जरूरी नहीं फरिश्ता होना
इंसान का काफी है इंसान होना।
अपनी गलतियों पर भी नज़र झुकती नहीं है अब
लोग भूलने लगे हैं, शर्मिंदा होना।
ये पंक्तियाँ श्री ‘हेमंत मोहन’द्वारा रचित इंसान कविता की हैं।जो आज के संदर्भ में बिल्कुल सटीक बैठती हैं।
पूरे देश में ‘लॉक डाउन’ है और हम सभी अपने घर में कैद हैं।आज मैं थोड़ा व्यथित हूँ।सोचती हूँ कि किनकी गलतियों के कारण आज पूरा विश्व अपने घरों में यूँ कैद होने को विवश है। आज विश्व जिन परिस्थितियों में खड़ा है उसे इस स्थिति में लाने में मनुष्य की छोटी सी महत्वाकांक्षा की बहुत बड़ी भूमिका लगती है क्योंकि किसी मनुष्य को कोई एक लहर कभी डुबो नहीं सकती। वरन उस लहर को वहाँ तक पहुँचाने में प्रत्येक बूँद की अपनी सहभागिता होती है। शायद गलत खानपान,असंयमित जीवनशैली या फिर विश्व में नंबर वन की दौड़ का विजेता बनने की आकांक्षा ने मनुष्य के विवेक को नष्ट कर दिया है।आज समय है कि हम अपनी मान्यताओं और क्रियाकलापों पर गहराई से विचार करें और विशुद्ब अंतर्मन से अपनी गलतियों को सुधारने का प्रयत्न करें।जिससे समाज पुनः संगठित होकर सही दिशा में आगे बढ़ें।
इतिहास इस बात का साक्षी है कि जब-जब मनुष्य प्रकृति के नियमों का उल्लंघन करता है तब-तब मानव जाति को विभिन्न प्रकार की आपदाओं से गुजरना पड़ता है तथा उसमें उसके जान -माल की अपूर्णीय क्षति होती है।इन प्रकोपों से मानव जीवन का विनाश तो होता ही है आर्थिक एवं सामाजिक रूप से भी बड़ी हानि देखने को मिलती है। जहाँ एक ओर अनगिनत लोग असमय काल के गाल में समा जाते हैं वहीं दूसरी ओर विश्व भी आर्थिक दृष्टिकोण से बहुत पीछे चला जाता है। साथ ही सामाजिक परिवेश में भी अप्रत्याशित परिवर्तन देखने को मिलते हैं। विगत कालखंड में स्पेनिश फ्लू,सार्स कोरोना, स्वाइन फ्लू,इबोला जैसी महामारी से वैश्विक स्तर पर बहुत भारी नुकसान हुआ है।
महामारी शब्द ही यह दर्शाने के लिए काफी है कि इसका प्रकोप कितना विस्तृत होता है। सबसे पहले कोई ‘वायरस’ किसी एक व्यक्ति को संक्रमित करता है। उसे बीमार करता है और फिर उस व्यक्ति के माध्यम से वह संक्रमण अन्य व्यक्तियों में फैलता है। आरंभ में इसका फैलाव कुछ सीमित क्षेत्रों में होता है। धीरे-धीरे इसका विस्तार मनुष्य के द्वारा ही दूसरी जगह पर होता है तथा एक महामारी का रूप लेता है। यह प्रकोप जब तक किसी क्षेत्र विशेष तक सीमित रहता है तो महामारी कहलाता है। परंतु जब यह संक्रमण किसी देश की सीमा को लाँघ कर दूसरे देशों में भी अपने प्रकोप का विस्तार करना शुरू करता है। तब इसे वैश्विक महामारी की संज्ञा दी जाती है। इसमें यह संक्रमण अनेक देशों में फैल जाता है। जिससे मानव जीवन काफी अस्त-व्यस्त हो जाता है।
वर्तमान में “कोरोना वायरस” भी एक ऐसा ही वायरस है जो संभवत चीन के वुहान शहर से होता हुआ आज विश्व के अनेक देशों तक महामारी के रूप में फैल चुका है तथा अब तक हजारों व्यक्ति इस खतरनाक संक्रमण से कालकवलित हो चुके हैं तथा लाखों लोग अब भी इस संक्रमण की चपेट में हैं।अभी तक विश्व में इस वायरस से संक्रमित व्यक्तियों की संख्या- 3,778,000 (07/05/2020) हो चुकी है तथा मृतकों की संख्या 262,000 तक पहुँच गई है। भारत में संक्रमित लोगों की संख्या 50,000 तक पहुँच गई है तथा मृतकों की संख्या 1,700 तक पहुँच गई है। हमारे प्रधानमंत्री द्वारा यथाशीघ्र निर्णय लेने के कारण इसकी उग्रता पर काफी हद तक अंकुश लगाना संभव हो पाया है। हालाँकि अब भी प्रतिदिन हजारों लोग कोरोना वायरस से अपनी जान गँवा रहे हैं ।जो इस संक्रमण की भयावहता को दर्शाता है।
कोरोना वायरस पूरे विश्व में भयंकर तबाही मचा रहा है। अन्य देशों के साथ हमारा देश भी उसकी त्रासदी झेल रहा है।विडंबना यह है कि अब तक इसकी कोई दवा भी नहीं बन पाई है। मजबूत एवं सक्षम देश भी इस प्रकोप से त्राहिमाम हैं। यह एक ऐसा वायरस है जो मनुष्य के श्वसनतंत्र एवं फेफड़ों को बुरी तरह प्रभावित करता है। जिससे बुखार, सूखी खाँसी एवं साँस लेने में अत्यधिक तकलीफ होने लगती है ।अभी तक असंख्य लोग इस वायरस जनित रोग से अपने प्राणों की बलि चढ़ा चुके हैं।आज के परिवेश में जहाँ यातायात के अनेकों संसाधन उपलब्ध हैं। यह संक्रमण बहुत तेजी से विश्व के उन देशों में भी पहुँच चुका है, जो अब तक इससे अछूते थे।
मनुष्य की प्रकृति रही है कि विपत्ति कितनी भी बड़ी क्यों ना हो वह अपनी योग्यता अनुसार उससे बाहर निकलने को सतत प्रयत्नशील रहा है और विजयी भी होता रहा है। शर्त बस यह है कि विश्व की पूरी मानव जाति मिलकर इसकी भयावहता को समझे तथा कटिबद्ध होकर इस महायुद्ध में अपना सहयोग दें। विभिन्न देश अपने अपने स्तर पर इस कोरोना (COVID-19) नामक महामारी से जूझ रहे हैं पर अभी तक किसी के पास भी इसका इलाज उपलब्ध नहीं हो पाया है। हमारा देश भी इस प्रकोप के आक्रोश को झेल रहा है। हमारी सरकार भी युद्ध स्तर पर इस प्रकोप से पार पाने का हर संभव प्रयत्न कर रही है। इसी प्रयास के तहत भारत में पहली बार संपूर्ण ‘lock down’ किया गया है। अर्थात हम सामाजिक दूरी का पालन कर इस वैश्विक महामारी के संक्रमण के फैलाव को कम कर सकते हैं। वर्तमान में यही एकमात्र तरीका भी है कि हम एक दूसरे से शारीरिक दूरी बनाकर रखें। ताकि संक्रमण को बढ़ने से रोका जा सके। जब तक इसका कोई समुचित इलाज नहीं मिल पाता है।हम भारत सरकार के निर्देशानुसार- सामाजिक दूरी अपनाकर ना सिर्फ खुद को सुरक्षित कर सकते हैं वरन अपने परिवार, समाज तथा देश को भी सुरक्षित कर इस वैश्विक महामारी के महायुद्ध में अपना सकारात्मक योगदान दे सकते हैं।
कोरोना के नकारात्मक पहलुओं पर तो हमने बहुतायत से विचार किया है। पर अगर सारे क्रियाकलापों का सूक्ष्मता से अवलोकन करें तो इस वायरस के कारण इस भूमंडल पर कई प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक रूप में सकारात्मक बदलाव भी देखने को मिल रहे हैं। जिन्हें चाहकर भी प्रशासन तथा मानव जाति के लिए सुधार पाना लगभग असंभव ही था।आज संपूर्ण मानव जाति अपने आप को घरों में कैद करके कोरोना रूपी वैश्विक युद्ध से विजय प्राप्त करने की जी तोड़ कोशिश में लगी है। जिसका सकारात्मक पहलू यह है कि पर्यावरण प्रदूषण मुक्त हो चला है। वायुमंडल शुद्ध और साफ हो गया है। जिनके उदाहरण हमें कई जगहों पर देखने को मिल रहे हैं।
1) भारी संख्या में गुलाबी रंग के फ्लेमिंगो पक्षियों ने आकर नवी मुंबई के एक खाड़ी क्षेत्र को जैसे गुलाबी चूनर से ढँक दिया हो।
२)ओजोन की परतों में जो सुराख हो गए थे, उनमें भी सुधार हो रहा है।
३) गंगा-यमुना जैसी नदियों की स्वतःसफाई हो रही है।
४) डॉल्फिन तथा व्हेल मछलियाँ समुद्र में प्रदूषण मुक्त वातावरण के कारण किनारे आकर उछाल मार रही हैं।
५)राष्ट्रीय पक्षी मोर बिना किसी रोक-टोक के शहर के बीचों-बीच पंख फैलाकर नृत्य करते हुए आनंदित हो रहा है।
पर्यावरणकी शुद्धता के साथ-साथ पाश्चात्य देशों में भी भारतीय संस्कृति का प्रचार हो रहा है। जैसे घरों में दाखिल होने पर हाथ पैरों को स्वच्छ करना,किसी का अभिवादन हाथ जोड़कर करना यह हमारी परंपरा रही है।अब यही तरीका पूरा विश्व अपना रहा है। इसी तौर तरीके को अपनाकर शायद विश्व अपने आप को सुरक्षित रख पायेगा।
“देख तेरे संसार की हालत,
क्या हो गई भगवान!
कितना बदल गया इंसान”
द्वापर युग में महाभारत के भीषण युद्ध में सत्य की विजय हुई थी और इस कोरोना के वैश्विक महामारी रूपी युद्ध में संयम तथा धीरज की विजय होगी।
आज लोग घरों में अपना समय बिताने के लिए नए सृजनात्मक कार्य कर रहे हैं।जैसे कहीं नृत्य, संगीत तथा कविताओं की तुकबंदी हो रही है तो कहीं गृहणियाँ कम सामान में नए-नए प्रयोग करके नए पकवान बनाकर घर के सदस्यों को नवीन स्वाद की अनुभूति दे रहीं हैं। शारीरिक दूरी में सामाजिक होने के कई तरीके सामने आए हैं। जैसे ऑन लाईन अंताक्षरी तथा ऑन लाई कवि सम्मेलनों में लोग बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं।
इस तरह कोरोना विश्व स्तर पर मनुष्य के जान -माल की तो बहुत हानि करके जाएगा पर लोगों में एक नई सोच, एक नई विचारधारा को जन्म देगा। जो मानव मात्र के लिए एक वरदान साबित होगी।मानव सभ्यता के इतिहास में यह सर्वविदित है कि हमारे सभ्य कहे जाने वाले समाज में कुछ ऐसी ताकतें भी हमेशा से रही हैं,जो मानव जीवन की रक्षा के लिए लड़ी जाने वाली लड़ाई को कमजोर करने की पुरजोर कोशिश भी करती हैं। शायद वे यह भूल जाते हैं कि ऐसी महामारी किसी जाति धर्म संप्रदाय से हटकर सिर्फ और सिर्फ मानव जाति का विनाश करती हैं।अतः इन्हें चाहिए कि मानव हित मेंअपना सर्वोत्तम सहयोग दें ।आज समय है कि देश और विश्व का प्रत्येक नागरिक मानव इतिहास के इस संक्रमण काल में इस महामारी से लड़ाई में अपना योगदान दें।सरकार के निर्देशों का अक्षरश: पालन करें।
अग्रिम पंक्ति में खड़े होकर इस विभीषिका का डटकर सामना कर रहे प्रत्येक लोगों का उत्साहवर्धन करें। अंततोगत्वा हम भी सुरक्षित रहें,देश भी सुरक्षित रहे, मानव सभ्यता सुरक्षित रहे तथा आपसी प्रेम और सद्भावना भी सुरक्षित रहे। यह एक ऐसा युद्ध है जो बिना लड़े ही जीता जा सकता है।
” सदियाँ गुजर गई, युद्ध के थपेड़ों में
आओ मिल कर दीया जलायें,
आँधियों में, अंधेरों में।”
अनुपमा जीवन तिवारी पिछले 17 वर्षों से डॉन बॉस्को हाईस्कूल माटुंगा में हिंदी की शिक्षिका के रूप में कार्यरत हैं।साथ ही साथ मुम्बई विश्व विद्यालय से *आदिवासी विमर्श* इस विषय पर शोधकार्य कर रही हैं।
Mrs Anupama J Tiwari
A 402 Platinum Palazzo CHSL,
Plot 15, Sec 24, Kamothe,
Dist. Raigad
Mob No. 7208221999