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हिन्दी कवि सम्मेलन के सौ सालः कविता से शुरु होकर वाट्सप के चुटकुलों में सिमट गया
हर दिन त्योहार, हर दिन पर्वों के आनंद का उल्लास, पर्वों की परम्परा में आनंद की खोज और उसी खोज से अर्जित सुख में भारत भारती की आराधना करते हुए प्रसन्न रहने का भाव इस राष्ट्र को सांस्कृतिक समन्वयक के साथ-साथ उत्सवधर्मी भी बनाता है।
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शहरी नक्सलियों का मकड़जाल
यही कैडर शहरी नक्सली है। इनके मुख्य काम हैं अपने हथियारबंद साथियों को पैसा एवं संदेश पहुंचाना, शहरों में उनके लिए सुरक्षित ठिकाने तैयार करना और गिरफ्तार नक्सलियों को मानवाधिकार और कानून की दुहाई देकर बचाना।
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सदाचार बनाम समलेंगिकता
अधिकतर धार्मिक संगठन धारा 377 के हटाने के विरोध में हैं। उनका कहना है कि यह करोड़ो भारतीयों का जो नैतिकता में विश्वास रखते हैं उनकी भावनाओं का आदर हैं। आईये समलेंगिकता को प्रोत्साहन देना क्यों गलत है इस विषयकी तार्किक विवेचना करें।
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वृद्धजनों को मान-सम्मान दें
देश में वृद्धजनों की एक बड़ी संख्या है। राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार देश की कुल जनसंख्या में वृद्धजनों की भागीदारी वर्ष 2011 में लगभग 9 प्रतिशत थी।
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कश्मीर का काला दिन : सचवंत सिंह का दर्द
80 साल के सरदार सचवंत सिंह 73 साल पहले की कबाइलियों की आड़ में पाकिस्तानी सेना की उस दरिंदगी और अत्याचार को याद करते हुए कहते हैं कि मैंने झेलम में पानी नहीं, खून का दरिया देखा है। मेरी मां, मेरी बहन कबाइलियों के हमले में शहीद हो गईं।
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यूरेशिया है भारत की सीमा :
यह जो भरतखंड है या कुमारिका खंड है अथवा कुमारी अंतरीप है, वह भारतवर्ष का एक भाग है । उसकी सीमा भी दक्षिणी विशाल हिंदू महासागर से संपूर्ण हिमालय क्षेत्र है अर्थात उत्तर कुरू तक यानी चीन रूस साइबेरिया तक।
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जीवन मूल्यों, सांस्कृतिक परिवेश और मानवीय सन्दर्भों के सशक्त रचनाकार डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
रचनाकार अपने परिवेश और संस्कार के साथ अर्जित अनुभवों से सृजन सन्दर्भों को विकसित ही नहीं करता वरन् उसे संरक्षित भी करता है। यह भाव और स्वभाव ही एक रचनाकार के सामाजिक सरिकारों को परिलक्षित करता है।
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भगत सिंह के क्रांतिकारी विचारों के प्रेरणास्रोत्- सरदार अर्जुन सिंह
सरदार अर्जुन ने अपने ग्राम बंगा जिला लायलपुर (पाकिस्तान) में गुरूद्वारे को बनाने में तो सहयोग किया और वे गुरुद्वारा में तो जाते थे पर कभी गुरु ग्रन्थ साहिब के आगे माथा नहीं टेकते थे.
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अख़बारों से लुप्त होता साहित्य
हिन्दुस्तान में संस्कृत के साथ हिन्दी और स्थानीय भाषाओं का भी बेहतरीन साहित्य मौजूद है। एक ज़माने में साहित्यकारों की रचनाएं अख़बारों में ख़ूब प्रकाशित हुआ करती थीं। कई प्रसिद्ध साहित्यकार अख़बारों से सीधे रूप से जु़डे हुए थे।