बस्ती (वर्तमान सिद्धार्थ नगर) जिले के बांसी तहसील मुख्यालय से पश्चिप डुमरियागंज रोड पर मिठवल बाजार से आगे तथा राप्ती नदी के तट पर बघनी घाट के पास भैसठ पोस्ट सेखुई ओझा ब्राह्मणों का एक परम्परागत गांव है। बघिनी घाट का ऐतिहासिक धार्मिक महत्व भी है बांसी डुमरियागंज के मध्य पवित्र अचरावती (राप्ती) के तट पर स्थित बघिनी घाट का ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व भी है। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर यहां लोग अवध धाम की भांति स्नान दान भी करते हैं, तथा इस दिन यहां विशाल मेला भी लगता है।
पास के गांव भैसठ के मूल निवासी सुमिरन ओझा के पांच पुत्र थे। इनमें डा. राम देव ओझा शिक्षा जगत के महान विद्वान थे। इनके एक भाई इंजीनियर रहे। एक भाई सत्य देव ओझा एडवोकेट थे जो अनेक सामाजिक संगठनों से जुड़े रहे और अधिवक्ता के साथ पत्रकारिता में अपना विशेष योगदान रखते थे। कबीर अर्चना इनका दैनिक और साप्ताहिक पेपर था। इनके भाई नर्वदेश्वर और एक अन्य भी वकालत व्यवसाय में जुड़े हुए हैं। सत्य देव ओझा मूड़ घाट रोड पर विंध्यवासिनी प्रेस भी चलाते थे और एक आयुर्वेद चिकित्सालय भी इनके आवास में खुला हुआ है। डा राम देव ओझा तुरकहिया गांधी नगर बस्ती में अपना आवास बना रखे थे।
डा राम देव ओझा के बड़े पुत्र स्वर्गीय विष्णु दत्त ओझा एक राष्ट्रीय सोच के व्यक्ति थे। वे हिंदू युवा वाहिनी के प्रदेश संयोजक रहे। 25 जुलाई 2011 की शाम करीब साढ़े छह बजे बाइक सवार बदमाशों ने कोतवाली थाना क्षेत्र के तुरकहिया निवासी विष्णु दत्त ओझा की गोली मारकर हत्या कर दी थी। जिसके बाद हियुवा कार्यकर्ताओं व समर्थकों ने शहर में काफी हंगामा बरपाया था। तत्कालीन कोतवाल एसएन सिंह को भी गुस्से का शिकार होना पड़ा था। इस बहुचर्चित मामले में एडीजे/विशेष न्यायाधीश ईसी एक्ट पृथ्वीपाल यादव की अदालत ने सभी छह अभियुक्तों का दोष सिद्ध पाते हुए पांच को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। हत्या की वजह बनी शहर के तुरकहिया-पांडेय पोखरा स्थित जमीन थी। इस मामले में 8 अभियुक्तों को सजा हो चुकी है जो बस्ती गोंडा और सिद्धार्थ नगर के जेलों में सजा काट रहे हैं। असमय ही डा राम देव ओझा जी के बड़े पुत्र विष्णुदत्त के चले जाने के बाद भी उन्होंने खुद को बड़े शिद्दत से संभाला था।
हमारे शहर बस्ती की आधारशिला तैयार करने वालों में डा.रामदेव ओझा पुरातन पीढ़ी के वरिष्ठतम आधार स्तम्भ रहे। ओझा जी कभी के कैम्ब्रिज माने जाने वाले इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोडक्ट थे। वे अपने समय के प्राध्यापकों से गहरे जुड़े थे।यद्यपि उनका अध्ययन मुख्य रूप से निर्गुण धारा और नाथपंथ पर था, इसीलिए उनके जीवन में भी एक फकीरी की ठसक बराबर बनी रही। इसके कारण उनकी भाषा भी गहन उलट वासियों के ज्यादा करीब होती जिससे अक्सर लोग चक्कर में पड़ जाते।
डॉ. रामदेव जी बस्ती के स्थानीय शिवहर्ष किसान स्नातकोत्तर महाविद्यालय में हिंदी विभाग के पहले अध्यक्ष रहे। उन्होंने हमेशा चुनौती भरा, घाटे का और मूल्यधर्मी जीवन का वरण किया और उस पर आजीवन टिके रहे। एक समय ऐसा भी आया जब ओझा जी महाविद्यालय के कार्यवाहक प्राचार्य बने बने।
शिवहर्ष किसान पीजीआई कॉलेज, बस्ती पूर्वी उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख शैक्षणिक संस्थान है जो पहले गोरखपुर विश्व विद्यालय, फिर दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्व विद्यालय और समप्रति सिद्धार्थ विश्वविद्यालय, कपिलवस्तु, सिद्धार्थनगर से संबद्ध है।
सन उन्नीस सौ अस्सी के दशक में किसान महाविद्यालय अनुशासनहीनता और परीक्षाओं में विकट नकल की महामारी के लिए कुख्यात था। छात्रों की उच्छृंखलता चरम पर थी।ऐसे समय में रामदेव ओझा जी कभी पैदल और कभी अपनी पुरानी साइकिल पर पर सरेआम चलते थे। उस पर गायों के लिए भूसा लादकर चलते उन्हें किसी तरह की हिचक या शर्म नहीं होती। उन्हें बीच सड़क पर उद्दण्ड तत्वों द्वारा गालियां और धमकियां भी मिल जाती थी। इन सबको दरकिनार करते हुए ओझा जी अपनी ईमानदारी सरलता और अनुशासन में अडिग रहे। उस समय तक लोगों का कहना है कि ओझा जी एक किंवदंती बन चुके थे। उन्होंने महाविद्यालय में नकल पर पूरी नकेल कसी और महाविद्यालय को अनेक घपलों से मुक्त कराकर एक स्वच्छ मिसाल कायम की। मूल्य आधारित जीवन की जो मिसाल ओझा जी ने कायम की,उसके लिए बस्ती उनका चिर ऋणी रहेगा ।
जटिल वैदुष्य लेकिन सरलतम और मूल्य धर्मी जीवन के लिए ओझा जी बेमिसाल थे। बाद में वे उदित नारायण महाविद्यालय पडरौना के प्राचार्य बने। वहां भी उन्होंने अपनी सच्चाई की परम्परा कायम की। अपनी निष्कंप वाणी,हठीले और पारदर्शी जीवन के लिए विख्यात ओझा जी यद्यपि अकेडमिक जीवन में बहुत नहीं कर सके, फिर भी उनका जीवन ही बस्ती के शिक्षा जगत के लिए एक महत्वपूर्ण अध्याय बना।
आदर्श शिक्षक और कठोर अनुशासन प्रिय प्रो. ओझा शिव हर्ष किसान पीजी कॉलेज उच्च शिक्षा क्षेत्र में गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा की नई ऊंचाई पर पहुंच गया है। कॉलेज ने लगातार प्रगति की है और यह 1972 से एक संस्थान के रूप में विज्ञान और कला दोनों में यूजी और पीएचडी पाठ्यक्रम के प्रमुख शिष्य शामिल हुए हैं।
बस्ती नगर में उनका रुतबा किसी राजनेता से कम नहीं था।नगर के साहित्यिक और सामाजिक आयोजनों में वे अपनी बेबाक टिप्पणी के लिए जाने पहचाने जाते थे। डॉ. रामदेव ओझा ने आचार्य रामचंद्र शुक्ल की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में 29 अक्टूबर 2012 को कहा था कि आचार्य शुक्ल ने अपने साहित्य में जीवन की व्यापकता का विवेचन किया है।
प्रेस क्लब बस्ती के सभागार में रविवार 09 सितम्बर 2013को वरिष्ठ नागरिक सम्मेलन का आयोजन किया गया। सेवानिवृत्त प्राचार्य डॉ. रामदेव ओझा ने कहा कि जीवन में सामंजस्य का अभाव प्रत्येक के भीतर है। प्राणी का उद्देश्य लक्ष्य को प्राप्त करना है, हर व्यक्ति बैभव का स्वाद लेना चाहता है। विधाता ने पुरुषार्थ की जो शक्ति प्रदान की है, उससे कतिपय लोग ही पुरुषार्थी बन पाते हैं। यदि आज पुत्र पिता को गोली मारने के लिए तैयार है तो इसका कारण पिता में नैतिकता की कमी है।
वरिष्ठ नागरिक कल्याण समिति की बैठक रविवार 10 नवम्बर 2013 को प्रेस क्लब के सभागार में आयोजित की बैठक में सेवानिवृत्त प्राचार्य डॉ. रामदेव ओझा ने कहा था कि विचार को कर्म से परिभाषित किया जाना चाहिए।
डॉ. ओझा, शिक्षण काल मैं एक अनुशासन प्रिय आदर्श शिक्षक के रूप में जाने जाते थे। निडर और धैर्य शील व्यक्ति होने के नाते कॉलेज में उनके कार्यवाहक प्रधानाचार्य रहते अनुशासन का जो माहौल बना था उसे आज भी याद किया जाता है।
जीवन के आखिरी वर्षों में ओझा जी मानसिक विक्षेप के शिकार होते हुए भी उतने ही निर्भीक, वत्सल और सरल दिखते रहे। इन कठिन दिनों में उनके कनिष्ठ पुत्र नंदीश्वर दत्त ओझा जिस समर्पण, और निष्ठा से उनकी ही नींद से सोते और जागते रहे,सांस सांस की रखवाली और सेवारत रहे; वह भी बेमिसाल है।
डॉ. रामदेव ओझा का दिनांक 11 अक्टूबर 2023 को धनवंतरी त्रयोदसी के दिन निधन हो गया। स्व. ओझा के बेटे नंदीश्वर दत्त ओझा ने सोशल मीडिया साइट फेसबुक पर पोस्ट कर इस आशय की जानकारी दी।
स्मृति शेष डॉ ओझा जी की अन्तेष्ठी बस्ती के कुवानों नदी के तट मूड़घाट पर ओमप्रकाश आर्या जी का सानिध्य में ओझा जी के कनिष्ठ पुत्र नंदीश्वर दत्त ओझा के हाथों से सम्पन्न हुआ। उनका जाना शहर को कुछ और सूना कर गया। यद्यपि पिछले तीन चार वर्षों से वे मानसिक और शारीरिक विक्षोभ के नाते लगभग अशक्त से हो गये थे। फिर भी नब्बे पार की उनकी ऊर्जा और शारीरिक तेज में कोई कसर नहीं आयी थी। रह रहकर उनकी स्मृतियां जाग जाती थीं और किसी परिचित के सामने पड़ने पर वे बच्चों की तरह किलक उठते थे। वे अपनी चुनी हुई कठिनाइयों और उन सबके बीच अपने अडिग उसूलों को याद कर विभोर हो जाते।
(लेखक विभिन्न विषयों पर hnidimedia.in के लिए लिखते हैं।)