वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
घुमावदार सूंड वाले, विशालकाय शरीर वाले, करोडों सूर्यों के समान चमकने वाले
हे मेरे प्रभु, आप सदैव मेरे सारे कार्य बिना विघ्न के पूरा करें (करने की कृपा करें)॥)
कश्मीर के प्राचीन मंदिरों की जब चर्चा होती है तो श्रीनगर के हब्बाकदल क्षेत्र में स्थित गणपतयार मंदिर का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है।इस मंदिर के आसपास का सारा इलाका ही ‘गणपतयार’ नाम से जाना जाता है।इस मंदिर की प्राचीनता का अंदाज़ इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपनी डायरी में इस मंदिर की दिव्यता और श्रेष्ठता का उल्लेख किया है।हर युग में श्रीनगर शहर में रहने वाले कश्मीरी पंडितों की आस्था और श्रद्धा का यह प्रधान केंद्र रहा है।
मेरी ननिहाल गणपतयार में ही हुआ करती थी और मुझे याद है कि आये दिन ननिहाल जाते समय इस मंदिर में माथा टेकना मैं भूलता नहीं था। कहा जाता है कि कश्मीर में अफगान शासन के दौरान इस मंदिर में स्थापित गणेशजी की मूर्ति को विधर्मी तोड़ना चाहते थे, लेकिन कश्मीरी पंडितों ने मूर्ति को नदी वितस्ता (झेलम) में फेंक दिया।मूर्ति को बाद में लगभग 90 साल बाद डोगरा शासन के दौरान झेलम नदी से निकाला गया।
1990 में पंडितों के घाटी से विस्थापन के बाद अन्य मंदिरों की तरह गणपतयार मंदिर की दशा भी शोचनीय हो गयी।मुझे याद है सायंकाल इस मंदिर में धूमधाम से गणेशजी की आरती होती थी और भजन गाये जाते थे।भक्तजनों में बड़ा उत्साह होता था।इस सब को 1990 के बाद विराम लग गया ।
कश्मीरी पंडित नेता श्री अश्विनीकुमार चरंगू दिसम्बर 2020 में श्रीनगर के इस मंदिर में गए थे और वहां से मुझे मंदिर के कतिपय सुंदर और बहुमूल्य चित्र भेजे।इन चित्रों को देख मेरा रोम-रोम पुलकित हुआ और मुझे लगा जैसे मैं भी अश्विनीजी के साथ गणपतयार मंदिर में पहुंच गया हूँ और विघ्नहर्ता गणेशजी के दर्शनों का लाभ ले रहा हूँ।पूछने पर अश्विनीजी ने फोन पर बताया कि इस मंदिर की सुरक्षा के लिए सीआरपीएफ के जवान नियत किये गए हैं और वे जवान ही सुबह-शाम मंदिर में आरती-पूजा-अर्चना का पावन कार्य सम्पन्न करते हैं।धन्य हैं हमारे वीर सैनिक जो हमारे मंदिरों की सुरक्षा भी कर रहे हैं और श्रद्धानुसार सेवाकार्य भी कर रहे हैं।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)
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