गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है – सीय-राम मय सब जग जानी,करहुं प्रणाम जोरि जुग पानी या सब देखहिं प्रभुमय जगत केहि सन करहिं विरोध। जब तक आप इस भाव भूमि पर स्थापित न हो जाएँ तब तक जीवन में व्यावहारिक नियमों का पालन अवश्य करना चाहिये,नहीं तो आपका जीवन और आपका कर्मक्षेत्र दूभर और दुखप्रद हो सकता है
व्यावहारिक कौशल अक्सर एक व्यक्ति के अन्य लोगों के साथ संबंधों के तौर तरीके, व्यक्तित्व लक्षण, सामाजिक गौरव, संचार, भाषा, व्यक्तिगत आदतों, मित्रता और आशावाद के साथ जुड़ा शब्द है। साफ्ट स्किल एक नौकरी और कई अन्य गतिविधियों की व्यावसायिक जरूरत को पूरा करती हैं। व्यवहार कुशलता से आपकी तकनीकी दक्षता में चार चाँद लग जाते हैं। आप अधिक स्वीकार किये जाते हैं,अधिक सहयोग और सम्मान के अधिकारी बनते हैं और आपकी कार्यशैली अधिक परिणाम देने वाली सिद्ध होती है। अगर आप व्यवहार कुशल हैं,तो बेशक समझेंगे कि ज़रा सी बात से लोगों के अहम को चोट लग जाती है,जिसका सीधा असर आपसे जुड़े पूरे अमले पर पड़ता है।
आज माना जा रहा है कि प्रशासक अपने साथियों एवं स्टाफ के साथ व्यवहार कुशल रहें ताकि संस्था में स्वस्थ माहौल का निर्माण किया जा सके। यह बात हाल ही में राजस्थान के अलवर के विधि कॉलेज प्राचार्य डॉ. बाबूलाल यादव ने अगर कही तो याद रहे कि आज का प्रबंध विज्ञान और प्रशासनिक कर्म कौशल भी व्यवहार की ज़मीन पर ही फल फूल रहा है। इसी तरह एक अवसर पर वरिष्ठ पुलिस अधिकारी श्री राजीव मिश्रा ने अपने कार्यालय कक्ष में जिले के सभी पुलिस पदाधिकारी व थानाध्यक्षों को अपनी ड्यूटी के प्रति सजग व संवेदनशील रहने की हिदायत दी। विभिन्न थानों से मिल रही शिकायतों को गंभीरता से लेते हुए कहा कि वे कि जनता के साथ व्यवहार कुशल बनकर थानेदारी करें।
बहरहाल,समय के साथ-साथ सॉफ्ट स्किल यानी व्यवहार कौशल करियर के निर्माण के रूप में उभरकर सामने आया है। कई दफ़े, करियर में एक निश्चित बिंदु के बाद ठहराव-सा आ जाता है और ऐसा इसलिए होता है क्योंकि सम्बंधित अधिकारी या कर्मचारी में नेतृत्व क्षमता, समूह में काम करना, सामाजिक सम्प्रेषण तथा संबंध निर्माण कौशलों का अभाव होता है। इन्हीं गुणों को सॉफ्ट स्किल में शामिल किया गया है। इसका एक व्यापक क्षेत्र है जिसमें सम्प्रेषण कौशल, श्रवण कौशल,टीम कौशल, नेतृत्व के गुण, सृजनात्मकता और तर्कसंगति, समस्या निवारण कौशल तथा परिवर्तनशीलता आदि सम्मिलित हैं।
यहां कुछ ऐसे व्यवहार कौशलों की चर्चा की जा रही है जो आपके रोजगार की संभावनाओं और व्यक्तित्व में सुधार कर सकते हैं।
प्रभावी सम्प्रेषण कौशल
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प्रभावी सम्प्रेषण कौशलों में सार्वजनिक भाषणों,प्रस्तुतिकरण,बातचीत,संघर्ष समाधान, बैठकों में प्रभावी संचालन आदि के लिए रिपोर्ट तैयार करना, प्रस्ताव, मैनुअल तैयार करना, ज्ञापन, सूचनाएं लिखना,कार्यालयीन पत्र-व्यवहार आदि के लिए लेखन कौशल शामिल हैं। इनमें मौखिक और गैर-मौखिक दोनों रूप सम्मिलित है। इसमें कुछ हद तक दक्षता होना जरूरी है। हिन्दी के साथ अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषा का के ज्ञान का संगम हो तो समझिये बात कुछ और ही होगी।
कार्य कौशल
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अंतर-वैयक्तिक और सामूहिक-कार्य कौशल उत्पादकता तथा बेहतर वातावरण के लिए योगदान करते हैं। सामान्यतः इन कौशलों को पढ़ाये जाने की आवश्यकता होती है अथवा प्रैक्टिस और जागरुकता से इन्हें सीखा जा सकता है। इस कौशल के चार आयाम होते हैं, जिनके नाम हैः सहयोग, सम्प्रेषण, कार्य, नीतिशास्त्र और नेतृत्व। इन आयामों का प्रशिक्षण प्राप्त करना चाहिए।
व्यक्तिगत कौशल
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बहुत से लोग इस बात को लेकर अचम्भित होते हैं कि वे व्यवसाय में अपेक्षानुसार सफल क्यों नहीं होते हैं। व्यक्तिगत कौशल,वे कौशल होते हैं जो आपको न केवल समाज और कार्य क्षेत्र में स्वीकार्य तथा सम्मान योग्य बनाते हैं बल्कि एक अच्छा रोजगार प्राप्त करने और बेहतर करियर विकास में आपकी मदद करते हैं। इनमें निर्णय करने की योग्यता, सावधानी , निर्णय क्षमता, शांति, वचनबद्धता, सहयोग, भावनात्मक स्थिरता, परानुभूति, लचीलापन, उदारता, सहनशीलता, आत्म-विश्वास, आत्म-नियंत्रण, आत्म-निर्भरता, आत्म-सम्मान, ईमानदारी और अन्यों के बीच विनोदशीलता की अनुभूति आदि गुण सम्मिलित हैं।
समस्या-निदान कौशल
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क्या आपको ऐसी स्थितियों का अक्सर सामना करना पड़ता है जब आप सही फैसले करने में असमर्थ होते हैं ? आपके सामने ऐसी स्थितियां उत्पन्न होने की ज्यादा संभावनाएं उस वक्त होती हैं जब आप किसी संगठन में कार्य करते हैं। ऐसी दबावपूर्ण स्थितियों का मुकाबला करने के वास्ते आपको कुछेक ऐसे कौशल विकसित करने की आवश्यकता है जो आपको समस्याओं के निदान और कार्य-नीतियां लागू करने में मददगार हो सकते हों।
अनुकूलन और नीति कौशल
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आधुनिक संगठन तीव्रता से बदलाव के दौर से गुज़र रहे हैं। फलस्वरूप, किसी आधुनिक संगठन में कार्यरत कोई कर्मचारी न केवल कड़ी मेहनत करने के लिए तैयार होना चाहिए बल्कि उसमें लचीलेपन के साथ-साथ तेजी से हो रहे परिवर्तनों के अनुरुप ढालने की योग्यता भी होनी चाहिए। नियोक्ता को अनुकूलनशीलता विकसित करने के लिए विभिन्न कौशलों की आवश्यकता होती है। मिलजुलकर कार्य के लिए वातावरण तैयार करना, दूसरों के विश्वास और धारणा संबंधी पक्ष का सम्मान करना,कार्य स्थल को जातीय/सांस्कृतिक भेदभाव से बचाना आदि अहम बातें हैं।
कार्य नीतिशास्त्र नैतिक सदगुणों पर आधारित मूल्यों का एक समूह है, जिसमें विश्वसनीय बनना, सामाजिक कौशलों के लिए काम करना और उन्हें बरकरार रखने की कला को शामिल किया जा सकता है। इनके अलावा जिम्मेदारी की अनुभूति, ईमानदारी और वचनबद्धता को भी इनमें शामिल किया जा सकता है।
व्यवहार कौशल अर्जित करने के लिए आपको जागरूक रहकर सदैव यह याद रखना होगा कि इन कौशलों को पूरे समर्पण के साथ व्यवहार में लाएं। अभ्यास और अमल से आपके कार्य में सुधार होता है और आपको अपनी त्रुटियों और कमियों को जानने तथा उन्हें दूर करने में मदद मिलती है जिससे आप में आत्म-विश्वास की भावना बलवती होती है।
व्यक्तित्व विकास
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बदलते समय के साथ अब एक सामान्य व्यक्ति से सुशिक्षित और परिपक्व व्यक्तित्व होने की अहमियत बढ़ गई है। विभिन्न संगठनों, खासकर कम्पनियों को ऐसे व्यक्तियों की तलाश रहती है जो कुशाग्र और सुशिक्षित होते हैं। जिनका व्यक्तित्व प्रभावी होता है। जिनमें ऐसा सम्प्रेषण कौशल हो जो उन्हें स्वयं और दूसरों को भी आगे रख सकें। जिनमें अपने कर्मचारियों को भर्ती के उपरांत सही ढंग से प्रशिक्षण देने और उन्हें अपने संसथान में बनाये रखने की योग्यता हो। स्मरण रहे कि ज्यादातर लोग प्रतिभाओं के साथ जन्म लेते हैं, परंतु उन्हें परिष्कृत और शिक्षित करने की आवश्यकता होती है। उन्हें प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए बाजार में बहुत से संस्थान संचालित किए जा रहे हैं। ये संस्थान काफी धन अर्जन कर रहे हैं और इस तरह सॉफ्ट स्किल प्रशिक्षकों को आकर्षक रोजगार का विकल्प प्रदान कर रहे हैं।
अध्यापन
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हाल में सॉफ्ट स्किल प्रशिक्षकों के लिए शिक्षण कार्य भी एक अच्छे विकल्प के रूप में उभरकर सामने आया है क्योंकि सभी इंजीनियरिंग और प्रबंध संस्थानों में तकनीकी कौशल एक अनिवार्य विषय के रूप में शामिल होता है। वहां पर छात्रों को साक्षात्कार और समूह चर्चा में बेहतर प्रदर्शन के लिए अपेक्षित अन्य वैयक्तिक कौशलों के साथ-साथ प्लेसमेंट और सम्प्रेषण कौशलों के लिए प्रशिक्षित और तैयार किया जाता है। चूंकि किसी संस्थान का विकास पूर्णतः उसके छात्रों की रोजगार प्लेसमेंट पर निर्भर करता है, अतः सॉफ्ट-स्किल प्रशिक्षक की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है।
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प्राध्यापक,दिग्विजय पीजी कालेज,
राजनांदगांव। मो.9301054300