पिछले कई दशकों में किस प्रकार से केंद्र सरकारें जम्मू-कश्मीर से संबंध रखने वाले मसलों को संभालती रही हैं, इसपर कई प्रकार के प्रश्न इन कुछ दिनों में भारत के पूर्व रिसर्च एंड एनालिसिस विंग के प्रमुख एएस दुल्लत के वक्तव्यों ने लगा दिए हैं। जम्मू-कश्मीर की समस्याओं को जाति तौर पर लिया जाता रहा है न कि राज्य के हित में। इसलिए अगर जम्मू-कश्मीर के हालात को मोदी सरकार सुधारना चाहती है तो इस सरकार को हर स्तर पर अपने विचारकों और सलाहकारों को फिर से परखना होगा। कम से कम अब तो केंद्र और राज्य सरकार को राजनीतिक स्वार्थ और भाई भतीजावाद से ऊपर उठना होगा और इस राज्य की स्थिति को निष्कपट ढंग से लेना होगा।
अगर मुफ़्ती साहिब को लगता है कि भारत के जम्मू कश्मीर राज्य की कश्मीर घाटी में अातंकवाद और पाकिस्तान समर्थक तत्व अब बेअसर हो गए हैं तो पीडीपी-बीजेपी सरकार को कश्मीर घाटी के बाहर रह रहे कश्मीरी पंडितों की बापसी को अपना मुख्य मुद्दा बनाना चाहिए न कि टूरिस्टो को घाटी की खूबसूरती की और आकर्षित करने को .जरा सोचिये जब ११ जून को एक बीजेपी के मंत्री और एक शीर्ष नेता ने कहा था कि केन्द्र सरकार कुछ दिनों में जम्मू को भी एम्स दे देगी तो फिर निर्मल सिंह जी ने एक सप्ताह बीत जाने के बाद भी १८ जून को २ महीने का समय क्यों माँगा?
इस से निष्कर्ष निकलता है कि केंद्र के एक राज्य मंत्री और जम्मू कश्मीर के शीर्ष नेताओं ने भी एम्स पर झूठ बोला था. अब घाटी के कुछ लोग यह मांग कर रहे हैं की अगर जम्मू को केन्द्र एम्स देता है तो फिर घाटी को आईआईटी और आईआईम भी मिलना चाहिए. इस लिए अगर जम्मू कश्मीर का वातावरण १ मार्च के बाद भी नहीं सुधरा है तो इस के लिए बीजेपी भी सवालों के घेरे में आ सकती है.
क्षेत्रबाद और धार्मिक उन्माद पैदा करने बालों को आज भी इस प्रकार की बातों से सहारा मिल रहा है. कांग्रेस के सत्ता से बाहर जाने के बाद भी अगर केन्द्र की जम्मू कश्मीर बारे निति में कोई अंतर नहीं पड़ा दिख रहा है तो यह एक चिंता की बात होनी चाहिए.
जिस प्रकार के disclosures डुलत ने किए हैं उन से राष्ट्र हित और सुरक्षा में कम करने बाले सरकारी तंत्र पर भी प्रश्न लग गये हैं और अब तक ऊच स्तर का कोई कमीशन सरकार को ए एस डुलत द्वारा किए खुलासों पर बिठा देना चाहिए था पर क्यों ऐसा नहीं किया गया है इस का भारत के लोगों को सरकार से उतर मांगना चाहिए.
इसलिए अगर जम्मू-कश्मीर के हालात को मोदी सरकार सुधारना चाहती है तो इस सरकार को हर स्तर पर अपने विचारकों और सलाहकारों को फिर से परखना होगा। कम से कम अब तो केंद्र और राज्य सरकार को राजनीतिक स्वार्थ और भाई भतीजावाद से ऊपर उठना होगा और इस राज्य की स्थिति को निष्कपट ढंग से लेना होगा।
लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं और जम्मू कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ हैं