने ओजस्वी संबोधन में यह संदेश दिया कि हमारे युवा प्राणनाथ बाबू के बहु आयामी जीवन से प्रेरणा लें।स्वागत भाषण में डॉ.अर्चना नायक ने सभी का स्वागत करते हुए बताया कि स्व.प्राणनाथ पटनायक जी अपने जीवन काल में सच्चे मानवतावादी थे जो पालकी में बैठकर अपनी शादी में नहीं गये अपितु पैदल चलकर गये। वहीं न्यायाधीश विश्वनाथ रथ ने बताया कि स्व.प्राणनाथ पटनायक अपने विवाह में अपनी पत्नी की ओर से कुछ भी नहीं लिया बल्कि एक समाज ओडिया न्यूजपेपर ही लिए वह भी विवाह के दिन का जो वहां सामने उन्हें दिखाई दिया।
दीपक मालवीय ने बताया कि आज प्राणनाथ पटनायक की जीवनी ओड़िशा के पाठ्यक्रम में शामिल की जानी चाहिए जिससे ओड़िशा की भावी पीढ़ी उनके आदर्शों पर चल सके। सौम्य रंजन पटनायक ने बताया कि आज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में नेतृत्व की कमी है जो प्राणनाथ पटनायक के पदचिन्हों पर चलकर ही ओड़िशा की युवा पीढ़ी प्राप्त कर सकती है।दिलीप हाली ने अपने संबोधन में स्व.प्राणनाथ पटनायक के पदचिह्नों पर चल रहे उनके सुपुत्र वरीष्ठ पत्रकार प्रदोष पटनायक को उनका सच्चा अनुयायी बताया।

 उन्होंने कहा कि जो काम प्राणनाथ पटनायक ने अपने जीवनकाल में किया वहीं काम कीट-कीस के संस्थापक महान शिक्षाविद् प्रो.अच्युत सामंत भी कर रहे हैं।अवसर पर डॉ प्रभास आचार्य,नृसिंह चरण साहू,नयना दास,समीर राउत तथा प्रद्युम्न शतपथी को उनके अतुलनीय विभिन्न सेवाओं के लिए 2024 प्राणनाथ पटनायक अवार्ड से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का संचालन डॉ मृत्युंजय रथ ने किया।

हाड़ोती के वन्य जीवों से साक्षात करती प्रदर्शनी

कोटा /  वन्यजीव हमारी अमूल्य धरोहर हैं। देश में अनेक वन्य जीव प्रजातियां लुप्त होने के कगार पर हैं,और कई दुर्लभ हो गई हैं। ऐसे में हर वर्ष वन विभाग  इनके संरक्षण के लिए जागरूकता फैलने हेतु एक अक्टूबर से वन्यजीव सुरक्षा सप्ताह मानता है। इसी ध्येय के लिए कोटा की कला दीर्घा में वन्यजीव प्रदर्शनी का आयोजन किया गया है।
 हाड़ोती के विभिन्न स्थानों पर पाए जाने वाले पैंथर, भालू, भेड़िया, टाईगर, उदबिलाव,मगरमच्छ, घड़ियाल, पक्षी, तितलियां, सर्दियों में आने वाले प्रवासी पक्षियों के प्राकृतिक परिवेश में शौकिया फोटोग्राफर्स द्वारा लिए गए छाया चित्रों से इन दिनों सजी है एक आकर्षक प्रदर्शनी कोटा के क्षत्रविलास उद्यान स्थित कला दीर्घा में। हो व्यक्ति और बच्चें वन्य जीवों से प्रेम करते हैं उनके लिए प्रातः 10.00 बजे से सांय 5. 00 बजे तक एक सप्ताह तक प्रदर्शनी लगी हैं।
प्रदर्शनी के साथ ही  ईश्वरमूल, मरोड़फली, केवड़ा, हड्डजोड़, सौंफ, तुलसी, वरूण, आरारोट आदि 57 प्रकार के औषधीय और 35 वर्ष पुराने बोनसाई पौधों और वन्य जीवों पर समय समय पर जारी डाक टिकट भी प्रदर्शित किए गए हैं। प्रथम दिन मंगलवार को विभिन्न विद्यालयों के करीब 350 विद्यार्थियों ने प्रदर्शनी का कोतूहल के साथ अवलोकन किया।
डीसीएफ अनुराग भटनागर ने  मौजूद दुर्लभ पेड़ जैसे जरूल, समुद्रफल आदि की पहचान कराई । उन्होंने बताया कि कबूतर (रॉकपिजन) विदेशी प्रजाति का पक्षी है जो हमारे यहां पाए जाने वाले देशी पक्षी गौरैया, रोबिन, बुलबुल, नीलकण्ठ, कठफोड़वा आदि पक्षियों का वास, भोजन और स्थल छीन रहा है जिससे ये चिड़ियाएं हमारे गांव और शहरों से विलुप्त होती जा रही हैं।
उप वन संरक्षक मुकुन्दरा हिल्स टाईगर रिर्जव मूथू एस ने बताया कि विदेशी पेड़ जैसे यूकेलिप्टस, लेन्टाना, पारथेनियम आदि इन्वेजिव पेड़-पौधे जंगल के लिए ठीक नहीं है, ये पेड़ जहां भी होते हैं वहां उसके आसपास अन्य देशी प्रजाति के पेड़-पौधों को पनपने नहीं देते। साथ ही, जमीन से पानी भी अधिक मात्रा में सोख लेते हैं। उन्होंने बताया कि हमें सिर्फ हमारे देश के पेड़ों को लगाना चाहिए विदेशी प्रजाति के पेड़-पौधे जो इन्वेजिव है उन्हें नहीं लगाएं। उन्होंने गिद्ध के बारे में बताया कि ये स्केवन्जर है यानी मरे हुए पशुओं को खाकर हमारे पर्यावरण को साफ सुथरा रखते है जिससे मरे हुए जानवर में पाए जाने वाले विषाणु एन्थ्रेंक्स आदि वातावरण में न फैल सकें।
 प्रदर्शनी में ए. एच, जैदी, सुनील सिंघल, विजय माहेश्वरी, बनवारी यदुवंशी, रविंद्र तोमर, कार्तिक वर्मा, हर्षित शर्मा, तुषार, उप वन संरक्षक मुकुन्दरा हिल्स टाईगर रिर्जव मूथू एस,
मनोज शर्मा, बुधराम जाट, डी. के. शर्मा, हरफूल शर्मा, चंद्रशेखर श्रीवास्तव, अंशु शर्मा, कपिल खंडेलवाल, उर्वशी शर्मा, तपेश्वर भाटी, दिलावर कुरेशी, ओम प्रकाश बैरवा आदि वन्य जीव फोटोग्रफर्स के लगभग 250 चित्र प्रदर्शित किए गए हैं। अधिकांश चित्र अभेड़ा, आलनिया, जवाहर सागर सेंकचुरी, भेंसरोड गढ़ सेंकचुरी, सोरसन संरक्षित क्षेत्र, मुकंदरा, चंद्रेसल, मानसगांव, गामछ, सावन भादो, गेपरनाथ, गरडिया महादेव, राजपुरा, जमुनिया, उदपुरिया क्षेत्रों के हैं।
वैद्य सुधींद्र शृंगी, पृथ्वी पाल सिंह द्वारा औषधीय पौधों और फिरोज खान द्वारा बोंसई पोधों की प्रदर्शनी लगाई गई। भुवनेश सिंघल, राकेश सोनी और फिरोज खान द्वारा डाक टिकटों में वन्य जीव प्रदर्शनी लगाई गई।

अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव कैसे होता है

2024 का चुनाव मंगलवार, 5 नवंबर 2024 को है। विजेता जनवरी 2025 से शुरू होकर व्हाइट हाउस में चार साल का कार्यकाल पूरा करेगा।  राष्ट्रपति के पास कुछ कानून स्वयं पारित करने की शक्ति है, लेकिन अधिकांशतः उन्हें कानून पारित करने के लिए कांग्रेस के साथ मिलकर काम करना पड़ता है। विश्व मंच पर, अमेरिकी नेता को विदेश में देश का प्रतिनिधित्व करने और विदेश नीति संचालित करने की पर्याप्त स्वतंत्रता है।

दोनों मुख्य पार्टियां राज्य प्राइमरी और कॉकस नामक मतदान की एक श्रृंखला आयोजित करके राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को नामित करती हैं, जहां लोग चुनते हैं कि वे आम चुनाव में पार्टी का नेतृत्व किसको करना चाहते हैं।

रिपब्लिकन पार्टी में, पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने प्रतिद्वंद्वियों पर भारी बढ़त के साथ अपनी पार्टी का समर्थन हासिल किया। मिल्वौकी, विस्कॉन्सिन में एक पार्टी सम्मेलन में वे आधिकारिक रिपब्लिकन उम्मीदवार बन गए। ट्रम्प ने ओहियो के सीनेटर जेडी वेंस को अपना उप-राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुना।

डेमोक्रेट्स की ओर से, राष्ट्रपति जो बिडेन के बाहर होने के बाद उपराष्ट्रपति कमला हैरिस दौड़ में शामिल हो गईं और कोई अन्य डेमोक्रेट उनके खिलाफ खड़ा नहीं हुआ। उनके साथी मिनेसोटा के गवर्नर टिम वाल्ज़ हैं ।

राष्ट्रपति पद के लिए कुछ स्वतंत्र उम्मीदवार भी चुनाव लड़ रहे हैं।

इनमें से एक प्रमुख नाम रॉबर्ट एफ कैनेडी जूनियर का था, जो पूर्व राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी के भतीजे थे, लेकिन उन्होंने अगस्त के अंत में अपना अभियान स्थगित कर दिया और ट्रम्प का समर्थन कर दिया।

डेमोक्रेट्स एक उदार राजनीतिक दल है, जिसका एजेंडा मुख्यतः नागरिक अधिकारों, व्यापक सामाजिक सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपायों के लिए प्रयास करना है।

रिपब्लिकन अमेरिका में रूढ़िवादी राजनीतिक दल है। इसे GOP या ग्रैंड ओल्ड पार्टी के नाम से भी जाना जाता है, यह पार्टी कम करों, सरकार के आकार को छोटा करने, बंदूक रखने के अधिकार और आव्रजन तथा गर्भपात पर कड़े प्रतिबंधों के पक्ष में है।

विजेता वह व्यक्ति नहीं होता जिसे पूरे देश में सबसे ज़्यादा वोट मिलते हैं। इसके बजाय, दोनों उम्मीदवार 50 राज्यों में होने वाले मुक़ाबलों में जीतने के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं।

प्रत्येक राज्य में एक निश्चित संख्या में तथाकथित निर्वाचक मंडल के वोट होते हैं जो आंशिक रूप से जनसंख्या पर आधारित होते हैं। कुल 538 सीटों पर चुनाव होने हैं, और विजेता वह उम्मीदवार होता है जो 270 या उससे अधिक सीटें जीतता है।

दो राज्यों को छोड़कर सभी राज्यों में विजेता-सभी-लेता है नियम लागू है, इसलिए जो भी उम्मीदवार सबसे अधिक वोट जीतता है, उसे राज्य के सभी निर्वाचक मंडल के वोट दे दिए जाते हैं।

ज़्यादातर राज्य एक या दूसरी पार्टी की तरफ़ ज़्यादा झुके हुए हैं, इसलिए आम तौर पर ध्यान एक दर्जन या उससे ज़्यादा राज्यों पर होता है जहाँ दोनों में से कोई भी जीत सकता है। इन्हें बैटलग्राउंड या स्विंग स्टेट के नाम से जाना जाता है ।

यह संभव है कि कोई उम्मीदवार राष्ट्रीय स्तर पर सबसे अधिक वोट जीत ले – जैसा कि 2016 में हिलेरी क्लिंटन ने किया था – लेकिन फिर भी वह निर्वाचक मंडल द्वारा पराजित हो जाए।

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया थोड़ी जटिल है और यह सीधे आम जनता के वोटों से नहीं होती, बल्कि “इलेक्टोरल कॉलेज” नामक प्रणाली के माध्यम से संपन्न होती है। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव एक मिश्रित प्रणाली है जिसमें जनता का वोट तो महत्वपूर्ण होता है, लेकिन अंतिम निर्णय इलेक्टोरल कॉलेज के माध्यम से होता है। यह प्रणाली जटिल है, लेकिन अमेरिका की संघीय प्रणाली के अनुसार इसे व्यवस्थित किया गया है ताकि सभी राज्यों को समान महत्व मिले।  आइए इसे सरल तरीके से समझते हैं:

1. चुनाव की तारीख

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव हर चार साल में नवंबर के पहले मंगलवार को होता है, अगर वह दिन 1 तारीख न हो। उदाहरण के लिए, चुनाव 3 नवंबर को हो सकता है, लेकिन 1 नवंबर को नहीं।

2. चुनावी प्रक्रिया के चरण

(1) प्राइमरी चुनाव और कॉकस:

राष्ट्रपति चुनाव के पहले, विभिन्न राजनीतिक दल (मुख्यतः डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन) अपने उम्मीदवारों का चयन करने के लिए “प्राइमरी” और “कॉकस” नामक प्रक्रिया का आयोजन करते हैं।

  • प्राइमरी: यह एक तरह का चुनाव होता है जहां वोटर अपने पसंदीदा उम्मीदवार को वोट देते हैं।
  • कॉकस: कुछ राज्यों में लोग इकट्ठा होकर खुली बहस के बाद उम्मीदवार चुनते हैं।

(2) नेशनल कन्वेंशन:

प्राइमरी और कॉकस के बाद, हर पार्टी एक राष्ट्रीय सम्मेलन (National Convention) आयोजित करती है, जहां पार्टी का अंतिम उम्मीदवार तय किया जाता है। उम्मीदवार का चयन पार्टी के प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है, और उस पार्टी के उप-राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार की भी घोषणा की जाती है।

(3) जनरल इलेक्शन (सामान्य चुनाव):

नवंबर में होने वाले इस चुनाव में जनता सीधे मतदान करती है। हालांकि, ये वोट राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को सीधे नहीं मिलते, बल्कि “इलेक्टर्स” (Electors) को मिलते हैं। इन इलेक्टर्स का चयन पहले ही कर लिया जाता है, और ये वही लोग होते हैं जो बाद में राष्ट्रपति का चुनाव करेंगे।

3. इलेक्टोरल कॉलेज प्रणाली

अमेरिकी चुनाव में इलेक्टोरल कॉलेज एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह प्रणाली इस तरह काम करती है:

  • अमेरिका के 50 राज्यों और वाशिंगटन डी.सी. के कुल 538 इलेक्टर्स होते हैं।
  • हर राज्य के पास इलेक्टर्स की एक संख्या होती है, जो उस राज्य की जनसंख्या पर निर्भर करती है। उदाहरण के लिए, कैलिफ़ोर्निया के पास सबसे ज्यादा इलेक्टर्स (54) हैं, क्योंकि उसकी जनसंख्या सबसे बड़ी है।
  • चुनाव जीतने के लिए किसी भी उम्मीदवार को कम से कम 270 इलेक्टोरल वोट चाहिए होते हैं, जो कुल इलेक्टर्स की आधी से ज्यादा संख्या है।

कैसे मिलते हैं इलेक्टोरल वोट?

  • जब जनता अपने राज्य में वोट करती है, तो वे उस राज्य के इलेक्टर्स के लिए वोट कर रहे होते हैं। उस राज्य में जो उम्मीदवार सबसे ज्यादा वोट प्राप्त करता है, उसे उस राज्य के सभी इलेक्टर्स के वोट मिल जाते हैं (सिवाय कुछ राज्यों के, जहां वोट विभाजित हो सकते हैं)।
  • उदाहरण के लिए, अगर फ्लोरिडा में किसी उम्मीदवार को सबसे ज्यादा वोट मिले, तो उसे फ्लोरिडा के सभी इलेक्टोरल वोट मिलेंगे।

4. इलेक्टोरल वोट की गणना

दिसंबर में, ये चुने हुए इलेक्टर्स मिलते हैं और अपने वोट डालते हैं। फिर, जनवरी में कांग्रेस द्वारा इन वोटों की गिनती की जाती है और आधिकारिक तौर पर राष्ट्रपति के नाम की घोषणा की जाती है।

5. शपथ ग्रहण समारोह

जनवरी के तीसरे सप्ताह में, नए राष्ट्रपति का शपथ ग्रहण समारोह (Inauguration Ceremony) होता है। इसके बाद, वह आधिकारिक तौर पर राष्ट्रपति पद की जिम्मेदारी संभालते हैं।

6. महत्वपूर्ण बातें:

  • लोकप्रिय वोट और इलेक्टोरल वोट: जरूरी नहीं कि जो उम्मीदवार देशभर में सबसे ज्यादा जनता का वोट (लोकप्रिय वोट) हासिल करे, वही राष्ट्रपति बने। इलेक्टोरल वोट निर्णायक होते हैं। ऐसा कई बार हुआ है कि किसी उम्मीदवार ने लोकप्रिय वोट जीता हो, लेकिन इलेक्टोरल कॉलेज में हार गया हो।
  • Swing States (स्विंग स्टेट्स): कुछ राज्य जैसे फ्लोरिडा, ओहायो, पेनसिल्वेनिया आदि को स्विंग स्टेट कहा जाता है, क्योंकि ये राज्य हर चुनाव में किसी भी पार्टी की तरफ जा सकते हैं। इन राज्यों में किसे जीत मिलेगी, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल होता है और ये चुनाव परिणाम को प्रभावित करते हैं।

#चित्रनगरी _संवाद_मंच_में_सबरंग_काव्य_संध्या

चित्रनगरी संवाद मंच मुंबई की सबरंग काव्य संध्या रविवार 6 अक्टूबर 2024 को प्रवासी हेल्थ एवं वेलनेस सेंटर गोरेगांव पूर्व में संपन्न हुई। एक तरफ़ गीत-ग़ज़लों की लय पर लोग झूमते दिखाई पड़े तो दूसरी तरफ़ हास्य व्यंग्य की फुहारों में भीग कर लोगों ने ख़ूब ठहाके भी लगाए। कवि सुभाष काबरा की व्यंग्य रचना ‘झोले’ सुनकर लोगों ने कई बार तालियां बजाईं।
सबरंग काव्य संध्या में शिरकत करने वाले रचनाकार थे- सुमीता केशवा, प्रमिला शर्मा, पारोमिता षडंगी, दमयंती शर्मा, आशु शर्मा, केपी सक्सेना ‘दूसरे’, गुलशन मदान, क़मर हाजीपुरी, आरिफ़ महमूदाबादी, यशपाल सिंह यश और सौरभ दुबे। गायिका रीना गुसाईं ने निदा फ़ाज़ली की ग़ज़ल और आकाश ठाकुर ने राजेश ऋतुपर्ण की ग़ज़ल गुनगुनाई।
शुरुआत में वैलनेस सेंटर की ओर से गिरीश शाह ने स्वास्थ्य संबंधी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां साझा कीं। इस काव्य संध्या में प्रतिष्ठित समाजसेवी कृष्ण कुमार झुनझुनवाला, सतीश तुलसकर, विष्णु मुरारका तथा प्रवासी हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर के कई सम्माननीय श्रोता मौजूद थे।
‘धरोहर’ के अंतर्गत देवमणि पांडेय ने #गोपालदास_नीरज के चुनिंदा मुक्तक पेश किये। लीजिए आप भी नीरज जी के मुक्तकों का लुत्फ़ उठाइए-
(1)
सर्द सूने उदास होंठों पर
तेरी यादों के गीत यूं आए
जैसे आंचल किसी सुनयना का
रास्ते पर बदन से छू जाए
(2)
दर्द जब तेरा पास होता है
अश्क पलकों पर यूं मचलते हैं
जैसे वर्षों से भीगे जंगल में
काफ़िले जुगनुओं के चलते हैं
(3)
ख़ुशी जिस ने खोजी, वो धन ले के लौटा
हँसी जिस ने खोजी, चमन ले के लौटा
मगर प्यार को खोजने जो गया वो
न तन ले के लौटा, न मन ले के लौटा
(4)
हर सुबह शाम की शरारत है
हर ख़ुशी अश्क़ की तिज़ारत है
मुझसे न पूछो अर्थ तुम यूँ जीवन का
ज़िन्दग़ी मौत की इबारत है
(5)
काँपती लौ, ये स्याही, ये धुआँ, ये काजल
उम्र सब अपनी इन्हें गीत बनाने में कटी
कौन समझे मेरी आँखों की नमी का मतलब
ज़िन्दगी गीत थी पर जिल्द बंधाने में कटी
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इस बार हम मनाएँगे राममय दीपावली

प्रभु बिलोकि हरषे पुरबासी।
जनित वियोग बिपत्ति सब नासी।।

-मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचन्द्रजी दुराचारी रावण का वधकर जब अयोध्या लौटे थे तो उनके अयोध्या आगमन की खुशी में अयोध्यावासियों ने अपने-अपने घरों में घी के दीये जलाकर पहली बार दीपावली मनाई थी। इसीलिए इस वर्षः2024 की दीपावली(आगामी 31 अक्टूबर को मनाई जानेवाली) राममय भारतवर्ष की दीपावली होगी क्योंकि श्रीराम शाश्वत पुरुष हैं जिनके जीवन का उद्देश्य आदर्श और मर्यादा की स्थापना करना रहा जो दीपों के पर्व दीपावली से  त्रेता युग से शुरु हुआ। वास्तव में दीपावली जगमग करते दीपों का पर्व है जिसे अंधकार पर प्रकाश की विजय के रुप में,पाप पर पुण्य की विजय के रुप में ,दुराचार पर सदाचार की विजय के रुप में ,असत्य पर सत्य की विजय के रुप में तथा नकारात्मक सोच पर सकारात्मक सोच की विजय के रुप में प्रतिवर्ष सम्पूर्ण भारतवर्ष समेत विश्व के अनेक देशों में रह रहे भारतीय हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं।

भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने विगत 22 जनवरी, 2024 को अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के दिन देशवासियों से अपने-अपने घरों में श्रीराम ज्योति जलाने और दीपावली मनाने की अपील की थी। उस दिन राम की पैड़ी पर एक लाख दीपक जलाए गए थे जबकि अयोध्या के 8,000 छोटे-बड़े मंदिरों में 10,000 से अधिक दीपक जलाए गए थे।यही नहीं,राम पहाड़ी और रामनगरी की गलियों में 5 लाख दीपक जलाए गए थे।गौरतलब है कि 2023 में अयोध्या में दीपोत्सव के दौरान 22.23 लाख दीपक जलाए गए थे और 2024 में राममय भारतवर्ष की दीपावली के पावन अवसर पर अयोध्या में दीपोत्सव के लिए 25 लाख दीपक जलाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है जिससे यह स्पष्ट होता है कि इस वर्ष राममय भारतवर्ष की दीपावली भारतीयता की संदेशवाहिका के रुप में मनाई जाएगी। इसलिए आगामी  31 अक्टूबर को दीपावली के दिन कुल 25 लाख मिट्टी के दीये जलाने का लक्ष्य सिर्फ अयोध्या में रखा गया है ।यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदीजी कहते हैं कि आर्यावर्त्त में भगवान श्रीराम आ गये हैं।

2024 की राममय भारतवर्ष की दीपावली प्रत्येक भारतवासी को दीपोत्सव मनाकर अपने-अपने अंतःकरण को शुद्ध करने का संदेश देती है। राममय भारतवर्ष को एक विकसित राष्ट्र बनाने का संदेश देती है। राममय भारतवर्ष राष्ट्र के प्रति सच्ची आस्था,विश्वास,राष्ट्र के शक्तिबोध और सौंदर्य बोध की संदेशवाहिका है।राममय भारतवर्ष के प्रत्येक नागरिक के लिए राष्ट्रीय प्रतिष्ठा को बचाने का संदेश देगी,राममय भारतवर्ष के प्रताप की जय घोष करने का संदेश देगी,राममय भारतवर्ष के चंहुमुखी विकास के प्रवाह को सतत बढ़ाने का संदेश देगी, उसे प्रभावकारी बनाने में सहयोग देने का संदेश देगी और राममय भारतवर्ष के प्रत्येक नागरिक को सच्चे देशभक्त ,ईमानदार तथा चरित्रवान नागरिक बनने की वास्तविक संदेश होगी। भारतवर्ष की सामूहिक नेति, नीति, नित्यता, निरंतरता,विशालता,तथा विश्व स्तरीय व्यापकता की पावन संदेश देगी।

अब तो राममय भारतवर्ष सफलता का  है,सिद्धि का है,उत्कर्ष का है,विकसित भारतवर्ष के उदय का है। ऐसे में, राममय भारतवर्ष की 2024 की दीपावली कहती है कि किसी भी सच्चे भारतवासी के जीवन में अब निराशा का कोई स्थान नहीं है। राममय भारतवर्ष की दीपावली जहां हमें सानंद दीपोत्सव मनाने का संदेश देती है वहीं अपने-अपने परिवेश की साफ-सफाई तथा स्वच्छता का भी संदेश देती है।

(लेखक भुवनेश्वर में रहते हैं व ओड़िशा की सांस्कृतिक साहित्यिक व सामाजिक गतिविधियों के साथ धार्मिक व  अध्यात्मिक विषयों पर शोधपूर्ण लेखन करते हैं) 

स्वामीनारायण छपिया मंदिर परिसर के प्रसादी स्थल

उत्तर भारत के अवध प्रान्त (उत्तर प्रदेश) के अयोध्या धाम से कुछ ही किमी की दूरी पर गोंडा नामक एक अत्यन्त पिछड़े जिले में यह पावन भूमि स्थित है। स्वामी नरायन छपिया, गोंडा जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूरी पर मनकापुर तहसील में पड़ता है। यहां स्वामी नरायन मंदिर प्रशासन यात्रियों के रहने व खाने के लिए खास इंतजाम करता है। परिसर में ही वातानुकूलित कक्ष के साथ ही अन्य इंतजाम भी हैं। छपिया स्वामी नारायण संप्रदाय के प्रर्वतक घनश्याम महाराज की जन्म और बचपन की कर्मस्थली है।

हर साल कार्तिक पूर्णिमा और चैत्र पूर्णिमा (कार्तिक और चैत्र मास की पूर्णिमा) पर मेला लगता है, जिसमें दूर-दूर से लाखों लोग आते हैं। अस्थायी दुकानें 5 किलोमीटर के दायरे में फैली होती हैं।

हर साल दुनिया के हर हिस्से से तीर्थयात्री इस स्थान पर आते हैं, जहां बुनियादी सुविधाएं जैसे उचित सड़क और रेल संपर्क, संचार के साधन, हेलीपैड, पानी और जल निकासी कनेक्शन, आवास और भोजन की सुविधा आदि उपलब्ध हैं।

जन्मस्थली परिसर के प्रमुख आकर्षण

1. छपिया का मुख्य मंदिर

मंदिर 20 एकड़ भूमि पर फैला हुआ है और इसमें किसी भी समय 25,000 तीर्थयात्रियों के लिए व्यवस्था है। तीन शिखर वाला यह मुख्य मंदिर की छवि निराली है। दूर से आने पर प्रवेश भाग का यह मुख्य आकर्षण है।तीन मंडप में दस छवियां प्रदर्शित होती हैं। बाएं मंडप में भगवान कुंज बिहारी और बासुदेव नारायण विराजमान हैं। मध्य भाग के मंडप में भक्ति माता,धर्म पिता, श्री घन श्याम महाराज और आदि आचार्य श्री अयोध्या प्रसाद जी महाराज विराजमान हैं। तीसरे सबसे दाएं तरफ़ के मंडप में रेवती बलदेव जी और हरिकृष्ण जी महाराज की सुन्दर झांकी अलंकृत होती है। सभी छवियों के शीर्ष पर इनके नाम हिंदी और गुजराती भाषा में विद्युत रोशनी द्वारा फ्लैस होते रहते है। लोग स्वयं दर्शन कर अपने को धन्य करते हैं।ना कोई पुजारी इन छवियों का स्पष्ट पहचान बताता है और ना ही किसी प्रकार के चढ़ावे को प्रेरित करता है।भक्त अपनी इच्छा से दानपात्र में भेट अर्पित करने को स्वतंत्र है।

2. घनश्याम का धर्मभक्ति भवन:

स्वामीनारायण की जन्मस्थली पर स्थित एक सुंदर स्मारक बना हुआ है। यहां पहले धर्मभक्ती का भवन था।1830 में स्वामी नारायण के निधन के बाद 1863 में आचार्य श्री अयोध्याप्रसादजी महाराज ने इस स्थान पर एक मंदिर बनवाया था। बाद में, 47 वर्षों के बाद 1910 में आचार्य श्री पुरुषोत्तमप्रसादजी महाराज ने एक और बड़ा मंदिर बनवाया।इसका संगमरमर से पुनर्निर्माण किया जा रहा है, यह परियोजना आचार्य श्री तेजेंद्रप्रसादजी महाराज ने 2004 में शुरू की थी। इसे धर्मभक्ति का भवन कहा जाता है ।

      संगमरमर से सजा कमरा भूतल पर है। मंदिर का यह भाग में श्री हरि का जन्म स्थान है। यहां ठाकुर जी के लीला चरित्र, बाल लीला दर्शन तथा  तत्कालीन  घर गृहस्थी के प्रयोग में लाए गए वस्तुएं प्रदर्शित की गई हैं। यहां तत्कालीन भारत के ग्राम्य वातावरण की सुंदर छवि हृदय की गहराइयों में अतीत के सादे जीवन की जीवंत झांकी प्रस्तुत करती है। शुद्धमन से दर्शन करने पर दिव्य अनुभूति तथा मन में अदभुत शान्ति मिलती है।

    23 जुलाई 2024 अमृत विचार की विज्ञप्ति के अनुसार उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पर्यटन स्थल के रुप मे सवारने और विकसित करने की योजना चला रही है।

विकास कार्य के लिए 22.18 करोड रुपए की धनराशि स्वीकृत की गई है। राज्यपाल ने शासन के प्रस्ताव को मंजूरी देते हुए 8 करोड़ रुपए की पहली किस्त 23 जुलाई 2024 को जारी कर दी है।

कार्यदायी संस्था सी एंड डी एस ने इस स्थल के विकास के लिए 24.85 करोड़ रुपये की डिमांड की थी। इस प्रस्ताव को मंजूरी देते हुए प्रदेश सरकार ने इस स्थल को सजाने संवारने के लिए 22.18 करोड़ रुपये की धनराशि स्वीकृत की है और पहली किश्त के रूप में 8 करोड़ रुपये का बजट जारी कर दिया है।

नूतन भव्य जन्मस्थान भवन

पूरी दुनिया को मानवता व अध्यात्म का संदेश देने वाले स्वामी नारायण सम्प्रदाय के आराध्य देव बाल स्वरूप घनश्याम  प्रभु की जन्मस्थली छपिया में नूतन भव्य जन्म स्थान स्मारक भवन का निर्माण पूरा हो गया है। यह भवन अपने आप में पूरी दुनिया में अनूठा स्मारक है, जो अपनी नक्काशी व स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है। इस भवन की विशेषता यह है कि इसमें 36 गुणे 36 का गर्भगृह बिना खम्भे के निर्मित है। एक लाख घन फुट श्वेत मकराना संगमरमर से बने चार मंजिला वाले स्मारक के निर्माण में तीस करोड़ रुपये की लागत लगी है।

मंदिर के महंत ब्रह्मचारी स्वामी वासुदेवानंद जी महराज और ब्रह्मचारी स्वामी हरि स्वरूपानंद महाराज ने बताया कि भव्य जन्मभूमि स्मारक का शिलान्यास मोटा महाराज तेजेन्द्र प्रसाद के संकल्प से सन 2006 में नर नारायण देव गादीपति आचार्य कौशलेन्द्र प्रसाद महाराज ने किया था। मंदिर की नींव मेटल से तैयार की गई है। जन्मभूमि स्मारक का निर्माण गुजरात के सोमपुरा जय डिक्स आर्ट ने किया है। आर्किटेक्ट सुरेश भावेश और कन्हैया लाल की देखरेख में निर्माण चला। महंत स्वामी ने बताया कि जन्मभूमि स्मारक का निर्माण मंदिर सम्प्रदाय के हरिभक्तों  सहयोग से किया गया है।

स्मारक की विशेषताएँ

चार मंजिले भवन में एक लाख घन फुट संगमरमर पत्थरों से निर्माण किया गया है। संगमरमर पत्थर गुजरात सोमपुरा से मंगवाया गया। स्मारक भवन में 800 खम्भे, 1500 कमान, 100 बड़ी खिड़कियां, 51 झरोखा, 151 छत, पूर्व उत्तर व पश्चिम दिशा में 4500 बड़ी मूर्तियां एवं 2500 छोटी मूर्तियां, तीन सीढ़ियां गौ माता गोमती के स्वरूप की 201 मूर्तियां, 3300 भगवान के बाल चरित्र स्वरूप का निर्माण, सूर्य रूप शिव रूप रुद्र रूप व नीलकंठ वर्णी धर्मकुल भक्तिकुल स्वरूप संगीतकार मुद्रा वाले संत गणपति चौकीदार 3000 हाथी, 200 गाय स्वरूप स्वर्ण सुकसैया स्वर्ण मुख्य द्वार, स्वर्ण कलश, स्वर्ण ध्वजदंड, स्वर्ण सिंहासन, सूतिका गृह का कलात्मक निर्माण किया गया है।

किस तल पर क्या है

नूतन जन्म स्थान स्मारक भवन के विभिन्न तलों का अलग-अलग स्वरूप दिया गया है।

भूतल-

इस मंदिर के प्रवेश द्वार के मध्य एक पतले गलियारे से सोपान से उतर कार प्रवेश करने पर जन्मभूमि गर्भ गृह अपनी दिव्य आभा प्रसारित करता है।

प्रथम तल-

इस मंदिर के प्रवेश द्वार के मध्य एक पतले गलियारे के आजू बाजू दोनो

तरफ सोपान से इस भाग में प्रवेश करने पर बाल स्वरूप घनश्याम प्रभु का मनभावन विग्रह का दर्शन होता है।

द्वितीय तल-

प्रथम तल के भाग में प्रवेश करके सोपान के माध्यम से द्वितीय तल पर पहुंचा जा सकता है। इसे छप्पर पलंग शयन खंड नाम से जाना जाता है।

तृतीय तल-

द्वितीय तल के बाद सीढ़ियों से तृतीय

प्रसाद भंडार तल पर पहुंचा जा सकता है।

चतुर्थ तल- संग्रहालय

तृतीय तल के बाद सीढ़ियों से चतुर्थ तल पर पहुंचा जा सकता है।इस तल पर

भगवान द्वारा उपयोग में लायी गयी वस्तुओं का संग्रहालय बनाया गया है।

स्वामीनारायण मंदिर की विशेषताएं

स्वामीनारायण मंदिर, जो स्वामीनारायण संप्रदाय के आध्यात्मिक संस्थानों की एक प्रमुख स्थली है, विभिन्न कारणों से प्रसिद्ध है। यहां कुछ मुख्य कारणों को निम्नांकित किया गया है –

1.आध्यात्मिक महत्व: स्वामीनारायण मंदिर एक आध्यात्मिक स्थल है जहां संप्रदाय के अनुयाय अपने आध्यात्मिक उन्नति के लिए आते हैं। यहां प्रवचन, पूजा, ध्यान और धार्मिक आयोजनों का आयोजन होता है।

2. स्थापत्य शैली की श्रेष्ठता: स्वामीनारायण मंदिरों की विशेषता उनके आकर्षक स्थापत्य शैली में होती है। इन मंदिरों की निर्माण में भारतीय और स्थानीय स्थापत्य कला के अंशों का उपयोग किया जाता है और इसलिए वे कला और संस्कृति के प्रतीक माने जाते हैं।

3. सेवा और सामाजिक कार्य: स्वामीनारायण मंदिर सेवा और सामाजिक कार्यों को महत्व देते हैं। इन मंदिरों में विभिन्न सामाजिक परियोजनाओं को संचालित किया जाता है, जैसे शिक्षा, आरोग्य, पेयजल, वन संरक्षण, विधवा कल्याण, ग्राम विकास आदि।

4. संप्रदायिक समागम: स्वामीनारायण मंदिरों में लोग अलग-अलग धर्मों और संप्रदायों से आकर्षित होते हैं। यहां सभी लोगों का स्वागत किया जाता है और धार्मिक तथा सामाजिक एकता को प्रमोट किया जाता है।

5. प्रशासनिक नियमितता: स्वामीनारायण मंदिरों के प्रशासनिक नियमितता का ध्यान रखा जाता है जो उन्हें व्यवस्थित और सुविधाजनक बनाता है। इससे लोगों को विश्राम का मौका मिलता है और उन्हें शांति और सकारात्मक वातावरण का अनुभव करने का अवसर मिलता है।

 ये कुछ मुख्य कारण हैं जो स्वामी नारायण मंदिर को प्रसिद्ध बनाते हैं। इन मंदिरों का महत्वपूर्ण आयोजन और उनकी सेवाओं के कारण लोग इन्हें आध्यात्मिकता, शांति और सेवा के प्रतीक के रूप में मान्यता देते हैं।

 

3.प्रसादी की छतरी

(इमली का चबूतरा)

जन्मस्थली का धर्मभक्ति भवन के सामने एक इमली का वृक्ष था जिस पर मिट्टी का चबूतरा बना हुआ था। इस पर धर्म पिता रोज पूजा अर्चना करते थे। इसी स्थान पर घन श्याम महाराज ने अनेक लीलाएं की है।

एक दिन इमली के नीचे बेदी पर बैठे थे । देवों द्वारा इसी स्थान पर घन श्याम महाराज को अगणित देव कुमकुम और सुनहले रंग के रेशम का धागा लेकर टीका की रस्म करने आए थे। देव गण बाल प्रभु को टीका लगाते थे। वहां पर तीन मन कुमकुम एकत्र हो गया था जो लोगों के आश्चर्य कुतुहल का कारण बन गया था।

एकबार धर्मपिता द्वारा तुलसी के पत्ते पूजा के लिए मागे गए। उस समय प्रभु ने इमली के पत्ते को लाकर पिता को दे दिया। वे इमली की जगह तुलसी का वृक्ष दिखा दिया। इमली को तुलसी रूप में बदल कर चमत्कार दिखाने पर सभी लोग आश्चर्य चकित हो गए।

एक दिन कर्ण छेदन के समय मां इसी चबूतरे पर बालक को लेकर बैठी। जब विधि प्रारम्भ हुआ तो प्रभु मां की गोद से अदृश्य होकर इसी वृक्ष पर चढ़ गए। उनके बड़े भाई राम प्रताप इमली पर चढ कर उन्हें उतारने गए। वे पुनः मां के गोद में आ गए कुछ समय बाद राम प्रताप नीचे आ गए तो घन श्याम फिर इमली के पेड़ पर दिखाई दिए और मां की गोद में भी दिखाई दिए। वे मां से गुड़ मांगे। उसे वे खाते जा रहे हैं और कर्ण छिदवाते जा रहे हैं। ऐसे अनन्त चरित इस इमली के वृक्ष के नीचे हुए हैं। वर्तमान समय में वृक्ष नहीं है? इस स्थान पर छतरी बनी हुई है।

4. गंगाजल वाला कुंवा

धर्म भक्ति घनश्याम भवन के भूतल कोरिडोर और प्रथम तल के प्रवेश द्वार का बाएं तरफ यह दिव्य कूप दूर से ही परिलक्षित होता है। इस पर ऊंची मुडेरी बनी हूई है। यह लोहे के जाली से ढका हुआ है। इसमें एक हैंड पंप भी लगा हुआ है। जिससे जल निकाल कर श्रद्धालु आचमन भी करते हैं और अपने साथ बोतल में भरकर घर भी ले जाते हैं। प्रभु के चरणों से स्पर्शित गंगाजल से अधिक पवित्र है। गंगा जी और यमुना जी सोने के पात्र में जल लाकर भगवान को स्नान करवाई थी। ऐसा भाभी को दिखाई दिया था। इस सेवा से खुश होकर भगवान ने कहा था कि गंगाजी को नारायण घाट साबरमती गंगा में तथा यमुनाजी को गढहा धेला की नदी में स्थपित करूंगा। ऐसा आशीर्वाद वचन दिया था।

एक बार की बात है भक्ति माता अपने पुत्र घनश्याम को बैठा उन्हें अपने भाई की बेटी बलवंता बाई को सौप कर रसोई में खाना बनाने चली गई थी। बलवंता बच्चे को वहीं छोड़ कर अपने घर चली गई थी। घनश्याम गंगाजल वाले कुंए में गिर गए थे। पाताल लोक से सहस्त्र फंड वाले शेष नाग आकर बालक के ऊपर अपने फंड से सुरक्षा घेरा बना लिए थे। उसी समय भक्ति माता खोजते खोजते कुंए पर आ गई। भाई ने कहा कि बालक कुंए के पत्थर पर बैठे थे कुंए में ना गिरे हों। भक्ति माता ने देखा कि घनश्याम पानी के ऊपर बैठा है। वह अत्यंत खुशी में राम प्रताप भाई को भी बुला लीं।

उस समय राम प्रताप और धर्म देव कुवे के चबूतरे पर बैठे हुए थे। भक्ति माता के साथ जब तीनों ने झांका तो वहां प्रकाश पुंज में घन श्याम शेषशैय्या पर विराजमान थे। लक्ष्मी जी पैर दबा रही थी। अनन्त पार्षद स्तुति कर रहे थे। इसे देख लोग हर्षित हो गए। उसी समय धर्म भक्ति को वृंदावन वाले श्री कृष्ण भगवान का दर्शन हुआ। यह बात उन्हें याद आई।

इसके बाद घनश्याम ने हाथ बढ़ाया। माता भक्ति उन्हें बाहर खींच ली। ऐसा दृश्य इस कुंए में दिखा था। ये बात पूरे गांव में फैल गई। धर्म देव के घर और आंगन का ये महातीर्थ स्वरुप कुंवा आज भी अखण्ड रूप में लोगों को दर्शन दे रहा है।

5. नारायण सरोवर

स्वामी नारायण मंदिर छपिया धाम के ठीक सामने पूरब दिशा में श्री स्वामी नारायण मंदिर घनश्याम भवन के पास पवित्र नारायण सरोवर स्थित है। नारायण सरोवर वह झील है जहाँ स्वामी नारायण स्नान किया करते थे । जिसमें अनेक बार घनश्याम प्रभु ने लीला की है। इसमें स्नान करplने और इसके तट पर जप तप और श्राद्ध करने से 68 तीर्थ यात्रा का पुण्य अर्जित होता है। इस पवित्र नारायण सरोवर में स्नान करने वाले मनुष्य को भौतिक पापों से छुटकारा मिल जाता है।

किंवदंती है कि इस सरोवर की स्थापना त्रेता युग में कश्यप ऋषि व माता अदिति की तपस्या से प्रसन्न हो कर स्वयं नारायण ने की थी। कहते हैं कि त्रेता युग के महान ऋषि कश्यप व उनकी धर्म पत्नी अदिति ने साक्षात नारायण को पुत्र रूप में प्राप्त करने के लिए गोनार्द( गोण्डा) की पावन धरती छपिया धाम के इस स्थान पर कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर जब भगवान उन्हें दर्शन देने के लिए प्रकट हुए और वरदान मांगने को कहा तो सबसे पहले कश्यप व अदिति ने सभी 68 तीर्थों का जल लाकर इस स्थल पर एक सरोवर का निर्माण करने का वरदान मांगा।

एक अन्य विवरण में कहा गया है    कि धर्म देव अपने पुत्रों के साथ नारायण सरोवर गए थे। इस समय पानी कम था। मछली और अन्य जल के जीवों को मरता देख कर धर्म देव के मन में दया आ गई । वे बोले, भगवन अभी वर्षा मे देर है। ये जीव गर्मी से मर रहे हैं। अपने पिता का संकल्प देखकर घनश्याम महराज (नारायण) ने अपनें दाएं अंगूठे से पृथ्वी को दबाकर पाताल गंगा को प्रकट किया और सभी 68 तीर्थों के साथ इसकी स्थापना की।स्वयं नारायण द्वारा स्थापित किये जाने से इस सरोवर का नाम नारायण सरोवर पड़ा।

धर्मदेव उस प्रवाह को ऊंचा उछलता देखकर आश्चर्य चकित हो गए। हे दादा आपके अंतःकरण को देखकर पाताल घाट से गंगा जी को हमने ही बुलाया है। आप की जब तक इच्छा हो तब तक यहां पर रहने दें। श्री हरि की बात सुनकर धर्म देव अति प्रसन्न होकर बोले तीन धनुष पानी हो जाय तो अच्छा है।

इस तरह नारायण सरोवर में पानी भर जानें से जय जयकार होने लगा। हजारों प्यासे पशु पक्षी भगवान का प्रसादी मानकर तत्काल आकर अपनी प्यास बुझाई। अपनी अपनी वाणी में प्रभु को खुश करने लगे।

 इनमें से कई तोता मैना चतुर प्राणियों को देखकर घन श्याम महराज ने कहा, हे दादा इन तोतों में तोते का रुप धारण करके शुकदेव जी ने अपने स्वरूप में आकर हमारे दर्शन किए हैं।

यह सुन कर तोता रूपी शुकदेव जी धर्म कुंवर के पास आकर बैठ गए। उस तोते को अपने हाथ में लेकर पूरी शरीर पर हाथ फेरते हुए वे बोले, हे शुकदेव जी, आप फिर सत्संग में आना। आपको शुकमुनि का नाम रखकर हम अपने पास सदैव रखेंगे।

यह कह कर तोते को छोड़ दिए। सभी के सामने तत्काल तोता अदृश्य हो गया। ऐसा देख कर धर्म देव आदि जो तालाब पर आएं थे,सभी आश्चर्य चकित हो गए। नारायण सरोवर में जो व्यक्ति स्नान करेगा वह 68 तीर्थ में स्नान करने का फल प्राप्त करेगा।

स्वामी नारायण संप्रदाय के लोग पवित्र जल-निकाय में स्नान करके पापों से मुक्ति पाने के लिए यहाँ आते हैं। अपने पिता को इसकी महिमा बताते हुए प्रभु ने कहा था, “नारायण सरोवर आदि की महिमा शेष शारदा आदि करोड़ों कल्प तक कहें तो भी महिमा का पार नहीं पा सकते हैं।”

6. नारायण सरोवर के किनारे स्थित भूतों वाला पीपल का पेड़

चोरों और भूतों के प्रति दयालु भाव रखने वाले धर्मदेव के घर और नारायण सरोवर के पास ही फलों और फूलों की एक खेती की जाती थी। गांव के कुछ शरारती लोग उस खेती के फलों को चुराकर खाना पसंद करते थे। कटहल के पर निवास करने वाले भूतों ने इन शरारती चोरों को दण्ड दिलवाया और भूतों को मुक्ति हेतु

घन श्याम प्रभु ने बद्रिकाश्रम भिजवा दिया।

धर्मदेव के आंगन में एक कटहल का पेड़ था। वर्षा ऋतु आरम्भ होने के पूर्व में ही इस पर फल लग जाते हैं। वर्षा काल में ये पकते थे। घनश्याम प्रभु को कटहल बहुत प्रिय है। प्रभु की सेवा हेतु यह पेड़ बहुत फल देता था।

एक रात्रि की बात है। आकाश बादलों से घिर गया और वर्षा होने लगी थी। धर्म देव राम प्रताप भाई और घन श्याम घर के अन्दर सो रहे थे। उस समय बहुत से कटहल के फल पकते थे। ऐसे ही दो-तीन षडयंत्रकारी लोग सुबह-सुबह कटहल के फल चुराने के लिए इस खेती में घुस गए। जैसे ही उन्होंने कटहल के फलों को छुआ, वैसे ही धर्मदेव एक पानी का घड़ा और बबूल के पेड़ से काटा हुआ एक दातून लेकर वहां पहुंचे। रामप्रतापभाई और युवा घनश्याम अपने पिता धर्म देव घर में सो रहे थे।चोरों को अच्छा अवसर मिला। वे धर्म देव के घर आए। इसके बाद चोर छिप छिपकर कटहल के पेड़ से फल तोड़ कर ढेर लगा लिए। इसके बाद फल लेकर चोर प्रस्थान किए।

चोर कटहल का गट्ठर बना कर धर्म पिता के घर के बाहर आ गए। ये लोग नारायण सरोवर के किनारे जा रहे थे। वहां पीपल के पेड़ पर भूत रहते थे। नारायन प्रभु की प्रेरणा से भूत अपना भयंकर रूप धारण करके चोरों को डरवाने लगे। भूत बोले,पापियों यह कटहल तो प्रभु को खाने के लिए है। यादि तुम खाओगे तो तुम्हारा विनाश हो जाएगा।

चोर रंगे हाथों पकड़े जाने पर थर थर कांपने लगे। गठरी नीचे गिर गई।इसलिए वे डर से कांपने लगे। उन्होंने विनती की, “हे भाई साहब कृपया हमें बचाओ। अब हम चोरी नही करेंगे।

 भूत बोले इस तरह हम तुम्हें नही जानें देंगे। पहले जहां से फल लाए हो चुपके से वहां रख आओ। तभी तुमको जानें देंगे। भय के मारे चोर कटहल की गठरी धर्म देव के घर रख आए ।

 घनश्याम ने चोरों से कहा। “तुम कटहल के फल खाना चाहते हो न? मैं तुम सबको एक-एक फल देता हूं। इसे ले लो और घर जाओ। इसे परिवार के अन्य सदस्यों के साथ बांटना।” उसने उनमें से प्रत्येक को एक कटहल का फल दिया। चोरों ने धर्मदेव और दोनों भाइयों को प्रणाम किया और फिर एक कटहल का फल लेकर घर चले गए। ऐसा था युवा घनश्याम चोरों के प्रति भी दयालु! भगवान सदैव सभी पर दयालु होते हैं।

घनश्याम महराज भूतों को दर्शन देकर कहा, तुमने हमारी सेवा किया है। इसलिए बरदान देता हूं। तुम लोग मुक्ति हेतु बद्रिकाश्रम जाओ और तपस्या करके अपने पापो से मुक्ति पाकर हमारे धाम में आओ। यह वही पुण्य स्थल है। उसका श्रद्धालु दर्शन कर अपने को धन्य मानते हैं।

7.महुआ वृक्ष की महिमा

छपिया मुख्य मंदिर के सामने नारायण सरोवर स्थित है उसके किनारे एक महुआ का वृक्ष हुआ करता था।एक बार इस पेड़ के नीचे घनश्याम महराज विराजमान थे। उसी समय वहां नव योगेश्वर संत आकर प्रभु की स्तुति किए थे। उस दिन एकादसी का दिन था। बाल प्रभु अपने बड़े भाई के साथ नारायण सरोवर स्नान के लिए गए थे। स्नान के बाद महुआ के पेड़ के नीचे घनश्याम महराज बैठ गए थे। उसी समय वहां नव योगेश्वर संत आकर प्रभु की स्तुति करने लगे थे।भाई के पूछने पर उत्तर मिला कि इनकी प्रभु से पुरानी जान पहचान है । भाई ने उन सब से घर आने का आग्रह किया। सभी लोग घर आए। धर्म देव तुरन्त पहचान गए कि ये लोग नव योगेश्वर संत हैं। धर्म देव ने इन नवों अतरिक्ष,हरि, कवि, प्रबुद्ध, पिप्पलायन, आविरहोत्र क्रुमिल , चमस और करभाजन आदि की पूजा की। योगेश्वरों को लोग वेद के मंत्रों से पूजा किए थे। घनश्याम महाराज ने भी उनकी सेवा याचना किए थे और बोले थे,”आप लोग कुछ साल बाद गुजरात में आ जाना। वहां पर आप लोगों को सन्त बना कर अपने पास रखूंगा। अभी यहां भोजन कर प्रस्थान कीजिए।”

घनश्याम महाराज के आमंत्रण को कोई भी व्यक्ति नही छोड़ता है। योगेश्वर प्रसन्न हुए। देखते ही देखते ने भोजन खिलाकर उन सबको खुश कर दिया। वे आकाश मार्ग से लुप्त हो गए।

8. धर्म देव और भक्ति माता का स्मारक , तेंदुवा रानीपुर छपिया

यह स्थान नारायन सरोवर के समाने वाले किनारे पूर्व दिशा में स्थित है । यहां धर्म देव और भक्ति माता के अस्थि पर समाधि बाल प्रभु के बड़े भाई राम प्रताप भाई ने बनवाया था।

 घनश्याम ने अपने माता-पिता की अंतिम सांस तक सेवा की। भक्तिमाता गंभीर रूप से बीमार हो गई थीं। घनश्याम ने भक्तिमाता को मोक्ष का आध्यात्मिक ज्ञान दिया और जो उपदेश उन्होंने अपनी मां को दिया, वह हरि-गीता के नाम से जाना जाता है। हरि गीता सुनने पर भक्तिमाता समाधि में चली गईं और यहीं पर घनश्याम ने खुद को अक्षरधाम में रहने वाले श्रीहरि के रूप में प्रकट किया। जागने पर उन्होंने घनश्याम को अपने सामने खड़ा देखा और उन्होंने तुरंत पहचान लिया कि श्रीहरि ने उनके अपने पुत्र के रूप में जन्म लिया है। घनश्याम ने अपना हाथ भक्तिमाता के माथे पर रखा; उसने अपनी आँखें बंद कर लीं और घनश्याम ने उन्हें अक्षरधाम भेज दिया। भक्तिमाता ने कार्तिक सुदी 10 संवत 1848 को मानव शरीर छोड़ दिया।

भक्तिमाता के निधन के सात महीने बाद धर्मदेव भी बीमार पड़ गए। घनश्याम ने भी अपने पिता को सच्चा ज्ञान दिया और खुद को ‘परमेश्वर’ के रूप में अपने दिव्य रूप में प्रकट किया। धर्मदेव अब मानते हैं कि उनका बेटा घनश्याम मानव रूप में भगवान है। धर्मदेव ने रामप्रताप और इच्छाराम को बुलाया और उनसे कहा कि हम जिस श्री कृष्ण की प्रार्थना कर रहे हैं, वह कोई और नहीं बल्कि आपके भाई घनश्याम हैं। “घनश्याम ‘परमेश्वर’ हैं और उन्हें घनश्याम की प्रार्थना और पूजा करनी चाहिए, जो आपको मोक्ष प्रदान करने वाले एकमात्र हैं। उन्होंने रामप्रताप को घनश्याम की देखभाल करने का निर्देश भी दिया। रामप्रताप अपने पिता के अनुरोधों का पालन करने का वादा किया।

धर्मदेव के अनुरोध पर, सात दिनों तक भगवद्गीता का पाठ किया गया। पाठ में लीन होने के कारण धर्मदेव का स्वास्थ्य बहुत अच्छा हो गया, लेकिन पाठ सुनने और भगवान के दर्शन करने के बाद, धर्मदेव को तृप्ति का अनुभव हुआ और वे जेष्ठ वदी 4 संवत 1848 को इस दुनिया को छोड़कर अक्षरधाम में रहने चले गए।

भक्तिमाता और धर्मदेव अब दुर्वासा ऋषि के शाप से मुक्त हो गए।

लेखक परिचय:-

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।

” महात्मा गांधी ” काव्य प्रतियोगिता परिणाम

योगीराज योगी, अर्चना शर्मा ,अल्पना गर्ग एवम् सन्जू श्रृंगी की कविताएं टॉप चार में
कोटा /  बाल साहित्य मेले के दौरान रचनाकारों को बाल कविताएं लिखने के लिए प्रेरित करने के लिए गांधी जयंती पर  ” महात्मा गांधी ” विषय पर बाल कविता प्रतियोगिता का आयोजन “संस्कृति,साहित्य, मीडिया फोरम, कोटा द्वारा किया गया।  काव्य प्रतियोगिता में रचनाकार योगीराज योगी, अर्चना शर्मा ,अल्पना गर्ग एवम् सन्जू श्रृंगी टॉप
चार घोषित की गई हैं। विजेता साहित्यकारों को आगामी किसी कार्यक्रम में समान रूप से पुरस्कृत किया जाएगा, जिसकी सूचना उन्हें प्रथक से व्यक्तिगत प्रेषित कर दी जाएगी।
प्रतियोगिता का परिणाम देश की विख्यात बाल साहित्यकार डॉ. विमला भंडारी  निवासी सलूंबर जिला द्वारा घोषित किया गया। उनके सुझाव पर प्रथम, द्वतीय और तृतीय घोषित नहीं कर टॉप चार घोषित किया गया है। उन्होंने सभी रचनाकारों की रचनाओं की सराहना की है।
प्रतियोगिता में  डॉ. युगल सिंह, डॉ. अपर्णा पांडेय , श्यामा शर्मा,  रीता गुप्ता ‘ रश्मि ‘, अर्चना शर्मा ,  अक्षयलता शर्मा, राम मोहन कौशिक, डॉ सुशीला जोशी , राम शर्मा ‘काप्रेन’ , महेश पंचोली , रेणु सिंह राधे, योगीराज योगी, मोहन वर्मा, डॉ संगीता देव, रघुनंदन हटीला, दिलीप सिंह हरप्रीत , अल्पना गर्ग, संजू शृंगी, अनुज  कुमार कुच्छल ने  उत्साह पूर्वक भाग लिया ।
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डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
प्रेषक :
डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
संयोजक
संस्कृति,साहित्य,मीडिया फोरम, कोटा

ब्राह्मण भोज कब से शुरू हुआ…?

विष्णु पुराण में एक कथा लेख मिलता है एक समय सभी ऋषियों की एक पंचायत हुई जिसमें यह निर्णय करना था की यज्ञ का भाग तीनों देवों में से किसको दिया जाए।
प्रथम परीक्षा लेने के लिए भृगु मुनि को चुना गया भृगु मुनि ने भगवान शंकर को जाकर प्रणाम किया तो शंकर जी उनसे गले मिलने के लिए खड़े हुए मुनि ने मना कर दिया कि आप अघोरी हो मुर्दे की भस्म लगाते हो हम आपसे गले नहीं मिल सकते।
भगवान शंकर क्रोधित हो गए फिर भृगू मुनि अपने पिता के यहां गए तो अपने पिता ब्रह्मा जी को प्रणाम नहीं किया ब्रह्मा जी भी कुपित हो गए कितना उद्दंड बालक है पिता को प्रणाम नहीं करता।
भृगु मुनि बैकुंठ धाम गए तो भगवान विष्णु सो रहे थे तो सोते हुए विष्णु की छाती में जाकर लात मारी भगवान विष्णु ने ब्राह्मण का चरण पकड़ा और कहा ब्राह्मण देव आपका चरण बड़ा कोमल है मेरी छाती बड़ी कठोर है आपको कहीं लगी तो नहीं।
प्रभु मुनि ने तुरंत भगवान विष्णु के चरण छुए और क्षमा याचना करते हुए कहा प्रभु यह एक परीक्षा का भाग था जिसमें हमें यह चुनना था कि.. यज्ञ का प्रथम भाग किस को दिया जाए तो सर्वसम्मति से आपको चुना जाता है।
तब भगवान विष्णु ने कहा कि जितना में यज्ञ तपस्या से प्रसन्न नहीं होता उतना में ब्राह्मण को भोजन कराए जाने से होता हूं भृगु मुजी जी ने पूछा महाराज ब्राह्मण के भोजन करने से आप तृप्त कैसे होते हैं तो विष्णु भगवान ने कहा ब्राह्मण को जो आप दान देते हैं या जो भोजन कराते हैं एक तो वह सात्विक प्रवृत्ति के होते हैं वेद अध्ययन वेद पाठन करने वाले होते हैं ब्राह्मण ही मुझे ब्रह्मा और महेश तीनों का ज्ञान समाज को कराते हैं।
हर अंग का कोई ना कोई देवता है जैसे आंखों के देवता सूरज जैसे कान के देवता बसु जैसे त्वचा के देवता वायु देव मंन के देवता इंद्र वैसे ही आत्मा के रूप में मैं भी वास करता हूं ब्राह्मण भोजन करके तृप्ति की अनुभूति करें तो वह तृप्ति ब्राह्मण के साथ मुझे और उन देवताओं को भी प्रत्यक्ष भोग लगाने के समान है जो आहुति हम यज्ञ कुंड में देते हैं स्वाहा कहकर.. ठीक उसी प्रकार की आहुति ब्राह्मण के मुख्य में लगती है इसलिए यह परंपरा ऋषियों ने प्रारंभ की की कोई भी धार्मिक कार्य हो तो ब्राह्मण को भोजन कराया जाए जिससे प्रत्यक्ष लाभ मिले।
कहते हैं ना आत्मा सो परमात्मा हमारे पूजा पाठ हवन इत्यादि का फल तभी हमें मिलता है जब परमात्मा प्रसन्न होता है आस्तिक मन से किया हुआ पुण्य दान अवश्य फलता है और सात्विक ब्रत्ती वाले को ही दान पुण्य भोजन कराना चाहिए हर पूजा-पाठ के उपरांत दक्षिणा और भोज अवश्य कराना चाहिए यह आपकी यथाशक्ति पर निर्भर है अगर ब्राह्मण सात्विक वृत्ति का है आप जो भी उसे दोगे जो भी खिलाओगे उसी से प्रशन्न हो जाएगा चाणक्य का एक श्लोक याद आता है –
विप्राणा्म भोजनौ तुष्यंति मयूरं घन गर्जिते।
 *साधवा पर संपत्तौ खल़़ःपर विपत्ति सू ।।
आप चाहे गरीबों को भोजन कराएं चाहे गौ माता को भोजन कराएं या ब्राह्मण को भोजन कराएं मतलब आत्मा की तृप्ति से है सामने वाले की आत्मा तृप्त तो परमात्मा प्रसन्न है आशा करता हूं आप लोगों को मेरी बात समझ में आई होगी जिसको नहीं आनी है तो नहीं आनी है तर्क वितर्क करने के कोई लाभ नहीं आप विष्णु पुराण पढ़िए!
सर्वपितृ अमावस्या” के दिन की गौमाताओं को दिया हुआ भोजन “गौग्रास” सीधा पितरों को प्राप्त होता है जिससे पितृ देव तृप्त होते हैं और आशीर्वाद देते हैं जिसके फलस्वरूप घर मे सुख सम्पत्ति धन धान्य वंश में वृद्धि संतान प्राप्ति होती है। इसलिए आज पितृपक्ष श्राद्धपक्ष की “सर्वपितृ अमावस्या” के अवसर पर अवश्य यथा संभव गौसेवा करके पुण्यलाभ अर्जित करें..और अपने पितरों पुर्वजो को श्रद्धापूर्वक विदाई दें…
साभार https://newstrack.com/ से