वैसे तो हमारे देश में प्रतिभावान लोगों की कोई कमी नहीं है। एक से बढक़र एक कलाकार,रंगकर्मी,मूर्तिकार,शिल्पकार,चित्रकार तथा इससे संबंधित अन्य विधाओं से संबध रखने वाले अनेक लोग मिल सकते हैं। परंतु बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जिनमें कई प्रकार की कलाएं एक साथ विद्यमान हों। ऐसी ही एक बहुमुखी प्रतिभावान शिख्सयत का नाम है राणा तेजिंद्र सिंह चौहान। भारतवर्ष में बराड़ा,अंबाला निवासी तेजिंद्र चौहान के अतिरिक्त कोई भी दूसरा व्यक्ति ऐसा नहीं है जिसे उसकी किसी कारगुज़ारी की बदौलत पांच बार लिम्का रिकॉर्ड हासिल हुआ हो और देश व दुनिया के दूसरे कई कीर्तिमान संकलन में उसके नाम प्रकाशित हुए हों। यह वही तेजिंद्र सिंह चौहान हैं जो गत् दस वर्षों से विश्व के सबसे ऊंचे रावण के पुतले के निर्माण के लिए पूरे विश्व में जाने जाते हैं तथा उनकी इसी विशाल कलाकृति के लिए उन्हें लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में पांच बार महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ है। तेजिंद्र चौहान रावण के 210 फुट ऊंचे पुतले को शरीर के विभिन्न अंगों के प्राकृतिक अनुपात के अनुसार न केवल उसे विशाल रूप देते हैं बल्कि अपने ही हाथों से उसके ढाई क्विंटल वज़नी फाईबर के चेहरे को भी प्रत्येक वर्ष नया रूप दिया करते हैं।
रावण का विशाल पुतला केवल निर्माण की प्रक्रिया से ही नहीं गुज़रता बल्कि इसमें आतिशबाज़ी तथा रिमोट कंट्रोल व विद्युत सर्किट की भी एक अहम भूमिका होती है। रावण के पुतले से लगभग तीन सौ मीटर की दूरी से इस विशाल पुतले को रिमोट कंट्रोल से दहन किया जाता है तथा इसमें बड़े ही तकनीकी तरीके से आतिशबाजि़यों की िफटिंग की जाती है। उदाहरण के तौर पर रिमोट कंट्रोल का एक बटन दबाने से रावण के पुतले का एक बाज़ू धमाके के साथ नष्ट होता है तो दूसरा बटन दबाने से दूसरा बाज़ू ध्वस्त हो जाता है। इसी प्रकार अलग-अलग रिमोट बटन से रावण के पुतले के सिर व छाती तथा मुकुट आदि ध्वस्त होते हैं। और सबसे अंतिम बटन स्वाहा का होता है जो रावण के चरणों में होने वाले विस्फोट के साथ पूरे पुतले को जला देता है। इसके अलावा पुतले के बाहर सिलसिलेवार आतिशबाज़ी का भी एक विशाल प्रदर्शन विद्युत सर्किट के द्वारा किया जाता है। इस पूरी विद्युत प्रणाली को तेजिंद्र चौहान स्वयं अपने हाथों से तैयार करते हैं।।
रावण के पुतले के निर्माण के अतिरिक्त चौहान को दूसरी कई प्रकार की कलाकृतियां बनाने में भी पूरी महारत हासिल है। छोटी से छोटी कलाकृति से लेकर 210 फुट ऊंचे रावण तक की कोई भी आकृति,मूर्ति अथवा कोई विशाल झांकी या देवी-देवताओं की मूर्तियां अथवा प्राकृतिक सौंदर्य से जुड़ी कलाकृतियां जैसे पहाड़,झरना, पेड़, फूल अथवा किसी व्यक्ति विशेष की आकृति या फिर किसी जानवर की विशाल प्रतिमा बनाने में इन्हें पूरी महारत हासिल है। अब तक जो विशाल आकृतियां चौहान द्वारा बनाई जा चुकी हैं उनमें शिव परिवार,शेर सहित दुर्गा माता ,पंचमुखी हनुमानजी,जल प्रवाह करती गंगा मैया, शिव जटाओं से निकलती शिवगंगा, शिरडी वाले साईं बाबा,कृष्ण-बकासुर,विष्णु-गरुड,शिवलिंग,बाल्मीकि जी, राधा-कृष्ण,गऊ माता,शिव पैलेस,गंगा अवतरण,महाकाल, विशाल मूषक पर सवार गणेश,विशाल वट वृक्ष, हिमालय पर्वत का दृश्य आदि प्रमुख हैं। इनमें से अधिकांश झांकियां तेजिंद्र चौहान स्वयं अपने श्री रामलीला क्लब बराड़ा द्वारा आयोजित महाशिवरात्रि शोभा यात्रा में आम लोगों के दर्शनार्थ प्रदर्शित करते हैं। चौहान केवल फाईबर से निर्मित इन झांकियों को उनका रूप ही प्रदान नहीं करते बल्कि इसका अंतिम रंग-रोगन,साज-सज्जा व इसके विद्युतीकरण का काम भी वे स्वयं अपने हाथों से ही करते हैं।
तेजिंद्र चौहान संगीत के भी बेहद प्रेमी हैं। उच्चकोटि का संगीत तथा स्तरीय गायन उन्हें बहुत पसंद है। वे अपने जीवन में सबसे अधिक नुसरत फतेह अली खां तथा मेंहदी हसन जैसे गायकों को सुनना पसंद करते हैं। नुसरत फतेहअली व मेंहदी हसन के गाए हुए शायद ही कोई गीत,गज़ल या कव्वाली ऐसी हो जो उनके पास न हो। एक आयोजक के रूप में भी वे समय-समय पर बड़े से बड़े गायकों को अपने क्लब द्वारा आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में आमंत्रित करते रहते हें। सूिफयाना सोच व फकीराना मिज़ाज रखने वाले तेजिंद्र चौहान के पिता स्वर्गीय अमी चंद अंबाला जि़ले के बराड़ा कस्बे के एक बड़े ज़मींदार थे। इसके अतिरिक्त वे एक धर्मनिरपेक्ष सोच रखने वाले उर्दू साहित्य के प्रेमी,शेर-ो-शायरी के शौकीन सरकारी अध्यापक भी थे। कहा जा सकता है कि साहित्य प्रेम का यह गुण स्वर्गीय अमि चंद के दोनों बेटों अर्थात् बड़े बेटे तेजवीर चौहान तथा छोटे बेटे तेजिंद्र चौहान को अपने पिता से विरासत में हासिल हुआ।
जहां कई प्रकार की विभिन्न कलाएं तथा हुनर तेजिंद्र चौहान के व्यक्तित्व में विद्यमान हैं वहीं एक और अनूठी कला पेंसिल आर्ट में भी वे पूरी तरह दक्ष हैं। केवल पेंसिल की सहायता से किसी भी व्यक्ति का हुबहू चित्र उतार देना तेजिंद्र चौहान की एक और विशेषता है। अब तक अपने हाथों से वे महान सूफी बुल्ले शाह,बाबा फरीद,बड़े गुलाम अली खां,नुसरत फतेह अली खां,चार्ली चैपलिन,स्वामी विवेकानंद,राजकपूर,मोहम्मद रफी,किशोर कुमार जैसी मशहूर हस्तियों के अतिरिक्त और भी कई महान विभूतियों के पेंसिल चित्र बना चुके हैं। चौहान को पाक कला में भी काफी निपुणता हासिल है। अच्छे से अच्छा खाना बनाना व बनाकर अपने साथियों को खिलाना उनके पसंदीदा शौक में शामिल है। तेजिंद्र चौहान इवेंट मैनेजमेंट की भी गहरी समझ रखते हैं। अंबाला में आयोजित होने वाला बराड़ा महोत्सव जैसा महत्वपूर्ण पांच दिवसीय आयोजन इन्हीं के दिमाग की उपज था जिसने बराड़ा व अंबाला का नाम पूरे देश में महज़ इस आयोजन की वजह से रौशन किया। बराड़ा महोत्सव देश का अकेला ऐसा पांच दिवसीय आयोजन था जो विश्व के सबसे ऊंचे रावण के पुतले की पृष्ठभूमि में एक विशाल मेले के रूप में आयेाजित होता था।
हरियाणा की धरती का सौभाग्य है कि यहां के बराड़ा कस्बे में ऐसी महान बहुमुखी प्रतिभा ने जन्म लिया। परंतु इसी तस्वीर का एक दूसरा पहलू यह भी है कि चौहान ने अपने उपरोक्त शौक अथवा जुनून को पूरा करने के लिए अपनी लगभग सारी संपत्ति दांव पर लगा दी। उन्होंने अपने शौक को पूरा करने के लिए तथा अपने जुनून को इंतेहा तक पहुंचाने के लिए अपनी ज़मीन-जायदाद,धन-संपत्ति आदि किसी भी चीज़ से कोई मोह नहीं रखा। यहां तक कि उनके भाई तेजवीर चौहान ने भी उनको कभी हतोत्साहित नहीं किया। उनके पूरे परिवार ने हमेशा उनका साथ दिया। निश्चित रूप से इसी पारिवारिक सहयोग ने उनके शौक व जुनून को इस उत्कर्ष तक पहुंचाया कि वे पांच बार लिम्का रिकॉर्ड हासिल करने वाले भारत के अकेले व्यक्ति बन चुके हैं। निश्चित रूप से देश की तथा राज्य की सरकार को भी चाहिए कि ऐसे बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति को प्रोत्साहित करे। आश्चर्य की बात है कि जिस व्यक्ति को लिम्का रिकॉर्ड से पांच बार नवाज़ा जा चुका हो उसे राज्य सरकार या देश की सरकार ने अब तक किसी भी प्रकार का मान-सम्मान देने की ज़हमत गवारा नहीं की। ज़ाहिर है जहां चौहान में कई प्रकार के हुनर छूपे हैं वहीं उनमें मान-सम्मान ‘झटकने’ जैसी कला का गहरा अभाव प्रतीत होता है।
Nirmal Rani (Writer)
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