Sunday, November 24, 2024
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वैदिक ज्ञान से खुद की भी जिंदगी बदली और हजारों छात्रों की भी!

जयपुर । 21 साल के सुरेश कुमार शर्मा सब्जी बेचते थे। 3 साल पहले उन्होंने आईआईटी जेईई की प्रवेश परीक्षा दी थी, लेकिन सफल नहीं हो सके। इसके बावजूद IIT से उनका रिश्ता खत्म नहीं हुआ है। जयपुर व कोटा के आईआईटी जेईई की तैयारी कराने वाले कोचिंग संस्थानों में सुरेश की बड़ी मांग है। सुरेश वहां के शिक्षकों की याददाश्त बढ़ाने में मदद करते हैं। इनमें से ज्यादातर तो खुद आईआईटी से पढ़े हैं और काफी अच्छे छात्र रहे हैं।

सुरेश इंजिनियरिंग के पहले साल के छात्र हैं। उन्होंने पाई की 70,030 संख्याओं को याद करने का कारनामा कर दिखाया है। इस उपलब्धि के कारण उन्हें लिम्का बुक ऑफ रेकॉर्ड्स में भी जगह मिली। इन सभी संख्याओं को याद करने में सुरेश को केवल 17 घंटे लगे। इन संख्याओं को याद करने का मतलब 7,000 मोबाइल नंबर याद करना है।

सुरेश का कहना कि याददाश्त बढ़ाने के उनके तरीके से शिक्षकों व छात्रों को सैकड़ों रासायनिक अभिक्रियाएं, आवर्त सारणी, भौतिकी व गणितीय नियम, पैराग्राफ और बिंदु याद करने में मदद मिलती है। वह कहते हैं, ‘मैं उन्हें रटने का प्रशिक्षण नहीं देता हूं। मैं उन्हें प्राचीन वैदिक तरीके से हर चीज को एक तस्वीर से जोड़ कर याद रखना सिखाता हूं।’ सुरेश जयपुर के मनसारामपुरा गांव के रहने वाले हैं। स्कूल में वह औसत छात्र थे। 10वीं की परीक्षा में उन्हें 60 फीसदी अंक मिले। 12वीं में उन्हें 71 फीसदी अंक मिले। उनके पूरे गांव व स्कूल में उन्हें सबसे ज्यादा अंक मिले थे।

सुरेश की पढ़ाई हिंदी माध्यम के एक सरकारी स्कूल में हुई। इसके बाद वह IIT-JEE की तैयारी के लिए कोटा के उस कोचिंग संस्थान में पहुंचे, जहां का शुल्क सबसे कम था। हॉस्टल में एक छात्र की आत्महत्या ने सुरेश की जिंदगी बदल दी। वह बताते हैं, ’15 दिनों में वह तीसरी आत्महत्या थी। पूरा कोटा सन्न था। जब उस छात्र का परिवार उसकी लाश लेने आया, तो उनकी हालत और तकलीफ देखकर मेरा दिल टूट गया।’

वह कहते हैं, ‘वह परीक्षा में अच्छे अंक हासिल नहीं कर सका और इसीलिए उसने आत्महत्या जैसा रास्ता चुना। उस समय मेरा मन किया कि कोचिंग छोड़कर कोटा से चला जाऊं, लेकिन उस समय तक मेरे परिवार ने मेरी पढ़ाई के लिए बहुत सारे पैसे कर्ज में ले लिए थे।’ सुरेश ने प्रवेश परीक्षा दी, लेकिन असफल रहे। वह बताते हैं, ‘मुझे महसूस हुआ कि यह मेरे बस की बात नहीं है। उन दिनों अवसाद के बीच मेरे पास फिर से सब्जी बेचने का ही विकल्प बचा था। या फिर मुझे कुछ ऐसा करना पड़ता जिससे कि हजारों छात्रों को एक राहत मिल सके। मेरी तरह वे भी कई चीजें याद रखने में इतनी मेहनत करते हैं।’

सुरेश आगे बताते हैं, ‘उम्मीद की किरण मेरे दादाजी ने दी। वह संस्कृत के विद्वान हैं। वह बताते थे कि वैदिक समय में किस तरह लोग अपनी याददाश्त को बढ़ाते थे।’ सुरेश ने वेदों और याददाश्त बढ़ाने के आधुनिक तरीकों पर स्वतंत्र रूप से शोध किया और आखिरकार याददाश्त बढ़ाने का अपना एक नियम विकसित किया। यही खासियत है कि आज सुरेश की इतनी पूछ है।

साभार-टाईम्स ऑफ इंडिया से

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