Saturday, April 27, 2024
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विचित्र दिव्य परंपराओं वाला शान्त तपोभूमि चित्रकूट

चित्रकूट का मतलब
चित्रकूट- दो शब्दों के मेल से बना है- चित्र और कूट । संस्कृत में चित्र का अर्थ है अशोक एवं कूट का अर्थ है शिखर या चोटी। इस वन क्षेत्र में कभी अशोक के वृक्ष बहुतायत मिलते थे। इस कारण इसे चित्रकूट कहा गया होगा। यहां निवास और साधना से मन की चित्त वृत्तियां आध्यात्मिक की तरफ उन्मुख होकर परिवर्तित हो जाती हैं। मोटे तौर पर चित्त को आकर्षित और प्रसन्न करने की जगह को चित्रकूट कहा जा सकता है।

इस स्थान पर आकर बड़ा से बड़ा दुख शांति में बदल जाता है, श्रीराम ने यहां 11 साल बिताये थे। रहीम का यह दोहा पूर्णातः सत्य है –
चित्रकूट में रमि रहे, ‘रहिमन’ अवध-नरेस।
जा पर बिपदा परत है, सो आवत यहि देस॥
(अयोध्या के महाराज राम अपनी राजधानी छोड़कर चित्रकूट में जाकर बस गये, इस अंचल में वही आता है, जो किसी विपदा का मारा होता है।) कहा जाता है जिसपर आपत्ति आती है उसे चित्रकूट जाने पर शांति का एहसास होता है। कवि रहीम खान की इस बात पर किसी को कोई आशंका नहीं होगा। एक अन्य लोकप्रिय प्रसंग यहां पर सार्थक प्रमाण देता है –
चित्रकूट के घाट पर, भइ सन्तन की भीर।
तुलसिदास चन्दन घिसें, तिलक देत रघुबीर॥
गोस्वामी तुलसीदास ने रामघाट पर भगवान श्रीराम के दर्शन किए थे। यह घाट आज आधुनिकता से रंगा है पूरा घाट लाल पत्थर के बने है । इस घाट पर मत गजेंद्र नाथ का अति प्राचीन शिव मंदिर भी है जिसे औरंगजेब तोड़ने का साहस नहीं जुटा पाया और इसका पुनरुद्धार कराया था। इस घाट पर अन्य अनेक प्राचीन मंदिर भी देखे जा सकते है।

दो-दो प्रदेश, मंडल और जिलों का संयुक्त सीमावर्ती क्षेत्र
चित्रकूट मध्य प्रदेश राज्य में सतनाऔर उत्तर प्रदेश के प्राचीन बांदा एवम वर्तमान नव निर्मित चित्रकूट जिले का सीमावर्ती मे बुंदेलखंड नामक क्षेत्र का बहुत ही पावन धार्मिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व का स्थान है। जिसका मुख्यालय चित्रकूट धाम (करवी) में स्थित है। यह वर्तमान भारतीय राज्यों मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बीच विभाजित भी करता है।

चित्रकूट का अर्थ है ‘कई अजूबों की पहाड़ी’। चित्रकूट क्षेत्र उत्तरी विंध्य श्रेणी में आता है जो उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश राज्यों में फैला है। यह क्षेत्र उत्तर प्रदेश के जिला चित्रकूट और मध्य प्रदेश के जिला सतना में शामिल है। उत्तर प्रदेश में चित्रकूट जिला 4 सितंबर 1998 को बनाया गया है। इससे पहले यह साहू जी महाराज नगर और पहले बांदा जिले का भाग रहा है।

“अनेक आश्चर्यों की पहाड़ियां” वास्तव में प्रकृति और देवताओं द्वारा प्रदत्त एक अद्वितीय उपहार है, जो उत्तर प्रदेश में पयस्वनी/मन्दाकिनी नदी के किनारे विन्ध्य के उत्तरार्द्ध में स्थित एक शांत क्षेत्र है। चित्रकूट धाम कर्वी रेलवे स्टेशन से 10 किमी दक्षिण और बांदा जनपद से 72 किमी दक्षिण पूर्व, इलाहाबाद मार्ग पर, चित्रकूट धाम भारत के सबसे प्राचीन पवित्र तीर्थस्थानों में से एक है।

चित्रकूट, मानव हृदय को शुद्ध करने और प्रकृति के आकर्षण से पर्यटकों को आकर्षित करने में सक्षम है। चित्रकूट एक प्राकृतिक स्थान है जो प्राकृतिक दृश्यों के साथ साथ अपने आध्यात्मिक महत्त्व के लिए प्रसिद्ध है।

एक पर्यटक यहाँ के खूबसूरत झरने, चंचल युवा हिरण और नाचते मोर को देखकर रोमांचित होता है, तो एक तीर्थयात्री पयस्वनी/ मन्दाकिनी में डुबकी लेकर और कामद गिरी की धूल में तल्लीन होकर अभिभूत होता है। प्राचीन काल से चित्रकूट क्षेत्र ब्रह्मांडीय चेतना के लिए प्रेरणा का एक जीवंत केंद्र रहा है। यही वह जगह है, जहां ऋषि अत्री और सती अनसूया संपर्क में आए थे। इसे ब्रह्मा, विष्णु और महेश के अवतारों का निवास होने का श्रेय दिया जाता है। भगवान श्री राम के चरण स्पर्श से पवित्र चित्रकूट तीर्थ में महाकाव्य ‘श्री रामचरित मानस’ के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास ने अपने जीवन के कई वर्ष व्यतीत किये थे।

अत्री, अनुसूया, दत्तात्रेय, महर्षि मार्कंडेय, सारभंग, सुतीक्ष्ण और विभिन्न अन्य ऋषि, संत, भक्त और विचारक सभी ने इस क्षेत्र में अपनी आयु व्यतीत की और जानकारों के अनुसार ऐसे अनेक लोग आज भी यहाँ की विभिन्न गुफाओं और अन्य क्षेत्रों में तपस्यारत हैं। इस प्रकार इस क्षेत्र की एक आध्यात्मिक सुगंध है, जो पूरे वातावरण में व्याप्त है और यहाँ के प्रत्येक दिन को आध्यात्मिक रूप से जीवंत बनाती है। चित्रकूट में ही ऋषि अत्री और सती अनसुइया ने ध्यान लगाया था।

ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने चित्रकूट में ही सती अनसुइया के घर जन्म लिया था। यहां विश्व भर के लोगो के लिये किंवदंतियों कथाओं कथानकों के साथ ही यथार्थ चेतना का पुंज बना हुआ है। प्रजापति ब्रह़मा के तपोबल से उत्पन्न मां अनुसुइया के दस हजार सालों के तप का परिणाम मां मंदाकिनी के साथ ही प्रभु राम के बारह वर्ष छह माह तक चित्रकूट मे प्रवास किया।

इस दौरान उनकी सेवा के लिए अयोध्‍या से आई मां सरयू की त्रिवेणी आज भी यहां पर लोगों को आनंद देने के साथ ही पापों के भक्षण करने का काम कर रही है। हजारों भिक्षुओं, साधुओं और संतों ने यहाँ उच्च आध्यात्मिक स्थिति प्राप्त की है और अपनी तपस्या, साधना, योग, तपस्या और विभिन्न कठिन आध्यात्मिक प्रयासों के माध्यम से विश्व पर लाभदायक प्रभाव डाला है।

चित्रकूट सभी तीर्थों का तीर्थ है। हिंदू आस्था के अनुसार, प्रयागराज (आधुनिक नाम- इलाहाबाद) को सभी तीर्थों का राजा माना गया है; किन्तु चित्रकूट को उससे भी ऊंचा स्थान प्रदान किया गया है। किवदंती है की जब अन्य तीर्थों की तरह चित्रकूट प्रयागराज नहीं पहुंचे तब प्रयागराज को चित्रकूट की उच्चतर पदवी के बारे में बताया गया तथा प्रयागराज से अपेक्षा की गयी की वह चित्रकूट जाएँ, इसके विपरीत की चित्रकूट यहाँ आएं।

ऐसी भी मान्यता है कि प्रयागराज प्रत्येक वर्ष पयस्वनी में स्नान करके अपने पापों को धोने के लिए आते हैं। यह भी कहा जाता है कि जब प्रभु राम ने अपने पिता का श्राद्ध समारोह किया तो सभी देवी-देवता शुद्धि भोज (परिवार में किसी की मृत्यु के तेरहवें दिन सभी सम्बन्धियों और मित्रों को दिया जाने वाला भोज) में भाग लेने चित्रकूट आए। वे इस स्थान की सुंदरता से मोहित हो गए थे। भगवान राम की उपस्थिति में इसमें एक आध्यात्मिक आयाम जुड़ गया। इसलिए वे वापस प्रस्थान करने के लिए तैयार नहीं थे। कुलगुरु वशिष्ठ, भगवान राम की इच्छा के अनुसार रहने और रहने की उनकी इच्छा को समझते हुए विसर्जन (प्रस्थान) मंत्र को बोलना भूल गए। इस प्रकार, सभी देवी-देवताओं ने इस जगह को अपना स्थायी आवास बना लिया और वहां हमेशा उपस्थित रहते हैं।

आज भी, यहां तक कि जब एक अकेला पर्यटक भी प्राचीन चट्टानों, गुफाओं, आश्रमों और मंदिरों की विपुल छटा बिखेरे हुए इस स्थान में पहुंचता है तो पवित्र और आध्यात्मिक साधना में लगे ऋषियों के साथ वह अनजाने में ही खुद को पवित्र संस्कारों और ज्ञान प्राप्ति के उपदेशों और कृतियों से भरे माहौल में खो देता है और एक अलग दुनिया के आनंद को प्राप्त करता है। विश्व के सभी हिस्सों से हजारों तीर्थयात्री और सत्य के साधक इस स्थान में अपने जीवन को सुधारने और उन्नत करने की एक अदम्य इच्छा से प्रेरित होकर आश्रय लेते हैं।

प्राचीन काल से ही चित्रकूट का एक विशिष्ट नाम और पहचान है।इस स्थान का पहला ज्ञात उल्लेख वाल्मीकि रामायण में है, जो पहले सबसे पहले कवि द्वारा रचित सबसे पहला महाकाव्य माना जाता है। एक अलिखित संरचना के रूप में, विकास के इस महाकाव्य को, पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक परंपरा द्वारा, सौंप दिया गया था। जैसा कि वाल्मीकि, जो राम के समकालीन (या उनसे पहले) माने जाते हैं, और मान्यता है कि उन्होंने राम के जन्म से पहले रामायण का निर्माण किया गया था, से इस स्थान की प्रसिद्धि व पुरातनता को अच्छी तरह से निरूपित किया जा सकता है।

महर्षि वाल्मीकि चित्रकूट को एक महान पवित्र स्थान के रूप में चित्रित करते हैं, जो महान ऋषियों द्वारा बसाया गया है और जहाँ बंदर, भालू और अन्य विभिन्न प्रकार के पशुवर्ग और वनस्पतियां पाई जाती हैं। ऋषि भारद्वाज और वाल्मीकि दोनों इस क्षेत्र के बारे में प्रशंसित शब्दों में बोलते हैं और श्रीराम को अपने वनवास की अवधि में इसे अपना निवास बनाने के लिए सलाह देते हैं। यह स्थान किसी व्यक्ति की सभी इच्छाओं पूर्ण करने और उसे मानसिक शांति देने में सक्षम था। जिससे वह अपने जीवन में सर्वोच्च लक्ष्यों को प्राप्त कर सके।

भगवान राम स्वयं इस जगह के मोहक प्रभाव को मानते हैं। रामोपाख्यान और महाभारत के विभिन्न स्थानों पर तीर्थों के विवरण में चित्रकूट एक को एक विशिष्ट स्थान प्राप्त है। ‘अध्यात्म रामायण’ और ‘बृहत् रामायण’ चित्रकूट की झकझोर कर देने वाली आध्यात्मिक और प्राकृतिक सुंदरता को प्रमाणित करते हैं। राम से संबंधित पूरे भारतीय साहित्य में इस स्थान को एक अद्वितीय गौरव प्रदान किया गया है। फादर कामिल बुलके ने भी ‘चित्रकूट-महात्म्य’ का उल्लेख किया है जो मैकेंज़ी के संग्रह में पाया गया है। विभिन्न संस्कृत और हिंदी कवियों ने चित्रकूट का वर्णन किया है।

महाकवि कालिदास ने अपने महाकाव्य ‘रघुवंश’ में इस स्थान का सुंदर वर्णन किया है। वह यहाँ के आकर्षण से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने मेघदूत में अपने यक्ष के निर्वासन का स्थान चित्रकूट (जिसे वह प्रभु राम के साथ इसके सम्मानित संबंधों की वजह से रामगिरी कहते हैं) को बनाया। हिंदी के संत-कवि तुलसीदास जी ने अपने सभी प्रमुख कार्यों- रामचरित मानस, कवितावली, दोहावली और विनय पत्रिका में इस स्थान का अत्यंत आदरपूर्वक उल्लेख किया है। उनकी उपलब्धियों का एक उल्लेखनीय पल माना जाता है जब हनुमान जी की मध्यस्थता में उन्हें उनके आराध्य प्रभु राम के दर्शन प्राप्त हुए।

उत्तर प्रदेश में 6 मई 1997 को बाँदा जनपद से काट कर छत्रपति शाहू जी महाराज नगर के नाम से नए जिले का सृजन किया गया जिसमे कर्वी तथा मऊ तहसीलें शामिल थीं। कुछ समय बाद, 4 सितंबर 1998 को जिले का नाम बदल कर चित्रकूट कर दिया गया। यह उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश राज्यों में फैली उत्तरी विंध्य श्रृंखला में स्थित है। यहाँ का बड़ा हिस्सा उत्तर प्रदेश के चित्रकूट और मध्य प्रदेश के सतना जनपद में शामिल है। यहाँ प्रयुक्त “चित्रकूट” शब्द, इस क्षेत्र के विभिन्न स्थानों और स्थलों की समृद्ध और विविध सांस्कृतिक, धार्मिक, ऐतिहासिक और पुरातात्विक विरासत का प्रतीक है।

विशाल भूभाग में फैले इस धाम के धर्म स्थलों में साफ सफाई, बिजली ,सड़के, सीवर लाइन वा नागरिक सुविधाओं को और बेहतर बनाने की जरूरत है। चूंकि ये कई अलग अलग फेज में बनते हैं इसलिए ये पूरे मुवकल्ल देखे ही नही जा सकते है। हां, जब कोई वीआईपी मूवमेंट होने पर कुछ अलग ही नजारा देखा जा सकता है। पतित पावनी मन्दाकिनी को गहन सफाई की सख्त आवश्कता है। उत्तर प्रदेश के स्थल मध्य प्रदेश की अपेक्षा अच्छे दिखते हैं।

प्रमुख आकर्षण :- रामघाट, मत गयेंद्र नाथ मंदिर, राघव प्रयाग घाट, तुलसीदास की मूर्ति, तुलसीदास मंदिर गुफा मंदिर, बालाजी मंदिर, बड़े हनुमान जी, भरत घाट, कामद गिरि, कामद गिरि परिक्रमा, चार प्रवेश द्वार, साक्षी गोपाल मंदिर, ब्रह्म कुण्ड, लक्ष्मण पहाड़ी, भरत मिलाप, पीली कोठी, राम शैया, राम शैया गोशाला, वनदेवी आश्रम, हनुमान धारा, गोयनका घाट, पुत्र जीवा वृक्ष,कांच का मंदिर, मानस मन्दिर, नेत्र चिकित्सालय जानकी कुण्ड, जानकी कुण्ड,श्रृंगार वन (सिरसा वन) ,स्फटिक शिला, पंजाबी भगवान आश्रम, आरोग्य धाम, रामदर्शन, नन्ही दुनिया (दीन दयाल शोध संस्थान), अनसुइया आश्रम, गुप्त गोदावरी, पंचमुखी हनुमान धारा, बांके सिद्ध, गणेश बाग, तुलसी तीर्थ राजापुर, नांदी के हनुमान जी, सूर्य कुंड, मांडव्य ऋषि आश्रम, भरत कूप, लैना बाबा सरकार, कालिजर शिवलिंग भूमि, शारदा देवी( मैहर) आदि।

चित्रकूट क्षेत्र में सोमवती अमावस्या, सावन झूला, जन्माष्टमी, विवाह पंचमी, जल बिहार बड़ी एकादशी, रथ यात्रा, दीपावली, शरद-पूर्णिमा, मकर-संक्रांति, रामायण मेलाऔर राम नवमी यहाँ ऐसे समारोहों के विशेष अवसर हैं। प्रत्येक अमावस्या में यहाँ विभिन्न क्षेत्रों से लाखों श्रृद्धालु एकत्र होते हैं। असंख्य मंदिरों और तीर्थों के साथ प्रकृति शांति व सुंदरता में लिपटा हुआ यह क्षेत्र पक्षियों की मीठी चहचहाहट और गहराई से बहती धाराओं से घिरा हुआ है।

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल, आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।)

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