Friday, April 26, 2024
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कलम और बम-गोली के धनी अज्ञेय

०७ मार्च/जन्म-दिवस

प्रसिद्ध साहित्यकार सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन ‘अज्ञेय’ कलम के साथ ही बम और गोली के भी धनी थे। युवावस्था में उन्होंने भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, भगवतीचरण बोहरा, सुखदेव आदि के साथ काम किया था। क्रांतिकारी जीवन में एक बार रावी नदी में काफी ऊंचाई से छलांग लगाने से उनके घुटने की टोपी उतर गई, जिससे वे जीवन भर कष्ट भोगते रहे।

अज्ञेय का जन्म सात मार्च, १९११ को कसया (कुशीनगर, उ0प्र0) के एक उत्खनन शिविर में पुरातत्ववेत्ता श्री हीरानंद शास्त्री एवं श्रीमती कांतिदेवी के घर में हुआ था। बचपन में लोग उन्हें प्यार से ‘सच्चा’ कहते थे। उन्होंने ‘कुट्टिचातन’ उपनाम से ललित निबंध लिखे। प्रसिद्ध साहित्यकार श्री जैनेन्द्र एवं प्रेमचंद ने उन्हें ‘अज्ञेय’ नाम दिया, जो उनकी स्थायी पहचान बन गया।

अज्ञेय की औपचारिक एवं अनौपचारिक शिक्षा लखनऊ, श्रीनगर, जम्मू, मद्रास, लाहौर, नालंदा, पटना आदि स्थानों पर हुई। उन्होंने संस्कृत, फारसी, अंग्रेजी, बांग्ला आदि भाषाएं सीखीं। १९२१ में मां के साथ पंजाब यात्रा में जलियांवाला बाग के दर्शन से उनके मन में अंग्रेजों के प्रति विद्रोह की चिंगारी जल उठी। लाहौर में पढ़ते समय उनका संपर्क क्रांतिकारियों से हुआ और वे ‘हिन्दुस्तान रिपब्लिकन आर्मी’ के सदस्य बन गये।

१९३० में क्रांतिकारियों ने भगतसिंह को जेल से छुड़ाने की योजना बनाई। ऐसे में दल की योजनानुसार अज्ञेय ने दिल्ली में ‘हिमालयन खादलेंटीन’ नामक उद्योग स्थापित किया। इसकी आड़ में वे बम बनाते थे; पर बम-परीक्षण में भगवती चरण बोहरा की मृत्यु होने से यह योजना छोड़नी पड़ी। वे अमृतसर में भी बम बनाना चाहते थे; पर वहां वे कुछ अन्य साथियों के साथ पकड़े गये। उन सब पर ‘दिल्ली षड्यंत्र’ के नाम से मुकदमा चला।

पहले लाहौर और फिर दिल्ली जेल में यातनाएं भोगते हुए उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखीं। जेल के बाद उन्हें घर में ही नजरबंद रखा गया। इसके बाद उन्होंने लेखन और पत्रकारिता को आजीविका का साधन बनाया। इस दौरान वे किसान आंदोलन में भी सक्रिय हुए। उन्होंने अ१ल इंडिया रेडियो तथा १९४३ से ४६ तक सेना में नौकरी की और असम-बर्मा सीमा पर तैनात रहे।

अज्ञेय ने सैनिक, विशाल भारत, प्रतीक, दिनमान, नया प्रतीक, नवभारत टाइम्स, थ१ट, व१क, ऐवरी मेन्स वीकली आदि हिन्दी तथा अंग्रेजी पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन व प्रकाशन किया। अपनी शर्तों पर काम करने के कारण वे लम्बे समय तक किसी एक पत्र से बंधे नहीं रहे। १९७५ में आपातकाल, सेंसरशिप तथा इंदिरा गांधी की तानाशाही का उन्होंने विरोध किया।

घुमक्कड़ी उनके स्वभाव में थी। उन्होंने यूनेस्को की ओर से भारत भ्रमण किया। वे यूरोप, चीन, आस्ट्रेलिया, कैलिफोर्निया, हालैंड, जर्मनी तथा सोवियत संघ के देशों में भी गये। जापान में उन्होंने जैन तथा बौद्ध मत का अध्ययन तथा यूरोप में ‘पिएर द क्विर’ मठ में एकांतवास किया। वे भारत तथा विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों में अतिथि प्रवक्ता के नाते जाते रहते थे।

अज्ञेय ने हिन्दी एवं अंग्रेजी में कविता, उपन्यास, यात्रा वर्णन, डायरी, निबंध, नाटक, अनुवाद आदि की सौ से भी अधिक पुस्तकें लिखीं। साहित्य क्षेत्र के सभी बड़े पुरस्कार उन्हें मिले। उन्होंने ‘वत्सल निधि’ की स्थापना कर उसके द्वारा लेखन शिविर, हीरानंद शास्त्री एवं रायकृष्णदास व्याख्यान, जय जानकी यात्रा तथा भागवत भूमि यात्राओं का आयोजन किया। चार अप्रैल १९८७ को दिल्ली में उनका देहांत हुआ।

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