जम्मू कश्मीर पुनर्वास क़ानून को चुनौती देने वाली याचिका पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की. मामले की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने पूछा है कि आखिर विभाजन के दौरान पाकिस्तान जा चुके लोगों के वंशजों को कैसे भारत में फिर से रहने की इजाज़त दी जा सकती है. कोर्ट ने राज्य सरकार से सवाल किया कि जम्मू कश्मीर में पुर्नवास के लिए अभी तक कितने लोगों ने आवेदन किया है.
कोर्ट ने कहा कि ये क़ानून विभाजन के दौरान 1947-1954 के बीच पाकिस्तान जा चुके लोगों को हिंदुस्तान में पुर्नवास की इजाज़त देता है. इसके खिलाफ कश्मीर पैंथर पार्टी की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि ये क़ानून असंवैधानिक और मनमाना है, इसके चलते राज्य की सुरक्षा को खतरा हो गया है. केंद्र सरकार ने भी याचिकाकर्ता का समर्थन किया है.
कोर्ट में क्या बोले सरकार के वकील
कोर्ट में सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार पहले ही कोर्ट में हलफनामा दायर कर ये साफ कर चुका है कि वो विभाजन के दौरान सरहद पार गए लोगों की वापसी के पक्ष में नहीं है. वहीं, जम्मू कश्मीर सरकार ने सुनवाई टालने की मांग की. राज्य सरकार का कहना है कि जब तक सुप्रीम कोर्ट आर्टिकल 35 A को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला नहीं दे देता, तब तक इस पर विचार न हो.
अब जनवरी में होगी सुनवाई
राज्य और केंद्र सरकार को जवाब तलब करते हुए कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई को जनवरी तक के लिए टाल दिया है. कोर्ट ने कहा कि अब इस मामले की अगली सुनवाई जनवरी के दूसरे सप्ताह में होगी. बता दें कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट 2016 में संकेत दे चुका है कि ये मामला विचार के लिए संविधान पीठ को सौंपा जा सकता है.