Friday, April 26, 2024
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पूजा-अर्चना से कुछ मिलता नहीं, छूट जाता हैः सुभाष चन्द्रा

मुंबई। लोग प्रायः ये कहते हैं कि पूजा-अर्चना से क्या मिलता है, जब इससे कुछ मिलता ही नहीं तो करते ही क्यों हैं। लेकिन मेरा कहना है कि पूजा-अर्चना से मिलता भले ही कुछ न हो मगर इससे हमारी वासना और क्रोध जैसी आदतें छूट जाती है।

 

इन शब्दों के साथ ज़ी नेटवर्क व एस्सेल समूह के अध्यक्ष एवँ राज्य सभा सांसद श्री सुभाष चन्द्रा ने मुंबई में आयोजित वैचारिक कुंभ में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि कुंभ के लेकर दुनियाभर में नकारात्मक खबरें फैलाई जाती है। हमारे ऋषि मुनियों ने कुंभ जैसे आयोजन की जो कल्पना की थी उसका मकसद था देश की सभी संस्कृतियों, विचारों, मूल्यों और जीवन शैली को एक साथ लाना। लेकिन कुंभ को लेकर नागा साधुओं की ही तस्वीरें प्रसारित होती है। हम इस वैचारिक कुंभ के माध्यम से मुंबई सहित देश के सभी लोगों से आव्हान कर रहे हैं कि वे प्रयागराज में होने वाले महाकुंभ के लिए अपने परिवार के साथ ही पाँच और परिवारों को लेकर जाएँ। कुंभ केवल साधुओं का का नहीं बल्कि हम सबका है। इस महाकुंभ में इस बार कई संस्कृतियों का संगम होगा, सांस्कृतिक कार्यक्रमों लोक कलाओं के माध्यम से देश विदेश के लोगों को भारतीय परंपराओं से परिचित कराया जाएगा। कुंभ यात्रियों की सुविधा के लिए पाँच सितारा टेंट से लेकर हर तरह की सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाएगी।

 

प्रयागराज में वर्ष 2019 में होने वाले महाकुंभ को लेकर वैचारिक कुंभ का आयोजन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की संस्था संस्कार भारती द्वारा मुंबई में किया गया था। मुंबई के विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिनिधियों को कुंभ की परंपरा, कुंभ के महत्व और कुंभ के वैचारिक विमर्श से जोड़ने के लिए संस्कृति कुंभ का आयोजन किया गया।

 

इस वैचारिक कुंभ में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर कार्यवाह श्री भैयाजी जोशी, उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी, महाराष्ट्र के मुख्य मंत्री श्री देवेन्द्र फड़णवीस, ज़ी नेटवर्क व एस्सेल समूह के अध्यक्ष एवँ राज्य सभा सांसद श्री सुभाष चन्द्रा जी व फिल्म निर्माता सुभाष घई उपस्थित थे।

 

इस अवसर पर उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी श्री आदित्यनाथ जी ने अपने धाराप्रवाह वक्तव्य में साफ़गोई से अपनी बात कहकर उपस्थित श्रोताओँ का दिल जीत लिया। उन्होंने कहा कि मैं शुरु से ही मुंबई आने से परहेज करता रहा। बचपन से ही संघ से जुड़ा था तो मुजे लगता था कि ये संत समाज देश के लिए कुछ नहीं करते, बस खाते पीते रहते हैं। हरिद्वार में पहली बार मेरी मुलाकात विश्व हिंदू परिषद द्वारा आयोजित धर्म संसद के कार्यक्रम में मेरे पूज्य गुरूजी महंत अवैद्यनाथ जी से हुई थी, उस समय में कॉलेज में पढ़ता था। उन्होंने मुझसे पूछा क्या करते हो और आगे क्या करने का इरादा है। मैने कहा मैं समाज के लिए कुछ काम करना चाहता हूँ। इस पर उन्होंने कहा अगर ऐसी इच्छा है तो मेरे पास आओ। उस समय गुरूजी राम जन्म भूमि अभियान के प्रमुख थे, मैने उनसे पूछा राम जन्म भूमि अभियान कहाँ पहुँचेगा, इसमें सफलता मिलेगी। इस पर उन्होंने कहा कि मनुष्य अगर ठान ले तो कुछ भी संभव है।

 

मैने उन्हें बताया कि मेरी योग में रुचि है। इस पर उन्होंने मुझे गोरखपुर बुलाया और कहा कि तुम मेरे शिष्य बन जाओ। लेकिन मैं वहाँ से भाग आया। एक साल बाद मैने फिर वहाँ जाने की सोची, लेकिन नहीं जा पाया। 1993 में मुरादाबाद में विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में गुरूजी बीमार हो गए तो उन्हें दिल्ली के एम्स में भर्ती कराया गया। मैं वहाँ उनसे मिलने गया तो उन्होंने मुझे फिर से अपना शिष्य बनाने का संकल्प दोहराया। मैने उनसे कहा कि आप ठीक हो जाओगे तो मैं वहाँ आउंगा। गोरखपुर पहुँचने पर गुरूजी ने मुझसे कहा कि मुझे पता है कि तुम्हारे मन में क्या चल रहा है। मुझे उन्होंने वहाँ रखकर कहा कि एक सप्ताह तक योग करो और हमारे काम देखो कि हम समाज सेवा के क्षेत्र में कितने काम कर रहे हैं। फिर मुझसे बात करना। इस पर मुझे लगा कि हमारी आँखों से हम जो देखते हैं ये संसार उससे भी बड़ा है। जीवन की सार्थकता समाज को कुछ देने में है।

 

 

 

मुंबई की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि आज आप लोगों के बीच आकर जाना कि मुंबई मात्र माया नगरी नहीं है। मैं 2015 के नासिक के कुंभ में भी आया था, वहाँ कुछ लोग कुंभ को लेकर नकारत्मक प्रचार कर रहे थे। इस पर मैने उनसे पूछा मुझे ये बताओ कि यहाँ हजारों लाखों लोग आए हैं, इसमें से यहाँ किसी ने किसी की जाति पूछी या सका धर्म पूछा। यहाँ सब लोग मजे से एक दूसरे से मिल रहे हैं, पवित्र गोदावरी नदी में डुबकी लगा रहे हैं।

योगी आदित्यनाथ जी ने कहा कि हमारी संस्कृति, हमारा समाज एक दूसरे के प्रति सम्मान का भाव रखता है। महंत अवैद्यनाथ जी शैव परंपरा के थे, लेकिन राम जन्म भूमि आंदोलन जिस वैष्णव समाज के नेतृत्व में लड़ा जा रहा था उसके सभी प्रमुख संतों ने एकमत से महंतजी को अपना अध्यक्ष बनाया।

 

योगीजी ने कहा कि हमारे देश के गाँव-गाँव में सैकड़ों वर्षों से रामलीला का मंचन हो रहा है। रामलीलाओं ने देश को एक सूत्र में बाँधने में प्रमुख भूमिका निभाई है। देश पर जब भी विदेशी आक्रांताओं के हमले हुए हमारे संतों ने, धर्माचार्यों ने देश को जोड़ने का मंत्र दिया।

 

योगी आदित्यनाथ जी ने कहा कि इस बार हम कुंभ का दायरा और वियापाक कर रहे हैं, इसका क्षेत्र 5 हजार एकड़ से बढ़ाकर दस हजार एकड़ क्षेत्र में कर रहे हैं। भारत में स्थित 192 दूतावासों को भी कुंभ मेले का आमंत्रण दिया जा रहा है और इनके माध्यम से इन देशों के नागरिको को भी आमंत्रित किया जा रहा है। देश भर में मुंबई के बाद अयोध्या, काशी, मथुरा और आगरा में पाँच वैचारिक कुंभों के माध्यम से लोगों को इससे जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। कुंभ का काम सबको जोड़ना है। इस बार हम कुंभ की व्यवस्था ऐसी करने जा रहे हैं कि इसे आप जीवन भर अपनी स्मृति में रखेंगे। योगी जी ने प्रयागराज के आसपास के तीर्थों का उल्लेख करते हुए बताया कि कुंभ के साथ आप इन तीर्थों का पुण्य प्राप्त कर सकेंगे।

 

योगी आदित्यनाथ जी ने कहा कि कुंभ के स्नान की तिथियाँ हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों की वो वैज्ञानिक खोज है जिसमें उन्होंने ये पता लगाया कि कुछ खास ग्रहों का विशिष्ट संयोग कैसे गंगा के जल में ऊर्जा का संचार करता है और एक सामान्य व्यक्ति भी यहाँ डुबकी लगाकर उसका लाभ ले सकता है।

 

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर कार्यवाह श्री भैयाजी जोशी ने कहा कि भारत के राजनीतिक इतिहास में हमने कई राजाओं को योगी के रूप में देखा, और ये स्वतंत्र भारत में पहली बार है कि एक योगी राजा बना है। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति संकीर्णता की संस्कृति नहीं है। आततायियों ने हमारे हजारों मंदिर तोड़े मगर हमारे धर्म को नष्ट नहीं कर पाए, क्योंकि हम आस्थावान लोग हैं। हमारी आस्थाएँ इतनी कमजोर नहीं कि मंदिर टूटने से नष्ट हो जाए। कुंभ भी हमारी आस्था का प्रतीक है जहाँ करोड़ों लोग बगैर किसी निमंत्रण के आते हैं। उन्होंने संत ज्ञानेश्वर के पयासदान की चर्चा करते हुए कहा कि उन्होंने परमात्मा से दुष्ट की दुष्टता को खत्म करने की प्रार्थना की है, दुष्ट को दंड देने या नष्ट करने की नही, इस एक प्रार्थना में पूरे भारत की अभिव्यक्ति है।

 

इस अवसर पर महाराष्ट्र के मुख्य मंत्री श्री देवेंद्र फड़णवीस ने कहा कि महाराष्ट्र में नासिक में कुंभ होता है। इस बार नासिक में हुए कुंभ में हमने बिछुड़े हुए लोगों को उनके परिवारों से मिलाने का प्रयास किया और यही कुंभ की सार्थकता भी है कि इसके माध्यम से लोग एक दूसरे से मिलें। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति की बुनियाद कुंभ जैसे आयोजनों की वजह से इतनी सुदृढ़ है कि यह नदी के बहते पानी की तरह नित नूतन भी है और पुरातन भी। हमने कभी हथियारों से किसी को जीतने की कोशिश नहीं की, हमने संस्कारों से दुनिया को जीता है।

 

 

इस अवसर पर फिल्म निर्माता-निर्देशक श्री सुभाष घई ने कहा कि मुंबई जैसे शहर में कुंभ की चर्चा ही रोमांच पैदा करती है। यह कलाकारों की नगरी है जहाँ हर विधा के कलाकार आकर अपनी प्रतिभा दिखाते हैं। कलाकार बनने के लिए सृष्टि के रहस्यों को जानना पड़ता है। कुंभ सृष्टि के रहस्यों को जानने का अवसर देता है।

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कार्यक्रम में वैचारिक कुंभ को लेकर बनाई गए वृत्त चित्र भी दिखाए गए। सुभाष घई की विसलिंग वुड्स द्वारा भी कुंभ को लेकर बनाया गया वृत्त चित्र प्रदर्शित किया गया। गीतकार प्रसून जोशी द्वारा बच्चों को कुंभ का महत्व समझाने के लिए बनाया गया वृत्त चित्र भी प्रदर्शित किया गया।

 

अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलित किए जाने के बाद कार्यक्रम का शुभारंभ वैदिक श्लोकों के पाठन से हुआ। इस अवसर पर श्री शेखर सेन द्वारा लिखित गीत को जाने माने भोजपुरी गायक व सांसद श्री मनोज तिवारी ने प्रस्तुत किया। श्रीमती पद्मजा ने वंदे मातरम की जोशपूर्ण प्रस्तुति कर उपस्थित श्रोताओं को रोमांचित कर दिया।

 

इस अवसर पर महाकुंभ को लेकर प्रकाशित स्मारिका संस्कृति कुंभ व महाकुंभ एवँ संगम स्नान एक वैज्ञानिक विवेचन पुस्तक का विमोचन भी सर्वश्री भैयजी जोशी, श्री योगी आदित्यनाथ जी, देवेंद्र फड़णवीस एवँ सुभाष घई ने किया।

कार्यक्रम का खास आकर्षण रहे कैलाश खेर, सोनू निगम और सुखविंदर द्वारा प्रस्तुत गीत, श्री मनोज तिवारी के आग्रह पर तीनों ने अपने गीतों से श्रोताओं की वाववाही लूटी और जोश भर दिया।

संस्कार भारती के अखिल भारतीय सह संगठन मंत्री श्री अमीरचंदजी, श्री शेखर सेन, संगीतकार अजय-अतुल, मीका सिंह, वामन केंद्रे, अशोक पंडित, दीपक तिजोरी, भारत डाभोलकर, भोजपुरी गायक पवन सिंह, अभिनेता गजेंद्र सिंह, निर्माता-निर्देशक धीरज कुमार, लेखक कमलेश पांडे, प्रसून जोशी, गीतकार समीर अंजान आदि को कुंभ का प्रतीक चिन्ह भेंट कर उनका सम्मान किया गया।

कार्यक्रम का आयोजन इस्कॉन के जुहू स्थित सभागृह में किया गया था और इसके सफल आयोजन में इस्कॉन की ओर से श्री सूरदास जी, विष्णुदास जी और कृष्णदास जी का भी भरपूर सहयोग रहा।

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