ब्रह्मांड में पाए जाने वाले सभी ग्रह मंडलों में पृथ्वी निश्चित रूप से अकेला ऐसा ग्रह है जिसपर प्राणियों का जीवन संभव हो सका है। ज़ाहिर है इसकी एकमात्र वजह यही है कि पृथ्वी पर प्राणियों की सबसे बड़ी ज़रूरत अर्थात् पानी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। एक अनुमान के अनुसार पृथ्वी पर तीन हिस्सा जल है जबकि एक हिस्से में खुश्क धरती अथवा आबादी या हरियाली एवं पर्वत,रेगिस्तान आदि हैं। परंतु बड़े दु:ख का विषय है जिस जल के बिना कोई भी प्राणी जीवन अथवा अपने अस्तित्व की कल्पना भी नहीं कर सकता वही प्राणी खासतौर पर स्वयं को सबसे बुद्धिमान समझने वाला प्राणी यानी इंसान जल का इस कद्र दुरुपयोग कर रहा है तथा इसे अपने हाथों से इतना ज़हरीला व प्रदूषित कर रहा है कि अब तो प्रकृति की ओर से प्राणियों को नि:शुल्क उपलब्ध कराया गया यही स्वच्छ जल बाज़ार में मंहगी दरों पर खरीद कर पिया जाने लगा है। पानी के साथ मनुष्य द्वारा किए जा रहे इस खिलवाड़ से पूरा विश्व चिंतित है।
इसके बावजूद कहीं विकास के नाम पर,कहीं औद्योगीकरण के नाम पर,कहीं अंधविश्वास के चलते,कहीं अज्ञानतवश,कहीं बढ़ते शहरीकरण के चलते तो कहीं फैशन या दिखावे की खातिर जल का दुरुपयोग व इसे प्रदूषित करने का सिलसिला लगातार जारी है। सोने पर सुहागा तो यह कि हमारे देश में गंगा नदी जैसी धार्मिक आस्था का केंद्र समझी जाने वाली पवित्र नदी को साफ-सुथरा रखने हेतु देश की विभिन्न सरकारों द्वारा गत् चार दशकों से लगातार तरह=तरह के ऐसे प्रयास किए जा रहे हैं जिससे गंगा जी धर्मशास्त्रों में बताई गई गंगा की ही तरह स्वच्छ,पवित्र,निर्मल व जीवन व मोक्षदायिनी समझा जा सके। वर्तमान सरकार ने भी गंगा सफाई हेतु 20 हज़ार करोड़ रुपये की धनराशि गंगा सफाई हेतु निर्धारित की है। परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि यह पूरी की पूरी राशि गंगा नदी के प्रदूषित व संक्रमित जल में ही प्रवाहित होकर रह जाएगी। क्योंकि गंगा नदी में प्रदूषण फैलाने वाले तथा इसके पवित्र जल को अपवित्र व संक्रमित करने वाले तथाकथित गंगा प्रेमी ही गंगा नदी को अपने तरीके से प्रयोग किए जाने को अपना पहला अधिकार समझते हैं।
पीने के पानी की बढ़ती कि़ल्लत ने आज देश में ऐसा वातावरण पैदा कर दिया है कि स्वच्छ पानी उपलब्ध कराने हेतु बाज़ार में लाखों करोड़ का व्यापार शुरु हो गया है। जहां मात्र चार दशक पूर्व तक अधिकांश देशवासी कुंए,तालाब व नदियों के पानी को पीकर स्वस्थ रहा करते थे वहीं अब भूगर्भ से निकलने वाला साफ-सुथरा पानी तथा सरकारी जलापूर्ति के माध्यम से पानी की टोंटियों में आने वाला स्वच्छ जल भी पीने के योग्य नहीं समझा जा रहा है। परिणामस्वरूप बाज़ार में जल संबंधी तरह-तरह के व्यापार होते देखे जा रहे हैं। नाना प्रकार के वाटर िफल्टर बाज़ार में बिक रहे हैं जो पीने का स्वच्छ पानी देने का दावा करते हैं। सैकड़ों कंपनियां बाज़ार में पीने योग्य बोतल बंद पानी उपलब्ध करा रही हैं। खुद भारत सरकार का रेल मंत्रालय रेल नीर ब्रांड के नाम से रेलवे स्टेशन पर जल बेचने का व्यवसाय कर रहा है। देश के प्रमुख रेलवे स्टेशंस पर मशीनों द्वारा िफल्टर किए हुए पीने योग्य पानी उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
सवाल यह है कि अचानक कुछ ही वर्षों में ऐसी नौबत क्यों आ पड़ी कि पीने का सामान्य जल अब पीने योग्य नहीं रहा? और स्वच्छ व प्रदूषणमुक्त जल के लिए िफल्टर किया हुआ पानी या बाज़ार में बिकने वाला बोतल बंद पानी ही आम इंसान की ज़रूरत बन गया? इस पूरी प्रक्रिया में एक बात और काबिलेगौर है कि अभी भी देश का निम्र मध्यम वर्ग तथा निम्र वर्ग व गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर करने वाले लोग पानी पर छाए इस प्रकार के संकट से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं। और जो लोग संपन्न लोगों के घरों में जल शोधन के यंत्र लगे हुए या बाज़ार में पानी की बंद बोतलें बिकते हुए देखते भी हैं वे आर्थिक रूप से इस स्थिति में नहीं होते कि अपने घर में िफल्टर लगा सकें अथवा स्वच्छ व िफल्टर किए हुए पानी की बोतल खरीद सकें लिहाज़ा ऐसे लोग आज भी सामान्य जल पर ही पूरी तरह आश्रित हैं।
दुर्भाग्यपूर्ण बात यह भी है कि यही निम्र मध्यम वर्ग तथा निम्र वर्ग जल के दुरुपयोग तथा जल को प्रदूषित करने का भी जि़म्मेदार है। उदाहरण के तौर पर जिस समय जलापूर्ति विभाग द्वारा शहरों में जल की आपूर्ति की जा रही होती है उस समय शहरों व कस्बों में अथवा जहां भी सरकारी ट्यूबवेल अथवा पानी की टंकी से जलापूर्ति की जा रहीे हो वहां ऐसी हज़ारों पानी की टोंटियां मिलेंगी जिनसे बेवजह पानी बह रहा होता है। और इस प्रकार पीने का साफ पानी नाली व नालों में जाकर साफ पानी की मात्रा को कम करता रहता है। यह सिलसिला लगभग पूरे देश में प्रतिदिन कई-कई घंटों तक चलता है। परंतु ऐसा लगता है कि जल को इस प्रकार बर्बाद करना आम लोगों की आदतों में शामिल हो चुका है। यदि कुछ जागरूक लोग इस प्रकार से बहते पानी को देखकर अपने हाथों से कुछ टोंंटियों को बंद भी कर देते हैं तो भी यह समस्या का स्थाई समाधान नहीं है। इसके लिए ज़रूरत है समाज को पूरी तरह से जागरूक करने की। उन्हें यह समझाना नितांत आवश्यक है कि जिस जल का वे बेतहाशा दुरुपयोग कर रहे हैं भविष्य में इसी जल की कमी से उत्पन्न होने वाला संकट उनके अपने बच्चों के जीवन में बड़ी परेशानियों का सबब बन सकता है। खासतौर पर उन गरीब परिवारों के लिए तो यह ज़्यादा ही बड़ी समस्या का रूप ले सकता है जो पानी खरीद कर पीने के विषय में तो सोच भी नहीं सकते। न ही अपने घरों में स्वच्छ व शोधित पानी हेतु किसी प्रकार का िफल्टर अथवा कोई अन्य प्रणाली लगा सकते हैं।
जल को प्रदूषित करने अथवा इसका दुरुपयोग करने हेतु यदि गरीब आदमी जि़म्मेदार है तो इसकी वजह उसकी अज्ञानता समझी जा सकती है। परंतु स्वयं को शिक्षित तथा संपन्न कहने वाले लोग भी जल के दुरुपयोग के लिए कम जि़म्मेदार नहीं। यह वर्ग कभी अपनी कारों व मोटरसाईकल अथवा स्कृटर आदि की अपने घरों में या बाज़ारों में धुलाई कराने पर प्रतिदिन करोड़ों गैलन पानी खर्च करता है। इनके घरों की लॉन अथवा मकानों की सफाई-धुलाई में बुरी तरह पानी खर्च किया जाता है। और यदि कुछ लोगों ने अपने घरों में जानवर अथवा गाय-भैंस पाल रखे हैं या डेरी संचालक हैं फिर तो इन स्थानों पर पानी की दुर्गति का आलम ही मत पूछिए। ऐसे परिवारों में कपड़े धोने व नहाने में भी पानी का बेदर्दी से इस्तेमाल होता है। उधर दूसरी ओर देश का कृषक समाज जिसके लिए पानी सबसे बड़ी ज़रूरत है वह भी पानी का अत्यधिक प्रयोग करता है। हमारे देश के कृषि क्षेत्रों में पानी का स्तर कई गुणा नीचे जा चुका है। जहां तीस-चालीस िफट की गहराई में सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध हो जाया करता था उन्हीें जगहों पर अब तीन सौ से लेकर चार सौ िफट की गहराई पर पानी मिलने लगा है। गोया जल संकट केवल पीने के लिए ही नहीं बल्कि सिंचाई को भी प्रभावित कर रहा है। और सोने पे सुहागा यह कि पृथ्वी पर जनसंख्या का बोझ लगातार बढ़ते जाने के कारण स्वच्छ पानी की मांग और आपूर्ति में एक अभूतपूर्व अंतर पैदा होता जा रहा है।
एक अध्ययन के अनुसार जल की मांग और आपूर्ति के मध्य होने वाले इस बड़े अंतर के कारण भारतवर्ष 2025 तक एक जल संकट वाला देश बन जाएगा। भारत में सिंचाई का लगभग 70 प्रतिशत तथा दैनिक उपयोग में आने वाले घरेलू जल की खपत का लगभग 80 प्रतिशत भाग भूमिगत जल से पूरा किया जाता है। और भूमिगत जल का स्तर बहुत तेज़ी से घटता जा रहा है। जल संकट के परिणामस्वरूप जहां देश का मध्यम,निम्र मध्यम व गरीब व्यक्ति बुरी तरह प्रभावित होगा वहीं विश्व की अनेक बड़ी कंपनियां इसे अपने लिए एक अवसर के रूप में भी देख रही हैं। स्वच्छ जलापूर्ति के क्षेत्र में अगले कुछ वर्षों में कनाडा,जर्मनी,अमेरिका,इटली,इज़राईल,चीन व बेल्जियम आदि देशों की कई कंपनियां घरेलू जल क्षेत्र में 13 अरब डॉलर का निवेश किए जाने के अवसर देख रही हैंं।
इस उद्योग को अगले तीन वर्षों में ही 18 हज़ार करोड़ रुपये प्राप्त होने की उम्मीद है। उपरोक्त आंकड़े स्वयं इस बात के पुख्ता सुबूत हैं कि स्वच्छ जल को लेकर पैदा होने वाली ऐसी परिस्थितियां जहां आम भारतवासियों के लिए संकट व चिंता का सबब बन सकती हैं वहीं इन हालात का फायदा जल उद्योग में लगी विदेशी कंपनियां उठाने जा रही हैं। गोया निकट भविष्य में नदियों के जिस पानी को हम प्रदूषित करते आ रहे हैं सरकारी जलापूर्ति के जिस जल का हम दुरुपयोग व अनादर करते आ रहे हैं निकट भविष्य में उन्हीं जल स्त्रोतों पर पहरा लगने की पूरी संभावना है। और वह दिन भी अब दूर नहीं जबकि प्रकृति की ओर से नि:शुल्क दी गई जीवन की सबसे ज़रूरी सौगात अब हमारी ही ‘कारगुज़ारियों’ की वजह से हमें नि:शुल्क मिलना तो बंद हो ही जाएगी बल्कि शायद कालांतर में पैसे खर्च करने के बावजूद भी हमें हमारी आज की ज़रूरत के अनुसार मयस्सर न हो सके। नि:संदेह ऐसे हालात के लिए हम खुद जि़म्मेदार हैं। क्योंकि शायद हम आज तक पानी की कीमत को समझ ही नहीं सके।
Nirmal Rani (Writer)
1618 Mahavir Nagar
Ambala City 134002
Haryana
phone-09729229728
जल का प्रदुषण रूकना चाहिये | हमारी नदियों के किनारों पर अतिक्रमण हटाये जाने चाहिये | नालों का गंदा पानी नदियों में नही मिले इसकी व्यवस्था अलग से की जानी चाहिये | जिन घरों में कुए या ट्यूब वेल हैं उनमे रीचार्जिंग अनिवार्य कर देना चाहिये | जल संकट के समय हमें दुसरों की जल आवश्यकता का भी ध्यान रखना चाहिये | कम से कम हमे पड़ोसियों की मदद अवश्य करना चाहिये यदि आपके यहाँ कुआ या ट्ूब वेल हो |
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