कैफ़ भोपाली साहब की एक ग़ज़ल का मतला है-
“कौन आएगा यहाँ कोई न आया होगा
मेरा दरवाज़ा हवाओं ने हिलाया होगा।”
वर्तमान परिस्थिति में कमोबेश यह स्थिति हमारे देश सहित लगभग पूरे विश्व की है…! मेहमान,अतिथि तो क्या आस-पड़ोस वाले भी आकर अभी दरवाज़ा नहीं खटखटाते…थोड़े खाते-पीते घरों में, जहाँ ‘डोरबेल’ लगी होती है उसे बजाने वाला भी कोई नहीं! आजकल व्यक्ति आस-पड़ोस तो क्या, अपने घर का दरवाज़ा तक छूने से परहेज कर रहा है…जैसे कि उसमें चार सौ चालीस वाॅट का करंट दौड़ रहा हो…!
कोई जब ज्यादा परेशान करता है तो कहते हैं कि “यह तो हाथ धोकर पीछे पड़ गया।” परंतु सृष्टि के सृजन से लेकर अब तक का यह पहला मौका होगा जब कोई “हाथ धुलवाकर पीछे पड़ गया है…!” वाह कोरोना वाह…भली करी रे तूने…!! न तो हम किसी के मेहमान हो सकते हैं न कोई हमारा…और अगर हो सकते हैं तो बस ‘क्वारंटाइन सेंटर’ के या किसी अस्पताल के…! ‘अतिथि देवो भवः’ की सनातन परंपरा का दुश्मन है यह कोरोना। मुआ जब से आया है, कोई अतिथि नहीं आया। इसलिए हे देवतुल्य अतिथि! हमारे घर का दरवाज़ा अपने आप को आपके करकमलों द्वारा खटखटवाने के लिए तरस रहा है…’डोरबेल’ का ‘स्विच’ खुद को दबवाने के लिए बेचैन हो रहा है…घर का सोफा सेट, कुर्सियाँ आपके भार से स्वयं को दबवाने के लिए कसमसा रहे हैं…चाय के प्याले, धुम्रदंडिका पी-पीकर मेघवर्ण हो चुके या नाना प्रकार के ‘पाउच’ व खैनी,तंबाकू चबाकर पीतवर्णी असामान्य रद पंक्तियों के आवरण होठों द्वारा चाय पीते हुए आपके मुखारविन्द से निकलने वाली ‘सड़प’ सुनने के लिए तड़प रहे हैं…!!
हे अतिथि तुम कब आओगे..? घर के वे छोटे-बड़े डब्बे, जिनमें आपके आगमन पर प्लेटों में सजाकर दी जाने वाली भिन्न-भिन्न प्रकार की खाद्य सामग्री रखी थी,आपकी विरह वेदना में सुलगते हमारे उदरकुंड में शनैःशनैः भस्मी भूत हो चुकी है…! हे अतिथि! आपके उपयोग निमित्त घर के बाथरूम में तह कर के रखा तौलिया सूख सूख कर सूख गया है…! लगभग यही स्थिति तेल,कंघी इत्यादि उन समस्त सामग्रियों की हो चुकी है जो आप की साज सज्जा में सहयोग प्रदान करने हेतु रखी हुई थी! हे महिला अतिथियों! आपके लिए रखे सौंदर्य प्रसाधनों का सदुपयोग घर की महिलाओं द्वारा किया जा रहा है। चूंकि घर की महिलाओं के सौंदर्य प्रसाधन समाप्त हो चुके हैं और बिना इनके वे सब कहीं वास्तविक स्वरूप में न आ जाए इसलिए उन्हें मन मसोसकर इनका उपयोग करना पड़ रहा है…!! उनकी इस विडंबना को आप से अधिक कौन समझ सकता है भला..?
हे अतिथि! परिवार के मासूम बच्चे वह समस्त प्रतिभाएं दिखाने के लिए लालायित हो रहे हैं जो वे आपके आगमन पर दिखाया करते थे। “ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार” से लेकर वे तमाम पोयट्री, उनकी लेटेस्ट सांग पर बाल सुलभ भाव भंगिमाएँ नन्हे शरीर से निकलकर प्रदर्शित होने के लिए कुलबुला रही है…!
अपनी बेजा फरमाइश से हम सबका दिल दहलाने वाले हे अतिथि! क्या तुम्हे अपने घर के निष्क्रिय पड़े तालों पर जरा भी तरस नहीं आता..? तुम्हारे द्वारा उन्हे खरीदने के बाद संभवतः पहला अवसर होगा जब उन्हे इतने दिनो तक तुम्हारे घर के साँकल-नकूचों में लटकने का अवसर न मिला हो…! उन चाबियों की अकुलाहट तुम्हे क्यों नहीं दिखाई देती जो अपने-अपने तालों के नाभी स्थल में मरोड़ खाने के लिए मरी जा रही है…! हाँ यह अभूतपूर्व सत्य है कि आवागमन के संपूर्ण साधन बंद हैं। सभी मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, चर्च सहित समस्त धर्म स्थलों पर श्रद्धालुओं के जाने पर प्रतिबंध है, परंतु हमारे घर का द्वार तो खुला है…! अतः हे अतिथि! तुम “पंख होते तो उड़ आती रे…” से उत्प्रेरित हो उड़ कर चले आओ…! हाँलाकि वह नायिका भी ऐसा नहीं कर पाई थी, जबकि उसे तो अपने ‘रसिया’ के पास जाना था, अपितु हमारे-तुम्हारे बीच ऐसा कुछ नहीं है…!!
बेवज़ह कई-कई दिनो तक जमे रहने वाले हे अतिथि! सानंद रहने वाला घर, बुद्धिमान बच्चे, मनभावन पत्नी,अच्छे व सच्चे मित्र, ईमानदार नौकर, नित्य अतिथियों का आदर-सत्कार, ईश्वर की आराधना, सुमधुर सात्विक भोजन जहाँ होता हो, ऐसे घर में कौन नहीं आना चाहेगा…वैसे भी हम उन मेजबानो में से नहीं जो मेहमानो के सामने बिछ-बिछ जाते हैं और चले जाने के बाद उनके नाम का रोना रोते हैं…! अतः तुम अवसर मिलते ही अवश्य आना। बहरहाल “लाॅक डाउन” का पूर्ण ईमानदारी से पालन करते हुए जहाँ हो वहीं जमें रहो…!! क्या करें…हम भी जमे हुए हैं अपने ही घर में…परंतु जरा उनके बारे में सोचिए, जिनके यहाँ अतिथि आए तो एक-दो दिन के लिए थे पर “लॉक डाउन” लागू हो जाने के कारण डेढ़ महीना पूरा हो जाने के बावजूद अब तक जमे हुए हैं…!!
– कमलेश व्यास ‘कमल’
पता- कमलेश व्यास कमल
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