भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर से एक छात्र द्वारा आत्महत्या करने की खबर है. भीम सिंह नाम का यह छात्र फरीदाबाद का रहने वाला था और पीएचडी के तीसरे वर्ष की पढ़ाई कर रहा था. खबरों के मुताबिक छात्र ने अपने ही कमरे में पंखे से लटककर फांसी लगा ली. आत्महत्या की वजह साफ नहीं हो पाई है, लेकिन पुलिस को कमरे से कई टुकड़ों में फटी एक चिट्ठी मिली है जिसकी जांच की जा रही है.
बताया जा रहा है कि भीम सिंह को छात्रों ने बुधवार दिन भर कैंपस में नहीं देखा था. इसके बाद उसके कुछ साथियों ने उसके कमरे पर जाकर देखने का फैसला किया. काफी देर तक खटखटाने के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला तो छात्रों ने अधिकारियों को खबर दी. इसके बाद दरवाजा तोड़ा गया तो भीम सिंह का शव पंखे से लटकता मिला.
आईआईटी में छात्रों की आत्महत्याएं नियमित रूप से सुर्खियां बनने लगी हैं. बीते हफ्ते ही आईआईटी दिल्ली के एक छात्र ने अपने छात्रावास में पंखे से लटककर आत्महत्या कर ली थी. बीते साल भी ऐसी कई घटनाएं खबरों में आई थीं. अकेले आईआईटी खड़गपुर में तीन छात्रों ने अपनी जान ले ली थी.
कैंपसों में बढ़ती आत्महत्याओं के चलते आईआईटी प्रशासन ने कुछ समय पहले अपने यहां विशेष केंद्र खोलने का फैसला किया था ताकि तनाव से निपटने में छात्रों की मदद की जा सके. इस सिलसिले में हाल में आईआईटी काउंसिल की मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के साथ एक बैठक भी हुई थी. कई काउंसलिंग सेंटर पहले से चल भी रहे हैं.
आईआईटी जैसे संस्थान में एडमिशन शानदार भविष्य की गारंटी माना जाता है. तो फिर छात्र आत्महत्या क्यों कर रहे हैं? इसकी अलग-अलग वजहें बताई जाती हैं. मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि जबरदस्त होड़ के बाद आईआईटी में एडमिशन पाते ही छात्रों और उनके माता-पिता को पहले लगता है कि अब सब अच्छा ही अच्छा है. लेकिन ऐसा नहीं होता. कैंपस में भी जबर्दस्त प्रतिस्पर्धा का माहौल होता है.
अपने-अपने स्कूलों में टॉप रहे छात्रों को यहां आ कर झटका लगता है क्योंकि उनके साथ वाले तो सभी टॉपर ही रहते हैं. अब किसी न किसी को तो पिछड़ना तो होता ही है. कई छात्र सेमेस्टर में पिछड़ जाते हैं तो कई प्रोजेक्ट्स को समय पर पूरा करने में. ऐसे में होता यह है कि स्कूली जीवन में कभी किसी से न पिछड़े छात्रों पर एकदम से दबाव बढ़ जाता है. जानकारों के मुताबिक जो छात्र इस दबाव को झेल नहीं पाते उनके भीतर निराशा पनपने लगती है.
जानकारों के मुताबिक आत्महत्या की ज्यादातर घटनाएं आरक्षित कोटे के छात्रों के साथ होती हैं. कोटे के तहत दाखिला मिलने के बाद वे परिसर में पहुंच कर पढ़ाई का दबाव नहीं झेल पाते. आईआईटी में छात्रों का एक बड़ा हिस्सा गंवई पृष्ठभूमि से आता है. कैंपस के अंग्रेजीदां माहौल से वे तालमेल नहीं बिठा पाते. ऐसे में उनके आत्मविश्वास को ठेस पहुंचती है और वे खुद को कमतर समझने लगते हैं.
आईआईटी में पढ़ रहे बच्चे पर बेहतर प्रदर्शन के लिए घरवालों का भी दबाव रहता है ताकि उनको करोड़ों का पैकेज मिल सके. इन तमाम दबावों के चलते छात्र अवसाद यानी डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं और यही बीमारी धीरे-धीरे कइयों को आत्महत्या की तरफ ले जाती है.
साभार- https://satyagrah.scroll.in/ से