Saturday, November 23, 2024
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शाहिद [ हिंदी ड्रामा ]

दो टूक : कहते हैं जरुरी नहीं कि हमारे साथ ना इंसाफी हो तो हम भी दूसरों के साथ वही करें . लेकिन इस बात के लिए भी तैयार रहे कि इसका करना और इसका परिणाम सबको रास नहीं आता. हंसला मेहता के निर्देशंन में बनी राजकुमार यादव  ,प्रब्लीन संधू, मोहम्मद जीशान अयूब, बलजिंदर कौर ,  विनोद रावत , विपिन शर्मा , शालनी वत्स , पारितोष सैंड , मुकेश छाबरा , पवन कुमार और विवेक घामंडे के अभिनय वाली फिल्म शाहिद.

कहानी : फिल्म की कहानी वकालत पढने पड़ने वाले शाहिद [ राजकुमार यादव ] की है . साम्प्रदायिक दंगो से टूटा शाहिद शक के बाद जेल में डाल दिया जाता है . पुलिस को लगता है वो आंतकवादियों से मिला हुआ था . जेल से छूटकर वो ऐसे लोगों के केस लड़ने लगता है जिन्हें संदेह के कारण बिना वजह बरसों जेल में रहना पड़ा है . पर उसका यही कदम उसे कुछ लोगों का दुश्मन बना देता है . फिल्म में प्रब्लीन संधू, मोहम्मद जीशान अयूब , बल्जिन्दर्कौर , विनोद रावत . विपिन शर्मा , शालनी वत्स, पारितोष सैंड , मुकेश छाबरा , पवन कुमार और विवेक घामंडे के पात्र और चरित्र भी आते जाते रहते हैं. 

गीत संगीत : फिल्म में करन कुलकर्णी के गीत और संगीत है लेकिन ऐसी फिल्म में गीतों की गुंजायश नहीं होती फिर भी कुछ गीत हैं जो फिल्म के पाश्र्व में चलते रहते हैं जिनमे मेरी पसंद का गीत है बेपरवा हवा जैसे बोलों वाला गीत . 

अभिनय : फिल्म की मुख्य पात्र शाहिद बने राजकुमार यादव  है और उन्होंने शाहिद की भूमिका को संवेदनशीलता से अभिनीत किया है . उनका पात्र कुछ कुछ आत्मकेंद्रित किस्म का है लेकिन मध्यांतर  के बाद वो उभरकर अपना अर्थ बुन देता है .बधाई उन्हें . प्रभ लीन ठीक है लेकिन उन्हें ज्यादा समय नहीं मिला. जीशान निराश नहीं करते और विपिन शर्मा के साथ शालनी वत्स, बलजिंदर कौर , विनीत रावत ठीक हैंलेकिन कुछ और पात्रों को उन्हें विस्तार देना चाहिए था . 

निर्देशन : हंसल मेहता ने इस बार एक ज्वलंत विषय को छुआ है और उसे संवेदनशीलता से संप्रेषित भी किया है . ये पहली फिल्म है जो इस्लाम से अलग हटकर सिर्फ इंसानियत की बात करती है . फिल्म मुस्लिम सम्प्रदाय के बारे में बात करती है लेकिन उसे हिन्दू वर्ग के नहीं बल्कि सिस्टम के खिलाफ खड़ा करती है . फिल्म के कुछ संवाद मार्मिकता भरे हैं और फिल्म का अंत भी लेकिन वो अपने विषय और उसके विस्तार के साथ हमें उद्वेलित भी करती है और सोचने को मजबूर भी ..फिल्म एक बार जरुर देखिएगा. 

फिल्म क्यों देखें : एक जरुरी फिल्म है.
फिल्म क्यों ना देखें : ऐसा मैं नहीं कहूँगा. 

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