Thursday, January 16, 2025
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एक और पं.श्रीनारायण चतुर्वेदी

श्रीनारायण चतुर्वेदी का नाम सुनते ही उत्तर-प्रदेश के इटावा जनपद में जन्मे महान कवि, पत्रकार, भाषा-विज्ञानी तथा लेेखक का स्वरूप आंखों के सामने आ जाता है जिनके पिता श्री द्वारिका प्रसाद शर्मा चतुर्वेदी अपने समय के संस्कृत भाषा के नामी विद्वान थे। उनकी शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय और यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन से हुई थी। जो स्वतंत्रता से पूर्व उन्होंने सन् 1926 से 1930 तक जिनेवा में भारतीय शैक्षिक समिति के प्रमुख तथा कई वर्षो तक उत्तर प्रदेश सरकार के शैक्षिक विभाग के भी प्रमुख रहे। स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत उन्होंने आल इंन्डिया रेडियो के उप महानिदेशक (भाषा) के रूप में तैनात रहकर हिंदी भाषा विज्ञान के विकास के संबंध में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हुये सेवानिवृत हुए थे।

उनके अलावा एक और पं.श्रीनारायण चतुर्वेदी उत्तर प्रदेश के सन्त कबीर नगर के मलौली गाँव में प्रसिद्ध साहित्यिक कुल में भी हुआ था जिसमें अभी तक ज्ञात सात उच्च कोटि के छंदकार अवतरित हुए हैं। इस पं.श्रीनारायण चतुर्वेदी का जन्म कार्तिक कृष्ण 15,संवत् 1938 विक्रमी को दीपावली के दिन हैसर बाजार धनघटा नगर पंचायत के गांव सभा मलौली में हुआ था । जो अब नवगठित नगर पंचायत हैसर बाजार-धनघटा के वार्ड नंबर 6 में आता है। यह पूरे नगर पंचायत क्षेत्र के बीचो बीच है। यह एक प्रसिद्ध चौराहा भी है जो राम जानकी रोड पर स्थित है ।

श्रीनारायण चतुर्वेदी के पिता का नाम कृष्ण सेवक चतुर्वेदी था।  जिनके छः पुत्र थे – प्रभाकर प्रसाद, भास्कर प्रसाद, हर नारायण, श्री नारायण, सूर्य नारायण और राम नारायण। इनमें भास्कर प्रसाद , श्री नारायण और राम नारायण उच्च कोटि के छंदकार हो चुके हैं। ये सभी भास्कर प्रसाद चतुर्वेदी ‘दिनेश’ के भाई थे। श्री नारायण बचपन में बड़े प्रतिभाशाली थे। अपने छः भाइयों में श्रीनारायण इतने कुशाग्र थे कि कोई भी भाई इनसे तर्क वितर्क नहीं कर पाता था। संस्कृत, फारसी, आयुर्वेद और ज्योतिष पर इनका पूर्ण नियंत्रण था। वे महीनों सरयू नदी और गंगा नदी के तट पर कल्प वास किया करते थे।

पदमाकर जी के गंगा लहरी की भांति श्री नारायण जी ने 109 छंदों की सरयू लहरी लिखा था जो दुर्भाग्य बस गायब हो गया। इससे पहले महाकवि सूरदास ने साहित्य लहरी नामक 118 पदों की एक लघु रचना लिखी है। पंडित जगन्नाथ मिश्र द्वारा संस्कृत में रचित गंगा लहरी में 52 श्लोक हैं। इसमें उन्होंने गंगा के विविध गुणों का वर्णन करते हुए उनसे अपने उद्धार के लिए अनुनय किया गया है। इसी प्रकार त्रिलोकी नाथ पाण्डेय ने प्रेम लहरी, जम्मू के जाने-माने साहित्यकार प्रियतम चंद्र शास्त्री की शृंगार लहरी रचना है। बद्री नारायण प्रेमधन की लालित्य लहरी आदि लहरी रचनाएँ रही हैं। मूलतः लहरियों में धारा प्रवाह या भाव प्रभाव रचनाओं की अभिव्यंजना मिलती है। इसी तरह

भारतेंदु हरिश्चंद्र’ ने भी “सरयूपार की यात्रा” नामक एक यात्रा वृतांत लिखा है है। जिसका रचनाकाल 1871 ईस्वी के आसपास माना जाता है।

श्रीनारायण चतुर्वेदी रीतिशास्त्र के ज्ञाता थे। उन्होंने देव बिहारी और चिन्तामणि के छंदों को कंठस्थ कर लिया था। लोग घण्टों उनके पास बैठ कर श्रृंगार परक रचना का रसास्वादन किया करते थे। उन्हें भाषा ब्रज, छंद मनहरन और सवैया प्रिय था। उनका श्रृंगार रस का एक छंद (डा मुनि लाल उपाध्याय ‘सरस’ कृत ‘बस्ती के छंदकार’ भाग 1, पृष्ठ 13 – 14 के अनुसार ) द्रष्टव्य है –

कंज अरुणाई दृग देखत लजाई खंग

समता न पायी चपलायी में दृगन की।

वानी सरसायी दीन धुनिको लजायी

पिक,

समता न पायी वास किन्हीं लाजवन की।

जंघ चिकनाई रम्भा खम्भ हू न पायी

नाभि,

भ्रमरी भुलाई मन नीके मुनिजन की।

बुद्धि गुरुवायी श्री नारायण की जाती फंसि ,

देखि गुरुवायी बाल उरज सूतन की।।

एक अन्य छंद भी द्रष्टव्य है –

बाल छबीली तियान के बीच सो बैठी प्रकाश करै अलगै।

चंद विकास सो हांसी हरौ उपमा कुच कंच कलीन लगै।

दृग की सुधराई कटाछन में श्रीनारायण खंज अली बनगै।

मृदु गोल कपोलन की सुषमा त्रिवली भ्रमरी ते मनोज जगै।

श्रीनारायण कवि का यह छंद शृंगार की अभिव्यक्ति का प्रतीक है। ये मलौली के कवि परम्परा के प्रथम चरण के अंतिम कवि थे।

 

लेखक परिचय

 

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं. वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास   करते हुए सम-सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। मोबाइल नंबर +91 8630778321, वर्डसैप्प नम्बर+ 91 9412300183)

पाँच सौ साल पहले हमारे पूर्वजों ने पिन-होल कैमरे के रहस्य का पता लगा लिया था

हममे से अनेकोंने बचपन मे, ‘पिन होल कैमरा’ के तकनीक का उपयोग करते हुए घर के अंधेरे कमरे में, किसी प्रकाशित वस्तू की प्रतिमा देखी होगी। जब किसी अंधेरे कमरे मे छोटासा झरोखा होता है, तब उस झरोखे से, बाहर की प्रकाशमान वस्तू या वास्तु की प्रतिमा, उस अंधेरे कमरे मे उलटी दिखती है। बिलकुल सिनेमा जैसी। इसी को ‘पिन होल कैमरा तत्व’ कहते है। इस सिद्धांत पर आधारित, विश्व के प्रथम पिन होल कैमरा की संकल्पना, भारत मे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम प्रारंभ होने केवल एक वर्ष पूर्व, अर्थात 1856 मे, एक स्कॉटिश वैज्ञानिक ने रखी। डेव्हिड बुस्टर नाम के इस वैज्ञानिक ने ‘द स्टिरिओस्कोप’ नाम की एक पुस्तक प्रकाशित की, जिसमे यह संकल्पना विस्तार से लिखी थी। इसमे बूस्टर ने इस कैमरा का वर्णन, ‘एक लेन्स रहित कैमरा जिसमे केवल एक पिन होल होता है’ ऐसा किया है।

यही पिन होल कैमरा की संकल्पना प्रत्यक्ष रूप से दिखती है, पांच सौ वर्ष पुराने मंदिर मे। विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हंपी का विरुपाक्ष मंदिर। तुंगभद्रा नदी के तट पर बसा हुआ यह मंदिर, वर्ष 1509 मे पूर्ण हुआ। विरुपाक्ष का अर्थ, विरूप+अक्ष ऐसा होता है। अर्थात विशेष आखों के भगवान का मंदिर। यह मंदिर भगवान शंकर का है। इसे ‘प्रसन्न विरुपाक्ष मंदिर’ ऐसा भी कहते है। इसका अन्य एक नाम पंपापती ऐसा भी है।

यह मंदिर प्राचीन है। इसमे नौवी और दसवी शताब्दी के भगवान शंकर से संबंधित शिलालेख मिले है। सन 1509 मे अपने राज्याभिषेक के समय, राजा कृष्णदेवरायने इस मंदिर का भव्य रूप मे पुननिर्माण किया, और उसके साथ निर्माण किया पचास मीटर उंचा गोपूर। यह गोपूर सात स्तरों का बना है। सबसे नीचे वाला स्तर यह प्रस्तरों का अर्थात पत्थरोंका बना हुआ है। उसके उपर के छह स्तर, चूने से जोडी गई ईटों के बने है।

इस मंदिर में, गर्भगृह के बाजू मे (गर्भगृह की और देखते हुए खडे होने पर, अपने दाहीने हाथ में) एक कमरा है। इस कमरे मे प्रकाश कम आता है। जैसे डार्क रूम होती है, लगभग वैसे ही यह कमरा है।  इस कमरे मे एक बहुत छोटासा झरोखा है। इस झरोखे से लगभग 300 मीटर दूरी पर, वह विशाल गोपुरम हैं। अगर हम उस कमरे के दरवाजे को पूरा बंद करते हैं, अर्थात, डार्क रुम जैसा वातावरण तैयार करते है, तो पचास मीटर उंचाई के उस गोपुरम की उलटी प्रतिमा, उस कैमरे मे तैयार होती है। बिलकुल वैसे ही, जैसे हम सिनेमा मे देखते है। अगर हम उस झरोखे मे अपना हाथ हिलायेंगे, तो वह प्रतिमा जैसे झूम होती है और हिलती भी है।

इसी का अर्थ, पांच सौ से अधिक वर्ष पूर्व, यह पिन होल कॅमेरा की तकनीक अपने मंदिरों के वास्तुविदों को पता थी। यह अद्भुत है।

पिन होल कैमरा का सिद्धांत इसके पूर्व भी पता था। इसके संदर्भ कही – कही मिलते है। आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व, ‘मोझी’ इस प्राचीन चिनी लिपी मे इस सिद्धांत की अस्पष्ट सी जानकारी मिलती है।

‘इब्न अल् हेथम’ (Ibnal Haytham सन 965 -1040) यह एक अरबी शोधकर्ता थे। उन्हे पदार्थ विज्ञान मे रुची थी। विज्ञान की बहुत सी बाते उनको पता थी, ऐसा उनका मानना था। इसीलिए, उस समय के (दसवी शताब्दी के) बगदाद के खलिफा ने उन्हे बुला लिया। इब्न अल् हेथम बगदाद गये। खलिफा ने, नाईल नदी मे नित्य आने वाली बाढ का प्रतिबंध करने के लिए उन्हे कुछ उपाय करने के लिए कहा। वें, ‘नाईल नदी पर मैं बांध बनाकर बाढ को रोकुंगा’ ऐसी बडी – बडी बाते करके वापस आए। लेकिन वापस आने के बाद उन्हे लगने लगा की ‘बहुत बडी गडबड हुई है। यह काम अपने बस का नही है’। उन्होने जाकर खलिफा को बताया। खलिफा नाराज हुआ और हेथमको कैद किया। इस दौरान हेथम को उस कारागार की कोठरीमे पिन होल कैमरा का सिद्धांत समझ मे आया, ऐसा मानते है। आगे चलकर हेथम ने अरबी भाषा मे ‘बुक ऑफ ऑप्टिक्स’ लिखी।

या पुस्तक सन 1572 मे फ्रेडरिक राईजनयर ने जर्मन भाषा मे प्रकाशित की। अब बात यह है कि भारतीयों को यह ज्ञान कहां से प्राप्त हुआ? निश्चित रूप से तो नही बता सकते। परंतु इब्न अल् हेथम के माध्यम से भारत मे आया, इसका कोई प्रमाण नही मिलता। यह ज्ञान भारत मे उसके पूर्व से था। परंतु पिन होल कैमरा तकनीक से दूर की वस्तू, अंधेरे कमरेमे उलटी देख सकते है, इसमे कोई बडा वैज्ञानिक तत्व छुपा हैं, ऐसे हमारे प्राचीन शोधकर्ताओं को और वास्तुविदों को नही लगा होगा। क्योंकि इससे भी क्लिष्ट और विस्मयकारी रचनाएं इन वास्तुविदोने भारत मे की है।

*प्रकाश क्या होता है? प्रकाश का पृथःकरण कैसे होता हैं, यह हमारे पूर्वजों को बहुत पहले से ही ज्ञात था। ऋग्वेद विश्व का सबसे प्राचीन ग्रंथ माना जाता है। ऋग्वेद के प्रथम मंडल में, सुक्त 587 से 599 में, भगवान सूर्य के महत्व का वर्णन किया है। सुक्त 594 और 595 मे स्पष्ट रूप से वर्णन किया है कि –

सप्त त्वा हरितो रथे वहन्ति देव सूर्य ।
शोचिष्केशं विचक्षण ॥८॥ सूक्त – 594
अयुक्त सप्त शुन्ध्युवः सूरो रथस्य नप्त्यः ।
ताभिर्याति स्वयुक्तिभिः ॥९॥ सूक्त – 595

अर्थात, हे सर्व द्रष्टा सूर्य देव, आप तेजस्वी ज्वालाओंसे युक्त ऐसे दिव्यत्व को धारण करते हुए, सप्तवर्णी किरणों रुपी अश्वों के रथमे सुशोभित लग रहे है। पवित्रता प्रदान करने वाले, ज्ञानसंपन्न ऐसे सूर्यदेव, आपका सात रंगों का अश्वरथ आपको शोभा देता है।

सूर्यकिरणोंका पृथःक्करण करने पर ‘बैजानीहपीनाल’ (VIBGYOR) ऐसे सात रंगों के किरण तयार होते है, इसकी जानकारी पाश्चात्त्य जगत को अभी कुछ सौ वर्ष पहले ही पता लगी थी। हमारे पुरखे इसे कुछ हजार वर्षों से जानते थे !

सुश्रुत आद्य शल्य चिकित्सक थे, यह अब विश्व मानने लगा है। ऑस्ट्रेलिया के मेलबोर्न में, ‘रॉयल ऑस्ट्रेलिया कॉलेज ऑफ सर्जन्स’ की भव्य इमारत मे प्रवेश करतेही, सामने के हॉल मे, सुश्रुत की एक बडी प्रतिमा रखी है। उस पर ‘आद्य शल्य चिकित्सक’ लिखा है। ईसा से पहले 800 वर्ष, यह उनका कालखंड है। सुश्रुत ने ‘सुश्रुत संहिता’ मे आंखों के लैंस के संदर्भ मे लिखा है, ‘प्रकाश किरण जब आंखो के रेटिना पर पडती हैं, तब व्यक्ति को दिखने लगता है’ इसका विस्तार से वर्णन उन्होने किया है।

हमारे पूर्वजों को प्रकाश किरणोंका, प्रकाश किरण के गुण-विशेषणोंका, प्रकाश किरणों के प्रभाव का ज्ञान सहज, स्वाभाविक रूप से था। अब न्यायशास्त्र और प्रकाश के सिद्धांत का क्या संबंध है? कोई संबंध नही है। परंतु चौथी शताब्दि मे, ‘अक्षपद गौतम’ द्वारा लिखे हुए ‘न्याय दर्शन’ इस ग्रंथ मे ‘ऑप्टिक्स के सिद्धांत’ का उल्लेख है। इस ग्रंथ मे तिसरे अध्याय के 43 से 47 सुक्तोंमे इस प्रकाश परावर्तन के सिद्धांत का वर्णन किया है।

नक्तंचर नयनरश्मि दर्शनाच्य
अप्राप्यग्रहणं काचाभ्रपटल स्फटिकान्तरितोपलब्धे: I
कुड्यांतरितानुपलब्धेर प्रतिषेध:
आदित्यरश्मेः स्फटिकान्तरेsपि दाह्येsविघातात II

सारांश, सामान्य आंखो से जो सूक्ष्म चीजे  नही दिखती, वह कांच, अभ्रपटल (Mica) और स्फटिक (Crystal) के सहायता से हम देख सकते है।

जरा समझने का प्रयास करे, चौथे शताब्दि का यह  ‘न्यायशास्त्र ग्रंथ’, हमे लेन्स के विषय में बता रहा है..!

अक्षपद गौतम के सौ वर्षं के बाद, वराहमिहिर ने (वर्ष 510 से 587) ‘बृहत्संहिता’ इस प्रसिद्ध ग्रंथ मे इंद्रधनुष्य के निर्माण का सिद्धांत लिखा है। 35 वे अध्याय में वराहमिहिर लिखते है –

सूर्यस्य विविधवर्णाः पवनेन विघत्तीः कराः साभ्रे।
व्यति धनुः संस्था ये दृश्यन्ते तदिन्द्रधनुः ॥

अर्थात, ‘जब सूरज की किरणे हवा से, बादल भरे आकाश मे फैलती है, अर्थात विघटित होती हैं, तब उनके रंग अलग – अलग होते है, और उनकी एक पट्टिका तयार होती है। इसे ही इंद्रधनुष कहते है’।

वराहमिहीर के कुछ वर्ष पश्चात, आदी शंकराचार्यजीने (वर्ष 788 से 820) ‘अपरोक्षानभूती’ नामक एक छोटा ग्रंथ लिखा है। उसमे 81वा श्लोक हैं –

सूक्ष्मत्वे सर्व वस्तूनां स्थूलत्वं चोपनेत्रतः I
तद्वदात्मनि देवत्व पश्यत्यज्ञानयोगतः II

अर्थात, ‘जब हम लेंस के माध्यम से (चोपनेत्रतः) छोटी वस्तूएं देखते हैं, तब वह बडी दिखने लगती है। उसी प्रकार से, ज्ञान चक्षु के माध्यम से ज्ञान विस्तृत दिखने लगता है’।

यहां प्रकाश के सिद्धांत की चर्चा करते समय आदि शंकराचार्य चष्मे (चोपनेत्र) की संकल्पना स्पष्ट कर रहे है। यह चष्मे की संकल्पना प्राचीन भारत मे अनेक जगह मिलती है। श्रीलंका के गंपोला प्रान्त का भुवनाईका बहु (चौथा) राजा था। सन 1344 से 1354, ऐसे दस वर्ष तक उसका राज चल रहा था। राजा ‘क्वार्टझ क्रिस्टल’ का चष्मा पहनता था, ऐसे समकालीन इतिहासकारोंने लिखकर रखा है। (संदर्भ – श्रीलंका के ‘भंडारनायके सेंटर फॉर इंटरनॅशनल स्टडीज’ के समन्वयक जेनिफर पालन गुणवर्धने ने फेब्रुवारी 2018 के ‘Explore Sri Lanka’ इस पोर्टल पर एक आलेख लिखा है। इसका शीर्षक हैं, ‘Crystal Glasses That King Once Wore’).

इस राजा को चष्मा किसने दिया?
भुवनाईका बहू (चौथा) के राज्य काल मे उसने गदाला देनिया मे एक बडे बुद्ध मंदिर का निर्माण प्रारंभ किया। राजा को यह मंदिर, विजयनगर साम्राज्य के मंदिरों जैसा चाहिये था। उन दिनों, विजयनगर साम्राज्य, नया – नया स्थापन हुआ था। इसलिये राजा ने इस मंदिर के लिये विजयनगर के मुख्य वास्तुकार देव नारायण को अपने यहा बुला लिया। इसी देव नारायण ने राजा को क्रिस्टल का चष्मा दिया। इसका अर्थ स्पष्ट है, कि उस समय विजयनगर साम्राज्य मे, अर्थात दक्षिण भारत मे, चष्मा बनाने की कला प्रचलित थी। विजयनगर साम्राज्य मे राजा कृष्णदेवराय के कार्यकाल मे उनके राजगुरू थे व्यास राजा (व्यासा रायरु)। सन 1447 से 1539 यह उनका कालखंड था। उनका जीवन वृत्तांत, उनके समकालीन संस्कृत कवी सोमनाथ द्वारा लिखा गया है। इस ग्रंथ मे उल्लेख है की ‘उम्र के 73 वे वर्ष मे, सन 1520 मे, गुरु व्यास राजा कृष्णदेवराय के दरबार में चष्मा लगाकर ग्रंथ का वाचन कर रहे थे’। आगे चलकर 1771 मे जब अंग्रेजोंने तंजावुर जीत लिया, तब उन्हे क्वार्टझ क्रिस्टल से चष्मे की कांच (लेन्स) बनाने के छोटे कारखाने मिले। बाद मे ऑपर्ट ने 1807 मे लिखकर रखा है कि दक्षिण भारत मे लेन्स बनाने के कारखाने प्राचीन समय से थे।

यह सब इतने विस्तार से इसलिये लिखा है, कि प्रकाश के सभी भौतिक सिद्धांतों की जानकारी भारतीयों को पहले से ही थी। इसलिये पिन होल कॅमेरा की संकल्पना विरुपाक्ष मंदिर मे उपयोग मे लाते समय उन्होने यह बाहर से उधार नही ली थी! यह ज्ञान, (या यूं कहे, इससे भी प्रगत ज्ञान) भारत मे पूर्व से ही था, यह निश्चित!

अब पट्टडकल के विरूपाक्ष मंदिर का उदाहरण लीजिए। यह विरूपाक्ष मंदिर अलग है। इस संदर्भ मे शोध करने वाले अनेक शोधार्थी और अभ्यासक, इन दो विरुपाक्ष मंदिरो के बारे में भ्रमित होते है। गडबड करते है। दोनो मंदिरो मे बहुत सी समानताएं है। दोनो ही भगवान शंकर जी के मंदिर है। दोनो का नाम विरूपाक्ष ही है। दोनो मंदिर कर्नाटक मे ही एक दुसरे से केवल 136 किलोमीटर दूरी पर है। दोनो को युनेस्कोने वैश्विक धरोहर स्थल के रुप में संरक्षित किया है। हम्पी का विरूपाक्ष मंदिर विजयनगर (पहले का बेल्लारी) जिले मे आता है, तो पट्टडकल का विरूपाक्ष मंदिर, बागलकोट जिले मे आता है।

पट्टडकल का विरूपाक्ष मंदिर मलप्रभा नदी के किनारे स्थापित है। बदामी और ऐहोले के पास। आठवी शताब्दि मे चालुक्य राजा विक्रमादित्यने पल्लवों पर बडा विजय प्राप्त किया। उस विजय की स्मृति मे, विक्रमादित्य की पत्नी, रानी लोक महादेवी ने सन 739 – 740 मे इस मंदिर का निर्माण किया। इस मंदिर के पास एक विजयस्तंभ भी है। इस स्तंभ पर देवनागरी और कन्नड लिपी मे, विक्रमादित्य (द्वितीय) के पल्लवों पर विजय के संदर्भ में जानकारी लिखी है।

विक्रमादित्य (द्वितीय) ने  जब पल्लवोंको परास्त किया तब पल्लवों की राजधानी थी कांचीपुरम। इस कांचीपुरम के कैलास नाथ मंदिर, एकांबरेश्वर मंदिर जैसे अनेक मंदिरों का राजा विक्रमादित्य (द्वितीय) को आकर्षण था। विशेष रूप से कुछ ही वर्ष पूर्व, बनाया गया कैलास नाथ मंदिर। ऐसा मंदिर, राजा विक्रमादित्य को बनाना था। इसलिये पल्लव राज्य के ‘सर्व सिद्धीचारी’ और ‘गुंडा अनिवेदिता चारी’, इन दो प्रमुख वास्तुकारों को राजाने मंदिर निर्माण के लिए बुलाया। इन वास्तुकारोने, यह मंदिर एकदम सटीक रुप से, पूर्व – पश्चिम अक्षांश पर बनवाया है। इसके अठारह खंबों पर, रामायण, महाभारत और पंचतंत्र के प्रसंग उकेरे है। गर्भगृह के पहले ही कक्ष में, उपर छत पर विशाल सूर्य रचना का निर्माण किया है। सात घोडों के रथमे बैठे सूर्यदेव और दिन / रात की रचना..! सब भव्य रूप मे और पूर्णतः वैज्ञानिक पद्धतीसे !

इन दोनो वास्तुकारोंने मंदिर निर्माण के समय गणित की अनेक मजेदार रचनाएं बनाई हैं। आगे चलकर सन 1509 मे, हम्पी के विरूपाक्ष मंदिर के निर्माण के समय यहां की रचनाये वहां पर भी  है। गणितीय सूत्रों से कुछ पॅटर्न तयार होते है, उन्हे फ्रॅक्टल्स कहा जाता है। पट्टडकल के विरुपाक्ष मंदिर मे ऐसे फ्रॅक्टल्स तयार किये गये है। विशेष रूप से ईसा से 200 वर्ष पहले, महर्षी पिंगल शास्त्री ने गणितीय संख्या के विस्तार के सूत्र लिखे है। तेरहवी शताब्दी में इटालियन गणितज्ञ फायबोनेची ने उसी का उपयोग किया, और अब पूरा विश्व उसे ‘फाइबोनेची सिरीज’ नाम से जानता है।

 (भारतीय ज्ञान का खजाना, भाग – 1 मे ‘श्रीयंत्र का रहस्य’ इस आलेख में इसकी विस्तार से जानकारी दी है)। पिंगल शास्त्री के गणितीय सूत्रों का, अर्थात फाइबोनेची सिरीज का, इस विरुपाक्ष मंदिर मे कुशलता से उपयोग किया गया है। पट्टडकल विरूपाक्ष मंदिर की रचना पूर्णतः भूमितीय श्रेणी रचना पर आधारित है। मंदिर का प्रत्येक यूनिट, भूमितीय श्रेणी (Multiplying) पद्धति से बढते जाने वाला है। इसके कारण अनेक गणितीय अनुबंध तयार हुए है।

सनद रहे, पट्टडकल का विरुपाक्ष मंदिर यह वर्ष 740 मे पूर्ण रूप से तैयार हुआ। इस्लामी आक्रांता भारत मे आने से 300- 400 वर्ष पहले। इस कालखंड मे, अपने वास्तुकार, गणितीय संकल्पनाओंका उपयोग अपने वास्तु मे कर रहे थे। आज के आधुनिक काल मे भी, दिमाग को चौंकाने वाले शिल्पोंका निर्माण कर रहे थे। बहुत कुछ अद्भुत और आश्चर्यजनक निर्माण हो रहा था..!

 प्रशांत पोळ
(आगामी ‘भारतीय ज्ञान का खजाना – भाग 2’ इस पुस्तक के अंश)

चुनावों के दिलचस्प आँकड़े जो आपको चौंका देंगे

ईसीआई ने लोकसभा चुनाव 2024 और एक साथ सम्‍पन्‍न 4 राज्य विधानसभा चुनावों का विस्तृत डेटा जारी किया

यह विश्‍व भर के शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं, चुनाव पर्यवेक्षकों सहित हितधारकों के लिए एक खजाना है

भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए 42 सांख्यिकीय रिपोर्टों और चार राज्यों अर्थात् आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम में एक साथ सम्‍पन्‍न प्रत्येक विधानसभा चुनाव के लिए 14 सांख्यिकीय रिपोर्टों का एक विस्‍तृत डेटा सेट जारी किया है।

इस पहल का उद्देश्य जनता के विश्वास को बढ़ाना है, जो भारत की चुनावी प्रणाली का आधार है। विस्‍तृत डेटा सेट जारी करना आयोग का अधिकतम खुलासा, अधिक पारदर्शिता और शिक्षाविदों, शोध और आम जनता सहित सभी हितधारकों के लिए चुनाव संबंधी डेटा की सुलभता की नीति को आगे बढ़ाने के लिए भी है।

डेटा सेट में कई चर संख्‍याएं शामिल हैं, जैसे संसदीय क्षेत्र (पीसी)/विधानसभा क्षेत्र (एसी)/राज्यवार मतदाताओं का विवरण, मतदान केंद्रों की संख्या, राज्य/पीसीवार मतदाताओं द्वारा मतदान, पार्टीवार वोट शेयर, लिंग-आधारित मतदान व्यवहार, महिला मतदाताओं की राज्यवार भागीदारी, क्षेत्रीय विविधताएं, निर्वाचन क्षेत्र डेटा सारांश रिपोर्ट, राष्ट्रीय/राज्य दलों/आरयूपीपी का निष्‍पादन, जीतने वाले उम्मीदवारों का विश्लेषण, निर्वाचन क्षेत्रवार विस्तृत परिणाम इत्‍यादि। शोधकर्ता, नीति निर्माता और पत्रकार अब गहन अंतर्दृष्टि और विश्लेषण करने के लिए तैयार किए गए डेटा के इस खजाने का उपयोग कर सकते हैं।

पिछले चुनावों के समान मानदंडों पर रुझान पहले से ही आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध हैं, इसलिए ये रिपोर्ट चुनावी और राजनीतिक परिदृश्य में दीर्घकालिक दृष्टिकोण और बदलावों पर नजर रखने के लिए समय-श्रृंखला विश्लेषण को सक्षम करेंगी।

लोकसभा आम चुनाव 2024 से संबंधित 42 रिपोर्टों के कुछ मुख्य अंश नीचे सूचीबद्ध हैं:

लोकसभा के लिए: 2019 में 91,19,50,734 मतदाता की तुलना में 2024 में 97,97,51,847 मतदाता। 2019 की तुलना में 2024 में कुल मतदाताओं में 7.43 प्रतिशत की वृद्धि (प्रतिशत)।

2024 में 64.64 करोड़ वोट पड़े, जबकि 2019 में 61.4 करोड़ वोट पड़े थे
ईवीएम+पोस्टल वोट: 64,64,20,869
ईवीएम वोट: 64,21,39,275

पुरुष: 32,93,61,948
महिला: 31,27,64,269
ट्रांसजेंडर: 13,058
डाक मतपत्र: 42,81,594

सर्वाधिक मतदान वाला पी.सी.: 92.3प्रतिशत धुबरी (असम)
सबसे कम मतदान वाला पी.सी.: 38.7 प्रतिशत श्रीनगर (जम्मू-कश्मीर), जबकि 2019 में यह 14.4 प्रतिशत था।
50 प्रतिशत से कम मतदान प्रतिशत वाले पी.सी. की संख्या: 11
2019 में 1.06 प्रतिशत की तुलना में 2024 में नोटा को 63,71,839 (0.99प्रतिशत) वोट मिले।
ट्रांसजेंडर मतदाताओं (थर्ड जेंडर) का 27.09 प्रतिशत मतदान

 मतदान केंद्र
2024 में 10,52,664 मतदान केंद्र, जबकि 2019 में 10,37,848 मतदान केंद्र थे।
2019 में 540 मतदान केंद्रों की तुलना में केवल 40 मतदान केंद्रों [कुल मतदान केंद्रों का 0.0038 प्रतिशत) पर पुनर्मतदान
मतदाताओं/मतदान केन्द्रों की औसत संख्या: 931
सर्वाधिक पीएस वाला राज्य: उत्तर प्रदेश (1,62,069 पीएस)
सबसे कम पीएसयू वाला राज्य/केंद्र शासित प्रदेश: लक्षद्वीप (55 पीएसयू)
1000 से कम संसदीय क्षेत्र वाले संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या: 11
3000 से अधिक सांसदों वाले संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या: 3
2019 की तुलना में 2024 में मतदान केंद्रों की संख्या में सबसे अधिक वृद्धि वाला राज्य: बिहार (4739 मतदान केंद्र), उसके बाद पश्चिम बंगाल (1731 मतदान केंद्र)।

नामांकन:
2024 में 12,459 नामांकन दाखिल किये गए, जबकि 2019 में 11692 नामांकन दाखिल किये गये थे।
सर्वाधिक नामांकन वाले पी.सी.: पी.सी.- मलकाजगिरी (तेलंगाना) में 114
सबसे कम नामांकन वाली संसदीय सीट (सूरत को छोड़कर): 3 संसदीय सीट – डिब्रूगढ़ (असम)
2024 के चुनावों में, देश भर में दाखिल कुल 12,459 नामांकनों में से नामांकन खारिज होने और नाम वापस लेने के बाद 8,360 उम्मीदवार चुनाव लड़ने के योग्य पाए गए। 2019 के लोकसभा चुनाव में चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की संख्या 8054 थी।

नारी शक्ति:
पंजीकृत मतदाता
2024 में 97,97,51,847 में से 47,63,11,240 महिला मतदाता, जबकि 2019 में यह संख्या 438537911 थी।
2024 में 48.62 प्रतिशत महिला मतदाता, जबकि 2019 में यह संख्या 48.09 प्रतिशत थी।
2024 में महिला मतदाताओं की सर्वाधिक प्रतिशत हिस्सेदारी वाला राज्य: पुडुचेरी (53.03 प्रतिशत), उसके बाद केरल (51.56 प्रतिशत)।
2024 में प्रति 1000 पुरुष मतदाताओं पर महिला मतदाताओं की संख्या 946, जबकि 2019 में यह 926 थी।

मतदान:
2024 में 65.78 प्रतिशत महिला मतदाता द्वारा मतदान (सूरत को छोड़कर)  करेंगी, जबकि पुरुष मतदाताओं का प्रतिशत 65.55 होगा।
2019 की तरह 2024 में भी महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक; लोकसभा के लिए आम चुनावों के इतिहास में यह केवल दूसरी बार।
महिला मतदाताओं की सर्वाधिक वीटीआर वाला संसदीय निर्वाचन क्षेत्र: धुबरी (असम) जहां 92.17 प्रतिशत महिला मतदान हुआ, उसके बाद तामलुक (पश्चिम बंगाल) में 87.57 प्रतिशत महिलाओं द्वारा मतदान हुआ।

चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार:
चुनाव लड़ने वाली महिला उम्मीदवारों की संख्या 800 थी, जबकि 2019 में 726 महिला उम्मीदवार थीं।
चुनाव लड़ने वाली सबसे अधिक महिला उम्मीदवारों वाला राज्य: महाराष्ट्र [111] उसके बाद उत्तर प्रदेश [80] और तमिलनाडु [77]।
कुल 543 निर्वाचन क्षेत्रों में से 152 निर्वाचन क्षेत्रों में कोई भी महिला उम्मीदवार चुनाव नहीं लड़ी।

समावेशी चुनाव:
2024 में 48,272 पंजीकृत ट्रांसजेंडर मतदाता, जबकि 2019 में यह संख्या 39,075 थी। पांच वर्ष की अवधि में 23.5 प्रतिशत की वृद्धि।
पंजीकृत ट्रांसजेंडर मतदाताओं की सर्वाधिक संख्या वाला राज्य: तमिलनाडु (8,467)।
2024 में 90,28,696 पंजीकृत दिव्यांग मतदाता, जबकि 2019 में यह संख्या 61,67,482 थी
लोकसभा चुनाव-2024 में 27.09 प्रतिशत ट्रांसजेंडर मतदाताओं (थर्ड जेंडर) – लगभग दोगुना ने मतदान किया, जबकि 2019 में यह आंकड़ा 14.64 प्रतिशत था।
2024 में 1,19,374 पंजीकृत विदेशी मतदाता [पुरुष: 1,06,411; महिला: 12,950; थर्ड जेंडर: 13] जबकि 2019 में 99,844 पंजीकृत विदेशी मतदाता थे।

परिणाम:
लोकसभा चुनाव- 2024 में 6 राष्ट्रीय दलों ने भाग लिया। इन 6 दलों का कुल वोट शेयर कुल वैध वोटों का 63.35 प्रतिशत था।
2019 में 6923 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई, जबकि 7190 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई।
एक पीसी – सूरत (गुजरात) निर्विरोध था।
कुल 3921 स्वतंत्र उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा और उनमें से केवल 7 ही निर्वाचित हुए। 3905 स्वतंत्र उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। स्वतंत्र उम्मीदवारों द्वारा प्राप्त वोट शेयर (प्रतिशत) कुल वैध वोटों का 2.79 प्रतिशत था।
279 स्वतंत्र महिला उम्मीदवार थीं।

भारत में 2023 में 18.89 मिलियन अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों का आगमन हुआ

2023 के दौरान पर्यटन के माध्यम से विदेशी मुद्रा आय (एफईई) बढ़कर 231927 करोड़ रुपये हो गई

2023 के दौरान 2509 मिलियन घरेलू पर्यटक आए

23 राज्यों में वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित पर्यटन केंद्रों के विकास के लिए पूंजीगत निवेश के लिए राज्यों को विशेष सहायता (एस.ए.एस.सी.आई.) के तहत 3295.76 करोड़ रुपये की 40 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई

स्वदेश दर्शन 2.0 के तहत 793.20 करोड़ रुपये की 34 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई

भारतीय प्रवासियों को दुनिया भर में अपने गैर-भारतीय मित्रों को भारत दिखाने के लिए आमंत्रित करने के लिए ‘चलो इंडिया’ अभियान शुरू किया गया; अभियान के तहत भारत आने वाले विदेशी पर्यटकों के लिए एक लाख निःशुल्क ई-वीज़ा

अतुल्य भारत विषय-वस्तु हब का अनावरण किया गया ताकि वैश्विक यात्रा और पर्यटन उद्योग को अतुल्य भारत पर विषय-वस्तु का एकीकृत स्रोत उपलब्ध कराया जा सके

‘पर्यटन मित्र और पर्यटन दीदी’ पहल की शुरुआत की गई ताकि प्रमुख पर्यटन स्थलों में स्थानीय लोगों को प्रतिनिधि के रूप में सशक्त बनाया जा सके ताकि वे रोजगार और सामुदायिक जुड़ाव को बढ़ावा देते हुए पर्यटकों के अनुभवों को बढ़ा सकें

‘देखो अपना देश पीपुल्स च्वाइस 2024’ – सबसे पसंदीदा पर्यटक आकर्षणों की पहचान करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण शुरू किया गया

विकसित भारत@2047 के लिए पर्यटन क्षेत्र के लिए विचार की परिकल्‍पना करने और विचार-विमर्श करने के लिए चार क्षेत्रीय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के पर्यटन मंत्रियों के सम्मेलन आयोजित किए गए

सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गांव प्रतियोगिता 2024 की 8 श्रेणियों में 36 गांवों को विजेता के रूप में मान्यता दी गई

केंद्रीय होटल प्रबंधन संस्थानों ने भारतीय आतिथ्य शिक्षा को वैश्विक बनाने और रोजगार क्षमता बढ़ाने के लिए आठ अग्रणी राष्ट्रीय और वैश्विक आतिथ्य समूहों के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए

वर्ष 2024 के दौरान पर्यटन मंत्रालय की प्रमुख पहल और उपलब्धियाँ इस प्रकार हैं:

बुनियादी ढांचे का विकास

पर्यटन मंत्रालय ने स्वदेश दर्शन योजना के तहत 5287.90 करोड़ रुपये की कुल 76 परियोजनाओं को मंजूरी दी है जिनमें से 75 परियोजनाएँ पूरी हो चुकी हैं।

फ्लोटिंग हट्स और इको रूम, उत्तराखंड

पर्यटन मंत्रालय ने स्वदेश दर्शन योजना को स्वदेश दर्शन 2.0 (एसडी 2.0) के रूप में नया रूप दिया है जिसका उद्देश्य पर्यटक और गंतव्य केंद्रित दृष्टिकोण के साथ सतत और जिम्मेदार गंतव्यों का विकास करना है। एसडी 2.0 के तहत 793.20 करोड़ रुपये की 34 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है।

पर्यटन मंत्रालय ने प्रशाद योजना के अंतर्गत 1646.99 करोड़ रुपये की कुल 48 परियोजनाओं को मंजूरी दी है जिनमें से 23 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं।

केंद्रीय एजेंसियों को सहायता योजना के तहत 937.56 करोड़ रुपये की कुल 65 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है जिनमें से 38 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं।

पर्यटन मंत्रालय ने पर्यटक मूल्य श्रृंखला के सभी बिंदुओं पर पर्यटकों के अनुभव को बढ़ाने के लिए स्वदेश दर्शन 2.0 योजना की उप-योजना के रूप में ‘चुनौती आधारित गंतव्य विकास’ के लिए दिशानिर्देश तैयार किए हैं। इस योजना के तहत, चार विषयगत श्रेणियों (i) आध्यात्मिक पर्यटन, (ii) संस्कृति और विरासत, (iii) जीवंत ग्राम कार्यक्रम, (iv) इकोटूरिज्म और अमृत धरोहर स्थलों के तहत प्रस्ताव आमंत्रित किए गए हैं। पर्यटन मंत्रालय ने इस योजना में विकास के लिए विभिन्न पर्यटन विषयों के तहत 42 स्थलों का चयन किया है।

बजट घोषणाओं 2024-25 के अनुसरण में, पूंजीगत निवेश के लिए राज्यों को विशेष सहायता (एस.एस.सी.आई) के अंतर्गत 23 राज्यों में 3295.76 करोड़ रुपये की राशि की कुल 40 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है ताकि इन राज्‍यों को 50 वर्ष की अवधि के लिए ब्‍याज मुक्‍त, दीर्घकालिक ऋण दिया जा सके ताकि ये राज्‍य वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित पर्यटन केंद्रों का विकास और वैश्विक स्तर पर उनकी ब्रांडिंग और विपणन कर सके।

पर्यटन मंत्रालय ने 23 से 31 जनवरी, 2024 तक गणतंत्र दिवस समारोह के हिस्से के रूप में दिल्ली के लाल किला मैदान में “भारत पर्व” कार्यक्रम का आयोजन किया। देश के विविध पर्यटक आकर्षणों को प्रदर्शित करने के लिए राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के विषयगत मंडप लगाए गए। विभिन्न क्षेत्रीय सांस्कृतिक संघों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए गए। इस कार्यक्रम ने देश भर के स्थानीय कारीगरों की भागीदारी के माध्यम से अपने उत्पादों को प्रदर्शित करके और बेचकर वोकल फॉर लोकल को बढ़ावा दिया।

भारत पर्व 2024

5 श्रेणियों के तहत सबसे पसंदीदा पर्यटक आकर्षणों की पहचान करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण-‘देखो अपना देश पीपुल्स च्वाइस 2024’ की शुरुआत की गई। यह मिशन मोड में विकास के लिए आकर्षण और स्थलों की पहचान करने का एक प्रयास भी है जो विकसित भारत@2047 की दिशा में भारत की यात्रा में योगदान देता है।

पर्यटन मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय के सहयोग से केन्द्रीय विद्यालय (केवी) और नवोदय विद्यालय (एनवी) के लिए राष्ट्रव्यापी देखो अपना देश स्कूल प्रतियोगिता का आयोजन कर रहा है। छात्रों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने जिले के पर्यटन आकर्षणों, गंतव्यों, अनुभवों और अन्य आकर्षण केंद्रों का विवरण लिखें। इस पहल का उद्देश्य छात्रों को देश के प्रत्येक जिले में मौजूद पर्यटन आश्‍चर्यों और आकर्षणों के बारे में जागरूक करना है।

चलो इंडिया ग्लोबल डायस्पोरा अभियान भारतीय प्रवासियों को अतुल्य भारत का राजदूत बनाने के लिए शुरू किया गया था। यह अभियान अतुल्य और विकसित भारत के लिए जन भागीदारी की भावना से लागू किया गया है ताकि भारतीय प्रवासियों को हर साल अपने 5 गैर-भारतीय मित्रों को भारत की यात्रा के लिए आमंत्रित करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। चालू वित्त वर्ष के शेष भाग के लिए ‘चलो इंडिया’ अभियान के तहत भारत आने वाले विदेशी पर्यटकों के लिए एक लाख निःशुल्क ई-वीजा की घोषणा की गई है।

जुलाई 2024 में भारत मंडपम, नई दिल्ली में आयोजित विश्व धरोहर समिति के 46वें सत्र के अवसर पर, प्रतिनिधियों के लिए भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, सदियों पुरानी सभ्यता, भौगोलिक विविधता, पर्यटन में छिपे रत्नों के साथ-साथ आधुनिक विकास को प्रदर्शित करने के लिए भारत मंडपम में एक ‘अतुल्य भारत’ प्रदर्शनी लगाई गई थी। प्रदर्शनी में सभी 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ-साथ 10 केंद्रीय मंत्रालयों और विभागों ने अपनी प्रस्तुतियाँ प्रदर्शित कीं। इसके अलावा, मंत्रालय ने दिल्ली शहर में प्रतिनिधियों के लिए विरासत भ्रमण और पर्यटन की भी व्यवस्था की।

भारत प्रदर्शनी _ विश्व धरोहर समिति की बैठक
भारत के उपराष्ट्रपति ने 27 सितंबर, 2024 को नई दिल्ली में पर्यटन मंत्रालय द्वारा आयोजित विश्व पर्यटन दिवस समारोह में भाग लिया। इस वर्ष के विश्व पर्यटन दिवस का विषय ‘पर्यटन और शांति’ था। इस कार्यक्रम में केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री, केंद्रीय पर्यटन और संस्कृति मंत्री, पर्यटन, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस राज्य मंत्री, भारत में विभिन्न विदेशी मिशनों के राजदूत, भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के वरिष्ठ अधिकारी, राज्य/केंद्र शासित प्रदेश सरकारों, यात्रा व्यापार और आतिथ्य उद्योग के अधिकारी भी शामिल हुए।

अतुल्य भारत कंटेंट हब को दुनिया भर के यात्रा और पर्यटन उद्योग को उच्च गुणवत्ता वाली छवियों, वीडियो और अन्य सूचनाओं तक पहुँच प्रदान करने के लिए लॉन्च किया गया था जिनकी उन्हें अतुल्य भारत को बढ़ावा देने के लिए आवश्यकता हो सकती है।

पर्यटन मंत्रालय भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों की पर्यटन क्षमता को प्रदर्शित करने के लिए उत्तर पूर्वी क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन मार्ट (आईटीएम) का आयोजन कर रहा है। अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन मार्ट (आईटीएम) का 12वां कार्यक्रम 26 से 29 नवंबर, 2024 तक काजीरंगा, असम में आयोजित किया गया।

पर्यटन मंत्रालय भारत के पर्यटन स्थलों और उत्पादों को प्रदर्शित करने के लिए विदेशी बाजारों में आयोजित यात्रा मेलों/प्रदर्शनियों में भाग लेता है। इस वर्ष के दौरान, पर्यटन मंत्रालय ने आईटीबी बर्लिन, एमआईटीटी मॉस्को, एफआईटीयूआर मैड्रिड, एटीएम दुबई, आईएमईएक्स फ्रैंकफर्ट, पीएटीए ट्रैवल मार्ट, जापान टूरिज्म एक्सपो, आई.एफ.टी.एम. टॉप रेसा, डब्ल्यू.टी.एम. लंदन आदि सहित कई अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों में भाग लिया है।

पर्यटन संबंधी आंकड़ें
वर्ष 2023 के दौरान भारत में अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों का आगमन (आईटीए) 18.89 मिलियन था।
वर्ष 2023 के दौरान भारत में विदेशी पर्यटकों का आगमन (एफटीए) 9.52 मिलियन था।
वर्ष 2023 के दौरान पर्यटन के माध्यम से विदेशी मुद्रा आय (एफईई) 231927 करोड़ रुपये थी।
वर्ष 2023 के दौरान भारत में घरेलू पर्यटकों की संख्‍या (डीटीवी) 2509 मिलियन थी।

बैठकें और सम्मेलन
पर्यटन मंत्रालय ने विकसित भारत@2047 के लिए पर्यटन क्षेत्र के लिए विचार की परिकल्‍पना करने और विचार-विमर्श करने के लिए 22 अगस्त, 2024 से 9 सितंबर, 2024 तक चंडीगढ़, गोवा, शिलांग और बैंगलोर में चार क्षेत्रीय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के पर्यटन मंत्रियों के सम्मेलन आयोजित किए।

पर्यटन मंत्रालय ने सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गांव प्रतियोगिता 2024 का दूसरा संस्करण शुरू किया जिसका उद्देश्य उन गांवों की पहचान करना है जो पर्यटन स्थल का सबसे अच्छा उदाहरण हैं। यह प्रतियोगिता राज्यों, उद्योग और अन्य पर्यटन हितधारकों के साथ साझेदारी में आयोजित की गई थी। सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गांव प्रतियोगिता 2024 की 8 श्रेणियों में 36 गांवों को विजेता के रूप में मान्यता दी गई।

पर्यटन मंत्रालय ने 27 सितंबर 2024 को विश्व पर्यटन दिवस पर ‘पर्यटन मित्र और पर्यटन दीदी’ नाम से एक राष्ट्रीय जिम्मेदार पर्यटन पहल शुरू की ताकि पर्यटन को सामाजिक समावेश, रोजगार और आर्थिक प्रगति के साधन के रूप में सक्षम बनाया जा सके और साथ ही गंतव्यों में पर्यटकों के लिए समग्र अनुभव को बेहतर बनाया जा सके जिससे उन्हें ‘पर्यटक-अनुकूल’ लोगों से मिलवाया जा सके जो उनके गंतव्य के लिए गर्वित राजदूत और कहानीकार हो।

पर्यटन मंत्रालय ने 8 प्रमुख आतिथ्य श्रृंखलाओं और 21 होटल प्रबंधन संस्थानों के बीच समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर करने में सक्षम बनाया। इस साझेदारी का उद्देश्य निजी होटल श्रृंखलाओं की विशेषज्ञता का लाभ उठाकर छात्रों को उद्योग की सर्वोत्तम व्‍यवस्‍थाओं से परिचित कराना, उनकी रोजगार क्षमता को बढ़ाना और यह सुनिश्चित करना है कि भारत आने वाले पर्यटकों को उच्च गुणवत्ता वाली सेवाएँ मिलें।

पर्यटन मंत्रालय ने पर्यटन और आतिथ्य क्षेत्र के लिए ‘उद्योग का दर्जा’ प्रदान करने और उसे लागू करने में राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के प्रयासों का सहयोग करने के लिए चरण-दर-चरण मार्गदर्शन प्रदान करने वाली एक पुस्तिका लॉन्च की है जिसका उद्देश्य राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में इस क्षेत्र में अधिक से अधिक निवेश आकर्षित करना और रोजगार के अवसर पैदा करना है।

(चित्रः कुसुम सरोवर, गोवर्धन, उत्तर प्रदेश में रोशनी का दृश्य) 

छत्तीसगढ़ के बचेली वन क्षेत्र में प्राचीन वनस्पतियों का जीवंत संग्रह

रायपुर। छत्तीसगढ़ वन विभाग ने हाल ही में पारिस्थितिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण वन क्षेत्र की पहचान की है, जो दंतेवाड़ा वन मंडल के बचेली वन परिक्षेत्र में स्थित है और बीजापुर के गंगालूर वन परिक्षेत्र तक फैला हुआ है। इस विशेष वन क्षेत्र में कई प्राचीन वनस्पतियों की प्रजातियां पाई गयीं है, जो छत्तीसगढ़ राज्य की असाधारण जैव विविधता को प्रदर्शित करता है। इस क्षेत्र को वैज्ञानिकों और वन अधिकारियों ने जैव विविधता के लिए अत्यधिक समृद्ध और महत्वपूर्ण माना है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह खोज न केवल इस क्षेत्र के पर्यावरणीय महत्व को दर्शाती है, बल्कि भविष्य में वन अनुसंधान और संरक्षण के प्रयासों को भी नई दिशा देगी।

मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय ने इस क्षेत्र की जैव विविधता को संरक्षित करने और वन अनुसंधान को बढ़ावा देने पर जोर दिया है। उन्होंने कहा कि इस खोज से राज्य को पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में एक नई पहचान मिलेगी। सरकार इस क्षेत्र में शोध और अध्ययन के लिए विशेष प्रोत्साहन देगी, ताकि इन दुर्लभ प्रजातियों को संरक्षित रखा जा सके। वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, यह दुर्लभ वन क्षेत्र विशेष रूप से उन पौधों की प्रजातियों का घर है, जो करोड़ों साल पहले के समय में अस्तित्व में थीं। अब यह क्षेत्र न केवल वैज्ञानिक अध्ययन के लिए बल्कि पर्यटन के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन सकता है।

समुद्र तल से 1,240 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर स्थित यह वन क्षेत्र सबट्रॉपिकल ब्रॉड-लीव्ड हिल फॉरेस्ट (फॉरेस्ट टाइप 8) के रूप में वर्गीकृत किया गया है। खास बात ये है की यह छत्तीसगढ़ का सबसे ऊंचाई वाला वन क्षेत्र हो सकता है। जबकि राज्य में मुख्य रूप से मॉइस्ट एंड ड्राय डेसिड्युअस फॉरेस्ट्स (फॉरेस्ट टाइप 3 एंड 5) के लिए जाना जाता है, यह विशेष वन पैच ब्रॉड-लीव्ड हिल फॉरेस्ट एक नया पारिस्थितिक आयाम प्रस्तुत करता है।

यहां की वनस्पति पश्चिमी घाट की वनस्पतियों से काफी हद तक मेल खाती है। कांगेर घाटी के जंगलों की तरह, यह क्षेत्र भी विभिन्न प्रकार की प्रजातियों से समृद्ध है। इसके अलावा, मानवजनित दबाव की कमी होने कारण इन प्रजातियों को बिना किसी बाधा के पनपने में मदद मिली है। इस क्षेत्र को एक ’जीवित संग्रहालय’ माना जा रहा है, क्योंकि यहां कई प्राचीन पौधों की प्रजातियां संरक्षित हैं, जो संभवतः प्रागैतिहासिक काल, यहां तक कि डायनासोर युग से संबंधित हो सकती हैं। यहां पाई गई कुछ वनस्पतियों की प्रजातियों को छत्तीसगढ़ में पहली बार दर्ज किया गया माना जा रहा है।

इस विशेष वन का तीन दिवसीय सर्वे अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (विकास एवं योजना) श्री अरुण कुमार पांडे, आईएफएस के नेतृत्व में किया गया। इस सर्वे दल में पर्यावरणविदों और वन अधिकारियों के साथ-साथ आईएफएस परिवीक्षाधीन अधिकारी श्री एस. नवीन कुमार और श्री वेंकटेशा एम.जी. भी शामिल थे। इसके अलावा, वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के उप निदेशक डॉ. राजेंद्र प्रसाद मिश्रा और पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर के स्कूल ऑफ लाइफ साइंसेज के पूर्व विभागाध्यक्ष श्री एम.एल. नायक भी सर्वे टीम का हिस्सा थे।
सर्वे के दौरान, टीम ने दुर्लभ और प्राचीन वनस्पतियों की कई प्रजातियों का दस्तावेजीकरण किया है, जिनमें ऐल्सोफिला स्पिनुलोसा (ट्री फर्न), ग्नेटम स्कैंडन्स, ज़िज़िफस रूगोसस, एंटाडा रहीडी, विभिन्न रुबस प्रजातियाँ, कैंथियम डाइकोकूम, ओक्ना ऑब्टुसाटा, विटेक्स ल्यूकोजाइलन, डिलेनिया पेंटागाइना, माचरेन्जा साइनेंसिस, और फिकस कॉर्डिफोलिया शामिल हैं। इनमें से माचरेन्जा साइनेंसिस प्रजाति संभवतः छत्तीसगढ़ के केवल इसी वनीय पहाड़ी क्षेत्र में पाई गई है।

प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं वन बल प्रमुख श्री व्ही. श्रीनिवास राव, आईएफएस ने इस विशेष वन क्षेत्र के बारे में कहा कि राज्य के मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय एवं वन मंत्री श्री केदार कश्यप के मार्गदर्शन में छत्तीसगढ़ वन विभाग राज्य की समृद्ध जैव विविधता के संरक्षण के लिए लगातार प्रयासरत रहा है। बचेली का ये बेहद विशेष वन क्षेत्र राज्य वन विभाग की जैव विविधता के संरक्षण के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

बचेली का ये विशेष वन भविष्य के अनुसंधान एवं इको-टूरिज्म के विकास के लिए महत्वपूर्ण संभावनाएं प्रस्तुत करता है। वन विभाग इस क्षेत्र की छिपी हुई जैव विविधता को और गहराई से समझने के लिए अधिक विस्तृत सर्वेक्षण करने की योजना बना रहा है।

(लेखक जनसंपर्क विभाग छत्तीसगढ़ में उप संचालक हैं) 

हाड़ोती के वन्य जीवों से साक्षात करती प्रदर्शनी

कोटा /  वन्यजीव हमारी अमूल्य धरोहर हैं। देश में अनेक वन्य जीव प्रजातियां लुप्त होने के कगार पर हैं,और कई दुर्लभ हो गई हैं। ऐसे में हर वर्ष वन विभाग  इनके संरक्षण के लिए जागरूकता फैलने हेतु एक अक्टूबर से वन्यजीव सुरक्षा सप्ताह मानता है। इसी ध्येय के लिए कोटा की कला दीर्घा में वन्यजीव प्रदर्शनी का आयोजन किया गया है।
 हाड़ोती के विभिन्न स्थानों पर पाए जाने वाले पैंथर, भालू, भेड़िया, टाईगर, उदबिलाव,मगरमच्छ, घड़ियाल, पक्षी, तितलियां, सर्दियों में आने वाले प्रवासी पक्षियों के प्राकृतिक परिवेश में शौकिया फोटोग्राफर्स द्वारा लिए गए छाया चित्रों से इन दिनों सजी है एक आकर्षक प्रदर्शनी कोटा के क्षत्रविलास उद्यान स्थित कला दीर्घा में। हो व्यक्ति और बच्चें वन्य जीवों से प्रेम करते हैं उनके लिए प्रातः 10.00 बजे से सांय 5. 00 बजे तक एक सप्ताह तक प्रदर्शनी लगी हैं।
प्रदर्शनी के साथ ही  ईश्वरमूल, मरोड़फली, केवड़ा, हड्डजोड़, सौंफ, तुलसी, वरूण, आरारोट आदि 57 प्रकार के औषधीय और 35 वर्ष पुराने बोनसाई पौधों और वन्य जीवों पर समय समय पर जारी डाक टिकट भी प्रदर्शित किए गए हैं। प्रथम दिन मंगलवार को विभिन्न विद्यालयों के करीब 350 विद्यार्थियों ने प्रदर्शनी का कोतूहल के साथ अवलोकन किया।
डीसीएफ अनुराग भटनागर ने  मौजूद दुर्लभ पेड़ जैसे जरूल, समुद्रफल आदि की पहचान कराई । उन्होंने बताया कि कबूतर (रॉकपिजन) विदेशी प्रजाति का पक्षी है जो हमारे यहां पाए जाने वाले देशी पक्षी गौरैया, रोबिन, बुलबुल, नीलकण्ठ, कठफोड़वा आदि पक्षियों का वास, भोजन और स्थल छीन रहा है जिससे ये चिड़ियाएं हमारे गांव और शहरों से विलुप्त होती जा रही हैं।
उप वन संरक्षक मुकुन्दरा हिल्स टाईगर रिर्जव मूथू एस ने बताया कि विदेशी पेड़ जैसे यूकेलिप्टस, लेन्टाना, पारथेनियम आदि इन्वेजिव पेड़-पौधे जंगल के लिए ठीक नहीं है, ये पेड़ जहां भी होते हैं वहां उसके आसपास अन्य देशी प्रजाति के पेड़-पौधों को पनपने नहीं देते। साथ ही, जमीन से पानी भी अधिक मात्रा में सोख लेते हैं। उन्होंने बताया कि हमें सिर्फ हमारे देश के पेड़ों को लगाना चाहिए विदेशी प्रजाति के पेड़-पौधे जो इन्वेजिव है उन्हें नहीं लगाएं। उन्होंने गिद्ध के बारे में बताया कि ये स्केवन्जर है यानी मरे हुए पशुओं को खाकर हमारे पर्यावरण को साफ सुथरा रखते है जिससे मरे हुए जानवर में पाए जाने वाले विषाणु एन्थ्रेंक्स आदि वातावरण में न फैल सकें।
 प्रदर्शनी में ए. एच, जैदी, सुनील सिंघल, विजय माहेश्वरी, बनवारी यदुवंशी, रविंद्र तोमर, कार्तिक वर्मा, हर्षित शर्मा, तुषार, उप वन संरक्षक मुकुन्दरा हिल्स टाईगर रिर्जव मूथू एस,
मनोज शर्मा, बुधराम जाट, डी. के. शर्मा, हरफूल शर्मा, चंद्रशेखर श्रीवास्तव, अंशु शर्मा, कपिल खंडेलवाल, उर्वशी शर्मा, तपेश्वर भाटी, दिलावर कुरेशी, ओम प्रकाश बैरवा आदि वन्य जीव फोटोग्रफर्स के लगभग 250 चित्र प्रदर्शित किए गए हैं। अधिकांश चित्र अभेड़ा, आलनिया, जवाहर सागर सेंकचुरी, भेंसरोड गढ़ सेंकचुरी, सोरसन संरक्षित क्षेत्र, मुकंदरा, चंद्रेसल, मानसगांव, गामछ, सावन भादो, गेपरनाथ, गरडिया महादेव, राजपुरा, जमुनिया, उदपुरिया क्षेत्रों के हैं।
वैद्य सुधींद्र शृंगी, पृथ्वी पाल सिंह द्वारा औषधीय पौधों और फिरोज खान द्वारा बोंसई पोधों की प्रदर्शनी लगाई गई। भुवनेश सिंघल, राकेश सोनी और फिरोज खान द्वारा डाक टिकटों में वन्य जीव प्रदर्शनी लगाई गई।

” महात्मा गांधी ” काव्य प्रतियोगिता परिणाम

योगीराज योगी, अर्चना शर्मा ,अल्पना गर्ग एवम् सन्जू श्रृंगी की कविताएं टॉप चार में
कोटा /  बाल साहित्य मेले के दौरान रचनाकारों को बाल कविताएं लिखने के लिए प्रेरित करने के लिए गांधी जयंती पर  ” महात्मा गांधी ” विषय पर बाल कविता प्रतियोगिता का आयोजन “संस्कृति,साहित्य, मीडिया फोरम, कोटा द्वारा किया गया।  काव्य प्रतियोगिता में रचनाकार योगीराज योगी, अर्चना शर्मा ,अल्पना गर्ग एवम् सन्जू श्रृंगी टॉप
चार घोषित की गई हैं। विजेता साहित्यकारों को आगामी किसी कार्यक्रम में समान रूप से पुरस्कृत किया जाएगा, जिसकी सूचना उन्हें प्रथक से व्यक्तिगत प्रेषित कर दी जाएगी।
प्रतियोगिता का परिणाम देश की विख्यात बाल साहित्यकार डॉ. विमला भंडारी  निवासी सलूंबर जिला द्वारा घोषित किया गया। उनके सुझाव पर प्रथम, द्वतीय और तृतीय घोषित नहीं कर टॉप चार घोषित किया गया है। उन्होंने सभी रचनाकारों की रचनाओं की सराहना की है।
प्रतियोगिता में  डॉ. युगल सिंह, डॉ. अपर्णा पांडेय , श्यामा शर्मा,  रीता गुप्ता ‘ रश्मि ‘, अर्चना शर्मा ,  अक्षयलता शर्मा, राम मोहन कौशिक, डॉ सुशीला जोशी , राम शर्मा ‘काप्रेन’ , महेश पंचोली , रेणु सिंह राधे, योगीराज योगी, मोहन वर्मा, डॉ संगीता देव, रघुनंदन हटीला, दिलीप सिंह हरप्रीत , अल्पना गर्ग, संजू शृंगी, अनुज  कुमार कुच्छल ने  उत्साह पूर्वक भाग लिया ।
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डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
प्रेषक :
डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
संयोजक
संस्कृति,साहित्य,मीडिया फोरम, कोटा

ब्राह्मण भोज कब से शुरू हुआ…?

विष्णु पुराण में एक कथा लेख मिलता है एक समय सभी ऋषियों की एक पंचायत हुई जिसमें यह निर्णय करना था की यज्ञ का भाग तीनों देवों में से किसको दिया जाए।
प्रथम परीक्षा लेने के लिए भृगु मुनि को चुना गया भृगु मुनि ने भगवान शंकर को जाकर प्रणाम किया तो शंकर जी उनसे गले मिलने के लिए खड़े हुए मुनि ने मना कर दिया कि आप अघोरी हो मुर्दे की भस्म लगाते हो हम आपसे गले नहीं मिल सकते।
भगवान शंकर क्रोधित हो गए फिर भृगू मुनि अपने पिता के यहां गए तो अपने पिता ब्रह्मा जी को प्रणाम नहीं किया ब्रह्मा जी भी कुपित हो गए कितना उद्दंड बालक है पिता को प्रणाम नहीं करता।
भृगु मुनि बैकुंठ धाम गए तो भगवान विष्णु सो रहे थे तो सोते हुए विष्णु की छाती में जाकर लात मारी भगवान विष्णु ने ब्राह्मण का चरण पकड़ा और कहा ब्राह्मण देव आपका चरण बड़ा कोमल है मेरी छाती बड़ी कठोर है आपको कहीं लगी तो नहीं।
प्रभु मुनि ने तुरंत भगवान विष्णु के चरण छुए और क्षमा याचना करते हुए कहा प्रभु यह एक परीक्षा का भाग था जिसमें हमें यह चुनना था कि.. यज्ञ का प्रथम भाग किस को दिया जाए तो सर्वसम्मति से आपको चुना जाता है।
तब भगवान विष्णु ने कहा कि जितना में यज्ञ तपस्या से प्रसन्न नहीं होता उतना में ब्राह्मण को भोजन कराए जाने से होता हूं भृगु मुजी जी ने पूछा महाराज ब्राह्मण के भोजन करने से आप तृप्त कैसे होते हैं तो विष्णु भगवान ने कहा ब्राह्मण को जो आप दान देते हैं या जो भोजन कराते हैं एक तो वह सात्विक प्रवृत्ति के होते हैं वेद अध्ययन वेद पाठन करने वाले होते हैं ब्राह्मण ही मुझे ब्रह्मा और महेश तीनों का ज्ञान समाज को कराते हैं।
हर अंग का कोई ना कोई देवता है जैसे आंखों के देवता सूरज जैसे कान के देवता बसु जैसे त्वचा के देवता वायु देव मंन के देवता इंद्र वैसे ही आत्मा के रूप में मैं भी वास करता हूं ब्राह्मण भोजन करके तृप्ति की अनुभूति करें तो वह तृप्ति ब्राह्मण के साथ मुझे और उन देवताओं को भी प्रत्यक्ष भोग लगाने के समान है जो आहुति हम यज्ञ कुंड में देते हैं स्वाहा कहकर.. ठीक उसी प्रकार की आहुति ब्राह्मण के मुख्य में लगती है इसलिए यह परंपरा ऋषियों ने प्रारंभ की की कोई भी धार्मिक कार्य हो तो ब्राह्मण को भोजन कराया जाए जिससे प्रत्यक्ष लाभ मिले।
कहते हैं ना आत्मा सो परमात्मा हमारे पूजा पाठ हवन इत्यादि का फल तभी हमें मिलता है जब परमात्मा प्रसन्न होता है आस्तिक मन से किया हुआ पुण्य दान अवश्य फलता है और सात्विक ब्रत्ती वाले को ही दान पुण्य भोजन कराना चाहिए हर पूजा-पाठ के उपरांत दक्षिणा और भोज अवश्य कराना चाहिए यह आपकी यथाशक्ति पर निर्भर है अगर ब्राह्मण सात्विक वृत्ति का है आप जो भी उसे दोगे जो भी खिलाओगे उसी से प्रशन्न हो जाएगा चाणक्य का एक श्लोक याद आता है –
विप्राणा्म भोजनौ तुष्यंति मयूरं घन गर्जिते।
 *साधवा पर संपत्तौ खल़़ःपर विपत्ति सू ।।
आप चाहे गरीबों को भोजन कराएं चाहे गौ माता को भोजन कराएं या ब्राह्मण को भोजन कराएं मतलब आत्मा की तृप्ति से है सामने वाले की आत्मा तृप्त तो परमात्मा प्रसन्न है आशा करता हूं आप लोगों को मेरी बात समझ में आई होगी जिसको नहीं आनी है तो नहीं आनी है तर्क वितर्क करने के कोई लाभ नहीं आप विष्णु पुराण पढ़िए!
सर्वपितृ अमावस्या” के दिन की गौमाताओं को दिया हुआ भोजन “गौग्रास” सीधा पितरों को प्राप्त होता है जिससे पितृ देव तृप्त होते हैं और आशीर्वाद देते हैं जिसके फलस्वरूप घर मे सुख सम्पत्ति धन धान्य वंश में वृद्धि संतान प्राप्ति होती है। इसलिए आज पितृपक्ष श्राद्धपक्ष की “सर्वपितृ अमावस्या” के अवसर पर अवश्य यथा संभव गौसेवा करके पुण्यलाभ अर्जित करें..और अपने पितरों पुर्वजो को श्रद्धापूर्वक विदाई दें…
साभार https://newstrack.com/ से