(अमर बलिदानी सुखदेव को उनके जन्मदिवस 15 मई पर उनके जीवनकाल से जुड़ी कुछ जानकारियाँ)
1.) अमर बलिदानी सुखदेव का जन्म नौघरा, लुधियाना, पंजाब के एक मध्यवर्गीय परिवार में 15 मई 1907 को हुआ था।
2.) जब सुखदेव तीन वर्ष के थे, तब उनके पिता का देहांत हो गया था। जिसके बाद उनका पालन पोषण उनकी विधवा आदरणीय माता रली देई और ताऊ अचिन्तराम ने किया था।
3.) उनके ताऊ आर्य समाज से काफी प्रभावित थे, जिसके कारण सुखदेव भी समाज सेवा व देशभक्तिपूर्ण कार्यों में आगे बढ़ने लगे।
4.) सनातन धर्म विद्यालय में जब विद्यार्थी थे तब पता चला कि हरिजन बच्चों को प्रवेश नहीं दिया जाता। उन्होंने विद्यालय की शिक्षा के बाद शाम को हरिजन कहे जाने वाले बच्चों को शिक्षा देनी शुरू की जिसके बाद लायलपुर के पास हरचरणसिंहपुरा गाँव के जमींदार सरदार हरचरणसिंह ने उनकी लगन को देख उनकी काफी सहायता की।
5.) वर्ष 1919 में, जलियाँवाला बाग के भीषण नरसंहार के कारण देश में भय तथा आतंक का वातावरण बन गया था, उस समय सुखदेव महज 12 वर्ष के थे, जब पंजाब के प्रमुख नगरों में मार्शल लॉ लगा दिया गया था। उस समय स्कूलों तथा कॉलेजों में तैनात ब्रिटिश अधिकारियों को भारतीय छात्रों द्वारा सलाम किया जाता था। लेकिन एक दिन सुखदेव ने दृढ़तापूर्वक ऐसा करने से मना कर दिया, जिसके कारण उन्हें ब्रिटिश अधिकारीयों की मार खानी पड़ी।
6.) स्कूल समाप्त करने के बाद, उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज में प्रवेश लिया। जहाँ पर उनकी मुलाकात भगत सिंह से हुई। दोनों एक ही राह के पथिक थे, अत: शीघ्र ही दोनों का परिचय गहरी दोस्ती में बदल गया।
7.) वर्ष 1926 में, लाहौर में ‘नौजवान भारत सभा’ का गठन हुआ। इसके मुख्य योजक सुखदेव, भगत सिंह, यशपाल, भगवती चरण व जयचन्द्र विद्यालंकार थे। प्रारम्भ में वह नैतिक शिक्षा, साहित्यिक तथा सामाजिक विचारों पर विचार गोष्ठियाँ करना, स्वदेशी वस्तुओं, देश की एकता, सादा जीवन, शारीरिक व्यायाम तथा भारतीय संस्कृति तथा सभ्यता पर विचार, इत्यादि पहलुओं पर चर्चा करते थे।
8.) सितंबर 1928 में, दिल्ली स्थित फिरोजशाह कोटला के खंडहर में उत्तर भारत के प्रमुख क्रांतिकारियों की एक गुप्त बैठक हुई। इसमें एक केंद्रीय समिति का निर्माण हुआ और समिति का नाम “हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी” रखा गया। सुखदेव को पंजाब की समिति का उत्तरदायित्व दिया गया।
9.) साइमन कमीशन का भारत आने पर हर जगह तीव्र विरोध किया जा रहा था, पंजाब में इसका नेतृत्व लाला लाजपत राय कर रहे थे, 30 अक्टूबर को लाहौर में एक विशाल जुलूस का नेतृत्व करते समय डिप्टी सुप्रीटेंडेंट सांडर्स ने लोगों पर लाठीचार्ज करवाया, जिसमें लाला लाजपत राय घायल हो गए और 17 नवंबर 1928 को लाला जी का देहांत हो गया। जिसके चलते सुखदेव और भगत सिंह ने एक शोक सभा में ब्रिटिश साम्राज्य से बदला लेने का निश्चय किया। लाला लाजपत राय की मृत्यु के एक महीने बाद सुखदेव, भगत सिंह और राजगुरु ने डिप्टी सुपरिटेंडेंट सांडर्स को मार दिया।
10.) 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह व बटुकेश्वर दत्त ने ब्रिटिश सरकार के बहरे कानों में आवाज पहुंचाने के लिए दिल्ली में चलती संसद में धुँआ बम का धमाका कर अँग्रेज सरकार को चेतावनी दी और गिरफ्तारी दी। जिसके चलते चारों ओर गिरफ्तारियों का दौर शुरू हो गया। जिसके फलस्वरूप 15 अप्रैल 1929 को सुखदेव को साथियों समेत लाहौर बम फैक्ट्री से गिरफ्तार कर लिया गया।
11.) अंग्रेजी हुकूमत ने सुखदेव और अन्य साथियों पर स्पेशल ट्रिब्यूनल गठित कर एक तरफा मुकदमा चला कर, अपने बनाये कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए बगैर पूरे गवाहों के बयान लिए, उनसे जिरह किये बिना, अदालत ने बंद कमरे में बगैर अभियुक्तों की उपस्थिति के मुकदमा चला कर देश के बहुचर्चित लाहौर षड्यंत्र केस में उनको भगत सिंह राजगुरु के साथ सजाए मौत का फैसला सुना दिया। इस स्पेशल ट्रिब्यूनल के खिलाफ कहीं भी अपील नहीं की जा सकती थी। ये मुकदमा सत्ता (क्राउन) बनाम सुखदेव एवं अन्य अभियुक्त के नाम से चला था।
12.) जेल से अमर शहीद सुखदेव की महात्मा गाँधी को लिखी खुली चिट्ठी के कुछ अनमोल शब्द-
“हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन पार्टी’’ के नाम से ही साफ पता चलता है कि क्रांतिवादियों का आदर्श जनसत्तावादी प्रजातंत्र की स्थापना करना है। यह प्रजातंत्र मध्य का विश्राम नहीं है। उनका ध्येय जब तक प्राप्त न हो और आदर्श सिद्ध न हो तब तक वे लड़ाई जारी रखने के लिए बंधे हुए हैं। परंतु बदलती हुई परिस्थितियों और वातावरण के अनुसार वे अपनी युद्धनीति बदलने को तैयार अवश्य होंगे। क्रांतिकारी युद्ध जुदा-जुदा मौकों पर जुदा-जुदा रूप धारण करता है। कभी वह प्रकट होता है, कभी गुप्त, कभी केवल आंदोलन का रूप होता है, और कभी जीवन-मरण का भयानक संग्राम बन जाता है। ऐसी दशा में क्रांतिवादियों के सामने अपना आंदोलन बंद करने के लिए विशेष कारण होने चाहिए।
13.) 23 मार्च, 1931 को सुखदेव, भगत सिंह और राजगुरु को लाहौर सेंट्रल जेल में तय फाँसी के एक दिन पहले रात के अंधेरे में फाँसी दे दी गयी और अंग्रेजों ने मृत शरीरों को जेल की दीवार तोड़ कर टुकड़े-टुकड़े कर बोरियों में भर कर फिरोजपुर के सतलुज नदी में ले जा कर मिट्टी का तेल छिड़ककर जला दिया।
माँ भारती के इस अप्रतिम योद्धा को कोटि कोटि नमन।।
अनुज सिंह थापर बलिदानी सुखदेव सिंह के पौत्र हैं)