Friday, April 26, 2024
spot_img
Homeभारत गौरवएक मुठ्ठ चावल से बनी साढ़े तीन करोड़ की पूँजी

एक मुठ्ठ चावल से बनी साढ़े तीन करोड़ की पूँजी

सूझ-बूझ और संगठित प्रयास से गरीबी को मात देने वाली इन महिलाओं ने एक प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत किया है। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर क्षेत्र का यह बैंक नारी सशक्तीकरण को समर्पित एक शानदार प्रयास है। मेहनत-मजदूरी कर पेट पालने वाली कुछ महिलाओं ने छोटी बचत का जो सपना देखा था, वह तीन दशक बाद इस बैंक के रूप में सामने है। साढ़े तीन करोड़ की कुल पूंजी वाला बैंक। महिलाओं द्वारा संचालित, महिलाओं का बैंक। करीब दस हजार महिला खाताधारियों का बैंक। जो अब वंचित वर्ग की हजारों महिलाओं को स्वरोजगार मुहैया करा रहा है। सखी बैंक की शुरुआत एक मुट्ठी चावल से हुई थी।

पहले बना चावल बैंक: बिलासपुर जिले के मस्तूरी ब्लॉक के मस्तूरी, पाली, इटवा, वेदपरसदा, सरगवां, डोढ़की, कोहरौदा, पेंड्री, हिर्री समेत अन्य गांवों में महिला सशक्तीकरण की मानो बयार चल पड़ी है। नारी शक्ति संघ के बैनर तले गरीब और मध्यमवर्गीय परिवार की महिलाओं ने वह काम करके दिखाया है, जिसे अमलीजामा पहनाने में सरकारी एजेंसी को वर्षों लग जाते। इसकी शुरुआत 1986 में कुछ महिलाओं ने एक मुठ्ठी चावल की बचत करते हुए की थी। महिलाओं ने नारी शक्ति संघ नामक समूह बनाकर यह काम शुरू किया। समूह की प्रत्येक सदस्या को चावल एकत्रित करने के लिए मिट्टी की एक-एक हांडी दी गई।

उसे हर दिन एक मुट्ठी चावल इस हांडी में एकत्र करना था। महीने के अंत में जब हांडी भर जाए तो इसे समूह में जमा करा देना था। धीरे-धीरे चावल का ढेर लगने लगा। इस मुहिम ने चावल बैंक का रूप ले लिया। नारी शक्ति संघ के नाम से एक बैंक खाता खोल लिया गया था। चावल को बेचकर राशि खाते में जमा कर दी जाती। धीरे-धीरे 17 महिला समूह साथ जुड़ गए। हर समूह में करीब 25 महिलाओं को रखा गया था।

फिर बना सखी बैंक: इस बीच शराबी पति बाधा बनकर सामने आने लगे। हांडी में जमा चावल को महीने के आखिरी में बेचकर शराब पी जाते थे। महिलाओं द्वारा सवाल जवाब करने पर मारपीट करते। बचत को शराबी पतियों से बचाने के लिए चावल के बजाय 10 रुपये जमा करने की योजना बनाई गई। 1986 से शुरू हुई यह पहल 2002 में निर्णायक मोड़ पर आ खड़ी हुई। जमापूंजी का जब हिसाब लगाया गया तो तकरीबन 32 लाख रुपये नारी शक्ति संघ के खाते में जमा हो चुके थे। तब महिलाओं ने बैंक खोलने का निर्णय लिया। फरवरी 2003 में सहकारी संस्था के रूप में बैंक संचालन की इजाजत उन्हें मिल गई। इस तरह सखी बैंक अस्तित्व में आया। वर्तमान में इसकी जमा पूंजी साढ़े तीन करोड़ तक पहुंच गई है।

साभार-नईदुनिया से

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार