मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले एससी-एसटी एक्ट और आरक्षण को लेकर बीजेपी का रुख समझने के बाद सवर्णों का बड़ा वर्ग बेहद नाराज हो गया. इस मुद्दे को लेकर सवर्णों की नाराजगी इस कदर बढ़ी कि उन्होंने सपाक्स पार्टी का गठन बीजेपी के विरोध में खड़े होने का फैसला ले लिया. वहीं बीजेपी यह मान कर बैठी रही कि सपाक्स का गठन कुछ सवर्णों की राजनैतिक महत्वाकांक्षा का नतीजा है. विधानसभा चुनाव 2018 में मध्य प्रदेश के सवर्ण आखिर में बीजेपी को ही वोट करेंगे.
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2018 के प्रचार अभियान में एससी-एसटी एक्ट और आरक्षण को लेकर बीजेपी के नेताओं ने समाज के सभी वर्गों को समान अवसर देने की बात कहते हुए सवर्णों की खुली तौर पर उपेक्षा करनी शुरू कर दी. बीजेपी के द्वारा सवर्णों की उपेक्षा लगातार सपाक्स को मजबूत करती गई. आलम यह हो गया कि बीजेपी की जनसभाओं में सपाक्स से जुड़े नौजवान बीजेपी के नेताओं से एससी-एसटी एक्ट और आरक्षण को लेकर खुलकर सवाल पूछने लगे. सपाक्स से जुड़े इन नौजवानों के सवालों का बीजेपी के किसी भी नेता के पास कोई जवाब नहीं था. ज्यादातर बीजेपी नेता सवर्ण समाज को समझाने की बजाय जनसभा को बीच में ही छोड़ कर निकलने लगे.
अब तक बीजेपी को यह समझ में आने लगा था कि सवर्णों की बढ़ती नाराजगी उनके लिए परेशानी का सबब बन सकती है. लिहाजा, उन्होंने विकास के मुद्दे को आगे कर सवर्णों के इस विरोध को दबाने की कोशिश कर दी. हालांकि बीजेपी का यह दांव कोई कमाल नहीं कर सका. रीवा विधानसभा से चुनाव लड़ रहे राजेंद्र शुक्ल की एक जनसभा में एक सवर्ण नेता को यह कहते हुए भी सुना गया कि वह बिना बिजली-पानी के अपना गुजारा कर लेगा, लेकिन आत्मसम्मान से समझौता नहीं करेगा. ज्यादातर सवर्ण नौजवानों का बीजेपी की सरकार से यही सवाल होता था कि उनके ऊपर इस एक्ट के तहत फर्जी मुकदमा दर्ज किया गया तो उन्हें कौन बचाने आएगा.
कुछ समय के बाद मध्य प्रदेश में सपाक्स की जनसभाएं और आंदोलन की गति धीमी पड़ने लगी, लेकिन सपाक्स से जुड़े नौजवान लगातार गांव-गांव जाकर सवर्णों को एकजुट करने की मुहिम में जुटे रहे. इधर, सपाक्स के आंदोलन की गति धीमी होती देख बीजेपी ने राहत की सांस लेनी शुरू कर दी. बीजेपी ने पूरी तरह से मान लिया कि सपाक्स का खतरा मध्य प्रदेश से पूरी तरह से खत्म हो चुका है. लिहाजा, उन्होंने सवर्णों को अपने पक्ष में लाने और एससी-एसटी एक्ट पर अपना स्टैंड कायम रखने के लिए नई रणनीति बनानी शुरू की. इस रणनीति के तहत जनसभाओं में यह कहा जाने लगा कि बीजेपी की सरकार में सभी वर्गों के हितों को ध्यान में रखा जाएगा. हालांकि इस दौरान ज्यादातर घोषणाएं खास जातिवर्ग को ध्यान में रखकर ही की गई.
बीजेपी ने भले ही यह कदम सवर्णों को दिलासा देने के लिए उठाए थे, लेकिन सवर्णों पर इसका उल्टा असर हुआ. मतदान से कुछ दिन पहले ठंडा पड़ चुका सपाक्स का आंदोलन एक बार फिर लोगों के जहन में जिंदा हो गया. जिसका नतीजा, मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2018 के नतीजों में सामने आ गया. सवर्णों की नाराजगी के चलते बीजेपी इस चुनाव में महज 6 सीटों से चूक गई और कांग्रेस सत्ता के करीब पहुंचने में कामयाब हो गई.