Sunday, November 24, 2024
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Homeसोशल मीडिया सेतो हामिद अंसारी साहब की असली तकलीफ ये है

तो हामिद अंसारी साहब की असली तकलीफ ये है

ये है वो असली कारण उपराष्ट्रपति के पेट के दर्द का….*

राज्यसभा को कैसे कांग्रेसियों, वामियों के पेंशन योजना की मांद बनाया गया और चौड़े में मौज करवाई गयी ….

राज्यसभा टीवी का पहला काम है राज्यसभा की कार्यवाही का प्रसारण करना। इसके अलावा वो संसदीय कार्य से जुड़े कार्यक्रम और अन्य समसामयिक कार्यक्रम भी दिखा सकता है। लेकिन इस पर लाखों रुपये का बजट खर्च करके ऐसे कार्यक्रम दिखाए जाते रहे जिनका संसदीय लोकतंत्र से कोई लेना-देना नहीं था। चैनल पर कई कांग्रेसी पत्रकारों को बतौर एक्सपर्ट बुलाकर उन्हें हर महीने मोटी पेमेंट की गई। इसके अलावा कांग्रेस के कई वफादार पत्रकारों को गेस्ट एंकर की तरह रखा गया। इन्हें छोटे से कार्यक्रम के बदले हर महीने लाखों रुपये बतौर फीस दी जाती रही। इन संपादकों में *द वायर के एमके वेणु, कैच के भारत भूषण, इंडियास्पेंड.कॉम के गोविंदराज इथिराज और उर्मिलेश जैसे नाम थे*। ये सभी कांग्रेस के नौकर पत्रकार माने जाते रहे हैं। इन सब फिजूलखर्ची के कारण राज्यसभा टीवी का बजट लोकसभा टीवी के मुकाबले कई गुना ज्यादा था।

उपराष्ट्रपति कार्यकाल के आखिरी वक्त में सीईओ गुरदीप सप्पल ने *रागदेश* नाम से एक फिल्म बनवाई। बताते हैं कि इस फिल्म में राज्यसभा टीवी के बजट से 14 करोड़ रुपये दिए गए। जबकि फिल्म की प्रोडक्शन क्वालिटी को देखकर नहीं लगता कि इस पर 4-5 करोड़ से अधिक खर्च आया होगा। फिल्म के प्रोमोशन पर 8 करोड़ रुपये का बजट दिया गया। जबकि इस पर ज्यादा से ज्यादा 2 करोड़ का खर्च बताया जा रहा है। जिस समय संसद का मॉनसून सत्र चल रहा है उस वक्त सीईओ सप्पल राज्यसभा टीवी की पूरी टीम को लेकर फिल्म का प्रोमोशन करने के लिए मुंबई चले गए। इनमें एडमिन हेड चेतन दत्ता, हिंदी टीम के प्रमुख राजेश बादल, इंग्लिश टीम के हेड अनिल नायर, टेक्निकल हेड विनोद कौल, आउटपुट हेड अमृता राय *(कांग्रेसी नेता दिग्विजय की पत्नी),* इनपुट हेड संजय कुमार समेत एडिटोरियल टीम के कम से कम 20 सदस्य शामिल थे। फिल्म के प्रोमोशन के नाम पर इन सभी ने करीब एक महीने तक पूरे देश में मौज-मस्ती, सैर-सपाटा किया। इस फ़िल्म में *कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह की पत्नी अमृता राय ने भी एक्टिंग की है।

राज्यसभा टीवी घोटाले से जुड़ी कई और जानकारियां अभी सामने आनी बाकी हैं। चैनल को चलाने में आर्थिक हिसाब-किताब, भर्तियों में घोटाला, तनख्वाह और प्रोफेशनल फीस बांटने में भेदभाव जैसी बातों की पूरी जांच की जरूरत है। ताकि यह पता चल सके कि एक कांग्रेसी की अगुवाई वाली आखिरी संस्था में किस बड़े पैमाने पर जनता की गाढ़ी कमाई को लूटा गया है।

उपराष्ट्रपति भले ही राष्ट्रपति के नीचे का पद है, लेकिन उनका बजट राष्ट्रपति से कहीं अधिक होता है। अगर इस साल के बजट को देखें तो *राष्ट्रपति के लिए जहां 66 करोड़ रुपए आवंटित किए गए, वहीं उपराष्ट्रपति के लिए 377.21 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया*। यानी करीब-करीब छह गुने से भी ज्यादा। उपराष्ट्रपति राज्यसभा का सभापति होता है। उसका अपना सचिवालय होता है, जिसमें 1500 से ज्यादा अधिकारी और कर्मचारी होते हैं। इसके अलावा राज्यसभा टीवी का मुखिया भी उपराष्ट्रपति ही होता है … मुस्लिम उपराष्ट्रपति अपने कार्यकाल खत्म होने से पहले इन सभी घोटालों से बचने के लिये विक्टम गेम खेलना सुरु कर दिया। *लेकिन इंतजार कीजिये अभी और कुछ आना बाकी है….

एक निवेदन

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