Saturday, June 29, 2024
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स्वतंत्र निर्वाचन आयोग ही :लोकतंत्र की आधारशिला

भारत के संविधान के भाग 15 में अनुच्छेद 324 से 329 तक निर्वाचन आयोग से संबंधित प्रावधान है।अनुच्छेद 324 के अनुसार ,”इस संविधान के अधीन संसद,प्रत्येक राज्य के विधान मंडल, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के पदों के लिए निर्वाचन के निर्वाचक नामावली तैयार करने तथा उन सभी निर्वाचनों के संचालन का अधीक्षक, निर्देशन तथा नियंत्रण निर्वाचन आयोग में होगा”।

भारत के संविधान के अनुच्छेद 324(2) के अनुसार, निर्वाचन आयोग मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं उतने अन्य निर्वाचन आयुक्तों से यदि कोई हो, जितने राष्ट्रपति समय- समय पर नियत करें मिलाकर बनेगा तथा मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति संसद द्वारा इस निमित्त बनाई गई विधि में उपबंधों के अधीन रहते हुए राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी।

स्वतंत्र ,निष्पक्ष एवं पारदर्शी चुनाव सुनिश्चित करने के विषय में माननीय उच्चतम न्यायालय ने भारत के निर्वाचन आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति एक समिति /पैनल की अनुशंसा द्वारा की जाएगी। इसके सदस्यों में भारत के आदरणीय प्रधानमंत्री ,विपक्ष के नेता एवं सर्वोच्च न्यायालय के माननीय मुख्य न्याय मूर्ति होंगे। सर्वविदित है कि यही पैनल केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो के निदेशक /मुखिया की नियुक्ति की सिफारिश करता है। इस संवैधानिक शून्यता की पूर्ति करने तथा नियुक्ति के लिए एक विधाई प्रक्रिया स्थापित करने का प्रयास करता है।

इस व्यवस्था के प्रति उत्तर में भारत के संसद के द्वारा मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं अन्य निर्वाचन आयुक्त( नियुक्ति, सेवा शर्त एवं पद की अवधि) अधिनियम, 2024 पारित किया गया था जिसमें नियुक्ति समिति में शामिल मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा एक समिति की अनुशंसा पर की जाएगी जिसमें आदरणीय प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता और केंद्रीय कैबिनेट मंत्री सम्मिलित होंगे।

सर्वोच्च न्यायालय ने मोहिंद्र सिंह गिल बनाम मुख्य चुनाव आयुक्त AIR ,1978 के मामले में टिप्पणी करते हुए कहा है कि” चुनाव आयोग को व्यापक उत्तरदायित्व सौपें गए हैं। इस उत्तरदायित्व (स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाने का) के अंतर्गत काम करवाने का अधिकार, जिम्मेदारी तथा प्रशासनिक और अन्य तरह के काम आते हैं जैसा की स्थिति के लिए आवश्यक हो। चुनाव आयोग को यह सुनिश्चित करने का अधिकार भी है कि चुनाव करवाने के लिए ‘ उपर्युक्त और अनुकूल वातावरण’ बनाए रखा जाए ।

चुनाव आयोग इस उपर्युक्त और अनुकूल वातावरण को सुनिश्चित करने के लिए जो भी आवश्यक एवं उपयुक्त समझे प्रयोग कर सकते हैं। इन सभी से चुनाव आयोग को अप्रत्याशित स्थितियों में काम करने के लिए अवशिष्ट शक्तियां प्रदान की गई हैं ताकि निष्पक्ष राजनीतिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जा सके और 7 दशकों से इन्हीं शक्तियों के माध्यम से इसने हुए नियम बनाए हैं ,जिनसे राजनीतिक दल संचालित हो सके।

चयन समिति में रिक्ति के आधार पर मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्त के नियुक्ति को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है। रिक्ति के आधार पर चयन समिति के व्यक्तित्व पर सवाल नहीं किया जा सकते हैं। मुख्य निर्वाचन आयोग और निर्वाचन आयुक्तों( नियुक्ति, सेवा, शर्तें और पद की अवधि) अधिनियम ,2024 के प्रावधानों के अंतर्गत मुख्य चुनाव चुनाव आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त के वेतन और भत्ते कैबिनेट सचिव के समान होंगे, जबकि 1991 के अधिनियम के अनुसार निर्वाचन आयुक्तों के वेतन एवं भत्ते उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के समान था।

भारत के संविधान के अनुच्छेद 324 (5 )के अनुसार, मुख्य निर्वाचन आयुक्त को उसके पद से इस प्रक्रिया और आधार पर हटाया जा सकता है ,जिस रीति से उच्चतम न्यायालय के न्याय मूर्ति को हटाया जाता है। इस प्रक्रिया को संवैधानिक शब्दों में ‘ निष्कासन ‘ कहा जाता है, क्योंकि भारत के संविधान के अंतर्गत महाभियोग की प्रक्रिया राष्ट्रपति महोदय के लिए प्रयोग किया जाता है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं अन्य निर्वाचन आयुक्त को नियुक्ति के पश्चात उसके लिए अलाभकारी रूप से परिवर्तन नहीं किया जाएगा ।निर्वाचन आयोग कार्यपालिका से स्वतंत्र होता है। व्यवस्थापिका की शक्तियों से भी संविधान के प्रावधानों द्वारा सीमित किया गया है।

चुनाव सुधार के लिए 1975 में गठित की गई तारकुंडे समिति ने निर्वाचन आयुक्त के नियुक्ति के लिए चयन समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता तथा उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को सम्मिलित करने की अनुशंसा किया था ।तत्पश्चात चुनाव सुधार हेतु 1990 में गठित दिनेश गोस्वामी समिति ने तारकुंडे समिति की अनुशंसाओं की सिफारिश किया था। 2005 में दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग प्रतिवेदन में निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति से संबंधित चयन समिति में राज्यसभा के उपसभापति तथा विधि मंत्री को शामिल किया गया था।

संशोधित अधिनियम में चयन समिति के सदस्यों के संदर्भ में किए गए प्रावधान से सरकार का बहुमत हो गया है जो सरकार के रुचि के व्यक्ति की नियुक्ति की संभावनाओं को प्रबल करती है। इससे निर्वाचन आयुक्त द्वारा सरकार के पक्ष लिए जाने की संभावना उत्पन्न होती है। संशोधित अधिनियम में निर्वाचन आयुक्त एवं अन्य निर्वाचन आयुक्त का वेतन कैबिनेट सचिव के समान करने का प्रावधान किया गया है। कैबिनेट सचिव का वेतन सरकार (कार्यपालिका )द्वारा निर्धारित किया जाता है, जबकि इसके पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य निर्वाचन आयुक्त उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के समान था जो संसदीय विधि द्वारा निर्धारित किया गया था।

निर्वाचन आयोग अर्ध न्यायिक संस्था है। वह अर्ध न्यायिक कर्तव्यों का निर्वहन करता है। आयोग राष्ट्रपति को संसद के सदस्यों के अयोग्यता/निर्हरता के प्रश्न पर परामर्श देना आदि अर्द्ध न्यायिक कार्य हैं। निर्वाचन आयोग मुख्य संवैधानिक संस्थाओं में मेरुरज्जु की भूमिका का निर्वहन करता है। आयोग जन विश्वास, लोक आस्था एवं जन विश्वास बहाली में महत्ती भूमिका का निर्वहन करती है। भारत के संविधान ने निर्वाचन आयोग के स्वतंत्रता और निष्पक्षता को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण संवैधानिक प्रावधान किए हैं। निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति प्रसाद पर्यंत के सिद्धांत पर आधारित नहीं है।

यह नियुक्ति 6 वर्ष की अवधि के लिए या 65 वर्ष की आयु (जो भी पहले हो) के लिए होती है। निर्वाचन आयुक्त को उन्हें उसी आधार एवं प्रक्रिया से हटाया जाता है जिस प्रक्रिया और रीति से उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश हटाए जाते हैं। यह प्रक्रिया एवं रीति निर्वाचन आयुक्त की स्वतंत्रता का महत्वपूर्ण आयाम है जिससे वह भय मुक्त एवं राजनीतिक दबाव से स्वतंत्र होते हैं। लोकतांत्रिक शासकीय व्यवस्था के मजबूती में भयमुक्त एवं दबाव मुक्त होना अति आवश्यक है। निष्पक्ष एवं भय मुक्त चुनाव जनता की विश्वास बहाली के उन्नयन में महत्वपूर्ण भूमिका को निभाते हैं।

निर्वाचन की स्वतंत्रता इस तथ्य में निहित है कि अन्य निर्वाचन आयुक्तों एवं प्रादेशिक निर्वाचन आयुक्त को उनके पद से मुख्य निर्वाचन आयुक्त की सिफारिश के बिना नहीं हटाया जा सकता है। निर्वाचन आयोग को निर्वाचकीय कृत्य के लिए संघ सरकार एवं एवं राज्य सरकार आयोग की अपेक्षा को देखते हुए चुनावी कृत्य को संपन्न करने के लिए अपेक्षित संख्या में कर्मचारी उपलब्ध करवाते हैं ।आयोग अपनी स्वतंत्रता से अधिकारियों का हस्तांतरण भी करता है और आवश्यकता अनुसार प्रतिकूल आचरण के लिए दंडित भी करता है।

1950 से 2024 तक चुनाव आयोग पर दृष्टिपात करने ,आंकड़ों का बारीकी से अध्ययन करने एवं सभी चुनाव आयुक्त के कार्यकाल का सूक्ष्म विश्लेषण करने से स्पष्ट होता है कि सरकार को चयन समिति की समीक्षा करने तथा इसमें विश्वसनीयता में अभिवृद्धि हेतु स्वतंत्र विशेषज्ञों, न्यायविदों और नागरिक समाज के प्रतिनिधियों को पर्यवेक्षक के रूप में शामिल किए जाने पर विचार करना चाहिए।

चुनाव आयुक्तों के वेतन तथा भत्ते को नौकरशाह के समक्ष न रखकर उनके वेतन को भारत की संचित निधि पर आधारित होना चाहिए इसके कारण मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं अन्य निर्वाचन आयुक्तों के स्वतंत्रता को अच्छा रखा जा सकता है।

निर्वाचन आयोग को अन्य देशों के निर्वाचन आयोग के साथ अंतरराष्ट्रीय सेमिनार और ज्ञान का आदान-प्रदान करना चाहिए जिससे सर्वोच्च प्रथाओं को अपनाया जा सके । तकनीकी विशेषज्ञ और नवोन्मेष का उन्नयन किया जा सके जिससे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव को बढ़ावा दिया जा सके।

लोकतंत्र में निर्वाचन आयोग की भूमिका ऑक्सीजन की तरह है जिससे लोकतंत्र रूपी शरीर के लिए विशुद्ध रक्त प्रवाहित होता है, जो हमारे देश के लोकतंत्र को स्वस्थ एवं जीवंत रखती है। इनके उचित कार्यों की उपादेयता के कारण नागरिकों की लोकतंत्र के प्रति आस्था एवं विश्वास सुदृण होता है ।संवैधानिक संस्थाओं की मजबूती से कार्य करने से नागरिकों के नागरिक मूल्य एवं संवैधानिक अधिकारों में मजबूती होता है।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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