बेंगलुरू । वर्ष के उत्तरार्ध में प्रक्षेपित किया जाने वाला और पूरी तरह से खगोल विद्या को समर्पित उपग्रह ‘‘एस्ट्रोसेट’ बनकर पूरी तरह तैयार है। इस उपग्रह को प्रक्षेपित करने का मकसद सुदूरवर्ती खगोलीय पिंडों का अध्ययन करना है। इसरो द्वारा मंगलवार को अपनी वेबसाइट पर जारी की गयी जानकारी के अनुसार, सभी पेलोड और उप पण्रालियों को उपग्रह में समाहित कर दिया गया है। पीएसएलवी पेलोड के साथ उपग्रह की तकनीकी फिटनेस की जांच सफलतापूर्वक कर ली गयी है।
इसमें कहा गया है, पिछले सप्ताह उपग्रह को पूरी तरह एकीकृत कर लिया गया और इसे चालू करके देखा गया। उपग्रह के सभी मानक सामान्य हैं जो इस बात का संकेत है कि सब कुछ ठीक काम कर रहा है। इसरो की साइट पर कहा गया है कि प्रक्षेपण के लिए उपग्रह को श्रीहरिकोटा में सतीश धवन स्पेस सेंटर ले जाए जाने से पूर्व आने वाले दिनों में उपग्रह की कई पर्यावरणीय जांच की जाएंगी जिनमें इलैक्ट्रोमैग्नेटिक इंटरफेयरेंस, इलैक्ट्रोमैग्नेटिक कमपेटिबिलिटी, र्थमल वैक्यूम, वाइब्रेशन तथा आकस्टिक टेस्ट आदि शामिल हैं।
इसरो के अनुसार, यह मिशन एक ही समय में अल्ट्रावायलेट, आप्टिकल , लो एंड हाई एनर्जी एक्स रे वेवबैंड में निरीक्षण करने में सक्षम है। उपग्रह को वर्ष 2015 के उत्तरार्ध में पीएसएलवी सी 34 से पृवी के समीप भूमध्यवर्ती कक्षा के करीब 650 किलोमीटर पर प्रक्षेपित किया जाएगा। यह गौर करना उल्लेखनीय है कि ‘‘एस्ट्रोस्टेट’ पहला ऐसा मिशन है जिसे इसरो द्वारा एक अंतरिक्ष शाला के रूप में संचालित किया जाएगा। इसरो ने बताया है कि एस्ट्रोसेट अपने साथ चार एक्सरे पेलोड, एक यूवी टेलिस्कोप और एक पार्टिकल मॉनिटर लेकर जाएगा। इसरो के अलावा, चार अन्य भारतीय संस्थान टाटा इंस्टीट्यूट आफ फंडामेंटल रिसर्च , इंडियन इंस्टीट्यूट आफ एस्ट्रोफिजिक्स, इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फार एस्ट्रोनोमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स तथा रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट उपग्रह के पेलोड संबंधी कार्यक्र म में शामिल रहे हैं। इसरो ने बताया कि दो पेलोड कनाडाई स्पेस एजेंसी तथा ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी आफ लिसेस्टर के सहयोग से इसमें लगाए गए हैं।