Monday, December 23, 2024
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क्या राम मंदिर के फैसले को रोकने की कोशिश की गई थी, पूर्व मुख्य न्यायाधीश के सनसनीखेज खुलासे

राम मंदिर की सुनवाई के दौरान  सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश  रहे रंजन गोगोई ने अपनी आत्मकथा में राम मंदिर को लेकर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय को लेकर कई खुलासे किए हैं।

अयोध्या के राम मंदिर के उद्घाटन की घड़ी नज़दीक आ रही है। जैसा कि सर्वविदित है, 40 दिनों की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की पीठ ने 9 नवंबर, 2019 को फैसला सुनाया था और 2.77 एकड़ की जमीन को हिन्दुओं के नाम करने का आदेश दिया था। इस तरह से 450 वर्षों से चले आ रहे विवाद का पटाक्षेप हुए और हिन्दुओं के सदियों पुराने संघर्ष का अंत भी। उस समय रंजन गोगोई देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) हुआ करते थे, जिनकी अध्यक्षता में पीठ ने ये ऐतिहासिक फैसला सुनाया था।

उस समय उनके मन में क्या चल रहा था? सुप्रीम कोर्ट के भीतर क्या सब हो रहा था? रंजन गोगोई ने अपनी आत्मकथा ‘जस्टिस फॉर द जज‘ के 12वें अध्याय में अयोध्या जजमेंट को लेकर विस्तार से बात की है। उन्होंने इस अध्याय की शुरुआत में ही लिखा है कि आस्था और धर्म से जुड़ी चीजें विश्वास का विषय हैं, सबूतों के नहीं – लेकिन वो मानव समाजों को जोड़ते भी है। रंजन गोगोई लिखते हैं कि नेताओं के तमाम दावों के बावजूद समरूपता और एकता मायावी बनी हुई है, कई राष्ट्र धर्म से जुड़े सदियों पुराने विवादों में उलझे हुए हैं।

रंजन गोगोई ने इसी क्रम में अयोध्या वाले विवाद का जिक्र किया और लिखा कि मानव सभ्यताओं में कई बदलाव आए लेकिन ये विवाद बना रहा। उन्होंने बताया है कि इस विवाद का लाखों हिन्दू-मुस्लिमों पर असर है और सरकारों ने समय-समय पर अपने फैसलों से अनिश्चितता का माहौल बनाया। उन्होंने इस जजमेंट के पीछे चुनौतियों की बात की है और साथ ही बताया है कि कैसे ये फैसला दुनिया भर में विभिन्न समुदायों के बीच विवादों को सुलझाने के लिए प्रेरणा का काम करेगा और मानवता के लिए ये एक बड़ा योगदान है।

उन्होंने लिखा है कि विवाद में 2 पक्ष थे – हिन्दू पक्ष का दावा था कि भगवान श्रीराम का जन्म मंदिर के गर्भगृह में हुआ था और दूसरा पक्ष ये था कि बाबर ने बिना किसी मंदिर को ध्वस्त किए यहाँ मंदिर बनवाया। केंद्रीय शिखर के नीचे की भूमि 1500 स्क्वायर यार्ड्स थी, 1 एकड़ से भी कम। उन्होंने याद किया कि सन् 1856-57 में इसे लेकर दंगे हुए, दिसंबर 1949 में इसमें प्रतिमा स्थापित की गई और दिसंबर 1992 में कारसेवकों ने पूरे विवादित ढाँचे (उसे वो मस्जिद कहते थे) को ही ध्वस्त कर दिया।

1950 से 1989 के बीच दायर किए गए 4 सूट पर ये सुनवाई आधारित थी। 1989 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 33 जजों की पीठ को सुनवाई सौंप दी। 30 दिसंबर, 2010 को उच्च न्यायालय ने 4000 पन्नों का फैसला सुनाया। इस मामले में भी 3 अलग-अलग जजमेंट थे। फाइनल जजमेंट में जमीन को 3 हिस्सों में बाँट दिया गया था – निर्मोही अखाड़ा, रामलला विराजमान और मुस्लिम पक्ष। जस्टिस धर्मवीर शर्मा ने पूरी जमीन हिन्दुओं को सौंपने का फैसला सुनाया। जस्टिस सुधीर अग्रवाल ने सेन्ट्रल डोम के अलावा सभी पक्षों की हिस्सेदारी का फैसला सुनाया।

वहीं जस्टिस एसयू खान ने सेन्ट्रल डोम को हिन्दुओं को देकर बाकी सभी भूमि 3 पक्षों को बाँटने का फैसला सुनाया। इसके विरोध में सुप्रीम कोर्ट में 21 याचिकाएँ दायर की गईं, जिन्हें अयोध्या केस के रूप में जाना गया। 5 दिसंबर, 2017 को तत्कालीन CJI दीपक मिश्रा के सामने ये मामला आया लेकिन अधिवक्ता और तब कॉन्ग्रेस नेता रहे कपिल सिब्बल चाहते थे कि मामला 2019 लोकसभा चुनावों के बाद सुना जाए। मुस्लिम पक्ष के राजीव धवन चाहते थे कि एक बड़े संवैधानिक पीठ को फैसला दिया जाए।

रंजन गोगोई ने लिखा है कि दीपक मिश्रा इस केस को 2019 तक नहीं टालना चाहते थे, लेकिन अप्रैल-मई 2018 में महाभियोग वाला हंगामा खड़ा हो गया और कई लोग मानते हैं कि उन्हें अयोध्या केस की सुनवाई से रोकने के लिए ये सब किया गया था। ध्यान दें कि उस समय राफेल विमान डील और NCR के खिलाफ भी सुनवाई चल रही थी। रंजन गोगोई ने लिखा है कि उनके पूर्ववर्ती के दौर में ही अयोध्या केस की सुनवाई शुरू हो चुकी थी, उन्होंने बस इसे आगे बढ़ाया।

बता दें कि कॉन्ग्रेस समेत 7 विपक्षी दलों (सपा, बसपा, NCP, CPI, IUML/मुस्लिम लीग और JMM) ने जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग चलाने के लिए तत्कालीन उप-राष्ट्रपति एवं राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू के समक्ष 71 सांसदों का हस्ताक्षर पेश किया था। कपिल सिब्बल इसमें बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे थे। तब केंद्रीय मंत्री रहे अरुण जेटली ने बताया था कि कैसे महाभियोग की प्रक्रिया को एक राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।

जस्टिस रंजन गोगोई ने बताया है कि कैसे उस समय उनकी अनुमति के बिना ही इस केस को 4 जनवरी, 2019 को लिस्ट कर दिया गया था। CJI के रूप में रंजन गोगोई ने ही 5 जजों की पीठ को मामला सौंपने का निर्णय लिया था, जिसमें उनके अलावा SA बोबडे, NV रमना, UU ललित और DY चंद्रचूड़ शामिल थे। लेकिन, राजीव धवन ने UU ललित के नाम पर आपत्ति जता दी और कहा कि वो बतौर वकील कभी इससे जुड़े मामले से जुड़े रहे हैं, वहीं NV रमना ने भी इससे खुद को अलग कर लिया।

अतः, इन दोनों के स्थान पर जस्टिस अब्दुल नज़ीर और जस्टिस अशोक भूषण का नाम तय किया गया। उत्तर प्रदेश सरकार ने मौखिक सबूतों के अनुवाद 13,000 पन्नों में सौंपे। इसपर अनापत्ति के लिए भी दोनों पक्षों पर 2 महीने का समय दिया गया अध्ययन के लिए। इसके बाद समझौते के लिए एक समिति का गठन किया गया, जो असफल साबित हुई। अतः, 6 अगस्त, 2019 को सुबह साढ़े 10 बजे सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई शुरू कर दी।

जस्टिस रंजन गोगोई अपनी आत्मकथा में लिखते हैं कि सुनवाई जैसे-जैसे आगे बढ़ी, कोर्ट में भीड़ बढ़ती चली गई और कई वकील मौजूद रहते थे। शुरू में राजीव धवन ने अधिक समय की माँग की और जजों पर ही टिप्पणी करते हुए कह दिया कि चंद्रचूड़ के अलावा किसी ने सारे दस्तावजों का ठीक से अध्ययन नहीं किया है। ऐसे वाकये होते रहे और कई बार जजों ने जवाब भी दिया। सप्ताह में 5 दिन सुनवाई का निर्णय लिया गया। रंजन गोगोई का रिटायरमेंट नज़दीक आ रहा था, ऐसे में शाम 5 बजे तक सुनवाई चलती थी।

16 अक्टूबर तक ये सुनवाई चली। उन्होंने एक बड़े रोचक वाकये का जिक्र किया है। उस दौरान एक व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट की उस सुनवाई में घुसना चाहता था और इसके लिए उसने सेक्रेटरी जनरल के माध्यम से सन्देश भेजा। हालाँकि, उसके इरादे रंजन गोगोई को नेक नहीं लगे और उन्होंने किसी भी कीमत पर से एंट्री न देने को कहा। दोपहर 2 बजे उसने फिर अनुमति माँगी, लेकिन उसे 2 घंटे रुकने को कहा गया। रंजन गोगोई लिखते हैं कि अगर वो बीच में घुस गया होता तो सुनवाई स्थगित करनी पड़ती और नई तारीख़ देनी पड़ती।

अंततः उन्होंने कहा ‘अब बहुत हुआ’ और जजमेंट रिजर्व होने की घोषणा की। ये सुनवाई के अंतिम दिन की बात है। रंजन गोगोई का कहना है कि एक जज के रूप में उनके प्रशिक्षण का कमाल था कि उनका तनाव उनके काम में नहीं दिखता था, लेकिन उन्हें मामला 17 नवंबर को उनके रिटायरमेंट से पहले निपटाना था। कई बार वो ऐसी ही भावनाओं को लिए घर पहुँचते थे। वो अपने भीतर की उथल-पुथल को अपनी पत्नी से साझा करते थे, और ये बता सकते थे कि अदालत में एक शांत व्यक्ति के पीछे वो कितने परेशान चल रहे हैं।

एक दिन तो उन्होंने अदालत जाने से भी इनकार कर दिया, लेकिन पत्नी रुपांजलि ने उन्हें जाने के लिए कहा। वो उस समय 5, कृष्ण मेनन मार्ग में रहते थे। एक दिन और वो कोर्ट नहीं जा रहे थे, लेकिन पत्नी ने उन्हें फिर भेजा। उस दिन वो चैंबर में ही बैठे रहे, ऐसे में जस्टिस बोबडे ने उन्हें अस्वस्थ बता कर सुनवाई स्थगित कर दी। उन्होंने बताया कि अलग-अलग मामलों में एक्टिविस्ट्स और वकीलों की नकारात्मक टिप्पणियाँ आने लगीं, ताकि सुनवाई तेज़ी से आगे नहीं बढ़े।

कौन था जो सुनवाई को बाधित करना चाहता था? – रंजन गोगोई ने आत्मकथा में किया है जिक्र

रिटायर्ड जज और अब राज्यसभा सांसद रंजन गोगोई लिखते हैं कि पूरी सुनवाई के काल में वो 3-4 घंटे से ज़्यादा किसी दिन नहीं सो पाते थे। जस्टिस रंजन गोगोई लिखते हैं कि कैसे उनके साथी जज ही आपस में बातें करते थे कि वो क्यों पागलों की तरह इस मामले को निपटाना चाहते हैं। उन पर सुप्रीम कोर्ट की प्रतिष्ठा दाँव पर लगाने के आरोप लगाए गए। हालाँकि, उनका मानना है कि कोई दैवीय शक्ति थी जो उन्हें इस केस को खत्म करने के लिए प्रेरित कर रही थी।

3 महीने की उस सुनवाई के दौरान पीठ में शामिल किसी भी जज ने एक दिन की भी छुट्टी नहीं ली। किसी जज को बुखार या सर्दी तक नहीं हुई। एक जज ने उस दौरान एक रिश्तेदार के ICU में होने की बात बताते हुए कहा कि उसकी मृत्यु होने पर उन्हें कुछ दिनों की छुट्टी लेनी पड़ सकती है, लेकिन रंजन गोगोई ने आश्वासन दिया कि वो ठीक हो जाएँगे। हालाँकि, इसकी नौबत नहीं आई और शायद वो ठीक हो गए थे तभी ऐसा हुआ। सुनवाई के बाद पाँचों जज CJI के चैंबर में चाय पर मिलते थे।

इस दौरान केस की बहस को लेकर उनमें बात होती थी, लेकिन अंतिम दिनों में चर्चा होने लगी कि हिन्दू पक्ष को विवादित जमीन दे दी जानी चाहिए और मुस्लिमों को मस्जिद के लिए अलग से 5 एकड़ जमीन मिले। अयोध्या मामले में सिर्फ एक जजमेंट लिखा गया और किसने लिखा है ये भी नहीं सार्वजनिक किया गया। पाँचों जजों ने उस पर हस्ताक्षर किए। जस्टिस रंजन गोगोई चाहते थे कि ये एक ऐसा मामला था जिसमें जजमेंट एक मिनट के लिए भी लंबित नहीं रहना चाहिए।

फैसला सुनाए जाने के बाद कोर्ट नंबर एक में जजेज गैलरी में अशोक चक्र के नीचे फोटो सेशन का आयोजन किया गया। शाम को ताज मानसिंह होटल में रंजन गोगोई ने साथी जजों को जश्न मनाने के लिए बुलाया। वहाँ उन्होंने चायनीज भोजन किया और वाइन पिया। अगले दिन वो माँ और पत्नी के साथ सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रकाशित एक पुस्तक के विमोचन के लिए असम के डिब्रूगढ़ निकल गए। वापस दिल्ली लौट कर वो काम पर लौटे और फिर अपने रिटायरमेंट के अंतिम दिन तक काम पर रहे। उन्होंने इस केस को एक चुनौती के रूप में लिया और इसके लिए अपने विदेश दौरे तक रद्द किए।

जस्टिस रंजन गोगोई ने कश्मीर और अनुच्छेद-370 को निरस्त किए जाने के खिलाफ दायर याचिकाओं को समय नहीं दिया, क्योंकि वो अयोध्या केस को पूरा करना चाहते थे। रंजन गोगोई ने लिखा है कि उन्होंने चुनौती का सामना करने का फैसला किया और इस रास्ते में उन्हें व्यक्तिगत रूप से नकारात्मक टिप्पणियाँ कर निशाना बनाया जाना भी आड़े नहीं आया। आज जब राम मंदिर मूर्त रूप ले रहा है, हमें रंजन गोगोई को भी इस साहस के लिए धन्यवाद करना चाहिए।

साभार- https://hindi.opindia.com/ से

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