आज जिस प्रकार सेकुछ राजनीतिक दलों और वर्गों द्वारा शूद्रों को ब्राह्मण विरोधी बनाया जा रहा है। यह केवल देश को बाँटने के षडयंत्र के अन्तर्गत किया जा रहा है अन्यथा प्राचीन इतिहास से लेकर अब तक शूद्रों का संघर्ष ब्राह्मणों से संभवतः ही कभी हुआ हो,* बल्कि आज के अनुसार देखा जाए तो अधिकतर संघर्ष एस.सी. और ओबीसी के मध्य है।
प्राचीन समय में भी ब्राह्मण या पुरोहित आवश्यक सामग्री आपूर्ति वर्ग (शूद्रों) का सामान विक्रय कराने में सहयोगी की भूमिका में ही रहते थे। निम्न उदाहरण से इसे समझा जा सकता है:-
किसी कथा में ब्राह्मण/ पुरोहित द्वारा बताई गयी हवन पूजन सामग्री इस प्रकार होती थी-
श्रीफल 1, सुपारी 11, लौंग 10 ग्राम, इलायची 10 ग्राम, पान के पत्ते 7 रोली-1 पैकेट, मोली – 1, गोली / जनेऊ 7, कच्चा – दूध 100 ग्राम, दही- 100 ग्राम, देशी घी 1 कि.ग्रा., शहद- 250 ग्राम, गुड़ या शक्कर – 250 ग्राम, साबुत चावल- 1.25 कि.ग्रा., पंच मेवा – 250 ग्राम, पाँच मिठाई – 500 कि.ग्रा., ऋतु फल श्रद्धा अनुसार, फूल-माला, फूल – 5, धूप – 1/1 पैकेट, हवन सामग्री -1 कि.ग्रा., जौ – 250 ग्राम, काले तिल – 250 ग्राम, मिट्टी का बड़ा दिया – 1, रूई – 1 पैकेट, पीला कपड़ा 1.25 मी., कपूर 11 टिक्की, – दोने- 1 पैकेट, आम के पत्ते 11 पत्ते, आम की लकडियाँ – 2 – कि.ग्रा., केले के पत्ते 2, आटे का प्रसाद इत्यादि।
इसमें से ब्राह्मण के घर संभवतः ही कोई वस्तु उत्पन्न होती हो, इसका सीधा सम्बन्ध समाज के समाज को आवश्यक सामग्री आपूर्ति करने वाला वर्ण (शूद्र) वर्ण के लोगों से होता है- जैसे जुलाहा, लोहार , स्वर्णकार, काश्ठकार, गौपालक किसान, कुम्हार, माली, गोपालक, नाई, कारीगर, सूत कातने वाला इत्यादि।
हर घर में जब ब्राह्मण/ पुरोहित यह सब सामान पूजा के लिए बताता है, तो गाँव के हर गरीब हुनरमंद के घर का चूल्हा जलता है तथा देश की अर्थव्यवस्था ऊपर से नीचे तक काम करती है। यह है भारत की मिलजुलकर काम करने की प्राचीन ग्रामीण पद्धति, जो आज के लोभ-लालच पूर्ण समाज से कई गुना श्रेष्ठ है।