Saturday, April 27, 2024
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कविता का बाजारवाद की ओर बढ़ना चिंताजनक

दुनिया की खूबसूरती को बयां करने के लिए कविता से बेहतर कोई माध्यम नहीं है। प्राणवायु का कार्य करती कविता में सपनों का संसार बसता है। कवियों, श्रोताओं और पाठकों के लिए भूत भी कविता थी, वर्तमान भी वही है और भविष्य भी वही है। प्रथम बार संयुक्त राष्ट्र ने 21 मार्च 1999 को विश्व कविता दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी। मुख्य उद्धेश्य कविताओं का प्रचार- प्रसार करना और लेखकों एवं प्रकाशकों को प्रोत्साहित करना है। कविता प्रेमी और श्रोता होने के नाते सोचा चलो इस दिवस पर कुछ परिचर्चा की जाए। इसके लिए मोबाइल को ही माध्यम बना कर विचार जाने कि वे कविता के बारे में क्या सोचते हैं, कविता को केसे देखते हैं? मुझे खुशी है देश के कवियों, लेखकों, साहित्यकारों, पत्रकारों और श्रोताओं ने रुचि लेकर परिचर्चा को सार्थक बनाया।

अधिकांश प्रतिभागियों का विचार था कि कविता दिल की भावनाओं का दर्पण होती है। साहित्यकार अनुज कुमार कुच्छल के कहा कविता का संबंध दिल की भावना से होता है और कविता का उदय दिल से होता है जब की विचार की उपज मस्तिष्क से होती है। जीवन के हर रस चाहे वह प्रकृति हो नारी श्रृंगार, सौंदर्य बोध, प्रेम, विरह, धर्म, आध्यात्म कविता की मणिमाला में पिरोया मिलता है।

गुरुग्राम से साहित्यकार अजय कुमार सिंहल ने कविता के बारे में अपनी सोच को बहुत ही सुंदरता के साथ कव्यमय रूप में यूं बताया “कविता मैं ऐसी बनूं करूं देश का गान। जिसके भी कानों पड़ूं भर दें उसमें प्राण।। भर दें उसमें प्राण गाये वो भगवद्गीता। हो वैभव संपन्न रहे ना उसका घट रीता।‌। कहे कलम सिंहल की लिखे जो देश की बात। धन्य है उसकी कविता और ऊंचा उसका माथ।।”

पंचकुला से मृदुला अग्रवाल का कहना है कि कविता लिखने वाले के दिल की भावना का प्रतिबिंब होता है और श्रोता अपनी रुचि के अनुसार ग्रहण कर आनंदित होता है। नो रस से भी बढ़ कर है कविता का आसमान जो खुशी, दर्द, व्याकुलता का अहसास कराती है।

साहित्यकार जितेन्द्र निर्मोही कविता को अपने समय का दस्तावेज,सभ्यता, संस्कृति और व्यापक फलक मानते है। कविता समय के संक्रमण को प्रदर्शित ही नहीं करती वरन् उसका निदान भी निकालती है। कविता का मिजाज मौसमी होता है वो कंपकंपाती भी है, सिहरन भी देती है,लू के प्रचंड थपेड़े भी और सावन की फुहार भी, कविता ज्वार भी है भाटा भी।

अपने विचार व्यक्त कर अम्बिका दत्त कहते हैं कि कविता जीवन की करुणा की विगलित धारा, कामनाओं का कानन और प्रतिरोध की दहकती ज्वाला है। कविता आनंद का अक्षय कोष और मुक्ति के महा संग्राम का महान जयघोष है।
कविता पर विचार रखते हुए भीलवाड़ा की शिखा अग्रवाल कहती हैं मन के उद्गारों को शब्दों की माला में पिरोकर पेश करने का एक सर्वश्रेष्ठ मंच है – कविता लेखन। हर्ष, प्रेम, शोक, विषाद, विरह, बैचेनी, शांति, रिश्ते-नाते की लहरों का एक समंदर कविता है। पाठकों के अंतर्मन को अंदर तक झकझोर कर रखने की ताकत है कविता।

डॉ. अतुल चतुर्वेदी कहते हैं मेरे विचार में कविता का स्थान वहाँ हैं जहां हमारी संवेदनाएँ सुप्त होती हैं, कविता उन संवेदनाओं को शब्द और भाव देने का काम करती है। कविता पढ़कर हमारा चित्त और भी उदात्त और मनोविकार रहित होता है, मानवीयता का विस्तार होता है। जन जागरण और चेतना विस्तार के साथ कविता अपने समय के सच को सामने रखती है पूरे विवेक के साथ।

शायरा: शमा “फ़िरोज़ का कहना है कविता छंद में लिखी जाए या मुक्त छंद में उसकी सार्थकता तब ही है जब वह संवेदना से जुड़े और बेहतर समाज की दिशा में अग्रसर करे। कथ्य प्रभावी और अर्थ की लयवत्ता हो तो कविता मन को भाती है।

अपने विचार व्यक्त कर हलीम आइना कहते हैं मेरी दृष्टि में कविता ईश्वर प्रदत्त अति संवेदनशील मन स्थिती से उपजती है जो दिल की आवाज़ बन कर दूसरों के दिलों में उतर जाती है। विश्व में शान्ति, प्रेम, सद्भाव, समता, भाईचारा कायम करने की सीख दे कर विश्व समुदाय को जोड़ती है और मूल में समाज सुधार का भाव निहित रहता है। फिरोज़ अहमद ‘फिरोज़’ का कहना है कि कविता से हर्ष, उल्लास, उमंग और पीड़ा, पश्चाताप जैसे भाव श्रोता तक सीधे पहुंचते हैं। मनुष्य की भावना को उद्वेलित करती है कविता।

कविता के बारे में अपने विचार रखते हुए डॉ.कृष्णा कुमारी कहती हैं कविता सब से खूबसूरत, अद्भुत विधा है, इसे लिखने, पढने और सुनने में परम आनंद का आस्वाद मिलता है और लोकमंगल भी होता है। लयात्मकता होने से लोक में सहजता से परिव्याप्त हो जाती है। डॉ. नन्द किशोर महावर कहते हैं कि कविता टूटते- दरकते रिश्तों के लिए कविता प्राण वायु है। काव्य व्यक्तिक न होकर समष्टिपरक हो कर हमें समूचे विश्व को एक परिवार के रूप में देखने की दृष्टि प्रदान करता है। राजबाला शर्मा ‘दीप’ की सोच है कि दिनकर बन अन्तस की निष्चेष्ट चेतना को चेतन करने वाली आज की कविता व्यवसायिकता की अंधी दौड़ में शामिल होकर बाजारवाद की ओर बढ़ रही है जो चिंता और चिंतन का विषय है।

जयपुर की उर्मिला वर्मा का कहना है कि कविता मन को पुलकित, प्रमुदित, प्रमत्त करने वाला अमृत घट है जैसे। मानस- पटल पर हर्ष -स्फुरणा दौड़ाने वाली विधा है कविता। चितेरे मन की भावप्रवणता और साहित्य की सुषमा- श्री, साहित्य का अलंकरण है काव्य। कोटा के पत्रकार के.डी. अब्बासी का कहना है कविता सच को आईना दिखाती है, कविता के माध्यम से आसानी से लोगों को समझा जा सकता है, कविताएं मन को भाती है और अलख जगाने का प्रबल माध्यम है।

झालावाड़ की कवयित्री ममता महक कहती है, कविता भावों का शब्दायन है। यह ध्वनि के विमान पर सवार हो मस्तिष्क के गलियारों से होती हृदय के अपरिमापी आकाश में विचरण करती है। यह अतृप्त मन की पपड़ाई धरती पर मेघ बन बरसती है। झालावाड़ की ही प्रीतिमा पुलक का कहना है कि कविता साधारणतया मनुज के भावों का काव्यात्मक उद्गार है जो मनोरंजन के साथ – साथ सामाजिक चेतना ,संस्कार, जन जाग्रति और जनआंदोलन में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है ।

लेखक राम मोहन कौशिक की नजर में कविता के माध्यम से कवि अपने दिल की भावनाओं को शब्दों की माला में पिरो कर देश व समाज को एकता के सूत्र में बांधने में बड़ी भूमिका निभाता है। के.के.शर्मा का कहना है कि कविता का ही प्रभाव है जिसने इतिहास बदलने में जागृति का काम किया।

जयपुर की कुशाग्र वर्मा की इस काव्य रचना के साथ परिचर्चा को समाप्ति के दौर में ले जाते हैं..
काव्य सृजन किया ,
तो मानो खुद को पा लिया।
हर एक पंक्ति में,
खुद को झलका दिया।
ये भावों का समुद्र है,
हर कविता जैसे आती हुई लहरें हैं।
जिज्ञासु मन का,
महाकुंभ है काव्य संग्रह।
तट पर खोजती,
खुद को मैं।
सन्नाटा का कोलाहल,
जैसे एक कवि का मरुस्थल।

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