Monday, July 1, 2024
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इन चुनावों में मुस्लिम वोटों से भाजपा को कैसे मात मिली

चुनावी चौपाल
– प्रशांत पोळ
मराठी मे एक प्रख्यात चिंतक और लेखक हो गए हैं,  डॉ. पु. ग. सहस्त्रबुद्धे। उन्होंने अनेक वैचारिक निबंध लिखें। भारत के परतंत्र रहने के बारे में भी उन्होंने लिख रखा है।
हिन्दू धर्म में एक अच्छी सी संत-परंपरा रही है। जहां जहां हिन्दू धर्म का फैलाव हुआ हैं, वहां वहां संत – महंत हुए। इन्होने समाज प्रबोधन का बहुत बड़ा काम किया हैं। लोगों को न्याय के, नीति के, सत्य के, अहिंसा के मार्ग पर चलने का आग्रह किया। भगवत भक्ति की। समाज को सही दिशा में लेकर जाने की यह बयार, अखंड हिन्दुस्थान में सभी जगह बही ऐसा दिखता हैं।
और हमारे समाज के नेतृत्व ने, राजा – महाराजाओं ने इस दिशा में चलने का पूरा प्रयास भी किया हैं। हमने कभी भी, किसी पर भी, स्वतः होकर आक्रमण नहीं किया। कोई हिन्दू राजा कभी भी आक्रांता नहीं रहा। युध्द में शत्रु पर क्रौर्य का, बर्बरता का, बिभत्सता का कोई भी उदाहरण हिन्दू राजा का नहीं मिलता। हम सहिष्णु रहे। आने वाले विदेशियों का स्वागत करते रहे।
धर्म और न्याय के मार्ग पर चलने वाले हमको क्या मिला..?
हमे मिली गुलामी। हमे मिला दारिद्र, हमे मिले अत्याचार। हमे मिला अपमान।
हमारा ऐश्वर्य जाता रहा। हमारा स्वातंत्र्य जाता रहा। हमारा सम्मान जाता रहा। हमारी बहु-बेटियां भी जाती रही।
इसके ठीक विपरीत, हम पर आक्रमण करने वालों ने क्या किया..?
उन्होंने तमाम गलत, अनैतिक रास्ते अपनाएं। छल, कपट, बलात्कार का सहारा लिया। क्रूरता की पराकाष्ठा की। युध्द के सारे नियम तोड़ दिए। बलात धर्मांतरण किया। बहु-बेटियों की इज्जत लूटी।
उन मुस्लिम आक्रांताओं को, उन अंग्रेज / पोर्तुगीज / फ्रेंच आक्रांताओं को क्या मिला..?
उनको मिला ऐश्वर्य। उनको मिला स्वातंत्र्य। उनको मिली सत्ता। उनको मिला उपभोग।
सारे पाप करने के बाद भी मुस्लिम और इसाई  आक्रांताओं को यह सब मिला और सारे पुण्य करने के बाद भी हमें गुलामी और दारिद्र मिला।
ऐसा क्यों..?
मुस्लिम और इसाई आक्रांताओं ने केवल एक धर्म निभाया। और हम हिन्दू, धर्म निभाने के आडंबर में, धर्म का वही ‘मूल तत्व’ भूल गए..!
वह हैं – संघ धर्म। समष्टि का धर्म। जिसका अगला भाग हैं – ‘राष्ट्र सर्वप्रथम’। और हम यही भूल गए।
इस लोक सभा चुनाव में भी यही बात सामने आई। हमने अयोध्या में साढ़े पांच सौ वर्षो के बाद भगवान श्री रामलला को पुनर्स्थापित किया। उनका भव्य मंदिर बनाया। काशी में त्रिलोक के स्वामी, भगवान शंकर के विश्वेश्वर मंदिर को अतिक्रमण से मुक्त किया। सुंदर बनाया। उज्जैन में महाकाल लोक सवारा। हमने ईश्वर की मनोभाव से आराधना की। संतों का सम्मान किया। बुजुर्गों को तीर्थ स्थलों की यात्रा करवाई। चुनाव में राष्ट्रीय सोच के लोग जीतकर आएं, इसलिए मंदिरों में पूजा-अर्चना की। हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी ने पार्वती देवी की तपस्थली, कन्याकुमारी में और अहोरात्र आराधना की। तप किया।
हमको क्या मिला..?
विजय मिली। किंतु अपेक्षा अनुसार नहीं।
हमारे विरोध में जो लड़े, वे आपस में भी लड़े। गलत व्यक्तियों के साथ लड़े। किंतु क्या उत्तर प्रदेश, क्या बंगाल, क्या महाराष्ट्र… हमें हमारी पिछली स्थिति से भी पीछे हटना पड़ा।
क्या कारण रहा ?
पराभव के अनेक कारण रहे। किंतू महत्व का था – ‘उन्होने’ समष्टी धर्म निभाया। हमने नही। मुसलमानों का ‘वोटिंग पैटर्न’ यह एक प्रमुख कारण रहा..!
एक बात इस चुनाव से उभर कर आई हैं। इस देश का मुसलमान क्या कहना चाहता हैं, यह इस चुनाव से बहुत कुछ स्पष्ट हो रहा हैं। और यह देश के भविष्य के लिए अत्यंत गंभीर विषय हैं।
रजत शर्मा  इंडिया न्यूज पर  एक मौलवी का वीडियो दिखाया है, जिसमें वह मौलवी अत्यंत स्पष्टता के साथ, बिना लाग-लपेट के, कह रहा हैं, “हमें कुछ भी करके, किसी भी हालात में, बीजेपी को हराना है। चाहे सामने मुस्लिम उम्मीदवार क्यों न हो, किंतु बीजेपी को हराने की उसकी क्षमता नहीं हैं, तो उसे भी वोट ना दे। जो कैंडिडेट बीजेपी को हरा सकता हैं, उसी को वोट देना हैं।”
और गंभीर बात यह, की देश भर के मुसलमानों ने, जहां-जहां भी बन सका, वहां ऐसा किया भी..!
उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र का धुले लोकसभा क्षेत्र लेते हैं। यहां भाजपा के उम्मीदवार थे, डॉक्टर सुभाष भामरे, जो २०१९ में २ लाख से भी ज्यादा मतों से विजयी हुए थे। कांग्रेस से श्रीमती शोभा बच्छाव उम्मीदवार थी। धुले लोकसभा में ६ विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इनमें से पांच विधानसभा क्षेत्रों में, भाजपा ने १,९०,००० से ज्यादा मतों की लीड ली थी। किंतु अकेले मालेगांव (मध्य) ने कांग्रेस को १,९४,००० की लीड दी और भाजपा के डॉक्टर सुभाष भामरे मात्र ३,८३१ वोटो से चुनाव हार गए। मालेगांव (मध्य) यह पूर्णत: मुस्लिम बहुल क्षेत्र है। यहां का विधायक, ओवैसी के एमआईएम पार्टी का हैं। यहां कुल २,०५,०००, वोट डाले गए जिनमें से १,९८,८६९ वोट कांग्रेस के खाते में गए।
मजेदार बात यह, की इस चुनाव में धुले लोकसभा क्षेत्र से डॉ. प्रकाश आंबेडकर के ‘वंचित बहुजन समाज अघाडी’ के जहूर अहमद मोहम्मद भी चुनाव मैदान में थे। किंतु उन्हें मुस्लिम वोटर्स ने सिरे से नकार दिया। उन्हें ५,००० वोट भी नहीं मिले। रणनीति के तहत मुसलमानों ने अपने सारे वोट डॉ. श्रीमती शोभा बच्छाव को दिए और उनकी जीत सुनिश्चित की।
अकेला धुले लोकसभा क्षेत्र अपवाद नहीं है। लगभग सभी जगह ऐसा हुआ है।
महाराष्ट्र में मुसलमान सबसे ज्यादा द्वेष करते थे, तिरस्कार करते थे, खौफ खाते थे, तो ‘ठाकरे’ इस नाम से। सन १९९२ के दंगों के बाद मुसलमानों के लिए सबसे ज्यादा तिरस्करणीय व्यक्ति ‘बालासाहब ठाकरे’ थे। अभी-अभी तक, मुस्लिम शिवसेना से चिढ़ते थे। किंतु इस लोकसभा में चमत्कार हुआ। मुसलमानों ने अपने सारे वोट, जहां-जहां उद्धव ठाकरे की शिवसेना के उम्मीदवार थे, वहां उनको ‘ट्रांसफर’ किये। अर्थात, उस मौलवी के आदेशों का पूर्णत: पालन किया गया। कारण एक ही था। उन्हें लगता था, उद्धव ठाकरे के उम्मीदवार, बीजेपी को हरा सकते हैं। मुंबई में मुस्लिम बहुल क्षेत्र में भी उद्धव ठाकरे के उम्मीदवार आगे रहे।
महाराष्ट्र में मुसलमानों की रणनीति एक ही लोकसभा क्षेत्र में गलत साबित हुई। वह है – संभाजी नगर (पुराना नाम – औरंगाबाद)। यहां २०१९ में, ओवैसी की एमआईएम पार्टी के इम्तियाज जलील चुनकर आए थे। उन्होंने भाजपा और अविभाजित शिवसेना के चंद्रकांत खैरे को हराया था। इसलिए इस बार मुसलमानों को मामला कुछ सरल लगा। उनका अनुमान था, यहां शिवसेना (शिंदे) और शिवसेना (ठाकरे) में वोटों का बंटवारा होगा और एमआईएम के इम्तियाज जलील आसानी से चुनकर आएंगे। इसलिए महाराष्ट्र का यह एकमात्र लोकसभा क्षेत्र हैं, जहां मुसलमानों ने अपने वोट उद्धव ठाकरे की शिवसेना को ट्रांसफर नहीं किये। किंतु यहां के हिंदू समुदाय में, इम्तियाज जलील का जीत के आना चुभ रहा था। इसलिए बड़ी संख्या में हिंदू मतों का ध्रुवीकरण, शिंदे की शिवसेना के संदीपान भुमरे के पक्ष में हुआ और वह १,३५,००० मतों से चुनाव जीत गए।
मुसलमानों के इस रणनीतिक मतदान (Strategic Voting) का एक और उदाहरण हैं, पश्चिम बंगाल की बहरामपुर लोकसभा सीट। यह मुस्लिम बहुल क्षेत्र हैं। अर्थात, यहां ५२% मुस्लिम वोटर हैं। सन १९९९ से यहां पर कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी चुनाव जीतते आए हैं। वे लोकसभा मे कांग्रेस दल के नेता और भाजपा के प्रखर आलोचक रहे हैं। फिर भी, इस बार रणनीति के तहत, तृणमूल कांग्रेस ने, गुजरात के यूसुफ पठान को यहां से चुनाव लड़वाया। ‘मां, माटी, मानुष’ का नारा देने वाली तृणमूल कांग्रेस ने एक ऐसे प्रत्याशी को खड़ा किया, जिसे बंगाली का ‘ब’ भी नही आता। किंतु मुस्लिम समुदाय की रणनीति एकदम स्पष्ट थी। कोई संभ्रम नहीं। कोई कंफ्यूजन नहीं। किंतु-परंतु भी नहीं। उन्हें इस बार बहरामपुर से मुस्लिम प्रत्याशी चुनकर लाना था, वो लाया। वो भी, इतने वर्ष मुसलमानों की तरफदारी करते हुए, उनका तुष्टिकरण करते हुए राजनीति करने वाले अधीर रंजन चौधरी को हराकर..!
यह तो मात्र कुछ उदाहरण हैं। किंतु पूरे देश में कमोबेश यही पैटर्न रहा। अनेक लोकसभा सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी आपस में भिड़े। किंतु मुस्लिम वोटर की मानसिकता स्पष्ट थी। संभाजी नगर जैसे एक – दो अपवाद छोड़ दें, तो वह जानता था कि कौन सा प्रत्याशी भाजपा को हरा सकता हैं। उसने वोट उसी को दिया।
अब यहां एक प्रश्न निर्माण होता हैं। भाजपा का ऐसा विरोध क्यों..? भाजपा को हराने के लिए एड़ी चोटी एक क्यों की गई..?
उत्तर स्पष्ट हैं। भाजपा शक्तिशाली राजनीतिक दल है, और शायद एकमात्र दल हैं, जो मुसलमानों का तुष्टिकरण नहीं करता।
यह सारे प्रसंग, भारत के विभाजन के दिनों का स्मरण करा रहे हैं, जब मुस्लिम समुदाय एक होकर कांग्रेस को हराता था, और कांग्रेस को फिर भी लगता था, की यह मुस्लिम समुदाय हमारे साथ है !*
कहीं ऐसी गलतफहमी का शिकार भाजपा भी ना हो जाए..!
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं और ऐतिहासिक विषयों पर शोधपूर्ण लेख लिखते हैं)  
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भारतीय रिजर्व बैंक को अब ब्याज दरों में कटौती के बारे में गम्भीरता से विचार करना चाहिए

भारतीय रिजर्व बैंक ने लगातार 8वीं बार रेपो दर में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं करते हुए इसे 6.50 प्रतिशत पर ही जारी रखा है। हालांकि, हाल ही में, जून 2024 के प्रथम सप्ताह में सम्पन्न हुई मोनेटरी पॉलिसी कमेटी (एमपीसी) की बैठक में दो सदस्यों ने रेपो दर को 25 आधार अंको से घटाकर 6.25 प्रतिशत पर नीचे लाने की सिफारिश की थी। अभी तक मोनेटरी पॉलिसी कमेटी द्वारा लिए गए 48 निर्णयों में से 32 निर्णय सर्वसम्मत आधार पर लिए गए हैं और केवल 16 निर्णयों की स्थिति में ही कुछ सदस्यों द्वारा अपनी अलग राय रखी गई है। और, इस बार भी दो सदस्यों की राय अन्य सदस्यों की राय से कुछ भिन्न रही है।

भारतीय रिजर्व बैंक ने भारत में मुद्रा स्फीति के सम्बंध में भी अपनी राय प्रकट की है और इसके अनुसार, वित्तीय वर्ष 2024-25 में मुद्रा स्फीति की दर 4.5 प्रतिशत पर बनी रहेगी और इस वित्तीय वर्ष की प्रथम तिमाही में मुद्रा स्फीति की दर 4.9 प्रतिशत, द्वितीय तिमाही में 3.8 प्रतिशत, तृतीय तिमाही में 4.6 प्रतिशत एवं चतुर्थ तिमाही में 4.5 प्रतिशत रहने की सम्भावना व्यक्त की गई है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रा स्फीति की दर में खाद्य पदार्थ सामग्री का विशेष योगदान रहने की सम्भावना व्यक्त की गई है।

हालांकि, बाजार में खाद्य पदार्थ सामग्री की कीमतें यदि बढ़ती हैं तो इसे ब्याज दर बढ़ाकर अथवा घटाकर प्रभावित नहीं किया जा सकता है क्योंकि खाद्य पदार्थों की कीमतें बाजार में मांग एवं आपूर्ति के आधार पर ही निर्धारित होती हैं। जैसे, सब्जी एवं फलों की आपूर्ति यदि बाजार में कम है और मांग अधिक है तो इन वस्तुओं की कीमतें बाजार में आसमान छूती नजर आती हैं और इन वस्तुओं की बाजार में यदि आपूर्ति बढ़ जाए तो इनकी कीमतें भी कम होने लगती है। अतः ब्याज दरों में वृद्धि अथवा कमी का इन वस्तुओं की कीमतों पर प्रभाव नगण्य सा ही रहता है। कुल मिलाकर, खाद्य पदार्थों की बाजार में आपूर्ति बढ़ाकर ही इन वस्तुओं की मुद्रा स्फीति पर नियंत्रण स्थापित किया जा सकता है।

भारत में मुद्रा स्फीति की दर भी 4.5 प्रतिशत के आसपास ही बनी रही है जो मोनेटरी पॉलिसी में वर्णित 2.5 प्रतिशत से 6.5 प्रतिशत के बीच की सीमा के अंदर ही है। बैंक आफ कनाडा, स्विस बैंक एवं स्वीडिश रिस्कबैंक ने भी पूर्व में ही अपने अपने देशों की ब्याज दरों में कमी करने की सिफारिश की है। अतः क्या अब भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा भी रेपो दर में कमी करने के बारे में विचार नहीं किया जाना चाहिए।

भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा रेपो दर में कमी संभवत: अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा फेड दर में कमी को घोषणा के बाद की जाय, क्योंकि यदि भारत रेपो दर में कमी की घोषणा करता है एवं फेडरल रिजर्व फेड दर में कमी नहीं करता है तो इससे अमेरिकी डॉलर के रूप में पूंजी का भारत से पलायन हो सकता है। परंतु, हाल ही के समय में भारतीय अर्थव्यवस्था अपने आंतरिक मजबूती के चलते ही अपने आर्थिक विकास को गति देने में सफल रही है। भारतीय अर्थव्यवस्था, अन्य देशों के आर्थिक क्षेत्र में हो रहे विभिन्न परिवर्तनों के बावजूद वित्तीय वर्ष 2023-24 में अपने आर्थिक विकास की दर को 8 प्रतिशत से अधिक रखने में सफल रही है।

यदि भारतीय रिजर्व बैंक रेपो दर में कमी करता है तो इससे भारत में उद्योग, कृषि एवं सेवा क्षेत्र को वित्त/पूंजी की उपलब्धता कम ब्याज दरों पर होने लगेगी, इससे इन क्षेत्रों में कार्य कर रही इकाईयों की उत्पादन लागत कम होगी एवं इनकी लाभप्रदता में सुधार होगा। जिससे अंततः इन इकाईयों के विस्तार में आसानी होगी। देश में रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित होंने लगेंगे। और फिर, अभी तो भारत के पास 65,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक का विदेशी मुद्रा भंडार भी उपलब्ध है, यदि ब्याज दर कम करने से कुछ विदेशी पूंजी पलायन भारत से अन्य देशों के ओर होता भी है तो (हालांकि इसकी सम्भावना बहुत ही कम है क्योंकि भारत में विदेशी निवेश एवं विदेशी मुद्रा का आंतरिक प्रेषण भी भारी मात्रा में होता दिखाई दे रहा है) यह विदेशी मुद्रा भंडार भारत के आड़े वक्त में काम आएगा।

भारत में हाल ही के समय में विभिन्न बैंकों के ऋण में वृद्धि दर 15 से 20 प्रतिशत के बीच बनी हुई है जबकि जमाराशि में वृद्धि दर 10-12 प्रतिशत के बीच बनी हुई है। आज भारत के कई बैंकों का वार्धिक ऋण:जमा अनुपात 100 प्रतिशत के आसपास पहुंच गया है। इससे विभिन्न बैंकों की तरलता पर दबाव बनता हुआ दिखाई दे रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक को विभिन्न बैंकों की तरलता सम्बंधित समस्याओं को हल करने के लिए विशेष ध्यान देने की आवश्यकता पड़ेगी। हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक ने इस संदर्भ में कई प्रयास करना शुरू भी कर दिए हैं।

भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्तीय वर्ष 2024-25 के दौरान भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 7.20 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगाया है। पहिले यह अनुमान 7 प्रतिशत का लगाया गया था परंतु वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान 8.20 प्रतिशत की वृद्धि दर को देखते हुए इसमें 20 आधार अंको की वृद्धि की गई है। भारतीय रिजर्व बैंक के अनुमान के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2024-25 की प्रथम तिमाही में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 7.3 प्रतिशत, द्वितीय तिमाही में 7.2 प्रतिशत, तृतीय तिमाही में 7.3 प्रतिशत एवं चतुर्थ तिमाही में 7.2 प्रतिशत की वृद्धि होने की सम्भावना व्यक्त की गई है। इस वर्ष मानसून भी सामान्य से कुछ अधिक ही रहने की सम्भावना है एवं भारत में ‘अल नीनो’ के स्थान पर ‘ला नीना’ का असर होने की प्रबल सम्भावना व्यक्त की गई है। अल नीनो के प्रभाव से सामान्यतः मानसून कमजोर हो जाता है एवं ला नीना के प्रभाव से मानसून मजबूत रहने की सम्भावना बढ़ जाती है।

भारत में कृषि क्षेत्र अभी भी मानसून की बारिश पर ही टिका हुआ है, अतः मानसून के दौरान ला नीना के प्रभाव को कृषि क्षेत्र के लिए बहुत अच्छा माना जा रहा है। दूसरे, भारत की अर्थव्यवस्था में मंदिर की अर्थव्यवस्था एवं धार्मिक पर्यटन का सकारात्मक प्रभाव वित्तीय वर्ष 2024-25 में भी जारी रहेगा। इस मुख्य कारण के चलते, वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 8.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। यदि यह प्रभाव भी वर्ष 2024-25 के दौरान इसी स्तर पर बना रहता है तो बहुत सम्भव है कि इस वर्ष के दौरान भी भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 8 प्रतिशत से अधिक वृद्धि दर हासिल की जा सके। तीसरे, इस वर्ष अच्छे मानसून के चलते ग्रामीण इलाकों में विभिन्न उत्पादों की मांग में भी वृद्धि होगी और यह कृषि क्षेत्र के साथ ही उद्योग एवं सेवा क्षेत्र को भी गति देने का काम करेगा, और इससे निजी क्षेत्र में निवेश बढ़ने की भी प्रबल सम्भावना रहेगी और अंततः विकास दर 7.2 प्रतिशत के स्थान पर 8 प्रतिशत की रह सकती है।

अतः कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि अब चूंकि मुद्रा स्फीति की दर भारत में लगभग नियंत्रण में है एवं भारतीय अर्थव्यवस्था में विकास की गति को और अधिक तेज करने के उद्देश्य से भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा रेपो दर में कमी करने पर गम्भीरता से विचार किया जाना चाहिए।

प्रहलाद सबनानी

सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,

भारतीय स्टेट बैंक

के-8, चेतकपुरी कालोनी,

झांसी रोड, लश्कर,

ग्वालियर – 474 009

मोबाइल क्रमांक – 9987949940

ई-मेल – [email protected]

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18वें मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में “75 क्रिएटिव माइंड्स ऑफ टूमॉरो” की झलक दिखेगी 

54वें आईएफएफआई की सर्वश्रेष्ठ सी-मॉट फिल्म ‘ओध’ एमआईएफएफ में दिखाई जाएगी मुंबई। प्रतिष्ठित भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) में “75 क्रिएटिव माइंड्स ऑफ टूमॉरो” (सी-मॉट) की उदीयमान प्रतिभाएं विशेष आकर्षण होंगी। देश की इन प्रतिभाओं की कृतियां देखने का अवसर मिलेगा। इसके माध्यम से कलात्मक उत्कृष्टता का परिचय मिलेगा।

18वें एमआईएफएफ में इन उदीयमान युवा फिल्मकारों की कुछ शानदार फिल्में दिखाई जाएंगी, जिनमें ‘ओध’ नामक फिल्म भी शामिल है, जिसे गोवा के 54वें आईएफएफआई में सर्वश्रेष्ठ सी-मॉट फिल्म के रूप में पुरस्कृत किया गया था।

एमआईएफएफ में प्रदर्शित होने वाली 75-सी-मॉट की फिल्मों की सूची

आलमःआलम एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो पश्चाताप से भरा हुआ है और प्रकृति की परवाह नहीं करता। जल्द ही, पेड़, हवा, पानी और बिजली जैसे सभी तत्व उसका विरोध करते हैं और उसे एहसास कराते हैं कि उसके कार्यों से न केवल प्रकृति प्रभावित होती है, बल्कि उसके आस-पास के लोग भी प्रभावित होते हैं।

ला-मरः एक सूखे, सर्वनाश के बाद की दुनिया में, अनुभवी वैज्ञानिक जकार्ता पानी की कमी के बीच आशा और निराशा के बीच जूझता है। जब एक खतरनाक गिरोह शुद्ध पानी के उसके अंतिम स्रोत के लिए विनाशकारी बन जाता है, तब उस भीषण मुठभेड़ के बीच उसे एक अप्रत्याशित साथी मिल जाता है। इसके बाद उस वीरान इलाके में विश्वास को बहाल करने और अभिनव प्रयोग की एक संघर्षमय यात्रा शुरू होती है। चार्ल्स ट्रेनेट के गीत पर आधारित।

ओधः फिल्म की कहानी एक स्थानीय मछुआरे की मुसीबतों पर आधारित है, जिसे समुद्र तट पर अपनी नाव लगाने की कोई जगह नहीं मिलती और वह अपनी नाव को शहर में खींचकर ले जाता है।

बिरवाः फिल्म में कड़वे रिश्ते को दर्शाया गया है जो टूटने के कगार पर है तथा यह मानव और प्रकृति के बीच बिगड़ते संबंधों को दर्शाता है। लेकिन क्या इससे बाहर निकलने का कोई रास्ता है?

अंकुरणः यह फिल्म मानव द्वारा प्रकृति के अंधाधुंध दोहन के कारण होने वाले दुष्प्रभावों को दर्शाती है, जिसके परिणामस्वरूप हवा जहरीली हो जाती है। यह फिल्म एक छोटी लड़की और बेहतर कल के लिए उसकी उम्मीदों के बारे में है।

“75 क्रिएटिव माइंड्स ऑफ टूमॉरो” के बारे में
“75 क्रिएटिव माइंड्स ऑफ टूमॉरो” सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार की एक अनूठी पहल है, जिसका उद्देश्य देश भर से युवा सिनेमाई प्रतिभाओं की पहचान करना, उनका पोषण करना और उन्हें प्रदर्शित करना है। इस प्रतिभा विकास पहल के हिस्से के रूप में, प्रतिभागियों को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर फिल्म निर्माण में अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिलता है। इसे 2021 में भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) के 52वें संस्करण में आज़ादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में लॉन्च किया गया था और तब से, आईएफएफआई के दौरान तीन सफल संस्करण आयोजित किए जा चुके हैं। इसके माध्यम से 225 पूर्व छात्रों का एक प्रतिभा पूल तैयार हुआ है।

हर साल, देश भर से हजारों आवेदन प्राप्त होते हैं, जिनमें नये/उदीयमान, अनुभवी फिल्म निर्माता या फिल्म निर्माण और संबंधित कलाओं में गहरी रुचि रखने वाले लोग शामिल होते हैं। ये आवेदन निम्नलिखित श्रेणियों में होते हैं: निर्देशन, पटकथा लेखन, छायांकन, अभिनय, संपादन, पार्श्व गायन, संगीत रचना, वेशभूषा और मेकअप, कला डिजाइन और एनीमेशन, दृश्य प्रभाव (वीएफएक्स), संवर्धित वास्तविकता (एआर) और आभासी वास्तविकता (वीआर)।

पूरे भारत से 75 युवा रचनात्मक प्रतिभाएं ‘फिल्म चैलेंज’ में भी भाग लेती हैं, जिसके तहत उन्हें 48 घंटों में एक लघु फिल्म बनानी होती है। पिछले तीन संस्करणों में युवा रचनात्मक प्रतिभाओं द्वारा नवाचार और कहानी कहने की क्षमता का उत्सव मनाया गया।

आईएफएफआई-54 में सी-मॉट टैलेंट कैंप का भी आयोजन किया गया, ताकि प्रतिभागियों को भारत के मीडिया और मनोरंजन क्षेत्र की अग्रणी कंपनियों के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत करने का मौका मिले, जिसमें प्रोडक्शन हाउस, एवीजीसी कंपनियां और स्टूडियो आदि शामिल हैं। इस भर्ती अभियान में प्रतिभागियों को अपने विचारों को पेश करने और उद्योग के अग्रणी पेशेवरों के सामने अपने पिछले काम को प्रस्तुत करने का अनूठा अवसर मिला। इसके अलावा युवा प्रतिभाओं को विशेष रूप से क्यूरेट किए गए मास्टरक्लास, इन-कन्वर्सेशन सेशन और ओपन फोरम चर्चाओं में उद्योग के विशेषज्ञों के साथ भाग लेने और बातचीत करने का अवसर भी मिलता है।

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वन्यजीवों, प्रकृति और उनके शांतिमय जीवन की फिल्म-शूटिंग को प्राथमिकता दी जानी चाहिए: अल्फोंस रॉय

“वन शिल्प को सीखना और जनजातीय ज्ञान से प्रेरणा लेना महत्वपूर्ण है”मुंबई। प्रसिद्ध वन्यजीव फिल्म निर्माता और छायाकार श्री अल्फोंस रॉय ने कहा कि किसी वन्यजीव का करिश्मा अक्सर यह तय करता है कि उसे फिल्मों में दिखाया जाएगा या नहीं और उसे स्क्रीन पर कब दिखाया जाएगा। वे 18वें मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में “एक्सप्लोरिंग द विल्डरनेस: इंडियन वाइल्डलाइफ डॉक्यूमेंट्रीज एंड कन्जर्वेशन एफर्ट्स” विषय पर मास्टर क्लास में बोल रहे थे। इस सत्र में संरक्षण पहलों और भारतीय वन्यजीवों के बारे में वृत्तचित्र बनाने की बारीकियों पर चर्चा की गई।

श्री अल्फोंस रॉय ने आगे कहा कि टेलीविजन निर्माता पक्षी या किसी अन्य छोटी प्रजाति की तुलना में बाघ, शेर या ब्लू व्हेल जैसे जानवरों में अधिक रुचि रखते हैं। उन्होंने कहा, “वन्यजीव फिल्मों में जानवर के करिश्मे के आधार पर एक निश्चित पदानुक्रम मौजूद है।”

रॉय ने महत्वाकांक्षी वन्यजीव फिल्म निर्माताओं को सलाह दी कि इस क्षेत्र में जुनून सबसे महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा, “कोई एक जगह नहीं है जहां आप वन्यजीव फिल्म निर्माण सीख सकें। इसके लिए वन्यजीवों के प्रति जुनून की आवश्यकता होती है और भारत अपनी समृद्ध जैव विविधता के साथ इसे आगे बढ़ाने के लिए एकदम सही जगह है।”

श्री रॉय ने नैतिक फिल्म निर्माण के महत्व पर भी जोर दिया। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि विषय और प्रकृति को हमेशा शूटिंग में अधिक प्राथमिकता दी जानी चाहिए। उन्होंने बताया, “हम वन्यजीवों को यह बताए बिना कि हम वहां हैं, बिना किसी बाधा के दृश्यों को उतारना  चाहते हैं।” उन्होंने अफसोस जाहिर किया कि 24X7 वन्यजीव चैनलों के युग में, किसी भी परिस्थिति में वन्यजीवों को परेशान न करने की यह नैतिकता पीछे छूट रही है।

वन्यजीव फिल्म निर्माण के विकास पर चर्चा करते हुए, रॉय ने डिजिटल प्रौद्योगिकी के प्रभाव को स्वीकार किया, जिसने मोबाइल कैमरों पर वन्यजीवों को कैद करना आसान बना दिया है। हालांकि, उन्होंने आज पेशेवर वन्यजीव फिल्म निर्माण से जुड़ी उच्च लागत की ओर भी संकेत किया।

रॉय ने भारत में वन्यजीव संरक्षण की वर्तमान स्थिति पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि बढ़ती मानव आबादी और भूमि की कमी के कारण मानव व वन्यजीवों के बीच बार-बार संघर्ष हो रहे हैं। उन्होंने कहा, “हम वन्यजीव प्रबंधन के लिए अफ्रीका के दृष्टिकोण से सीख सकते हैं, जो जानवरों के झुंडों के चुनिंदा न्यूनीकरण की अनुमति देता है, हालांकि भारत में ऐसे तरीकों को लागू करना चुनौतीपूर्ण है।”

छात्रों को प्रकृति को आत्मसात करने के लिए प्रोत्साहित करते हुए, रॉय ने उनसे बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी या मद्रास नेचुरल साइंस सोसाइटी जैसे प्रकृति क्लबों और संगठनों में शामिल होने का आग्रह किया। उन्होंने वन शिल्प सीखने और जनजातीय ज्ञान से प्रेरणा लेने के महत्व पर जोर दिया।

वन्यजीव फिल्म निर्माण में कथात्मक सामग्री को शामिल करने के बारे में सवालों के जवाब में, रॉय ने खुलासा किया कि वह मुख्यधारा के सिनेमा में अधिक वन्यजीवों को लाने के लिए एक स्क्रिप्ट पर काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “ओटीटी प्लेटफॉर्म के साथ, बड़े सितारों पर निर्भर हुए बिना वन्यजीवों को प्रदर्शित करने के अपार अवसर हैं।”

अपने निजी अनुभवों पर चर्चा करते हुए रॉय ने बताया कि पहली बार बाघों को फिल्माते समय उन्हें किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उन्होंने बताया, “हमने पेड़ों पर चढ़ने और शाखाओं पर बैठने की कोशिश की, फिर जायरो स्टेबलाइजर का इस्तेमाल किया, लेकिन शोर से बाघ परेशान हो गए। आखिरकार, हमने बांस से 14 फीट ऊंची एक मचान बनाई।”

अंत में उन्होंने कहा कि कम-ज्ञात प्रजातियों की ओर ध्यान आकर्षित करने में सोशल मीडिया में बहुत क्षमता है। उन्होंने सलाह दी, “यदि आपके पास किसी प्रजाति के बारे में कोई दिलचस्प कहानी है, तो आप इसे अपने मोबाइल फोन के माध्यम से बता सकते हैं और इसे लोगों तक पहुंचा सकते हैं।”

तमिलनाडु के फिल्म और टीवी संस्थान के पूर्व छात्र श्री अल्फोंस रॉय के फोटोग्राफी निदेशक के रूप में उल्लेखनीय कार्यों में ‘गौर हरि दास्तान’, ‘लाइफ इज गुड’ और ‘उरुमी’ जैसी प्रशंसित फिल्में शामिल हैं। रॉय की सिनेमाई दृष्टि ने उन्हें कई पुरस्कार दिलाए हैं, जिनमें ‘तिब्बत द एंड ऑफ टाइम’ (1995) के लिए प्राइम टाइम एमी पुरस्कार और ‘टाइगर किल’ (2008) के लिए ह्यूगो टेलीविजन पुरस्कार, साथ ही ‘आमिर’ (2009) के लिए सर्वश्रेष्ठ छायांकन के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार नामांकन शामिल है।

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मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव 2024 में पहली बार डॉक्यूमेंट्री फिल्म बाज़ार

डॉक्यू-फिल्म बाज़ार का उद्देश्य स्थापित पेशेवरों और उभरती प्रतिभाओं के बीच सहयोग को बढ़ावा देते हुए एक इंटरैक्टिव हब बनना है

मुंबई। 18वें मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (एमआईएफएफ) में आज पहली बार डॉक्यूमेंट्री फिल्म बाज़ार का उद्घाटन किया गया। यह अभूतपूर्व पहल एमआईएफएफ के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जो दक्षिण एशिया में गैर-फीचर फिल्मों के लिए मुख्य मंच के रूप में अपनी स्थिति को मजबूत करती है।

डॉक्यूमेंट्री फिल्म बाज़ार, एक अग्रणी पहल है, जिसका उद्देश्य फिल्म निर्माताओं को खरीदारों, प्रायोजकों और सहयोगियों से जुड़ने के लिए एक अनूठा मंच प्रदान करके वृत्तचित्र फिल्म उद्योग को प्रगति पथ पर लाना है। राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (एनएफडीसी) कॉम्प्लेक्स में 16 से 18 जून 2024 तक आयोजित होने वाले इस अभिनव कार्यक्रम ने 27 भाषाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले 10 देशों से करीब 200 परियोजनाओं को अपनी ओर आकर्षित किया है।

फिल्म निर्माता सुश्री अपूर्वा बख्शी ने एमआईएफएफ के महोत्सव निदेशक और एनएफडीसी के प्रबंध निदेशक श्री पृथुल कुमार और पीआईबी (पश्चिम क्षेत्र) की एडीजी और केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) की मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) सुश्री स्मिता वत्स शर्मा की उपस्थिति में डॉक्यूमेंट्री फिल्म बाजार का उद्घाटन किया।

नवोदित फिल्म निर्माताओं को संबोधित करते हुए सुश्री अपूर्वा बख्शी ने उनसे महत्वपूर्ण सहयोग के लिए डॉक्यूमेंट्री बाज़ार के सुअवसरों का उपयोग करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा, “आइए हम यहां  नए विचारों, संभावनाओं और सहयोगों को जानें, बातचीत करें और तलाशें।”

बाज़ार में तीन क्यूरेटेड वर्टिकल होंगे:
• सह-निर्माण बाज़ार: 16 परियोजनाओं की विशेषता वाला यह खंड फ़िल्म निर्माताओं को दुनिया भर के संभावित सहयोगियों, निर्माताओं, सह-निर्माताओं और वित्तपोषकों से जोड़ता है।
• कार्य-प्रगति (डब्ल्यूआईपी) प्रयोगशाला: 6 परियोजनाओं को रफ-कट चरण में प्रदर्शित करते हुए, यह प्रयोगशाला उद्योग के पेशेवरों से प्राप्त अमूल्य फ़ीडबैक और मार्गदर्शन द्वारा इन फ़िल्मों को बेहतर बनाने का कार्य करती है।
• व्यूइंग रूम: एक विशेष स्थान जो 106 पूर्ण वृत्तचित्रों, लघु फ़िल्मों और एनिमेशन फ़िल्मों को प्रतिनिधियों के एक क्यूरेटेड दर्शकों के सामने प्रस्तुत करता है, जो वितरण सौदों और वित्तपोषण के अवसर प्रदान करता है।

इन कार्यक्षेत्रों के अलावा, यह बाज़ार एक ‘खुले क्रेता-विक्रेता सम्मेलन’ की मेज़बानी करेगा, जिसमें उत्पादन, सिंडिकेशन, अधिग्रहण, वितरण और बिक्री में सहयोग की सुविधा होगी। एक समर्पित सत्र में वृत्तचित्र फिल्म निर्माण और कॉर्पोरेट ब्रांडिंग के बीच संबंधों के महत्व, साथ ही भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फिक्की) जैसे उद्योग जगत के दिग्गज द्वारा ब्रांड संवर्द्धन और सामाजिक प्रभाव के लिए एक उपकरण के रूप में कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) फंडिंग पर चर्चा होगी।

डॉक्यू-फिल्म बाज़ार का उद्देश्य स्थापित पेशेवरों और उभरती हुई प्रतिभाओं के बीच सहयोग को बढ़ावा देते हुए एक इंटरैक्टिव हब बनना है। उत्पादन के विभिन्न चरणों में महत्वपूर्ण सहायता प्रदान करके, इसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर प्रभावशाली वृत्तचित्रों के निर्माण और वितरण में वृद्धि करना है।

डॉक्यूमेंट्री फिल्म बाज़ार फिल्म निर्माताओं की आवाज़ उठाने और आकर्षक कहानियों को अंतर्राष्ट्रीय सिनेमा के मंच पर लाने के लिए प्रतिबद्ध है। प्रतिभागियों को वर्तमान रुझानों, बाजार की मांगों, वितरण रणनीतियों और दर्शकों की प्राथमिकताओं के बारे में बहुमूल्य ज्ञान प्राप्त होगा, साथ ही उद्योग के विशेषज्ञ परियोजनाओं को उनकी पूर्ण क्षमता प्राप्त करने में सहयोग के लिए व्यावहारिक प्रतिक्रिया प्रदान करेंगे।

बाजार में महाराष्ट्र फिल्म, स्टेज और सांस्कृतिक विकास सहयोग लिमिटेड, जेएंडके, आईडीपीए, सिनेडब्स आदि जैसे विभिन्न संगठनों द्वारा कई स्टॉल लगाए गए हैं। केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय ने श्रीलंका, बेलारूस, ईरान और अर्जेंटीना जैसे देशों के स्टॉल लगाने की भी सुविधा प्रदान की है।

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मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में विशेष थीम “अमृत काल में भारत” के अंतर्गत 6 फिल्में प्रदर्शित की जाएंगी

विकसित राष्ट्र के लिए विचारों और साझी प्रतिबद्धता को बढ़ावा देने के लिए, मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (एमआईएफएफ) के 18वें संस्करण में इस वर्ष की विशेष थीम “अमृत काल में भारत” के अंतर्गत छह चुनिंदा फिल्मों का गुलदस्‍ता पेश किया जाएगा। प्रदर्शित की जाने वाली छह असाधारण फिल्में भारत की प्रगति, विकास और समृद्धि को दर्शाएंगी।

प्रत्‍येक वर्ष, राष्ट्रीय प्रतियोगिता श्रेणी के तहत इस खंड के लिए एक विशेष थीम का चयन किया जाता है। एमआईएफएफ के 18वें संस्करण की थीम “अमृत काल में भारत” है। विजेता को ट्रॉफी और प्रमाण पत्र के साथ 1 लाख रुपये की नकद राशि प्रदान की जाएगी।

18वें एमआईएफएफ के लिए राष्ट्रीय प्रतियोगिता के निर्णायक मंडल में एडेल सीलमैन-एगबर्ट, डॉ. बॉबी सरमा बरुआ, अपूर्वा बख्शी, मुंजाल श्रॉफ और अन्ना हेनकेल-डोनरस्मार्क जैसे उल्लेखनीय नाम शामिल हैं, जो सर्वश्रेष्ठ भारतीय वृत्तचित्र, लघु फिल्म, एनिमेशन, सर्वश्रेष्ठ डेब्यू फिल्म पुरस्कार (महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्रायोजित) और सर्वश्रेष्ठ छात्र फिल्म पुरस्कार (आईडीपीए द्वारा प्रायोजित) के अतिरिक्‍त कई तकनीकी पुरस्कार और “अमृत काल में भारत” पर सर्वश्रेष्ठ लघु फिल्म के लिए एक विशेष पुरस्कार प्रदान करेंगे।

“अमृत काल में भारत” श्रेणी हेतु सर्वश्रेष्ठ लघु फिल्म के लिए विशेष पुरस्कार के तहत चयनित फिल्में

1. अजय ध्वजा
यह संगीत वीडियो किसी के देश के प्रति देशभक्तिपूर्ण श्रद्धांजलि है, जो उसके प्रति गहरे जुड़ाव और गर्व को दर्शाता है। यह बलिदान करने और राष्ट्र के कल्याण का समारोह मनाने की प्रतिबद्धता को व्यक्त करता है। “अपनी मिट्टी से निर्मित” होने की कल्पना भूमि से प्राप्त होने वाले अपनेपन और पहचान की भावना को रेखांकित करती है।

ओनाके ओबव्वा
ओनाके ओबव्वा एक बहादुर महिला ओनाके के बारे में एक फिल्म है। जब हैदर अली ने चित्रदुर्ग किले की दीवारों को तोड़ने के लिए बार-बार प्रयास किए, तो उन्हें डटकर विरोध का सामना करना पड़ा। जब हैदर अली की सेना किले के साधारण कर्मचारियों के वेश में एक गुप्त मार्ग तक पहुंचने में सफल रही, तो एक साधारण गृहिणी ओबव्वा ने पाया कि घुसपैठिए गुप्त मार्ग से घुस रहे हैं। बिना किसी हिचकिचाहट के, उसने एक अपरंपरागत हथियार के रूप में पास में पड़े एक ओनाके, एक आम मूसल को उठाया और एक-एक करके घुसपैठियों का सामना किया और बड़ी कुशलता से अपने मूसल का घातक उपयोग कर उन्‍हें पीछे खदेड़ दिया।

एवरीव्‍हेयर
फिल्म एवरीव्हेयर हमारी फास्ट फैशन लाइफस्टाइल की चर्चा करती है, जहां हम जितना हो सके, उतना उपभोग करने की इच्छा से प्रेरित होते हैं। हम अपने कपड़ों के अवयवों  के बारे में अनभिज्ञ हैं- जिनमें से अधिकांश पॉलिमर से बने होते हैं। जब किसी कपड़े का जीवन काल समाप्‍त हो जाता है, तो उसे लैंडफिल में दफना दिया जाता है। यह फिल्म हमें अहमदाबाद के सबसे बड़े लैंडफिल पिराना में ले जाती है, जहां किरदारों को अस्‍थायी फैशन के प्रभावों को दर्शाने के लिए प्लास्टिक का आवरण पहनाया जाता है।

इंडिया-होप्‍स 24

विभिन्न पीढ़ियों के भारतीय, देश भर में 2024 में भारत के लिए अपनी आशाओं के बारे में, उस भाषा में बात करते हैं जिसमें वे सबसे अधिक सहज हैं। हमारे देश भर के दृश्यों की एक चित्रावली के साथ, यह फिल्म भारत की गौरवशाली विविधता के प्रति एक श्रद्धांजलि है।

मोरिंगा-नेचर्स पैनसीअ (रामबाण दवा)
मोरिंगा का पेड़ (मोरिंगा ओलीफेरा) ‘अमृत काल’ में सुपर फूड के स्रोत के रूप में उभर रहा है। मोरिंगा के पत्ते में कुपोषण उन्मूलन कार्यक्रमों में शामिल किए जाने की अच्छी संभावना है क्योंकि यह पोषक तत्वों से भरपूर है और पोषण संबंधी सप्लीमेंट्स की तुलना में सस्ता है। यह वृत्तचित्र फिल्म मोरिंगा के लाभों और एक लाभदायक फसल के रूप में इसकी संभावना का पता लगाती है जो जलवायु परिवर्तन का सामना कर सकती है और विदेशी मुद्रा अर्जित कर सकती है।

बिगारी कामगार
यह लघु वृत्तचित्र फिल्म भारत के पुणे में सफाई कर्मचारियों के चुनौतीपूर्ण जीवन पर प्रकाश डालती है, जिसमें एक मध्यम आयु वर्ग की महिला कर्मचारी के अनुभवों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। उनकी कहानी के माध्यम से, फिल्म इन श्रमिकों द्वारा सामना किए जाने वाले दैनिक संघर्षों और समस्याओं को उजागर करती है, उनकी कार्य स्थितियों और समुदाय के अपशिष्ट प्रबंधन प्रथाओं पर प्रकाश डालती है। यह अपशिष्ट निपटान के प्रति स्थानीय निवासियों के दृष्टिकोण को भी प्रदर्शित करती है।

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मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (एमआईएफएफ) में भारत के वन्य जीवन का प्रदर्शन

मुंबई।  भारत एक उल्लेखनीय जैव विविधता वाला देश है, जहां वन्यजीव प्रजातियों और इको सिस्टम की एक विशाल श्रृंखला स्थित है। हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियों से लेकर पश्चिमी घाट के हरे-भरे जंगलों तक, भारत के विविध भू-परिदृश्य बाघ, हाथी, गैंडे, तेंदुए और कई तरह की पक्षी प्रजातियों सहित कई जीवों के लिए आवास प्रदान करते हैं।

मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (एमआईएफएफ) का 18वां संस्करण गैर-प्रतियोगिता अनुभाग में वन्यजीव कहानियों पर एक विशेष रूप से क्यूरेट किए गए पैकेज को प्रस्तुत करके भारत के अपने वन्यजीवों के साथ गहरे संबंध को प्रदर्शित करता है। वृत्तचित्रों का यह विशेष संग्रह विभिन्न प्रजातियों की सुंदरता, चुनौतियों और तत्काल संरक्षण आवश्यकताओं को रेखांकित करता है।

ये वृत्तचित्र, अपने निर्देशकों के साथ मिलकर, ऐसी कहानियां सामने लाते हैं जो मनोरंजक और शिक्षाप्रद दोनों हैं, जिनका उद्देश्य दर्शकों को पर्यावरण के लिए कदम उठाने के लिए प्रेरित करना है। आइए वन्यजीव पैकेज के अंतर्गत प्रदर्शित वृत्तचित्रों पर एक दृष्टि डालें:

विंग्स ऑफ हिमालयाज
जलवायु चेतना के युग में, “विंग्स ऑफ हिमालयाज” एक रोमांचकारी साहसिक और एक अभूतपूर्व वृत्तचित्र है जो वैश्विक रूप से संकटग्रस्त दाढ़ी वाले गिद्ध की आकर्षक दुनिया की खोज करता है। यह फिल्म नेपाली जीवविज्ञानी डॉ. तुलसी सुबेदी और उनके शिष्य संदेश का अनुसरण करती है, जो इन जीवन रूपों के भविष्य की रक्षा के लिए बदलती जलवायु की चुनौतियों का बहादुरी से सामना करते हैं। अंग्रेजी में 31 मिनट लंबे इस वृत्तचित्र में विश्व भर के दर्शकों को कदम उठाने और प्रकृति के साथ सामंजस्य में अधिक टिकाऊ बने रहने के लिए प्रेरित करने की उम्मीद की गई है।

प्रदर्शित किए जाने की तिथि, समय और स्थान: 20 जून, 2024, रात 8.30 बजे जेबी हॉल

निर्देशकों के बारे में:
एक वन्यजीव फिल्म निर्माता किरण घाडगे ने भारत और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संरक्षण प्रयासों को रेखांकित करने वाली कई वृत्तचित्र फिल्में बनाई हैं। किरण व्याख्यान और लेखन के माध्यम से प्रकृति के पक्ष में आवाज भी उठाते हैं और स्थायी पर्यटन और संरक्षण को बढ़ावा देते हैं।

मुनीर विरानी एक संरक्षण जीवविज्ञानी, फोटोग्राफर, फिल्म निर्माता और लेखक हैं, जिन्हें संरक्षण परियोजना डिजाइन, निष्पादन, प्रबंधन और प्रसार में बीस वर्षों से अधिक का अनुभव है।

होमकमिंग: एक हरे समुद्री कछुए की रोमांच गाथाः “होमकमिंग” एक हरे कछुए की जिज्ञासा जगाने वाले साहसिक कार्य की जीवन यात्रा का अनुसरण करती है। 30 वर्षों की अवधि में, पुडल्स एक दूरस्थ समुद्र तट पर अंडे सेने से लेकर समुद्र तक, खतरनाक रूप से रेंगने, अपनी पहली तैराकी का अनुभव करने और अंततः समुद्र के विशाल विस्तार में बसने की यात्रा करती है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों से समुद्री पानी के अनियंत्रित प्रदूषण के कारण, पुडल्स को अपने घर वापस समुद्र तट पर जाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जहां वह पैदा हुई थी। इस प्रदूषण के कारण अब उसकी प्रजाति के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है।

प्रदर्शित किए जाने की तिथि, समय और स्थान: 18 जून, 2024, शाम 6.45 बजे जेबी हॉल

निर्देशक के बारे में:
अमोघवर्षा जे.एस. एक भारतीय फिल्म निर्माता और वन्यजीव फोटोग्राफर हैं। 2021 में, उन्होंने सर डेविड एटनबरो द्वारा सुनाई गई अपनी फिल्म “वाइल्ड कर्नाटक” के लिए सर्वश्रेष्ठ एक्सप्लोरेशन/वॉयस ओवर फिल्म के रूप में 67वॉ राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता।

ब्लड लाइन
“ब्लड लाइन” माधुरी या टाइगर (टी10) की कहानी है, जो ताडोबा अंधारी टाइगर रिजर्व की एक विख्यात मादा बाघ है। उसकी कहानी हमें मध्य भारत के जंगलों में ले जाती है, जो भारत की बाघ राजधानी के केन्द्र में है। हाल के वर्षों में आई रिपोर्टें मध्य भारत में बाघों की आबादी में वृद्धि का संकेत देती हैं, लेकिन उनकी बढ़ती संख्या एक सिकुड़ते भूमि प्रदेश की चुनौती का सामना कर रही है। वास का नुकसान, तेजी से खंडित गलियारे और शिकार पूल के साथ-साथ अधिशेष बाघ आबादी एक विपरीत तस्वीर पेश करती है। वृत्तचित्र इन शानदार बाघों की बढ़ती वंशावली की कठोर वास्तविकता प्रस्तुत करता है। यह फिल्म माधुरी के जीवन और उसकी संतति की एक असाधारण यात्रा का अनुसरण करती है, जो अस्तित्व की रक्षा और अपने प्यारे शावकों की सुरक्षा के लिए एक अंतिम लड़ाई है।

प्रदर्शित किए जाने की तिथि, समय और स्थान: 17 जून, 2024, रात 8.30 बजे जेबी हॉल, एनएफडीसी

निर्देशक के बारे में:
श्रीहर्ष गजभिये, एक उत्साही वन्यजीव फोटोग्राफर हैं, जिनका जन्म और पालन-पोषण भारत की बाघ राजधानी में हुआ है। पहली बार जब उन्होंने जंगल में बाघ की तस्वीर खींची, तब से ही उन्हें प्राकृतिक दुनिया के प्रति असीम लगाव पैदा हो गया। पिछले कुछ वर्षों में, श्रीहर्ष ने अपनी कहानी कहने और फोटोग्राफी के कौशल को और अधिक निखारा है, माधुरी का कई वर्षों तक करीबी रूप से अनुसरण किया है, ताकि उसकी उस असाधारण कहानी की खोज की जा सके, जिसे पूरा होने में आधा दशक बीत गया।

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18वें मुंबई फिल्म फेस्टिवल में डाक्यूमेंट्री फिल्म निर्माण के मुद्दों पर चर्चा सत्र

जम्मू और कश्मीर में उभरते फिल्म निर्माताओं के लिए एक कोष स्थापित करने की योजना है: जतिन किशोर, निदेशक, सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, जम्मू और कश्मीर

डॉक्यूमेंट्री स्पेस ने तथ्यात्मक मनोरंजन के रूप में पुनः ब्रांडिंग की है: नेटवर्क18 के कंटेंट और संचार अध्यक्ष अरुण थापर

एमयूबीआई  फीचर और गैर-फीचर फिल्मों के बीच अंतर किए बिना उच्च गुणवत्ता वाली सामग्री को प्राथमिकता देता है: प्रोग्रामिंग निदेशक स्वेतलाना नौडियाल

डॉक्यूमेंट्री की मान्यता के लिए अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार कोई शर्त नहीं: डॉक्यूबे के मुख्य परिचालन अधिकारी गिरीश द्विभाष्यम

मुंबई।  डॉक्यूमेंट्री, शॉर्ट फिक्शन और एनिमेशन फिल्मों के लिए 18वें मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव ने आज “बियांड द लेंस: फंडिंग एंड मोनेटाइजेशन इन डॉक्यूमेंट्री फिल्म मेकिंग” विषय पर एक आकर्षक पैनल चर्चा की। इस आकर्षक सत्र में डॉक्यूमेंट्री निर्माणों से फंडिंग और लाभ कमाने के लिए अभिनव तरीकों पर चर्चा की गई, जो अपनी कहानियों को जीवंत करने के इच्छुक फिल्म निर्माताओं के लिए बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।

सत्र की शुरुआत जम्मू और कश्मीर में सूचना और जनसंपर्क विभाग के निदेशक, आईएएस, जतिन किशोर ने की, जिन्होंने जम्मू और कश्मीर को एक प्रमुख फिल्म निर्माण गंतव्य के रूप में बढ़ावा देने के उद्देश्य से क्षेत्र की नई फिल्म नीति पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “हम डॉक्यूमेंट्री, शॉर्ट फिक्शन और एनिमेशन फिल्मों के लिए विशेष प्रावधानों के साथ 1.5 करोड़ की अधिकतम सब्सिडी दे रहे हैं।” इसके अतिरिक्त, उन्होंने कहा कि उनकी सिंगल विंडो सिस्टम फिल्म निर्माताओं के लिए जम्मू और कश्मीर में शूटिंग के लिए आवश्यक अनुमति प्राप्त करने की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करेगी। जतिन किशोर ने नवोदित फिल्म निर्माताओं का समर्थन करने के लिए एक फंड स्थापित करने की जम्मू और कश्मीर प्रशासन की योजना की भी घोषणा की।

(फोटो में: 18वें एमआईएफएफ में “बियांड द लेंस: फंडिंग एंड मोनेटाइजेशन इन डॉक्यूमेंट्री फिल्म मेकिंग”विषय पर जारी पैनल चर्चा)

एमयूबीआई में एशिया-प्रशांत क्षेत्र की प्रोग्रामिंग निदेशक स्वेतलाना नौडियाल ने डाक्यूमेंट्री के उभरते परिदृश्य पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि डाक्यूमेंट्रीज ने एक लंबा सफर तय किया है, लेकिन उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि अभी भी बहुत प्रगति की जानी है। नौडियाल ने बताया कि एमयूबीआई  में, वे फीचर और गैर-फीचर फिल्मों के बीच अंतर किए बिना हाई क्वालिटी वाले कंटेंट को प्राथमिकता देते हैं।

नेटवर्क18 में सीनियर मीडिया एग्जक्यूटिव एंड प्रेसिडेंट ऑफ कंटेंट एंड डाक्यूमेंटेशन अरुण थापर ने कलाकार और पत्रकार दोनों के रूप में डाक्यूमेंट्री की दोहरी भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि डाक्यूमेंट्री क्षेत्र में एक नया ब्रांडिंग हुआ है, जिससे फैक्चुअल एंटरटेनमेंट को बढ़ावा मिला है। थापर का कहना था कि डाक्यूमेंट्री समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, हालांकि उनकी यात्रा आसान नहीं है। उनका मानना था कि डाक्यूमेंट्री को वित्तीय सफलता प्राप्त करने के लिए, उन्हें बाजार की मांगों को पूरा करने के लिए तैयार किया जाना चाहिए। थापर ने कहा, “फेस्टिवल सर्किट फिल्मों को स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म पर पेश करने से पहले उन्हें बढ़ावा देने के लिए एक मूल्यवान मंच प्रदान करता है। क्राउडसोर्सिंग भी एक व्यवहार्य फंडिंग विकल्प है।” उन्होंने अमेरिकी बाजार के साथ समानताएं बताते हुए सार्वजनिक प्रसारण सेवाओं और सरकारी समर्थन के महत्व पर भी जोर दिया।

डॉक्यूबे के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर गिरीश द्विभाष्यम ने स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म पर आने वाले विचारों को साझा किया। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म निर्माताओं को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके विषय व्यापक दर्शकों को आकर्षित करें। द्विभाष्यम ने कहा कि अखिल भारतीय या वैश्विक अपील के साथ अच्छी तरह से शोध की गई सामग्री आवश्यक है। उन्होंने बताया कि डॉक्यूबे में, वे अनुभवी खिलाड़ियों और युवा फ़िल्म निर्माताओं दोनों के कंटेंट के साथ अपने पोर्टफोलियो को बैलेंस बनाने की कोशिश करते हैं। उन्होंने कहा, “जबकि अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्रचार को बढ़ावा दे सकते हैं, वे मान्यता के लिए कोई शर्त नहीं हैं। ठोस शोध के साथ एक अच्छी कहानी अपने आप में अलग हो सकती है।”

फिल्म मॉस्को के संस्थापक इलिया टॉल्स्टोव ने रूसी बाजार में बढ़ते अवसरों पर चर्चा की। हालांकि एक समय पश्चिमी विषय-वस्तु वैश्विक स्तर पर हावी थी, लेकिन इलिया टॉल्स्टोव ने कहा कि अब परिदृश्य बदल रहा है और रूस में फिल्म उद्योग का विस्तार हो रहा है। “रूस में कई फिल्म समारोह हैं, जो फिल्म निर्माताओं के लिए रूसी बाजार में प्रवेश करने का एक उपयुक्त समय है।” उन्होंने पुष्टि की कि वे सह-निर्माण विचारों के लिए खुले हैं और फिल्म निर्माताओं का समर्थन करने के लिए उत्सुक हैं, उन्होंने कहा कि रूस में भारतीय फिल्मों को उच्च दर्जा दिया जाता है।

सत्र का संचालन लाइफोग्राफर और तक्षशिला मल्टीमीडिया के संस्थापक रजनी आचार्य ने किया, जिन्होंने डाक्यूमेंट्री फिल्म निर्माण में निहित जोखिमों को रेखांकित किया। आचार्य ने कहा, “डाक्यूमेंट्रीज के लिए सफलता का अनुपात लगभग 10% है, और फिल्म निर्माताओं को 90% जोखिम के लिए तैयार रहना चाहिए। किसी भी डाक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता के सामने सबसे बड़ी चुनौती फंडिंग है।”

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कश्मीर में तीर्थ यात्रियों पर हमला और पाकिस्तानी क्रिकेट खिलाड़ी की मानसिकता

कश्मीर में तीर्थयात्रियों की बस पर जिस दिन पाकिस्तानी आतंकवादियों का हमला हुआ, उसी दिन पाकिस्तान के क्रिकेटर कामरान ने भारतीय गेंदबाज अर्शदीप सिंह पर आपत्तिजनक टिप्पणी की । दोनों घटनाओं ने पाकिस्तान की उस मानसिकता एक बार उजागर किया है जो नफरत और इंसानियत के कत्ल की बुनियाद पर खड़ी है।

भारत और पाकिस्तान के बीच वार्ता करने और भाईचारा बढ़ाने की बात कहने और सुनने में तो अच्छी लगती है पर वास्तविकता से इसका दूर दूर तक संबंध नहीं। भारत ने भाईचारा निभाने का हमेशा प्रयास किया किन्तु पाकिस्तान की प्रतिक्रिया इसके विपरीत रही है । भाईचारा एक तरफा बहता पानी नहीं है । इस सत्य से सैंकड़ों बार भारत को साक्षात्कार हो चुका है। पाकिस्तान सद्भाव और भाईचारे के संबंध नहीं, भारत में अशांति फैलाना चाहता है । वह भी जिहाद का लेबल लगाकर। भारत में इस नारे को बार बार सुना गया है और इस नाम बेगुनाह इंसानों का खून बहते भी देखा है । नौ जून को घटीं दोनों घटनाओं में पाकिस्तान और उसके निवासियों की यही मानसिकता एक बार फिर सामने आई है ।

नौ जून को पाकिस्तानी आतंकवादियों ने हिन्दू तीर्थ यात्रियों की बस को निशाना बनाया और दूसरी घटना पाकिस्तान की है । पाकिस्तानी क्रिकेटर कामरान ने भारतीय गेंदबाज अर्शदीप सिंह पर आपत्तिजनक टिप्पणी की । यह दोनों घटनाएँ जिस दिन घटीं वह साधारण दिन नहीं था । बहुत ऐतिहासिक दिन था । प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी और उनका मंत्रीमंडल अपनी तीसरी पारी आरंभ करने केलिये शपथ ग्रहण करने जा रहा था और दूसरी ओर भारत-पकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच होने वाला था । भारत ही नहीं पूरी दुनियाँ के लोगों का ध्यान दोनों अवसरों पर लगा था । इस ऐतिहासिक अवसर को ग्रहण लगाने केलिये हिन्दू तीर्थ यात्रियों की बस को निशाना बनाया गया । यह बस वैष्णोदेवी जा रही थी । इसमें कुल 45 यात्री थे । ड्राइवर को गोली लगने से बस अनियंत्रित होकर खाई में गिर गई। जिससे दस तीर्थ यात्रियों का निधन मौके पर ही हो गया । शेष 35 अस्पताल में हैं। सारे यात्री निहत्थे थे ।

इस आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता कि यदि बस खाई में नहीं गिरी होती तो आतंकवादी सभी तीर्थ यात्रियों को बस से उतारकर मौत के घाट उतारते । लेकिन बस के खाई में गिरने से अन्य यात्रियों के प्राण बच गये । हमलों की ताजा घटना में आतंकवादियों का यह अकेला हमला नहीं था । ग्यारह और बारह जून की मध्य रात्रि को दो और हमले हुए । पहला हमला कठुआ जिले केहीरानगर सैदा सुखल गांव में हुआ इस हमले में एक नागरिक की मौत हुई । इसी रात दूसरा हमला डोडा के छत्रकला सेना कैंप पर हुआ । इस हमले में पांच जवान घायल हुये ।

पाकिस्तान का षड्यंत्र और मानसिकता
इन सभी हमलों को पाकिस्तान से नियंत्रित किया जा रहा था और आतंकवादी भी पाकिस्तानी नागरिक हैं। इसकी पुष्टि मारे गये एक आतंकवादी और जब्त सामान से होती है । सुरक्षा बलों की मुठभेड़ में एक आतंकवादी मारा गया । जो आतंकवादी मारा गया वह पाकिस्तानी था। जो सामान जब्त हुआ उस पर भी पाकिस्तानी कंपनियों और दुकानों के नाम हैं। कश्मीर में घुसकर पाकिस्तानी आतंकवादी हिन्दू तीर्थ यात्रियों को हमेशा से निशाना बनाते हैं और जिहाद का नारा लगाते हैं ।

पाकिस्तान में बैठे आतंकवाद के सरगना भारत के मुसलमानों की भावुकता का लाभ उठाना जानते हैं। जिहाद और मजहब की बात सुनकर भारत के मुसलमान आतंकवादियों से तटस्थ हो जाते हैं। कुछ का ब्रेन वाॅश करके अपनी सहायता के लिये भी सक्रिय कर लेते हैं। पाकिस्तान ऐसा नेटवर्क खड़ा करके भारत के हर कोने में दुष्प्रचार करता है, कश्मीर में सबसे अधिक । पाकिस्तान निर्माण के सीमापार से एक नारा सुनाई दिया था “हँस के लिया है पाकिस्तान, लड़ कर लेंगे हिन्दुस्तान” और बाकी स्वतंत्रता के बाद से पाकिस्तान कश्मीर में सक्रिय हो गया था । उसने कश्मीर के एक बड़े हिस्से पर अधिकार कर ही लिया है और शेष कश्मीर में अपना अधिकार करने केलिए आतंकवादी अभियान चला रहा है ।

आतंकवाद से कश्मीर के गैर मुस्लिम नागरिकों को भयभीत करके जा रहा है, यदि भारत के अन्य भागों से श्रमिक आते हैं तो उन्हें भी मारा जा रहा है। इसी षड्यंत्र के तहत कश्मीरी पंडितों को प्रताड़ित किया गया, गैर मुस्लिम श्रमिकों और कश्मीर जाने वाले तीर्थ यात्रियों पर हमले होते हैं । आतंकवाद और इंसानियत को शर्मसार करने वाले बेगुनाहों की हत्या को पाकिस्तान जिहाद का नाम देता है । पाकिस्तानी मानसिकता को भाईचारे, इंसानियत और सद्भाव शाँति से कोई मतलब नहीं होता । इसे पाकिस्तान के आंतरिक वातावरण से भी समझा जा सकता है । पाकिस्तान वैसा ही वातावरण कश्मीर में बनाना चाहता था । उसके लगातार षड्यंत्रों से कश्मीर वीरान होने लगा था ।

पिछले चार पांच वर्षों से कश्मीर का वातावरण बदल रहा है । प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी के संकल्प के अनुरूप धारा 370 हटी और कश्मीर की चहल-पहल बढ़ने लगी । पर्यटकों की संख्या बढ़ी आर्थिक स्थिति सुधरी । आतंकवाद से निपटने के लिये सरकार ने भी सख्ती दिखाई और 2019 से कश्मीर में खुशहाली आने लगी थी । यह खुशहाली देखकर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीरी नागरिकों में भी भारत से मिलने की ललक जागी। जो पाकिस्तान केलिये एक खतरा लगा । इसलिये अब पाकिस्तान फिर से कश्मीर में आतंकवाद की जड़े जमाने का षड्यंत्र करने लगा । और इसके लिये उसने नौ जून का दिन चुना । नौ जून से बारह जून तक कश्मीर में आतंकवाद की कुल चार घटनाएँ घटीं। ये डोडा, कठुआ और रियासी क्षेत्र में हुईं। ये तीनों क्षेत्र घाटी में अवश्य हैं पर पाकिस्तानी सीमा से थोड़ा दूर हैं । इन स्थानों में आकर अपने पैर जमाना सरल न था । इसलिये तैयारी पहले से की जा रही थी । लगभग दो माह से आतंकवादियों की हलचल की सूचनाएँ भी मिल रहीं थी ।

स्थानीय प्रशासन की सतर्कता पर प्रश्नचिन्ह
कश्मीर की इन घटनाओं के बाद प्रशासन ने तलाशी अभियान तेज किया है और तीर्थ यात्रियों की बस पर हमला करने वाले आतंकवादियों को सूचना देने वालों को बीस लाख के पुरुस्कार की घोषणा भी की है । फिर भी स्थानीय प्रशासन की सतर्कता पर प्रश्न तो उठते हैं । इसका सबसे बड़ा प्रश्न तो यही है कि स्थानीय एजेन्सियों को आतंकवादियों की सक्रियता की सूचना निरंतर मिल रही थी फिर भी कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं हो सकी । सबसे ताजी सूचना एक जून को मिली थी । पुंछ जिले के बुफ्लियाज जंगल में आतंकवादी गतिविधियों की सूचना मिली । इससे पहले 24 मई को सांबा जिले के बेईन-लाल चक सीमावर्ती गांव में संदिग्ध व्यक्ति देखे गये ।

उससे पहले 19 मई को कठुआ जिले के तरनाह नाला सीमा पर तीन हथियारबंद लोग देखे गये । इससे पहले 14 मई को कठुआ जिले के जाखोले-जुथाना जंगल के पास पाँच छै संदिग्ध लोग देखे गये । इन्होने एक महिला से खाना भी माँगा। इन प्रमुख सूचनाओं के अतिरिक्त अन्य सूचनाएँ भी मिलीं पर कोई प्रभावी कार्यवाही न हो सकी । और आतंकवादियों ने अपनी पूरी जमावट कर ली। हालाँकि नौ जून हिन्दू तीर्थ यात्रियों की बस पर हुये हमले के बाद दो स्थानों पर सुरक्षा बलों से मुठभेड़ भी हुई । जिसमें एक आतंकवादी मारा गया और कुछ सामग्री भी जब्त हुई । लेकिन यह मुठभेड़ सुरक्षा बलों की खोज के आधार पर नहीं हुई । एक मुठभेड़ गाँव वालों के शोर मचाने के कारण और एक आतंकवादियों द्वारा सुरक्षा बलों पर हमला करने के बाद मूठभेड़ हुई । मारा गया आतंकवादी पाकिस्तानी नागरिक है और जब्त सामग्री भी पाकिस्तान की है ।

यह ठीक है कि देश में चुनाव चल रहे थे और पूरा प्रशासन उसकी तैयारी में लगा था फिर भी संदिग्ध व्यक्तियों की धरपकड़ करना चुनावी सुरक्षा केलिये एक महत्वपूर्ण कार्य है । लगातार सूचनाओं के बाद प्रभावी कार्रवाई न होना आश्चर्यजनक है ।

वक्त्व्य की राजनीति से बढ़ता है आतंकवादियों का हौंसला
पाकिस्तान लगातार आतंकवाद को प्रोत्साहित कर रहा है । वह न झुकता है और न रुकता है । 1965 और 1971 के युद्ध में हुये नुकसान के बाद भी वह नहीं रुका । वह लगातार आतंकवादियों को भारत भेजकर हिंसा तनाव और साम्प्रदायिकता का वातावरण बनाकर भारत में अशांति पैदा कर रहा है । इसके बावजूद भारत में कुछ राजनेता मानवीय पक्ष को आगे करके ऐसे वक्तव्य देते हैं जिससे आतंकवादियों का हौसला बढ़ता है, एक प्रकार से उनको प्रोत्साहन मिलता है ।

आतंकवादियों को “भटका हुआ नौजवान” कहना, कभी बातचीत का सुझाव देना और आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान से बातचीत करने के सुझाव देना आतंकवाद को प्रोत्साहित करना नहीं तो और क्या है ? आतंकवाद की इन ताजा घटनाओं के बाद जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने एक बार फिर पाकिस्तान से बात करने का राग अलापा । उन्होंने कहा कि “यह कोई हैरानी की बात नहीं है कि आतंकी हमला हुआ है… इस बंदूक को खामोश करने के लिए एक बातचीत का माहौल बनाना होगा और इसके लिए दोनों देशों को भूमिका निभानी होगी…।” निसंदेह इस प्रकार के वक्तव्य आतंकवाद की गंभीरता से ध्यान हटाते हैं और परोक्ष रूप से आतंकवादियों का हौसला बढ़ता है ।

ऐसा भी नहीं है कि बातचीत से समस्या का हल खोजने का प्रयास न हुआ हो । समय-समय पर विभिन्न भारत सरकारें इस दिशा में प्रयास भी कर चुकीं हैं। 1953 के नेहरू लियाकत समझौते से अटलजी द्वारा समझौता एक्सप्रेस आरंभ करने तक दर्जनों प्रयास हुये हैं। घाटी के अलगाववादियों के साथ भी अनेक बातचीतें हो चुकी है, कुछ प्रत्यक्ष और कुछ वार्ताकारों के माध्यम से । प्रधानमंत्री मनमनोहन सिंह ने तो आतंकवाद के प्रमुख आरोपी यासीन मलिक को दिल्ली बुलाकर बातचीत की थी । लेकिन कोई सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आया था । सकारात्मक परिणाम मोदीजी के सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक के बाद आया था । लगभग चार साल कुछ राहत रही और अब फिर आतंकवाद सिर उठाने लगा है । इसके लिये सुरक्षाबलों की सख्ती ही बेहतर उपाय है न कि बातचीत। बातचीत के वक्तव्य आतंकवादियों का ही हौसला बढ़ाते हैं। इस सत्य को भी समझना चाहिए।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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एमआईएफएफ 2024 की राष्ट्रीय प्रतियोगिता में सम्मानित होने के लिए 77 फ़िल्मों में प्रतिस्पर्धा

वृत्त चित्र, लघु फ़िल्म और एनिमेशन श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ फिल्मों को प्रतिष्ठित रजत शंख से सम्मानित किया जाएगा

18वें एमआईएफएफ में ‘अमृत काल में भारत’ पर लघु फ़िल्म के लिए विशेष पुरस्कार दिया जाएगा

कक्षा से लेकर प्रतियोगी होने तक: एमआईएफएफ 2024 में राष्ट्रीय प्रतियोगिता के तहत 12 छात्र फ़िल्में प्रतिस्पर्धा करेंगी

मुंबई। 18वें मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (एमआईएफएफ) के रूप में सिनेमाई उत्कृष्टता की खोज को एक मंच मिलेगा, जिसमें भारतीय सिनेमा की जीवंत झलक प्रदर्शित की जायेगी। रिकॉर्ड 840 प्रविष्टियों के साथ, महोत्सव सावधानीपूर्वक चयन की गयी 77 फिल्मों का अनावरण करेगा, जो राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भाग ले रहीं हैं। राष्ट्रीय प्रतियोगिता के अंतर्गत प्रतिस्पर्धा करने वाली फिल्में 01 जनवरी 2022 से 31 दिसंबर 2023 के बीच भारतीय नागरिकों द्वारा भारत में निर्मित की गई हैं।

इस साल 15 से 21 जून के बीच आयोजित किया जा रहा एमआईएफएफ, भारतीय सिनेमा के भविष्य का प्रतीक है। नवोदित निर्देशकों की 30 उल्लेखनीय फिल्मों और 12 छात्र कृतियों ने प्रतियोगियों के बीच अपनी जगह बनायी है। नए दृष्टिकोणों और कहानियों की नयी दृष्टि से मोहित होने के लिए तैयार हो जाइए। आप राष्ट्रीय प्रतियोगिता की फ़िल्मों की पूरी सूची यहाँ देख सकते हैं। https://miff.in/wp-content/uploads/2024/06/National-Competition-MIFF-2024.pdf

राष्ट्रीय प्रतियोगिता के अंतर्गत फ़िल्में तीन श्रेणियों के लिए प्रतिस्पर्धा कर रही हैं:

राष्ट्रीय वृत्तचित्र प्रतियोगिता: इस खंड में 30 विचारोत्तेजक वृत्तचित्र दिखाए जा रहे हैं।
राष्ट्रीय प्रतियोगिता: लघु कथा और एनीमेशन: लघु कथा और एनीमेशन शैलियों को शामिल करने वाली 41 फिल्मों के साथ कहानी कहने की शक्ति का अनुभव करें।
राष्ट्रीय प्रतियोगिता: अमृत काल में भारत: इस विषय पर केन्द्रित व विशेष रूप से निर्मित छह फिल्मों के माध्यम से देश के भविष्य की परिकल्पना करें।

विजेता फिल्मों और फिल्म निर्माताओं (नीचे सूचीबद्ध) के लिए प्रतिष्ठित पुरस्कार, प्रतिष्ठा को और भी बढ़ा देते हैं, जिससे एमआईएफएफ राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भागीदारी वास्तव में एक प्रेरणादायक उत्सव बन जाती है।

पुरस्कारों का विवरण इस प्रकार है:
राष्ट्रीय प्रतियोगिता पुरस्कार: *सर्वश्रेष्ठ भारतीय वृत्तचित्र फिल्म: रजत शंख और 5 लाख रुपये का नकद पुरस्कार।
सर्वश्रेष्ठ भारतीय लघु कथा फिल्म (30 मिनट तक): रजत शंख और 3 लाख रुपये का नकद पुरस्कार।
सर्वश्रेष्ठ भारतीय एनिमेशन फिल्म: रजत शंख और 3 लाख रुपये का नकद पुरस्कार।
सर्वश्रेष्ठ पहली फिल्म (प्रायोजित पुरस्कार): ट्रॉफी और 1 लाख रुपये का नकद पुरस्कार।
सर्वश्रेष्ठ छात्र फिल्म (प्रायोजित पुरस्कार): ट्रॉफी और 1 लाख रुपये का नकद पुरस्कार।

*”अमृत काल में भारत” पर सर्वश्रेष्ठ लघु फिल्म (15 मिनट तक) के लिए विशेष पुरस्कार: केवल भारतीय फिल्म निर्माताओं के लिए खुला, पुरस्कार के रूप में एक ट्रॉफी और 1 लाख रुपये के नकद पुरस्कार।

तकनीकी पुरस्कार (राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए मान्य):
सिनेमैटोग्राफी: प्रमाण पत्र और 3 लाख रुपये का नकद पुरस्कार।
संपादन: प्रमाण पत्र और 3 लाख रुपये का नकद पुरस्कार।
साउंड डिजाइन: प्रमाण पत्र और 3 लाख रुपये का नकद पुरस्कार।

अतिरिक्त सम्मान: एफआईपीआरईएससीआई जूरी पुरस्कार: अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समीक्षक संघ (एफआईपीआरईएससीआई) का प्रतिनिधित्व करने वाले तीन प्रतिष्ठित फिल्म समीक्षक, राष्ट्रीय प्रतियोगिता में एक वृत्तचित्र को पुरस्कार प्रदान करेंगे।

राष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए जूरीः राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय फिल्म दिग्गजों का एक प्रतिष्ठित पैनल राष्ट्रीय प्रतियोगिता की अध्यक्षता करेगा। उनकी विशेषज्ञता और अनुभव एक विवेकपूर्ण चयन प्रक्रिया सुनिश्चित करते हैं।

इस वर्ष राष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए जूरी सदस्यों में जर्मन फिल्म निर्माता एडेल सीलमैन (दास वीबे रौशेन, एल्स औफ डाइ सिबज़ेन); फिल्म निर्माता डॉ. बॉबी सरमा बरुआ (मिशिंग, सोनार बरन पाखी); एनिमेटर मुंजल श्रॉफ (कृष, त्रिश और बाल्टीबॉय); फिल्म निर्माता अपूर्व बख्शी (दिल्ली क्राइम) और जर्मन फिल्म निर्माता अन्ना हेनकेल-डोनर्समार्क शामिल हैं।

जूरी राष्ट्रीय प्रतियोगिता पुरस्कार प्रदान करेगी, जिसमें सर्वश्रेष्ठ भारतीय वृत्तचित्र, लघु फिल्म, एनीमेशन, सर्वश्रेष्ठ पहली फिल्म, सर्वश्रेष्ठ छात्र फिल्म और तकनीकी पुरस्कार शामिल हैं। जूरी “अमृत काल में भारत” पर सर्वश्रेष्ठ लघु फिल्म के लिए विशेष पुरस्कार के विजेता का भी चयन करेगी।

अधिक जानकारी के लिए www.miff.in देखें।
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