हिमाचल प्रदेश के कुल्लु के पास आनी में एक किलोमीटर के दायरे में फैली सरयोलसर झील में अगर एक तिनका भी गिरता है तो बाहर बैठी नन्ही चिड़िया आभी उसे झट से उठाकर बाहर फेंक देती है। फिर कुछ गिरने का इंतजार करती रहती है। सुबह-शाम आप जब भी जाओ, झील आपको साफ ही नजर आएगी।
नन्ही आभी के नाम से मशहूर इस चिड़िया ने सदियों से झील का सफाई का जिम्मा संभाला हुआ है। छुई-मुई सी चिड़िया आम लोगों को कम ही नजर आती है। इसे पत्ता उठाते ही देखा जा सकता है। स्थानीय लोगों का दावा है कि आभी चिड़िया केवल सरयोलसर में ही पाई जाती है।
केंद्र की मोदी सरकार भले ही स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, लेकिन पहाड़ पर एक ऐसी नन्ही चिड़िया है जो सदियों से झील की रखवाली कर इसकी स्वच्छता को बनाए रखती है।
इस चिड़िया के संरक्षण और कुनबा बढ़ाने में आज तक कोई पहल नहीं हुई। हालांकि, किताबों, कविताओं में आभी का मिसाल दी जाती हैं। जिला कुल्लू के आनी उपमंडल में दस हजार फुट की ऊंचाई पर सरयोलसर झील से कई धार्मिक मान्यताएं जुड़ी हैं। खनाग के उपप्रधान उदय सिंह राणा, लझेरी के पूर्व बेलीराम ठाकुर ने बताया कि झील में नौ प्रमुख नागों की माता बूढ़ी नागिन का वास माना जाता है।
क्षेत्र की महिलाएं गाय के पहले घी का चढ़ावा इस झील में चढ़ाती हैं। मान्यता है कि जो भी अपनी गाय के पहले घी को चढ़ाकर इस झील की परिक्रमा करते हैं उस घर में कभी भी दूध-घी की कमी नहीं रहती। बूढ़ी नागिन उनकी रक्षा करती हैं। झील के पास मां बूढ़ी नागिन का मंदिर भी है। आनी के जलोड़ी जोत से करीब छह किमी पैदल सफर करने के बाद सरयोलसर झील तक पहुंचा जा सकता है। सरयोलसर धार्मिक पर्यटन स्थल है। सालाना यहां हजारों लोग और श्रद्धालु आते हैं।
साभार-http://www.amarujala.com/ से