Tuesday, December 24, 2024
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Homeमीडिया की दुनिया सेइन सितारों को शर्म नहीं आती ऐसी घटिया चीजों का प्रचार करते?

इन सितारों को शर्म नहीं आती ऐसी घटिया चीजों का प्रचार करते?

इंस्टैंट नूडल्स को 'पौष्टिक आहार" के रूप में प्रचारित कर उनका विज्ञापन करने वाले बॉलीवुड सितारों अमिताभ बच्चन, माधुरी दीक्षित और प्रिटी जिंटा को कानूनी नोटिस भेज दिया गया है। इसके बाद यह सवाल फिर उठ खड़ा हुआ है कि सितारों को किसी ऐसे उत्पाद की गुणवत्ता के लिए जवाबदेह ठहराया जा सकता है या नहीं, जिसका कि वे विज्ञापन करते हैं। केंद्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान की मानें तो अगर उपरोक्त सितारे इस बात को भलीभांति जानते थे कि उनके द्वारा किए जाने वाले विज्ञापन दर्शकों को 'गुमराह" करने वाले हैं, इसके बावजूद उन्होंने उन उत्पादों के लिए विज्ञापन किए और पैसे कमाए, तो इसकी जिम्मेदारी से भी वे बच नहीं सकते। फिलवक्त, मैगी नूडल्स की गुणवत्ता से जुड़ा मामला सुर्खियों में बना हुआ है।

 

इंस्टैंड नूडल्स की परिकल्पना डिहाइड्रेटेड फूड के विचार से जुड़ी है, जिसका प्रतिपादन जूलियस मैगी ने किया था। भारत में वर्ष 1982 में मैगी नूडल्स का पदार्पण हुआ था और 1990 का दशक आते-आते उसने खासी लोकप्रियता अर्जित कर ली। लेकिन नूडल्स के प्रति शहरी भारतीय मांओं का रवैया मिला-जुला ही रहा है। एक तरफ जहां नूडल्स को तुरंत तैयार किया जा सकता है और बच्चों को उनका स्वाद बहुत भाता है, वहीं दूसरी तरफ यह आम धारणा भी रही है कि नूडल्स स्वास्थ्य के लिए अच्छे नहीं होते। यही कारण है कि समय की कमी या किसी भी अन्य कारण से अपने बच्चों को नूडल्स खिलाने वाली भारतीय मांएं एक किस्म के अपराध-बोध से भी ग्रस्त रही हैं।

 

मांओं की इस चिंता को ध्यान में रखते हुए ही इंस्टैंड नूडल्स बनाने वाली कंपनियों ने तथाकथित 'पौष्टिक" नूडल्स की नई-नई रेंज भी बाजार में लॉन्च की हैं, जिनमें आटा नूडल्स, आटा-दाल नूडल्स और ओट्स (जई) नूडल्स आदि शामिल हैं। चूंकि आटा नूडल्स पूरी तरह से गेहूं के आटे के बने होते हैं और उनमें प्रचुर मात्रा में फाइबर होता है, इसलिए उन्हें स्वास्थ्यवर्धक नूडल्स की श्रेणी में रखा जाता है। ओट नूडल्स के विज्ञापन में माधुरी दीक्षित हमें यह समझाने की कोशिश करती हैं कि हमें ओट नूडल्स का सेवन करना चाहिए, क्योंकि 'हेल्थ इज एंज्वॉयेबल!" विज्ञापन में हम छरहरी काया वाली एक सुंदर महिला (माधुरी) को अपने परिवार के साथ व्यायाम करते और उसके बाद उन्हें ओट नूडल्स खिलाते देख सकते हैं। इस तरह के विज्ञापनों की मदद से नूडल्स को पूरे परिवार के लिए स्वास्थ्यवर्धक अल्पाहार के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। वास्तव में यह नेस्ले की उस रण्ानीति का हिस्सा है, जिसके चलते वह नूडल्स को केवल बच्चों ही नहीं, बल्कि पूरे परिवार के लिए उपयोगी फूड के रूप में प्रचारित करना चाहता है।

 

लेकिन क्या वाकई ये नूडल्स पौष्टिक होते हैं? बिलकुल नहीं! पौष्टिकता के लिहाज से आटा और ओट्स नूडल्स इससे पहले आने वाले 2-मिनट मैगी मसाला नूडल्स से भिन्न् नहीं हैं। हां, यह जरूर है कि ओट नूडल्स में आटे और मैदे की तुलना में थोड़ी-सी कैलोरी, वसा और फाइबर ज्यादा होता है। इंस्टैंट नूडल्स में सामान्यत: प्रति सौ ग्राम 400 कैलोरी होती है, इसकी तुलना में ढोकला में प्रति सौ ग्राम 300 कैलोरी और उपमा में प्रति सौ ग्राम 222 कैलोरी होती है। नूडल्स की तुलना में ढोकला और उपमा की पौष्टिकता कहीं अधिक होती है। इसलिए अगर आप अपने नूडल्स में बड़ी मात्रा में सब्जियों या अंडे और मांस का उपयोग नहीं कर रहे हैं, जैसा कि अमूमन होता नहीं, तो उन्हें किसी भी दृष्टि से पौष्टिक आहार की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।

 

इंस्टैंट नूडल्स किसी भी अन्य प्रोसेस्ड फूड से बेहतर नहीं हैं। और सभी प्रोसेस्ड फूड निर्माताओं की तरह इंस्टैंट नूडल्स के निर्माता भी अपने उत्पाद को पौष्टिक बताकर बेचने की कोशिश करते हैं। ऐसा वे मुख्यत: विज्ञापनों की मदद से करते हैं। हालांकि शुरुआत में मैगी ने सेलेब्रिटीज से विज्ञापन नहीं करवाए थे, लेकिन वर्ष 2004 के बाद उसने अपनी रणनीति बदली और बॉलीवुड के बड़े चेहरों से अपने उत्पाद का विज्ञापन करवाया।

 

विज्ञापनों का उपभोक्ताओं के मन पर गहरा असर होता है। 1970 के दशक में विज्ञापनों ने ही हमें यह यकीन दिलाया था कि वनस्पति घी (डालडा) देशी घी की तुलना में स्वास्थ्य के लिए बेहतर और कहीं सस्ता होता है। यह वनस्पति घी हाइड्रोजनीकृत वनस्पति तेलों से निर्मित किया जाता था। बाद में चिकित्सा समुदाय द्वारा यह कहा जाने लगा कि इसमें वसा की मात्रा अत्यधिक होती है, जो हमारे हृदय के लिए नुकसानदेह हो सकता है। अब घी का विज्ञापन करने वाले अपने उत्पाद को 'जीरो ट्रांस फैट्स" के रूप में प्रचारित करने लगे। जब तक हमें कुछ समझ आता, तब तक एक पूरी पीढ़ी वनस्पति घी खाकर बड़ी हो चुकी थी! आश्चर्य की बात नहीं कि आज समाज में अनेक लोग हृदयरोगों से जूझ रहे हैं!

 

अब इंस्टैंट नूडल्स का विज्ञापन करने वाले बॉलीवुड सितारों से पूछा जा रहा है कि आखिर वे कैसे नूडल्स को पौष्टिक बताकर बेच सकते हैं? खाद्य सुरक्षा एवं मानक कानून के तहत हरिद्वार खाद्य एवं औषधि प्रशासन ने माधुरी दीक्षित को नोटिस भेजा है। नेस्ले की छवि को इससे भी धक्का लगा है कि उत्तर प्रदेश खाद्य सुरक्षा एवं खाद्य प्रशासन द्वारा संकलित किए गए मैगी के सेंपल्स में मोनो सोडियम ग्लूटामेट और लेड की अत्यधिक मात्रा पाई गई है। इसके बाद अधिकारियों द्वारा मैगी से कहा गया कि वह बाजारों से अपने नूडल्स वापस बुलवा ले। और अब तो केरल सरकार ने भी सरकारी आउटलेट्स पर मैगी के विक्रय पर पाबंदी लगा दी है।

 

बहरहाल, सितारों द्वारा प्रचारित किए जाने वाले उत्पादों की गुणवत्ता का सवाल अपनी जगह पर कायम है। अमिताभ बच्चन, माधुरी दीक्षित और प्रिटी जिंटा ऐसा करने वाले अकेले नहीं हैं। आमिर खान, सलमान खान, शाहरुख खान, करीना कपूर, हृितिक रोशन आदि ने भी सॉफ्ट ड्रिंक्स के विज्ञापन किए हैं, जिन्हें पीने से डायबिटीज का खतरा रहता है। इन सॉफ्ट ड्रिंक्स के अधिकतर विज्ञापन युवाओं और बच्चों को केंद्र में रखकर बनाए जाते हैं। इन सितारों से बेहतर तो बैडमिंटन खिलाड़ी पुलेला गोपीचंद और कुश्ती खिलाड़ी संग्राम सिंह साबित हुए, जिन्होंने कोका कोला का विज्ञापन करने से इनकार कर दिया। हाल ही में कंगना राणावत ने भी एक फेयरनेस क्रीम का विज्ञापन करने से इनकार किया है। जबकि हमारे सितारे तो सालों से स्मोकिंग को भी महिमामंडित करते हुए तंबाकू उद्योग की मदद करते रहे हैं और तंबाकू कंपनियों द्वारा भी निहायत ढिठाई के साथ दशकों तक दावा किया जाता रहा कि उनके उत्पाद सुरक्षित हैं और उनके सेवन से कैंसर का कोई खतरा नहीं है!

 

क्या सितारों द्वारा किसी उत्पाद का विज्ञापन किए जाने पर लोग बिना सोचे-समझे उसका उपभोग करने लगते हैं? बिलकुल! जब लोग अपने प्रिय सितारों की हेयरस्टाइल, कपड़ों और हावभाव तक का अनुसरण करते हैं तो वे उनके द्वारा प्रचारित किए जाने वाले उत्पादों का उपभोग कैसे नहीं करेंगे? लेकिन आज जब भारत में 60 करोड़ से ज्यादा लोग डायबिटीज और कार्डियो-वैस्क्यूलर बीमारियों से ग्रसित हैं, मोटापा और हाइपरटेंशन तेजी से बढ़ रहा है तो क्या ऐसे में सितारों की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती? दर्शकों से उन्हें जो प्यार मिलता है, उसकी तो यूं भी कोई कीमत नहीं लगाई जा सकती है!

 

(लेखिका पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं)

 

साभार- दैनिक नईदुनिया से

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