चेन्नई की एक अदालत ने दुष्कर्म के झूठे मामले में फंसाए गए एक व्यक्ति को मुआवजे के रूप में 15 लाख रुपये देने का आदेश दिया है। मुआवजे पाने वाले व्यक्ति को कॉलेज के दिनों में दुष्कर्म के एक आरोप में गिरफ्तार किया गया था और उसे सात साल से अधिक समय तक मुकदमे का सामना करना पड़ा। यह मुआवजा राशि कथित पीड़िता व उसके परिजनों को चुकाना होगी।
संतोष नाम के इस व्यक्ति के केस में यह बात निकलकर सामने आई कि जिस लड़की ने उस पर दुष्कर्म का आरोप लगाया था उसकी बच्ची का डीएनए संतोष से मेल नहीं खाया। इसके बाद संतोष ने झूठा आरोप लगाने वाली लड़की के खिलाफ मुआवजे के लिए मुकदमा दायर किया। संतोष ने कहा कि झूठे दुष्कर्म के आरोप ने उसके करियर और जीवन को बर्बाद कर दिया।
आंशिक रूप से उसकी याचिका को अनुमति देते हुए, चेन्नई की एक अदालत ने आरोप लगाने वाली लड़की और उसके माता-पिता को निर्देश दिया कि वे संतोष को 15 लाख रुपये का मुआवजा अदा करें।
संतोष ने लड़की, उसके माता-पिता और मामले की जांच करने वाले सचिवालय कॉलोनी थाने के पुलिस निरीक्षक से हर्जाने के रूप में 30 लाख रुपये की मांग की थी। संतोष के वकील ए सिराजुद्दीन ने कहा कि उनके मुवक्किल का परिवार और महिला का परिवार पड़ोसी थे। वे एक ही समुदाय के थे।
दोनों परिवारों के बीच इस बात को लेकर सहमित बनी हुई थी कि संतोष महिला से शादी करेगा। हालांकि आगे चलकर दोनों परिवारों के बीच संपत्ति विवाद हो गया। इसके बाद संतोष और उनका परिवार चेन्नई में ही दूसरी जगह पर शिफ्ट हो गया।
संतोष ने एक इंजीनियरिंग कॉलेज में बीटेक के लिए दाखिला लेकर पढ़ाई शुरू कर दी। तभी एक दिन लड़की की मां संतोष के घर पहुंची और उसने संतोष के माता-पिता से कहा कि उसने लड़की से दुष्कर्म कर उसे गर्भवती कर दिया है। लड़की के परिजनों ने मांग की कि संतोष का परिवार उनके विवाह की व्यवस्था करें।
जब संतोष ने शादी करने से इनकार कर दिया तो लड़की के परिजनों ने उस पर दुष्कर्म का केस दर्ज करवा दिया। उसे गिरफ्तार किया गया और 95 दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया। 12 फरवरी, 2010 को वह जमानत पर जेल से बाहर आया।
उस समय तक, कथित पीड़ित लड़की ने एक बच्ची को जन्म दे दिया था। संतोष की मांग पर बच्ची का डीएनए टेस्ट कराया गया तो ये साबित हुआ कि संतोष बच्ची का पिता नहीं था। आखिरकार चेन्नई की एक महिला अदालत ने दुष्कर्म के आरोप से संतोष को 10 फरवरी, 2016 को बरी कर दिया।
संतोष ने यह कहते हुए हर्जाने के लिए मुकदमा दायर किया कि उसे केस के लिए 2 लाख रुपये खर्च करने पड़े। वह एक वाणिज्यिक ड्राइविंग लाइसेंस भी नहीं प्राप्त कर सका और उसे एक कार्यालय सहायक के रूप में काम करने के लिए मजबूर होना पड़ा।