Friday, May 17, 2024
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कवि, लेखक एवं रेखांकनकार के रूप में विवेक मिश्रा ने बनाई देशव्यापी पहचान

कवि, लेखक और रेखांकनकार के रूप में देश में अपनी पहचान कायम करने वाले विवेक मिश्र के लेखन में समाज है, समाज की समस्याएं हैं, पर्यावरण के प्रति चिंता, प्रकृति के रंग हैं। एक लेखक के तौर पर जो कुछ आश्चर्य जनक ढ़ंग से घट रहा है वह सब लेखन का विषय हो जाता है। इस तरह नवीनता का आग्रह बना रहता है। विवेक मिश्रा कहते हैं संसार को देखने समझने के क्रम में नये-नये विचार कौंधते रहते हैं। किसी एक परिपाटी में बंध कर लिखना कभी पसंद नहीं रहा । रचना खुद आगे आगे लेकर चलती है। कभी विषय बनाकर या इस विषय पर लिखना है यह सोचकर नहीं लिखा । लिखना इनके लिए सहजता का पर्याय है। जब सब कुछ यों घटित हो जाये कि कुछ अलग से या अतिरिक्त न लगे।

अपने लेखन विधा पर बताते हैं को लेखन ऐसा हो जो भी आप लिख रहे हैं उससे समाज का भला हो। केवल अपने लिए लिखने का कोई अर्थ नहीं । वह समझते हैं लिखे का जब अन्य पर प्रभाव पड़ता है, आपके लिखे से जब कोई अपनी दिशा तय करता है या अपने भीतर परिवर्तन महसूस करता है तो लगता है कि लिखने का अर्थ है । जब राह चलते कोई अपरिचित सा आदमी यह कह उठता है कि आपका लिखा पढ़ा है और बहुत अच्छा लगा तो समझे लिखने की सार्थकता है । अन्य के साथ लेखन हमें जोड़ता है यही यही इनके लिखने की ताकत है ।

वे बताते हैं रचना कर्म जीने की शक्ति प्रदान करता है। हर रचना हमें नये सिरे से रचती है । रचना की अलग ही खुशी होती है । यह लगता है कि ये आप ही कर सकते हैं और जब भी कुछ नया रच कर सामने आता है तो नये सिरे से सोचने समझने की राहें बन जाती हैं। इनकी पहली रचना दिसंबर 2003 में राजस्थान पत्रिका में चंद्रभागा : बोलते पत्थर प्रकाशित हुई। फिर यह क्रम चल पड़ा । वैसे लिखने की शुरुआत नौवीं कक्षा से हो गई थी। शब्द गढ़ते नये सिरे से शब्दों का संयोजन एक तरह से खेल की तरह करता जाता था और पता नहीं कब यह का लगाव इस तरह रच बस गया कि अब यहीं सखा और बंधु की तरह साथ साथ रहते हैं। इनका कहना है कि लिखने सोचने का कोई एक रूप नहीं है कोई एक समय तय नहीं है फिर भी विचार के लिए सुबह का समय अनुकूल रहता है।

पढ़ना गुनना और जीवन की सहज दिनचर्या का हिस्सा है । लिखने के लिए अलग से कोशिश नहीं करते हैं। लिखना बस ऐसे कि सांस ले रहे हैं। आपकी प्रथम कृति ” कुछ हो जाते पेड़ सा” दिसंबर 2018 में प्रकाशित हुई। इसके बाद आई 2021 में “मुक्तिबोध कृत अंधेरे में पाठ और अर्थ की खोज” और 2023 में “चाय, जीवन और बातें ” प्रकाशित हुई। मधुमति पत्रिका का दो बार आवरण पृष्ठ आपका डिजाइन किया हुआ प्रकाशित हुआ। देश के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में आपके 100 लेख , 150 कविताएं और 200 चित्र व रेखांकन प्रकाशित हो चुके हैं। सुबह सवेरे भोपाल से प्रकाशित समाचार पत्र में स्तंभकार हैं। जनसत्ता , राजस्थान पत्रिका , नया ज्ञानोदय , अक्सर , एक और अंतरीप , बनास जन , मधुमती , दैनिक अंगद , राज पत्रिका , दैनिक प्रखर विकास, जनसंदेश टाइम्स प्रगतिशील बसुधा , वागर्थ , दस्तावेज , रचना समय , अक्षर पर्व आदि में समय – समय पर प्रकाशित आपकी रचनाओं से आप शिक्षा व सामाजिक सेवा से व्यक्तित्व निर्माण की दिशा में निरंतर पहल करते रहते हैं।

पर्यावरण पर “कुछ हो जाते पेड़ सा” कविता पर्यावरण पर सोचने के लिए कहती है ………
तुम एक पेड़ बन जाओ
पेड़ की तरह हो जाओ
छाया और आश्रय देना सीख जाओ
इतना ही कहते हैं पेड़
पेड़ आसपास से गुजरते आदमियों से
और कुछ नहीं कहते
पेड़ यहीं कहते हैं कि
कुछ पेड़ सा हो जाओ
बच जायेगी हरी भरी दुनिया
जिसमें तुम अकेले नहीं
सबके साथ खिलखिलाओगे।
बरस रही है धूप शीर्षक से लिखी आपकी एक कविता की बानगी में देखिए कवि हृदय की संवेदनाएं……………….
कितना मुश्किल है
इसे कहते सुनते नहीं
बस चलते चलते
महसूस किया जा सकता
आग की तरह ही बरस रही धूप
में कैसे राहत मिलेगी
यह सोचते ही कदम आगे बढ़ते हैं
यहां एक एक कदम भारी पड़ता जाता
और प्यास है कि बुझती ही नहीं
बस गला तर करते
और जरूरत भर का पानी बचाते
चलने की ज़िद ही आगे बढ़ाती है
नहीं तो गर्मी तो
बस यही कह रही है कि
यहां तो हम ही रहते हैं
कहां इस गर्मी में चले आए
और चलें ही आए हो तो
यहीं वरगद और नीम की छांव में
कुछ देर राहत और बातों के
किस्से दर किस्से का
जायका भी लेते चलें
इस छांव में खाट-बसहटा पर
सोते बैठते उमस भरी गर्मी पर
चर्चा करते करते
आज के समय की
हर करवट पर चल पड़ती चर्चा
इस तरह गर्मियां रचती रहती हैं
गांव शहर के बीच
जीवन की ज़िद और बहसें ।

आपके साहित्य पर कई संस्थाओं द्वारा आपको सम्मानित किया गया। नगर निगम द्वारा आपको करोना से बचाव जन -आंदोलन सम्मान, जिला स्तरीय उपभोक्ता जागरूकता सम्मान, भाषा एवं पुस्तकालय विभाग द्वारा दो बार सम्मान,श्री कर्मयोगी सेवा संस्थान कोटा द्वारा “श्री कर्मयोगी गौरव सम्मान शान- ए – हाड़ौती सम्मान, समरस श्री काव्य सिरोमणि सम्मान एवम् 5वां वीरेन्द्र नाथ सत्यार्थी पुरस्कार सम्मान से नवाजा गया है।

परिचय
सहज रूप से सृजनशील विवेक मिश्र का जन्म उत्तर प्रदेश के मऊ जिले के पहाड़ीपुर में पिता स्व.अत्रि मुनि मिश्र एवम् माता जयंती मिश्रा के आंगन में 1 जुलाई 1972 को हुआ। आपने प्रारंभिक शिक्षा गांव में के विद्यालय में ही प्राप्त की और उच्च शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्राप्त कर अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा मध्य प्रदेश से “समकालीन हिंदी आलोचना (विश्वनाथ त्रिपाठी और मैनेजर पांडेय ) के विशेष संदर्भ में” विषय पर पीएच. डी. की उपाधि प्राप्त की। वर्तमान में आप कोटा महाविद्यालय में हिंदी विषय के आचार्य के रूप में सेवा रात है। आप राष्ट्रीय सेवा योजना कोटा के 2018 से 30 नवम्बर 2022 तक जिला समन्वयक रहे हैं। सेवा और सामाजिक कार्य में आपकी अभिरूचि है। नियमित लेखन करते हैं।

संपर्क मोबाइल – 94145 95515
——
डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवम् पत्रकार, कोटा

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