वर्तमान भारत वर्ष युवा भारत है और इस युवा भारत को युवा संन्यासी स्वामी विवेकानंद ने संदेश दिया था कि ‘व्यक्ति कितना ही बड़ा क्यों ना हो, उसका अंधानुसरणना करें।’ आज के युवा भारत के लिए स्वामी विवेकानंद का यह संदेश एक मार्गदर्शक के रूप में स्थापित है। 1893 में इसी सन्यांसी स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका जैसे महादेश में भारतवर्ष का तिरंगा फहराया था और उन्हें बताया था कि भारत की भूमि, भाव भूमि है। उन्होंने भारत के अनादिकाल से स्थापित धर्म, आध्यात्म और योग के साथ उन ग्रंथों का उल्लेख किया था जिसके बारे में जानकार अमेरिकी नागरिकों को हैरानी हुई थी। साल 1893 में स्वामी विवेकानंद शिकागो पहुंचे। वहां उन्होंने विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लिया। यहां उन्होंने अमेरिकियों को जब ‘मेरे अमरीकी बहनों और भाइयों!’ कहकर संबोधित किया तब खचाखच भरा हाल तालियों से गूंज उठा।
वहां उपस्थित जनसमुदाय को लगा कि यह और कोई नहीं बल्कि अपना ही कोई है। शिकागो में उनकी कही बात ने पूरी दुनिया में भारत की एक अमिट छाप छोड़ी थी। इस घटना को दुनिया जानती है। जब कभी विवेकानंद का उल्लेख होता है, इस प्रसंग का उल्लेख जरूर किया जाता है। इस धर्म सम्मेलन में विवेकांनद जी ने श्रीमद् भागवत गीता के प्रसंग को लेकर भी भारत का शीश गर्व से ऊंचा कर दिया था। यह वह दौर था जब यूरोप-अमरीका के लोगों के लिए उस समय भारतीय मजाक के पात्र समझे जाते थे। इसलिए विदेशी चाहते थे कि स्वामी विवेकानंद को सर्वधर्म परिषद् में बोलने का समय ही न मिले। परंतु एक अमेरिकन प्रोफेसर के प्रयास से उन्हें थोड़ा समय मिला।
इस दौरान एक जगह पर कई धर्मगुरुओं ने अपनी किताब रखी। वहीं, भारत के धर्म के वर्णन के लिए श्रीमद् भगवत गीता रखी गई थी। जिसका खूब मजाक उड़ाया गया था। लेकिन स्वामी विवेकानंद के आध्यात्मिक ज्ञान से भरे भाषण को सुनकर पूरा सभागार तालियों की गडग़ड़ाहट से गूंज उठा था। उन्हें अपने धर्म के बारे में बताने के लिए सिर्फ दो मिनट का समय दिया गया था। लेकिन उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत इस तरह की जिससे वहां उपस्थित सभी लोग मंत्रमुग्ध हो गए थे। उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत कुछ इस तरह की थी – मेरे अमरीकी बहनों और भाइयों! आपने जिस सम्मान, सौहाद्र्र और स्नेह-प्रेम के साथ हम लोगों का स्वागत किया है, उसके प्रति आभार प्रकट करने के निमित्त खड़े होते समय मेरा हृदय अवर्णनीय हर्षोउल्लास से पूर्ण हो रहा है। संसार में संन्यासियों की सबसे प्राचीन सभ्यता की ओर से मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। सभी धर्मों की माता की ओर से धन्यवाद देता हूँ। सभी सम्प्रदायों एवं मतों के हिन्दुओं की ओर से भी धन्यवाद देता हूँ। फिर स्वामी विवेकानंद ने धर्म की परिभाषा दी थी। जिसके बारे में उन्होंने एक श्लोक सुनाते हुए कहा था कि जिस तरह से विभिन्न नदियां अलग-अलग स्रोतों से निकलकर समुद्र में मिल जाती हैं, उसी प्रकार अलग-अलग धर्म और अंत में एक ही धर्म में आकर मिलते हैं। जिसे हम भगवान कहते हैं।
स्वमी विवेकानंद ने कहा कि ‘अमेरिका के मेरे भाइयों और बहनों, मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के सताए लोगों को शरण में रखा है।’ अपना उद्बोधन जारी रखते हुए स्वामी विवेकानंद ने आगे कहा कि ‘मैं आपको अपने देश की प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं। मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से भी धन्यवाद देता हूं और सभी जाति, संप्रदाय के लाखों, करोड़ों हिंदुओं की तरफ से आभार व्यक्त करता हूं। मेरा धन्यवाद कुछ उन वक्ताओं को भी जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है।’
स्वामी विवेकानंद के विचारों का वह भरी-पूरी दुनिया है जिसे केवल पढ़ कर हम अपना आज और कल संवार सकते हैं। आज यह कल्पना करना मुश्किल है कि भारत का कोई युवा अपने दो शब्दों के संबोधन से महाशक्ति के रूप में स्थापित राष्ट्र अमेरिका के नागरिकों का दिल जीत लेता है। लोगों का दिल जीत लेने की कला भारतीय ज्ञान परम्परा की उस अक्षुण्ण निधि है जिसे स्वामी विवेकानंद ने पूरी दुनिया को बताया। भारत वर्ष अपने इस महान ज्ञानी और संन्यासी विवेकानंद के जन्म दिवस को युवा दिवस के रूप में मनाकर भारतीय समाज के नौजवान पीढ़ी को संदेश देना चाहता है कि भारत विश्व गुरु था, है और युगोंयुग तक बना रहेगा। युवा दिवस मनाते हुए हम इस बात का संकल्प लेते हैं कि विवेकानंद जी के बताए मार्ग पर चलकर हम मां भारती के शीश को ऊंचा रखने का हरचंद प्रयास करेंगे। स्वामी विवेकानंद ज्ञानी और संन्यासी ही नहीं थे बल्कि वे निपुण व्यवहारिक भी थे। वे रूढि़वादी के खिलाफ खड़े रहे और सख्ती के साथ कुनीतियों के खिलाफ बोला भी। उनका जीवन हम सबके लिए एक संदेश है। इन संदेश को पढऩा नहीं है बल्कि गुनना भी है और अपने जीवन में उतारना भी है।
यहां उल्लेखनीय है कि आधुनिक भारत में स्वामी विवेकानंद उन लोगों में शामिल हैं, जिन्होंने देश की समस्याओं पर नए सिरे से विचार-चिंतन किया। स्वामी विवेकानंद के विचारों ने समाज-जीवन के प्रत्येक्ष क्षेत्र को प्रभावित किया। ऐसे में विचारणीय बात है कि आर्थिक नीतियों और अर्थव्यवस्था को लेकर स्वामी विवेकानंद की क्या सोच थी? स्वामी विवेकानंद ने गरीब दूर करने, कृषि और औद्योगिक विकास और श्रमिकों की स्थिति के बारे में अपनी राय खुलकर बताई। स्वामी जी भारत की गरीबी का मुख्य जिम्मेदार यूरोपीय देशों को मानते थे, जो भारत की संपत्ति को लूटकर ले गए और जिन्होंने भारत के उद्योग धंघों को तबाह किया। लेकिन साथ ही वे भारतीय समाज में आ गई जड़ता, कुरीतियों और अंधविश्वास को भी इसका जिम्मेदार मानते थे। इसके लिए उन्होंने धार्मिक कुरीतियों पर जमकर प्रहार किया और समाज में श्रम के महत्व को स्थापित किया। तत्पश्चात विवेकानंद कर्म फल के तर्क कहते हैं, ‘अपनों कर्मों के फल की वजह से मनुष्य मर रहे हैं- इस तरह कर्म की दुहाई देने से जगत में किसी काम के लिए कोशिश करना तो बिल्कुल बेकार साबित हो जाएगा। पशु-पक्षियों के लिए आपका काम भी तो इसके अंतर्गत आएगा। इस काम के बारे में भी तो बोला जा सकता है- गोमाताएँ अपने-अपने कर्मफल की वजह से ही कसाइयों के हाथ में पहुँच जाती हैं और मारी जाती हैं इसलिए उनकी रक्षा के लिए कोशिश करना भी बेकार है।’ मनुष्य होकर जिनका मनुष्य के लिए दिल नहीं दुखता है, तो क्या वे मनुष्य हैं?
विवेकानंद जी अक्सर साधारण भिक्षु रूपी वस्त्र पहनते थे। एक दिन इसी वस्त्र को धारण कर वे विदेश में घूम रहे थे। उनके वस्त्र ने एक विदेशी का ध्यान खींच लिया। उस विदेशी ने चिढ़ाते हुए विवेकानंद जी की पगड़ी तक खींच ली। विदेशी की इस हरकत के बाद उन्होंने स्पष्ट अंग्रेजी में ऐसा करने का कारण पूछा तो वह विदेशी आश्चर्य में पड़ गया। उस विदेश को ये समझ नहीं आ रहा था कि साधु के रूप में इस व्यक्ति को इतनी अच्छी अंग्रेजी कैसे आती है। फिर उसने विवेकानंद जी से पूछ लिया कि क्या आप शिक्षित हैं? तब स्वामी विवेकानंद जी ने विनम्रता से कहा ‘हां, मैं पढ़ा-लिखा हूं और सज्जन व्यक्ति हूं।’ तब विदेशी ने कहा कि आपके कपड़े देखकर तो नहीं लगता कि आप सज्जन व्यक्ति हैं। इस बात पर स्वामी विवेकानंद ने जवाब देते हुए कहा कि आपके देश में एक दर्जी व्यक्ति को सज्जन बनाता है, लेकिन मेरे देश में व्यक्ति का व्यवहार उसे सज्जन बनाता है। ऐसा जवाब सुनकर उस विदेशी को शर्मिंदगी महसूस हुई और अपनी गलती का आभास हुआ।
स्वामी विवेकानंद के वजह से ही आज पूरे विश्व में वेदांता दर्शन और योग बहु प्रख्यात हैं। हिंदू दर्शन को पूरे विश्व में अपनी पहचान दिलाने वाले स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 के दिन कोलकाता में एक अमीर बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ था। उनका नाम नरेंद्रनाथ दत्ता था जो दक्षिणेश्वर के एक प्रख्यात संत स्वामी रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे। सन्यासी बनने के बाद स्वामी विवेकानंद ने इंसानियत के महत्व को समझया था। उनकी कही गई बातें आज भी करोड़ों लोगों को प्रेरित करती हैं। 25 साल की छोटी उम्र में उन्होंने अपने गुरु से प्रभावित होकर सांसारिक मोह माया त्याग दी और संन्यासी बन गए। संन्यास लेने के बाद उनका नाम विवेकानंद पड़ा। स्वामी विवेकानंद ने 1897 में कोलकाता में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी। वहीं 1898 में गंगा नदी के किनारे बेलूर में रामकृष्ण मठ की स्थापना भी की थी।
भारत की ज्ञान परम्परा को समझना हो तो स्वामी विवेकानंद के दर्शन की बुनियादी बातों को जानना-समझना जरूरी है। जैसे कि उनके बारे में अध्ययन करते हुए यह ज्ञात होता है कि वे दकियानूसी नहीं थे बल्कि उनके ज्ञान का संसार अपरिमित था। वे व्यवहारिक थे और समय के अनुरूप भारत वर्ष की प्रगति के लिए आवश्यक जरूरत को समझते थे। भारत आज दुनिया का शीर्ष बन चुका है। हर क्षेत्र में भारत का तिरंगा लहरा रहा है तो यह हमारे गुणी-ज्ञानी स्वामी विवेकानंद सरीखे जैसे लोगों की वजह से। यह देश का सौभाग्य है कि उनके विचारों और दर्शन को युवाओं तक पहुंचाने में राज्य एवं केन्द्र सरकार प्राण-पण से जुटी हुई है। यह आवश्यक प्रतीत होता है कि जब तक हम अपना कल नहीं जानेेंगे, भविष्य का निर्माण नहीं कर सकते हैं। स्वामी विवेकानंद का विचार दर्शन युगोंयुग तक भारत को आलौकित करता रहेगा।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)