करीब तीन दशक की यात्रा को पार करते हुए देश के अपने लड़ाकू विमान ने हथियार दागने की अपनी सभी क्षमताएं साबित करने का आज प्रमाण हासिल कर वायुसेना में शामिल होने की अंतिम सीढ़ी पर कदम रख लिया।
रक्षा मंत्री एके एंटनी ने देश में ही विकसित हल्के लड़ाकू विमान की अस्त्र प्रणालियों के परीक्षण सफलतापूर्वक पूरे होने के बाद सर्विस दस्तावेज आज वायुसेना प्रमुख एनएके ब्राउन को सौंप दिए और इस तरह 12 महीने बाद इसके वायुसेना के ध्वज तले आने का मार्ग प्रशस्त हो गया।
जनवरी 2011 में इस विमान ने अपनी सुरक्षित उड़ान क्षमता साबित की थी और उसके बाद तेजस ने अपने हथियारों को दागने की क्षमता का प्रदर्शन शुरू कर दिया था। तेजस ने मिसाइलों, 500 किलो के बमों समेत 62 विभिन्न प्रकार के अस्त्रों के तालमेल और उन्हें दागने की क्षमता साबित की। ऊंचाई वाले स्थानों से लेकर पोखरण की तपिश तक में तेजस की कडी की अग्नि परीक्षा ली गई, जिसमें यह खरा उतरा।
तेजस के मार्क-1 को वायुसेना में मिग-21 लडाकू विमानों का स्थान लेगा, जिन्हें सेवा से बाहर शुरू करने का सिलसिला गत 12 दिसंबर से शुरू हो चुका है। तेजस उन्नत मिग-21 बाइसन विमानों से कहीं बेहतर माना जा रहा है, जबकि इसका अगला संस्करण मार्क-2 इंजन, राडार और हथियारों के मामले में मार्क-1 से कहीं आगे निकल जाएगा।
तेजस कार्यक्रम से जुड़े अधिकारियों ने बताया कि मार्क-1 के चार तेजस विमान इस साल तैयार हो जाएंगे, जबकि अगले दो साल में आठ और इसके बाद प्रति वर्ष 16 तेजस विमान उत्पादन की क्षमता हासिल कर ली जाएगी। इन पहले चार विमानों को बंगलुरु के पास सुलूर एयरबेस पर रखा जाएगा, ताकि किसी प्रकार के सुधार या संशोधन की जरूरत पडने पर हिंदुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड की मदद तुरंत ली जा सके, जिसने यह विमान तैयार किया है।
तेजस को हवा से हवा में मार करने वाली आर-73 मिसाइलों, 23एमएम गनों, रॉकेटों और आंखों की दृश्य सीमा से आगे देखने में सक्षम बीवीआर मिसाइलों से लैस किया जा रहा है। हवा में ईंधन भरने की क्षमता इसमें अगले साल तक शामिल कर ली जाएगी।
तेजस के विकास के साथ ही भारत उन गिने चुने देशों में स्थान बना चुका है, जो अपना खुद का फाइटर बना सके हैं। इनमें अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन और दक्षिण कोरिया शामिल हैं।
कभी एलसीए परियोजना अगस्त 1983 में 560 करोड़ रुपये की मंजूरी से शुरू हुई थी, लेकिन अनुदान जारी करने में ही दस साल का समय लग गया और असली काम तभी आरंभ हो सका था। इसके एक दशक बाद तत्कालीन प्रधनमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने देश के इस फाइटर को तेजस नाम दिया था।
वायुसेना को इन विमानों की सख्त जरूरत है, क्योंकि उसे बेहद पुराने पड़ चुके और हादसों के कारण उड़न ताबू. की कुख्याति पा चुके मिग-21 विमानों से काम चलाना पड़ रहा है। वायुसेना के पास 250 से अधिक मिग-21 विमान हैं। वायुसेना देश में बने 120 तेजस विमान लेने जा रही है, जबकि इसका नौसैनिक संस्करण भी तैयार हो गया है।
पिछले तीन दशक में तेजस परियोजना के विकास और उत्पादन पर करीब 17 हजार करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं, लेकिन विदेशों से विमान खरीदने का अंदाजा लगाएं, तो इससे सरकारी राजस्व को बेहद फायदा होने जा रहा है। एक तेजस विमान की कीमत 200 करोड़ रुपये से कम होगी, जबकि इस श्रेणी के लड़ाकू विमान यदि विदेशों से खरीदें, तो भारत को दुगनी लागत खर्च करनी होगी। यानी भारत इस परियोजना से अगले एक दशक में करीब 40 हजार करोड़ रुपए की बचत कर लेगा।
तेजस हर मायने में दुनिया के किसी भी चौथी पीढ़ी के विमान से आगे है। स्टैल्थ विशेषताएं और सुपरसोनिक क्रूज रफ्तार यदि इसमें जुड जाएं, तो यही पांचवी पीढ़ी का विमान बन सकता है। परियोजना अधिकारियों के अनुसार तेजस अत्याधुनिक फ्लाईबाई वायर तकनीकी से लैस है, जिससे पूरा विमान बटन प्रणालियों से चलता है। उन्होंने बताया कि 2480 घंटे की उड़ानों में तेजस ने बिना किसी नकारात्मक घटना के यह सफर पूरा किया है।